JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 2 साँवले सपनों की याद —जाबिर हुसैन
JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 2 साँवले सपनों की याद —जाबिर हुसैन
JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 2 साँवले सपनों की याद—जाबिर हुसैन
Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions
Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Solutions
J&K State Board class 9 Hindi Solutions
लेखक – परिचय
जीवन-परिचय – श्री जाबिर हुसैन का जन्म बिहार के नालंदा जिले के नौनहीं राजगिर में सन् 1945 ई० को हुआ था। उन्हें अध्ययन में में विशेष रुचि थी। अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य में उपाधियाँ प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया था। इन्होंने राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य किया है। ये सन् 1977 में बिहार के मुंगेर विधानसभा क्षेत्र से सदस्य चुने गए। इन्हें बिहार के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया था। सन् 1995 ई० में इन्हें बिहार विधान परिषद् का सभापति बनाया गया। राजनीति के साथ-साथ इन्हें लेखन में भी रुचि थी । इन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार है।
रचनाएँ — इन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी के प्रदान की है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं- एक नदी रेतभरी, लोगां, डोला बीबी का मज़ार । संघर्षरत जीवन को अभिव्यक्ति जो आगे हैं, अतीत का चेहरा,
भाषा-शैली – जाबिर हुसैन की भाषा-शैली अत्यंत सहज तथा रोचक है। प्रस्तुत पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ डायरी शैली में रचित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी संवेदना को व्यक्त किया है। लेखक ने अपनी भाषा में उर्दू के प्रचलित शब्दों का बहुत उपयोग किया है। जैसे- परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, माहौल, एहसास, शोख, मेहनत, महसूस। कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी मिलता है जैसे- अग्रसर, संभव, अंतहीन, विलीन, वाटिका, क्षितिज, प्रतिरूप । लेखक ने ऊबड़-खाबड़, भांडे, सोता आदि देशज शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है। इनकी भाषा-शैली कहीं-कहीं काव्यात्मक भी हो जाती है जैसे—’अब तो वो उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।’ इनकी शैली में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं । वे शब्दों के माध्यम से वातावरण को सजीव कर देते हैं जैसे—’पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे और दूध-छाछ से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था ।’ अतः कह सकते हैं कि लेखक की भाषाशैली, अत्यंत रोचक, सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।
पाठ का सार
जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। सालिम अली अपने अंतिम सफ़र पर जा रहे हैं। वे उस वन-पक्षी के समान प्रकृति में विलीन होने जा रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गा कर सदा के लिए खामोश हो गया हो। जैसे मौत की गोद में गए हुए पक्षी को कोई अपना जीवन दे कर भी नहीं जीवित कर सकता वैसे ही अब सालिम अली को भी जीवित नहीं किया जा सकता। सालिम अली पक्षियों की मधुर आवाज सुन कर झूम उठता था।
लेखक कहता है कि न मालूम कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी, गोपियों को अपनी शरारतों से तंग किया था, माखन भरे भांडे फोड़े थे, दूध-छाछ पिया था, कुंजों में विश्राम किया था और अपनी बंसी की तान से वृंदावन को संगीतमय कर दिया था। आज भी वृंदावन में कृष्ण की बाँसुरी का जादू छाया हुआ है। लेखक सालिम अली के संबंध में बताता है कि वह कमज़ोर काया वाला व्यक्ति अब सौ वर्ष का होने ही वाला था कि कैंसर की बीमारी से चल बसा। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक पक्षियों की खोज और सेवा में लगे रहे। उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई अन्य हो । वे सदा प्रकृति को हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया के समान अपने आस-पास देखते थे। उनके इस कार्य में उनकी जीवनसाथी तहमीना भी उनके साथ थी ।
सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था । आज सालिम अली और चौधरी चरण सिंह दोनों ही नहीं हैं। लेखक को चिंता है कि अब पर्यावरण के संभावित खतरों से हिमालय और लद्दाख की बर्फीली ज़मीनों पर जीने वाले पक्षियों की रक्षा कौन करेगा ? सालिम अली ने ‘फॉल ऑफ अ स्पैरो’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी थी। डी० एच० लॉरेंस की मृत्यु के बाद जब कुछ लोगों ने उसकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने का अनुरोध किया तो उसने उत्तर दिया था कि छत पर बैठने वाली गोरैया उसके पति के बारे में उससे अधिक जानती है ।
बचपन में सालिम अली ने अपनी एयरगन से एक गोरैया को घायल कर दिया था। उसी ने उन्हें आजीवन पक्षियों का सेवक बना दिया। वे उन्हें ही खोजते रहे। लंबी दूरबीन लटकाए जगह-जगह घूमते हुए वे पक्षियों की तलाश करते रहे। अपने खोजपूर्ण नतीजे अपनी रचनाओं के द्वारा देते रहे । लेखक की आँखें उन के जाने पर भीग गई हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ
सुनहरे = सोने जैसे रंगवाले। परिंदे = पक्षी । हुजूम = भीड़। वादी = घाटी। अग्रसर = आगे बढ़ना। सैलानी = घुमक्कड़, घूमते रहने वाला । अंतहीन = जिस का अंत नहीं होता । सफ़र = यात्रा । माहौल = वातावरण। पलायन = भागना, दूसरी जगह जाना। विलीन = नष्ट, लुप्त । जिस्म = शरीर हरारत = गर्मी, ताप | एहसास = अनुभूति। मिथक = प्राचीन पुरा कथाओं का तत्त्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है। वाटिका = बगीचा। शती = सौ वर्ष हिफ़ाज़त = सुरक्षा। मुमकिन = संभव । शब्दों का । जामा पहनाना = शब्दों के द्वारा व्यक्त करना। जटिल = दुरूह, दुर्बोध नैसर्गिक स्वाभाविक, प्रकृतिजन्य प्रतिरूप = प्रतिनिधि, नमूना अथाह = जिसकी कोई थाह न हो। यायावरी = घुमक्कड़ी, घूमते-फिरते रहना ।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या तथा अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वे उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ साँवले ‘सपनों की याद’ से ली गई हैं। लेखक सालिम अली की मृत्यु तथा उसकी अंतिम यात्रा का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – सालिम अली के शव को लेकर लोग ऐसे जा रहे हैं जैसे सुनहरे पक्षियों के सुन्दर पंखों पर सवार होकर आकर्षक स्वप्न देखने वालों की एक भीड़ चुपचाप कब्रगाह की ओर बढ़ती जा रही है। इसे कोई रोक-टोक नहीं सकता। इस भीड़ में सब से आगे सालिम अली की अर्थी को लोगों ने अपने कंधों पर उठाया हुआ है। इस घुमक्कड़ का यह अंतहीन सफ़र उसकी पिछली समस्त यात्राओं से अलग है। यह उस की अंतिम यात्रा है। वह अब वन है पक्षियों के समान उन्हीं पंच तत्त्वों में विलीन होने जा रहा है जिसे वह बना था। ऐसा लगता है मानो वन का पक्षी जीवन का अंतिम गीत गाकर मृत्यु की गोद में सो गया हो।
विशेष – लेखक ने सालिम अली की मृत्यु को उस की अंतिम यात्रा माना है। भाषा सहज तथा बोलचाल के उर्दू के शब्दों से युक्त है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) इस हुजूम को कोई रोक-टोक क्यों नहीं सकता ?
(iii) सालिम अली का यह कैसा सफ़र है ?
(iv) ‘प्रकृति में विलीन होने से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— (i) पाठ – साँवले सपनों की याद, लेखक – जाबिर हुसैन ।
(ii) यह हुजूम एक व्यक्ति की अर्थी के साथ जा रहा है, इसलिए इसे कोई रोक-टोक नहीं सकता है ।
(iii) सालिम अली की मृत्यु हो गई है। यह उनका आखिरी सफ़र है। इस सफ़र में वे स्वयं चल कर नहीं जा रहे हैं। उनकी अर्थी को लोगों ने उठाया हुआ है। इस सफ़र से वे लौट कर नहीं आ सकते ।
(iv) लेखक का मानना है कि जिन प्राकृतिक तत्त्वों से इस मानव शरीर का निर्माण होता है मृत्यु के बाद मानव का शरीर उन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है। यहां लेखक का प्रकृति में विलीन होने से यही आशय है कि सालिम अली का शरीर ज़िन प्राकृतिक तत्वों से बना था अब उनका शरीर उन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों में विलीन हो जाएगा।
2. पता नहीं यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाये तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो ल है जैसे उस भीड़ को चीर कर अचानक कोई सामने आयेगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जायेंगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जायेगा।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ जाबिर हसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ से ली गई हैं। लेखक सालिम अली की मृत्यु पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए उन्हें स्मरण कर रहा है।
व्याख्या — लेखक वृंदावन में कृष्ण की बाँसुरी के प्रभाव से मुग्ध लोगों की दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि वृंदावन में यमुना का साँवला जल किसी को भी उस संपूर्ण घटना की याद दिला देगा जब प्रभात की वेला में, सूर्योदय से पहले, वृंदावन की पतली गलियों से लोगों की भीड़ यमुना की ओर जाती थी तो लगता है कि अब भी कोई उस भीड़ को चीर कर सामने आएगा और उस की बाँसुरी की तान पर मोहित लोगों के कदम रुक जाएंगे। संध्या के समय जब बगीचे का माली लोगों को कोई सूचना देगा तो ऐसा लगेगा कि वह बाँसुरी वाला कृष्ण कहीं से आ कर अपनी बाँसुरी के मधुर संगीत से सब को मुग्ध कर देगा तथा बगीचे के संपूर्ण वातावरण पर उस के संगीत का जादू छा जाएगा।
विशेष – लेखक ने वृंदावन में कृष्ण की बाँसुरी की मधुरता के जादू का सजीव वर्णन किया है। भाषा सहज तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) ‘पता नहीं, यह सब कब हुआ था’ – लेखक का संकेत किस घटना की ओर है ?
(ii) साँवला पानी किस नदी का है ? इसे देख कर कौन-सा घटना क्रम याद आ जाता है ?
(iii) पतली गलियाँ कहाँ की हैं ? लोगों की भीड़ कब, कहाँ और क्यों जाती
(iv) किस का संगीत जादू बिखेर देता है ?
उत्तर— (i) इस कथन के माध्यम से लेखक उस घटना की ओर संकेत करता है जब वृंदावन में श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रासलीला रचाते थे। वे माखन चुरा कर खाते थे और गोपियों के मटके फोड़ देते थे। वे कुंजों में विश्राम करते थे और अपनी बाँसुरी बजा कर सब को मंत्र मुग्ध कर देते थे ।
(ii) साँवला पानी यमुना नदी का है। इसे देखकर वृंदावन में यमुना किनारे विचरण करने वाले श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं की याद आ जाती है कि वे किस प्रकार यमुना किनारे कुंजों में विहार करते हुए बाँसुरी बजाते थे। उनकी बाँसुरी की धुन सुनकर गोपियाँ मस्त हो जाती थीं।
(iii) पतली गलियाँ वृंदावन की हैं। लोगों की भीड़ सूर्य निकलने से पहले ही यमुना नदी पर स्नान करने के लिए जाती है।
(iv) श्रीकृष्ण जब बाँसुरी बजाते हैं तो उनकी बाँसुरी का संगीत समस्त वातावरण में छा जाता है। उनकी बाँसुरी की मधुर तान सब को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। ऐसा लगता है मानो श्रीकृष्ण की बाँसुरी के संगीत ने सब पर जादू कर दिया है और वे उस संगीत के जादू से खिंच कर श्रीकृष्ण की और आ रहे हैं।
3. उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गये हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिये प्रकृति में हर तरफ एक हंसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी । यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ से ली गई । लेखक सालिम अली के पक्षी-प्रेम का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या — लेखक का मानना है कि सालिम अली जैसा पक्षी-प्रेमी शायद ही कोई हुआ हो । पक्षियों को वे दूरबीन से देखते थे, परन्तु जब वे अकेले होते थे, तो वे दूरबीन नहीं लगाते थे। उनकी निगाह दूर क्षितिज तक फैली ज़मीन और झुके हुए आसमान को देखती ऐसी लगती थी जैसे वे प्रकृति से प्रभावित नहीं हुए बल्कि प्रकृति उनसे प्रभावित हो गई हो। उन्हें प्रकृति में चारों ओर एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया दिखाई देती थी। उन्होंने स्वयं ही इस दुनिया को अपने लिए बनाया था ।
विशेष – लेखक ने सालिम अली के पक्षी-प्रेम तथा प्रकृति प्रेम का परिचय दिया है। भाषा सहज तथा व्यावहारिक है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तरं—
(i) ‘बर्ड वाचर’ किसे कहते हैं ? इस पाठ में बर्ड वाचर कौन है ?
(ii) पक्षियों के संबंध में सालिम अली के क्या विचार थे ?
(iii) सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
(iv) एकांत क्षणों में सालिम अली क्या करते थे ?
उत्तर— (i) ‘बर्ड वाचर’ उस व्यक्ति को कहते हैं जिसे पक्षियों से प्रेम होता है। ऐसा व्यक्ति पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर उनके संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। वह पक्षियों की देखभाल भी करता है।
(ii) सालिम अली ने बचपन में अपनी एयरगन से एक नीले कंठ वाली गोरैया को घायल कर दिया था। गौरैया के इस प्रकार घायल हो जाने से वे दुःखी हो गए थे। इसके बाद उन्हें पक्षियों से बहुत लगाव हो गया। वे घायल पक्षियों का उपचार करते थे और पक्षियों को मानव जीवन का अभिन्न अंग मानकर उनकी गतिविधियों का अध्ययन करते थे।
(iii) सालिम अली को प्रकृति में चारों ओर एक हँसती-खेलती रहस्य से भरी हुई दुनिया दिखाई देती थी। उन्होंने इस दुनिया को स्वयं ही बहुत मेहनत से अपने लिए बनाया था ।
(iv) एकांत के क्षणों में सालिम अली दूरबीन नहीं लगाते हैं। उनकी आँखों में देखने से लगता कि दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में ऐसा जादू है जो प्रकृति को भी अपने घेरे में बांध लेता है।
4. जटिल प्राणियों के लिए सामिल अली हमेशा एक पहेली ही बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गोरया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ ले जाती रही। जिंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लौरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ से ली गई हैं। लेखक सालिम अली के पक्षी-प्रेम पर प्रकाश डाल रहा है।
व्याख्या — लेखक बताता है कि सालिम अली जटिल प्राणियों के लिए एक पहेली बन गए थे। वे अपने में ही लीन रहते थे। बचपन में उन की एयरगन से एक गोरैया घायल हो कर गिर गई थी, जिसने उन्हें पक्षी-प्रेमी बना दिया और वे नए-नए पक्षियों की तलाश में जुट गए। अपने इस कार्य में वे इस क्षण के लिए भी विचलित नहीं हुए थे तथा लॉरेंस की तरह उनका जीवन भी प्रकृति से जुड़ गया ।
विशेष – लेखक के अनुसार सालिम अली को बचपन की घटना ने पक्षी-प्रेमी बना दिया था जब उनकी एयरगन से एक गौरैया घायल हो गई थी । भाषा सहज, सरल तथा भावानुकूल है।
अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
(i) सालिम अली किनके लिए और क्यों पहेली बनी रहें ?
(ii) सालिम अली को किस घटना ने नई-नई खोजों के लिए प्रेरणा दी ?
(iii) लॉरेंस कौन था ?
(iv) सालिम अली जीवनभर क्या करते रहे ? क्यों ?
उत्तर— (i) सालिम अली जटिल प्राणियों के लिए एक पहेली बन गए थे क्योंकि वे अत्यंत सीधे-साधे व्यक्ति होते हुए भी उनके लिए महान् थे।
(ii) सालिम अली ने अपने बचपन में एयरगन से नीले कंठ वाली एक गौरैया को घायल कर दिया था। इस घटना से उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेमभाव उमड़ पड़ा और वे नएनए पक्षियों की खोज में लग गए।
(iii) लॉरेंस बीसवीं सदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव था । वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान् वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं ।
(iv) सालिम अली जीवन भर पक्षियों के जीवन से संबंधित नई-नई खोजें करते रहे । वे तरह-तरह की पक्षियों की जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। उन्हें पक्षियों से लगाव था ।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर— बचपन में सालिम अली एयरगन से खेला करते थे। एक दिन उनकी एयरगन से निकली गोली से एक नीले कंठ वाली गौरैया घायल हो कर गिर पड़ी। इस घायल गौरैया की दयनीय दशा देखकर सालिम अली को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने एयरगन न चलाने का फ़ैसला किया और पक्षियों की सेवा करने का निश्चय किया। इस प्रकार एक घायल गोरैया ने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और वे पक्षी-प्रेमी बन गए।
प्रश्न 2. सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संभावित किन खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं ?
उत्तर— सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री को बताया होगा कि यदि हम ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से नहीं बचाएँगे तो यहाँ का समस्त पर्यावरण दूषित हो जाएगा। पेड़-पौधे सूख जाएँगे । वर्षा नहीं होगी। हरियाली नष्ट हो जाएगी। पक्षियों का चहचहाना सुनाई नहीं देगा। पक्षी किसी दूसरे स्थान पर चले जाएँगे। पशुओं की भी हानि होगी। इस प्रकार से यह सुंदर वैली उजाड़ हो जाएगी। यह सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें नम हो गई होंगी।
प्रश्न 3. लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है’ ?
उत्तर— लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि लॉरेंस को प्रकृति से गहरा लगाव था । वे एक अच्छे ‘बर्ड वाचर’ थे। वे पक्षियों के कलरव से प्रेरणा प्राप्त कर कविताएँ लिखते थे। उनकी प्रकृति संबंधी कविताएँ विशेष प्रसिद्ध हैं। वे अपनी छत पर बैठी हुई गोरैया को अक्सर देखा करते थे। इसी कारण उनकी पत्नी ने यह कहा कि मेरी छत पर बैठी गौरैया लॉरेंस के बारे में अधिक बता सकती है।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए—
(क) वो लॉरेंस की तरह नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
उत्तर— लेखक को लगता है कि जिस प्रकार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कवि डी० एच० लॉरेंस प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे और मानते थे कि ‘मानव जाति एक उखड़े हुए महान् वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।’ इसलिए ‘हमारा प्रकृति की ओर लौटना ज़रूरी है।’ उसी प्रकार सालिम अली भी प्रकृति से बहुत लगाव रखते थे। वे प्रकृति की दुनिया में अथाह सागर बन कर उभरे थे। इसलिए वे प्राकृतिक जीवन के प्रतिनिधि बन गए थे।
(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?
उत्तर— लेखक का कथन है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस मरे हुए व्यक्ति को यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने शरीर की गर्मी और अपने दिल की धड़कनें देकर जीवित करना चाहे तो यह संभव नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी सांसें देकर किसी मरे हुए व्यक्ति को जीवित नहीं कर सकता। जो पक्षी मर जाता है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। वह फिर से अपना कलरव नहीं कर सकता।
(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर— लेखक का मानना है कि सालिम अली को प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्होंने प्रकृति का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण किया था। वे दूरबीन से प्रकृति के प्रत्येक हृदय का आनंद लेते थे। एकांत के क्षणों में भी वे प्रकृति को अपनी दूरबीन के बिना अपनी आँखों से निहारते रहते थे। इसी प्रकृति प्रेम ने उन्हें पक्षियों का प्रेमी भी बना दिया था। जैसे सागर बहुत गहरा होता है उसी प्रकार सालिम अली का प्रकृति प्रेम भी बहुत गहरा था।
प्रश्न 5. इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर— (i) सरल भाषा – इस पाठ में लेखक ने बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग किया है, जैसे—’आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा है जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा।’
(ii) शब्द प्रयोग – इस पाठ में लेखक ने तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। जैसे— अग्रसर, अंतहीन, पलायन, नैसर्गिक, परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, एहसास, तलाश, साइलेंट वैली, आबशारों आदि। इन शब्दों के द्वारा लेखक ने दृश्यों के शब्द-चित्र भी उपस्थित कर दिए हैं जैसे- “सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है । “
(iii) काव्यात्मकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली काव्यात्मक भी हो गई है, जैसे— ‘एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर जन्मे मिथक का नाम है, सालिम अली’ ।
(iv) रोचकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली अत्यंत रोचक है। वृंदावन में श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रसंग भाषा-शैली की रोचकता का सुंदर उदाहरण हैं, जैसे—’पता नहीं इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे ।’
इस प्रकार इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली सहज, चित्रात्मक तथा रोचक है ।
प्रश्न 6. इस पाठ के लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर— इस पाठ में लेखक ने सालिम अली को एक सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक तथा समर्पित ‘बर्ड वाचर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। बचपन में उनकी एयरगन से एक गौरैया घायल हो गई थी, जिसका दर्द देखकर उनके मन में पक्षी-प्रेम उत्पन्न हो गया था। उसके बाद वे जीवन भर दूरबीन लेकर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की खोज करते रहे और ‘एक गौरैया का गिरना’ शीर्षक पुस्तक में पक्षियों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखा । वे प्रकृति-प्रेमी भी थे। उन्हें प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने में अपार आनंद आता था। उन्हें पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बहुत चिंता रहती थी। इसलिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा से बचाने का अनुरोध किया था। वे निरंतर लंबी-लंबी यात्राएँ कर के पक्षियों पर खोज करते थे। उनकी आँखों पर सदा दूरबीन चढ़ी रहती थी जिसे उन की मृत्यु के बाद ही उतारा गया था। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी ।
प्रश्न 7. ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर— ‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी-वैज्ञानिक सालिम अली की मृत्यु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेखक को लगता है कि सालिम अली की यायावरी से परिचित लोग अभी भी यही सोच रहे हैं कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। लेखक की आँखें भी नम हैं और वह सोचता है ‘सालिम अली, तुम लौटोगे ना ।’ लेखक का यह स्वप्न तब भंग हो जाता है जब वह देखता है कि सालिम अली उस हुजूम में सबसे आगे हैं जो मौत की खामोशवादी की ओर अग्रसर हो रहा है जहाँ जाकर वह प्रकृति में विलीन हो जाएगा। सालिम अली को ले जाने वाले अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटा नहीं सकते। अब तो बस उसकी यादें ही शेष हैं। इस प्रकार इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 8. प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर— पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिएं और उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी गली-मोहल्ले को साफ़-सुथरा रखना चाहिए। कूड़ा एक स्थान पर जमा करना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तालाबों, झीलों तथा नदियों में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों को कम प्रयोग में लाना चाहिए। वातावरण को शुद्ध बना कर रखना चाहिए।
पाठेत्तर सक्रियता—
• अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अक्सर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खोने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
• आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है–
अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु ।
मोरी चिरई ! अरी मोरी चिरई सिरकी भितर बनिजरवा जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवउ॥ 1 ॥
कबने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी ! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई ॥ 2 ॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी ।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥ 3 ॥
• विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
• टी०वी० के विभिन्न चैनलों जैसे-एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
• एनसीईआरटी का श्रव्य कार्यक्रम सुनें- डॉ० सालिम अली
उत्तर— विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
यह भी जानें—
प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवंबर, सन् 1896 में हुआ था और मृत्यु 20 जून, सन् 1987 में हुई थी। उन्होंने फॉल ऑफ ए स्पैरो नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है जिसमें पक्षियों से संबंधित रोमांचक किस्से हैं। एक गौरैया का गिरना शीर्षक से इसका हिंदी अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है।
डी० एच० लॉरेंस (1885-1930) 20वीं सदी के अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकार । उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं, विशेषकर प्रकृति संबंधी कविताएँ उल्लेखनीय हैं। प्रकृति से डी०एच० लॉरेंस का गहरा लगाव था और सघन संबंध भी। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान् वृक्ष की भाँति है, जिस की जड़ें हवा में फैली हुई हैं । वे यह भी मानते थे कि हमारा प्रकृति की ओर लौटना ज़रूरी है ।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर— सालिम अली की अंतिम यात्रा के समय लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ वहाँ एकत्र हो गई थी। इस भीड़ में सबसे आगे सालिम अली का जनाज़ा चल रहा था। सब लोग चुपचाप उनके पीछे-पीछे मौत की वादी की ओर अग्रसर हो रहे थे। सालिम अली इस संसार के भीड़-भाड़ एवं तनाव से युक्त वातावरण से आज़ाद हो गए थे । वे उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर मौत की गोद में चला गया हो। अब कोई उन्हें अपने जिस्म की गर्मी तथा दिल की धड़कन देकर भी लौटा नहीं सकता था। ।
प्रश्न 2. वृंदावन की आज की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर— आज भी वृंदावन जाएं तो यमुना नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की वृंदावन में की गई अनेक लीलाओं की याद करा देता है। सूर्य निकलने से पहले ही वृंदावन की गलियों से लोग निकल कर यमुना की ओर जाते हैं तो लगता है कि श्रीकृष्ण कहीं से निकल कर बाँसुरी बजाने लगेंगे और सब उस बँसी की तान पर मस्त हो कर जहाँ के वहाँ रह जाएँगे। आज भी वृंदावन का वातावरण श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादू से भरा हुआ है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सालिम अली कौन-से विज्ञानी थे ?
उत्तर— पक्षी विज्ञानी ।
प्रश्न 2. कृष्ण की बाँसुरी के जादू से कभी कौन खाली नहीं होता ?
उत्तर— वृन्दावन ।
प्रश्न 3. सालिम अली किस बीमारी से मरे थे ?
उत्तर— कैंसर ।
प्रश्न 4. सालिम अली की आँखों पर क्या चढ़ा रहता था ?
उत्तर— दूरबीन।
प्रश्न 5. सालिम अली क्या वाचर थे ?
उत्तर— बर्ड वाचर ।
प्रश्न 6. सालिम अली किस प्रधान मंत्री से मिले थे ?
उत्तर— चौधरी चरण सिंह ।
प्रश्न 7. सालिम अली की आत्मकथा का क्या नाम था ?
उत्तर— फॉल ऑफ ए स्पैरो ।
प्रश्न 8. सालिम अली ने बचपन में एयरगन से किसे घायल किया था ?
उत्तर— गौरैया को ।
प्रश्न 9. सालिम अली का जन्म और मृत्यु कब हुई ?
उत्तर— जन्म 12-11-1896, मृत्यु 20-6-1987।
प्रश्न 10. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा क्या बने रहेंगे ?
उत्तर— पहेली।
प्रश्न 11. सालिम अली केरल की किस वैली को बचाना चाहते थे ?
उत्तर— साइलेंट वैली ।
प्रश्न 12. लेखक को किस अंग्रेजी साहित्यकार की याद आई ?
उत्तर— डी०एच० लॉरेंस की।
प्रश्न 13. सालिम अली कैसी जिंदगी के प्रतिरूप थे ?
उत्तर— सहज जिंदगी के ।
प्रश्न 14. “मुझे नहीं लगता कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा”. लेखक ने यह शब्द किस के लिए कहे हैं ?
उत्तर— सालिम अली के लिए ।
प्रश्न 15. सालिम अली किस की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर जन्मे मिथक थे ?
उत्तर— अहसास की।
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