JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 14 विनय – पद, राम वन गमन —तुलसीदास

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कवि – परिचय
जीवन परिचय— तुलसीदास जी राम मार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। वे हिन्दी-साहित्य के गौरव तथा भारतीय संस्कृति के रक्षक के रूप में स्मरण किये जाते हैं। उनका जन्म सन् 1532 ई० में तथा निधन सन् 1623 में हुआ। उनके जन्म स्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान् उनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश का बांदा जिला तथा कुछ उनका जन्म स्थान सोरों स्वीकार करते हैं। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था । तुलसीदास का शैशव बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। जन्म लेते ही माँ की मृत्यु हो जाने के कारण पिता ने उन्हें त्याग दिया था। उन्होंने महात्मा नरहरि दास के आश्रम में विद्या लाभ किया। कहते हैं कि तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली पर विशेष अनुरक्त थे । पत्नी की फटकार ने तुलसी के हृदय में संसार के प्रति विरक्ति का भाव पैदा कर दिया। उन्होंने घर-बार छोड़कर अपना जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया।
रचनाएँ— तुलसीदास की रचनाओं में निम्नलिखित विशेष प्रसिद्ध हैं—
रामचरितमानस, गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका और कृष्ण गीतावली । इसमें भी रामचरितमानस तथा विनयपत्रिका विशेष उल्लेखनीय हैं। रामचरितमानस प्रबंध काव्य का आदर्श प्रस्तुत करता है तो विनयपत्रिका मुक्तक शैली में रचा गया उत्कृष्ट गीति काव्य है ।
काव्यगत विशेषताएँ— तुलसीदास के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास जी लोकनायक के आसन पर आसीन हुए। उनकी रचनाओं में जहां काव्य-गुणों की प्रधानता है, वहां लोक मंगल की भावना के भी भरपूर दर्शन होते हैं। रामचरितमानस में चित्रित राम, सीता, लक्ष्मण, भरत तथा हनुमान आदि के चरित्र पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन का आदर्श प्रस्तुत करते हैं । तुलसीदास जी मानव स्वभाव के पारखी थे। उन्होंने मानव स्वभाव के प्रत्येक पक्ष को स्पर्श किया है। उन्होंने सभी रसों का सफल चित्रण किया है। शांत रस एवं करुण रस की प्रधानता रही है। ‘विनयपत्रिका’ में तुलसीदास जी की दास्य भाव की भक्ति का आदर्श निहित है। विनय – भाव की अभिव्यक्ति भक्त हृदय की परिचायक है।
ऐसो को उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाहीं ।
भाषा— तुलसीदास जी ने अपने समय में प्रचलित अवधी तथा ब्रज दोनों भाषाओं को अपनाया है। रामचरितमानस में अवधी भाषा का तथा कवितावली और विनयपत्रिका में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसी ने अर्थालंकारों तथा शब्दालंकारों का भी समुचित प्रयोग किया है। उन्होंने सभी काव्य शैलियों को अपनाया है। इनमें दोहा-चौपाई, कवित्त तथा सवैया-पद्धति विशेष उल्लेखनीय हैं।
(क) विनय-पद
पाठ का सार
प्रस्तुत विनय पद में तुलसीदास जी ने दास्य भाव की भक्ति का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। भगवान् राम ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए जिस तरह अन्य प्राणियों का उद्धार किया है, उसी प्रकार तुलसीदास का भी उद्धार कर अपनी उदारता को सार्थक बनाए।
सप्रसंग व्याख्या
ऐसो को उदार जग माहीं। 
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं ॥ 
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावन मुनि ज्ञानी। 
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी॥ 
जो संपत्ति दससीस अपरि करि, रावन सिव पहँ लीन्हीं। 
जो संपदा विभिषन कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्हीं ॥ 
तुलसीदास सब भाँति सकल सुख, जो चाहसि मन मेरो । 
तौ भजु राम, काम सब पूरन करें कृपानिधि तेरो ॥
शब्दार्थ— जग= संसार। मोही = में। को कौन । द्रवै = द्रवित हो। सरिस = समान। कोठ= कोई जोग= योग। विराग = विरक्ति पावत= पाते हैं। गीध = गिद्ध, जटायु । सबरी = शबरी नाम भील जाति की स्त्री जो राम की पुजारिन थी । सिव पहँ = शिव जी से । लीन्हीं = ली थी। संपदा = सम्पत्ति । सकुच = सँकोच । सकल = समस्त चाहसि चाहता है। भजु = भजन कर। कृपानिधि = कृपा के भण्डार श्रीराम ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास के ‘विनय-पद’ से लिया गया है, जिसमें वे जटायु, शबरी और विभीषण के उदाहरण देकर भगवान् राम की भक्त वत्सलता एवं उदारता का वर्णन करते हैं।
व्याख्या— संसार में ऐसा उदार कौन है जो बिना ही सेवा किए दीन-हीन प्राणियों पर दया करता है ? ऐसे एकमात्र भगवान् श्रीराम हैं, उनके समान उदार, दयालु दूसरा कोई नहीं है। बड़े-बड़े ज्ञानी मुनि, योग, वैराग्य आदि अनेक यत्न करके भी जिस परमगति को प्राप्त नहीं कर पाते, वह गति प्रभु राम ने गिद्ध (जटायु) एवं शबरी नामक भीलनी को दे दी। उन्हों परमगति देते हुए भगवान् राम ने मन में इसे कोई विशेष बात नहीं समझी। जिस सम्पत्ति को रावण ने शिव जी की पूजा करके उन्हें अपने दस सिर चढ़ा कर प्राप्त किया था, वही सम्पत्ति श्री रघुनाथ जी ने अत्यन्त संकोचपूर्वक विभीषण को दे दी । तुलसीदास कहते हैं कि मेरे मन ! यदि तू सब प्रकार के सुखों को भोगना चाहता है, तो भगवान् श्रीराम की भक्ति कर । कृपा के भंडार भगवान् रघुनाथ तेरी सारी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे ।
विशेष— (क) भगवान् राम अपनी भक्त वत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। यह अनेक उदाहरणों से स्पष्ट है। वह अपने भक्तों को बिना मांगें ही सब कुछ दे देते हैं और इससे उनकी दयालुता और उदारता सिद्ध होती है।
(ख) ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास तथा स्वाभावोक्ति अलंकार हैं।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) ‘विनयपद’ तुलसीदास की किस रचना से लिया गया है ? 
(ख) कवि ने संसार में सर्वश्रेष्ठ उदार किसे माना है ? (ग) ज्ञानी मुनि कौन-सी गति योग-वैराग्य – साधना से नहीं पा सकते ? 
(घ) किस का स्मरण करने से सभी कार्य पूरे होते हैं ? 
उत्तर— (क) तुलसीदास द्वारा रचित ‘विनय पत्रिका’ से यह पद लिया गया है ।
(ख) कवि ने श्रीराम को संसार में सर्वश्रेष्ठ उदार माना है।
(ग) ज्ञानी मुनियों का उद्धार नहीं हो पाता। वे मुक्त नहीं होते ।
(घ) श्रीराम के नाम का स्मरण करने से सब कार्य पूरे हो जाते हैं।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
भाव-सौंदर्य—
प्रश्न 1. तुलसी के राम बिना सेवा के ही दीनों का उद्धार करते हैं, यह उनकी किस विशेषता का परिचायक है ?
उत्तर— उदारता ।
प्रश्न 2. राम की उदारता के कुछ प्रमाण कवि ने इस पद में दिए हैं। उन्हें उद्धृत कीजिए।
उत्तर— (क) उन्होंने जटायु का उद्धार किया ।
(ख) शबरी का उद्धार किया।
(ग) विभीषण को रावण की पूरी सम्पत्ति तथा उसका राज्य दे दिया।
प्रश्न 3. सब भाँति सुख प्राप्त करने के लिए कवि अपने मन को क्या करने के लिए प्रेरित कर रहा है ?
उत्तर— सब भाँति सुख प्राप्त करने के लिए कवि अपने मन को कृपा के खज़ाने राम का भजन करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
प्रश्न 4. इन पंक्तियों में राम के किस स्वभाव की ओर संकेत है ? 
“जो गति जोग विराग जतन करि नहिं पावन मुनि ज्ञानी, सो गति देत गीध, सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी।”
उत्तर— उदारता तथा दीनदयालुता ।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोतर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. कवि ने किसे उदार कहा है ? 
उत्तर— कवि ने श्रीराम को उदार कहा है ।
प्रश्न 2. श्रीराम ने किस पक्षी का उद्धार किया था ?
उत्तर— श्रीराम ने जटायु नाम के गीध का उद्धार किया था ।
प्रश्न 3. शिव को अपने दश सिर किस ने अर्पित किए थे ?
उत्तर— रावण ने ।
प्रश्न 4. श्रीराम ने लंका का राज्य किसे दिया था ? 
उत्तर— विभीषण को ।
प्रश्न 5. विनय पत्रिका की भाषा कौन-सी है ?
उत्तर— ब्रज।
(ख) राम वन गमन
सप्रसंग व्याख्या
दोहा— मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात।  आयसु देइअ हरषि हिय कहि पुलके प्रभु गात ॥
चौपाई— धन्य जनमु जगती तल तासू । पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू । चारि पदारथ करतल ताके । प्रिय पितु मातु प्रान सम जाके ॥ आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई ।। बिदा मातु सन आवउँ मांगी। चलिहऊँ बनहि बहुरि पग लागी ॥ अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बस उतरु न दीन्हा ।। नगर व्यापि गई बात सुतीछी। छूअत चढ़ी जनु सब तन बीछी ॥ सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि विटप जिमि देखि दवारी । जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ विषाद् नहिं धीरजु होई।
दोहा— मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहिं, सोकु हृदयँ समाइ । मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ।
शब्दार्थ— परिहरिअ = त्याग दीजिए। आयसु = आज्ञा । पुलके = पुलकित गात = । शरीर के अंग । जगती तल = संसार | बेगहि = शीघ्र । प्रमोद = परम आनन्द । सुतीछी = बहुत ही तीखी । बीछी = बिच्छू | विटप = पेड़ | दवारी = जंगल की आग ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित काव्यांश ‘राम वन गमन’ से ली गई हैं। इस काव्यांश में उस समय का वर्णन है, जब श्री राम अपने पिता राजा दशरथ से वन जाने की आज्ञा मांगते हैं। पिता को अपने बेटे से अलग होने का दुःख है। उधर अयोध्यावासियों को भी यह समाचार शोक की नदी में डुबो देता है।
व्याख्या— राम पिता को व्याकुल देखकर कहते हैं – हे पिता जी ! इस मंगल के समय में स्नेहवश होकर सोच अथवा चिन्ता त्याग दीजिए। हृदय से प्रसन्न होकर मुझे वन जाने की आज्ञा दीजिए। यह कहते हुए प्रभु राम का शरीर पुलकित हो उठा। इस संसार में उसका जन्म धन्य है जिसके चरित्र (गुण) सुनकर पिता को परम आनन्द प्राप्त हो । जिसको माता-पिता प्राणों के समान प्रिय हैं, चारों पदार्थ – धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष उसकी मुट्ठी में रहते हैं। आपकी आज्ञा का पालन करके और उसका फल पाकर मैं जल्दी ही लौट आऊँगा । अतः कृपया आज्ञा दीजिए। माता से आज्ञा मांग आता हूँ, फिर आपका चरण छूकर वन को चलूँगा । ऐसा कहकर श्री राम चन्द्र जी वहाँ से चले गये। राजा ने शोक वश होने के कारण कोई उत्तर नहीं दिया। यह बहुत ही तीखी, चुभने वाली, अप्रिय बात नगर भर में इतनी जल्दी फैल गई। मानो डंक मारते ही बिच्छु का विष सारे शरीर में फैल गया हो । इस बात को सुनकर सब स्त्री-पुरुष ऐसे व्याकुल हो गये जैसे वन में आग लगी देखकर बेलें तथा वृक्ष मुरझा जाते हैं। जो जहाँ सुनता है, वह वहीं सिर पीटने लगता है। इतनी अधिक व्यथा है कि कोई धैर्य प्राप्त नहीं होता। सबके मुख सूख जाते हैं। आँखों से अश्रुधारा बहती है। शोक हृदय में नहीं समाता । मानो करुण रस की सेना अयोध्या पर डंका बजाकर उतर आयी हो।
विशेष— (क) इस वाक्यांश में राम के वन गमन से उत्पन्न शोक पूर्ण वातावरण का बड़ा सजीव तथा मार्मिक चित्रण हुआ है।
(ख) भाषा अवधी है। अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार है । मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) राम ने पिता से क्या कहा ? 
(ख) इस संसार में किस पुत्र का जन्म धन्य है ? 
(ग) राजा दशरथ ने राम को क्या उत्तर दिया ? 
(घ) राम के वन-गमन का नगरवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर— (क) राम ने पिता से वन जाने की आज्ञा तथा आशीर्वाद मांगा।
(ख) इस संसार में उस पुत्र का जन्म धन्य है जिस के गुणों को सुनकर पिता को परम आनंद प्राप्त होता हो।
(ग) राजा दशरथ शोक में डूबे हुए थे, इसलिए उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
(घ) समस्त नगरवासी व्याकुल हो गए तथा शोक में डूब कर विलाप करने लगे।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
भाव-सौंदर्य—
प्रश्न 1. श्रीराम के अनुसार माता-पिता की आज्ञा का पालन करने पर कौन-से पदार्थ सुगमता से मिल सकते हैं ?
उत्तर— धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ।
प्रश्न 2. श्रीराम के वन-गमन का समाचार पाकर अयोध्यावासियों में विषाद की जो लहर दौड़ी, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर— राम के वन-गमन की बहुत ही तीखी चुभने वाली, अप्रिय बात सुनकर नगरवासियों को ऐसा लगा मानो डंक मारते ही बिच्छु का विष सारे शरीर में फैल गया हो। इस बात को सुनकर सब स्त्री-पुरुष ऐसे व्याकुल हो गये जैसे वन में आग लगी देखकर वृक्ष तथा बेलें मुरझा गई हैं। जिसने जहां सुना वह वहीं सिर पीटने लगा। कोई धैर्य धारण नहीं करता। सबके मुख सूख जाते हों। आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है। शोक हृदय में नहीं समाता मानो करुण रस की सेना अयोध्या पर डंका बजाकर उतर आई हो ।
शिल्प-सौंदर्य —
1. जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना पाई जाती है यथा ‘जनु’, ‘मनु’, ‘मनहुँ’, ‘जनहुँ’, ‘जानो’ या ‘मानो’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। 
उदाहरण—
मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाड़।
प्रस्तुत पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का कोई अन्य उदाहरण ढूँढ़ें।
उत्तर— नगर व्यापि गई बात सुतीछी ।
छूअत चढ़ी जनु सब तन बीछी ॥
योग्यता विस्तार—
श्रीराम के वन-गमन के समय अयोध्यावासियों में शोक छा गया। चौदह वर्ष के वनवास के बाद उनके लौट आने पर नगर में हर्ष की लहर दौड़ गई और उस दिन दीपावली उत्सव मनाया गया। अध्यापक की सहायता से रामचरित मानस में से उस हर्षोत्सव का वर्णन पढ़ें।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कौन किसे शोक त्यागने के लिए कह रहा है ? 
उत्तर— राम अपने पिता राजा दशरथ को शोक त्यागने के लिए कह रहे हैं।
प्रश्न 2. राम कहाँ जा रहे हैं ? 
उत्तर— वनवास ।
प्रश्न 3. राम ने राजा दशरथ से क्या माँगा ?
उत्तर— आशीर्वाद ।
प्रश्न 4. किसके गुणों को सुनकर पिता आनन्दित होता है ? 
उत्तर— पुत्र के।
प्रश्न 5. राम किस से वन जाने की आज्ञा ले आए थे ?
उत्तर— माता से।
प्रश्न 6. राजा दशरथ ने कोई उत्तर क्यों नहीं दिया ?
उत्तर— शोक के कारण।
प्रश्न 7. नगरवासियों को राम के वन-गमन की बात कैसी लगी ?
उत्तर— बिच्छु के डंक के समान ।
प्रश्न 8. अवध में कौन-से रस की सेना आ गई थी ? 
उत्तर— करुण रस की।
प्रश्न 9. ‘राम वन गमन’ प्रसंग के कवि कौन हैं ?
उत्तर— तुलसीदास ।
प्रश्न 10. ‘राम वन गमन’ प्रसंग तुलसीदास की किस रचना से लिया गया है ?
उत्तर— रामचरितमानस ।
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