JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 सार लेखन

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 सार लेखन

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 सार लेखन

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

सार लेखन परीक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह प्रश्न कठिन भी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं कि विद्यार्थी का पढ़ा हुआ गद्यांश ही आए । प्रायः ऐसे गद्यांश पूछे जाते हैं जो विद्यार्थी के लिए अपठित होते हैं। लेकिन जिसने कुछ अन्य गद्यांशों के सारांश लिखने का अभ्यास कर रखा है, उसके लिए यह प्रश्न सरल बन जाता है।
परिभाषा – डॉ० वासुदेव नंदन के अनुसार, “किसी विस्तृत विवरण, सविस्तार व्याख्या, वक्तव्य, पत्र-व्यवहार, लेख इत्यादि के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को संक्षेपण कहते हैं, जिसमें अप्रासंगिक असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण और संक्षिप्त संकलन हो ।”
एक अन्य विद्वान् के अनुसार, “संक्षेपीकरण को हम किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण, बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्र कह सकते हैं । “

सार संक्षेपण हेतु कुछ आवश्यक निर्देश

  1. सार संक्षेपण हेतु दिए गए अंश को दो-तीन बार ध्यान से पढ़िए ताकि उसका मूल भाव अथवा विचार समझ में आ जाए।
  2. महत्त्वपूर्ण अंशों, शब्दों और बिंदुओं को रेखांकित कीजिए।
  3. रेखांकित बिंदुओं के आधार पर उस विषय को अपने शब्दों में संक्षिप्त रूप में लिखिए ।
  4. सार लेखन मूल भाग के तीसरे भाग से अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए पर इसका यह भी अर्थ नहीं है कि मूल और सार का एक-एक शब्द गिन कर हिसाब किया जाए । कुल पंक्तियों के आधार पर संख्या का अनुमान लगाना ही ठीक है ।
  5. सार संक्षेपण यथासम्भव अपनी ओर से सरल होना चाहिए। उसमें थोड़े में अधिक कहने का गुण होना चाहिए।
  6. उपयोगी संख्याओं, आंकड़ों, नामों, तिथियों आदि को सार लेखन में प्रयुक्त करना चाहिए पर मूल अनुच्छेद के शब्दों, मुहावरों, उदाहरणों आदि को छोड़ देना चाहिए।
  7. अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ना चाहिए। आवश्यकतानुसार विचारों के क्रम में परिवर्तन किया जा सकता है।
  8. सार लेखन स्वतन्त्र, सुगठित और प्रवाहपूर्ण होना चाहिए ।
  9. वर्तनी की शुद्धता और विराम चिह्नों की ओर पूरा ध्यान देना चाहिए ।
  10. गद्यांश को एक ऐसा शीर्षक दीजिए जो केन्द्रीय भाव या वर्ण्य – विषय को स्पष्ट करता हो ।
  11. शीर्षक सरल, संक्षिप्त और आकर्षक होना चाहिए । सूक्ति अथवा छोटे वाक्य का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  12. शीर्षक में अतिव्याप्ति या अव्याप्ति का दोष नहीं होना चाहिए।
  13. सार लेखन पूरा कर लेने के बाद उसे पुनः अवश्य पढ़ना चाहिए। यदि उसमें कोई त्रुटि दिखायी दे उसे दूर कर देना चाहिए।
  14. गद्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर गद्यांश के आधार पर तथा अपने शब्दों में दीजिए।

अपठित गद्यांश के कुछ उदाहरण

उदाहरण – 1
उपनिषदों का कथन है— “केवल ऐसे प्रशान्त मनुष्यों को ही शाश्वत सुख मिलता है जो उस एक तत्त्व को अपने अन्दर विद्यमान जान लेते हैं जो विश्व में बहुत रूपों में अपने को प्रकट करता है । ” यही मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य है कि वह उस एक को जाने, जो उसके अन्दर है, सत्य है और उसकी आत्मा है। यही वह कुंजी है जो मानव-जीवन का स्वर्गीय द्वार खोलती है। मनुष्य की कामनाएं अनेक हैं, जो संसार के विविध आकर्षणों के पीछे पागल बनी दौड़ती हैं। किन्तु उसके अन्दर जो एक है, उसे प्राप्त कर लेना ज्ञान का प्रेम का और जीवन का अन्तिम लक्ष्य है। मनुष्य को परम आनन्द की प्राप्ति तभी होती है जब वह असीम सत्ता को अपने सीमित संसार में पा लेता है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) उपनिषदों का कथन क्या है ?
(घ) मनुष्य को परम आनन्द की प्राप्ति कब होती है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक – परमानन्द की प्राप्ति |
(ख) सार—उपनिषदों के अनुसार शाश्वत सुख की उपलब्धि उस तत्त्व को अपने भीतर विद्यमान जान लेने से होती है, जो भिन्न रूपा है तथा जिसकी प्राप्ति जीवन का अन्तिम लक्ष्य है। मनुष्य की अनेक प्रकार की इच्छाएं हैं परन्तु परमानन्द की प्राप्ति उस असीम को अपने सीमित संसार में पा लेने पर ही सम्भव हो सकती है ।
(ग) जो मनुष्य अपने अन्तर में विद्यमान परमात्मा को जान लेते हैं उन्हें शाश्वत सुख मिलता है ।
(घ) जब वह उस परमात्मा को प्राप्त कर लेता है ।
उदाहरण – 2
यथार्थ लक्ष्मी देहात में है। पेड़ों में फल लगते हैं। खेतों में गेहूँ होता है, गन्ना होता है । यही सब सच्ची लक्ष्मी है। यह सच्ची लक्ष्मी बेच कर तुम शहर से सस्ती चीजें लाते हो । लेकिन सभी ऐसा करने लगें तो देहात वीरान दिखाई देंगे। तुम्हारे गाँव में जो चीजें न बनती हों, उसके लिए दूसरे गाँव खोजो। तुम्हारी ग्राम पंचायतों को यह काम अपने जिम्मे लेना चाहिए। गाँव के झगड़े दूर करने का काम तो पंचायतों का है ही । लेकिन गाँव से कौन-कौन सी चीज़ें बाहर जाती हैं, इसका ध्यान भी पंचायत को रखना चाहिए । नाका बनाकर सूची बनानी चाहिए। बाद में, वे चीजें बाहर से क्यों आती हैं, इसकी जांच-पड़ताल करके उन्हें गाँव में ही बनवाने की कोशिश करनी चाहिए। फिर तुम ही चीज़ों के दाम ठहराओगे । जब सभी एक-दूसरे की चीजें खरीदने लगेंगे तो सब सस्ता ही होगा । ‘सस्ता’ और ‘महंगा’ ये शब्द भी नहीं रहेंगे।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) लक्ष्मी का निवास कहां है ?
(घ) गाँव में झगड़े कौन निपटाता है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक- – ग्राम लक्ष्मी का संरक्षण |
(ख) सार– यथार्थ लक्ष्मी का निवास देहातों में ही है। उस सच्ची लक्ष्मी को नगरों में बेच कर वहां से सस्ती वस्तुएं लाना गाँवों की आर्थिक स्थिति को हानि पहुंचाना है। ग्राम पंचायतों को गाँव को स्वावलम्बी बनाने का प्रयास करना चाहिए। वस्तुओं के पारस्परिक आदान-प्रदान से ही चीजें सस्ती हो सकती हैं ।
(ग) लक्ष्मी का निवास गाँवों में होता है ।
(घ) गाँव में झगड़े निपटाने का कार्य पंचायत करती है ।
उदाहरण-3
वास्तव में जब तक लोग मदिरापान से होने वाले रोगों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर लेंगे तथा जब तक उनमें यह भावना जागृत नहीं होगी कि शराब न केवल सामाजिक अभिशाप है अपितु शरीर के लिए अत्यन्त हानिकारक है तब तक मद्यपान के विरुद्ध वातावरण नहीं बन सकेगा। पूर्ण मद्य निषेध तभी सम्भव हो सकेगा, जब सरकार मद्यपान पर तरह- तरह से अंकुश लगाए और जनता भी इसका सक्रिय विरोध करे।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए । 
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का एक-तिहाई शब्दों में सार लिखें।
(ग) सरकार को मद्य निषेध के लिए क्या करना चाहिए ?
(घ) जनता मद्य निषेध में कैसे योगदान दे सकती है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक – मद्य निषेध |
(ख) सार – मध्य निषेध के लिए आवश्यक है कि लोगों को मद्यपान से होने वाली बुराई की जानकारी प्राप्त हो । सरकार को चाहिए कि वह इस पर अंकुश लगाए तथा जनता इसका खुल कर विरोध करे।
(ग) सरकार को मद्यपान पर अनेक कानून बनाने चाहिए।
(घ) जनता को मद्यपान करने वालों का विरोध करना चाहिए ।
उदाहरण – 4
वर्तमान काल विज्ञापन का युग माना जाता है। समाचार पत्रों के अतिरिक्त रेडियो और टेलीविज़न भी विज्ञापन के सफल साधन हैं। विज्ञापन का मूल उद्देश्य उत्पादन और उपभोक्ता में सीधा सम्पर्क स्थापित करना होता है। जितना अधिक विज्ञापन किसी पदार्थ का होगा, उतनी ही उसकी लोकप्रियता बढ़ेगी। इन विज्ञापनों पर धन तो अधिक व्यय होता है, पर इनसे बिक्री बढ़ जाती है । ग्राहक जब इन आकर्षक विज्ञापनों को देखता है तो वह उस वस्तु विशेष के प्रति आकृष्ट होकर उसे खरीदने को बाध्य हो जाता है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) वर्तमान काल को कौन-सा युग कहते हैं ?
(घ) विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक – विज्ञापन का महत्त्व |
(ख) सार – विज्ञापन के इस युग में उत्पादक तथा उपभोक्ता के बीच सीधा सम्पर्क स्थापित करने तथा किसी वस्तु को लोकप्रिय बना कर उसकी बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
(ग) वर्तमान काल को विज्ञापन का युग कहते हैं ।
(घ) विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य उत्पादन तथा उपभोक्ता में सम्पर्क स्थापित करना होता है।
उदाहरण-5
आधुनिक युग में धन-लोभ ने मानव को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है। कुलीनता और शराफ़त, गुण और कमाल की कसौटी पैसा और केवल पैसा है। जिसके पास पैसा है वह देवता स्वरूप है, चाहे उसका अन्त:करण कितना ही काला क्यों न हो। संगीत, साहित्य और कला सभी धन की देहली पर अपना माथा टेकते हैं। यह हवा इतनी ज़हरीली हो गई है कि इसमें सांस लेना भी कठिन होता जा रहा है। इस महाजनी सभ्यता ने नए-नए नीति नियम गढ़ लिए हैं। उनमें से एक यह है कि ‘समय ही धन है’ पहले समय जीवन था और उसका सर्वोत्तम उपयोग विद्या एवं कला का अर्जन तथा दीन-दुःखी जनों की सहायता करना था। अब उसका सबसे बड़ा उपयोग पैसा कमाना है। कुछ कमा लेना ही जीवन की सार्थकता है, शेष सब कुछ समय का नाश है। 
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) आज का मनुष्य किस लोभ से ग्रस्त है ?
(घ) आज के जीवन की सार्थकता किस में है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक – ‘पैसे की महिमा’ ।
(ख) सार – आज संसार में धन का प्रभुत्व है। इसी कारण कुलीनता, शराफत, गुण एवं कला की कसौटी पैसा बन गया है। साहित्य, संगीत एवं कला – सभी में पैसे का ही बोलबाला है। आज के युग में मानव के लिए पैसा कमाना ही जीवन की सार्थकता है। बाकी सब कुछ व्यर्थ एवं महत्त्वहीन है ।
(ग) आज का मनुष्य धन के लोभ से ग्रस्त है।
(घ) आज के जीवन की सार्थकता अधिक-से-अधिक धन कमाने में है।
उदाहरण – 6
कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है पर खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता वरन् मनुष्य भी बनता है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाते हैं जो उसे आगे चल कर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती हैं।
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) इस गद्यांश का एक-तिहाई शब्दों में सार लिखें।
(ग) खेल के मैदान में स्वास्थ्य के अतिरिक्त क्या बनता है ?
(घ) कुछ लोगों के खेल-कूद के बारे में क्या विचार हैं ? 
उत्तर –
(क) शीर्षक – खेलों का महत्त्व |
(ख) सार – खेलों का जीवन में विशेष योगदान है। इनसे जहां एक ओर स्वास्थ्य रक्षा होती है वहां दूसरी ओर मनुष्य सहयोग, साहस, ध्येय, निष्ठा आदि अनेक ऐसे गुण भी सीख लेता है जिनसे वह एक अच्छा नागरिक बन सकता है।
(ग) खेल के मैदान में स्वास्थ्य के अतिरिक्त मनुष्य अपने भावी जीवन की समस्याओं को सुलझाना भी सीख जाता है।
(घ) कुछ लोगों के विचार में खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है ।
उदाहरण – 7
देशभक्त अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्रेम करता है। यदि एक ओर उसे अपने अतीत के गौरव पर गर्व है तो दूसरी ओर वह अपने भविष्य को भी उज्ज्वल बनाना चाहता है । वह सदैव समाज में क्रान्ति चाहता है, किन्तु वह क्रान्ति और विशृंखला कही जा सकती है, न नागरिकता के प्रतिकूल । समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं अन्ध-विश्वासों तथा उन परम्पराओं एवं परिपाटियों के विरुद्ध वह क्रान्ति करता है, जो देश की उन्नति के पथ की बाधाएं हैं। लोगों में एकता, प्रेम और सहानुभूति उत्पन्न करना, उनमें राष्ट्रीय, सामाजिक एवं नैतिक चेतना जागृत करना, उन्हें कर्त्तव्य-परायण और अध्यवसायी बने रहने के लिए प्रोत्साहन देना ही देश भक्ति है । 
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) इस गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) देशभक्त अपने भविष्य को कैसा बनाना चाहता है ?
(घ) देशभक्त क्या है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक- देशभक्त का कर्त्तव्य |
(ख) सार – देशभक्त अपनी मातृभूमि को प्रेम एवं उसके अतीत पर गर्व करता है । वह देश के विकास में बाधक रूढ़ियों के विरुद्ध क्रान्ति करके लोगों में एकता, प्रेम एवं कर्त्तव्य की भावना को बढ़ाता है ।
(ग) देशभक्त अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहता है ।
(घ) देशभक्त देशवासियों में एकता, प्रेम, सहानुभूति, राष्ट्रीय-सामाजिक तथा नैतिक चेतना उत्पन्न कर अपने कर्त्तव्य का उचित पालन करते हुए देश की उन्नति करता है।
उदाहरण- 8 
साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी ज़िन्दगी है। ऐसी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निर्भीक, बिल्कुल बेखौफ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना, यह साधारण जीवन का काम है। क्रान्ति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देख कर मद्धम बनाते हैं।
(क) उचित शीर्षक दें।
(ख) सारांश लिखें।
(ग) साहस की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान क्या है ?
(घ) जनमत की उपेक्षा करने वाला व्यक्ति कैसा होता है ?
उत्तर –
(क) साहसी की ज़िन्दगी ।
(ख) साहसी व्यक्ति निर्भीक होता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग उसके विषय में क्या कहते हैं। साहसी व्यक्ति किसी की नकल नहीं करता। वह अपने मार्ग पर बिना किसी की चिन्ता किए चलता रहता है।
(ग) साहसी की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह बिल्कुल निर्भीक होता है।
(घ) जनमत की उपेक्षा करने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है । वह दुनिया को बदलने की शक्ति रखता है।
उदाहरण – 9
आपका जीवन एक संग्राम स्थल है, जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिये फूलों से भरे नंदन- -वन से नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन-पथ का सारथी बन कर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जेय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन-पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अन्धकार मुँह फैलाये आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्मविश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य-किरणों के फूटते ही अन्धकार भाग जाता है।
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
(ख) इस गद्यांश का एक-तिहाई शब्दों में सार लिखें ।
(ग) जीवन क्या है ?
(घ) कठिनाइयों से जूझने के लिए किस वस्तु की सबसे अधिक आवश्यकता है।
उत्तर –
(क) शीर्षक – आत्मविश्वास ।
(ख) सार – जीवन में सुख ही नहीं, दुःख भी हैं। सुख-दुःखमय जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास का होना ज़रूरी है। जो आत्मविश्वासी है, उसके लिए कोई भी विपत्ति नहीं । उसका भविष्य उज्ज्वल बनता है। आत्मविश्वास के अभाव में मनुष्य जीवन – सागर की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त नहीं करता ।
(ग) जीवन सुख-दुःख का संगम है।
(घ) कठिनाइयों से जूझने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता है।
उदाहरण – 10 
शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में ठूंस दिया गया है और जो आत्मसात् हुए बिना वहां आजन्म पड़ा रह कर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवननिर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण में सहायक हो, यदि आप केवल पाँच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उसके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो आप पूरे ग्रन्थालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित है। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अन्ततोगत्वा ये दोनों भी अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं। ।
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए
(ख) इस गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखें।
(ग) शिक्षा क्या है ?
(घ) किस के बिना शिक्षा अधूरी है?
उत्तर –
(क) शीर्षक- शिक्षा और आचरण ।
(ख) सारांश – शिक्षा अनेक प्रकार की जानकारियों का ढेर नहीं । शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण में सहायक होना है। शिक्षा और आचरण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं। ।
(ग) जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण में सहायक विचारों को आत्मसात् करना शिक्षा है।
(घ) अच्छे आचरण के अभाव में शिक्षा अधूरी है ।
उदाहरण- 11
आइए देखें जीवन क्या है ? जीवन केवल जीना, खाना, सोना और मर जाना नहीं है । यह तो पशुओं का जीवन है। मानव जीवन में भी यह सब प्रवृत्तियां होती हैं, क्योंकि वह भी तो पशु है, पर इनके उपरान्त कुछ और भी होता है। उसमें कुछ ऐसी मनोवृत्तियां होती हैं, जो प्रकृति के साथ हमारे मेल में बाधक होती हैं, कुछ ऐसी होती हैं, जो इस मेल में सहायक बन पाती हैं। जिन प्रवृत्तियों में प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य बढ़ता है, वे वांछनीय होती हैं। जिनसे सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है, वे दूषित हैं । अहंकार, क्रोध या द्वेष हमारे मन की बाधक प्रवृत्तियां हैं। यदि हम इनको बेरोकटोक चलने दें तो निःसन्देह वे हमें नाश और पतन की ओर ले जाएंगी। इसलिए हमें उनकी लगाम रोकनी पड़ती है, उन पर संयम रखना पड़ता है, जिससे वे अपनी सीमा से बाहर न जा सकें । हम उन पर जितना कठोर संयम रख सकते हैं, उतना ही मंगलमय हमारा जीवन हो जाता है ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दें
(ख) एक-तिहाई में सारांश लिखें।
(ग) हमारा जीवन मंगलमय कैसे हो सकता है ?
(घ) पशुओं का जीवन कैसा होता है ?
उत्तर –
(क) शीर्षक – मानव जीवन ।
(ख) सारांश – मनुष्य पशु से भिन्न है, क्योंकि वह पाश्विक प्रवृत्तियों से बचने की चेष्टा करता है। अहंकार, क्रोध तथा वैर भाव मनुष्य के मन की बाधक प्रवृत्तियां हैं। इन पर अंकुश न रखने से उसका पतन अवश्यम्भावी है । इन बाधक प्रवृत्तियों पर जितना अधिक संयम रखा जाता है, मनुष्य का जीवन उतनी ही मंगलमय बनता है।
(ग) मन पर संयम रखने से हमारा जीवन मंगलमय हो सकता है ।
(घ) पशुओं का जीवन केवल जीने, खाने-पीने, सोने और मर जाने तक होता है ।
उदाहरण – 12 
बिना मितव्यय मनुष्य परोपकारी नहीं बन सकता । धनवान् और निर्धन सबके लिए मितव्यय की बहुत बड़ी आवश्यकता है। जो अपनी सारी आय खर्च कर लेता है वह न तो दूसरों की सहायता कर सकता है और न किसी को दान दे सकता है। ऐसा आदमी अपने बच्चों की शिक्षा का पूरा प्रबन्ध भी नहीं कर सकता और न उन्हें जीवन-यात्रा के लिए अधिक योग्य ही बना सकता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सरीखे विद्वान् को भी अपव्यय के कारण कष्ट उठाना पड़ा था । केलिन नित्य सैंकड़ों-हज़ारों आदमी ऐसे देखे जाते हैं जिनमें विद्या और बुद्धि का अभाव है, पर वे भी मितव्यय के कारण बड़े सुख से रहते हैं।
(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए ।
(ख) उपर्युक्त अवतरण का एक-तिहाई शब्दों में सार लिखिए |
(ग) मनुष्य को मितव्ययी होने की क्यों आवश्यकता है?
(घ) जो अपनी सारी आय खर्च कर देता है उसे कौन-कौन से दुःख उठाने पड़ते हैं ?
उत्तर –
(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक ‘मितव्ययता’ है ।
(ख) सार – मितव्ययता जीवन की बहुत बड़ी आवश्यकता है। अपव्यय करने वाला व्यक्ति न दूसरों की सहायता कर सकता है, न दान दे सकता है और न ही अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर सुयोग्य बना सकता है। हज़ारों लोग कम पढ़े-लिखे होते हुए भी मितव्ययता के कारण सुखी रहते हैं ।
(ग) आज के युग में धनी, निर्धन सभी को मितव्ययी होने की बहुत आवश्यकता है। मितव्ययी व्यक्ति ही परोपकार कर सकता है, दान दे सकता है तथा बच्चों की शिक्षा का भी प्रबन्ध कर सकता है।
(घ) जो व्यक्ति अपनी सारी आय खर्च कर देता है, वह हीन बच्चों की शिक्षा का पूरा प्रबन्ध कर सकता है और न ही उन्हें जीवन यात्रा के लिए अधिक योग्य बना सकता है। अपव्यय के कारण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अनेक कष्ट उठाने पड़े।
उदाहरण – 13
ज्ञान राशि से संचित कोष का नाम ही साहित्य है । सब तरह के भावों को प्रकट करने को योग्यता रखने वाली और निर्दोष होने पर भी यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नहीं रखती तो वह रूपवती भिखारिन की तरह कदापि आदरणीय नहीं हो सकती । उसकी शोभा, उसकी श्रीसम्पन्नता, उसकी मान-मर्यादा उसके साहित्य पर ही अवलम्बित है। जाति विशेष के उत्कर्षाकर्ष का, उसके उच्च-नीच भावों का, उसके धार्मिक विचारों और सामाजिक संगठन का, उसके ऐतिहासिक घटनाचक्रों तथा राजनीतिक स्थितियों का प्रतिबिम्ब देखने को यदि कहीं मिल सकता है तो उनके साहित्य में मिल सकता है। सामाजिक शक्ति या सजीवता, सामाजिक अशक्ति या निर्जीवता और सामाजिक असभ्यता और सभ्यता का निर्णायक एकमात्र साहित्य ही है । जिस जाति की सामाजिक अवस्था जैसी होती है, उसका साहित्य भी वैसा ही होता है । जातियों की क्षमता, सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है तो उनके साहित्य रूपी आइने में ही मिल सकती है ।
(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए |
(ख) इस अवतरण का एक तिहाई शब्दों में सार लिखिए |
(ग) साहित्य किसे कहते हैं ? परिभाषा दीजिए ।
(घ) साहित्य – विहीन भाषा की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर –
(क) इस अवतरण का उचित शीर्षक ‘साहित्य की महत्ता’ है ।
(ख) सार – ज्ञान राशि के संचित भण्डार का नाम साहित्य है । किसी जाति अथवा राष्ट्र के भावों और विचारों का सच्चा प्रतिबिम्ब साहित्य में ही देखने को मिलता है। सामाजिक सजीवता, निर्जीवता, सभ्यता, असभ्यता का निर्णय साहित्य ही करता है। साहित्य समाज का दर्पण है। किसी समाज का सच्चा प्रतिबिम्ब उसके साहित्य में मिलता है।
(ग) ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है।
(घ) साहित्य – विहीन भाषा की तुलना रूपवती भिखारिन से की गई है। जिस प्रकार सुन्दर होने पर भी भिखारिन को सम्मान नहीं मिल सकता, उसी प्रकार साहित्य के अभाव में कोई भाषा सम्मान नहीं पा सकती ।
उदाहरण – 14 
समस्त भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मूल में स्थित समन्वय की भावना है। उसकी यह विशेषता इतनी प्रमुख और मार्मिक है कि केवल इसी के बल पर संसार के अन्य साहित्यों के सामने वह अपनी मौलिकता की पताका फहरा सकता है जिस प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भारत के ज्ञान – भक्ति के समन्वय प्रसिद्ध हैं और जिस तरह वर्ण एवं आश्रम चतुष्ठय के निरूपण द्वारा इस देश में सामाजिक समन्वय का सफल प्रयास हुआ है, ठीक इसी प्रकार साहित्य तथा अन्य कलाओं में भी भारतीय संस्कृति समन्वय की ओर रही है । साहित्य समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुःख, उत्थान – पतन, हर्ष – विवाद आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा अलौकिक आनन्द में विलीन होने से है । साहित्य के किसी अंग को लेकर देखिए सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में सुख और दुःख के प्रतिघात दिखाए गए हैं, पर सबका अवसान आनन्द में ही है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है ।
(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए ।
(ख) उपर्युक्त अवतरण का एक तिहाई शब्दों में सार लिखिए | 
(ग) साहित्य में समन्वय भावना से क्या तात्पर्य है ? 
(घ) भारतीय साहित्य की मुख्य विशेषता बताइए ।
उत्तर –
(क) उक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक ‘भारतीय साहित्य की समन्वय भावना’ है।
(ख) सार – समन्वय की भावना के कारण भारतीय साहित्य संस्था के अन्य साहित्यों के समक्ष अपनी मौलिकता का दावा कर सकता है। जिस प्रकार ज्ञान, भक्ति एवं कर्म के द्वारा धार्मिक समन्वय, वर्णाश्रम के द्वारा सामाजिकसमन्वय की भान्ति सुख-दुःख आदि के निरूपण से साहित्यिक समन्वय उत्पन्न होता है। यह दृष्टिकोण आदर्श स्थिति प्रस्तुत करके जीवन को उन्नति की ओर अग्रसर करता है ।
(ग) दो विरोधी भावों और विचारों के सामंजस्य को ‘समन्वय की भावना’ कहते हैं ।
(घ) भारतीय साहित्य की अनेक विशेषताएं हैं जिसमें समन्वय की भावना मुख्य विशेषता है। अन्य विशेषताओं में मौलिकता, भक्ति की प्रधानता, सांस्कृतिक अभ्युत्थान और उच्चादर्शों की भावना आदि है।
उदाहरण – 15 
सभ्यता का आन्तरिक प्रभाव संस्कृति है सभ्यता समाज की बाह्य व्यवस्थाओं का नाम है और संस्कृति व्यक्ति के अन्दर के विकास का | सभ्यता की दृष्टि वर्तमान की सुविधा असुविधाओं पर रहती हैं, संस्कृति की भविष्य या अतीत के आदर्श पर, सभ्यता नज़दीक की ओर दृष्टि रखती है, संस्कृति दूर की ओर, सभ्यता का ध्यान व्यवस्था पर रहता है, संस्कृति का व्यवस्था के अतीत पर, सभ्यता के निकट कानून मनुष्य से बड़ी चीज़ है, लेकिन संस्कृति की दृष्टि में मनुष्य कानून से परे हैं, सभ्यता बाह्य होने के कारण चंचल है, संस्कृति आन्तरिक होने के कारण स्थायी । सभ्यता समाज को सुरक्षित रखकर उसके व्यक्तियों को इस बात की सुविधा देती है कि वे अपना आन्तरिक विकास करें, इसलिए देश की सभ्यता जितनी पूर्ण होगी अर्थात् उसकी व्यवस्था जितनी ही सजग होगी, राजनीतिक संगठन जितना ही पूर्ण होगा, नैतिक परम्परा जितनी विशुद्ध होगी और ज्ञानशीलन की भावना जितनी ही प्रबल होगी उस देश के वासी उसी परिणाम में सुसंस्कृत होंगे। इसलिए सभ्यता और संस्कृति में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है।
(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) उपर्युक्त अवतरण का एक-तिहाई शब्दों में सार लिखिए ।
(ग) सभ्यता और संस्कृति में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ।
(घ) ‘सभ्यता और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक है ।’ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर –
(क) इस अवतरण का उचित शीर्षक ‘शीर्षक और संस्कृति’ है। –
(ख) सार– सभ्यता, समाज की बाह्य व्यवस्था का नाम है तो संस्कृति व्यक्ति के अन्तर के विकास का नाम है। सभ्यता बाह्य होने के कारण चंचल है और संस्कृति आन्तरिक होने के कारण स्थायी है । सभ्यता जितनी पूर्ण होगी, हमारी नैतिक परम्परा उतनी ही विशुद्ध होगी। परिणामस्वरूप हम उतने ही सुसंस्कृत होंगे ।
(ग) सभ्यता और संस्कृति एक ही वस्तु के दो पहलू हैं। सभ्यता का सम्बन्ध समाज की बाह्य व्यवस्था से है जबकि संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति के आन्तरिक गुणों से है।
(घ) सभ्यता और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। देश की सभ्यता जितनी पूर्ण होगी, उसकी नैतिक परम्परा उतनी ही विशुद्ध होगी, ज्ञानानुशीलन की भावना उतनी ही प्रबल होगी परिणामस्वरूप संस्कृति भी उतनी ही पुष्ट होगी ।

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