PSEB Solutions for Class 10 English Main Course Book Poem 3 A Ballad of Sir Pertab Singh
PSEB Solutions for Class 10 English Main Course Book Poem 3 A Ballad of Sir Pertab Singh
PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Poem 3 A Ballad of Sir Pertab Singh
A Ballad of Sir Pertab Singh Poem Summary in English
A Ballad of Sir Pertab Singh Introduction:
Now there arose a problem. There were only three Englishmen in all Jodhpore. They could not find a fourth one to carry the dead man’s bier. Religion did not allow a Hindu to carry the dead body of a foreigner. So, the king was requested to send a sweeper. But the king himself came forward to carry his friend’s dead body to the grave. The king was warned that he would lose his caste by doing so.
Sir Pertab Singh paid no heed to it. Next morning the Brahmins came to Pertab Singh. They informed him that he had been declared an outcaste. Pertab Singh angrily told the Brahmins that there was a caste higher than any other caste in the world. It was the caste of a true soldier. The king belonged to this caste and had no fear of losing it.
A Ballad of Sir Pertab Singh Summary in English:
This ballad shows the folly of the Hindu caste system. Sir Pertab Singh was the king of Jodhpore. It was the first year of his rule when a rider came to his palace. This rider was a young Englishman. He was every inch a soldier. On seeing him Pertab’s heart lit up with joy. The two became fast friends.
Now the two friends spent most of their time together. They told each other their stories of love and adventure. Thus they passed their days joyfully. But unfortunately, after some days, Pertab’s friend died all of a sudden. The king’s heart was filled with sorrow. The shadow of grief spread over his palace.
Next morning the Englishman’s dead body was placed in a coffin. It was to be carried to the place of burial. But there arose a problem. There were only three men of his race and creed in all Jodhpore. They could not find a fourth one to carry the bier. Religion did not allow a Hindu to carry the bier of a foreigner. So they requested the king to send a sweeper. A sweeper, they said, had no caste to lose.
But the king himself came forward to carry the bier of his friend. People were filled with surprise. They told the king that he would lose his caste if he did so. But the king paid no heed to what they said. No loss could be greater to him than the loss of his friend. Without caring for what the people said, he became the fourth pall-bearer. He carried the bier of his friend in the sight of all Jodhpore.
Next morning some Brahmins came to Pertab Singh. They said that a very fearful thing had happened. The king had lost his caste for what he had done. At this the king flew into a rage. He said that his caste was above the caste of any Brahmin or Rajput. It was immortal. It was wide as the world, free as the air, and pure as the pool of death. It was the caste of all noble hearts. It was the caste of a true soldier. Sir Pertab Singh had no fear of losing it.
A Ballad of Sir Pertab Singh Poem Summary in Hindi
A Ballad of Sir Pertab Singh Introduction:
यह गीत हिन्दू जाति-प्रथा की मूर्खता को नंगा करता है। सर प्रताब सिंह जोधपुर का राजा था। एक बार एक घुड़सवार उसके महल में आया। वह घुड़सवार एक अंग्रेज़ था। वह पूर्ण रूप से एक सैनिक प्रतीत होता था। दोनों पक्के मित्र बन गए। अब वे अपना अधिकतर समय इकट्ठे ही बिताया करते थे। एक दिन सर प्रताब सिंह के मित्र की अचानक मृत्यु हो गई। राजा का दिल दुःख से भर गया। अब एक समस्या पैदा हो गई। पूरे जोधपुर में केवल तीन अंग्रेज़ व्यक्ति थे। उन्हें मृत व्यक्ति की अरथी उठाने के लिए चौथा आदमी न मिल सका।
धर्म एक हिन्दू को इजाजत नहीं देता था कि वह किसी विदेशी के मृत शरीर को उठाकर ले जाए। इसलिए राजा से प्रार्थना की गई कि वह किसी मेहतर को भेज दे। किन्तु अपने मित्र के शव को उठा कर कब्र तक ले जाने के लिए राजा स्वयं आ गया। राजा को चेतावनी दी गई कि ऐसा करने से वह अपनी जाति खो बैठेगा। सर प्रताब सिंह ने इसकी ओर कोई ध्यान न दिया। अगली प्रातः ब्राह्मण प्रताब सिंह के पास आए। उन्होंने उसे सूचित किया कि उसे जाति में से निकाल दिया गया था। प्रताब सिंह ने क्रोधपूर्वक ब्राह्मणों से कहा कि एक जाति ऐसी थी जो प्रत्येक अन्य जाति से ऊंची थी। यह एक सच्चे सैनिक की जाति थी। राजा इसी जाति से सम्बन्ध रखता था तथा इसे खोने का उसे कोई भय नहीं था।
A Ballad of Sir Pertab Singh Summary in Hindi:
कविता का विस्तृत सार यह गीत हिन्दू जाति-प्रथा की मूर्खता को स्पष्ट करता है। सर प्रताब सिंह जोधपुर का राजा था। उसके राज्यकाल का पहला वर्ष था जब एक घुड़सवार उसके महल में आया। यह घुड़सवार एक युवा अंग्रेज़ था। वह पूरी तरह से एक सैनिक प्रतीत हो रहा था। उसे देखकर प्रताब का दिल खुशी से भर गया। दोनों पक्के मित्र बन गए। – दोनों मित्र अब अपना अधिकतर समय इकट्ठे ही गुजारा करते थे। वे एक-दूसरे को अपने प्यार और पराक्रम की कहानियां सुनाया करते थे। इस प्रकार वे अपने दिन खुशी-खुशी बिताते चले गए। किन्तु दुर्भाग्यवश कुछ दिनों के पश्चात् प्रताब के मित्र की अचानक मृत्यु हो गई। राजा का दिल दुःख से भर गया। दुःख की परछाईं महल के ऊपर छा गई।
अगली प्रातः उस अंग्रेज़ के शव को एक ताबूत में रख दिया गया। इसे दफनाने की जगह पर ले जाया जाना था। किन्तु एक समस्या पैदा हो गई। पूरे जोधपुर में उसकी जाति तथा धर्म के केवल तीन लोग थे। उन्हें अरथी उठाने के लिए चौथा व्यक्ति न मिल सका। धर्म एक हिन्दू को इस बात की इजाजत नहीं देता था कि वह किसी विदेशी की अरथी को उठाए। इसलिए उन्होंने राजा से प्रार्थना की कि वह किसी मेहतर को भेज दे। उन्होंने कहा कि एक मेहतर की कोई जाति नहीं होती थी जिसे वह खो सकता हो।
किन्तु राजा अपने मित्र की अरथी को उठाकर ले जाने के लिए स्वयं आगे आया। लोग हैरानी से भर गए। उन्होंने राजा से कहा कि वह अपनी जाति खो बैठेगा यदि उसने ऐसा किया। किन्तु राजा ने उनके द्वारा कही गई बात की तरफ कोई ध्यान न दिया। अपने मित्र की हानि (मृत्यु) से बड़ी हानि उसके लिए कोई अन्य नहीं हो सकती थी। इस बात की कोई परवाह किए बिना कि लोग क्या कह रहे थे वह अरथी उठाने वाला चौथा व्यक्ति बन गया। वह पूरे जोधपुर की आंखों के सामने अपने मित्र की अरथी को उठा कर ले गया।
अगली प्रातः कुछ ब्राह्मण प्रताब सिंह के पास आए। उन्होंने उसे बतलाया कि एक बहुत भयानक बात हो गई थी। राजा ने जो किया था उसके कारण वह अपनी जाति खो बैठा था। यह सुनकर राजा क्रोध से भर गया। उसने कहा कि उसकी जाति किसी ब्राह्मण या राजपूत की जाति से अधिक ऊंची थी। यह कभी न मिट सकने वाली थी। यह संसार जितनी विशाल, पवन जितनी स्वतन्त्र और मृत्यु के सरोवर जितनी पवित्र थी। यह सभी सच्चे दिल वाले व्यक्तियों की जाति थी। सर प्रताब सिंह को इसके खो जाने का कोई भय नहीं था।
A Ballad of Sir Pertab Singh Poem Translation in Hindi
(1) (Lines 1-4)
In the first year of him that first
Was Emperor and King,
A rider came to the Rose-red House,
The House of Pertab Singh.
अनुवाद-उसे सम्राट् तथा राजा बने हुए अभी पहला ही वर्ष चल रहा था जब एक घुड़सवार प्रताब सिंह के लाल-गुलाबी महल में आया।
(2) (Lines 5 – 8)
Young he was and an Englishman,
And a soldier, hilt and heel,
And he struck fire in Pertab’s heart
As the steel strikes on steel.
अनुवाद-वह घुड़सवार जवान था तथा एक अंग्रेज़ था। वह सिर से पांव तक पूरा सिपाही था। उसे देखकर प्रताब सिंह के दिल से ऐसी ज्वाला उठी जो फौलाद के साथ फौलाद के टकराने पर निकलती है।
(3) (Lines 9-12)
Beneath the morning stars they rode,
Beneath the evening sun,
And their blood sang to them as they rode
That all good wars are one.
अनुवाद-वे प्रातःकाल के तारों की छांव में इकट्ठे घुड़सवारी किया करते। सायंकाल को सूर्य डूबने के समय भी वे इकटे घुड़सवारी किया करते तथा जब वे घुड़सवारी कर रहे होते तो उन्हें अपने खून में से यही संगीत सुनाई देता कि भले कामों के लिए लड़ी जाने वाली सभी लड़ाइयां एक जैसी होती हैं।
(4) (Lines 13-16)
They told their tales of the love of women,
Their tales of East and West,
But their blood sang that of all their loves
They loved a soldier best.
अनुवाद-वे एक-दूसरे को अपने-अपने प्यार की कहानियां सुनाते। वे पूर्व के देशों की तथा पश्चिम के देशों की कहानियां सुनाते। किन्तु उनके खून में से यही संगीतमय आवाजें आतीं कि वे सबसे अधिक एक सैनिक से ही प्यार करते थे।
(5) (Lines 17-20)
So ran their joy the allotted days,
Till at the last day’s end
The shadow stilled the Rose-red House
And the heart of Pertab’s friend.
अनुवाद-इस प्रकार उनका प्रसन्नतापूर्ण जीवन निश्चित दिनों तक चलता रहा। अन्त में मौत की परछाईं ने लाल-गुलाबी (पत्थर के बने हुए) महल को सुला दिया तथा प्रताब के मित्र के दिल को भी (अर्थात् प्रताब के उस अंग्रेज़ मित्र की मृत्यु हो गई)।
(6) (Lines 21-24)
When morning came, in narrow chest,
The soldier’s face they hid,
And over his fast-dreaming eyes
Shut down the narrow lid.
अनुवाद-जब प्रातः हुई तो उन्होंने एक तंग बक्से (ताबूत) में उस सैनिक के चेहरे को छिपा दिया तथा उसकी गहरी स्वप्नों से भरी आँखों से ऊपर ताबूत के तंग ढक्कन को बन्द कर दिया।
(7) (Lines 25-28)
Three were there of his race and creed,
Three only and no more :
They could not find to bear the dead
A fourth in all Jodhpore.
अनुवाद-वहां उस अंग्रेज़ की अपनी कौम और जाति के तीन व्यक्ति थे। वे केवल तीन ही थे और कोई नहीं था। अरथी को उठाने के लिए पूरे जोधपुर में उन्हें कोई चौथा व्यक्ति न मिल सका।
(8) (Lines 29-32)
‘O Maharaj, of your good grace
Send us a sweeper here;
A sweeper has no caste to lose
Even by an alien bier.’
अनुवाद-“ओ महाराज, आपकी बड़ी कृपा होगी, यदि आप हमारे लिए यहां एक मेहतर भेज दें। एक मेहतर की जाति भ्रष्ट नहीं हो सकती है यद्यपि वह किसी विदेशी की (अथवा किसी अन्य जाति के व्यक्ति की) अरथी को भी कन्धा लगा दे।”
(9) (Lines 33-36)
‘What need, What need ?’ said Pertab Singh,
And bowed his princely head.
‘I have no caste, for I myself
Am bearing forth the dead.’
अनुवाद-“क्या ज़रूरत है, क्या ज़रूरत है ?” प्रताब सिंह ने कहा। यह कहते हुए उसने अपना शाही सिर झुकाया तथा फिर कहा, “मेरी कोई जाति नहीं है, क्योंकि मैं स्वयं मृतक को कन्धा देने जा रहा हूं।”
(10) (Lines 37-40)
O Maharaj, O passionate heart,
Be wise, bethink you yet :
That which you lose today is lost
Till the last sun shall set.’
अनुवाद-“ओ महाराज, ओ दया के सागर, बुद्धि से काम लीजिए। अभी भी आप विचार कर लीजिए। जो आप आज गंवा बैठेंगे वह अन्तिम सूर्य के डूबने तक (अर्थात् संसार के रहने तक) खो बैठेंगे।”
(11) (Lines 41-44)
‘God only knows,’ said Pertab Singh,
That which I lose today :
And without me no hand of man
Shall bear my friend away.
अनुवाद-प्रताब सिंह ने कहा, “वह तो केवल ईश्वर ही जानता है कि मैं आज क्या गंवा बैठा हूँ। तथा मेरे अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति का हाथ मेरे मित्र (की अरथी) को उठा कर नहीं ले जाएगा।”
(12) (Lines 45-48)
Stately and slow and shoulder-high
In the sight of all Jodhpore,
The dead went down, by the rose-red steps
Upheld by bearers four.
अनुवाद-पूरे जोधपुर की आंखों के सामने शाही ढंग से धीरे-धीरे कन्धों पर उठाए गए मृत शरीर को लालगुलाबी (पत्थर की बनी) सीढ़ियों के नीचे ले जाया गया, जिसे चार व्यक्तियों ने उठाया हुआ था।
(13) (Lines 49-52)
When dawn relit the lamp of grief
Within the burning East
There came a word to Pertab Singh,
The soft word of a priest.
अनुवाद-जब अगली प्रातः होने पर जलती हुई पूर्व दिशा में सूर्य रूपी दुःख का दीपक फिर से चमकने लगा तो प्रताब सिंह को एक पुजारी की तरफ से नम्रतापूर्ण सन्देश प्राप्त हुआ।
(14) (Lines 53-56)
He woke, and even as he woke
He went forth all in white,
And saw the Brahmins bowing there
In the hard morning light.
अनुवाद-वह जाग उठा तथा जागते ही पूरे सफ़ेद वस्त्र पहने हुए बाहर आया। वहां उसने प्रातः की दुःखदायक रोशनी में ब्राह्मणों को सिर झुकाए हुए खड़े देखा।
(15) (Lines 57-60)
‘Alas ! O Maharaj, alas!
O noble Pertab Singh
For here in Jodhpore yesterday
Befell a fearful thing.
अनुवाद-“बहुत शोक की बात है ! ओ महाराज, बहुत शोक की बात है ! ओ भली आत्मा वाले प्रताब सिंह जी ! क्योंकि कल यहां जोधपुर में बहुत भयानक बात हो गई।”
(16) (Lines 61-64)
o here in Jodhpore yesterday
A fearful thing befell.’
‘A fearful thing,’ said Pertab Singh,
God and my heart know well.
अनुवाद-“हां, कल यहां जोधपुर में एक बहुत भयानक बात हो गई।” “हां, एक भयानक बात हो गई है,” प्रताब सिंह ने कहा, “यह तो ईश्वर और मेरा दिल अच्छी तरह से जानते हैं।”
(17) (Lines 65-68)
I lost a friend.’ ‘More fearful yet !
When down these steps you passed
In sight of all Jodhpore you lost
O Maharaj ! – your caste.
अनुवाद-“मैं एक मित्र खो बैठा हूँ।” “इससे भी अधिक भयानक बात हो गई है। जब पूरे जोधपुर की नज़रों के सामने इन सीढ़ियों से नीचे को आप चलकर गए थे, तब ओ महाराज, आप अपनी जाति खो बैठे थे।”
(18) (Lines 69 – 72)
Then leapt the light in Pertab’s eyes
As the flame leaps in smoke,
“Thou priest ! thy soul hath never known
The word thy lips have spoke.
अनुवाद-तब प्रताब सिंह की आंखों में क्रोध की ज्वाला ऐसे चमक उठी जैसे धुएं में से आग चमक उठती है। “अरे पुजारी ! तुम्हारी आत्मा उन शब्दों के अर्थ को कभी समझ नहीं सकती है जो तुम्हारे होठों में से निकल रहे हैं।”
(19) (Lines 73-76)
‘My caste ! Know you there is a caste
Above my caste or thine,
Brahmin and Rajput are but dust
To that immortal line :
अनुवाद-“तुम मेरी जाति की बात करते हो ! तुम जान लो कि एक जाति ऐसी भी है जो मेरी जाति से तथा तुम्हारी जाति से भी ऊंची है। उस कभी न मिटने वाली जाति के सामने किसी ब्राह्मण अथवा राजपूत की जाति मात्र धूलि समान है।”
(20) (Lines 77—80)
“Wide as the world, free as the air,
Pure as the pool of death
The caste of all Earth’s noble hearts
Is the right soldier’s faith.
अनुवाद-“एक सच्चे सैनिक की जाति संसार जितनी विशाल, वायु जितनी स्वतन्त्र तथा मृत्यु के सरोवर के समान पवित्र होती है। तथा यह पूरी धरती के सज्जन पुरुषों की जाति होती है।”
Objective Type Questions
Question 1.
Sir Pertab Singh lived in …………… House.
(i) Red-rose
(ii) Black-rose
(iii) Rose-red
(iv) Rose-blood.
Answer:
(iii) Rose-red
Question 2.
Sir Pertab Singh’s friend was ……………. soldier.
(i) an Indian
(ii) a Chinese
(iii) an English
(iv) a Pakistani.
Answer:
(iii) an English
Question 3.
According to the priests, Pertab Singh lost his caste forever. (True False)
Answer:
True.
Answer each of the following in one word / phrase / sentence :
Question 1.
Who wrote the poem, ‘A Ballad of Sir Pertab Singh’ ?
Answer:
Sir Henry Newbolt.
Question 2.
What was Sir Pertab Singh’s house called ?
Answer:
It was called Rose-red House.
Question 3.
Who came forward to carry the bier of Pertab’s English friend ?
Answer:
Sir Pertab Singh himself.
Question 4.
What did the Brahmins tell Sir Pertab Singh when he carried his English friend’s bier ?
Answer:
They told Pertab Singh that he had lost his caste.
Question 5.
What does the poem, ‘A Ballad of Sir Pertab Singh’ bring out ?
Answer:
It brings out the folly of caste system.
Complete the following :
1. Sir Pertab Singh was the king of ……
2. ….. is the only true caste.
3. Sir Pertab Singh did not care about the warning of the …….
Answer:
1. Jodhpore
2. Humanity
3. priests.
Write True or False against each statement:
1. Sir Pertab Singh did not believe in the caste system.
2. Pertab’s friend was a German soldier.
3. No one is high or low by caste.
Answer:
1. True
2. False
3. True.
Choose the correct option for each of the following :
Question 1.
Sir Pertab Singh liked the English soldier because he looked every inch a …………
(a) lover
(b) soldier
(c) traitor
(d) joker.
Answer:
(b) soldier
Question 2.
The two comrades told each other the stories of ………
(a) saints and prophets
(b) kings and knights
(c) gods and goddesses
(d) love and adventure.
Answer:
(d) love and adventure.
Reading Comprehension
(1) In the first year of him that first
Was Emperor and King,
A rider came to the Rose-red House,
The House of Pertab Singh.
1. Name the poem and the poet.
2. Who came to Pertab Singh’s house ?
3. What was the house called ?
4. How long had Pertab Singh been the King ?
Answer:
1. The name of the poem is ‘A Ballad of Sir Pertab Singh’. The poet is Sir Henry
2. A young English rider came to Pertab Singh’s house.
3. The house was called Rose-red House.
4. He was yet in the first year of his rule
(2) Beneath the morning stars they rode,
Beneath the evening sun,
And their blood sang to them as they rode
That all good wars are one.
1. Who were the riders ?
2. How did they feel while riding together ?
3. How did they feel about wars ?
4. How long did the two continue riding together ?
Answer:
1. The two riders were Pertab Singh and an English soldier.
2. They felt very brave and happy.
3. They felt that all good wars are one.
4. They kept riding from early dawn till it was evening.
(3) So ran their joy the allotted days,
Till at the last day’s end
The shadow stilled the Rose-red House
And the heart of Pertab’s friend.
1. Who was Pertab’s friend ?
2. What happened to the friend ?
3. How did the two feel while living together ?
4. Explain : “The shadow stilled the Rose-red House.?
Answers ·
1. Pertab’s friend was an English soldier.
2. The friend died suddenly.
3. They felt very happy while living together.
4. Pertab’s heart was filled with sorrow over his friend’s death. The whole palace was covered in the shadow of grief.
(4) There were three of his race and creed,
Three only and no more :
They could not find to bear the dead
A fourth in all Jodhpore.
‘O Maharaj, of your good grace
Send us a sweeper here;
A sweeper has no caste to lose
Even by an alien bier.’
1. “There were three of his race and creed. Which race has been mentioned here ?
2. What could they not find in all Jodhpore ?
3. What did they request the king to do ?
Answers
1. The race and creed of the Englishman has been mentioned here.
2. They could not find a fourth one of the English race and creed in all Jodhpore to carry the bier of a foreigner:
3. They requested the king to send a sweeper to carry the bier of a foreigner.
(5) What need, what need ?’ said Pertab Singh,
And bowed his princely head.
‘I have no caste, for I myself
Am bearing forth the dead.’
1. What need does Pertab Singh refer to ?
2. Who came forward to carry the bier ?
3. Whose bier was it ?
4. Why did Pertab Singh say, “I have no caste.” ?
Answer:
1. It was the need of a fourth person to carry the bier.
2. Pertab Singh himself came forward to carry the bier.
3. It was the bier of an English soldier who was Pertab Singh’s friend.
4. He said this because he did not believe in the caste system
(6) “God only knows,’ said Pertab Singh,
“That which I lose today :
And without me no hand of man,
Shall bear my friend away.’
1. Name the poem and the poet.
2. How did he feel over this loss ?
3. What did he decide to do ?
4. What did Pertab Singh say he had lost ?
Answer:
1. The name of the poem is ‘A Ballad of Sir Pertab Singh’. The poet is Sir Henry Newbolt.
2. He felt very unhappy over the loss.
3. He decided to carry his friend’s bier himself.
4. He said he had lost a very dear friend.
PSEB Solutions for Class 10 English Main Course Book Poem 3 A Ballad of Sir Pertab Singh
Question 1.
Write a summary of the poem in your own words.
Answer:
Pertab Singh was the king of Jodhpore. He had a friend who was an Englishman. Suddenly, the friend died. Pertab Singh himself carried his friend’s bier. He did not care for the warning of priests who said that he would lose his caste by carrying the bier of an Englishman.
प्रताब सिंह जोधपुर का राजा था। उसका एक अंग्रेज़ मित्र था। अचानक मित्र की मृत्यु हो गई। प्रताब सिंह ने स्वयं अपने मित्र की अरथी उठाई। उसने पण्डितों की चेतावनी की परवाह न की जो कहते थे कि एक अंग्रेज़ की अरथी उठाने से वह अपनी जाति खो बैठेगा।
Question 2.
What is the central idea of the poem ?
Answer:
This poem brings out the folly of the caste system. All men are equal in the eyes of God. No one is high or low by caste. Humanity is the only true caste. A caste that divides men from men can’t be called a true caste.
यह कविता जाति-प्रथा की मूर्खता को व्यक्त करती है। सभी लोग ईश्वर की दृष्टि में बराबर हैं। जाति से कोई बड़ा या छोटा नहीं होता। मानवता ही एकमात्र सच्ची जाति है। ऐसी जाति जो मनुष्यों को मनुष्यों से बांटती हो, उसे सच्ची जाति नहीं कहा जा सकता।
Question 3.
Who was Sir Pertab Singh ?
Answer:
Sir Pertab Singh was the king of Jodhpore. He lived in the Red-rose House. He was a true friend. He did not believe in the caste system. For him, the caste of a soldier was the only true caste.
सर प्रताब सिंह जोधपुर का राजा था। वह रेड-रोज हाऊस में रहता था। वह एक सच्चा मित्र था। वह जाति प्रथा में विश्वास नहीं रखता था। उसके अनुसार एक सैनिक की जाति एकमात्र सच्ची जाति होती है।
Question 4.
Why did Pertab Singh immediately like the English soldier ?
Answer:
The Englishman looked every inch a soldier. Pertab Singh himself was a true soldier. That was why he liked him immediately. He did not believe in any differences of caste. For him the caste of a soldier was the only true caste.
अंग्रेज़ पूरी तरह से एक सच्चा सैनिक दिखाई देता था। प्रताब सिंह स्वयं एक सच्चा सैनिक था। इस कारण से वह उसे तुरन्त पसन्द करने लगा। वह जाति के किसी भेद-भाव में विश्वास नहीं करता था। उसके लिए एक सैनिक की जाति ही एकमात्र सच्ची जाति थी।
Question 5.
How did the two comrades spend their days ?
Answer:
The two comrades spent their days together. They would go riding in the morning and in the evening. They told each other stories of love and adventure. Thus they passed their days happily. Then one day the English soldier died suddenly.
दोनों मित्र अपने दिन एक-साथ बिताया करते थे। वे प्रातः और सायं घुड़सवारी करने के लिए जाया करते थे। वे एक-दूसरे को प्यार और साहस की कहानियां सुनाया करते। इस तरह उन्होंने अपने दिन प्रसन्नतापूर्वक बिताए। फिर एक दिन अंग्रेज़ सैनिक की अचानक मृत्यु हो गई।
Question 6.
Why was Pertab Singh asked to send a sweeper when the Englishman died ?
Answer:
Four men were needed to carry the Englishman’s bier. But in Jodhpore, they could find only three Englishmen. No one from the Hindu castes was supposed to carry the bier of a non-Hindu. So Pertab Singh was asked to send a sweeper. A sweeper has no caste to lose.
अंग्रेज़ आदमी की अरथी उठाने के लिए चार आदमियों की ज़रूरत थी। किन्तु जोधपुर में वे केवल तीन अंग्रेज़ ही ढूँढ पाये। हिन्दू जातियों में से कोई भी ऐसे आदमी की अरथी उठाने को तैयार नहीं होना था जो हिन्दू न हो। इसलिए प्रताब सिंह से कहा गया कि वह एक मेहतर को भेज दे। एक मेहतर की कोई जाति नहीं होती जिसे वह खो बैठे।
Question 7.
What was the problem that arose when the Englishman died ?
Answer:
Four men were needed to carry the Englishman’s bier. But in Jodhpore, they could find only three Englishmen. No one from the Hindu castes was supposed to carry the bier of a non-Hindu. Thus a problem arose to find the fourth bearer.
अंग्रेज़ की अरथी को उठाने के लिए चार आदमियों की ज़रूरत थी। किन्तु जोधपुर में वे केवल तीन अंग्रेज़ ही ढूँढ पाये। हिन्दू जातियों में से कोई भी ऐसे आदमी की अरथी उठाने को तैयार नहीं होना था जो हिन्दू न हो। इसलिए चौथे उठाने वाले को ढूंढने की समस्या पैदा हो गई।
Question 8.
What, according to the priests, had Pertab Singh lost ? Why?
Answer:
The priests said that Pertab Singh had lost his caste. He had carried the bier of a foreigner. Religion did not allow this. Pertab Singh had defied religion. He had made himself impure and thus lost his caste. However, Pertab Singh did not care what the priests said.
पुरोहितों ने कहा कि प्रताब सिंह अपनी जाति खो चुका था। उसने एक विदेशी की अरथी को उठाया था। धर्म इस की इजाजत नहीं देता था। प्रताब सिंह ने धर्म का उल्लंघन किया था। उसने स्वयं को अपवित्र बना लिया था और इस तरह अपनी जाति खो बैठा था। किन्तु प्रताब सिंह ने उस बात की परवाह न की जो पुरोहितों ने कही।
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