JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े घर की बेटी —प्रेमचंद 

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े घर की बेटी —प्रेमचंद

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े घर की बेटी —प्रेमचंद

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions

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 लेखक-परिचय
जीवन-परिचय— मुन्शी प्रेमचन्द जी हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार हैं। उनका जन्म सन् 1880 में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपतराय था। उनका बचपन कठिनाइयों में व्यतीत हुआ परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने एक साधारण अध्यापक से स्कूल सब-इन्स्पेक्टर के पद तक उन्नति की । कुछ समय बाद असहयोग आंदोलन से सहानुभूति रखने के कारण इन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और आजीवन साहित्य – सेवा करते रहे। सन् 1936 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ— प्रेमचन्द जी ने प्रमुख रूप से कथा-साहित्य की ही रचना की है। उनकी रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है—
उपन्यास— प्रेमचन्द जी के प्रसिद्ध उपन्यास हैं—
सेवा सदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन तथा गोदान।
कहानियाँ— प्रेमचन्द जी ने लगभग 300 कहानियों की रचना की । ये कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित हुई हैं।
नाटक— कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी ।
साहित्यिक निबन्ध— कुछ विचार ।
विशेषताएँ— प्रेमचन्द जी का साहित्य समाज सुधार और देश भक्ति की भावना से प्रेरित है। वह अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें किसानों की दयनीय दशा, सामाजिक बन्धन में तड़पती नारी की वेदना तथा हरिजनों की पीड़ा का यथार्थ वर्णन है। उनका साहित्य एक युग का होकर भी सभी युगों का बन गया है। भाषा – भाषा सरल तथा सुबोध है। उर्दू के प्रचलित शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग इनकी भाषा की उल्लेखनीय विशेषता है ।
पाठ का सार
बड़े घर की बेटी’ कहानी प्रेमचन्द जी की चर्चित कहानी है। इस कहानी में उन्होंने एक कुलीन नारी की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार बड़े घर की बेटी एक टूटते हुए परिवार को जोड़ लेती है।
बेनी माधव सिंह गौरीपुर गांव के ज़मींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धनवान् थे। कहते हैं, उनके दरवाजे पर हाथी झूमता था परंतु अब एक बूढ़ीसी भैंस के सिवा और कुछ न था । बेनी माधव की वर्तमान आय एक हज़ार रुपये वार्षिक से अधिक न थी। उनके दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकंठ था। उसने बड़े परिश्रम के बाद बी० ए० की उपाधि प्राप्त की थी। वह एक दफ्तर में नौकर था। छोटे लड़के का नाम लालबिहारी सिंह था। वह दोहरे बदन का सजीला जवान था। श्रीकंठ सिंह की दशा उसके विपरीत थी । वैद्यक ग्रन्थों से उनका विशेष प्रेम था। वे अंग्रेज़ी डिग्री के स्वामी होने पर भी अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे, बल्कि वे उनके निन्दक थे। यही कारण है कि गांव में उनका बड़ा सम्मान था। सम्मिलित कुटुम्ब में उनकी विशेष रुचि थी। इसलिए गांव की कुछ ललनाएं उनकी निन्दा भी करती थीं।
आनन्दी एक ऊंचे कुल की लड़की थी। उसके पिता एक छोटी-सी रिसायत के ताल्लुकेदार थे। उनका नाम था भूपसिंह। वे बड़े प्रतिष्ठित, स्वभाव से उदार तथा प्रतिभाशाली थे। उनके यहां लड़का एक भी न था। सात लड़कियां थीं। तीन का ब्याह इतनी धूमधाम से किया कि कर्जदार बन गये। अब उनमें शादी पर अधिक व्यय करने की सामर्थ्य न थी। एक दिन श्रीकंठ उनके पास किसी चन्दे का रुपया मांगने आये। भूपसिंह उनके स्वभाव पर रीझ गये और अपनी बेटी आनन्दी की शादी बड़ी धूमधाम से उनके साथ कर दी। आनन्दी अपनी सब बहनों से अधिक रूपवती तथा गुणवती थी। ठाकुर भूपसिंह उसे बहुत प्यार करते थे ।
आनन्दी अपने नये घर में आई तो उसने यहां का रंग-ढंग कुछ और ही देखा। अपने मायके का-सा ऐश्वर्य वहां कहां ? वह एक सीधा-सादा देहाती गृहस्थ का मकान था। आनन्दी समझदार थी। उसने थोड़े ही दिनों में अपने आपको इस नयी व्यवस्था के अनुकूल ढाल लिया। ऐसा लगता था मानो, उसने विलास के सामान कभी देखे ही न हों।
एक दिन दोपहर के समय लालबिहारी सिंह दो चिड़ियां मार कर लाया और भावज (आनन्दी) से कहा कि इन्हें जल्दी पका दो। भावज पकाने बैठी तो उसके पास घी अधिक नहीं था, उसने सारा घी मांस में डाल दिया। लाल बिहारी खाने बैठा तो दाल में घी न था। पूछने पर आनन्दी ने बताया कि सारा घी मांस में पड़ गया है। लालबिहारी भूख के कारण पगला-सा बना हुआ था। उसने भावज पर व्यंग्य किया, “मायके में तो चाहे घी की नदी बहती हो।” आनन्दी मायके की निन्दा न सुन सकी। उसने भी अभिमान की भाषा में कहा – “हाथी मरा भी, तो नौ लाख का। वहां इतना घी नित्य नाई-कहार खा जाते हैं।” यह सुनकर लालबिहारी जल गया। देवर-भावज में खूब झगड़ा हुआ। आनन्दी के क्रोध का भी ठिकाना न रहा। उसने कहा, “वह होते तो आज इसका मज़ा चखाते ।” लालबिहारी अनपढ़ और उजड्डू ठाकुर था। उसने खड़ाऊं उठाकर आनन्दी की ओर ज़ोर से फेंकी। आनन्दी ने हाथ से खड़ाऊं रोकी; परंतु अंगुली में बड़ी चोट आ गई।
श्रीकंठ सिंह शनिवार को घर आया करते थे। यह घटना बृहस्पति को घटी थी। अतः आनन्दी दो दिन तक भीतर ही भीतर क्रोध पीती रही। पति के आने पर उसने सारा वृत्तांत सुनाया। आनन्दी की आँखों में आंसू थे। श्रीकंठ के क्रोध की आग भड़क उठी । प्रातः काल होते ही वे पिता के पास गये और कहा कि अब वे इस घर में नहीं रहना चाहते। पिता ने बहुत समझाया परंतु श्री कंठ पर कुछ असर न हुआ। उन्होंने यहां तक कह दिया, “लालबिहारी को अब मैं अपना भाई नहीं समझता।”
लालबिहारी को अपने किये पर पश्चात्ताप हो रहा था। उसने कभी यह कल्पना भी न की थी कि श्रीकंठ उसके प्रति इतने कठोर हो सकते हैं। वह आनन्दी के द्वार पर आकर बोला- “भाभी भैया ने निश्चय किया है कि वह मेरे साथ इस घर में न रहेंगे। अब वह मेरा मुंह नहीं देखना चाहते; इसलिये अब मैं जाता हूं। उन्हें फिर मुंह न दिखाऊंगा। मुझसे जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करना।”
लालबिहारी की बातें सुनकर आनन्दी का हृदय पिघल गया। वह रोने लगी। उसका सारा मैल धुल गया। उसने श्रीकंठ को भी समझाया। लालबिहारी की पश्चात्ताप पूर्ण बातें सुनकर श्री कंठ भी द्रवित हो उठे। उसने लालबिहारी को गले लगा लिया। दोनों भाई फूट-फूट कर रोने लगे। लालबिहारी ने सिसकते हुए कहा- “भैया, अब कभी मत कहना कि तुम्हारा मुंह न देखूंगा। इसके सिवा आप जो दण्ड देंगे, मैं सहर्ष स्वीकार करूंगा।” श्रीकंठ ने उसे आश्वासन दिया और कहा कि ईश्वर चाहेगा, तो फिर ऐसा अवसर न आयेगा। बेनी माधव सिंह दोनों भाइयों को गले मिलते देखकर आनन्द से पुलकित हो गये और बोल उठे”बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।” गांव के लोगों ने भी आनन्दी के व्यवहार की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। सबके मुंह पर एक ही बात थी’बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं।’
कठिन शब्दों के अर्थ— निर्बलता = कमज़ोरी । महानुभाव = सज्जन। धीरता = धैर्य । भाव = विचार | संस्मरण = पूर्व स्मृतियों के आधार पर लिखा गया। निमोनिया = एक प्रकार की बीमारी | निवृत्ति = छुटकारा । आशय = भाव । अविश्वास = विश्वास का न होना । आशंका = शक, सन्देह। निष्ठा = विश्वास । उल्लंघन = किसी नियम का पालन न करना । आदेश = आज्ञा । परिस्थिति = अवस्था । अरमान = इच्छा । अष्ट धातु = आठ धातुओं के मेल से बनी बहुत मज़बूत मिश्रधातु । देहांत = मृत्यु ।
चरित्र-चित्रण—
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न–
1. सम्मिलित कुटुम्ब के तो वह एकमात्र उपासक थे। आजकल स्त्रियों को कुटुम्ब में मिल-जुलकर रहने की जो अरुचि होती है, उसे वह जाति और देश दोनों के लिए हानिकारक समझते थे। यही कारण था कि गांव की ललनाएं उनकी निन्दक थीं। कोई-कोई तो उन्हें अपना शत्रु समझने में भी संकोच न करती थीं। स्वयं उनकी पत्नी का ही इस विषय में उनसे विरोध था। यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास-ससुर, देवर या जेठ आदि से घृणा थी; बल्कि उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने और लेनेदेने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके; तो आये दिन की कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा यही उत्तम है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाए।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित तथा प्रेमचन्द जी द्वारा रचित कहानी ‘बड़े घर की बेटी से अवतरित की गई हैं। श्रीकंठ बेनीमाधव का बेटा था । वह अंग्रेज़ी डिग्री का स्वामी होने पर भी अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं का समर्थक न था। वह भारतीय संस्कृति का उपासक था । प्राचीन हिन्दू सभ्यता का गुणगान उसकी धार्मिकता का प्रतीक था। यहां लेखक ने श्रीकंठ की सम्मिलित परिवार के प्रति निष्ठा पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या— लेखक कहता है कि संयुक्त परिवार के प्रति श्रीकंठ की विशेष आस्था थी। वह मानो इस प्रथा का उपासक था। आजकल की स्त्रियों में संयुक्त परिवार के प्रति जो अरुचि पाई जाती है, उसे वह जाति और देश दोनों के लिए हानिकारक मानते थे। इसीलिए गांव की स्त्रियां उनकी खुलकर निन्दा किया करती थीं। कोई-कोई जो सम्मिलित परिवार की विरोधिनी थी, वह तो उसे अपना शत्रु तक मानती थी । इतना ही नहीं उसकी पत्नी तक इस सम्बन्ध में उसका विरोध करती थी। यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास, ससुर, देवर तथा जेठ आदि से नफरत थी बल्कि उसके विचारों में उदारता थी। उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने तथा ढील देने पर भी परिवार के साथ गुज़ारा न हो सके तो रोज़-रोज़ के झगड़े से यही अच्छा है कि अपनी गृहस्थी अलग बसाई जाए।
विशेष— इन पंक्तियों में श्रीकंठ की संकीर्ण विचारधारा तथा आनन्दी की उदारता का चित्रण है।
भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली वर्णनात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) सम्मिलित कुटुम्ब के एकमात्र समर्थक कौन थे ? 
(ख) गांव की ललनाएं किसकी और क्यों निन्दा करती थीं ? 
(ग) किस की पत्नी क्या चाहती थी ?
उत्तर— (क) सम्मिलित कुटुम्ब के एकमात्र समर्थक श्रीकंठ थे ।
(ख) गांव की ललनाएं श्रीकंठ की निन्दा करती थीं क्योंकि वे स्त्रियों के कुटुम्ब में मिल-जुल कर नहीं रहने को अच्छा नहीं समझते थे।
(ग) श्रीकंठ की पत्नी आनन्दी यह चाहती थी कि यदि सम्मिलित कुटम्ब में मिलजुल कर नहीं रहा जाए तो अलग हो जाना ही अच्छा है।
2. जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा से बाबना मनुष्य ज़रा-जरा सी बात तक तिनक जाता है। लाल बिहारी को भावज की यह ढिठाई बहुत बुरी मालूम हुई, तिनककर बोला- मैके में तो चाहे घी की नदी बहती हो । 
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित तथा प्रेमचन्द जी द्वारा रचित कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक का उद्देश्य बड़े घर की बेटी आनन्दी में स्त्री – सुलभ गुण-दोषों का चित्रण करना है। बड़े घर की बेटी एक साधारण परिवार में आकर स्वयं को बहुत कुछ बदल लेती है, लेकिन उसमें अहं और स्वाभिमान की मात्रा बनी हुई थी । एक दिन उसका देवर लालबिहारी सिंह दो चिड़ियां मार कर लाता है और अपनी भावज से पकाने के लिए कहता है। घर में जो घी था, वह सारा मांस में पड़ जाता है। लालबिहारी सिंह दाल में घी न देखकर झल्ला उठता है। यहां लेखक ने उसकी उसी झल्लाहट का वर्णन किया है।
व्याख्या— लेखक का कथन है कि जिस तरह सूखी लकड़ी बहुत जल्दी जल उठती है, उसी तरह भूख से पागल बना मनुष्य भी मामूली-सी बात पर क्रोध प्रकट करने लगता है। लालबिहारी को अपनी भावज की ढिठाई बहुत बुरी लगी और क्रोधित हो उठा । वह ताने के स्वर में बोला- ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे मायके में घी की नदी बहती है।
विशेष— स्त्री- सुलभ स्वभाव का चित्रण है। लालबिहारी एक ग्रामीण अनपढ़ व्यक्ति है। अतः उस पर भावज के व्यंग्य की प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। लेखक का कथन मनोवैज्ञानिक सूझ-बूझ का परिचायक है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया गया है। भाषा सरल तथा शैली विचारात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न ( क) भूख से व्याकुल व्यक्ति की क्या दशा होती है ? 
(ख) लाल बिहारी की भावज कौन है ? 
(ग) लाल बिहारी तिनककर क्यों बोला ? 
उत्तर— (क) भूख से व्याकुल व्यक्ति बावला होकर जरा-जरा की बात पर क्रोधित हो जाता है।
(ख) लाल बिहारी की भावज आनन्दी है।
(ग) लाल बिहारी की दाल में घी नहीं था, इसलिए वह क्रोधित हो कर बोल रहा था।
3. स्त्री गालियां सह सकती है, मार भी सह लेती है, पर मायके की निन्दा उनसे नहीं सही जाती।
प्रसंग— प्रस्तुत कथन प्रेमचन्द जी की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से अवतरित किया गया है। लाल बिहारी सिंह का अपनी भावज (भाभी) आनन्दी से झगड़ा हो जाता है। लालबिहारी सिंह आनन्दी के मायके की निन्दा करता है। स्त्री को अपने मायके की मान-मर्यादा पर गर्व होता है। वह सब कुछ सहन कर लेती है परंतु मायके की निन्दा सहन करना उसके वश की बात नहीं है।
व्याख्या— लेखक का कथन है कि स्त्री अपने ससुराल में रहकर भी अपने मायके के मान-सम्मान पर आंच आते देखकर तिलमिला उठती है। वह अपने ससुराल वालों की हर बात सहन कर लेती है परंतु मायके की निन्दा सहन नहीं कर पाती। वह गालियां सहन कर सकती है। यहां तक कि अगर मार-पीट की नौबत आ जाए तो वह भी सह लेती है लेकिन अगर उसके मायके पर कोई अंगुली उठाता है तो वह सहन नहीं कर सकती।
विशेष— स्त्री को अपने मायके से बड़ा मोह होता है। अपने मायके की निन्दा सुनकर वह आपे से बाहर हो जाती है। भाषा सहज तथा शैली भावात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) स्त्रियां क्या और क्यों सह लेती हैं ?
(ख) स्त्रियां क्या नहीं सह सकतीं ? 
(ग) किसने किस के मायके की निन्दा की थी ? 
उत्तर— (क) स्त्रियां ससुराल में गालियाँ और मारपीट सहन कर लेती हैं।
(ख) स्त्रियां ससुराल वालों से अपने मायके की निन्दा नहीं सहन कर सकतीं।
(ग) लाल बिहारी ने आनन्दी के मायके की निन्दा की थी ।
4. स्त्री का बल और साहस, मान और मर्यादा पति तक है। उसे अपने पति के ही बल और पुरुषत्व का घमण्ड होता है। आनन्दी खून का घूंट पीकर रह गई। 
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचन्द जी की कहानी ‘बड़े घर की बेटी से ली गई हैं । लालबिहारी सिंह दो चिड़ियां’ मार कर लाता है और अपनी भावज आनन्दी को पकाने के लिए कहता है। घर में केवल पाव भर घी था जो मांस पकाने में लग जाता है। लालबिहारी सिंह दाल में घी न देखकर झल्ला उठता है। देवर-भावज में झगड़े की नौबत आ जाती है। लालबिहारी खडाऊँ से आनन्दी पर प्रहार करता है। विवश आनन्दी खून का घूंट पीकर रह जाती है। वह सोचती है कि इस अत्याचार का बदला तो उसका पति श्रीकण्ठ ही ले सकता है अतः उसे पति की प्रतीक्षा तक इस अपमान को सहन करना होगा।
व्याख्या— पति ही स्त्री का सब कुछ है। उसका बल, साहस, मान तथा मर्यादा पति तक सीमित है। स्त्री को अपने पति के बल पर अपने पुरुषत्व का घमंड होता है। अभिप्राय यह है कि पति कभी भी पत्नी के अपमान को सहन नहीं करता। वह इस अपमान का बदला लेने के लिए अपनी जान पर खेल जाता है। आनन्दी को भी अपने पति के ही बल पर भरोसा था। अतः वह पति के आने तक इस अपमान के घूंट को सहन कर लेती है।
विशेष— भारतीय नारी को अपने पति का ही भरोसा होता है। उसके बल को ही वह अपना बल मानती है। भाषा मुहावरों से युक्त सरल तथा शैली भावात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) स्त्री किस के बल पर भरोसा करती है ? 
(ख) आनन्दी अपमान क्यों सहन कर जाती है ? 
(ग) आनन्दी का किसने कैसे अपमान किया था ? 
उत्तर— (क) स्त्री को अपने पति के बल पर भरोसा होता है।
(ख) आनन्दी अपने पति के आने की प्रतीक्षा में अपमान सह जाती है।
(ग) आनन्दी को उस के देवर लाल बिहारी ने खड़ाऊ मारी थी।
5. इस तरह की विद्रोहपूर्ण बातें कहने पर श्रीकण्ठ में कितनी ही बार अपने कई मित्रों को आड़े हाथों लिया था, परन्तु दुर्भाग्य, आज उन्हें स्वयं वे ही बातें अपने मुंह से कहनी पड़ीं। दूसरों को उपदेश देना भी कितना सहज है।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां प्रेमचन्द जी की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से ली गई हैं। लालबिहारी सिंह तथा आनन्दी में कहा-सुनी हो गई थी। आनन्दी को लालबिहारी की ढिठाई बहुत बुरी लगी। अतः अपने पति श्रीकण्ठ से लालबिहारी द्वारा किए गये अन्यायपूर्ण व्यवहार का वर्णन किया। श्रीकण्ठ वैसे तो धैर्यवान पुरुष थे परंतु आनन्दी के आंसुओं ने उनकी क्रोधाग्नि को भड़काया था। अतः उन्होंने अपने पिता से यह कहा कि अब उनका इस घर में निर्वाह सम्भव नहीं। यहां लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि जो व्यक्ति दूसरों को मिलजुल कर रहने का उपदेश देता था आज स्वयं विद्रोह के पथ पर उतर आता है।
व्याख्या— जब कभी श्रीकण्ठ का कोई मित्र घर से अलग होने के लिए विद्रोहपूर्ण बातें करता तो श्रीकण्ठ उन मित्रों पर नाराज होते और उनको मिलजुल कर रहने के महत्त्व से अवगत करवाते। यह उनके लिये दुर्भाग्य की बात ही थी कि जो विद्रोहपूर्ण बातें उनके मित्र किया करते थे, आज वे स्वयं उन बातों का शिकार हो गए थे। उन्होंने स्वयं को संयुक्त परिवार से अलग करने का फैसला कर लिया था। ऐसा लगता है कि दूसरों को उपदेश देना सरल है। स्वयं उस पर आचरण करना कठिन कार्य है।
विशेष— यहां श्रीकण्ठ पर ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाली लोकोक्ति चरितार्थ होती है। भाषा मुहावरों से युक्त सरल तथा शैली भावात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) श्रीकंठ किस प्रकार की विद्रोहपूर्ण बातों के विरोधी थे ? 
(ख) श्रीकंठ के व्यवहार में परिवर्तन कैसे हुआ ? 
(ग) श्रीकंठ ने आज क्या कहा ?
उत्तर— (क) श्रीकंठ परिवार के विभाजन के विरोधी थे।
(ख) अपनी पत्नी पर छोटे भाई द्वारा किए गए व्यवहार तथा पत्नी के आंसुओं ने उन के व्यवहार को बदल दिया था।
(ग) श्रीकंठ ने आज संयुक्त परिवार ने स्वयं को अलग करने की बात कही थी ।
6. वह मन ही मन पति पर झुंझला रही थी कि यह इतने गरम क्यों होते हैं। उस पर यह भय भी लगा हुआ था कि कहीं मुझ से इलाहाबाद चलने को कहें, तो कैसे क्या करुँगी ? इस बीच में जब उसने लालबिहारी को दरवाजे पर खड़े यह कहते सुना कि अब मैं जाता हूँ, मुझसे जो कुछ अपराध हुआ, क्षमा करना, तो उसका रहा-सहा क्रोध भी पानी हो गया। वह रोने लगी। मन का मैल धोने के लिये नयन-जल से उपयुक्त और कोई वस्तु नहीं है।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां प्रेमचन्द जी की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से अवतरित की गई हैं। लालबिहारी का अपनी भावज आनन्दी से झगड़ा हो जाता है। आनन्दी लालबिहारी की शिकायत अपने पति श्रीकण्ठ से करती है। श्रीकण्ठ के क्रोध की सीमा नहीं रहती। वह घर से अलग होने का निर्णय कर लेता है। उधर लालबिहारी भी घर छोड़ कर जाने के लिये तैयार हो जाता है। आनन्दी को अपने किये पर पछतावा हो रहा था। उसने यह कल्पना भी न की थी कि बात इतनी बढ़ जाएगी। वह स्वभाव से दयालु थी। यहां उसके मन पर होने वाली प्रतिक्रिया का चित्रण है।
व्याख्या— लेखक का कथन है कि आनन्दी को मन में अपने पति पर गुस्सा आ रहा था कि वे इतने गरम क्यों होते हैं। उसके मन में यह डर भी बना हुआ था कि कहीं श्रीकण्ठ उसे इलाहाबाद चलने के लिये न कह दें। वहां जाकर वह क्या करेगी ? इसी समय जब उसने लालबिहारी को दरवाजे पर खड़े यह कहते सुना कि वह जा रहा है, उससे कोई अपराध हुआ हो तो क्षमा करना । इस कथन ने आनन्दी के रहे-सहे क्रोध को भी समाप्त कर दिया। वह रोने लगी। मन का मैल धोने के लिए आंसुओं से अधिक कोई उपयुक्त साधन नहीं। तथा नारी सुलभ दया एवं सहानुभूति का चित्रण है।
विशेष— यहां आनन्दी की सहृदयता भाषा मुहावरों से युक्त सरल तथा शैली भावात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न – (क) कौन मन ही मन और क्यों झुंझला रही थी?
(ख) उस महिला को क्या भय था ?
(ग) लाल बिहारी ने क्या कहा ? 
(घ) आनन्दी के मन का मैल कैसे दूर हुआ ? 
उत्तर— (क) आनन्दी मन ही मन झुंझला रही थी कि उस के पति इतने अधिक क्रोधित क्यों हो रहे हैं।
(ख) आनन्दी को यह भय था कि कहीं उस का पति उसे इलाहाबाद जाने के लिए न कह दे।
(ग) लाल बिहारी ने अपने किए पर पछतावा करते हुए अपनी भाभी से क्षमा मांगी।
(घ) आनन्दी का मन देवर की बातों से भर आया और उसके आंसुओं ने उसके मन का मैल दूर कर दिया।
चरित्र-चित्रण—
प्रश्न 1. ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के आधार पर आनन्दी का चरित्र चित्रण करें। 
उत्तर— आनन्दी ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी की प्रमुख पात्रा है। सम्पूर्ण कहानी का केन्द्र बिन्दु भी यही है। इसी के माध्यम से लेखक ने कहानी के उद्देश्य को अभिव्यक्त किया है। आनन्दी भारतीय नारी की मर्यादा की रक्षक है। उसमें नारी-सुलभ गुण-दोष विद्यमान हैं। उसका चरित्रांकन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है—
उच्चकुलीन – आनन्दी एक ऊंचे कुल की लड़की थी। उसके पिता भूपसिंह एक छोटी-सी रिसायत के ताल्लुकेदार थे। घर में ऐश्वर्य के सभी साधन विद्यमान थे। भूपसिंह की सात लड़कियां थीं। आनन्दी चौथी लड़की थी । वह सब बहनों से अधिक सुन्दर तथा गुणवती थी ।
श्रीकण्ठ से विवाह – श्रीकण्ठ बेनी माधव की सन्तान थे । वे बी० ए० पास थे। वे अंग्रेज़ी समाज के निन्दक तथा भारतीय आचार-व्यवहार के समर्थक थे। भूपसिंह उनके गुणों पर रीझ गये और आनन्दी का विवाह उनसे कर दिया। आनन्दी अपने नये घर में आई, तो यहां का रंग-ढंग कुछ और ही था। जिस टिप-टॉप की उसे बचपन में आदत पड़ी हुई थी, यहां लेशमात्र भी न था । यह एक सीधा-सादा देहाती गृहस्थ का मकान था। आनन्दी समझदार थी। उसने शीघ्र ही स्वयं को परिस्थिति के अनुकूल ढाल लिया था।
स्वाभिमानिनी – आनन्दी ने स्वयं को नये घर की परिस्थिति के अनुरूप बना लिया परंतु उसमें स्वाभिमान और गर्व की भावना बनी हुई थी । एक दिन उसका अपने देवर लालबिहारी से वाद-विवाद हो गया। लालबिहारी ने आपे से बाहर होकर अपनी भावज आनन्दी के मायके की निन्दा की। आनन्दी मायके के अपमान को सहन न कर सकी। लेखक के शब्दों में, “स्त्री गालियां सह लेती हैं; मार भी सह लेती है; पर मैके की निन्दा उससे नहीं सही जाती।”
स्त्री- सुलभ दोष – यद्यपि आनन्दी सामान्य नारी के व्यक्तित्व से ऊंची उठी हुई है परंतु उसमें नारी-सुलभ दोष भी हैं। लालबिहारी उस पर खड़ाऊं फेंकता है। इस प्रकार का अपमान वह सहन नहीं कर सकती। वह क्रोध के मारे हवा से हिलते हुए पत्ते की भान्ति कांपती हुई अपने कमरे में आकर खड़ी हो गई । वह अपने पति श्रीकण्ठ की प्रतीक्षा में थी। वही आकर लाल बिहारी की मज़ा चखायेंगे। लेखक के शब्दों में – “स्त्री का बल और साहस, मान और मर्यादा पति तक है। उसे अपने पति के ही बल और पुरुषत्व का घमंड होता है। “
श्रीकण्ठ के लौटने पर आनन्दी ने लालबिहारी की ढिठाई की जमकर चर्चा की। श्रीकण्ठ की आंखें लाल हो गईं। आनन्दी के आंसुओं ने उनकी क्रोधाग्नि भड़काने के लिए तेल का काम किया। उन्होंने अलग होने का निर्णय कर लिया। पिता से यहां तक कह दिया, “लालबिहारी को अब मैं अपना भाई नहीं समझता।” उधर लालबिहारी भी सारी स्थिति को भांप रहा था। उसे अपने किये पर पश्चात्ताप हो रहा था। वह अपने भाई से अलग नहीं होना चाहता था। उसने आनन्दी के द्वार पर जाकर कहा, “भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि वह मेरे साथ इस घर में न रहेंगे। अब वह मेरा मुंह नहीं देखना चाहते, इसलिए अब मैं जाता हूं। उन्हें फिर मुंह न दिखाऊंगा। मुझसे जो कुछ अपराध हुआ, उसे क्षमा करना ।”
सहृदय नारी – आनन्दी एक सहृदय नारी है। उसने लालबिहारी की शिकायत तो की हो रहा था। उसने यह कल्पना भी न की थी कि बात इतनी थी लेकिन अब उसे पछतावा ज्यादा बढ़ जाएगी। वह अपने पति पर भी झुंझला रही थी कि उन्होंने बात का बतंगड़ क्यों बनाया ? वह रोने लगी। उसके आंसुओं ने उसके हृदय के सारे मैल को धो दिया। आनन्दी की सहृदयता तथा लालबिहारी के पश्चात्ताप ने श्रीकण्ठ के हृदय को भी पिघला दिया। दोनों भाई एक-दूसरे के गले मिलकर खूब रोए। यह दृश्य देखकर बेनी माधव बोल उठे-“. घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं। बिगड़ा हुआ काम बना लेती हैं। “
यह वृत्तान्त सुनकर गांव के सभी लोगों ने आनन्दी के व्यवहार की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की। उसने एक परिवार के बिखरते हुए घोंसले के तिनकों को फिर से इकट्ठा कर दिया था । इस प्रकार लेखक ने ‘बड़े घर की बेटी’ में आनन्दी के चरित्र की जिस रूप में मर्यादा रखी है वह उसके उच्च संस्कारों की परिचायक है। परिवार की स्थिति बिगड़ते देखकर आनन्दी भावी अनिष्ट की कल्पना से सजग हो जाती है और अपने विवेक से काम लेकर पुनः परिवार में सद्भावना का वातावरण बना लेती है। वह अपने घर की मर्यादा की रक्षा करना जानती है। उसके संस्कार बहुत ऊंचे हैं। चारित्रिक विकास की यही स्वाभाविकता उसके चरित्र को कलात्मक स्वरूप प्रदान करती है ।
प्रश्न 2. ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के आधार पर निम्नलिखित पात्रों का चरित्रांकन कीजिए- श्रीकण्ठ, लालबिहारी सिंह, बेनी माधव, भूपसिंह । 
उत्तर— श्रीकण्ठ – श्रीकण्ठ आनन्दी का पति है। वह एक ग्रेजुएट है। वह एक दफ्तर का नौकर है। वह अंग्रेजी सभ्यता एवं आचार-व्यवहार से सर्वथा दूर रहकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का समर्थक है । लेखक के शब्दों में—
“श्रीकण्ठ इस अंग्रेजी डिग्री के अधिपति होने पर भी अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे, बल्कि वह बहुधा बड़े ज़ोर से उसकी निंदा और तिरस्कार किया करते थे। इसी से गांव में उनका बड़ा सम्मान था । दशहरे के दिनों में बड़े उत्साह में रामलीला में सम्मिलित होते और स्वयं किसी-न-किसी पात्र का पार्ट लेते थे। गौरीपुर में रामलीला के वही जन्मदाता थे । प्राचीन हिन्दू सभ्यता का गुणगान उनकी धार्मिकता का प्रधान अंग था । सम्मिलित कुटुम्ब के तो वे एक मात्र उपासक थे। “
श्रीकण्ठ उस समय अपना धैर्य खो बैठता है, जब आनन्दी लालबिहारी के अभद्र व्यवहार का बखान करती है। इस क्रोध के सामने उनकी सारी उपदेश वृत्ति बह जाती है । वे अपने पिता के परामर्श को भी ठुकरा देते हैं। लेखक के शब्दों में – “इलाहाबाद का अनुभव-रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट इस बात को न समझ सका । उसे डिबेटिंग क्लब में अपनी बात पर अड़ने की आदत थी, इन हथकड़ों की उसे क्या ख़बर ? बाप ने जिस मतलब से बात पलटी थी, वह उसकी समझ में न आया । बोला – लालबिहारी के साथ इस घर में नहीं रह सकता।”
श्रीकण्ठ सहृदय भी है। लालबिहारी के पश्चात्ताप तथा आनन्दी के सद्व्यवहार से उसकी सारी कठोरता पिघल जाती है और वह लालबिहारी से कहता है— ” लल्लू ! इन बातों को बिल्कुल भूल जाओ। ईश्वर चाहेगा, तो फिर ऐसा अवसर न आएगा।”
लालबिहारी सिंह- लालबिहारी सिंह बेनी माधव का छोटा बेटा तथा श्रीकण्ठ का छोटा भाई है। दोनों भाइयों में बड़ा अन्तर है। लेखक के शब्दों में – “ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह था। उसने बहुत दिनों के परिश्रम और उद्योग के बाद बी०ए० की डिग्री प्राप्त की थी। अब एक दफ्तर में नौकरी करता था। छोटा लड़का लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ मुखड़ा, चौड़ी छाती ।” भैंस का दो सेर ताज़ा दूध वह उठकर सवेरे पी जाता था। श्रीकंठ सिंह की दशा बिल्कुल विपरीत थी । इन नेत्र प्रिय गुणों को उन्होंने बी० ए० की इन्हीं दो अक्षरों पर न्योछावर कर दिया था। इसी से वैद्यक ग्रंथों पर उनका विशेष प्रेम था। आयुर्वेद पर उनका अधिक विश्वास था।
लालबिहारी के माध्यम से लेखक ने एक अनपढ़, असभ्य तथा अभिष्ट ग्रामीण का परिचय दिया है। आनन्दी का खड़ाऊं से प्रहार करना उसके अभद्र व्यवहार का सूचक है। वह अपनी भावज से यहां तक कह देता है-“जिसके गुमान पर भूली हुई हो, उसे भी देखूंगा और तुम्हें भी ।”
लालबिहारी में उतावलापन है, परंतु वह मानवीय गुणों से वंचित नहीं। अपने बड़े भाई का आदर करता है। उसे अपने दुष्ट व्यवहार पर ग्लानि भी होती है। वह भावज तथा भाई से क्षमा याचना भी करता है। इस तरह अंत में उसके चरित्र का उज्ज्वल भविष्य सामने आता है।
बेनी माधव – बेनी माधव सिंह गौरीपुर गांव के नम्बरदार थे। उनके पितामह सम्पन्न थे परंतु अब स्थिति बदल चुकी थी। वे अपनी आधी से अधिक सम्पत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे। उनकी वर्तमान आय एक हजार रुपये वार्षिक से अधिक न थी। वे अनुभवी व्यक्ति थे। उन्हें अपनी प्रतिष्ठा का पूरा ध्यान था। जब वे परिवार के झगड़े को लोगों के मुंह पर देखते हैं तो सचेत हो जाते हैं। वे नहीं चाहते थे कि लोग तमाशा देखें। लेखक के शब्दों में, “बेनी माधव सिंह पुराने आदमी थे । इन भावों को ताड़ गये। उन्होंने निश्चय किया चाहे कुछ भी क्यों न हो, इन द्रोहियों को ताली बजाने का अवसर न दूंगा।” वे अपने बेटे श्रीकंठ को भी बड़े धैर्य का परिचय देते हुए समझाते हैं, “बेटा, बुद्धिमान लोग मूर्खों की बात पर ध्यान नहीं देते। वह बेसमझ लड़का है। उससे जो कुछ भूल हुई, उसे तुम बड़े होकर क्षमा करो । “
बेनी माधव अपनी पुत्रवधू के सद्व्यवहार पर गर्व का अनुभव करते हुए कहते हैं—
“बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं। “
भूपसिंह – भूपसिंह का चरित्र कुछ ही रेखाओं में स्पष्ट हुआ है। वे एक छोटी-सी रियासत के ताल्लुकेदार थे । विशाल भवन, एक हाथी, तीन कुत्ते, बाज, बहरी शिकरे, झाड़फानूस, आनरेरी मजिस्ट्रेटी और ऋण, जो एक प्रतिष्ठित ताल्लुकेदार के योग्य पदार्थ हैं, सभी यहाँ विद्यमान थे। भूपसिंह बड़े आदर- चित्त तथा प्रतिभाशाली पुरुष थे । लड़का एक भी न था। सात लड़कियाँ थीं। तीन लड़कियों की शादी दिल खोल कर दी । पन्द्रह-बीस हज़ार का कर्ज़ सिर पर था । आनन्दी चौथी लड़की थी । वह सुन्दर तथा गुणवती थी । भूपसिंह उसे बहुत चाहते थे। उनका विवाह उन्होंने श्रीकंठ से धूमधाम से किया ।
प्रश्न 3. ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर— उद्देश्य – ( प्रतिपाद्य में) प्रस्तुत कहानी का मूल उद्देश्य बड़े घर की बेटी की उदारता तथा उसके उच्च संस्कारों पर प्रकाश डालना है। आनन्दी अपने विवेक तथा सद्व्यवहार के बल पर टूटते हुए परिवार को जोड़ लेती है। लेखक ने श्रीकंठ जैसे शिक्षित तथा अनुभवहीन युवक की ओर भी संकेत किया है। उसकी अदूरदर्शिता दिखाना भी लेखक का एक उद्देश्य है। बेनी माधव एक संसारी व्यक्ति हैं। वे दूरदर्शी तथा सूझ-बूझ से सम्पन्न हैं। सारी कहानी का उद्देश्य इस वाक्य में गूंजता है—”बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
बोध
प्रश्न 1. गाँव के निवासी श्रीकंठ सिंह का सम्मान क्यों करते थे ? 
उत्तर— श्रीकंठ अंग्रेज़ी डिग्री के अधिपति होने पर भी अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे बल्कि वे प्रायः बड़े जोर से उनकी निन्दा और तिरस्कार तथा उपेक्षा किया करते थे। इसी कारण गाँव वाले उनका बड़ा सम्मान करते थे।
प्रश्न 2. श्रीकंठ सामूहिक परिवार के पक्ष में क्यों थे ?
उत्तर— श्रीकंठ सामूहिक परिवार के पक्ष में थे क्योंकि इससे परस्पर प्रेम बना रहता है। इसे वे जाति और देश के लिए लाभकारी मानते थे।
प्रश्न 3. सही कथन पर (✓) का चिह्न लगाएँ। ठाकुर भूपसिंह अपनी पुत्री आनन्दी से सबसे अधिक प्यार करते थे क्योंकि—
(क) उसकी आवाज सुरीली थी ।
(ख) वह बहुत पढ़ी-लिखी थी ।
(ग) वह माता-पिता की आज्ञा का पालन करती थी । (घ) वह सब बहनों से अधिक रूपवती और गुणवती थी ।
उत्तर— (घ) वह सब बहनों से अधिक रूपवती और गुणवती थी।
प्रश्न 4. बड़े घर की बेटी होकर भी आनन्दी अपने ससुराल में कैसे प्रसन्नतापूर्वक रहने लगी ?
उत्तर— आनन्दी स्वाभिमानिनी तथा अहंभाव वाली नारी थी। उसमें नारी सुलभ दया का भाव भी था । लालबिहारी सिंह अपने कठोर व्यवहार से उसे रुष्ट कर देता है परंतु बाद में जब बात बढ़ जाती है तो आनन्दी परिस्थितियों से समझौता कर लेती है और घर में प्रसन्नतापूर्वक रहने लगती है।
प्रश्न 5. “जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह से क्षुघा से बावला मनुष्य जरा-जरा सी बात पर तिनक जाता है।” लेखक का यह कथन नीचे दिए गए किस पात्र के संदर्भ में कहा गया है—
(क) श्रीकंठ सिंह
(ख) आनन्दी
(ग) लालबिहारी सिंह
(घ) बेनी माधव सिंह ।
उत्तर— (ग) लालबिहारी सिंह ।
प्रश्न 6. श्रीकंठ की बातें सुनकर लालबिहारी सिंह को क्यों ग्लानि हुई ? 
उत्तर— लालबिहारी के आनन्दी के प्रति कठोर व्यवहार से श्रीकंठ क्रोध से भर गया । लालबिहारी सिंह ने अपने भाई को इतना क्रुद्ध कभी न देखा था। वह उनका बड़ा आदर करता था। श्रीकंठ का भी उसके प्रति बड़ा स्नेह था। वह हमेशा भाई की सुविधा का ध्यान रखता था, लेकिन आज उसकी हृदय विदारक बातें सुनकर लालबिहारी की बड़ी गलि हुई। उसे अपने किये पर पछतावा था परंतु ऐसे कठौर व्यवहार की उसने कल्पना भी की थी।
प्रश्न 7. “बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता काम बना लेती है।” बताएँ यह कथन किसका है ?
उत्तर— बेनी माधव सिंह का
प्रश्न 8. आनन्दी ने “बड़े घर की बेटी” होने का परिचय कैसे दिया ? 
उत्तर— आनन्दी ने लालबिहारी सिंह की शिकायत अवश्य की थी परंतु उसे यह मालूम न था कि बात इतनी बढ़ जाएगी। वह स्वाभिमानिनी अवश्य थी परंतु साथ ही दयावती भी थी। जब उसने लालबिहारी के घर से जाने की बात सुनी तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने लालबिहारी को जाने से रोक लिया। इस प्रकार उसने अपने व्यवहार से एक टूटते हुए परिवार को बचा लिया। गाँव के लोगों ने आनन्दी की प्रशंसा की और कहा कि बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। इस तरह उसने अपने व्यवहार से बड़े घर की बेटी होने का परिचय दिया।
भाषा-अध्ययन—
दो या दो से अधिक शब्दों से बने पबंध को मुहावरा कहते हैं। मुहावरे का सीधा अर्थ न होकर व्यंग्यार्थ होता है, जैसे- “पानी पानी होना” एक मुहावरा है, जिसका व्यंग्यार्थ है – शर्मिंदा होना । मुहावरों के प्रयोग से भाषा तथा भाव प्रभावपूर्ण हो जाते हैं। उदाहरणवह अपने किए पर पानी पानी हो गया। प्रस्तुत कहानी में प्रयुक्त नीचे दिए गए मुहावरों का प्रयोग अपने वाक्यों में करे—
अपनी खिचड़ी अलग पकाना, एक की दो होना, किताबों का कीड़ा होना।
उत्तर— अपनी खिचड़ी अलग पकाना – सबसे अलग रहना – बहुत कुछ सहने और देने पर भी रमेश खुश नहीं हुआ तो सुरेश ने यही अच्छा समझा कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाए।
एक की दो होना- फूट पड़ना। दो भाइयों में एक की दो होने से आपसी प्रेम भाव भी समाप्त हो जाता है।
किताब का कीड़ा होना- हर समय पढ़ते रहना । केवल किताब का कीड़ा होना ही बुद्धिमता के लक्षण नहीं होते, व्यवहार ज्ञान भी आना चाहिए।
योग्यता विस्तार—
1. ‘बड़े घर की बेटी’ में आनंदी एक आदर्श नारी के रूप में चित्रित की गई है। दो भाइयों को मिलाकर वह घर को बिखरने से बचाती है। अगर उसने ऐसा नहीं किया होता तो फिर कहानी दूसरा ही मोड़ ले लेती। तब कहानी क्या मोड़ लेती ? लिख कर कक्षा में सुनाएँ।
2. प्रेमचंद ने हिंदी में तीन सौ से अधिक कहानियां लिखी हैं। उनकी कोई और रोचक कहानी पढ़ें तथा उसका सार लिख कर कक्षा में सुनाएं।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘बड़े घर की बेटी’ कैसे परिवार की कहानी है ? 
उत्तर— संयुक्त परिवार की।
प्रश्न 2. परिवार के मुखिया का क्या नाम था ? 
उत्तर— बेनीमाधव सिंह।
प्रश्न 3. परिवार के पुत्रों के क्या नाम थे ? 
उत्तर— श्रीकंठ और लालबिहारी सिंह ।
प्रश्न 4. श्रीकंठ की पत्नी कौन थी ? 
उत्तर— आनंदी ।
प्रश्न 5. लाल बिहारी ने आनंदी को क्या मारा ? 
उत्तर—  खड़ाऊं ।
प्रश्न 6. लाल बिहारी क्यों बिगड़ा था ?
उत्तर— दाल में घी नहीं था।
प्रश्न 7. श्रीकंठ कैसे पुरुष थे ?
उत्तर— धैर्यवान और शांत ।
प्रश्न 8. श्रीकंठ को क्रोध क्यों आया था ?
उत्तर— अपनी पत्नी के आंसू देखकर।
प्रश्न 9. बेनीमाघव सिंह क्यों घबरा गए ? 
उत्तर— श्रीकंठ ने परिवार से अलग होने की बात सुनकर ।
प्रश्न 10. आनंदी ने लाल बिहारी को क्यों क्षमा किया था ?
उत्तर— उसे पछताते तथा क्षमा मांगते देखकर।
प्रश्न 11. बेनीमाधव सिंह किस गाँव के जमींदार थे ? 
उत्तर— गौरीपुर गाँव के।
प्रश्न 12. आनंदी के पिता का क्या नाम था ? 
उत्तर— भूपसिंह ।
प्रश्न 13. लाल बिहारी सिंह क्या मार कर लाया था ?
उत्तर— दो चिड़ियाँ ।
प्रश्न 14. ‘मैके में तो चाहे घी की नदी बहती हो’- कथन किसका है ? 
उत्तर— लाल बिहारी सिंह का।
प्रश्न 15. स्त्री को अपने पति की किस बात का घमंड होता है ? 
उत्तर— पति के बल और पुरुषत्व का।

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