JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 13 काश्मीर सुषमा —श्रीधर पाठक

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 13 काश्मीर सुषमा —श्रीधर पाठक

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 13 काश्मीर सुषमा —श्रीधर पाठक

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions

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लेखक परिचय
जीवन परिचय— पं० श्रीधर पाठक का जन्म सन् 1859 ई० को आगरा जिले की फिरोजाबाद तहसील के ग्राम जोंधरी में हुआ। इनके पिता का नाम पं० लीलाधर पाठक था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत में हुई। सन् 1880 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में इंट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके उपरान्त इनकी नियुक्ति जनगणना आयुक्त के कार्यालय में कलकत्ता में हो गई। इसके बाद इन्होंने इलाहाबाद, नैनीताल, आगरा आदि विभिन्न स्थानों पर नौकरी की। राजकीय सेवा में कार्यरत रहते हुए इन्होंने लगभग सारे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान उन्हें प्रकृति को निकट से देखने का अवसर मिला। सन् 1914 में इन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। इनकी मृत्यु 1922 ई० को प्रयाग में हुई।
रचनाएँ— इनकी रचनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है—
(i) मौलिक रचनाएँ— ‘जगत सच्चाई सार’, ‘काश्मीर सुषमा’, ‘वनाष्टक’, ‘भारत गीत’, ‘मनोविनोद’ (तीन भाग), ‘धन विजय’, ‘गुणवन्त’, ‘हेमन्त’ आदि ।
(ii) अनुदित रचनाएँ— ‘एकान्तवासी योगी’, ‘श्रान्त पथिक’, ऊजड़ ग्राम। इन्होंने कालिदास के ऋतु संहार का भी अनुवाद किया है।
काव्यगत विशेषताएँ— देश – प्रेम तथा प्रकृति प्रेम पाठक जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। आप प्रकृति के अनन्य उपासक थे । इसका प्रमाण है उनकी ‘काश्मीर सुषमा ‘ शीर्षक रचना। इसमें प्रकृति की कल्पना नारी रूप में कर उसे सजीवता प्रदान की गई है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है—
“प्रकृति यहाँ एकान्त बैठि निज रूप संवारति ।
पल-पल पलटति भेस छनकि छवि छिन छिन धारति॥
देश-प्रेम और समाज सुधार का स्वर भी इनके काव्य में सुना जा सकता है। देश-प्रेम से सम्बन्धित इनकी रचनाएँ ‘भारत गीत’ में संकलित हैं। पाठक जी के काव्य में समाज सुधार की भावना भी झलकती है।
भाषा-शैली— पाठक जी ने ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली- दोनों में काव्य रचना की। सरलता तथा सरसता उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं। पाठक जी ने अपनी कविताओं में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। संगीतात्मकता उनके काव्य का एक अन्य प्रमुख गुण है।
काश्मीर सुषमा
पाठ का सार
‘काश्मीर सुषमा’ शीर्षक कविता में श्रीधर पाठक ने काश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया है। काश्मीर का कण-कण अपनी सुन्दरता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यदि कहीं स्वर्ग है तो उसकी झलक काश्मीर की प्राकृतिक सुन्दरता में ही मिलती है।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या—
1. धनि धनि श्री काश्मीर धरनि, मन हरनि, सुहावनि ।
है यह जादू भरी, विश्व बाजीगर थैली ।
खेलत में खुलि परी, शैल के सिर पै फैली ॥
पुरुष प्रकृति को किधौं जबै जोबन-रस आयो ।
प्रेम-केलि रस-रेलि करन रंग महल सजाओ ॥ 
शब्दार्थ— सुषमा = सुन्दरता । धनि = धन्य । धरनि= धरती । हरनि = हर लेने वाली । सुहावनि = आकर्षक, सुन्दर । किधौं या, अथवा । प्रेम केलि = प्रेम की क्रीड़ा । रस= – रेलि = प्रेम क्रीड़ा । रंगमहल = आकर्षक महल ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘काश्मीर सुषमा’ से ली गई हैं। इसमें श्रीधर पाठक ने काश्मीर की सुन्दरता तथा वहां की प्रकृति का प्रतिक्षण रूप परिवर्तन करने का बड़ा भावपूर्ण शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है।
व्याख्या— मन को हर लेने वाली काश्मीर की सुन्दर भूमि धन्य है । यह भूमि जादू से भरी हुई है। यहाँ प्रकृति का अद्भुत रूप दिखाई देता है। यह इस संसार के बाजीगर (चमत्कार – पूर्ण खेल दिखाने वाले) की थैली है। जिस प्रकार बाजीगर अपनी थैली से अद्भुत वस्तुएं निकालकर दर्शकों को प्रभावित करता है, उसी प्रकार काश्मीर की धरती अपने बदलते हुए रूप-सौंदर्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। ऐसा लगता है कि जब पुरुष तथा प्रकृति में जीवन रस आया। उसमें प्रेम का संचार हुआ तब उन्होंने प्रेम-क्रीड़ा करने तथा रंगरलियां मनाने के लिए काश्मीर के रूप में रंगमहल का निर्माण किया ।
विशेष— (क) प्रकृति तथा पुरुष की प्रेम-क्रीड़ा के लिए काश्मीर को रंग महल की संज्ञा देना बहुत भावपूर्ण तथा प्रभावशाली बन पड़ा है। ,
(ख) पुनरुक्ति रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।
2. धन्य यहाँ की धूलि, नीरद, नभ, तारे। 
धन्य धवल-हिम श्रृंग, तुंग, दुर्गम, दुग-प्यारे ॥ 
धन्य नदी नद स्त्रोत, विमल गंगोद-गोत्र जल । 
सीतल सुखद समीर, वितस्ता तीर-स्वच्छ-थल। 
शब्दार्थ— धूलि = बर्फ़ = धूल। नीरद = बादल। नभ = आकाश। धवल = सफेद । हिम श्रृंग चोटी । तुंग = ऊंची। दुर्गम = ऊंची। दुर्गम = जहाँ पहुँचना कठिन हो। दृग = आँखें । = नद = बड़ी नदी । विमल = पवित्र। गंगोद = गंगा का जल। गोत्र = वंश Ι समीर = वायु । तीर = किनारा | स्वच्छ = साफ। थल = स्थान वितस्ता = जेहलम, झेलम ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीधर पाठक द्वारा रचित कविता ‘काश्मीर सुषमा’ से ली गई हैं । इस कविता में काश्मीर की प्राकृतिक सुन्दरता का बड़ा मोहक शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है।
व्याख्या— कवि का कथन है-काश्मीर की धूलि, बादल, आकाश तथा तारे धन्य हैं। भाव यह है कि इन सबका एक अलग आकर्षण है। यहाँ की बर्फ से लदी हुई ऊँची चोटियां तथा दुर्गम दृश्य अत्यधिक प्रिय हैं। यहाँ की छोटी-बड़ी नदियाँ, नाले, चश्मे धन्य हैं, जिनका जल पवित्र गंगा नदी के वंश के समान पवित्र है। यहाँ की वायु सुख प्रदान करने वाली तथा शीतल है । यहाँ वितस्ता नदी का किनारा अत्यन्त स्वच्छ है । भाव यह है कि वितस्ता के स्वच्छ तट पर शीतल वायु चलती है।
विशेष— (क) इन पंक्तियों में काश्मीर की प्रकृति के विचित्र आकर्षण का बड़ा प्रभावशाली शब्द चित्र प्रस्तुत हुआ है।
(ख) तत्सम प्रधान भाषा तथा अनुप्रास अलंकार है।
3. मानसरोवर मान-हरन, सुन्दर मानसबल । 
धनि ‘गधरबल’, ‘गगरीबल’, श्रीनगर स्वच्छ डल ॥ 
एक-एक सों सुघर अनेक सरोवर छाये । 
प्रकृति देवि निज-रूप-लाखन, मनु मुकुर लगाये ॥ 
शब्दार्थ— मान-हरन = अभिमान हरने वाला । सुघर = सुन्दर । लखन = देखने के लिए | मनु = मानो । मुकुर = दर्पण  निज = अपना।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां ‘भास्कर’ भाग -1 में संकलित तथा श्रीधर पाठक द्वारा रचित कविता ‘काश्मीर सुषमा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने काश्मीर भूमि के प्राकृतिक आकर्षण का बड़ा प्रभावपूर्ण चित्रण किया है ।
व्याख्या— यहां पर मानसरोवर का गर्व हरने वाली मानसबल झील है। यहां के आकर्षक स्थल तथा गंधर्वबल, गगरीबल तथा स्वच्छ डल झील धन्य हैं। इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। यहां एक से बढ़कर एक सुन्दर सरोवरों का जाल बिछा हुआ है। ऐसा लगता है कि इन सबके रूप में प्रकृति ने मानो अपना रूप देखने के लिए दर्पण स्थापित कर रखे हैं।
विशेष— (क) यहां प्रकृति का चेतन (नायिका) रूप में चित्रण हुआ है। (ख) पुनरुक्ति, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार है।
कविता पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न ( क ) कवि ने काश्मीर की धरती को कैसी बताया है ? 
(ख) काश्मीर की वायु कैसी है ?
(ग) काश्मीर की प्रमुख झीलें कौन-कौन सी हैं ? 
(घ) कवि ने काश्मीर को किस की क्रीड़ा-स्थली कहा है ? 
(ङ) काश्मीर में कौन-सी नदी बहती है ?
उत्तर— (क) कवि ने काश्मीर की धरती को जादूभरी बताया है।
(ख) काश्मीर की वायु शीतल तथा सुख देने वाली है।
(ग) काश्मीर की प्रमुख झीलें मानसबल, डल, गधरबल और गगरीबल हैं।
(घ) कवि ने काश्मीर को प्रकृति तथा पुरुष की क्रीड़ा स्थली कहा है।
(ङ) काश्मीर में वितस्ता नदी बहती है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
भाव- सौंदर्य—
1. काश्मीर की धरती को कवि ने जिन गुणों के कारण धन्य कहा है, उनमें से कोई तीन गुण लिखिए । 
उत्तर— काश्मीर की धरती को निम्नलिखित गुणों के कारण उसे धन्य कहा गया है—
(i) यहाँ की धूल, यहाँ के बादल, आकाश तथा तारे विचित्र आकर्षण रखते हैं।
(ii) यहाँ की वायु मन्द, शीतल तथा सुगंधित है।
(iii) यहाँ की बर्फ़ से लदी हुई पर्वतों की चोटियां आकर्षण का केन्द्र हैं।
2. पुरुष और प्रकृति ने प्रेम-क्रीड़ा के लिए काश्मीर की धरती को किस रूप में सजाया है ?
उत्तर— पुरुष और प्रकृति ने प्रेम-क्रीड़ा के लिए काश्मीर की धरती को रंगमहल के रूप में सजाया। रंगमहल उस महल को कहते हैं, जो देखने में आकर्षक तथा सब प्रकार की सुख-सुविधाओं से सम्पन्न होता है ।
3. वितस्ता के स्वच्छ किनारे पर कैसी वायु बहती है ? 
उत्तर— वितस्ता के स्वच्छ किनारे पर सुख देने वाली शीतल वायु बहती है। यह वायु सुगंधित से परिपूर्ण भी होती है।
4. कवि ने मानसबल का वर्णन किस रूप में किया है ? 
उत्तर— यहाँ का मानसबल सुन्दर होने के कारण मन को मोह लेने वाला है ।
5. प्रकृति देवी ने अपना रूप देखने के लिए कौन-से दर्पण लगाये हैं ? 
उत्तर— प्रकृति देवी ने अपना रूप देखने के लिए काश्मीर के विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों के रूप में अनेक दर्पण लगा रखे हैं। यथा अनेक प्रकार के सरोवर, नदियां तथा झरने दर्पण के समान हैं जिनमें प्रकृति अपना रूप देखती है ।
6. भाव स्पष्ट करें—
है यह जादूभरी, विश्व बाज़ीगर थैली ।
खेलत में खुलि परी, शैल के सिर पै फैली।
उत्तर— जादूगर के पास एक थैली होती है, जिसमें से वह अपने जादू के चमत्कार से अलग-अलग रूप-रंग की विचित्र वस्तुएं निकालकर दर्शक का मन मोह लेता है। उसी प्रकार काश्मीर की सुन्दरता भी अपने प्रतिक्षण बदलते हुए रूप-सौन्दर्य के बल पर दर्शक का मन मोह लेती है। ऐसा लगता है मानो यह थैली सहसा खुलकर अपने पूरे चमत्कार के साथ पर्वत के सिर पर फैल गई है।
शिल्प-सौन्दर्य—
1. “धनि धनि श्री काश्मीर धरनि, मन हरनि” 
इस पंक्ति में कुछ शब्दों के अन्त में ‘नि’ की आवृत्ति हुई है। इस तरह की आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
निम्नलिखित पंक्ति में कुछ शब्दों के आरम्भ में जिस ध्वनि की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार आया है उसे रेखांकित —
सीतल सुखद समीर, वितस्ता तीर, स्वच्छ थल ।
उत्तर— सीतल सुखद समीर- यहाँ प्रत्येक शब्द के आरम्भ में ‘स’ की आवृत्ति हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
2. कवि ने काश्मीर की सुंदरता का वर्णन करने के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है। उनकी सूची बनाएँ।
उत्तर— जादूभरी, धवल, तुंग, दुर्गम, विमल, शीतल, सुखद, स्वच्छ, सुन्दर, सुघर आदि ।
भाषा-अध्ययन—
1. काश्मीर- सुषमा का अर्थ है- काश्मीर की सुषमा । इस सामासिक शब्द में ‘की’ (विभक्ति चिह्न) का लोप हुआ है, इसलिए यहाँ तत्पुरुष समास है। इस समास में अन्य विभक्ति चिह्नों का भी लोप होता है, जैसे पथभ्रष्ट में ‘से’ चिह्न का और ‘जलमग्न’ में ‘में’ विभक्ति चिह्न का लोप हुआ है।
इस कविता में तत्पुरुष समास के तीन उदाहरण ढूँढ़कर लिखें ।
उत्तर— (i) जादूभरी – जादू से भरी ।
(ii) गंगोद – गंगा का जल ।
(iii) मानसबल- -मानस का बल।
2. यह कविता ब्रज भाषा में लिखी गई है। ब्रज भाषा हिन्दी की एक बोली है । इस कविता में आए हुए ब्रज भाषा के शब्द मानक हिन्दी के शब्दों से भिन्न हैं, जैसे–
उत्तर—
मानक भाषा हिन्दी  ब्रज भाषा
धन्य धनि
खेलता/ती खेलत
आया आयो
सजाया सजायो
योग्यता विस्तार— 
1. ‘काश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता’ पर एक लेख लिखें। 
2. ‘काश्मीर- सुषमा’ से मिलती-जुलती कोई कविता कक्षा में सुनाएं। 
3. इस कविता में काश्मीर के कुछ सुंदर स्थलों के नाम आए हैं। ऐसे ही कुछ और स्थलों के नाम लिखें।
उत्तर— विद्यार्थी स्वयं करें।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. किस धरती को कवि ने धन्य कहा है ?
उत्तर— काश्मीर की धरती को ।
प्रश्न 2. काश्मीर की धरती कैसी है ? 
उत्तर— जादूभरी ।
प्रश्न 3. काश्मीर के ‘हिम श्रृंग’ कैसे हैं ?
उत्तर— धवल ।
प्रश्न 4. काश्मीर की प्रमुख नदी कौन-सी है ? 
उत्तर— वितस्ता ।
प्रश्न 5. मानसरोवर के मान का मर्दन करने वाली झील कौन-सी है ?
उत्तर— मानसबल ।
प्रश्न 6. श्रीनगर में कौन-सी झील है ?
उत्तर— डल झील ।
प्रश्न 7. अनेक सरोवर रूपी दर्पण किस देवी ने अपना रूप देखने के लिए बनाए हैं ?
उत्तर— प्रकृति – देवी ने ।
प्रश्न 8. ‘गंगोद-गोत-जल’ से क्या आशय है ?
उत्तर— गंगा जल के समान पवित्र जल ।
प्रश्न 9. कवि ने काश्मीर को किस की थैली माना है ?
उत्तर— विश्व बाजीगर की।
प्रश्न 10. यहाँ प्रेम क्रीड़ा करने कौन आया था ? 
उत्तर— पुरुष और प्रकृति ।

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