JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 3 वर्तनी – विचार

JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 3 वर्तनी – विचार

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Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Grammar

Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Grammar

J&K State Board class 9 Hindi Grammar

मानव-जीवन में भाषा का अत्यधिक महत्त्व । इसके बिना संसार का कार्य व्यवहार सम्भव नहीं। हम या तो अपनी बात बोलकर प्रकट करते हैं अथवा लिखकर। इस तरह भाषा के दो रूप बन जाते हैं—(क) उच्चरित (ख) लिखित । उच्चरित रूप भाषा का मूल रूप है जबकि लिखित रूप गौण एवं आश्रित। उच्चरित रूप में दिया गया सन्देश अथवा कही गई बात सीमित रहती है। भाषा का यह रूप क्षणिक होता है, जब तक हम बोलते रहते हैं, तब तक इसका अस्तित्व है। हमारे मौन होते ही भाषा का उच्चरित रूप नष्ट हो जाता है।
लिखित रूप में दिया गया सन्देश आदि समय की सीमा तोड़कर अगली पीढ़ी तक सुरक्षित बन जाता है। संसार का विपुल साहित्य लिखित रूप में होने के कारण ही सुरक्षित है।
भाषा के लिखित रूप को स्थायी तथा व्यापक बनाने के लिए ज़रूरी है कि लिपि चिह्न, शब्द स्तर की वर्तनी ( Spelling), विराम चिह्न लम्बे समय तक एक से बने रहें । उच्चरित रूप के समय के साथ कम अथवा अधिक परिवर्तन सम्भव है।
वर्तनी का शाब्दिक अर्थ है— वर्तन यानी अनुवर्तन करना, पीछे-पीछे चलना ।
लेखन-व्यवस्था में वर्तनी शब्द स्तर पर शब्द की ध्वनियों का अनुवर्तन करती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है – शब्द विशेष के लेखन के शब्द की एक-एक करके आने में, वाली ध्वनियों के लिए लिपि चिह्नों के क्या रूप निर्धारित किए जाएं और उनका कैसा संयोजन हो वह वर्तनी, वर्ण- संयोजन का कार्य है ।
भारत सरकार द्वारा निर्णय
इस शताब्दी में हिन्दी गद्य का प्रचार-प्रसार अत्यधिक बढ़ गया। परिणामस्वरूप जिन शब्दों को अपनाया गया उनकी वर्तनी में थोड़ी बहुत अनेकरूपता आ गई । भारत सरकार ने इस प्रकार की अस्थिरता तथा अनेकरूपता को दूर करने के लिए तथा वर्तनी में एकरूपता लाने के लिए कुछ निर्णय लिए ।
1. संयुक्त वर्ण
खड़ी पाई वाले व्यंजन-खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर बनाया जाना चाहिए; यथा—
ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा                            व्यास
नगण्य,                                                            श्लोक
कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास, प्यास, डिब्बा                   राष्ट्रीय
सभ्य, रम्य, शय्या, उल्लेख                                  स्वीकृत , यक्ष्मा, त्र्यंबक
अन्य व्यंजन— क और फ के संयुक्ताक्षर
(अ) संयुक्त पक्का, रफ्तार आदि की तरह बनाए जाएं, न कि संयुक्त पक्का की तरह।
(आ) ङ, ट, ड, द और ह के संयुक्ताक्षर हल् चिह्न लगाकर ही बनाए जाएं यथाबुड्ढ़ा, विढ्या, चिह्न, ब्रह्मा वाडय, लट्टू, बुड्डा, विद्या, चिह्न, ब्रह्म नहीं।
(इ) र के प्रचलित तीन रूप इस प्रकार हैं— प्रकार, धर्म, राष्ट्र (प्+र), (इ +म), (ट्+र)
(ई) श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा। इसे “श” के रूप में न लिखा जाए। त् + र के संयुक्त रूप लिए त्र और व दोनों रूपों में से किसी एक प्रयोग की छूट है किन्तु “क्र” को “कृ” के रूप में न लिखा जाए।
(उ) संस्कृत के संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। उदाहरणार्थ: संयुक्त चिह्न, विद्या, चञ्चल, विद्वान्, वृद्ध, अङ्क, द्वितीय, बुद्धि आदि ।
2. विभक्ति चिह्न
(क) हिन्दी के विभक्ति-चिह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपादिक से पृथक् लिखे जाएं। जैसे- राम ने, राम को, राम से आदि तथा स्त्री ने, स्त्री को, स्त्री से आदि । सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपादिक के साथ मिलाकर लिखे जाएं। जैसे- उसने, उसको, उससे, उसपर आदि ।
(ख) सर्वनामों के साथ यदि दो विभक्ति-चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक् लिखा जाए। जैसे- उसके लिए इसमें से।
(ग) सर्वनाम और विभक्ति के बीच ही तक आदि निपात हो तो विभक्ति को पृथक्लि खा जाए। जैसे-आप ही के लिए, मुझ तक को ।
(घ) क्रियापद – संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएं पृथक्-पृथक् लिखी जाएं। जैसे- पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, किया करता था, पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं आदि।
हाइफन – हाइफन (योजक) : हाइफन का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है। (क) द्वन्द्व समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाए, जैसे— राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती संवाद, देख-रेख, चाल-चलन, हँसी-मजाक, लेन-देन, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना आदि ।
(ख) सा से पूर्व हाइफन रखा जाए; जैसे— तुम-सा, चाकू से तीखे
(ग) तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग केवल वहीं किया जाए, जहां उसके बिना की सम्भावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे—भू- तत्त्व । सामान्यतः तत्पुरुष समासों में हाइफन लगाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे रामराज्य, राजकुमार गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि।
3. अव्यय
तक, साथ आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएं, जैसे- आपके साथ, यहां तक हिन्दी में ही, तो, सो, भी, श्री, जी, तक भर मात्रा आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे विभक्ति चिह्न भी आते हैं जैसे- अब से, तब से, यहां से, वहां से, सदा से आदि। नियमानुसार अव्यय सदा पृथक् ही लिखे जाने चाहिए, जैसे- आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भर कपड़ा, देश भर, रात भर, दिन भर, वह इतना भरकर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्रा आदि। सम्मानार्थक श्री और जी अव्यय भी पृथक् लिखे जाएं, जैसे- श्री श्रीराम, कैन्हैयालाल जी, महात्मा जी आदि।
समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय पृथक् नहीं लिखे जाएं; जैसे- प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमितमात्र, यथासमय, यतोचित आदि ।
श्रुतिमूलक य व— (क) जहां श्रुतिमूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है, वहां न किया जाए, किए किये, नई-नयी, हुआ-हुबा आदि में से (स्वरात्मक) रूपों का ही प्रयोग किया जाए। यह नियम क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि सभी रूपों और स्थितियों में लागू माना जाए। जैसे- दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक के लिए हुए, नई दिल्ली आदि।
(ख) जहां “य” श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द की मूल तत्त्व हो वहां वैकल्पिक श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है; जैसे- स्थायी, अव्ययी, भाव, दायित्व आदि यहां स्थाई अव्यई भाव, दाइत्व नहीं लिखा जाएगा ।
4. अनुस्वार तथा अनुनासिकता-चिह्न (चन्द्रबिन्दु)
अनुस्वार ( ँ) और अनुनासिकता चिह्न ( ँ) दोनों प्रचलित रहेंगे।
(क) संयुक्त व्यंजन के रूप में जहां पंचमाक्षर के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो, तो एकरूपता और मुद्रण लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए; जैसे- गंगा, चंचल, ठंडा, संध्या, संपादक आदि में पंचमाक्षर के बाद उसी वर्ग का वर्ण आगे आता है। अतः पंचमाक्षर पर अनुस्वार का प्रयोग होगा (गङ्गा, चञ्चल, ठण्डा, सन्ध्या, सम्पादक का नहीं)। यदि पंचमाक्षर दोबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में नहीं बदलेगा। जैसे-वाङ्मय, अन्य सम्मेलन, सम्मति, उन्मुख आदि। अन्तः वांमय, अयं, अंन, संमेलन, संमति, उंमुख आदि रूप ग्राह्य नहीं हैं।
(ख) चन्द्रबिन्दु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की गुंजायश रहती है। जैसे-हंस : हँस, अंगनाः आँगन आदि में अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चन्द्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। किन्तु जहां (विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर वाली मात्रा के साथ) चन्द्रबिन्दु के प्रयोग से छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो या चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिन्दु (अनुस्वार चिह्न) का प्रयोग किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न करे, वहां चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिन्दु (अनुस्वार चिह्न) की छूट दे दी गई है। जैसे- नहीं, में, मैं।
हिन्दीतर ध्वनियां – (क) अरबी-फ़ारसी या अंग्रेजी मूलक वे शब्द जो हिन्दी के अंग बन चुके हैं और उनकी विदेशज ध्वनियों का हिन्दी रूपांतर हो चुका है, हिन्दी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे- कलम, किला, दाग आदि (कलम, किला, दाग नहीं) । पर जहां विदेशज शुद्ध विदेशज रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो वहां उनके हिन्दी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएं; जैसेखाना, खाना, राज, राज, फन, फ़न ।
(ख) हिन्दी में कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनके दो-दो रूप बराबर चल रहे हैं। विद्वत्समाज में दोनों रूपों की एक-सी मान्यता है। जैसे- गरदन/गर्दन, गरमी / गर्मी, बरफ / बर्फ, बिलकुल / बिल्कुल, सरदी/सर्दी, कुरसी/कुर्सी, भरती / भर्ती, फुरसत / फुर्सत, बरदाश्त / बर्दाश्त, वापिस/ वापस, आखीर / आखिर, बरतन / बर्तन, दोबारा/दुबारा, दूकान/दुकान आदि।
हल् चिह्न – संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृत रूप ही रखा जाए, परन्तु जिन शब्दों में हिन्दी में हल् चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें उसको फिर से लगाने का प्रयत्न न किया जाए, जैसे- महान् विद्वान् आदि के न में हल् चिह्न नहीं लगाया जाए।
ध्वनि परिवर्तन – संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों का त्यों ग्रहण किया जाए। अतः ब्रह्मा को ब्रह्मा, चिह्न को चिह्न, उऋण को उरिण में बदलना उचित नहीं होगा। इसी प्रकार ग्रहीत, दृष्टव्य, प्रदर्शिनी, अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध प्रयोग ग्राह्य नहीं हैं इनके स्थान पर क्रमशः गृहीत, प्रदर्शनी, अत्यधिक, अनधिकार ही लिखना चाहिए।
ऐ, औ का प्रयोग – हिन्दी में ऐ ( ँ ), औ (औ) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है। पहले प्रकार की ध्वनियां हैं और आदि में तथा दूसरे प्रकार की गवैया, कौवा आदि में इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों (ऐ; औ ) का प्रयोग किया जाए। गवय्या कव्वा आदि में इनकी आवश्यकता नहीं है।
शब्द शुद्धि
सामान्य अशुद्धियां- किसी भी भाषा को शुद्ध बोलने और शुद्ध लिखने के लिए अभ्यास की आवश्यकता तथा व्याकरण का ज्ञान अनिवार्य है। कुछ लोग किसी भाषा को मातृभाषा समझ कर उसे शुद्ध बोलने की और शुद्ध लिखने का दावा कर बैठते हैं, लेकिन यह उनका भ्रम होता है। भ्रम एवं अज्ञान के कारण ही हमारे लेखन में अनेक अशुद्धियां रह जाती हैं। हिन्दी भाषा सरल अवश्य है, किन्तु उसे शुद्ध रूप में लिखने के लिए परिश्रम और सावधानी की आवश्यकता है। हिन्दी को शुद्ध लिखना सरलता से सीखा जा सकता है क्योंकि इसके उच्चारण में प्रत्येक अक्षर की ध्वनि रहती है। शुद्ध उच्चारण शुद्ध लेखन में सहायक है।
यहां वर्ण सम्बन्धी, प्रत्यय सम्बन्धी, सन्धि सम्बन्धी, समास सम्बन्धी, हलन्त सम्बन्धी, चन्द्र बिन्दु और अनुस्वार सम्बन्धी अहिन्दी भाषियो की अशुद्धियों की तालिका दी जा रही है—
वर्ण सम्बन्धी अशुद्धियां
अशुद्ध शब्द शुद्ध शब्द
अनुकुल अनुकूल
आर्द आर्द्र
अवन्नति अवनति
अगामी आगामी
अनाधिकार अनधिकार
अराधना आराधना
आमिश आमिष
आग्या पालन आज्ञा पालन
आयू आयु
अपरियुक्त उपर्युक्त
अभ्यस्थ अभ्यस्त
आल्हाद आह्लाद
अध्यन अध्ययन
अस्थान स्थान

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