JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 2 दोहे

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 2 दोहे

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 2 दोहे (बिहारी)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

कवि-परिचय

जीवन – बिहारी रीतिकाल के कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे मुख्य रूप से शृंगारी कवि हैं। उनका जन्म ग्वालियर के वसुआ गोविंदपुर गाँव में सन् 1595 ई० में हुआ था। जब ये सात-आठ वर्ष के थे तो इनके पिता ओरछा चले गए थे, जहाँ इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य की शिक्षा प्राप्त की। ये कुछ वर्ष जयपुर में भी रहे थे। इनका संपर्क रहीम से भी था । वे राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे । सन् 1663 ई० में उनका देहांत हो गया था।
रचनाएँ – बिहारी ने अपनी सारी प्रतिभा एक ही पुस्तक के निर्माण में लगा दी जो साहित्य जगत् में ‘बिहारी सतसई’ नाम से विख्यात है। इसमें 713 दोहे हैं। प्रत्येक दोहे के भाव गांभीर्य को देखकर पता चलता है कि बिहारी में गागर में सागर भरने की क्षमता थी । उन्होंने अपने एक ही दोहे के प्रभाव से राजा जयसिंह को सचेत कर दिया था। राजा जयसिंह आरंभ में विलासी राजा था । वह अपनी नव – विवाहिता पत्नी पर इतना आसक्त हुआ कि उसने राज दरबार के कामों से मुँह मोड़ लिया था। लेकिन बिहारी के निम्नलिखित दोहे ने राजा जयसिंह की आँखें खोल दीं—
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल । 
अलि – कलि ही सौं बिंध्यो, आगे कौन हवाल ॥
साहित्यिक विशेषताएं – बिहारी ने अपनी सतसई की रचना मुक्तक शैली में की है। इसमें शृंगार, भक्ति एवं नीति की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। सभी आलोचकों ने सतसई के महत्त्व को स्वीकार किया है ।
बिहारी को शृंगार रस के चित्रण में अधिक सफलता प्राप्त हुई है। शृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग पर बिहारी ने दोहों की रचना की है। राधा एवं कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ा का वर्णन कितना स्वाभाविक वर्णन है—
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करें भौंहनि हँसे, दैन कहैं नटि जाय ॥
संयोग के समान बिहारी का वियोग वर्णन भी अनूठा है, पर कहीं-कहीं अतिशयोक्ति के प्रभाव ने अस्वाभाविकता ला दी है—
इति आवति चलि जाति उत, चली छः सातक हाथ ।
चढ़ी हिंडोरै सी रहैं, लगी उसांसनु साथ ॥
बिहारी ने सतसई में प्रकृति के सौंदर्य का भी चित्रण किया है । इस सौंदर्य में ऋतु वर्णन का विशेष महत्त्व है। वसंत ऋतु की मादकता का चित्रण देखिए—
छकि रसाल सौरभ सने, मधुर माधुरी गंध |
ठौर ठौर झांरत झंपत, भौंर-झौंर मधु अंध ॥ 
बिहारी भक्ति-भावना से भी प्रेरित रहे हैं। उनके बहुत से दोहों में दीनता एवं विनय का भाव व्यक्त हुआ है—
कब को टेरत दीन ह्वै, होर न स्याम सहाइ ।
तुमहूं लागी जगत गुरु, जग नाइक जग बाइ ॥
बिहारी जी ने ब्रज भाषा को अपनाया है। भाषा पर बिहारी का पूरा अधिकार है। इसका चित्रण बड़ा सुंदर एवं स्वाभाविक है। बिहारी के प्रत्येक दोहे में किसी-न-किसी अलंकार का प्रयोग हुआ है। शुक्ल जी के अनुसार, “बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है । वाक्य रचना व्यवस्थित है और शब्दों के रूपों का व्यवहार एक निश्चित प्रणाली पर है। ब्रज भाषा के अनेक कवियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़ कर उन्हें विकृत कर दिया है। परंतु बिहारी इस दोष से मुक्त है।” बिहारी की भाषा पर बुंदेलखंडी, पूर्वी तथा अरबी-फ़ारसी के शब्दों का भी प्रभाव रहा है।

दोहों का सार

हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित दोहे कविवर बिहारी द्वारा रचित ग्रंथ ‘सतसई’ से लिए गए हैं। इन दोहों में उन्होंने भक्ति, नीति तथा श्रृंगारिक भावों की सुंदर अभिव्यक्ति की है। बिहारी कहते हैं कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीतांबर इस प्रकार सुशोभित हो रहा है मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। दूसरे दोहे में कवि ने स्पष्ट किया है कि गर्मी की भयंकरता के कारण जंगल में साँप, मोर, हिरण और शेर अपनी शत्रुता को त्यागकर एक साथ छाया में एकत्रित हो गए हैं। उन्हें देखकर जंगल भी तपोवन के समान प्रतीत होता है। तीसरे दोहे में गोपियों का श्री कृष्ण के प्रति प्रेम व्यक्त हुआ है। गोपियां श्री कृष्ण से बातें करने के लालच के कारण उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं। श्री कृष्ण उनसे बांसुरी मांगते हैं तो वे मना कर देती हैं। मना करते समय उनका भौहों से हास्य प्रकट करना श्री कृष्ण को संदेह में डाल देता है और वे पुनः अपनी बाँसुरी माँगने लगते हैं। चौथे दोहे में नायक और नायिका की संकेतों में बातचीत का वर्णन है। नायक आँखों के संकेतों से नायिका से कुछ कहता है। नायिका उसे मना कर देती है। नायक उसके मना करने के ढंग पर रीझ जाता है तो नायिका झूठी खीझ प्रकट करती है। पुनः जब दोनों के नेत्र मिलते हैं तो दोनों प्रसन्न हो जाते हैं और एक-दूसरे को देखकर लजा जाते हैं। इस प्रकार वे भीड़ भरे भवन में भी बातचीत कर लेते हैं। पाँचवें दोहे में कवि कहता है कि प्रेमियों के नेत्र मिलने पर उनमें प्रेम होता है। वे आपस में तो प्रेम के बंधन में बँध जाते हैं किंतु परिवार से छूट जाते हैं। उनके इस प्रेम को देखकर दुष्ट लोग कष्ट का अनुभव करते हैं। छठे दोहे में एक सखी द्वारा राधा को समझाने का वर्णन है। राधा श्री कृष्ण से रूठी हुई है। उसकी सखी उसे समझाती है कि उसके सौंदर्य पर तो उर्वशी नामक अप्सरा को भी न्यौछावर किया जा सकता है। वह तो श्री कृष्ण के हृदय में उसी प्रकार समाई है जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय पर लगा रहता है। सातवें दोहे में कवि ने गर्मी की भयंकरता का वर्णन किया है। ज्येष्ठ मास में गर्मी की प्रचंडता इतनी अधिक है कि छाया भी छाया की तलाश में है और वह घने जंगल में और घरों में जाकर छिप गई है। आठवें दोहे में विरहणी नायिका की विरह व्यथा को उसी के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वह परदेस गए अपने प्रियतम को पत्र लिखने में असमर्थ है और उस तक संदेश भिजवाने में उसे लज्जा आती है। अंततः वह अपने प्रियतम से कहती है कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना, वह तुम्हें मेरे दिल की बात कह देगा। नौवें दोहे में कवि ने श्री कृष्ण से अपने संकट दूर करने की प्रार्थना की है। दसवें दोहे में कवि कहता है कि बड़े लोगों के कार्यों की पूर्ति छोटे लोगों से नहीं हो सकती। बड़े आकार के नगाड़ों का निर्माण कभी भी चूहे जैसे छोटे जीव की खाल से नहीं हुआ करता । अंतिम दोहे में बिहारी ने स्पष्ट किया है कि ईश्वर की भक्ति के लिए बाह्य आडंबरों की आवश्यकता नहीं है। जो व्यक्ति सरल हृदय से ईश्वर के नाम का स्मरण करता है उसे सहज ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है।

दोहों की सप्रसंग व्याख्या

1. सोहत ओढ़ें पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात ।
मनौ नीलमनि- सैल पर आतपु परयौ प्रभात ॥
शब्दार्थ- सोहत = शोभा देना । ओढ़ें = ओढ़ कर । पीतु पटु = पीले वस्त्र | सलौनैं = साँवले । गात = शरीर । नीलमनि = नीलमणि । सैल = पर्वत, चट्टान । आतपु = धूप।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या – बिहारी श्री कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान् श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र अत्यंत सुशोभित हो रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ श्री कृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्रों को सूर्य की धूप के समान माना गया हैं।
विशेष- (1) श्री कृष्ण की शोभा का मनोहारी अंकन है।
(2) ब्रज भाषा शृंगार रस, दोहा छंद तथा ‘श्याम’ में श्लेष अलंकार है।
(3) अनुप्रास और उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग है।
2. कहलाने एकत बसत अहि, मयूर, मृग, बाघ ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ ।।
शब्दार्थ- कहलाने = क्यों । एकत = इकट्ठे। बसत = रहते हैं। अहि = साँप । मयूर = मोर। मृग = हिरण । बाघ = शेर। दीरघ = लंबा । दाघ = गर्मी। निदाघ = ग्रीष्म ऋतु।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा बिहारी की प्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। इस दोहे की प्रथम पंक्ति प्रश्न के रूप में है तथा दूसरी पंक्ति में उसका उत्तर है।
व्याख्या – कवि बिहारी स्वयं प्रश्न करते हैं कि किस कारण से साँप, मोर, हिरण और बाघ एक स्थान पर इकट्ठे हो रहे हैं। इस प्रश्न का स्वयं ही उत्तर देते हुए कहते हैं कि शायद इसका कारण भयंकर गर्मी का होना है। लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को एक तपोवन के समान बना दिया है जहां ये सारे जीव अपना वैर-भाव भूलकर एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहने लगे हैं ।
विशेष – (1) गर्मी की भयंकरता का वर्णन है।
(2) ब्रजभाषा तथा दोहा छंद है।
(3) अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का प्रयोग है।
3. बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ ।
सौंह करें भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ ॥
शब्दार्थ – बतरस = बातें करने का आनंद । लालच = लोभ । लाल = नायक अर्थात् श्रीकृष्ण । मुरली = बाँसुरी । धरी = रख दी। लुकाइ = छिपाकर। सौंह =
कसम । भौंहनु हँसै = भौहों से हास्य व्यक्त करना । नटि जाइ = मना कर देना।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित है । यह उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने बताया है कि नायिका ने अपने प्रिय से बात करने के लालच में उसकी बाँसुरी छिपा दी। इस प्रकार उन दोनों में फिर जो बात हुई उसे नायिका की सखी एक अन्य सखी को बता रही है।
व्याख्या – नायिका की एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! नायिका ने श्री कृष्ण से प्रेम भरी बातचीत करने के सुख को प्राप्त करने के लिए उनकी बाँसुरी कहीं छिपाकर रख दी। श्रीकृष्ण उसे तरह-तरह की कसम देकर अपनी बाँसुरी के विषय में पूछते हैं। नायिका उन्हें कहती है कि वह कसम खाकर कहती है कि उसने बाँसुरी नहीं छिपाई। श्रीकृष्ण उसकी बात पर विश्वास कर लेते हैं किंतु तभी नायिका भौहें घुमाकर हँसने लगी । श्रीकृष्ण को उस पर संदेह हो गया और वे फिर से नायिका को अपनी बाँसुरी देने के लिए कहते हैं।
विशेष – (1) श्री कृष्ण के प्रति नायिका के प्रेम का चित्रांकन है।
(2) दोहा छंद तथा ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
(3) संयोग शृंगार रस विद्यमान है।
4. कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात ।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात ॥ 
शब्दार्थ – नटत = इनकार करना। रीझत = मुग्ध होना। खिझत= चिढ़ना। खिलत = प्रसन्न होना। लजियात = लजा जाना, शर्माना । भौन भवन, घर। नैननु = नेत्रों से।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने नायक और नायिका की आँखों-आँखों में चलने वाली बातचीत का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या -कवि कहता है कि नायक कुछ दूर बैठी नायिका की ओर अपनी आँखों से कुछ संकेत करके कुछ कहता है परंतु नायिका संकेत से इनकार कर देती है। नायिका के इनकार करने का ढंग कुछ ऐसा था कि नायक मुग्ध हो गया। यह देखकर वह अपनी आँख के इशारे से अपनी खीझ प्रकट करती है। उसकी यह खीझ बनावटी है। थोड़ी ही देर में जब पुनः उनकी आँखें मिलती हैं तो दोनों एक-दूसरे को देखकर खिल उठते हैं और लजा जाते हैं। इस प्रकार भीड़ भरे घर में भी नायक-नायिका आँखों ही आँखों में बातचीत कर लेते हैं। घर के अन्य लोगों का इस और बिलकुल भी पता नहीं लग पाता।
विशेष- (1) कवि ने संयोग शृंगार की प्रेम क्रीड़ा का अद्भुत चित्रण किया है।
(2) नेत्रों के हाव-भावों का सजीव चित्रण किया गया है।
(3) भाषा ब्रज, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार का चमत्कार दर्शनीय है।
5. बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह। 
देखि दुपहरी जेठ की छाँहीँ चाहति छाँह ॥ 
शब्दार्थ – सघन बन = घने जंगल । पैठि = घुसकर । सदन-तन = घरों में । जेठ = ज्येष्ठ जून का महीना। छाँहौं = छाया भी। छाँह = छाया ।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा कवि बिहारी द्वारा रचित है जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ से लिया गया है। इस दोहे में उन्होंने गर्मी की भयंकरता का सुंदर चित्रण किया है। एक नायक नायिका के घर आया हुआ है। नायिका उसे गर्मी की प्रचंडता का वर्णन करके उसे अपने पास ही रोक लेना चाहती है।
व्याख्या – नायिका नायक से कहती है कि जेठ मास की इस दोपहर में इतनी भयंकर गर्मी है कि छाया भी गर्मी से बचने के लिए छाया चाहती है। इसी कारण छाया या तो घने जंगल में है या घरों के भीतर छिपना चाहती है। भाव यह है कि गर्मी बहुत अधिक है जिस कारण गर्मी से घबराकर छाया भी छाया ढूंढ़ रही है, वह भी छिपना चाहती है।
विशेष – (1) ग्रीष्म ऋतु की भयंकरता का वर्णन करते हुए कवि ने छाया को गर्मी से बचने के लिए वन, घर में छिपते हुए चित्रित कर छाया का मानवीकरण किया है।
(2) रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास अलंकार विद्यमान हैं।
(3) ब्रज भाषा और दोहा छंद का प्रयोग किया गया है।
6. प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ ॥ 
शब्दार्थ – प्रगट भए = उत्पन्न हुए। द्विजराज-कुल = ब्राह्मण वंश, चंद्रवंश में उत्पन्न | सुबस = अपनी इच्छा से । हरौ = दूर करो । कलेस = कष्ट, दुःख । केसव = श्रीकृष्ण । केसवराइ = केशवराय, बिहारी के पिता ।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने भगवान् श्री कृष्ण का रूपक अपने पिता केशवराय से करके अपने कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना की है।
व्याख्या – कवि कहता है कि हे श्रीकृष्ण ! आपने चंद्रवंश में जन्म लिया है और आप अपनी इच्छा से ही ब्रज में आकर बस गए हैं। ब्रज में बसे हुए केशवराय रूपी केशव, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे सभी संकटों और दुःखों को दूर कर दो। भाव यह है कि आप सर्वशक्तिमान् हैं अतः मेरे कष्टों का भी निवारण करो।
विशेष – (1) श्रीकृष्ण ने जीवन के सभी दुःखों को दूर करने की प्रार्थना की है।
 (2) ब्रज भाषा और दोहा छंद है।
7. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु ॥ 
शब्दार्थ – जपमाला = माला द्वारा ईश्वर के नाम का जाप करना। छापा = ईश्वर नाम के छपे हुए वस्त्र पहनना। सरै = पूरा होना। मन-काँचै = कच्चे मन वाला, अस्थिर मन वाला। नाचै = नाचना । वृथा = बेकार में। साँचै = सच्चे मन वाला। राँचै = प्रसन्न होना।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित ‘सतसई’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बाह्य आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर बल दिया है।
व्याख्या कवि कहता है कि हाथ में निरंतर जाप करने की माला लेने से, ईश्वर नाम के छपे वस्त्र पहनने से तथा तिलक लगाने से ईश्वर भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मनुष्य का मन अस्थिर हो और उसके मन में ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास नहीं है तो उसका भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास करके भक्ति करते हैं, भगवान् उन्हीं पर प्रसन्न होते हैं।
विशेष – (1) बाह्य आडंबरों का खंडन किया गया है एवं सत्यनिष्ठ भावों से प्रभु स्मरण पर बल दिया गया है।
(2) ब्रज भाषा और दोहा छंद है।
(3) अनुप्रास अलंकार है ।

J&K class 10th Hindi दोहे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1. छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है ? 
उत्तर – कवि कहता है कि जेठ के महीने में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उस समय ऐसा लगता है जैसे चारों ओर अंगारे बरस रहे हों। गर्मी की ऐसी भयंकरता को देखकर लगता है कि शायद छाया भी छाया की तलाश में है। उस समय छाया या तो घने जंगलों में होती है अथवा घरों के अंदर होती है। छाया भी गर्मी से परेशान होकर छाया की तलाश में भटकती दिखाई देती है।.
प्रश्न 2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – नायिका परदेस गए नायक को प्रेम पत्र लिखती है। वह विरह की अत्यधिक पीड़ा के कारण कागज़ पर लिखने में स्वयं को असमर्थ पाती है। किसी अन्य के माध्यम से नायक को संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है। ऐसे में वह कहती है कि अब उसे किसी साधन की आवश्यकता नहीं है । नायक का हृदय ही उसे नायिका के हृदय की विरह व्यथा का आभास करा देगा । वह ऐसा इसलिए कहती है क्योंकि वह नायक से सच्चा प्रेम करती है और यदि नायक भी उसके समान सच्चा प्रेम करता होगा तो उसका हृदय भी विरह की अग्नि में जल रहा होगा। ऐसे में वह नायिका के हृदय की पीड़ा का सहज ही अनुमान अपने हृदय की पीड़ा से लगा लेगा ।
प्रश्न 3. ‘सच्चे मन में राम बसते हैं’ दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर – कवि का मत है कि बाह्य आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। मनकों की माला का जाप करने और तरह-तरह के रंगों में रंगे वस्त्र पहनने और तिलक लगाने से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, ईश्वर उसी पर प्रसन्न होता है। छल-कपटपूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति कितनी भी भक्ति कर ले, ईश्वर को नहीं पा सकता। ईश्वर तो सच्चे हृदय वाले व्यक्ति के मन में निवास करते हैं।
प्रश्न 4. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ? 
उत्तर – गोपियों को श्रीकृष्ण की बाँसुरी से विशेष ईर्ष्या है। एक बार बाँसुरी हाथ में आने पर श्रीकृष्ण गोपियों को भूल जाते हैं। वे बाँसुरी बजाने में इतने मस्त हो जाते हैं कि गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। गोपियाँ चाहती हैं कि श्रीकृष्ण उनसे प्रेमपूर्ण बातचीत करें। वे श्रीकृष्ण से प्रेमपूर्ण बातचीत करने के लिए ही बाँसुरी को छिपा देती हैं। वे जानती हैं कि श्रीकृष्ण बाँसुरी के विषय में अवश्य पूछेंगे और इस प्रकार वे श्रीकृष्ण से बातचीत करने के आनंद को उठा सकती हैं।
प्रश्न 5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है— अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर – नायक और नायिका एक ऐसे भवन में बैठे हैं जहाँ अन्य बहुत से लोग हैं। नायक नायिका से बातचीत करना चाहता है किंतु सब लोगों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। ऐसे में नायक और नायिका आँखों के संकेतों से सारी बात कर लेते हैं। नायक आँख के संकेत से नायिका को कुछ कहता है। नायिका आँख के संकेत से ही मना कर देती है। नायिका के मना करने के सरस ढंग पर नायक संकेत से प्रसन्नता व्यक्त करता है तो नायिका झूठी खीझ व्यक्त करती है। थोड़ी ही देर में उनके नेत्र पुनः परस्पर मिलते हैं तो दोनों खिल उठते हैं और शरमा जाते हैं। इस प्रकार नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत भी कर लेते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :- 

1. मनौ नीलमनि- सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ-निदाघ ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
     मन-काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु ॥
उत्तर –
  1. इन पंक्तियों में कवि बिहारी की रंग चेतना द्रष्टव्य है। उन्होंने एक निपुण चित्रकार की भांति रंगों का सुंदर चित्रण किया है। श्रीकृष्ण के नीले रंग के शरीर पर पड़ती प्रातः काल की धूप की नीलमणि पर्वत पर पड़ने वाली धूप के रूप में कल्पना करने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है। श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का सुंदर वर्णन है। ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है तथा शृंगार रस है । दोहा छंद है।
  2. इन पंक्तियों में कवि ने पूरे जंगल को तपोवन के समान माना है और उसका कारण भयंकर गर्मी का होना बताया है। यह दोहा प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया है जो अपने आप में अनूठा है। प्रथम पंक्ति में प्रश्न तथा दूसरी पंक्ति में उत्तर है। ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है जिसमें सरसता, प्रवाहमयता तथा ता तथा लयात्मकता का गुण विद्यमान है। उपमा और अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है तथा दोहा छंद है।
  3. इन पंक्तियों में कवि ने संत कवियों के समान बाह्य आडंबरों का कड़ा विरोध किया है। कवि के द्वारा निष्काम भक्ति पर अत्यंत सरल शब्दों में बल देना द्रष्टव्य है। साहित्यिक ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है। शब्द-चयन सर्वथा उपयुक्त एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है। कवि ने अनुप्रास अलंकार के साथ-साथ परिसंख्या अलंकार का प्रयोग किया है। दोहा छंद का सार्थक और सहज प्रयोग है तथा शांत-रस की अभिव्यक्ति हुई है।

योग्यता – विस्तार

सतसैया के दोहरे ज्यौं नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगैं घाव करें गंभीर ।
अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।
उत्तर – विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें ।
परियोजना कार्य
1. बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए। 
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें ।

J&K class 10th Hindi दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1. बिहारी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर – बिहारी ने अपने काव्य में सर्वत्र व्यवस्थित एवं व्याकरण सम्मत ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं-कहीं बुंदेली, अवधी, उर्दू, फ़ारसी आदि शब्दों का भी प्रयोग हुआ है जैसे- बुंदेली – खैर, लखबी, करबी, पायबी, लोने चाल आदि। अवधी भाषा के शब्दों-दीन, कीन, लीन, लजियात, खिजियात, जेहि, केहि तथा उर्दू-फारसी के इजाफ़ा, खूबी, खुशहाल, अदब, बरजोर, हद आदि का खूब प्रयोग हुआ है। इन्होंने अपनी भाषा में सजीवता तथा सरसता लाने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग किया है। जैसे- धुर मुकति मुँह दीन, पीनस बारी जो तजे, सोरा जानि कपूर, खरी पातरी कान की, मूड़ चढ़ाए, हूँ रहे।
इनकी भाषा समासबहुल है। इस कारण इन्होंने गंभीर एवं विस्तृत भावों को भी कम शब्दों में पूर्ण रूप से व्यक्त किया है। इनकी भाषा में विभिन्न अलंकारों की छटा विद्यमान रहती है। किसी-किसी दोहे में तो अनेक अलंकार देखे जा सकते हैं। जैसे
‘मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परै, स्याम हरित दुति होय ॥’
इस दोहे में एक साथ ही श्लेष, अनुप्रास, काव्यलिंग तथा पर्यायवक्रता अलंकारों के चमत्कार देखे जा सकते हैं। नाद-सौंदर्य तथा ध्वन्यात्मकता की दृष्टि से भी इनकी भाषा सफल है।
बिहारी की भाषा सभी दृष्टियों से श्रेष्ठ है। व्याकरण और सौंदर्य की विरोधी कसौटियों पर भी वह खरी उतरती है। बिहारी का भाषा पर सच्चा अधिकार था। बिहारी को भाषा का पंडित कहना चाहिए। भाषा की दृष्टि से बिहारी की समता करने वाला, भाषा पर वैसा ही अधिकार रखने वाला कोई मुक्तककार नहीं दिखाई पड़ता। उनकी भाषा परिमार्जित तथा गतिशील है। बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है। वाक्य रचना व्यवस्थित है और शब्दों के रूप का व्यवहार एक निश्चित प्रणाली पर है।
प्रश्न 2. सिद्ध कीजिए कि बिहारी शृंगार रस के अनुपम कवि हैं ?
उत्तर – रससिद्ध कवि बिहारी मूलतः शृंगार रस के कवि हैं। शृंगार रस, सौंदर्य एवं यौवन बिहारी के काव्य में अपनी पूर्णता के साथ प्रकट हो रहे हैं। काव्य का लक्ष्य आनंद प्रदान करना है और आनंद भावना में है और भावना हृदय में ही जन्मती एवं विकसित होती है। शृंगार को रसराज कहा जाता है। शृंगार रस का स्थायी भाव रति अर्थात् प्रेम है और प्रेम का क्षेत्र सभी मनोविकारों में व्यापकतम है। हृदय की अधिकतम भावनाएं इसमें आ जाती हैं। शृंगार की विराटता के कारण उसके संयोग और वियोग नामक दो पक्ष हैं। बिहारी ने सतसई में शृंगार के दोनों पक्षों का वर्णन किया है।
संयोग शृंगार के अंतर्गत कवि ने नायक-नायिका के रूप-वर्णन, प्रेम व्यापारों, हाव-भाव आदि का विस्तृत निरूपण किया है। हाव-भावों का सुंदर चित्रण इस दोहे में देखा जा सकता है-
“कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन में करत हैं नैननु ही सब बात ॥ “
इस दोहे में नायक-नायिका लोगों से भरे भवन में परस्पर नेत्रों ही नेत्रों में बातें कर लेते हैं।
वियोग शृंगार के अंतर्गत कवि ने इसके पूर्वराग, मान, प्रवास और करुण चारों भेदों का वर्णन किया है। विरह से संतप्त नायिका की दशा का वर्णन नायक से करती हुई उसकी सखी कहती है –
“कहा कहौ वाकी दशा, हरि प्रानन के ईस।
विरह ज्वाल जरिबौ लखें, मरिबौ भयौ असीस ॥”
इस प्रकार कह सकते हैं कि बिहारी सतसई में विरह-वर्णन के और संयोग-वर्णन के सभी पारंपरिक रूप प्राप्त होते हैं। इन रूपों में पुनराख्यान के साथ भाव, कल्पना और शैली की भव्यता भी है।
प्रश्न 3. बिहारी के नीतिपरक दोहों का परिचय दीजिए।
उत्तर – बिहारी सतसई में अनेक दोहे ऐसे हैं जो जीवन की व्यावहारिक मान्यताओं को सूक्तियों के रूप में प्रकट कर देते हैं। इन दोहों में बिहारी का एक सफल नीतिकार का रूप प्रकट है। रीतिकाल के नीतिकार कवियों में बिहारी का एक विशिष्ट स्थान है। नीतिपरकता बिहारी की प्रमुख प्रवृत्ति नहीं है। फिर भी उन्होंने जीवन के नीतिपरक तथ्यों का प्रतिपादन विशेष गहनता से किया है। बिहारी के मतानुसार संसार में सुंदर-असुंदर की धारणा निराधार है। यह तो सब अपनी-अपनी रुचि की बात है। कवि ने जीवन और जगत् के एक सार्वभौम तथ्य का उद्घाटन इस प्रकार किया है—
सबै सबै सुंदर सबै रूप कुरूपु न कोइ ।
मन की रुचि जेती जितै तित तेती रुचि होड़ ॥ 
बिहारी की नीतिपरक सूक्तियों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी विषय विविधता है। जीवन और जगत् के अनेक महत्त्वपूर्ण व्यावहारिक विषयों को दोहों में समेट लिया है। ‘समय का फेर अर्थात् सब दिन होता एक समान’ जैसे—
“जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार ।
अब अलि रही गुलाब में अपत कँटीली डार ॥ “
प्रयत्न करने पर भी ओछे व्यक्ति कभी बड़े नहीं हो सकते, अनेक यत्न करने पर भी दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदला जा सकता, विनम्र व्यक्ति ही सदा उन्नति करता है आदि अनेक नीतिपरक दोहे बिहारी सतसई में प्राप्त होते हैं जो बिहारी को एक सफल नीतिपरक दोहे लिखने वाला सिद्ध करता है।
बिहारी ने प्रेम, शृंगार पूर्ण तथा विरोधाभास के चमत्कार से परिपूर्ण कथन भी प्रस्तुत किए हैं; जैसे,
“तंत्री – नाद कवित्त-रस सरस राग रति रंग ।
अनबूड़े बड़े तरे, जे बड़े सब अंग ॥ “
अतः निश्चित रूप से बिहारी एक सफल एवं श्रेष्ठ कवि हैं जिन्होंने अपने छोटे से दोहे जैसे छंद में जीवन के विविध मार्मिक प्रसंगों को प्रभावपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 4. बिहारी की भक्ति-भावना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर – रीतिकालीन कवियों में शृंगारिकता के साथ-साथ भक्ति से संबंधित उक्तियां भी प्राप्त होती हैं। बिहारी सतसई के कुछ दोहों में भी भक्ति भावना के दर्शन होते हैं। इन दोहों में किसी प्रकार का सांप्रदायिक आग्रह न होकर भक्ति का उदार स्वरूप ही प्राप्त होता है। इसी कारण बिहारी लिखते हैं—
“अपनैं-अपनैं मत लगे वादी मचावत सोरु ।
ज्यौं-त्यौं सब ही सेइबो एकै नंद किसोरु ॥”
बिहारी के भक्ति से संबंधित दोहों में माधुर्य, सख्य, दास्य आदि सभी प्रकार की भक्ति के तत्व समन्वित हुए हैं। इन्होंने प्रभु की भक्ति के लिए मन को सांसारिक विकारों से मुक्त रखने का संदेश देते हुए कहा है कि जब तक मन विषय-विकारों में तल्लीन रहता है, मानव-प्रभु भक्ति नहीं कर सकता। बिहारी ने अपनी भक्ति से संबंधित दोहों में बाह्याडंबरों का खंडन करते हुए मन की पवित्रता पर भी बहुत बल दिया है। ऐसे स्थलों पर वे एक क्रांतिकारी तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त मिथ्या आडंबरों पर प्रहार करने वाले साधक के समान प्रतीत होते हैं ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि बिहारी के काव्य में भक्ति से संबंधित अनेक ऐसे दोहे प्राप्त होते हैं जिन में एक भक्त हृदय की तन्मयता के दर्शन होते हैं। ऐसे दोहों में कवि स्वयं को पतित मानकर अपने आराध्य से आत्मोद्धार की प्रार्थना करता है क्योंकि वे पतितोद्धारक है। भक्ति बिहारी की शृंगारेतर गौण प्रवृत्ति मानी जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि भक्ति बिहारी के काव्य का मुख्य प्रतिपाद्य तो नहीं है, किंतु इनकी भक्ति संबंधी उक्तियों में एक भक्त हृदय की पुकार अवश्य सुनाई देती है। इसलिए बिहारी ने अपने आराध्य से निरंतर यही प्रार्थना की है कि वे अपने गोपाल रूप में सदा उसके मन में निवास करें। इस कारण वे अनन्य भाव से कह उठते हैं—
“सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल ।
एहि बानक मो मन बसो सदा बिहारी लाल ॥”
प्रश्न 5. ‘‘बिहारी में गागर में सागर भरने की विलक्षण प्रतिभा है”- स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर – जीवन या जगत् की प्रगाढ़ अनुभूति की ललित एवं शाब्दिक वैयक्तिक अभिव्यक्ति ही साहित्य है। यह अनुभूति एक प्रबंधात्मक रचना में यथेच्छ विस्तार प्राप्त करती है और भाषा तथा शैली को भी अपने अधिकतम वैभव विस्तार की पूर्ण सुविधा प्राप्त होती है। मुक्तक काव्य में भाव, भाषा, शैली, अलंकरण आदि सभी पक्षों पर पर्याप्त अधिकार जिस कवि का होगा वही कवि इस दिशा में सफल हो सकेगा। बिहारी सतसई मुक्तक काव्य की उत्कृष्टता का श्रेष्ठ उदाहरण है। मुक्तक शब्द का अर्थ है- मुक्त, निबंध, स्वतंत्र, पूर्वापर संबंध से रहित । अर्थात् जो रचना स्वयं में पूर्ण हो, रसास्वादन कराने में सक्षम हो, स्पष्ट हो, संक्षिप्त हो और सुगठित हो ।
मुक्तककार में जितनी अधिक अनुभूति की गहनता, तीव्रता, स्पष्टता और सुसंगठितता होगी और अभिव्यक्ति की पूर्णता, संक्षिप्तता, भाषागत सामासिकता तथा व्यंजना होगी वह उतना ही अधिक सफल होगा। कविवर बिहारी में एक चोटी के मुक्तककार की सभी विशेषताएं अपनी पूर्णता में विद्यमान हैं। ये मुक्तककारों के आदर्श हैं एवं गागर में सागर भर सकते हैं।
बिहारी में गहन अनुभूति, गहरी पकड़ और भाव अथवा मनोवेग को रसपिंड बना देने की अद्भुत क्षमता है। उनके दोहे का एक-एक पद और एक-एक शब्द व्यापक कल्पना का पिंड है। उदाहरणस्वरूप—
दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति ।
परति गांठ दुरजन हियै, दई नई यह रीति । 
कवि ने नेत्रों का उलझना, कुटंबों का टूटना, प्रिय हृदयों का एक होना तथा दुष्ट लोगों के हृदय में पीड़ा होना आदि अनेक क्रियाओं का एक साथ सुंदर वर्णन है।
बिहारी, शब्दों के माध्यम से, हाव-भावों और चेष्टाओं का चित्रण करने में कुशल हैं। प्रस्तुत दोहे में नायक-नायिका के बीच चलने वाले नाटकीय वार्तालाप का सुंदर चित्रण हुआ है।
कवि ने एक संपूर्ण, सघन मनोभाव के सभी रूपों का चित्रण, एक परिपूर्ण दृश्य-विधान, आलंबन और आश्रय की क्रिया-प्रतिक्रिया आदि सब कुछ अत्यंत कसी हुई एवं व्यंजन-प्रधान भाषा में प्रस्तुत किया है। भाषा की प्रेषणीयता एवं सांकेतिकता बिहारी में सर्वोपरि है।
अतः कह सकते हैं कि बिहारी ने कल्पना की समाहार शक्ति तथा भाषा की सामासिकता से दोहे जैसे छोटे से छंद में गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया है ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. बिहारी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – सन् 1595 ई० को। –
प्रश्न 2. बिहारी का जन्म कहां हुआ ?
उत्तर – ग्वालियर में ।
प्रश्न 3. बिहारी किस काल के कवि हैं।
उत्तर – रीतिकाल के।
प्रश्न 4. बिहारी का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – विनोदी एवं सौंदर्य – प्रिय ।
प्रश्न 5. बिहारी का वर्ण्य विषय है।
उत्तर – शृंगार |
प्रश्न 6. बिहारी ने मुख्यतः किस भाषा में रचना की है ?
उत्तर – ब्रज भाषा में
प्रश्न 7. कवि की नायिका भवन में कैसे बात करती है ?
उत्तर – आंखों के माध्यम से।
प्रश्न 8. बिहारी का देहांत कब हुआ ?
उत्तर – सन् 1663 ई० में।
प्रश्न 9. बिहारी की रचना का नाम लिखिए।
उत्तर – बिहारी सतसई ।
प्रश्न 10. बिहारी सतसई में कितने दोहे संग्रहीत हैं ?
उत्तर – 713 दोहे ।
प्रश्न 11. सतसई किस काल की रचना है ?
उत्तर – रीतिकाल ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. श्रीकृष्ण का शरीर किस रंग का है ?
(क) स्वर्णिम
(ख) साँवले
(ग) गेहुएँ
(घ) दुग्ध धवल ।
उत्तर – (ख) साँवले ।
0 2. श्रीकृष्ण ने कैसे वस्त्र धारण किए हुए हैं ?
(क) पीले
(ख) गुलाबी
(ग) हरे
(घ) सफ़ेद ।
उत्तर – (क) पीले ।
3. ‘नीलमनि-सैल’ किसे कहा गया है ? 
(क) हिमालय पर्वत को
(ख) शिव को
(ग) श्रीकृष्ण का साँवला शरीर
(घ) विंध्याचल पर्वत को ।
उत्तर – (ग) श्रीकृष्ण का साँवला शरीर ।
4. ‘सोहत ओढ़े पतु पटु स्याम सलोने गात’ में अलंकार है –
(क) उपमा, अनुप्रास
(ख) उत्प्रेक्षा, यमक
(ग) रूपक, उपमा
(घ) अनुप्रास, श्लेष ।
उत्तर – (घ) अनुप्राय, श्लेष ।
5. ‘मनौ नीलमनि- सैल पर आतुप परयौ प्रभात’ में अलंकार है –
(क) रूपक
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) यमक
(घ) श्लेष ।
उत्तर – (ख) उत्प्रेक्षा
6. जंगल में सभी पशु एक साथ क्यों रह रहे हैं ?
(क) वर्षा के कारण
(ख) ठंड के कारण
(ग) गर्मी के कारण
(घ) भूकंप के कारण ।
उत्तर – (ग) गर्मी के कारण। –
7. ‘दीरघ-दाघ- निदाघ’ का आशय है –
(क) खूब वर्षा
(ख) बहुत गर्मी
(ग) कड़कती ठंड
(घ) घना अंधेरा।
उत्तर – (ख) बहुत गर्मी ।
8. तपोवन क्या होता है ?
(क) जहां बहुत गर्मी होती है
(ख) जिस जंगल में आग लग जाती है
(ग) जहां घना अंधकार हो
(घ) जिस वन में तपस्वी तपस्या करते हैं ।
उत्तर – (घ) जिस वन में तपस्वी तपस्या करते हैं।
9. ‘अहि’ किसे कहते हैं ?
(क) बाघ
(ख) मोर
(ग) साँप
(घ) मृग ।
उत्तर – (ग) साँप |
10. इस दोहे में किस भाषा का प्रयोग किया गया है ?
(क) ब्रज
(ख) मैथिली
(ग) अवधी
(घ) राजस्थानी ।
उत्तर – (क) ब्रज।

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