JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 15 मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 15 मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 15 मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Grammar

Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Grammar

J&K State Board class 9 Hindi Grammar

मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है जो सामान्य अर्थ का बोध न करा कर विशेष अर्थ का बोध कराता है। वाक्य में इसका प्रयोग क्रिया के समान होता है, जैसे- ‘आकाश-पाताल एक करना। इस वाक्यांश का सामान्य अर्थ है ‘पृथ्वी और आकाश को मिलाना’ लेकिन ऐसा सम्भव नहीं है। अतः इसका लक्षण शब्द-शक्ति से विशेष अर्थ होगा- ‘बहुत परिश्रम करना’। इसी प्रकार ‘अंगारे बरसना’ का अर्थ होगा ‘बहुत तेज धूप पड़ना’ ।
अंग-अंग ढीला होना ( बहुत थकावट का अनुभव करना )— आठ घंटे लगातार परिश्रम करने के कारण उसका अंग-अंग ढीला हो गया।

अंग छूना (कसम खाना )— कैकेयी ने अंग छू कर कहा कि राम को वन भेजने में भरत का कोई दोष नहीं ।

अंगूठा दिखाना (इन्कार करना)— जब मैंने अपने मित्र से सहायता मांगी तो उसने अंगूठा दिखा दिया ।
अक्ल का दुश्मन (मूर्ख)— उसे समझाने की कोशिश करना व्यर्थ है। वह तो अक्ल का दुश्मन है।
अंगारों पर पैर रखना (जान-बूझ कर हानिकारक कार्य करना)— अपने माता-पिता को इकलौती संतान होने के कारण उसे अंगारों पर पैर नहीं रखने चाहिए।
अंगारे बरसना (कड़ी धूप पड़ना)— मई-जून की दोपहरी में अंगारे बरसाते हैं। अण्ड-वण्ड बकना (भला-बुरा कहना ) – तुम उसकी अनुपस्थिति में अण्ड-वण्ड बक रहे हो । यदि उसे पता चल गया तो होश ठिकाने लगा देगा।
अन्त बिगाड़ना (कार्य का अन्तिम फल बिगाड़ देना)— अब तक तो तुमने ईमानदारी से काम किया है। भला अब रिश्वत लेकर अपना अन्त क्यों बिगाड़ रहे हो ।
अंधे की लकड़ी (एकमात्र सहारा)— मोहन अपने बूढ़े माता-पिता के लिए अंधे की लकड़ी है।
अन्धेरे घर का उजाला (इकलौता बेटा)— सुरेश अपने मां-बाप के अंधेरे घर का उजाला
अंधे को दीपक दिखाना (नासमझ को उपदेश देना)— भगवान् कृष्ण दुर्योधन के दुष्टतापूर्ण व्यवहार से समझ गए थे कि उसे उपदेश देना अंधे को दीपक दिखाना है।
अन्त पाना (रहस्य पाना )— ईश्वर का अन्त पाना सम्भव नहीं।
अगर-मगर करना (टालमटोल करना)— उसने मेरा एक हजार रुपया देना है। जब भी मांगता हूं अगर-मगर करने लगता है ।
अपना उल्लू सीधा करना (अपना मतलब निकालना)— स्वार्थी मित्रों से बच कर रहना चाहिए। उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करना आता है।
अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना (अपनी हानि आप करना)— जो अपने समय का सदुपयोग नहीं करते वे अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारते हैं।
अपना सा मुंह लेकर रह जाना (बहुत लज्जित होना)— जब सब के सामने उसकी चोरी की पोल खुली तो वह अपना सा मुंह लेकर रह गया।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग रहना)— गणेश न तो अपने सहपाठियों के साथ खेलता है और न ही उनसे बात करता है। वह हर काम में अपनी खिचड़ी अलग पकाता है।
अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धि भ्रष्ट होना)— विद्वान् होते हुए भी रावण की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे अन्यथा वह सीता का अपहरण न करता।
अरण्य – रोदन (व्यर्थ की पुकार अथवा बेअसर रोना-धोना)— अत्याचारी शासक के शासनकाल में गरीबों की पुकार अरण्य-रोदन होकर रह जाती है।
अक्ल के घोड़े दौड़ाना (समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए सोच-विचार करना)— सभी अधिकारी इस विकट समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए अपनी-अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ा रहे हैं।
लोकोक्तियां
लोकोक्ति को ‘कहावत’ भी कहा जाता है। भाषा की प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरों के समान लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया जाता है।”लोक में प्रचलित उक्ति को लोकोक्ति कहते हैं। यह एक ऐसा वाक्य होता है जिसे अपने कथन की पुष्टि के प्रणामस्वरूप प्रस्तुत किया जाता है।” लोकोक्ति के पीछे मानव समाज का अनुभव अथवा घटना विशेष रहती है। मुहावरे के समान इसका भी विशेष अर्थ ग्रहण किया जाता है। जैसे- “हाथ कंगन को आरसी क्या” इसका अर्थ होगा ” प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।” यहां लोक-जीवन का अनुभव प्रकट हो रहा है- यदि हाथ में कंगन पहना हो तो उसे देखने के लिए शीशे की आवश्यकता नहीं होती।
लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर 
मुहावरा एक वाक्यांश है जिसका क्रिया के रूप में प्रयोग होता है। लोकोक्ति एक स्वतन्त्र वाक्य है जिसमें एक पूरा भाव छिपा रहता है। इसको किसी कथन पर घटाया जाता है जबकि मुहावरे के प्रयोग वाक्य के बीच ही होता है।
अकल बड़ी या भैंस (शरीर बड़ा होने की अपेक्षा बुद्धि बड़ी होनी अच्छी है)—गणेश के स्थूल शरीर से घबराने की जरूरत नहीं। वाद-विवाद में बुद्धि की आवश्यकता है न कि शरीर की। अक्ल बड़ी या भैंस वाली कहावत आप जानते ही हैं।
अटका बनिया देय उधार (काबू आने पर ही लोग काम करते हैं)— मैंने जब उसको साइकिल देने से इन्कार कर दिया तो उसने झट से मेरे पचास रुपये दे दिए। ठीक भी हैं अटका बनिया देय उधार ।
अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय (बहुत परिचय रोचकता तथा मान में हानि पहुंचाता है)— वे महात्मा जो वर्ष में एक बार आते थे तो उनका बहुत मान होता था। अब उन्होंने एक मास में दो-दो चक्कर लगाने प्रारंभ कर दिए हैं। अतः उनका विशेष मान नहीं होता। इसी को कहते हैं अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय।
अधजल गगरी छलकत जाए (कम ज्ञान अथवा थोड़े धन वाला व्यक्ति दिखावा अधिक करता है)— महेश ने केवल आठवीं कक्षा पास की हुई है, लेकिन बातें ऐसी करेगा जैसे बी० ए० पास हो। इसी को कहते हैं अधजल गगरी छलकत जाए।
अन्त भले का भला (अच्छे को अन्त में अच्छा फल मिलता है)— मैं तो सच्चाई और ईमानदारी का पथिक हूं। मेरा ‘अन्त भले को भला’ में दृढ़ विश्वास है।
अन्धा क्या चाहे दो आंखें (मनचाही वस्तु प्राप्त होने पर और क्या चाहिए)— जब मैंने उसे चल चित्र देखने के लिए चलने को कहा तो वह प्रसन्नता से झूम उठा और कहने लगाअन्धा क्या चाहे दो आंखें।
अन्धा क्या जाने बसंत की बहार (असमर्थ व्यक्ति गुणों को नहीं पहचान सकता )— उस मूर्ख को गीता का उपदेश देना व्यर्थ है। उस पर तो ‘अन्धा क्या जाने बसंत बहार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
अन्धा बांटे रेवड़ियां फिर-फिर अपनों को देय (पक्षपाती व्यक्ति बार-बार अपनों को ही लाभ पहुंचाता है)— मन्त्री महोदय अपने रिश्तेदारों को ही लाभ पहुंचा रहे हैं। इसी को कहते हैं अन्धा बांटे रेवड़ियां फिर-फिर अपने को देय ।
अन्धी पीसे कुत्ता चाटे (नासमझ अथवा सीधे-सादे व्यक्ति के परिश्रम का लाभ दूसरे व्यक्ति उठाते हैं)— दिनेश जो कुछ कमाता है, उसके मित्र उड़ा कर ले जाते हैं। यहां तो अन्धी पीसे कुत्ता चाटे वाली बात हो रही है।
अन्धों में काना राजा (मूर्खों में थोड़े ज्ञान वाला भी बड़ा मान लिया जाता है)— हमारे गांव में किशोरी लाल ही थोड़ा-सा पढ़ा लिखा व्यक्ति है। सभी उसकी इज्जत करते हैं । इसी को कहते हैं- अन्धों में काना राजा
अन्धे की गैया राम रखवैया (असहाय का भगवान, रक्षक होता है)— वह बुढ़िया हमेशा अपनी कुटिया खाली छोड़कर चली जाती है। पूछने पर उत्तर देती है— अन्धे की गैया राम रखवैया ।
अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग ( भिन्न-भिन्न मत होना)— इस सभा में कोई भी निर्णय नहीं हो सकता। सबकी अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग है।
अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख (अपनी अच्छी वस्तु खोकर दूसरों के आगे हाथ फैलाना)— सेठ जी ने थोड़ी-सी बात पर अपने अनुभवी मुनीम को हटा दिया। अब दूसरों की तलाश में भटक रहे हैं। इसी को कहते हैं- अपना लाल गंवाय के दर-दर मांग – भीख।
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत (हानि हो जाने पर बाद में पछताने से क्या लाभ)— पहले लाख समझाने पर भी तुमने परिश्रम नहीं किया। अब असफलता पर आंसू बहाना व्यर्थ है। क्या तुम नहीं जानते- अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।
आम के आम गुठलियों के दाम (दोहरा लाभ)— आजकल तो अखबार की रद्दी भी अच्छे भाव में बिक जाती है। यह तो आम के आम गुठलियों के दाम वाली बात है।
आ बैल मुझे मार (जान-बूझकर अकारण विपत्ति मोल लेना)— मैंने उसे समझाने की कोशिश की तो वह मेरे ही पीछे पड़ गया। मेरे लिए तो आ बैल मुझे मार वाली बात हो गई ।
आगे कुआं पीछे खाई (दोनों ओर मुसीबत)— शिकारी जंगल में रास्ता भटक गए। आगे जाते हैं तो शेर का डर है पीछे मुड़ते हैं तो रास्ता नहीं सूझता। उनके लिए तो आगे कुआं पीछे खाई वाली बात हो गई है।
आंख ओझल पहाड़ ओझल (जो आंखों से दूर हो जाता है, वह बहुत दूर हो जाता है)— मैं अपने छोटे भाई को पढ़ने के लिए बाहर नहीं भेजना चाहता । सम्भव है वहां वह कुसंग में पड़ जाए। क्योंकि मैं जानता हूं-आंख ओझल पहाड़ ओझल ।
आंख के अन्धे गांठ के पूरे (नासमझ किन्तु पैसे वाले)— महेश तो ऐसे मित्रों की तलाश में रहता है जो आंख के अन्धे गांठ के पूरे हों।
आंख के अंधे नाम नयनसुख (नाम अच्छा किन्तु काम उल्टा )— उसका नाम तो सर्वप्रिय है लेकिन बात करने पर लड़ने को दौड़ता है। उस पर तो ‘आंख के अंधे नाम नयनसुख’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
अकेला चना भाड़ को नहीं फोड़ सकता (एक व्यक्ति कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता)— तुम अकेले उस संस्था का कार्य नहीं सम्भाल सकते। क्या तुम नहीं जानते कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ।
ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया (परमात्मा ने किसी को धनवान् बनाया है और किसी को निर्धन)— मुम्बई जैसे बड़े नगरों में एक ओर तो धनवान् हैं जो महलों में रहते हैं, दूसरी ओर निर्धन हैं जिनके पास कुटियां भी नहीं। इसी को कहते हैं ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे (अपराधी पूछने वाले को ही दोषी ठहराए )— एक तो मेरे रुपये उठाकर ले गए, दूसरा पूछने पर मुझे ही डांट रहे हो। इसी को कहते हैं – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
उल्टे बांस बरेली को (विपरीत कार्य )— बनारस का आम तो वैसे ही प्रसिद्ध है और तुम यहां से घटिया किस्म का आम भेज रहे हो। यह तो उल्टे बांस बरेली को वाली बात हो रही है।
उस दाता से सूम भला जो जल्दी देय जवाब ( टालमटोल की अपेक्षा तुरन्त जवाब देना अच्छा है)अगर— मगर करने की अपेक्षा उसे साफ जवाब दे दो। प्रसिद्ध भी है- उस दाता से सूम भला जो जल्दी देय जवाब।
रहता ऊधो का लेना माधो का देना (किसी से लेन-देन न होने पर व्यक्ति है)— वह निष्पक्ष होने के कारण सदा मस्त रहता है। उसे न ऊधी का लेना न भाभी का देना है।
ऊंट के मुंह में जीरा (अधिक खाने वाले को थोड़ी-सी चीज मिलना)— उस पेटू के लिए तो दो कचौरियां ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।
ऊंची दुकान फीका पकवान (दिखावा अधिक वास्तविकता कम)— उस दुकान की मिठाइयों की बड़ी प्रशंसा सुन रखी थी लेकिन खाने में विशेष स्वादिष्ट नहीं। इसी को कहते है ऊंची दुकान फीका पकवान ।
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