JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 2 वर्ण विचार

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Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Grammar

Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Grammar

J&K State Board class 9 Hindi Grammar

1. स्वर तथा व्यंजन: परिभाषा—
वर्ण— भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। इस ध्वनि को ही वर्ण कहते हैं। वर्ण शब्द का प्रयोग ध्वनि और ध्वनि चिह्न अर्थात् लिपि— चिह्न दोनों के लिए होता है। अतः ये वर्ण भाषा के मौखिक तथा लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं। इस तरह शुद्ध उच्चारण के साथ-साथ लेखन के लिए भी वर्गों का महत्त्व है।
स्वर— जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा बिना किसी रुकावट के निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं।
व्यंजन— जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ मुँह से बाहर निकलती है उन्हें व्यंजन कहते हैं।
वर्णमाला— किसी भाषा में प्रयुक्त होने वाले वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
ऋ के विषय में – इसमें ‘ऋ’ को नहीं लिया गया है क्योंकि हिन्दी में यह उच्चारण की । दृष्टि से स्वर नहीं है। लेखक की दृष्टि से ‘ऋ’ स्वर है क्योंकि अन्य स्वर वर्णों की तरह इसका भी मात्रा-चिह्न होता है। यह ‘रि’ के समान उच्चारित होता है । – उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों के भेद – उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों को दो भागों में बांटा जा सकता है—
(क) ह्रस्व स्वर और        (ख) दीर्घ स्वर
(क) ह्रस्व स्वर-जिन स्वरों के उच्चारण में सब से कम एक मात्रा का समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर अथवा मूल स्वर कहते हैं- अ, इ, उ, ऋ । ह्रस्व ऋ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है। यथा – ऋतु, ऋषि, कृषि आदि । हिन्दी में इस स्वर का उच्चारण ‘रि’ के रूप में होता है।
(ख) दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगे, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इन्हें संधि स्वर भी कहते हैं। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ औ । ये स्वर मात्र ह्रस्व स्वरों के दीर्घ रूप नहीं हैं वरन् स्वतन्त्र ध्वनियां हैं। इन स्वरों में से ऐ तथा औ का उच्चारण संध्याक्षर (संयुक्त स्वर) रूप में भी है। जैसे’ऐ’ संध्याक्षर में अ + ए दो स्वरों का संयुक्त रूप है। यह उच्चारण तब होता है जब बाद में क्रमश: ‘य’ तथा ‘व’ आएं। जैसे—
भैया = भइया ।
नैया = नइया ।
कौआ = कड़वा ।
हौवा = हउवा ।
शेष स्थिति में ऐ और औ का उच्चारण शुद्ध स्वर की भांति होता है। जैसे- मैल, कैसा, औरत, कौन आदि ।
ऑ ध्वनि का उच्चारण : अंग्रेजी के कुछ शब्दों तथा – कॉलेज, बॉल, डॉक्टर आदि शब्दों में आ और ओ ध्वनियों के मध्यवर्ती दीर्घ स्वर ऑ का उच्चारण होता है। होंठों की आकृति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण स्वरों को होंठों की आकृति के आधार पर दो वर्गों में बांटा गया है
(क) अवृत्ताकार (ख) वृत्ताकार
(क) अवृत्ताकार : जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ (ओष्ठ) वृत्ताकार न होकर फैले रहते हैं, उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे— अ, आ, इ, ई, ए, ऐ ।
(ख) वृत्ताकार : जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ (ओष्ठ) वृत्ताकार (गोल) होते हैं, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे— उ, ऊ, ओ, औ, (आँ) ।
अनुनासिक स्वर: सभी स्वरों का उच्चारण दो प्रकार से हो सकता है—
1. केवल मुख से।
2. मुख तथा नासिक दोनों से।
पहले प्रकार के स्वरों को निरनुनासिक कहते हैं, जबकि दूसरी विधि से उच्चरित स्वरों को अनुनासिक (अनुनासिकता के साथ) स्वर कहते हैं। लिखने में स्वर के ऊपर अनुनासिकता के लिए चन्द्र बिन्दु (*) का प्रयोग किया जाता है। जैसे- पाँच, आँख आदि। लेकिन जब स्वर की मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगती है तो चन्द्र बिन्दु के स्थान पर मात्र बिन्दु (.) का प्रयोग होता है। जैसे- मैं, हैं आदि ।
निरनुनासिक स्वर अनुनासिक स्वर:
अ-सवार अँ- सँवार
आ-बाट आँ-बाँट
इ- बिथ  इँ-बिंध (ना) – बिंध
ई-कही ई-कहीं-कहीं
उ – उंगली (उगल दी) उँ – उँगली
ऊ- पूछ ऊँ— पूँछ
ए-बूढ़े  ऍ-बूढ़े-बूढ़े
ऐ-है ऐं-हैं- हैं
ओ- गोद औं – गौंद – गोंद
औ- चौक औं – चौंक- चोंक
अनुनासिक (*) तथा अनुस्वार ( ‘) में अन्तर—
अनुनासिक (*) तथा अनुस्वार (‘) में मूल अंतर यही है कि अनुनासिक स्वर स्वर है जबकि अनुस्वार अनुनासिक व्यंजन का एक रूप है। अनुस्वार तथा अनुनासिकता के साथ आने वाले कुछ शब्दों में अर्थ भेद भी होता है। यथा – अनुस्वार के साथ हंस – एक पक्षी का नाम अथवा सूर्य । – अनुनासिक के साथ हँस-हँसना ।
3. व्यंजनों का वर्गीकरण
उच्चारण स्थान के आधार पर
व्यंजन – जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ मुँह से बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं ।
हिन्दी में व्यंजनों की संख्या 33 है—
व्यंजनों के वर्गीकरण के दो आधार हैं—
(क) उच्चारण स्थान के आधार पर ।
(ख) प्रयत्न के आधार पर ।
(क) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
व्यंजनों का उच्चारण मुख के विभिन्न अवयवों-कंठ, तालु, मूर्धा आदि के आधार पर किया जाता है :
कंठ्य (गले से) क, ख, ग, घ, ङ ।
तालव्य (तालु से) च, छ, ज, झ, ञ तथा य और श ।
मूर्धन्य (तालु के मूर्धा भाग से) ट, ठ, ड, ढ, ण, ड, ढ़ तथा ष।
दन्त्य (दाँतों के मूल से) त, थ, द, ध, न ।
वर्त्स्य (दंतमूल से) (न), स, ज़, र ल ।
ओष्ठ्य (दोनों होंठों से) प, फ, ब, भ, म।
दंतोष्ठ्य (निचले होंठ और ऊपर के दाँतों से) व फ ।
स्वरतंत्रीय (स्वतन्त्र से) ह
(ख) प्रयत्न के आधार पर वर्गीकरण
व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्री में श्वास का कंपन, श्वास (प्राण) की मात्रा तथा जिह्वा अथवा अन्य अवयवों द्वारा श्वास के अवरोध की प्रक्रिया को प्रयत्न कहते हैं।
स्वरतंत्री में श्वास के कम्पन के आधार पर व्यंजनों के भेद
स्वरतंत्री में श्वास के कम्पन के आधार पर व्यंजन वर्णों के दो भेद हैं—
अघोष—  जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता, उनको अघोष कहते हैं। जैसे— क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (वर्गों के प्रथम तथा द्वितीय व्यंजन) तथा फ, श, ष, स ।
सघोष— जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है, उनको सघोष कहते हैं। जैसे— ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म (वर्गों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम व्यंजन) तथा ड़, ढ़, ज, य, र, ल, व, ह व्यंजन । (सभी स्वर सघोष होते हैं)
श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के भेद
श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो भेद हैं—
(क) अल्प्राण (ख) महाप्राण
(क) अल्पप्राण—  जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। जैसे- क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म (वर्णों के प्रथम, तृतीय और पंचम) तथा ड़, य, र, ल, व।
(ख) महाप्राण— जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु की मात्रा अधिक होती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। जैसे-ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ (वर्णों के द्वितीय तथा चतुर्थ) ढ़, ह, न, म, ल ध्वनियों के • महाप्राण रूप क्रमशः न्ह, म्ह तथा ल्ह हैं। इनके लिए पृथक् से वर्णन चिह्न नहीं हैं।
जिह्वा या अन्य अवयवों द्वारा श्वास के अवरोध के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
उपर्युक्त आधार पर व्यंजनों को निम्नलिखित वर्णों में रखा जाता है—
(क) स्पर्श (ख) स्पर्श-संघर्षी (ग) संघर्षी (घ) अन्त: स्थ (ङ) उत्क्षिप्त ।
(क) स्पर्श— जिन व्यंजनों के उच्चारण में उच्चारण अवयव (जीभ या होंठ) दूसरे उच्चारण अवयव का स्पर्श करता है, जिससे वायु पूर्ण रूप से रुक जाती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। जैसे- क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब भ । इसका एक उपवर्ग भी है, जिसे हम नासिक्य व्यंजन कहते हैं, मुख के साथ-साथ नाक से बोले जाने वाले व्यंजन । जब हम ‘प’ या ‘ब’ का उच्चारण करते हैं तो हवा नाक से नहीं निकलती, लेकिन जय ‘म’ बोलते हैं तो हवा मुँह से कम और नाक से बहुत अधिक निकलती है। नासिक्य व्यंजन भी स्पर्श है। प्रत्येक वर्ग का पाँचवां व्यंजन नासिक स्पर्श है— ङ, ञ, ण, न, म ।
(ख) स्पर्श-संघर्षी— स्पर्श-ध्वनियों का एक उपवर्ग स्पर्श-संघर्षी ध्वनियाँ भी हैं। इन ध्वनियों का उच्चारण भी स्पर्श – ध्वनियों की तरह ही होता है, लेकिन स्पर्श के बाद वायु घर्षण के साथ बाहर निकलती है। स्पर्श ध्वनियों की तरह व्यवहार करने का कारण, परम्परा से ये ध्वनियाँ स्पर्श कोटि की ही मानी जाती है। जैसे- च, छ, ज, झ ।
(ग) संघर्षी— स्पर्श ध्वनियों में वायु पूर्ण रूप से अवरुद्ध होता है, जबकि संघर्षी ध्वनियों में वायु का अवरोध इस प्रकार है कि वह घर्षण के साथ निकलता है।
(घ) अन्तःस्थ— पारंपरिक वर्ण माला के बीच में स्थित होने के कारण य, र, ल, व को अन्तःस्थ कहा जाता है। इन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का अवरोध बहुत ही कम होता है। परम्परा से इसमें य, र, ल, व, चार वर्णों को रखा गया है। य और व को अर्धस्वर भी कहा जाता है।
(ङ) उत्क्षिप्त— जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपर उठकर मूर्धा को स्पर्श कर तुरन्त नीचे गिरती हैं, उन्हें ‘उत्क्षिप्त’ कहते हैं। जैसे-ड ढ़। ध्वनियों का उच्चारण देर तक किया जा सकता है। घर्षण के साथ हवा निकलने के कारण इन ध्वनियों को संघर्षी कहा जाता है। इन्हें ऊष्म ध्वनि भी कहा जाता है। हिन्दी में ऊष्म ध्वनियाँ हैं—स, श, ष, ह, फ तथा ज ।
नोट— अरबी-फ़ारसी तथा अंग्रेज़ी के प्रभाव से जो व्यंजन ध्वनियाँ क ख, ग, ज़, फ हिन्दी में आगत हैं, उनमें से ‘क’ स्पर्श ध्वनि है और ख, ग, ज़, फ चारों संघर्षी हैं। ज़ और फ दो ऐसे व्यंजन संघर्षी ध्वनियाँ हैं, जो अरबी-फ़ारसी तथा अंग्रेज़ी से आगत शब्दों में प्रयुक्त होती हैं । अतएव इनको भी स्थान के अनुसार विवेचन में सम्मिलित किया गया है ।
अयोगवाह: हिन्दी वर्णमाला के अनुस्वार (,) और विसर्ग (:) को ‘अ’ के साथ ‘अं’ और ‘अ: ‘ लिखा जाता है। यद्यपि परम्परानुसार इन्हें स्वरों के साथ रखा जाता है। किन्तु ये स्वर ध्वनियाँ नहीं हैं। संस्कृत व्याकरण की परम्परा में इन्हें आयोगवाह कहते हैं। इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरफ स्वर की सहायता से ही होता है। अयोगवाह के उच्चारण से पूर्व स्वर आता है। स्वर और व्यंजनों के मध्य की स्थिति होने के कारण ही इनको प्रारम्भ में दी गई वर्णमाला में स्वरों के साथ स्थान दिया गया है।
4. अनुस्वार (·) परिभाषा तथा उदाहरण
हिन्दी में उसी वर्ग में पंचमाक्षर के स्थान पर (समान) अनुसार का प्रयोग होता है। जैसे-संकल्प(प), संचय (य), संताप (सन्ना), नर ह से पहले अनुस्वार का प्रयोग होता है। जैसे-संचय, संरक्षक, लाप संशय, संसार, संहार ।
हिन्दी की वर्तनी में अब वर्ग के पंचमार, ज, ण, न, मु, के स्थान पर. (अ) का प्रयोग ही किया जाने लगा है। जैसे-संकल्प (सङ्कल्प)। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी तथा भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा अब यह सिद्धान्त मान्यता प्राप्त कर चुका
पर जिन शब्दों में भिन्न नासिक्य व्यंजन है अथवा किसी पंचमाक्षर का दिव्य है तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया जाएगा। मूलतः पंचमाक्षर की लिखा जाएगा। जैसे-जन्म, निम्न वाङ्मय, उन्नति, सम्मति, मृण्मय, पुण्य ।
5. विसर्ग-ज्ञान
विसर्ग का उच्चारण अघोष ‘ह’ व्यंजन के समान है। जैसे- स्वतः स्वतह। विसर्ग का प्रयोग अधिकतर उन्हीं शब्दों में होता है, जो संस्कृत से तत्सम रूप में हिन्दी में गृहीत हैं। जैसे- मनःस्थिति, अतः, प्रायः । ‘दुःख’ को अब ‘सुख’ के अनुकरण पर विसर्गरहित ‘दुख’ लिखा जाने लगा है पर तत्सम शब्द दुःखानुभूति में यह विद्यमान है। विसर्ग का संधि रूपों में विशेष महत्त्व है।
6. व्यंजन गुच्छ तथा व्यंजन द्वित्व
जब दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ एक श्वास के झटके में बोले जाते हैं, तो उनको व्यंजन-गुच्छ कहा जाता है। जैसे-प्यास शब्द के आदि में प्राय: दो तरह के व्यंजन गुच्छ मिलते हैं—
व्यंजन + य, र, ल, व
स+ य र ल व से भिन्न व्यंजन
क् + य = क्यारा
क् + व = क्वारा
क् + र = क्रम
क् + ल = क्लेश
स् + र = स्रोत
शब्द के मध्य तथा अन्त में भी अनेक व्यंजन-गुच्छ मिलते हैं; जैसे-न् + त अन्त, इ + ग मार्ग, प् + त लुप्त । प्राप्त म् + भ प्रारम्भ आदि ।
व्यंजन संयोग : जब एक व्यंजन के साथ दूसरा व्यंजन आता है और दोनों का उच्चारण अलग-अलग किया जाता है तो व्यंजन-संयोग होता है। व्यंजन-संयोग में व्यंजनों को अलग-अलग लिखना चाहिए; जैसे-जनता = जन् + ता, उलटा डलू + टा शब्द क्रमश: न् + त तथा ल् +ट का संयोग है। ‘जनता’ तथा ‘उलटा’ के मूल शब्दों जन, उलटा में ‘अ’ का अस्तित्व है। उच्चारण की स्थिति में उसका लोप हो जाता है। ‘संत’ में व्यंजन गुच्छ (न्+त) है, जबकि ‘जनता’ में न त का व्यंजन-संयोग है।
द्वित्य व्यंजन : एक व्यंजन का अपने समरूप व्यंजन से मिलना ‘द्वित्व’ कहलाता है। जैसे- पक्का, बच्चा, लट्ट, कट्टर, गत्ता, रस्सा, गन्ना आदि।
व्यंजन को संयुक्त करने की विधियां—
1. (i) यदि र् किसी व्यंजन से पहले आए तो वह उस व्यंजन के ऊपर लिखा जाता है। जैसे- कर्म कर्म, धर्म ।
(ii) ह् से परे न आए तो इस प्रकार लिखा जाता है – ह् +र = ह, क् + र = क्र।
2. कहीं-कहीं संयुक्त वर्णों का लिखित रूप इस प्रकार बदल जाता है कि मूल रूप का कुछ पता नहीं चलता—
ज्+ज्ज्ञ- ज्ञान, विज्ञान, ज्ञापन, आज्ञा।
तू + र = त्र- त्राण, मित्र, त्रिलोक, त्रास, त्रिकाल
द् + य = द्य (द्य) – विद्या, द्युत, विद्यार्थी।
क् + ष = क्ष – क्षत्रिय, क्षमा, क्षितिज, क्षेत्र।
3. (i) खड़ी पाई (T) वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर ही बनाया जा सकता है—
ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, व्यंजन, नगण्य, कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, प्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य, शय्या, उल्लेख, श्लोक, राष्ट्रीय स्वीकृत लक्ष्य ।
(ii) अन्य व्यंजन-कफ ह- पक्का, वाक्य, बाह्य, दफ्तर।
(iii) च् छ्ट् द् द् द्-इनके संयुक्त अक्षर हल् चिह्न लगाकर बनाए जाते हैं। जैसे— वाङ्मय, गुणाढ्य, विद्या ।
ऋ और रि में अन्तर— हिन्दी में ‘ऋ’ का उच्चारण ‘रि’ के समान होता है। इसका असली उच्चारण लुप्त हो चुका है। संस्कृत में जिन शब्दों में ऋ है वहाँ रि का प्रयोग नहीं हो सकता। इसके लगने से शब्द अशुद्ध हो जाएगा। जैसे- ऋषि (शुद्ध), रिषि (अशुद्ध), कृश (शुद्ध), करिश (अशुद्ध)।
7. अक्षर परिभाषा तथा उदाहरण :
मौखिक भाषा की मूल ध्वनि को व्यक्त करने वाले चिह्न को वर्ण कहते हैं। अक्षर ध्वनि की वह छोटी-से-छोटी इकाई है जिसका उच्चारण एक झटके से होता है। सभी स्वरों का स्वतन्त्र उच्चारण सम्भव है। अतः सभी स्वर अक्षर हैं यथा आ, ऊ आदि। व्यंजन और स्वर दोनों ही वर्ण है पर स्वर अक्षर भी है जब कि व्यंजन अक्षर तभी बनते हैं जब उनमें स्वर मिला हो। यथा – क्, ख् क + अ , खू+अ ।
एक ‘अक्षर’ में स्वर एक ही होता है, परन्तु व्यंजन एक से अधिक हो सकते हैं। हिन्दी में एकाक्षरी शब्द भी प्रयुक्त होते हैं और अनेकाक्षरी भी—
एकाक्षरी शब्द – आ, लो, खा, पी, क्यों, हां।
दो अक्षरी शब्द- आओ चले, जैसे, शाखा ।
तीन अक्षरी शब्द – आई, प्रतिभा, महिला, दौड़ेगा।
चार अक्षरी शब्द- प्रतिभाएं, बरबाद।
पाँच अक्षरी शब्द – अध्यापिकाएं, मनोकामना।
हिन्दी भाषा में पाँच और इससे अधिक अक्षरों वाले शब्द बहुत कम हैं। अब, जब, आम, आज, आसान आदि शब्दों में अन्तिम व्यंजन का उच्चारण अधूरा-सा रहता है परन्तु लिखते समय उसे हलंत नहीं करते।
अन्तिम व्यंजन स्वर-रहित होने के कारण, उच्चारण के अक्षर का रूप धारण नहीं करता परन्तु लिखने में अक्षर ही है।
बलाघात – बोलने में वक्ता शब्द की सभी ध्वनियों, अक्षरों या वाक्यों के सभी शब्दों पर समान बल नहीं देता। भाषा में ध्वनि, अक्षर या शब्द आदि पर यह बल, बलाघात कहलाता है। बलाघात मुख्य रूप में दो बातों पर निर्भर करता है—
(क) उच्चारण के समय उच्चारण अवयवों पर दृढ़ता।
(ख) उच्चारण वायु की शक्ति, जिस ध्वनि, अक्षर या शब्द आदि के उच्चारण में उच्चारण-अवयवों में अपेक्षाकृत अधिक दृढ़ता होती है तथा उच्चारण के लिए प्रयुक्त वायु अधिक दृढ़ता से आती है, वे अधिक बलाघातयुक्त माने जाते हैं। बलाघात वैसे तो ध्वनि, अक्षर, शब्द, वाक्यांश आदि कई मार्मिक इकाइयों पर होता है पर सामान्यतः अक्षर पर के बलाघात की ही अधिक चर्चा होती है।
अनुतान : बोलने से जो सुर का उतार-चढ़ाव (आरोह-अवरोह) होता है, उसे अनुतान कहते हैं। वाक्य स्तर पर इसका महत्त्व है पर शब्द स्तर पर भी इसका अवश्य महत्व है। एक ही शब्द ‘अच्छा’ की विभिन्न अनुतान से स्वीकृति के अर्थ में प्रश्नात्मक रूप में, आश्चर्य के अर्थ में बोला जा सकता है। जैसे—
अच्छा – सामान्य कथन/स्वीकृति
अच्छा ?- प्रश्नवाचक
अच्छा !- आश्चर्य
आमतौर पर लिखित में अनुतान को हम विराम चिह्नों से देखते हैं। जैसे प्रश्नवाचक चिह्न, आश्चर्य या विस्मय के लिए विस्मयादिबोधक चिह्न। एक ही वाक्य मैं मे तीनों चिह्न तीन भिन्न-भिन्न अनुतानों का बोध कराते हैं—
यह बहुत अच्छी तस्वीर है ?
यह बहुत अच्छी तस्वीर है।
यह बहुत अच्छी तस्वीर है।
संगम : उच्चारण में केवल स्वरों और व्यंजनों के उच्चारण, उनकी दीर्घता, उनके संयोग और बलाघात का ही ध्यान नहीं रखना पड़ता वरन् पदीय सीमाओं को भी जानना पड़ता है। इनका सीमा-संकेत ही संगम कहलाता है। प्रवाह में किन अक्षरों के बीच में हल्का-सा विराम है उसको जानना है। संगम वास्तव में इसी विराम का नाम है। संगम की स्थिति में बलाघात में भी अन्तर आ जाता है। दो भिन्न स्थानों पर संगम में दो भिन्न अर्थ निकलते हैं। जैसे—
सिरका = एक तरह का तरल पदार्थ
सिर + का = सिर से सम्बद्ध
जलसा = उत्सव (आज कॉलेज में जलसा है।)
जल + सा = जल की तरह
मनका = माला का मनका
मन + का = मन का (भाव)
इसी प्रकार व्यंजन और स्वर तथा स्वर और व्यंजन के मध्य भी संगम हो सकता है।
उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियां और उनका निराकरण
शुद्ध भाषा लिखने-पढ़ने में शुद्ध उच्चारण का बड़ा महत्त्व है । हिन्दी के सन्दर्भ में तो यह कथन और भी सत्य है, क्योंकि हिन्दी ध्वन्यात्मक या नादानुगामिनी भाषा है। हिन्दी में वर्तनी की जो अनेक अशुद्धियां दिखाई देती हैं उसका एक मात्र प्रधान कारण अशुद्ध उच्चारण है।
नीचे उन शब्दों के उदाहरण दिए जाते हैं, जिनके उच्चारण में सामान्यतः अशुद्धियां होती हैं—
1. ह्रस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ तथा दीर्घ के स्वर के स्थान पर ह्रस्व की अशुद्धियां—
अशुद्ध शुद्ध
आधीन अधीन
आजकाल आजकल
दावात दवात
दावात दावत
हस्ताक्षेप हस्तक्षेप
प्रश्न और अभ्यास
प्रश्न 1. वर्ण का प्रयोग किन दो अर्थों में होता है ?
उत्तर— वर्ण का प्रयोग ध्वनि चिह्न (लिपि चिह्न) दोनों के लिए होता है। इस प्रकार थे वर्ण भाषा के मौखिक तथा लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं।
प्रश्न 2. वर्णमाला से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
प्रश्न 3. स्वर किसे कहते हैं ? ह्रस्व और दीर्घ स्वरों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर— जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा बिना किसी रुकावट के मुँह से निलकती है, उन्हें स्वर कहते हैं।
जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। इसके विपरीत जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगे, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
ह्रस्व स्वर- अ, इ ।
दीर्घ स्वर – आ, ई।
प्रश्न 4. स्वर और व्यंजन में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर— जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा बिना किसी रुकावट के निकलती है उन्हें स्वर तथा जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ मुँह से बाहर आती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजनों के उच्चारण में स्वरों की भी सहायता लेनी पड़ती है।
प्रश्न 5. अनुस्वार और अनुनासिक का अन्तर बताते हुए उदाहरण दें।
उत्तर— अनुस्वार ( ँ ) तथा अनुनासिक ( ँ ) में मूल अन्तर यह है कि अनुनासिक स्वर हैं और अनुस्वार व्यंजन का ही एक है।
उदाहरण- अनुस्वार – हंस, अंत, संसार । अनुनासिक- हँस, चाँद, पाँच ।
प्रश्न 6. व्यंजन-गुच्छ से क्या तात्पर्य है  ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर— जब दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ एक श्वास के झटके से बोले जाते हैं, तो उन्हें व्यंजन-गुच्छ कहते हैं; जैसे- क्यारी, स्मरण ।
प्रश्न 7. अक्षर किसे कहते हैं ? एकाक्षरी और दो अक्षरी शब्दों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर— किसी एक ध्वनि या ध्वनि-समूह की उच्चरित न्यूनतम इकाई को अक्षर कहते हैं। अक्षर का उच्चारण वायु के एक झटके के साथ होता है।
एकाक्षरी शब्द – आ, जा, पी, खा, ला आदि।
दो अक्षरी शब्द – आओ, जाओ, पीपा, लाओ आदि।
प्रश्न 8. बलाघात किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर— किसी शब्द के उच्चारण में किसी अक्षर पर जो बल दिया जाता है। उसे बलाघात कहते हैं। जैसे करण, कमल में क्रमश: ‘क’ तथा ‘म’ पर बल दिया जाता है। अतः ‘र’ तथा ‘म’ बलाघात है। कभी-कभी पूरे शब्द पर भी बलाघात होता है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध कीजिए :
आधीन, सुसोभित, भूषन, अभीश्ट, साधू, रूपया, हानी, मीष्ठान, स्वास्थ्य, पूज्यनीय, कपठ, निरोग, पुर्ण, रामायन, वर्षा ।
उत्तर— अधीन, सुशोभित, भूषण, अभीष्ट, साधु, रुपया, हानि, मिष्ठान्न, स्वास्थ्य, पूजनीय या पूज्य, कपट, नीरोग, पूर्ण, रामायण, वर्षा ।
प्रश्न 10. निम्नलिखित शब्दों को सही ढंग से लिखिए :
सांस, माँस, अंदेरा, रंगना, कागज, खतरा, खिड़कियाँ, आंधी, खबर, गम, जमाना, फायदा, टेलीफोन ।
उत्तर— साँस, मांस, अंधेरा, रंगना, कागज, खतरा, खिड़कियां, आँधी, खबर, ग़म, जमाना, फ़ायदा, टैलीफोन ।

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