JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 समानार्थक शब्द

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 समानार्थक शब्द

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 समानार्थक शब्द

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

समानार्थक प्रतीत होने वाले भिन्नार्थक शब्द

अहंकार – झूठे सम्मान का बोध ।
दर्प – नियम के विरुद्ध काम करने पर घमण्ड । –
अभिमान – अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा समझने की भावना । –
घमण्ड – प्रत्येक स्थिति में अपने को बड़ा और दूसरों को हीन समझना। –
अनभिज्ञ – जिसे किसी बात की जानकारी प्राप्त करने का अवसर न मिला हो ।
अभिज्ञ – जानकारी, विज्ञ, निपुण अथवा कुशल ।
अनुरोध – किसी बात को मनवाने के लिए ज़ोर देना । यह प्रायः बराबर वालों के साथ किया जाता है।
प्रार्थना – ईश्वर अथवा अपने से बड़ों के प्रति की जाती है ।
अनुभव – अनुभव का सम्बन्ध इन्द्रियों से है।
अनुभूति — अनुभव की तीव्रता को अनुभूति कहते हैं।
अनुरूप — अनुरूप से किसी की योग्यता अथवा सामर्थ्य का बोध होता है; जैसे- सुशीला को उसकी योग्यता के अनुरूप पुरस्कार मिला।
अनुकूल — अनुकूल से उपयोगिता का बोध होता है; जैसे- रोगी के लिए यहां का वातावरण अनुकूल नहीं है।
अपराध – कानून का उल्लंघन अपराध कहलाता है।
पाप-नैतिक नियमों का पालन न करना अथवा धर्म के विरुद्ध आचरण करना पाप है।
अवस्था- हालत का सूचक शब्द अवस्था कहलाता है।
आयु – जीवन की अवधि को आयु कहते हैं।
आधि- मानसिक कष्ट को आधि कहते हैं।
व्याधि- शारीरिक रोग अथवा कष्ट को व्याधि कहते हैं।
आदरणीय-अपने से बड़ों के प्रति सम्मान सूचक शब्द।
पूजनीय—गुरु, पिता, माता अथवा महापुरुषों के प्रति प्रयुक्त होने वाला शब्द।
आराधना – किसी देवता या इष्टदेव के सामने की गई दया की याचना ।
उपासना – एकनिष्ठ साधना।
आगामी – आने वाला जिसका प्रायः निश्चय हो ।
भावी – भविष्य का बोध भावी टल नहीं सकती ।
आधिदैविक- देवताओं से मिलने वाला दुःख ।
आधिभौतिक—पंचभूतों से मिलने वाला दुःख। जैसे आंधी, तूफ़ान आदि।
आलोचना – विषय के किसी पक्ष की आलोचना ।
समालोचना—किसी विषय की सम्यक् एवं सन्तुलित आलोचना।
आज्ञा- किसी पूज्य व्यक्ति द्वारा किया गया निर्देश।
आदेश- किसी अधिकारी द्वारा किया गया निर्देश।
आतंक – जहां रक्षा प्राप्त करने की सम्भावना न हो।
त्रास – दूसरों के द्वारा कष्ट देना। औरंगज़ेब का शासन त्रास का शासन था।
आशंका- भविष्य में अमंगल का भ्रम ।
भय- अनिष्ट का डर।
अभिनन्दन – किसी श्रेष्ठ व्यक्ति का सम्मान करना ।
स्वागत – प्रथानुसार किसी का सम्मान करना ।
आह्लाद – क्षणिक एवं तीव्र भाव से युक्त प्रसन्नता का सूचक
उल्लास – किसी कार्य की सफलता अथवा सफलता की आशा पर क्षणिक प्रसन्नता।
अर्चना- फूल, दीप एवं धूप आदि से देवता की पूजा करना।
पूजा- बिना किसी सामग्री के देवता के प्रति विनीत रूप प्रकट करना।
अतिरिक्त- इच्छा से अधिक फालतू ।
अत्यन्त – जो अधिक हो अथवा इच्छा से अधिक होना।
अध्यक्ष – किसी संस्था आदि के स्थायी प्रधान को अध्यक्ष कहते हैं।
सभापति – किसी आयोजित अस्थायी सभा के प्रधान को सभापति कहते हैं।
परिषद्—वह स्थायी समिति जो किसी विशेष विषय पर विचार करने के लिए बनाई जाती है। ।
अन्तःकरण – विशुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति ।
आत्मा – एक अतीन्द्रिय तत्त्व जो आनश्वर है।
अनुराग – किसी के प्रति शुद्ध भाव से मन केन्द्रित करना ।
आसक्ति- मोह से सम्बन्धित प्रेम को आसक्ति कहते हैं।
अन्वेषण- अज्ञात वस्तु, स्थान आदि का पता लगाना ।
खोज – गुप्त चीज़ का पता लगना।
अनुसंधान – प्रत्यक्ष तथ्यों में से कुछ छिपे तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना।
गवेषणा – विषय की मूल स्थिति को जानने का प्रयत्न करना ।
अनबन – दो पक्षों में आपस में न बनना।
खटपट – दो पक्षों में कहासुनी होना।
अद्वितीय – जिसकी उपना न दी जा सके।
अभिभाषण – लिखित भाषण |
व्याख्यान – वक्ता द्वारा दिया गया मौखिक भाषण।
अगोचर- जो इन्द्रियों द्वारा ग्रहण न किया जा सके, पर जिसे ज्ञान या बुद्धि से अनुभव किया जा सके।
अज्ञेय – जो किसी भी तरह जाना न जा सके।
अभिज्ञ – जिसे अनेक विषयों की सामान्य जानकारी हो।
विज्ञ- जिसे किसी विषय का अच्छा ज्ञान हो।
अलौकिक – जिसका सम्बन्ध उस लोक से हो।
असाधारण- जो साधारण से बढ़कर हो ।
अपयश – स्थायी रूप से दोषी बन जाना।
कलंक – कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष लगना।
अस्त्र – फेंक कर माना जाने वाला हथियार जैसे- बाण।
शस्त्र – हाथ में पकड़कर मारने का हथियार जैसे- तलवार ।
अबला – स्त्री मात्र ।
निर्बला – बलहीन स्त्री।
अनिवार्य – अटल ।
आवश्यक – ज़रूरी।
अमात्य – परराष्ट्र मन्त्री |
मन्त्री – सलाहकार ।
सचिव – सहायक मन्त्री ।
आवेदन – प्रार्थना पत्र ।
निवेदन – नम्रतापूर्वक अपना विचार प्रकट करना।
इच्छा-चाह।
अभिलाषा – कामना ।
ईर्ष्या – किसी की उन्नति देखकर जलना ।
द्वेष – शत्रुता का भाव ।
स्पर्धा – मुकाबले की भावना। दूसरों को आगे बढ़ते हुए देखकर स्वयं भी आगे बढ़ने की इच्छा रखना।
मत्सर – बिना कारण दूसरे से द्वेष करना ।
उदाहरण – किसी सिद्धान्त के विवेचन में दिया गया तथ्य |
निदर्शन- साधारण रूप से कही गई बात के समर्थन में दिया गया तथ्य | –
दुष्टांत – किसी भी कथन के पोषण में दिया गया तथ्य |
उपयोग – किसी चीज़ को व्यर्थ न जाने देना।
प्रयोग – किसी वस्तु को व्यवहार में लाना।
उद्योग – किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए किया गया उत्साहपूर्वक प्रयत्न ।
प्रयास – साधारण प्रयत्न ।
उपक्रमणिका – विषय-सूची (जो पुस्तक के आरम्भ में दी जाती है।)
अनुक्रमणिका – वर्णानुक्रम विषय-सूची (जो पुस्तक के अन्त में दी जाती है।)
उपकरण – ऐसी सामग्री जिससे कोई कार्य सिद्ध हो ।
उपादान – किसी वस्तु का निर्माण करने वाली सामग्री।
उत्साह- काम करने की बढ़ती हुई रुचि ।
साहस – साधनहीन होने पर भी काम करने की तीव्र इच्छा ।
ऋषि – ब्रह्मज्ञानी।
मुनि- धर्म एवं तत्व पर विचार करने वाला।
ओज – वह आन्तरिक शक्ति जो मन और शरीर की सक्रिय रखती है।
पौरुष- वीरतापूर्ण कार्य करने की क्षमता।
कथा- किसी धार्मिक ग्रन्थ को पढ़कर दिया जाने वाला व्याख्यान।
प्रवचन- भक्ति आदि धार्मिक विषय पर मौखिक भाषण ।
कर्म – कार्य ।
काम – कामदेव, कार्य ।
इच्छा- किसी भी वस्तु की साधारण इच्छा।
कष्ट – अभाव और असमर्थता के कारण मानसिक और शारीरिक कष्ट।
क्लेश – अप्रिय बातों अथवा भावों से होने वाली मानसिक तकलीफ।
पीड़ा – रोग अथवा चोट के कारण हुई तकलीफ।
कल्पना – मन की वह क्रिया जिसके आधार पर हम अपने सामने विचारों की एक नई मूर्ति खड़ी करते है।
भावना – मन का संक्षिप्त चित्र ।
करुणा- दूसरे के कष्ट से व्याकुल होना ।
संवेदना – दूसरे के कष्ट में उतनी ही वेदना का अनुभव करना ।
कृपा – दूसरों के कष्टों को दूर करने की चेष्टा ।
दया – दूसरे के दुःख को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा ।
कंगाल – जिसे पेट भरने के लिए भिक्षा मांगनी पड़े।
दीन – निर्धनता के कारण जिसका आत्म-गौरव नष्ट हो चुका हो।
खेद – अपनी किसी गलती पर दुःखी होना ।
शोक – किसी की मौत पर दुःख प्रकट करना ।
क्षोभ – सफलता न मिलने पर दुःखी होना।
दुःख – साधारण कष्ट अथवा मानसिक पीड़ा ।
गर्व – अपने को बड़ा समझना और दूसरों को हीन दृष्टि से देखना।
गौरव – अपनी महानता का बोध ।
ग्रन्थ – ग्रन्थ से अभिप्राय पुस्तक की गुरुता एवं विषय की गम्भीरता से है।
पुस्तक – सभी प्रकार की प्रकाशित रचनाओं को पुस्तक की संज्ञा दी जाती है।
ग्लानि – किये हुए कुकर्म पर दुःख एवं पछतावा होना।
घृणा – किसी गन्दे काम से अरुचि ।
लज्जा – अनुचित कार्य कर बैठने पर मुंह छिपाना।
संकोच – किसी कार्य के करने में हिचकिचाहट। –
चेष्टा- कोई अच्छा काम करने के लिए शारीरिक श्रम ।
प्रयत्न – कोई कार्य करने के लिए सक्रिय होना।
उद्योग – किसी कार्य को पूरा करने के लिए मानसिक दृढ़ता।
दक्ष – जो हाथ से काम करने में कुशल हो ।
निपुण – जो अपने विषय अथवा कार्य का पूरा ज्ञान प्राप्त कर चुका हो।
कुशल – जो हर काम में अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का प्रयोग भली-भांति करना जानता हो।
तन्द्रा – आलस्य, प्रमाद ।
सुषुप्ति- समाधि की स्थिति, गहरी नींद।
नायिका – नाटक अथवा उपन्यास की प्रधान पात्रा।
अभिनेत्री – नारी की भूमिका निभाने वाली।
निबन्ध – ऐसी गद्य-रचना जिसमें लेखक का व्यक्तित्व प्रधान हो ।
लेख – ऐसी गद्य रचना जिसमें विषय की प्रधानता हो ।
निधन – महान् एवं लोकप्रिय व्यक्तियों की मृत्यु को निधन कहा जाता है।
मृत्यु – सामान्य शरीरांत को मृत्यु कहा जाता है।
प्रेम – व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होने वाला शब्द ।
स्नेह – अपने से छोटों के प्रति स्नेह कहलाता है।
वात्सल्य – बच्चों अथवा सन्तान के प्रति बड़ों तथा माता-पिता का प्रेम ।
प्रणय – पति-पत्नी का प्रेम ।
ममता – माता का सन्तान के प्रति प्रेम ।
प्रलाप – अत्यधिक कष्ट अथवा मानसिक विकार के कारण ‘प्रलाप’ किया जाता है।
विलाप – शोक अथवा वियोग में रोना ‘विलाप’ कहलाता है |
पारितोषिक – किसी प्रतियोगिता में विजयी होने पर पारितोषिक दिया जाता है।
पुरस्कार – किसी व्यक्ति के अच्छे काम अथवा रचना पर पुरस्कार दिया जाता है।
प्रशस्ति – बढ़ा चढ़ा कर प्रशंसा करना ।
स्तवन – किसी महान् व्यक्ति की कीर्ति एवं वंश का वर्णन स्तवन कहलाता है ।
स्तुति – देवी-देवताओं का गुण कथन ।
परिमल – फूलों से निकलने वाली सुगंध जो अधिक दूर नहीं जाती।
सौरभ – वृक्षों अथवा फूल-पत्तियों या वनस्पतियों से निकलने वाली सुगंध जो दूर तक व्याप्त होती है।
प्रतिमान – नमूना, किसी वस्तु का वह रूप जिसकी सहायता से दूसरी वस्तु बनाई जाती है ।
मापदण्ड – किसी वस्तु का नाम जानने का साधन ।
पर्यटन – किसी विशेष उद्देश्य से की गई यात्रा ।
भ्रमण – सैर अथवा दर्शनीय स्थानों को देखने के लिए जाना भ्रमण कहलाता है।
पत्नी – विवाहिता स्त्री ।
स्त्री – कोई भी औरत।
महिला – कुलीन घर की स्त्री |
पुत्र – अपना बेटा |
बालक – कोई भी लड़का ।
बहुमूल्य – बहुत कीमती ।
अमूल्य – जिसका मूल्य न लगाया जा सके ।
मित्र – वह व्यक्ति जिसके साथ आत्मीयता हो ।
बन्धु – सम्बन्धी, भाई ।
यन्त्रणा – असहनीय मानसिक दुःख का अनुभव।
यातना — प्रहार या अघात से उत्पन्न शरीरिक कष्ट की अनुभूति ।
विश्वास – किसी बात को ठीक मान लेना ।
श्रद्धा – वह मनोवृत्ति जो भक्ति एवं विश्वास से पुष्ट होती है ।
भक्ति – पूज्य व्यक्ति अथवा ईश्वर के प्रति निष्ठा ।
विलक्षण – असामान्य स्थिति को विलक्षण कहते हैं।
विचित्र – जो सामान्य से भिन्न हो ।
विरोध – दो व्यक्तियों या दलों में होने वाला मतभेद ।
वैमनस्य – मन में रहने वाला वैर अथवा शत्रुता का भाव ।
विषाद – अत्यन्त दुःख के कारण शरीरिक अथवा मानसिक पीड़ा।
व्यथा – किसी आघात के कारण शरीरिक अथवा मानसिक पीड़ा।
विहीन – अच्छी बात अथवा गुण का भाव ।
रहित – बुरी बात का अभाव । वह सब प्रकार के दोषों से रहित है।
सेवा – किसी को आराम देना।
सुश्रूषा – रोगी की सेवा ।
संतोष – सहज रूप से प्राप्ति पर प्रसन्न एवं निश्चित बने रहना ।
परितोष – आवश्यकताओं की पूर्ति को परितोष कहते हैं।
स्वतन्त्रता – स्वतन्त्रता का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है । नागरिकों को स्वतन्त्रता मिली है।
स्वाधीनता —‘स्वाधीनता’ देश या राष्ट्र के लिए होती है। भारत ने स्वाधीनता प्राप्त की।
समीर – शीतल एवं मन्द गति से बहने वाली वायु ।
पवन – मन्द अथवा तेज़ चलने वाली किसी भी प्रकार की वायु ।
सखा – जो आपस में एक प्राण बनकर रहें ।
सुहृद – अच्छे अथवा कोमल हृदय वाला ।
सभा – सभा अस्थायी और सार्वजनिक होती है। यह आकार में भी बड़ी होती है ।
गोष्ठी – यह स्थायी होती है। यह आकार में छोटी होती है। इसमें कुछ विशिष्ट व्यक्ति भी भाग लेते हैं।
समिति – आकार में गोष्ठी से भी छोटी होती है। इसमें कुछ विशिष्ट व्यक्ति ही सम्मिलित होते हैं।
संदेह – शक ।
भ्रांति – चक्कर अथवा उलझन में पड़ जाना ।
संशय – जहां वास्तविकता का कुछ निश्चय न हो ।
प्रश्न- अर्थ भेद स्पष्ट कीजिए-
(i) अस्त्र-शस्त्र, आवश्यक – अनिवार्य ।
(ii) ईर्ष्या – स्पर्धा, अभिज्ञ-अनभिज्ञ, अवस्था – आयु ।
(iii) प्रमाण- परिणाम, विमर्श-विमर्ष ।
उत्तर – (i) अस्त्र – वह हथियार जो फेंक कर चलाया जाता है। जैसे-तीर ।
शस्त्र – वह हथियार जो हाथ में थाम कर चलाया जाता है। जैसे-तलवार ।
आवश्यक – ज़रूरी –
अनिवार्य – जिसे टाला न जा सके।
(ii) ईर्ष्या – दूसरे की सफलता पर मन-ही-मन जलना।
स्पर्धा – दूसरे को बढ़ता हुआ देखकर स्वयं बढ़ने की इच्छा ।
अभिज्ञ – जिसे अनेक विषयों की सामान्य जानकारी हो ।
अनभिज्ञ – जिसे किसी बात की जानकारी प्राप्त करने का अवसर न मिला हो ।
अवस्था — हालात पर सूचक शब्द अवस्था कहलाता है।
आयु — जीवन की अवधि को आयु कहते हैं ।
(iii) प्रमाण – सबूत।
परिमाण – नाप-तोल ।
विमर्श – परामर्श ।
विमर्ष – विचार या विवेचन |

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