JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 12 प्राकृतिक सौंदर्य —रामनरेश त्रिपाठी

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कवि – परिचय
जीवन परिचय— श्री रामनरेश त्रिपाठी आधुनिक युग के कवियों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जन्म सन् 1889 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिला में हुआ था। विद्यालय की सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने उर्दू, संस्कृत, गुजराती और बंगला आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। वे बड़े मननशील, परिश्रमी तथा अध्ययनशील थे । स्वभाव से भ्रमणशील भी थे। लोक गीतों के संग्रह में त्रिपाठी जी की विशेष रुचि थी। सन् 1972 में उनका निधन हो गया।
रचनाएँ— त्रिपाठी जी बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। उन्होंने काव्य, उपन्यास, निबन्ध, समालोचना और संपादन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने बालकोपयोगी एवं स्त्रियोपयोगी साहित्य की भी रचना की। कवि के रूप में त्रिपाठी जी ने ‘प्रबन्ध’ एवं ‘मुक्तक’ दो प्रकार की काव्य रचना की है। ‘पथिक’, ‘मिलन’ और ‘स्वप्न’ उनके प्रसिद्ध खंडकाव्य हैं। ‘मानसी’ मुक्तक कविताओं का संग्रह है।
काव्यगत विशेषताएँ— त्रिपाठी जी की कविताएँ देश भक्ति की भावना से प्रेरित हैं। राष्ट्रीयता के अतिरिक्त उनकी रचनाओं में पौराणिकता, ऐतिहासिकता, राजनीति, सत्य, अहिंसा एवं आदर्श का चित्रण बड़े प्रभावशाली ढंग से हुआ है। प्रकृति प्रेम तथा नवीनता के प्रति आग्रह भी इनके काव्य की प्रमुख विशेषता है । छायावाद का सौन्दर्य भी इनकी कविताओं में देखने को मिल जाता है।
त्रिपाठी जी की भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है जिसमें उर्दू के शब्द भी अपना रंग दिखाते हैं। भाषा में प्रायः सरलता एवं सुबोधता बनी रहती है ।
कविता का सार 
‘प्राकृतिक सौन्दर्य’ कविता में त्रिपाठी जी प्रकृति के आकर्षक तथा मनोहारी रूप का चित्रण किया है। प्रकृति की कला का अनुकरण सम्भव ही नहीं। मनुष्य अपनी कला कृतियों पर व्यर्थ में घमंड करता है।
सप्रसंग व्याख्या
नावें और जहाज नदी नद 
सागर-जल पर तरते हैं। 
पर नभ पर इनसे भी सुन्दर 
जलधर-निकर विचरते हैं ॥
इन्द्र धनुष जो स्वर्ग सेतु-सा 
वृक्षों के शिखरों पर है। 
जो धरती से नभ तक रचता 
अद्भुत मार्ग मनोहर हैं ॥
मनमाने निर्मित नदियों के
पुल से वह अति सुन्दर है। 
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही 
करता अविवेकी नर है ॥
शब्दार्थ— नभ = आकाश। जलधर = बादल । निकर = समूह | सेतु = पुल शिखरों = चोटियों। अद्भुत = अनोखा मार्ग = रास्ता निर्मित = बना हुआ। निज = अपनी कृति । । = रचना । अविवेकी = जिसमें विवेक अर्थात् भले-बुरे की पहचान न हो।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ‘प्राकृतिक सौन्दर्य’ से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रकृति जिस सुन्दर दृश्य की रचना करती है, उसकी सुन्दरता की तुलना में मानव की रचना नहीं टिक सकती ।
व्याख्या— कवि का कथन है- नावें तथा जहाज़ नदी, नालों तथा सागर पर तैरते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आकाश में इनसे भी अधिक आकर्षक तथा सुन्दर बादलों का समूह भ्रमण करता है। इन्द्रधनुष, जो स्वर्ग के पुल के समान वृक्षों की चोटियों पर दिखाई देता है । यह पुल धरती से लेकर आकाश तक पहुँचने के लिए एक सुन्दर रास्ता का निर्माण करता है। भाव यह है कि बादल तथा इन्द्रधनुष में जो आकर्षण धरती पर कहीं दिखाई नहीं देता। कवि कहता है कि वृक्षों की चोटियों पर दिखाई देने वाला इन्द्रधनुष धरती से स्वर्ग की ओर ले जाने वाला पुल है। मनुष्य इस धरती पर नदियों को पार करने के लिए जो पुल बनाता है, उससे यह इन्द्र धनुष रूपी पुल कहीं अधिक सुन्दर है। मनुष्य सूझ-बूझ से रहित है इसलिए वह अपनी रचना पर व्यर्थ ही अभिमान प्रकट करता है।
विशेष— कवि ने प्रकृति के मनोहारी दृश्य का बड़ा भव्य शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। उपमा और अनुप्रास अलंकार हैं। भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है ।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न–
प्रश्न (क) ‘जलधर-निकर’ क्या होता है ? 
(ख) इन्द्रधनुष किस जैसा पुल है ? 
(ग) इन्द्रधनुष किन की चोटियों पर दिखाई देता है ?
(घ) किस का अभिमान व्यर्थ है ? 
उत्तर— (क) बादलों के समूह को जलधरनिकर कहते हैं।
(ख) इन्द्रधनुष स्वर्ग के पुल जैसा है।
(ग) इन्द्रधनुष वृक्षों की चोटियों पर दिखाई देता है।
(घ) मनुष्य का अपनी रचना पर अभिमान करना व्यर्थ है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
भाव-सौंदर्य—
प्रश्न 1. पानी पर नावें तैरती हैं, आकाश पर क्या तैरते हैं ? 
उत्तर— आकाश पर बादलों का समूह तैरता है।
प्रश्न 2. इन्द्र धनुष किन के बीच सेतु बाँधता है ? 
उत्तर— इन्ध्र- धनुष धरती तथा आकाश के बीच सेतु बाँधता है। जिस तरह कोई पुल इस पार से उस पार तक पहुँचाने का साधन है उसी प्रकार इन्द्र धनुष धरती से आकाश की ओर बढ़ने का एक साधन, पुल अथवा रास्ता है।
प्रश्न 3. इन्द्र धनुष की तुलना किस सेतु से की गई है ?
उत्तर—  इन्द्र धनुष की तुलना स्वर्ग के पुल के साथ की गई है।
प्रश्न 4. कवि ने मनुष्य को अविवेकी क्यों बताया है ? 
उत्तर— कवि ने मनुष्य को अविवेकी इसलिए कहा है क्योंकि वह अपनी रचना पर घमंड करता है। प्रकृति जो रचना करती है मनुष्य की रचना उसकी बराबरी नहीं कर सकती । प्रकृति की रचना के सामने उसकी रचना फीकी पड़ जाती है। इस तथ्य से परिचित न होने के कारण कवि ने मनुष्य को अविवेकी कहा है ।
प्रश्न 5. “निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही करता अविवेकी नर है । ” इन पंक्तियों में ‘व्यर्थ ही’ शब्दों से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— इन पंक्तियों में ‘व्यर्थ ही’ का अभिप्राय है कि मनुष्य की रचना कितनी ही सुन्दर क्यों न हो पर जब प्रकृति अपनी किसी कला-कृति को प्रकट करती है तो मनुष्य की रचना उसके सामने फीकी पड़ जाती है ।
भाषा-अध्ययन—
प्रश्न 1. ‘सागर – तल’ अर्थात् ‘सागर का तल’ एक सामासिक शब्द है। इस कविता में ऐसे दो और सामासिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर— जलधर – निकर— जलधरों का समूह ।
स्वर्ग – सेतु – स्वर्ग का सेतु ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित पदबंधों के अर्थ लिखिए। जलधर-निकर, स्वर्ग-सेतु- सा, निर्मित नदियों के पुल । 
उत्तर— जलधर – निकर – बादलों का समूह।
स्वर्ग – सेतु – सा – स्वर्ग तक पहुँचने वाले पुल के समान।
निर्मित नदियों के पुल- नदियों को पार करने के लिए बने हुए पुल ।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. रामनरेश त्रिपाठी की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर— (i) राष्ट्रीय भावना (ii) प्रकृति प्रेम ।
प्रश्न 2. रामनरेश त्रिपाठी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर— सन् 1889 ई० में।
प्रश्न 3. रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित दो खण्ड काव्यों के नाम लिखिए। 
उत्तर— (i) मिलन (ii) स्वप्न ।
प्रश्न 4. रामनरेश त्रिपाठी की मुक्तक रचनाएँ किस संग्रह में संकलित हैं ? 
उत्तर— मानसी में।
प्रश्न 5. रामनरेश त्रिपाठी ने किस भाषा में अपने साहित्य की रचना की है ? 
उत्तर— खड़ी बोली में ।
प्रश्न 6. पानी पर क्या तैरती हैं ?
उत्तर— नावें और जहाज़।
प्रश्न 7. आकाश पर क्या तैरते हैं ?
उत्तर— बादल ।
प्रश्न 8. निज कृति का अभिमान कैसा व्यक्ति करता है? 
उत्तर— जो अविवेकी होता है ।
प्रश्न 9. इन्द्र धनुष कैसा लगता है ? 
उत्तर— स्वर्ग – सेतु जैसा लगता है।
प्रश्न 10. धरती से आकाश तक का मार्ग कौन बनाता है ? 
उत्तर—  इन्द्र धनुष ।

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