JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 4 मेरे बचपन के दिन  —महादेवी वर्मा

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लेखिका – परिचय

जीवन परिचय— श्रीमती महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात हैं। इसका कारण यह है कि मीरा की तरह महादेवी जी ने अपनी विरह-वेदना को कला के रंग में रंग दिया है। महादेवी जी का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फरुर्खाबाद नामक नगर में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। माता के प्रभाव ने इनके हृदय में भक्ति भावना के अंकुर को जन्म दिया। शैशवावस्था में ही इनका विवाह हो गया था । आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह बंधन से मुक्त हो गईं। सन् 1933 में इन्होंने प्रयाग में संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला विद्यापीठ के आचार्य पद के उत्तरदायित्व को निभाते हुए भी वे साहित्य – साधना में लीन रहीं। सन् 1987 ई० में इनका निधन हो गया। इन्हें साहित्य अकादमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था ।
रचनाएँ— महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
काव्यं— नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत तथा दीप शिखा ।
गद्य— शृंखला की कड़ियां, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, क्षणदा।
भाषा-शैली— महादेवी वर्मा मूलरूप से कवयित्री हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यंत सरल,. भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा सहज है। ‘मेरे बचपन के दिन’ लेखिका की बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत करने वाला आलेख है। इसमें लेखिका ने सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया है जिस में कहीं-कहीं तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग भी दिखाई देता है, जैसे- स्मृति, विचित्र, आकर्षण, रुचि, विद्यापीठ तथा विदेशी शब्द दर्जा, नक्काशीदार, उस्तानी, तुकबंदी, डेस्क, कंपाउंड में कहीं-कहीं प्रयोग किए गए हैं। इस प्रकार के शब्द प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता आ गई है। लेखिका की शैली आत्मकथात्मक है जिसमें लेखिका का व्यक्तित्व तथा स्वभाव उभर आता है, जैसे उर्दू-फ़ारसी नहीं पढ़नी है इसके लिए लेखिका लिखती है – “बाबा चाहते थे कि मैं उर्दू-फ़ारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी ।” बीच-बीच में संवादात्मकता से पाठ में रोचकता आ गई है। इस प्रकार लेखिका की भाषा-शैली रोचक, स्पष्ट, प्रभावपूर्ण तथा भावानुरूप है।
पाठ का सार
‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत किया है। लेखिका का मानना है कि बचपन की स्मृतियाँ विचित्र आकर्षण से युक्त होती हैं। लेखिका अपने परिवार में लगभग दो सौ वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी। इसलिए उसके जन्म पर सब को बहुत प्रसन्नता हुई। लेखिका के बाबा दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे । इनकी माता जबलपुर की थीं तथा हिंदी पढ़ी-लिखी थीं। वे पूजा-पाठ बहुत करती थीं। माता जी ने इन्हें ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया था। बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। बाबा इन्हें उर्दू-फ़ारसी पढ़ाना चाहते थे परंतु इन्हें संस्कृत पढ़ने में रुचि थी। इन्हें पहले मिशन स्कूल में भेजा गया परंतु इनका वहाँ मन नहीं लगा तो इन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया । यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था। छात्रावास के हर कमरे में चार छात्राएँ रहती थीं। इनके कमरे में सुभद्रा कुमारी थीं। वे लेखिका से दो कक्षाएँ आगे कक्षा सात में थीं। वे कविता लिखती थीं और लेखिका ने भी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। लेखिका की माता जी मीरा के पद गाती थीं जिन्हें सुनकर वह भी ब्रजभाषा में कविता लिखने लग गई थी परंतु यहाँ आकर सुभद्रा कुमारी को देखकर वह भी खड़ी बोली में कविता लिखने लगी। जब पहली बार सुभद्रा कुमारी ने लेखिका से पूछा कि क्या वह कविता लिखती है ? लेखिका ने डर कर नहीं में उत्तर दिया था। जब सुभद्रा कुमारी ने उस की किताबों की तलाशी ली तो उसमें से कविता लिखा हुआ कागज़ निकल पड़ा जिसे वे सारे छात्रावास में दिखा आई कि महादेवी कविता लिखती है । इसके बाद दोनों में मित्रता हो गई ।
क्रास्थवेट कॉलेज में एक पेड़ की डाल बहुत नीची थी। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों पेड़ की डाल पर बैठकर तुकबंदी करती थीं । इनकी कविताएँ ‘स्त्री-दर्पण’ नामक पत्रिका में छप जाती थीं। वे कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगीं। लेखिका सन् 1917 ई० में यहाँ आई थी। इन दिनों गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया था तथा आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र बन गया था। इन दिनों होने वाले कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर आदि करते थे। लेखिका को प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था । इन्हें सौ के लगभग पदक मिले थे। एक बार इन्हें पुरस्कार में चाँदी का कटोरा मिला, जिसे इन्होंने सुभद्रा को दिखाया तो उसने कहा कि एक दिन खीर बनाकर इस कटोरे में मुझे खिलाना।
जब आनंद भवन में बापू आए तो अपने जेब खर्च में से बचाई राशि उन्हें देने के लिए लेखिका वहाँ गई और उन्हें पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा भी दिखाया। गांधी जी ने उसे कहा कि यह कटोरा मुझे दे दो । लेखिका ने वह उन्हें दे दिया और लौट कर सुभद्रा से कहा कि चाँदी का कटोरा तो गांधी जी ने ले लिया। सुभद्रा ने कहा कि और जाओ दिखाने । पर खीर तो तुम्हें बनानी और खिलानी ही होगी- चाहे पीतल की कटोरी में ही खिलाओ । लेखिका को यह प्रसन्नता थी कि पुरस्कार में मिला कटोरा उसने गांधी जी को दिया था।
सुभद्रा जी के जाने के बाद लेखिका के साथ एक मराठी लड़की जेबुन्निसा रहने लगी। वह कोल्हापुर की रहने वाली थी । वह लेखिका के बहुत से काम भी कर देती थी । जेबुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी । लेखिका ने भी उससे कुछ मराठी शब्द सीखे। उनकी अध्यापिका जेबुन के ‘इकड़े-तिकड़े’ जैसे मराठी शब्द सुनकर उसे टोकती कि ‘वाह ! देसी
कौवा, मराठी बोली ।’ इस पर जेबुन कहती ‘यह मराठी कौवा मराठी बोलता है।’ जेबुन की वेशभूषा भी मराठी महिलाओं जैसे थी। वहाँ कोई सांप्रदायिक भेदभाव नहीं था। अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की बुंदेली बोलती थीं। यहाँ हिंदी, उर्दू आदि सब कुछ पढ़ाया जाता था परंतु आपस में बातचीत वे अपनी ही भाषा में करती थीं।
लेखिका जब विद्यापीठ आई तब तक उस का बचपन का क्रम ही चलता रहा। बचपन में वे जहाँ रहती थीं वहीं जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी नवाबी समाप्त हो गई थी। उनकी पत्नी इन्हें कहती थी कि वे इन्हें ताई कहें। बच्चे उन्हें ‘ताई साहिब’ कहते थे। उनके बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। इनके जन्मदिन नवाब साहब के घर और नवाब साहब के बच्चों के इनके घर मनाये जाते थे। उनके एक लड़का था जिसे ये राखी बांधती थीं। जब लेखिका का छोटा भाई हुआ तो वे उस के लिए कपड़े आदि लाई और उसका नाम मनमोहन रखा। वही आगे चलकर प्रोफेसर मनमोहन वर्मा जम्मू विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनके घर में हिंदी, उर्दू, अवधी भाषाओं का प्रयोग होता था। उस वातावरण में दोनों परिवार एक-दूसरे के बहुत निकट थे। लेखिका को लगता है कि यदि आज भी ऐसा ही वातावरण बन जाए तो भारत की कथा ही कुछ और होती।
कठिन शब्दों के अर्थ
स्मृतियाँ = यादें । परमधाम = स्वर्ग | ख़ातिर = सेवा, सत्कार । विदुषी = विद्वान् स्त्री | दर्जा = कक्षा । प्रतिष्ठित = सम्मानित | उपरांत = बाद। नक्काशीदार = चित्रकारी से युक्त । इकड़े-तिकड़े = इधर-उधर | लोकर- लोकर = शीघ्र – शीघ्र । निराहार = भूखा, बिना खाएपिए। लहरिए = धारीदार वस्त्र, रंगीन साड़ी। वाइस चांसलर = कुलपति ।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 
1. बाबा कहते थे, इसको हम विदुषी बनाएँगे। मेरे संबंध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फ़ारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने । माँ थोड़ी संस्कृत जानती थीं। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी । पूजा-पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी। उसके उपरांत उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको । मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी । मेरा मन नहीं लगा। 
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित पाठ ‘मेरे बचपन के दिन’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की यादों को प्रस्तुत किया है।
व्याख्या— इन पंक्तियों में लेखिका अपने अतीत को स्पष्ट करते हुए लिखती है कि उस के बाबा उसे बहुत पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाना चाहते थे। लेखिका के संबंध में उन के विचार बहुत अच्छे थे। लेखिका ने ‘पंचतंत्र’ और संस्कृत पढ़ी। वे उसे उर्दू भी सिखाना चाहते थे परन्तु वह उर्दू नहीं सीख सकी। उर्दू पढ़ाने वाले मौलवी साहब को देख कर वह चारपाई के नीचे छिप गई थी। इस के बाद उसे संस्कृत पढ़ाने पंडित जी आए थे। लेखिका की माँ संस्कृत जानती थीं। वे गीता पढ़ती थीं। पूजा के समय वह भी उन के पास बैठ जाती थी। इस प्रकार वह संस्कृत सुनती थी। इस के बाद उसे मिशन स्कूल में दाखिल करा दिया गया। जहाँ का वातावरण और प्रार्थना अलग प्रकार की थी, इसलिए उस का मन वहाँ नहीं लगा था।
विशेष— लेखिका ने अपनी उर्दू विषय में अरुचि तथा संस्कृत के प्रति लगाव का वर्णन किया है। भाषा सहज एवं भावानकुल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) पाठ और रचनाकार का नाम लिखिए। 
(ii) विदुषी किसे कहते हैं ? बाबा किसे और क्यों विदुषी बनाना चाहते थे ? 
(iii) लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख सकी ? वह मौलवी साहब से कैसे बची ?
(iv) लेखिका ने क्या-क्या पढ़ा और सीखा ? 
(v) लेखिका को किस विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया और वहाँ उस की क्या दशा थी ?
उत्तर— (i) पाठ – मेरे बचपन के दिन, लेखिका – महादेवी वर्मा ।
(ii) विद्वान् स्त्री को विदुषी कहते हैं। महादेवी वर्मा को बाबा विदुषी बनाना चाहते थे क्योंकि उनका जन्म इस परिवार में लगभग दो सौ वर्षों के बाद हुआ था। वे अपनी पौत्री को बहुत पढ़ाना-लिखाना चाहते थे। उन्हें इनसे बहुत स्नेह था ।
(iii) लेखिका के बाबा उर्दू-फ़ारसी जानते थे। वे लेखिका को भी उर्दू-फ़ारसी पढ़ाना चाहते थे, परंतु लेखिका को उर्दू-फ़ारसी सीखने में रुचि नहीं थी। जब उसे पढ़ाने के लिए मौलवी साहब आए तो वह चारपाई के नीचे जा कर छिप गई थी। इस प्रकार वह मौलवी साहब से उर्दू-फ़ारसी पढ़ने से बच गई थी।
(iv) लेखिका की माता जी हिंदी और संस्कृत जानती थीं। उन्होंने लेखिका को पंचतंत्र पढ़ना सिखाया। उन्हीं दिनों लेखिका ने संस्कृत भी पढ़ी। एक पंडित जी लेखिका को संस्कृत पढ़ाने के लिए आते थे।
(v) लेखिका को मिशन स्कूल में दाखिल किया गया। यहाँ का वातावरण बिल्कुल अलग था। यहाँ की प्रार्थना भी अलग प्रकार की थी। लेखिका का मन इस विद्यालय में नहीं लगा। उसने वहां जाना बंद कर दिया और जब उसे ज़बरदस्ती ले जाने लगते तो वह रोने-धोने लगती थी। तब लेखिका को दूसरे स्कूल में भर्ती कर दिया गया था ।
2. उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे ?’ अब मैं क्या कहती ? मैंने दे दिया और लौट आई। दुःख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है ?
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित पाठ ‘मेरे बचपन के दिन ‘ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की यादों को प्रस्तुत किया है।
व्याख्या— इस पंक्तियों में लेखिका आनंद भवन में गांधी जी के आने के दिनों को स्मरण करते हुए लिखती है कि जब गाँधी जी आनंद भवन आते थे तो वह अपने – जेब खर्च से कुछ बचा कर उन्हें देती थी। एक दिन जब वह कविता सुनाने पर मिले पुरस्कार स्वरूप कटोरे को भी साथ ले कर गांधी जी से मिलने गई और वह कटोरा उस ने गांधी जी को दिखाया, तो उन के माँगने पर उस ने वह कटोरा उन्हें दे दिया। उसे कटोरा देने का दुःख तो नहीं था परन्तु गाँधी जी द्वारा यह नहीं पूछने का उसे दुःख था कि उस की कविता क्या थी ?
विशेष— लेखिका द्वारा स्वाधीनता संग्राम में लिए गए योगदान का वर्णन है। भाषा सहज, सरल तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) आनंदभवन कहां है ? यहाँ कौन-से बापू आए थे ?
(ii) लेखिका बापू के पास किस लिए गई थी ?
(iii) लेखिका ने जब बापू को कटोरा दिखाया तो उन्होंने क्या कहा तथा लेखिका ने क्या उत्तर दिया ?
(iv) लेखिका को दुःख किस बात का था और क्यों ? 
उत्तर— (i) आनंदभवन इलाहाबाद में है। यहाँ महात्मा गांधी आए थे। इन्हें बापू कह कर बुलाया जाता था। इनका पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था ।
(ii) लेखिका अपने जेब खर्च से देश के लिए कुछ पैसे बचाती थी। जब बापू वहाँ आते थे तो उन पैसों को वह उन्हें दे देती थी । इस दिन भी लेखिका बापू के पास देश के लिए बचाए गए पैसे देने गई थी।
(iii) लेखिका ने जब बापू को कविता सुनाने पर पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा दिखाया तो उन्होंने लेखिका से कहा कि क्या वह इस कटोरे को उन्हें दे रही है ? इस पर लेखिका ने कुछ नहीं कहा और वह कटोरा उन्हें दे दिया। कटोरा देकर वह लौट गई ।
(iv) लेखिका को बापू को कटोरा देने का दुःख नहीं था। उसे दुःख इस बात का था कि बापू ने उससे यह भी नहीं पूछा था कि किस कविता पर उसे यह पुरस्कार मिला था। उन्होंने. उससे वह कविता सुनाने के लिए भी नहीं कहा था । यदि बापू उससे उसकी कविता सुन लेते तो उसे बहुत प्रसन्नता होती ।
3. उस समय यह देखा मैंने कि सांप्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं; बुंदेलखंड की आती थीं, वे बुंदेली में बोलती थीं। कोई अंतर नहीं आता था और हम पढ़ते हिंदी थे । उर्दू भी हमको पढ़ाई जाती थी, परंतु आपस में हम अपनी भाषा में ही बोलती थीं। यह बहुत बड़ी बात थी । हम एक मेस में खाते थे, एक प्रार्थना में खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित पाठ ‘मेरे बचपन के दिन’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की यादों को प्रस्तुत किया है।
व्याख्या— लेखिका अपने छात्रावास का वर्णन करते हुए लिखती है कि वहाँ का वातावरण अत्यंत सहज था। वहाँ सभी धर्म, जाति की लड़कियाँ मिल-जुल कर रहती थीं। किसी प्रकार का सांप्रदायिक भेदभाव नहीं था। अवध की लड़कियाँ आपस में अवधी, बुंदेलखंड की बुंदेली बोलती थीं। किसी में कोई भेदभाव नहीं था । वे सभी हिंदी पढ़ती थीं। वहाँ उर्दू भी पढ़ाई जाती थी परन्तु वे सब आपस में अपनी भाषा ही बोलती थीं । यह उन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण बात थी । वे एक ही मेस में खाती थी । एक प्रार्थना में खड़ी रहती थीं तथा किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं होता था ।
विशेष— छात्रावास जीवन में सांप्रदायिक सद्भाव बना रहता था। भाषा सहज तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) उन दिनों छात्रावास का वातावरण कैसा था ?
(ii) छात्रावास में रहने वाली लड़कियाँ कौन-कौन सी भाषाएँ बोलती थीं ? 
(iii) इन छात्राओं के अध्ययन अध्यापन का माध्यम क्या था ? इनके विद्यालय में अन्य कौन-सी भाषा पढ़ाई जाती थी ?
(iv) छात्राओं का परस्पर व्यवहार कैसा था ?
उत्तर— (i) उन दिनों छात्रावास का वातावरण सांप्रदायिक सद्भाव से युक्त था हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि विभिन्न धर्म-संप्रदाय को मानने वाली लड़कियाँ आपस में मिल-जुल कर रहती थीं। उनमें कोई भेदभाव नहीं था ।
(ii) छात्रावास में रहने वाली अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की रहने वाली बुंदेली, महाराष्ट्र की मराठी भाषा बोलती थीं। भाषा की विविधता का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
(iii) इन छात्राओं के अध्ययन अध्यापन का माध्यम हिंदी था। इन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी। इन्हें हिंदी माध्यम से पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
(iv) छात्राओं का परस्पर व्यवहार बहुत ही स्नेहपूर्ण तथा मित्रता का था। वे एक ही मेस में मिल-जुल कर खाना खाती थीं। वे प्रार्थना सभा में एक साथ खड़ी होती थीं। उनमें आपस में कोई मतभेद नहीं था । वे सदा एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तैयार रहती थीं।
4. राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए। बार-बार कहलाती थीं – ‘भाई भूखा बैठा है राखी बँधवाने के लिए।’ फिर हम लोग जाते थे । हमको लहरिए या कुछ मिलते थे। इसी तरह मुहर्रम में हरे कपड़े उनके बनते थे तो हमारे भी बनते थे । फिर एक हमारा छोटा भाई हुआ वहाँ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा, ‘देवर साहब से कहो, वो मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी।’ वे कपड़े – वपड़े लेकर आईं। हमारी माँ को वे दुलहन कहती थीं।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित पाठ ‘मेरे बचपन के दिन’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन के दिनों की यादें प्रस्तुत की हैं।
व्याख्या— इन पंक्तियों में लेखिका ने जबारा के नवाब की मुसलिम बेगम जिन्हें वे ताई साहिबा कहती थीं द्वारा राखी के दिन उन की प्रतीक्षा करने तथा रक्षा बंधन का दिन मनाने का वर्णन किया है। वे मानती थीं कि जब तक बहनें राखी नहीं बांध जाती भाइयों को कुछ नहीं खाना चाहिए। वे बार-बार संदेश भेजतीं कि भाई भूखा बैठा है, राखी बंधवाने के लिए। जब ये राखी बांधने जातीं तो इन्हें लहरिये आदि मिलते थे। मुहर्रम पर भी इन्हें कपड़े बनवा कर दिए जाते थे। इन का जब छोटा भाई पैदा हुआ तो ताई साहिबा ने इन के पिता जी से नेग मांगा था और नवजात के लिए वस्त्र ले कर आई थीं। इन की मां को वे दुलहन कहती थीं।
विशेष— लेखिका ने सांप्रदायिक सद्भाव का सुन्दर उदाहरण दिया है जब रक्षाबंधन और मुहर्रम का त्योहार हिन्दू-मुसलिम मिल कर मानते थे । भाषा भावपूर्ण एवं सहज है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) राखी बाँधने का क्या नियम था ? 
(ii) राखी और मुहर्रम पर इन्हें क्या उपहार मिलते थे ?
(iii) लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने क्या किया  ? 
(iv) लेखिका की माँ को ताई साहिबा क्या कहती थीं ? लेखिका के पिता को उन्होंने क्या संदेश दिया ?
उत्तर— (i) राखी बँधवाने का यह नियम था कि राखी के दिन जब तक बहनें भाई को राखी न बांध जाएँ तब तक भाई को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। उसे भूखा रहना चाहिए।
(ii) राखी पर इन्हें लहरिए और मुहर्रम पर हरे कपड़े उपहार में मिलते थे।
(iii) लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने इन्हें कपड़े आदि दिए और कहा कि नए बच्चे को छह महीने तक चाची-ताई के कपड़े पहनाए जाते हैं।
(iv) लेखिका की माँ को ताई साहिबा दुलहन कहती थीं। लेखिका के पिता को उन्होंने कहा कि देवर साहब से कहो कि वे उनका नेग तैयार करके रखें।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. ‘‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। “
इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि—
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?
उत्तर— (क) जब लेखिका का जन्म हुआ उन दिनों किसी परिवार में लड़की का जन्म लेना अच्छा नहीं माना जाता था। लोग लड़की के जन्म को परिवार के लिए बोझ मानते थे। इसलिए कुछ लोग तो लड़की के पैदा होते ही उसका गला दबा कर उसे मार देते थे। लड़की को जन्म देने वाली माँ को भी बुरा-भला कहा जाता था तथा उसकी भी ठीक से देखभाल नहीं की जाती थी।
(ख) आजकल लड़की और लड़के में कोई अंतर नहीं किया जाता है। लड़की के जन्म पर भी लड़की को जन्म देने वाली माँ की अच्छी प्रकार से देखभाल की जाती है। कुछ परंपरावादी परिवारों में अभी भी लड़की का जन्म अच्छा नहीं माना जाता है। वे लोग लड़की के पैदा होते ही उसे मार देते हैं। कुछ लोग गर्भ में लड़की का पता चलते ही गर्भपात करा देते हैं। अभी भी लड़की के जन्म को सहज रूप से नहीं लिया जाता।
प्रश्न 2. लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर— लेखिका के बाबा उर्दू-फ़ारसी जानते थे । वे लेखिका को भी उर्दू-फ़ारसी की विदुषी बनाना चाहते थे। उन्हें उर्दू-फ़ारसी पढ़ाने के लिए एक मौलवी साहब को नियुक्त किया गया। जब मौलवी साहब लेखिका को पढ़ाने के लिए आए तो वह चारपाई के नीचे जा छिपी। वह मौलवी साहब से पढ़ने नहीं आई। इस प्रकार लेखिका उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाई थी।
प्रश्न 3. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर— लेखिका की माँ हिंदी पढ़ी-लिखी थी । वह पूजा-पाठ बहुत अधिक करती थी। माँ ने लेखिका को पंचतंत्र पढ़ना सिखाया था। माँ संस्कृत भी जानती थी। माँ को गीता पढ़ने में विशेष रुचि थी। माँ लिखती भी थी । वह मीरा के पद गाती थी। प्रभाती के रूप में वह ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ पद गाती थी ।
प्रश्न 4. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर— लेखिका ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को अत्यंत मधुर बताया है। वे उनके लड़के को राखी बांधती थीं तथा उनकी पत्नी को ताई कहती थीं। नवाब के बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। वे आपस में मिल-जुल कर सभी त्योहार मनाते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्मदिन एक-दूसरे के घर मनाये जाते थे। आज का वातावरण इतना अधिक विषाक्त हो गया है कि सभी अपने-अपने संप्रदाय के संकुचित दायरों तक सीमित हो गये हैं। इसलिए लेखिका को अपने बचपन के दिनों में जवारा के नवाब के साथ अपने परिवार के आत्मिक संबंध स्वप्न जैसे लगते हैं।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 5. जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं/ होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती ?
उत्तर— जेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होती तो मैं चाहती कि महादेवी मेरे साथ अच्छा व्यवहार करे। वह मुझे अपनी प्रिय सखी माने और अपनी लिखी हुई कविता सबसे पहले सुनाए । वह मुझे अपने साथ कवि-सम्मेलनों में भी ले जाए। हम आपस में अपने सुख-दुःख बाँटते रहें ।
प्रश्न 6. महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था । अनुमान लगाइए कि आपको कोई इस तरह का पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/ करेंगी ?
उत्तर— यदि मुझे इस तरह का कोई पुरस्कार मिला होता और वह पुरस्कार मुझे देशहित में किसी को देना पड़ता तो पहले तो मुझे यह अनुभव होता कि मैंने जो पुरस्कार इतनी मेहनत से प्राप्त किया है, उसे ऐसे ही दे देना ठीक नहीं है। मेरा मन पल भर के लिए उदास हो जाता। परंतु जैसे ही मुझे लगता कि मैं इस वस्तु को देकर देश के कल्याण का कोई कार्य कर रही हूँ तो मेरा मन प्रसन्नता से भर उठता । मुझे गर्व होता कि मेरी छोटी-सी भेंट देश के किसी कार्य में काम आएगी।
प्रश्न 7. लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर— लेखिका के छात्रावास में हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी धर्मों की लड़कियाँ रहती थीं। इन में मराठी, हिंदी, उर्दू, अवधी, बुंदेली आदि अनेक भाषाएँ बोलने वाली लड़कियाँ थीं। इस प्रकार से धर्म और भाषा का भेद होते हुए भी उनकी पढ़ाई में कोई कठिनाई नहीं आती थी। सब हिंदी में पढ़ते थे। उन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी परंतु आपस में वे अपनी ही भाषा में बातचीत करती थीं। सब में परस्पर बहुत प्रेम भाव था ।
प्रश्न 8. महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए। 
उत्तर— मैं तब दस वर्ष की थी जब माता जी के साथ सेलम से चेन्नई जा रही थी। पिता जी गाड़ी में बैठाकर चले गए थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। गर्मी का मौसम था। ठसाठस लोग भरे हुए थे। मुझे बहुत प्यास लग रही थी। मैंने माँ से पानी मांगा तो उन्हें याद आया कि पानी लाना तो वे भूल गई हैं। मैं प्यास से रोने लगी। आस-पास भी किसी के पास पानी नहीं था एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो माँ पानी लेने स्टेशन पर उतर गईं। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी। माँ अभी तक लौट कर नहीं आई थीं। मैं ज़ोर-ज़ोर से माँ, माँ कह कर रो रही थी। आस-पास वाले मुझे चुप करा रहे थे। मैं और भी अधिक ज़ोर से रोने लगी कि अचानक पीछे से आकर माँ ने मुझे कहा, ‘रोती क्यों है, ले पानी पी।’ माँ दूसरे डिब्बे में चढ़ गई थी और डिब्बे आपस में जुड़े थे इसलिए वह मेरे तक आ पहुँची थी । यदि माँ न आती तो क्या होता – यह सोच कर ही मैं सिहर उठती हूँ ।
प्रश्न 9. महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का ज़िक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर— कल मेरे विद्यालय में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया जाना है। मुझे इस में अपनी कक्षा की ओर से भाषण देना है। मेरा दिल कांप रहा है। पता नहीं मुझे क्या हो रहा है ? मैंने भाषण लिख लिया है; बोलने का अभ्यास भी किया है पर मुझे डर लग रहा है। यदि मैं इसे भूल गया तो सब मेरा मज़ाक बनाएंगे। सारे विद्यालय के सामने इस प्रकार बोलने का यह मेरा पहला अवसर होगा ।
भाषा अध्ययन—
प्रश्न 10. पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिए—विद्वान्, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति। । 
उत्तर— विद्वान् = मूर्ख l अनंत = अंत । निरपराधी = अपराधी । दंड = पुरस्कार । शांति = अशांति ।
प्रश्न 11. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग / प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए— 
निराहारी — निर् + आहार + ई
सांप्रदायिकता — संप्रदाय + इक + ता
अप्रसन्नता — अ + प्रसन्न + ता
अपनापन — अपना + पन
किनारीदार — किनारी + दार
स्वतंत्रता — स्वतंत्र + ता ।
प्रश्न 12. निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए—
उपसर्ग — अनू, अ, सत्, स्व, दुर्
प्रत्यय — दार, हार, वाला, अनीय
उत्तर—  उपसर्ग : – अन् = अनपढ़, अनमोल । अ = अगाध, अचेत । सत् = सज्जन, सत्कार। स्व = स्वभाव, स्वराज्य । दुर् = दुर्गम, = दुर्दशा ।
प्रत्यय : – दार = समझदार, चमकदार । हार = होनहार । वाला = घरवाला, दूधवाला । अनीय = माननीय
प्रश्न 13. पाठ में आए सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए—
पूजा-पाठ      —     पूजा और पाठ
परमधाम       —     परम है जो धाम
दुर्गा-पूजा      —      दुर्गा की पूजा
कुल- देवी      —      कुल की देवी
चारपाई         —     चार हैं जिसके पाँव
कृपानिधान    —     कृपा का निधान
कवि-सम्मेलन  —    कवियों का सम्मेलन
मनमोहन       —     जो मन को मोहित करे ।
पाठेत्तर सक्रियता— 
· बचपन पर केंद्रित मैक्सिम गोर्की की रचना ‘मेरा बचपन’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए ।
· मातृभूमि : ए विलेज विदआउट विमेन (2005), फिल्म देखें। मनीष झा द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कन्या भ्रूण हत्या की त्रासदी को अत्यंत बारीकी से दिखाया गया है । 
· कल्पना के आधार पर बताइए कि लड़कियों की संख्या कम होने पर भारतीय समाज का रूप कैसा होगा ? 
उत्तर— विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें ।
यह भी जानें
स्त्री दर्पण – इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के संपादन में सन् 1909 से 1924 तक लगातार प्रकाशित होती रही। स्त्रियों में व्याप्त अशिक्षा और कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करना उसका मुख्य उद्देश्य था ।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखिका के जन्म की कथा क्या है ? 
उत्तर— लेखिका का जन्म जिस परिवार में हुआ था उस परिवार में कई पीढ़ियों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी । इनके परिवार में प्राय: दो सौ वर्षों तक किसी लड़की ने जन्म नहीं लिया था। ऐसा भी सुना जाता था कि पहले लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था । लेखिका के परिवार की कुल देवी दुर्गा थीं। इसके बाबा ने दुर्गा की बहुत पूजा की थी । परिणामस्वरूप परिवार में लेखिका का जन्म हुआ। लेखिका के जन्म पर उस का बहुत स्वागत किया गया था तथा उसे वह सब कुछ सहन नहीं करना पड़ा था जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता था।
प्रश्न 2. सुभद्रा कुमारी के साथ लेखिका का परिचय कैसे हुआ और वे कैसे साथ रहती थीं ?
उत्तर— लेखिका का सुभद्रा कुमारी के साथ परिचय तब हुआ जब उसे क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज की कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया। वहाँ के छात्रावास के जिस कमरे में लेखिका को स्थान मिला उस कमरे में सुभद्रा कुमारी पहले से रहती थीं और वे कक्षा सात में पढ़ती थीं। सुभद्रा जी कविताएँ लिखती थीं तथा लेखिका भी कविताएँ लिखती थी। लेखिका की कविताओं की चर्चा सारे छात्रावास में सुभद्रा जी ने की थी । इस प्रकार दोनों में मित्रता हो गई। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों कॉलेज के किसी वृक्ष की डाल पर बैठ कर कविताएँ लिखती थीं और ‘स्त्री – दर्पण’ में प्रकाशनार्थ भेजती थीं। इनकी कविताएँ छप भी जाती थीं। ये कवि-सम्मेलनों में भी जाती थीं।
प्रश्न 3. आनंद भवन में बापू के आने पर लेखिका ने क्या किया ? 
उत्तर— जब बापू आनंद भवन में आए तो लोग उनके दर्शनार्थ वहाँ जाने लगे। वे उन्हें देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के रूप में कुछ राशि भी देते थे। लेखिका भी अपने जेबखर्च में से कुछ बचा कर उन्हें देने गई तथा कवि-सम्मेलन में पुरस्कार स्वरूप प्राप्त चाँदी का कटोरा भी उन्हें दिखाने के लिए साथ ले गई। बापू ने उससे वह कटोरा माँग लिया और लेखिका ने वह कटोरा उन्हें दे दिया। उसे कटोरा देने पर यह दुःख हुआ कि कटोरा लेकर भी बापू ने उससे वह कविता सुनाने के लिए नहीं कहा जिस पर उसे यह पुरस्कार मिला था। फिर भी वह प्रसन्न थी कि उसने पुरस्कार में मिला कटोरा बापू को दे दिया।
प्रश्न 4. लेखिका ने सांप्रदायिक सद्भाव का क्या उदाहरण प्रस्तुत किया है ? 
उत्तर— लेखिका का परिवार उसके बचपन में जहाँ रहता था वहाँ जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी पत्नी को ये लोग ताई साहिबा कहते थे तथा नवाब साहब के बच्चे लेखिका की माता जी को चचीजान कहते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्म दिन एक-दूसरे के घरों में मनाए जाते थे। लेखिका नवाब के पुत्र को राखी बांधती थी । तीज-त्योहार दोनों परिवार मिलकर मनाते थे। लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा बच्चे के लिए कपड़े आदि लाईं और बच्चे का नाम अपनी तरफ से मनमोहन रखा जो सदा यही रहा। इस प्रकार दोनों परिवार अलग-अलग धर्मों को मानने वाले होते हुए भी बहुत निकट थे । यह निकटता सांप्रदायिक सद्भाव का सुंदर उदाहरण है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. महादेवी वर्मा के परिवार में प्राय: कितने वर्षों तक कोई लड़की नहीं थी ? 
उत्तर— दो सौ वर्षों तक ।
प्रश्न 2. महादेवी वर्मा की कुल देवी कौन थी ? 
उत्तर— दुर्गा ।
प्रश्न 3. लेखिका की माता कहाँ की थीं ? 
उत्तर— जबलपुर की।
प्रश्न 4. लेखिका कहाँ पढ़ती थीं ? 
उत्तर— क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में।
प्रश्न 5. छात्रावास के प्रत्येक कमरे में कितनी छात्राएं रहती थीं ?
उत्तर— चार ।
प्रश्न 6. लेखिका की पहली साथिन कौन थी ? 
उत्तर— सुभद्रा कुमारी।
प्रश्न 7. लेखिका ने पहले किस भाषा में कविता लिखना प्रारंभ किया ? 
उत्तर— ब्रज भाषा में।
प्रश्न 8. एक कविता पर पुरस्कार में लेखिका को क्या मिला था ? 
उत्तर— चाँदी का कटोरा ।
प्रश्न 9. लेखिका ने चाँदी का कटोरा किसे दे दिया था ? 
उत्तर— महात्मा गाँधी जी को ।
प्रश्न 10. लेखिका को रक्षा बंधन पर लहरिए कौन देता था ?
उत्तर—  बेगम साहिबा ताई जी l
प्रश्न 11. जेबुन्निसा कहाँ की रहने वाली थी ?
उत्तर—  कोल्हापुर, महाराष्ट्र की ।
प्रश्न 12. लेखिका की माँ ने सबसे पहले उन्हें क्या पढ़ना सिखाया ? 
उत्तर— पंचतंत्र ।
प्रश्न 13. “देवर साहब से कहो, वो मेरा नेग ठीक कर के रखें”– कथन किसका है ?
उत्तर— ताई साहिबा का ।
प्रश्न 14. इलाहाबाद में स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र कहाँ था ? 
उत्तर— आनंद भवन में ।
प्रश्न 15. चाँदी के कटोरे में सुभद्रा कुमारी क्या खाना चाहती थी ? 
उत्तर— खीर ।
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