JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 3 प्रेमचंद के फटे जूते —हरिशंकर परसाई
JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 3 प्रेमचंद के फटे जूते —हरिशंकर परसाई
JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 3 प्रेमचंद के फटे जूते —हरिशंकर परसाई
Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions
Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Solutions
J&K State Board class 9 Hindi Solutions
लेखक – परिचय
जीवन-परिचय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, सन् 1922 ई० को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ लेखन करने का निर्णय किया।
परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ पर पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहां के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हज़ार रुपए के चकल्लस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान रहे हैं।
हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ– परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानियाँ- ‘हंसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाक वाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’ ।
उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोजं’।
निबंध संग्रह –‘ तब की बात और थी’, ‘भूत के पांव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’ ।
भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा अत्यंत व्यावहारिक तथा सहज है किंतु इन के व्यंग्य बाण बहुत तीखे हैं। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेख में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी तथा एक लेखक की फटेहाली का यथार्थ अंकन किया है। लेखक ने उपहास, आग्रह, आनुपातिक प्रवर्तक जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ फोटो, केनवस, पोशाक, अहसास, क्लिक, ट्रेजडी, बरकरार जैसे विदेशी तथा पन्हैया, पतरी जैसे देशज शब्दों का प्रयोग भी किया है। हौंसले पस्त होना, चक्कर काटना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में पैनापन आ गया है। लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें कहीं-कहीं चित्रात्मकता के भी दर्शन हो जाते हैं, जैसे प्रेमचंद के व्यक्तित्व का यह शब्द चित्र उन के रूप को स्पष्ट कर देता है-‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’ इस प्रकार इनकी भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा होते हुए भी किसी भी स्थिति पर कटाक्ष करने में सक्षम है।
पाठ का सार
हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति कर कटाक्ष किया है। लेखक प्रेमचंद और उन की पत्नी का फ़ोटो देखकर सोचता है कि यदि प्रेमचंद की फ़ोटो खिंचाने की पोशाक सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती, केनवस के जूते और बाएँ जूते के बड़े से छेद में से बाहर निकलती हुई अँगुली है तो, उनकी साधारण – सामान्य पहनने की पोशाक कैसी होगी ?
लेखक को हैरानी होती है कि क्या प्रेमचंद को फ़ोटो खिंचवाते समय यह पता नहीं था कि उन का जूता फटा हुआ है जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही है ? उन्हें इस पर न लज्जा आई न संकोच हुआ। वे यदि धोती को ज़रा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढक सकती थी। फ़ोटो खिंचवाते समय इन के चेहरे पर बेपरवाही और बहुत विश्वास दिखाई देता है। इन के चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान है जो किसी का उपहास करती प्रतीत होती है ।
लेखक सोचता है कि यह कैसा आदमी है जो फटे हुए जूते पहन कर फ़ोटो खिंचवा रहा है और किसी पर हँस भी रहा है। इसे ठीक जूते पहन कर फ़ोटो खिंचवानी चाहिए थी। लगता है कि पत्नी के आग्रह पर जैसा वह था वैसे ही फ़ोटो खिंचवाने चल पड़ा होगा। उसे इस बात का दुःख है कि इस आदमी के पास फ़ोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छा जूता न था। उसे लगता है कि प्रेमचंद फ़ोटो का महत्त्व नहीं समझते, नहीं तो किसी से जूते माँग कर ही फ़ोटो खिंचवाते। लोग माँगे के कोट से वर दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। प्रेमचंद के समय में टोपी आठ आने में और जूते पाँच रुपए में मिल जाते होंगे। अब तो एक जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियां आ जाती हैं। प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक को फ़ोटो में फटे जूते पहने देख कर लेखक बहुत दुःखी है।
लेखक का अपना जूता भी कोई ख़ास अच्छा नहीं है। वह ऊपर से अच्छा है परंतु उस के अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकली हुई थी परंतु लेखक का पंजा नीचे से घिस रहा है। उसे अपनी अँगुली ढके होने का लाभ यह है कि उस के जूते के फटे हुए तले का किसी को पता नहीं चलता क्यों कि वह पर्दे में है। प्रेमचंद फटा जूता ठाठ से पहनते हैं पर लेखक को ऐसा करने में संकोच का अनुभव होता है। वह आजीवन ऐसा फ़ोटो नहीं खिंचवाएगा। प्रेमचंद की मुस्कान उसे चुभती हुई लगती है। वह सोचता है कि इस मुस्कान का अर्थ यह तो नहीं है कि होरी का गोदान हो गया अथवा पूस की रात में सूअर हल्कू का खेत चर गए या डॉक्टर के न आने से सुजान भगत का लड़का मर गया। उसे लगता है कि जब माधो औरत के कफ़न के चंदे से शराब पी गया था तो यह उस समय की मुस्कान है।
लेखक फिर से प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर सोचता है कि शायद बनिए के तगादे से बचने के लिए मील-दो-मील का चक्कर लगा कर घर लौटने के कारण इनके जूते फट गए थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया होगा तो उसे कहना पड़ा—
‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम ।’
जूता तो चलने से घिसता फटता नहीं, तो तुम्हारा जूता कैसे फटा ? लेखक को लगता है कि प्रेमचंद किसी सख़्त चीज़ को ठोकर मारते रहे होंगे जिस से उन का जूता फट गया होगा। वे उस सख्त चीज को ठोकर मारे बिना भी निकल सकते थे। जैसे नदियाँ पहाड़ फोड़ने के स्थान पर रास्ता बदलकर घूम कर चली जाती हैं। प्रेमचंद समझौतावादी नहीं थे। इसलिए उनके पाँव की अँगुली उस ओर संकेत करती हुई लगती है कि जो घृणित है उस की ओर हाथ की नहीं पाँव की अँगुली से तुम इशारा करते हो । वास्तव में तुम उन सब पर हँसते हो जो अँगुली छिपाते हैं और तलुआ घिसते हैं, जो समझौतावादी हैं। प्रेमचन्द ने तो अँगुली जूते को फाड़कर बाहर निकाल ली पर पाँव तो बचा लिया था, परंतु जो तलुवे घिस रहे हैं उन का तो पाँव ही घिस जाएगा। वे चलेंगे कैसे ? लेखक प्रेमचंद के फटे जूते और अँगुली के इशारे को समझ रहा है और उनकी व्यंग्य भरी मुस्कान का अर्थ भी जानता है।
कंठिन शब्दों के अर्थ
चित्र = तस्वीर, फ़ोटो। बंद = फीते। उपहास = मज़ाक उड़ाना आग्रह = अनुरोध । ट्रेजडी = दुःखद घटना । क्लेश = दुःख, कष्ट । महसूस = अनुभव । विडंबना = उपहास करना, हँसी उड़ाना । कुर्बान = न्योछावर । तगादे = तकाज़े | पन्हैया = जूती । बिसर = भूल । उपजत = पैदा होना । नेम = नियम । मुक्ति = आज़ादी। बरकरार = सुरक्षित ।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखक ने प्रेमचंद की सादगी का वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक प्रेमचंद और उनकी पत्नी का फ़ोटो देखता है तो उसे प्रेमचंद के फटे जूते में से उनकी अंगुली बाहर निकली हुई दिखाई देती है इस पर लेखक अपने साहित्यिक पुरखें प्रेमचंद को संबोधित करते हुए पूछता है कि क्या उन्हें अपने जूते के फटे होने का ज्ञान नहीं था ? उस से उनकी अँगुली बाहर निकल रही थी। क्या उन्हें इस बात का मामूली सा भी अहसास नहीं था? इस पर उन्हें बिलकुल लज्जा का अनुभव नहीं हो रहा था अथवा कोई संकोच भी नहीं था। उन्हें इतना भी ध्यान नहीं था कि यदि वे अपनी धोती जरा नीचे खींच लेते तो उन की जूते से निकली अंगुली ढक जाती। इतना होने पर भी उन के चेहरे पर बेपरवाही तथा विश्वास का भाव था।
विशेष – लेखक ने प्रेमचंद की पहनावे के प्रति उदासीनता का चित्रण किया है। भाषा | सहज, भावपूर्ण तथा सरस है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) लेखक ने ‘साहित्यिक पुरखे’ किसे और क्यों कहा है ?
(iii) लेखक के ‘साहित्यिक पुरखे’ को किस बात का अहसास नहीं है और क्यों ?
(iv) ‘साहित्यिक पुरखे’ के चेहरे पर बेपरवाही और विश्वास का क्या कारण है ?
(v) इन पंक्तियों के आधार पर ‘साहित्यिक पुरखे’ के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर— (i) पाठ – प्रेमचंद के फटे जूते, लेखक हरिशंकर परसाई ।
(ii) लेखक ने ‘साहित्यिक पुरखे’ प्रेमचंद को कहा है क्योंकि वे लेखक से पहली पीढ़ी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, निबंधकार और युग प्रवर्त्तक साहित्यकार थे ।
(iii) लेखक के साहित्यिक पुरखे प्रेमचंद को इस बात का अहसास नहीं है कि उन का एक जूता आगे से फट गया है, जिसमें से अँगुली बाहर निकल रही है। उन्हें अपने पहनावे की चिंता नहीं होती इसलिए जूते के फटने तथा उस में से अँगुली के बाहर निकलने का भी उन्हें अहसास नहीं होता ।
(iv) लेखक का साहित्यिक पुरखा प्रेमचंद, अपने आप में मस्त रहता है इसलिए उस के चेहरे पर बेपरवाही छाई रहती है। वह अपने सभी कार्य पूरी ईमानदारी से करता है इसलिए उस के चेहरे पर दृढ़ विश्वास का भाव दिखाई देता है।
(v) लेखक का साहित्यिक पुरखा बहुत ही सीधा-साधा व्यक्ति है। उसे अपने पहनावे की कोई चिंता नहीं होती है। वह कुछ भी पहन लेता है। उसे अपने जूते के फटे होने तथा पैर की अँगुली के जूते से बाहर निकले रहने पर भी लज्जा या संकोच नहीं है। उस के चेहरे पर बेपरवाही तथा विश्वास का भाव दिखाई देता है।
2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है। जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से ली गई हैं। लेखक प्रेमचंद की पहनावे के प्रति उदासीनता का चित्रण कर रहा है।
व्याख्या – लेखक को लगता है कि प्रेम चंद महंगाई के कारण नए जूते नहीं खरीद सकते थे। टोपी आठ आने में तथा जूता पाँच रुपए मिलता होगा इसलिए जूता सदा टोपी से महंगा मिलता है। अब तो जूता और भी महंगा हो गया है तथा एक जूते के मूल्य में पच्चीसों टोपियाँ आ सकती हैं। प्रेमचंद भी टोपी सस्ती तथा जूता महंगा होने के कारण होने के कारण नई टोपी तो ले सके होंगे परन्तु नया जूता नहीं खरीद सके होंगे। प्रेमचंद का फटा जूता देख कर लेखक को टोपी और जूते के मूल्य का अंतर आज सता रहा है।
विशेष – महंगा होने के कारण ही प्रेमचंद फटा जूता पहने हुए थे, नया नहीं खरीद सके थे। भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) लेखक के साहित्यिक पुरखे के जमाने में टोपी और जूते का क्या मूल्य था ? दोनों में से किस का मूल्य अधिक था ?
(ii) जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर से क्या तात्पर्य है ?
(iii) लेखक का साहित्यिक पुरखा किस का मारा हुआ है और क्यों ?
(iv) लेखक को क्या बात आज बहुत चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर— (i) लेखक के साहित्यिक पुरखे के ज़माने में टोपी आठ आने में और जूता पाँच रुपए में मिल जाता था। जूता टोपी से महंगा होता था। जूते का मूल्य अधिक था ।
(ii) इस कथन से लेखक का यह आशय है कि अब जूते का मूल्य बहुत अधिक बढ़ गया है और एक जूते के मूल्य में अनेक टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं।
(iii) लेखक का साहित्यिक पुरखा जूते और टोपी के आपस में मूल्यों के बहुत अधिक अंतर के कारण टोपी तो नई खरीद लेता है किंतु जूते का मूल्य अधिक होने के कारण नया जूता नहीं खरीद सकता । वह फटे हुए जूते को पहनने के लिए विवश है।
(iv) लेखक को यह बात बहुत अधिक चुभ रही है कि उस का साहित्यिक पुरखा पुराना फटा हुआ जूता पहने हुए है जबकि वह एक महान् कथाकार, उपन्यासकार और युग प्रवर्तक साहित्यकार है ।
3. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं !
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से ली गई हैं। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते से निकली हुई उनकी अँगुली देखकर अपनी स्थिति का मूल्यांकन करता है।
व्याख्या – लेखक का जूता भी पुराना है परन्तु ऊपर से ठीक दिखाई देता है। उसके जूते से अँगुली बाहर नहीं निकलती परन्तु अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। इस से उस का अँगूठा ज़मीन से घिसने के कारण कभी-कभी जख्मी भी हो जाता है। पूरा तला घिस जाने पर के जूते से उस की अँगुली बाहर नहीं आएंगी। प्रेमचंद की अँगुली जूते से बाहर है परन्तु पाँव सुरक्षित है जबकि लेखक की अंगुली ढकी है परन्तु पंजा घिस रहा है। प्रेमचंद दिखावा नहीं करते थे परन्तु लेखक कष्ट उठा कर भी दिखावा कर रहा है।
विशेष – लेखक भी महंगाई के कारण फटा जूता पहनने पर विवश है परन्तु ऊपर से जूते को ठीक रखे हुए है। भाषा सहज तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) लेखक के जूते की क्या विशेषता है ?
(ii) पैनी मिट्टी से रगड़ खाकर अँगूठे और पंजे की क्या दशा होती है ?
(iii) लेखक और प्रेमचंद के पहने हुए जूतों में क्या अंतर है ?
(iv) पर्दे का क्या महत्त्व है ?
उत्तर— (i) लेखक का जूता विशेष रूप से कोई अच्छा जूता नहीं है। ऊपर से वह अच्छा दिखाई देता है। उस के जूते से उसकी की अँगुली बाहर नहीं निकलती, परंतु उसका जूता अँगूठे के नीचे से तले से फटा हुआ है।
(ii) पैनी मिट्टी से रगड़ खा कर अँगूठा लहूलुहान हो जाता है। जब जूते का पूरा तला गिर जाएगा तो मिट्टी से रगड़ खा कर पंजा छिल जाएगा।
(iii) लेखक का जूता अँगूठे के नीचे तले से घिस गया है, जिस से उसकी अँगुली ढकी रहती है, परंतु पंजा नीचे से घिसता रहता है। प्रेमचंद का जूता आगे से फटा हुआ है जिस में से उनकी अँगुली बाहर निकलती रहती है।
(iv) पर्दे से तात्पर्य यह है कि हम पर्दे के पीछे अपनी सभी कमजोरियाँ, बुराइयाँ आदि ढक लेते हैं। इसलिए लेखक अपने तले से फटे हुए जूते को प्रेमचंद के आगे से फटे हुए जूते से अच्छा मानता है क्योंकि उस के फटे हुए जूते से अँगुली बाहर नहीं निकल रही जबकि प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकल रही है। वह अपनी गरीबी को पर्दे से ढक रहा है जबकि प्रेमचंद की तंगहाली स्पष्ट दिखाई दे रही है।
4. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, नहीं ‘नेम-धरम’ वाली कमजोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति भी !
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से ली गई हैं। लेखक ने प्रेमचंद को सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं में बंधा चित्रित किया है ।
व्याख्या – लेखक का मानना है कि प्रेमचंद ने जीवन में कभी समझौता नहीं किया। उन । की भी यह वही कमज़ोरी थी जो ‘गोदान’ के नायक ‘होरी’ को ले डूबी थी। जैसे होरी नैतिक मूल्यों तथा सामाजिक मर्यादाओं का पालन करना अपना धर्म मानता था वैसे ही प्रेमचंद भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं का पालन करना अपना कर्त्तव्य मानते थे। उन्हें इन मर्यादाओं का पालन करना बंधन नहीं बल्कि मुक्ति लगता था । यह सब करना वे अच्छा समझते थे।
विशेष – प्रेमचंद सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं का पालन करते थे । भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) होरी की क्या कमजोरी थी ?
(ii) होरी को उसकी कमजोरी कैसे ले डूबी ?
(iii) प्रेमचंद के लिए ‘नेम धरम क्या और क्यों था ?
(iv) ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— (i) होरी सामाजिक तथा सांस्कृतिक मर्यादाओं के बंधन में रहता था। वह अपनी नैतिकता को नहीं छोड़ता था। इस के लिए वह आजीवन संघर्षरत रहा।
(ii) सामाजिक मर्यादाओं के बंधनों में बंधे रहने के कारण होरी को सारा जीवन ग़रीबी में व्यतीत करते हुए बिताना पड़ा और अंत में अभावों से लड़ता हुआ मर गया ।
(iii) प्रेमचंद के लिए अपने नैतिक मूल्यों का पालन करना तथा सामाजिक मर्यादाओं अनुसार जीवन-यापन करना बंधन न होकर मुक्ति थी। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।
(iv) वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं के बंधनों में बंध कर जीवन व्यतीत करता था ।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर आती हैं ?
उत्तर— इस पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे। वे धोती-कुर्ता पहनते थे । वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का जूता पहनते थे। अपनी वेशभूषा पर वे विशेष ध्यान नहीं देते थे। उन के फटे जूते से उन की अँगुली बाहर निकली होने पर भी उन्हें संकोच या लज्जा नहीं आती थी । उन के चेहरे पर सदा बेपरवाही तथा विश्वास का भाव रहता था। वे जीवन संघर्षों से नहीं घबराते थे। वे निरंतर कार्य करते रहते थे।
प्रश्न 2. सही कथन के सामने (v) का निशान लगाइए
(क) बायें पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौंसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?
उत्तर— (क) x (ख) ✓ (ग) x (घ) x ।
प्रश्न 3. नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए—
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं ।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो ?
उत्तर— (क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महँगा होता है, इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता । एक जूते की कीमत में अनेक टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। टोपी तो नई पहनी जा सकती है पर जूता नया नहीं लिया जा सकता।
(ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों, कमजोरियों तथा बुराइयों को छिपा कर रखते हैं इसलिए सभी पर्दे के महत्त्व को स्वीकार करते हैं परंत प्रेमचंद किसी प्रकार के दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए पर्दे का महत्त्व नहीं समझते थे। आज के आडंबर प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क दिखाने के लिए पर्दे की प्रथा पर न्योछावर हो रहे हैं।
(ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुल कर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि जिसे प्रेमचंद घृणा करते थे उस की ओर हाथ की नहीं पैर की अँगुली से संकेत करते थे।
प्रश्न 4. पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती है ?
उत्तर— प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार इसलिए बदल गया क्योंकि उसे लगा कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे । वे अपनी वेशभूषा के बारे में अधिक ध्यान नहीं देते थे । वे एक सामान्य व्यक्ति के समान उपलब्ध साधनों के अनुसार ही वेशभूषा धारण करते थे। उन्हें दिखावे में विश्वास नहीं था। वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई देना चाहते थे ।
प्रश्न 5. आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर— इस व्यंग्य को पढ़ कर मुझे लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं—
(i) लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का शब्द चित्र प्रस्तुत किया है- ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं ।’
(ii) लेखक ने प्रेमचंद के जूते का पूरा विवरण दिया है। जूता केनवस का है । इस के बंध उन्होंने बेतरतीब बाँधे हैं। बंध के सिरे की लोहे की पतरी निकल गई है। जूते के छेदों में बंध डालने में परेशानी होती है। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, परंतु बायें जूते के आगे बड़ा-सा छेद है, ज़िस में से अँगुली बाहर निकल आई है।
(iii) लेखक ने प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का सहज रूप से प्रयोग किया है, जैसे— ‘रेडी प्लीज’, ‘क्लिक’, ‘थैंकयू’, ‘ट्रेजडी’, फोटो।
(iv) गोदान, पूस की रात, कुंभनदास आदि के उदाहरण ।
प्रश्न 6. पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?
उत्तर— पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग जीवन में आने वाले संघर्षों, मुसीबतों, कठिनाइयों, समस्याओं परेशानियों आदि के लिए किया गया है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 7. प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बना कर परसाई ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर— अपनी मन पसंद पोशाक पहनना सब की निजी पसंद है। कोई कुछ भी पहने इस पर किसी को कुछ कहने का अधिकार तो नहीं है पर पोशाक की विचित्रता पर हंसा तो जा ही सकता है। मेरे पड़ौसी लगभग साठ वर्ष के हैं; व्यापारी हैं और वर्षों से यहीं रह रहे हैं। उनकी लाल पेंट पर भड़कीली हरी कमीज़ और सिर पर पीली टोपी सहसा सब का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। पता नहीं उनके पास इस तरह की रंग-बिरंगे पोशाकें कितनी हैं। पर जब-जब वे बाहर निकलते हैं, सड़क पर चलती-फिरती होली के रंगों की बहार लगते हैं। जो उन्हें पहली बार देखते हैं वे तो बस उन की ओर देखते ही रह जाते हैं, पर इस का कोई असर उनकी सेहत पर नहीं पड़ता।
प्रश्न 8. आपकी दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर— आजकल लोग अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं। वे अवसर के अनुकूल वेशभूषा का चयन करते हैं। विद्यालयों में निश्चित वेशभूषा पहन कर जाना होता है। घरों में तथा विभिन्न त्योहारों, शादियों, सभाओं, समारोहों के अवसर पर हम अपनी पसंद की वेशभूषा धारण कर सकते हैं। लड़के अधिकतर पैंट-शर्ट अथवा जींस तथा टी-शर्ट पहनना पसंद करते हैं। वे अच्छे शूज़ पहनते हैं। लड़कियाँ भी सलवार-सूट के साथ मैचिंग दुपट्टा और सैंडिल अथवा टॉप-जींस अथवा साड़ी आदि पहनती हैं। सब को अपने व्यक्तित्व को निखारने वाले रंगों के वस्त्र पहनने अच्छे लगते हैं। आज वेशभूषा से ही किसी व्यक्ति के स्वभाव, स्तर आदि का ज्ञान हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत सजग हो गया है ।
भाषा अध्ययन—
प्रश्न 9. पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।
उत्तर— न्योछावर होना = माँ अपने बेटे की वीरता पर न्योछावर हो रही थी ।
ठाठ से रहना = अनिल दस लाख रुपए की लाटरी निकलते ही ठाठ से रहने लग गया है।
चक्कर काटना = शौकत से अपना कर्ज़ा वसूलने के लिए पठान बार-बार उस के घर के चक्कर काट रहा है।
ठोकर मारना = सीमा ने ठोकर मार कर रोशनी को गिरा दिया।
भरा-भरा = शेर सिंह का चेहरा उसकी घनी मूँछों से भरा-भरा लगता है।
प्रश्न 10. प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर— मोटे, चिपकी, घनी, फटा, तीखा।
पाठेत्तर सक्रियता—
• महात्मा गांधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे, पता लगाइए।
• महादेवी वर्मा ने ‘राजेंद्र बाबू’ नामक संस्मरण में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद का कुछ इसी प्रकार चित्रण किया है, उसे पढ़िए ।
• अमृतराय लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘प्रेमचंद – कलम का सिपाही’ पुस्तक पढ़िए।
• एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा निर्मित फ़िल्म हरिशंकर परसाई देखें।
उत्तर— विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें ।
यह भी जानें—
कुंभनदास – ये भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे तथा आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवियों में से एक थे। एक बार बादशाह अकबर के आमंत्रण पर उनसे मिलने वे फतेहपुर सीकरी गए थे। इसी संदर्भ में कही गईं पंक्तियों का उल्लेख लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. पठित पाठ के आधार पर प्रेमचंद के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर— इस पाठ में प्रेमचंद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है । उन के सिर पर मोटे कपड़े की टोपी है। वे कुरता – धोती पहनते हैं। उन की कनपटी चिपकी हुई तथा गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उन की घनी मूँछें उन के चेहरे को भरा-भरा बना देती हैं। वे केनवस के जूते पहनते हैं। उन्हें जूतों के फटे होने की भी चिंता नहीं रहती है। उन के चेहरे पर सदा बेपरवाही और विश्वास का भाव रहता है। उन्हें अपनी इस सामान्य वेशभूषा पर लज्जा अथवा संकोच नहीं होता है ।
प्रश्न 2. लेखक के विचार में फ़ोटो कैसे खिंचानी चाहिए ?
उत्तर— लेखक का विचार है कि फ़ोटो खिंचवाने के लिए ठीक वेशभूषा पहननी चाहिए। यदि अपने पास अच्छे वस्त्र और जूते न हों तो किसी से माँग लेने चाहिएं क्योंकि लोग तो वर दिखाई के लिए कोट और बारात निकालने के लिए मोटर तक मांग लेते हैं । कुछ लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं कि शायद फोटो में सुगंध आ जाए।
प्रश्न 3. लेखक के विचार में प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा ?
उत्तर— लेखक का विचार है कि प्रेमचंद का जूता परिस्थितियों से समझौता न कर सकने के कारण फट गया होगा। उन की आर्थिक स्थिति इतनी मज़बूत नहीं थी कि वे नया जूता खरीद सकते। वे अपने फटे जूते को तब तक पहने रखना चाहते थे जब तक कि वह पहनने के लायक न रहे।
प्रश्न 4. ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर— ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन करते हुए लेखकों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। प्रेमचंद युग प्रवर्तक कथाकार एवं उपन्यास सम्राद कहे जाते हैं परंतु उन्हें फटे जूते पहन कर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। वे इतने सहज थे कि उन्हें अपनी फटेहाली पर लज्जा या संकोच नहीं होता था। वे बेपरवाह तथा दृढ़ विश्वासी थे। इस के विपरीत आज समाज में प्रदर्शन प्रधान हो गया है। लोग माँग कर वर दिखाई, बारात चहाना आदि करते हैं। प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक के सामने किस का चित्र था ?
उत्तर— प्रेमचंद का।
प्रश्न 2. प्रेमचंद के पैरों में किस के जूते थे ?
उत्तर— केनवस के।
प्रश्न 3. प्रेमचंद के किस पैर के जूते में छेद था ?
उत्तर— बायें जूते में।
प्रश्न 4. प्रेमचंद के बाएँ जूते के छेद से बाहर क्या निकल आ रहा था ?
उत्तर— पैर की एक अँगुली ।
प्रश्न 5. लेखक ने साहित्यिक पुरखा किसे कहा है ?
उत्तर— प्रेमचंद को।
प्रश्न 6. प्रेमचंद के फटे जूते से निकलने वाली अंगुली कैसे ढक सकती थी ?
उत्तर— धोती को नीचे खींचने से।
प्रश्न 7. प्रेमचंद के जमाने में जूते की कीमत कितनी होगी ?
उत्तर— पाँच रुपए।
प्रश्न 8. लेखक के जूते का तला कहाँ से फटा है ?
उत्तर— अँगूठे के नीचे का ।
प्रश्न 9. किस का जूता फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिसा था ?
उत्तर— कुंभनदास का।
प्रश्न 10. ‘नेम-धरम’ प्रेम चंद के लिए क्या था ?
उत्तर— मुक्ति ।
प्रश्न 11. प्रेमचंद में कौन-सा गुण नहीं था ?
उत्तर— पोशाकें बदलने का।
प्रश्न 12. प्रेमचंद किस चीज का महत्त्व नहीं जानते ?
उत्तर— पर्दे का।
प्रश्न 13. प्रेमचंद को क्या पसंद नहीं था ?
उत्तर— दिखावा।
प्रश्न 14. प्रेमचंद ने किस के साथ फोटो खिंचवाई थी ?
उत्तर— पत्नी के साथ
प्रश्न 15. प्रेमचंद क्या नहीं थे ?
उत्तर— समझौतावादी नहीं थे।
प्रश्न 16. परसाई जी मुख्यता कौन-से लेखक हैं ?
उत्तर— व्यंग्य लेखक।
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