JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 11 नीति के दोहे —रहीम, बिहारी, वृंद

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Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions

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(i) रहीम
जीवन परिचय— अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म सन् 1556 ई० में बैरमखां के घर हुआ था। आपका बचपन से ही राज-दरबार से सम्बन्ध रहा। इसी कारण आप विद्या-व्यसनी हो गए। आपने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। युवावस्था में अकबर के दरबार में सेनापति पद को सुशोभित करते हुए भी आप कविता किया करते थे। अकबर के दरबार में इन्हें सम्मान और धन, दोनों ही प्राप्त थे । वह दानी स्वभाव के जीव थे। अतः याचक को यथेच्छ दान देकर सन्तुष्ट करना अपना कर्त्तव्य समझते थे । तुलसीदास के थे परम मित्र थे। जहांगीर के समय में इनकी दशा बिगड़ गई। इनकी सम्पत्ति को राज्याधिकार में ले लिया गया और इन्हें पदच्युत कर दिया गया। सन् 1627 ई० में आपकी मृत्यु हुई। रचनाएँ – रहीम दोहावली, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठा, मदनाष्टक तथा रास पंचाध्यायी ।
काव्यगत विशेषताएँ— रहीम जी की कविता का विषय नीति और प्रेम है। आपका जीवन-अनुभव बहुत अधिक था। इसी कारण आपने जो कुछ लिखा वह अपने निजी अनुभव के आधार पर। इसलिए उसमें पाठक को प्रभावित करने की अपूर्ण शक्ति है। केवल कल्पना पर उड़ने का प्रयत्न आपने कहीं नहीं किया। जहां कहीं कल्पना को स्वीकार किया वहां यथार्थ को भी साथ रखा है। इसकी अनेक सूक्तियां और नीति-सम्बन्धी दोहे आज भी मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं। आपके कृष्ण-सम्बन्धी दोहे भी सुन्दर हैं और आप के हृदय की विशालता के परिचायक हैं।
काव्य कला— रहीम का अवधी और ब्रजभाषा, दोनों पर ही समान अधिकार था। कविता के लिए आपने सामान्यत: चलती हुई ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया। दोहे के अतिरिक्त आपने कवित्त, सवैये और सोरठे भी लिखे हैं। किन्तु आपकी प्रसिद्धि अपनी दोहावली के आधार पर ही है। आपने अपनी कविता में लोकोक्तियों और लोक-प्रचलित उदाहरणों के आधार पर विषय को सरल तथा सुगम बनाने का यत्न किया है। अपनी भावुकतापूर्ण और अनुभव पर आधारित उक्तियों के कारण आपका हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है।
नीति के दोहे
दोहों की सप्रसंग व्याख्या
1. रहिमन धागा प्रेम का मत तोर्यो चटकाय।
टूटे से फिरि न जुड़े, जुड़े गांठ परि जाई ΙΙ
शब्दार्थ— तोर्यो = तोड़ो। चटकाय = चटकाकर, झटक कर ।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम जी हैं। इस दोहे में उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम का सम्बन्ध अत्यन्त कोमल होता है। इसको बनाए रखने का प्रयत्न करना चाहिए। टूटा हुआ सम्बन्ध कभी पहली स्थिति में नहीं आता।
व्याख्या— रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का धागा कभी चटकाकर, झटका देकर नहीं तोड़ना चाहिए। प्रेम का सम्बन्ध टूट जाने पर फिर नहीं जुड़ता। अगर प्रयास करके टूटे हुए प्रेम सम्बन्ध को जोड़ा भी जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है अर्थात् उसमें कुछ-न-कुछ कमी रह जाती है।
विशेष— प्रेम का सम्बन्ध मन के भावों से होता है। अतः इन भावों को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।
भाषा सरल है। रूपक अलंकार है।
2. छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। 
का रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात ॥
शब्दार्थ— छिमा = क्षमा । बड़न = बड़े लोग, महान् । छोटन = छोटे । घट्यो = कम हुआ। भृगु = एक प्रसिद्ध ऋषि । उत्पात = शरारत, उछल-कूद ।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम कवि हैं। इस दोहे में उन्होंने स्पष्ट किया है कि बड़े लोगों का बड़प्पन छोटे लोगों को क्षमा कर देने से ही सुशोभित होता है।
व्याख्या— रहीम जी कहते हैं कि बड़ों के भीतर क्षमा का भाव होना चाहिए। छोटे लोगों को ही शरारत अथवा घटिया व्यवहार शोभा देता है। उनके इस व्यवहार से उनके छोटेपन की पहचान होती है। भगवान् विष्णु को भृगु ऋषि ने क्रोध से भर कर लात मारी थी । इससे उनके (भगवान् विष्णु) बड़प्पन में किसी प्रकार की कमी नहीं आई बल्कि उनकी महानता और बढ़ गई।
विशेष— क्षमा बड़ों को शोभा देती है छोटों को चंचलता पूर्ण व्यवहार । भाषा बोलचाल की है।
दोहों पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न–
प्रश्न (क) कवि ने कौन-सा धागा तोड़ने के लिए मना किया है ? 
उत्तर— कवि ने प्रेम का धागा तोड़ने से मना किया है।
(ख) प्रेम का धागा टूटने से क्या होता है ? 
उत्तर— मन को दुख पहुँचता है।
(ग) रहीम ने बड़ों को क्या करने के लिए कहा है ?
उत्तर— कवि ने बड़ों को छोटों के अपराध क्षमा करने के लिए कहा है।
(घ) श्री विष्णु ने किसे क्षमा किया था ? 
उत्तर— श्री विष्णु ने भृगु ऋषि को क्षमा किया था ।
(ii) बिहारी लाल
जीवन वृत्त— बिहारी रीतिकाल के लोकप्रिय कवि हैं। इनका जन्म संवत् 1660 वि० (1603 ई०) में ग्वालियर के अन्तर्गत बसुआ गोबिन्दपुर गाँव में हुआ। यह मथुरा के चौबे ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम केशव राय था । इनका बचपन बुन्देलखण्ड में बीता । युवा होने पर वह मथुरा चले गए जहां साहित्य-संगीत के प्रति इनके मन में असीम अनुराग पैदा हुआ।
अच्छे आश्रयदाता की खोज में जब वह जयपुर पहुंचे तो उस समय जयसिंह अपनी नवेली पत्नी के प्यार में खोए हुए थे। वह राज-काज छोड़ कर महलों में रहते थे। सरदारों सलाह से बिहारी ने निम्न दोहा लिख कर राजा के पास महल में भिजवाया—
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल ।
अली कली ही सों वंध्यौ, आगे कौन हवाल ॥ 
इस दोहे का राजा पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वह मानो नींद से जाग उठा। उन्होंने राज-का करना आरम्भ कर दिया। अब बिहारी राजा के मित्र बन गए और वहीं रहते हुए उन्होंने बिहार सतसई की रचना की। एक-एक दोहे पर प्रसन्न होकर राजा जयसिंह ने इन्हें पर्याप्त धन दिया पत्नी की मृत्यु के बाद वह वृन्दावन चले गए और वहीं संवत् 1720 वि० (1664 ई०)  उनका देहान्त हो गया ।
बिहारी कुशल कवि थे । इन्होंने शृंगार, नीति तथा भक्ति के दोहे लिखे। इनके दोहे गागा में सागर हैं। दोहों में कल्पना का चमत्कार और भाषा का निखार है। इनकी सतसई में लगभा सात सौ दोहे हैं। उन्होंने एक ही रचना के बल पर हिन्दी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन लिया है। इनकी सतसई रस की गागर तथा रत्नों की पिटारी मानी जाती है ।
भाषा— बिहारी की भाषा शुद्ध ब्रज भाषा है जिसके ऊपर अरबी-फ़ारसी के शब्दों की भ रंगत दिखाई देती है। उनकी भाषा की स्वाभाविकता कहीं भी क्लिष्ट नहीं हुई। उन्हें भाषा का पंडित कहा जा सकता है ।
नीति के दोहे
दोहों की सप्रसंग व्याख्या
1. दीरघ सांस न लेहि दुख सुख साईंहि न भूलि l 
दई दई क्यों करतु है दई दई सु कबूलि ॥ 
शब्दार्थ— दीरघ = दीर्घ, लम्बा । साई = स्वामी, ईश्वर । दई – दई = हाय-हाय । दई = दिया हुआ।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे के रचयिता बिहारी लाल जी हैं। इसमें उन्होंने मनुष्य को सुख-दुःख को समान रूप से ग्रहण करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या— कवि मनुष्य को सम्बोधित करता हुआ कहता है-दुःख में गहरी साँस अथवा लम्बी आहें नहीं भरनी चाहिए और सुख में मग्न होकर ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए। अब अगर दुःख आ ही गया है तो हाय-हाय क्यों करता है, ईश्वर ने जो दिया है, उसे स्वीकार कर ।
विशेष— सुख-दुःख में समभाव से रहना चाहिए। भाषा ब्रज है। अनुप्रास, पुनरुक्ति तथा यमक अलंकार है।
2. नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोइ । 
जेतौ नीचो ह्वै चले, तेतौ ऊँचो होइ ।।
शब्दार्थ— नर = मनुष्य । अरु – और गति = दशा ।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे कवि बिहारी लाल जी के हैं। इस दोहे में उन्होंने श्लेष अलंकार के माध्यम से नम्रता का महत्व प्रतिपादित किया है।
व्याख्या— मनुष्य की तथा नल के पानी की दशा एक जैसी होती है। ये दोनों जितना नीचा होकर चलते हैं उतना ही ऊँचा उठते हैं। भाव यह है कि जल धरती के जितना नीचे से आता है, उतना ही उसे ऊँचा चढ़ना पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्य जितना विनम्र होकर सांसारिक व्यवहार करता है, वह उतना ही ऊँचा उठता है, मान-सम्मान का अधिकारी बनता है।
विशेष— इस दोहे में श्लेष अलंकार का चमत्कार है। श्लेष अलंकार वहां होता है, जहां एक शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें। यहां ‘नीचो’ तथा ‘ऊँचो’ शब्दों के दो-दो अर्थ प्रकट हुए हैं। नीचा का जल के पक्ष में अर्थ है ‘नीचा’ और मनुष्य के पक्ष में इसका अर्थ है’नम्रता’। इसी प्रकार ‘ऊँचो’ का पानी के पक्ष में अर्थ है ‘ऊँचा’ और मनुष्य के पक्ष में है ‘मान-सम्मान’ । अतः यहां श्लेष अलंकार है।
दोहों पर आधारित अर्थग्रहण तथा सराहना संबंधी प्रश्न–
प्रश्न (क) कवि ने मनुष्य को कैसे रहने के लिए कहा है ? 
(ख) ‘दई – दई क्यों करतु है दई – दई सु कबूलि’ में कौन-से अलंकार है ? 
(ग) मनुष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिए ? 
(घ) मनुष्य को मान-सम्मान कब मिलता है ? 
(ङ) ‘नर की अरु ……… होइ’ दोहे में किस अलंकार का चमत्कार है ? 
उत्तर— (क) कवि ने मनुष्य को सुख-दुःख में समभाव से रहने के लिए कहा है।
(ख) इसमें अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा यमक अलंकार है ।
(ग) मनुष्य को विनम्र व्यवहार करना चाहिए ।
(घ) जब मनुष्य सब से नम्रतापूर्वक व्यवहार करता है, तब उसे मान-सम्मान मिलता है।
(ङ) इस दोहे में श्लेष अलंकार का चमत्कार है ।
(iii) वृन्द
जीवन परिचय— कविवर वृन्द का जन्म मेवाड़ प्रदेश के मेड़ता नामक स्थान पर सन् 1691 के लगभग माना जाता है। मेड़ता में आजकल भी आपके वंशज निवास करते हैं। कहा जाता है कि ये औरंगज़ेब के दरबारी कवि भी रहे परन्तु औरंगज़ेब की शासन पद्धति इन्हें पसन्द नहीं थी, इसीलिए यह औरंगज़ेब का आश्रय छोड़कर कृष्णगढ़ के राजा राज सिंह के आश्रय में रहने लगे। महाराज राज सिंह इन्हें अपना गुरु मानते थे। इन्होंने वहीं रहते हुए अपने साहित्य का निर्माण किया और हिन्दी क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की।
रचनाएँ— वृन्द कवि ने उस समय की परम्परा के अनुसार ‘शृंगार शिक्षा’ तथा ‘भाव पंचाशिका’ नामक दो रीति ग्रन्थों की भी रचना की परन्तु इसमें आचार्यत्व की अपेक्षा कवित्व के अधिक गुण विद्यमान थे । ‘दृष्टान्त सतसई’ तथा ‘वृन्द सतसई’ इनके दो प्रसिद्ध रीति काव्य हैं। हिन्दी के आलोचकों ने सतसई परम्परा में वृन्द को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है।
विशेषताएँ— यद्यपि कविवर वृन्द शृंगारिक वातावरण में हिन्दी क्षेत्र में अवतीर्ण हुए तथापि इनके दोहे समाज के लिए बहुत शिक्षाप्रद समझे जाते हैं। इनकी कविता में सरलता के साथ-साथ व्यावहारिकता की भी सुन्दर छटा देखने को मिलती है। सूक्तियों तथा लोकोक्तियों के कारण इनकी कविता सहज ही कण्ठस्थ हो जाती है। ब्रज भाषा का माधुर्य, शब्दों की स्वाभाविक योजना तथा सूक्तिमयता के कारण इनकी कविताएं आज भी पाठकों की वाणी का शृंगार बनी हुई हैं।
कविवर वृन्द एक अच्छे आचार्य और सफल कवि तो थे ही, साथ ही वह एक उच्च कोटि के विचारक भी थे। “तेते पाँव पसारिए जेती लाम्बी सौर”, ” होनहार विरवान के होत चीकने पात” आदि उनकी सूक्तियां आज भी लेखकों की लेखनी का प्रमुख विषय बनी हुई हैं। भाव यह है कि वृन्द जी एक उच्च प्रतिभा के स्वामी थे।
नीति के दोहे
दोहों की सप्रसंग व्याख्या
1. सुरसती के भण्डार की बड़ी अपूरब बात । 
ज्यों खरचै त्यों त्यों बड़े बिन खरचे घटि जात ॥
शब्दार्थ— सुरसती = सरस्वती विद्या की देवी । अपूरब = अपूर्व, अनोखी ।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे के रचयिता वृन्द कवि हैं । इस दोहे में उन्होंने स्पष्ट किया है कि विद्या रूपी धन जितना खर्च किया जाए, उतना ही बढ़ता है।
व्याख्या— कवि का कथन है कि विद्या के भण्डार की बड़ी विचित्र बात है । यह जैसेजैसे खर्च किया जाता है, वैसे-वैसे बढ़ता जाता है और न खर्च करने से कम हो जाता है। भाव यह है कि मनुष्य अपनी विद्या अथवा ज्ञान को जितना बांटता है, उनके ज्ञान में उतनी ही वृद्धि होती जाती है।
(क) ज्ञान को बांटने से ही ज्ञान बढ़ता है।
(ख) सरल भाषा, पुनरुक्ति व अनुप्रास अलंकार है ।
2. बड़े न हूजै गुनन बिन, बिरद बड़ाई पाय ।
कहत धतूरे सौं कनक गहनों घड़ो न जाय ॥
शब्दार्थ— बिरद= प्रशंसनीय धतूरा = नशीला पदार्थ | कनक = सोना।
प्रसंग— प्रस्तुत दोहे के रचयिता वृन्द कवि हैं। इस दोहे में उन्होंने स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति गुणों के अभाव में बड़ा नहीं बन जाता ।
व्याख्या— कवि का कथन है कि गुणों के बिना केवल बड़ा नाम, प्रशंसनीय नाम रख लेने से कोई भी व्यक्ति महान् नहीं बन जाता है। धतूरा एक नशीला पदार्थ है जिसका एक नाम कनक भी होता है। कनक का अर्थ सोना भी होता है लेकिन इससे गहने नहीं बनाए जा सकते।
विशेष— आदमी अपने गुणों से महान् बनता है। बड़ा नाम रखना व्यर्थ होता है। भाषा सरल है। अनुप्रास अलंकार है।
दोहों पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न–
प्रश्न (क) क्या खर्च करने पर भी बढ़ता जाता है ?
(ख) किस के बिना मनुष्य बड़ा नहीं हो सकता ? 
(ग) धतूरा क्या होता है ? 
उत्तर— (क) विद्या खर्च करने से बढ़ती रहती है।
(ख) गुणों के बिना मनुष्य बड़ा नहीं बन सकता।
(ग) धतूरा एक नशीला पदार्थ होता है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
भाव-सौंदर्य—
1. दूसरे व्यक्तियों के अवगुणों को देखने से पहले हमें क्या याद रखना चाहिए ? 
उत्तर— दूसरे व्यक्तियों के अवगुणों को देखने से पहले हमें अपने अवगुणों को याद रखना चाहिए।
2. रहीम के अनुसार प्रेम का बंधन टूटने के बाद जोड़ दिया जाए, तो क्या होता है ? 
उत्तर— रहीम के अनुसार प्रेम का बंधन टूटने के बाद जोड़ दिया जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसमें पहली जैसी बात नहीं रहती। एक ऐसी दरार पड़ जाती है, जिसको पूरी तरह नहीं भरा जा सकता।
3. कवि बिहारी ने मनुष्य और नल से बहते जल को एक समान क्यों माना है ? 
उत्तर— कवि बिहारी ने मनुष्य और नल से बहते जल को एक समान इसलिए माना है क्योंकि ये दोनों जितना नीचा होकर चलते हैं उतनी ही ऊँचा उठते हैं। जल जितना धरती के नीचे से आता है, उतनी ही ऊँचा उठता है। मनुष्य भी जितना विनम्र होकर चलता है, उतना ही महान् बनता है।
4. कवि वृन्द ‘सरस्वती के भण्डार’ की कौन-सी बात अद्भुत मानते हैं ? 
उत्तर— कवि वृन्द सरस्वती के भण्डार की इस बात को अद्भुत मानते हैं कि ज्ञान और विद्या का भण्डार ऐसा है, जिसे जितना खर्च किया जाए उतना अथवा उससे अधिक बढ़ता है जबकि धन-दौलत खर्च करने से कम होती है। अतः ज्ञान का प्रसार करने में कंजूसी नहीं बरतनी चाहिए।
5. नीति के दोहों में आपको कौन-सा दोहा अच्छा लगा और क्यों ? 
उत्तर— नीति के दोहों में मुझे बिहारी का यह दोहा बहुत अच्छा लगा है—
दीरघ साँस न लेहि दुख, सुख साईहि न भूलि ।
दई-दई क्यों करतु है, दई – दई सु कबूलि ॥
इस दोहे में सुख-दुख में समभाव से रहने के लिए कहा गया है। ईश्वर द्वारा दिए गए सुख-दुःखों को समान रूप से ग्रहण करना चाहिए।
(ख) भाव स्पष्ट कीजिए—
कविता में जब किसी शब्द की एक से अधिक बार आवृत्ति (दोहराई) होती है, तो वहां ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार होता है। पाठ में दिए गए दोहों में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के उदाहरण ढूंढ़ें ।
उत्तर— (i) दई-दई (ii) त्यों-त्यों ।
भाषा-अध्ययन—
तत्सम संस्कृत के वे शब्द हैं, जो मूल रूप में ही हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं; तद्भव वे शब्द हैं जो मूलत: संस्कृत भाषा के हैं परन्तु अपना रूप बदलकर हिन्दीं में आ गए हैं। जैसे संस्कृत का ‘उच्च’ शब्द हिन्दी में भी ‘उच्च’ ही प्रयुक्त होता है। इसलिए यह ‘तत्सम’ है ‘ऊंचा’ तद्भव है। ‘दीर्घ’ शब्द का रूप बदलकर कहीं-कहीं ‘दीरघ’ प्रयुक्त हुआ है, ‘दीरघ’ शब्द ‘अर्ध-तत्सम’ है। हिन्दी में अर्ध-तत्सम और तद्भव शब्दों की खूब भरमार है।
(ग) पाठ में आए हुए निम्नलिखित ‘तद्भव’ शब्दों के ‘तत्सम’ रूप लिखें—
छिमा, अपूरब, कलस, सुबरन, साँस, सुरसती ।
उत्तर— छिमा – क्षमा, कलस – कलश, साँस– श्वास, अपूरब – अपूर्व, सुबरनस्वर्ण, सुरसती – सरस्वती । –
योग्यता – विस्तार—
दोहा एक छंद है, जिसमें दो पंक्तियाँ होती हैं और हर पंक्ति में दो-दो चरण होते हैं। प्रथम पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 13 और 11 मात्राओं पर ‘यति’ होती है। इसी प्रकार दूसरी पंक्ति में भी 24 मात्राएँ होती हैं तथा 13-11 मात्राओं पर ‘यति’ होती है। दूसरा तथा चौथा चरण तुकांत होता है। उदाहरणतया—
13 मात्राएँ                         11 मात्राएँ
दोष पराए देख कर              चले हंसत हंसत ।
अपने याद न आवई             जिनका आदि न अंत ॥
 अब अध्यापक की सहायता से कबीर या किसी भी अन्य कवि के दोहों की मात्राएँ गिनने का अभ्यास करें।
उत्तर— दो मात्राओं वाले अक्षर के लिए यह ऽ चिह्न होता है और एक मात्रा के अक्षर के लिए यह। चिह्न होता है।
उदाहरण—
ऽ।       ।ऽऽ     ऽ।    ।।       ।।।       ऽ।।      ऽ।।
दोष     पराए   देख  करि,    चलत     हंसत    हंसत   (13,11)
।।ऽ       ऽ।      ।      ऽ।ऽ       ।।ऽ          ऽ।      ।ऽ।
अपने   याद     न    आवई,    जिनका      आदि   न अंत।
परीक्षोपयोगी शंभ अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. रहीम के अनुसार चटका कर क्या नहीं तोड़ना चाहिए ? 
उत्तर— प्रेम का धागा ।
प्रश्न 2. रहीम ने बड़ों के लिए क्या उचित माना है ?
उत्तर— छोटों को क्षमा करना ।
प्रश्न 3. श्री हरि को लात किसने मारी थी ?
उत्तर— मृगु ऋषि ने।
प्रश्न 4. सुख में किसे नहीं भूलना चाहिए ? 
उत्तर— परमात्मा को ।
प्रश्न 5. ‘दई – दई क्यों करतु है, दई-दई सु कबूलि’ में कौन-से अलंकार हैं ? 
उत्तर— पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और यमक ।
प्रश्न 6. मनुष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिए ? 
उत्तर— विनम्र ।
प्रश्न 7. विनम्र व्यक्ति को क्या लाभ मिलता है ? 
उत्तर— वह ऊँचा उठता जाता है।
प्रश्न 8. खर्च करते रहने पर भी कौन-सा धन बढ़ता रहता है ?
उत्तर— विद्या धन ।
प्रश्न 9. गुणों के बिना व्यक्ति क्या नहीं बन सकता ? 
उत्तर— बड़ा।
प्रश्न 10. किसे कनक कहने से उसके गहने नहीं बन सकते ? 
उत्तर— धतूरे को।

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