JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 16 अखबार के शौकीन —अक्षय कुमार जैन

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 16 अखबार के शौकीन —अक्षय कुमार जैन

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लेखक-परिचय
जीवन परिचय— श्री अक्षय कुमार जैन आधुनिक युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। ये दिल्ली और बम्बई से प्रकाशित होने वाले दैनिक नवभारत टाइम्स’ के प्रधान संपादक थे। इनका जन्म सन् 1915 में उ० प्र० के अलीगढ़ जिले में हुआ। इसके पितामह तथा पिता दोनों ही विद्वान्, स्वाध्यायशील साहित्य सेवी थे। पितामह एवं पिता के गुण इन्हें संस्कार रूप में प्राप्त हुए। इनकी शिक्षा अलीगढ़, बनारस और इन्दौर में हुई। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने लिखना प्रारंभ कर दिया था। ‘परित्यक्ता’ इनका प्रसिद्ध कहानी संग्रह है। इनमें पत्रकारिता और देश भक्ति की भावना का खूब विकास हुआ। ये स्वभाव से विनम्र एवं मिलनसार थे। सन् 1992 ई० में इनका निधन हो गया।
इनकी भाषा भावों के अनुरूप है। ये प्रायः व्यावहारिक भाषा के पक्षपाती हैं। विचारों की गम्भीरता के साथ शैली की रोचकता का सुन्दर समन्वय है।
पाठ का सार
प्रस्तुत लेख के रचयिता श्री अक्षय कुमार जैन हैं। इसमें उन्होंने हास्य एवं व्यंग्यपूर्ण शैली के माध्यम से अखबार के शौकीनों का बड़ा स्वाभाविक चित्रण किया है।
लेखक का कथन है कि दोस्तों की दुनिया बहुत पुरानी है। दोस्त कई प्रकार के होते हैंसामान्य दोस्त, अपने दुश्मन के दुश्मन जो संयोग से दोस्त बन जाते हैं, जिगरी दोस्त और चौथे वे जिनसे हम दूर रहना चाहते हैं, पर उन्हें दोस्त कहने के लिए मजबूर हैं।
आज के जीवन में अखबार का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। अखबार के बिना तो जैसे सफर काटना मुश्किल है। अखबार पढ़ने की रुचियाँ और शौक अलग-अलग हैं। सफर करते समय अगर आप के पास कोई अखबार अथवा पत्रिका है तो उसे देखकर आपके पड़ोसी- यात्रियों का पढ़ने का शौक भी जाग उठेगा। एक बार लेखक को दिल्ली से अलीगढ़ जाने का मौका मिला। उन्होंने दो अखबार खरीदे । यात्रियों ने अखबार की दुर्दशा कर दी। अखबार भी उस डिब्बे में निरन्तर यात्रा करता रहा । लेखक ने एक यात्री से जब अपना अखबार मांगा तो उसने उत्तर दिया- ‘आपने भी तो किसी से लिया होगा, हमें भी पढ़ने दीजिए।’ एक बार तो एक स्त्री ने लेखक के अख़बार पर अपने बच्चे को पखाना ही करवा दिया ।
एक बार सफर के मध्य बात चली कि यूरोप और अमेरिका में कोई किसी से अखबार लेकर नहीं पढ़ता। इसके उत्तर में कहा गया कि वहां लोग अमीर हैं। अखबार के पढ़ने वालों के अनेक प्रकार हैं। लोग कई तरह से दूसरों के अखबार पर अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। लोग अखबार के विषय में अनेक प्रकार के प्रश्न करते हैं। एक रिटायर्ड तहसीलदार हैं जो लेखक से अखबार के विषय में अनेक प्रकार के प्रश्न करते हैं। लेखक उन सबके उत्तर देने में असमर्थ रहता है कि एक दिन एक नेता टाइप सज्जन ने तहसीलदार साहिब के यहाँ अखबार मांगी। लेखक को पता चला कि वे सज्जन कहीं भाषण देने जा रहे थे। हाथ में अखबार के रहने से श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि भाषण लोगों को प्रभावशाली न लगे तो उन्हें यह कह कर बहकाया जा सकता है कि इस अखबार में उनका भाषण छपा है।
कठिन शब्दों के अर्थ— व्यापक = बहुत अधिक। प्रचलन = चलन, रिवाज। धचकोले = धक्के। फेहरिस्त = सूची। शाइस्ता = सभ्य, इनायत = कृपा। कारआमद = उपयोगी । निहायत = बहुत। इतमीनान = संतोष सरगर्मी = जोश। ख्वाहिश = इच्छा।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न—
1. समझिए एक मामूली दोस्त, यानि दुनिया के वे लोग जो किसी खास वजह से दुश्मन नहीं, वे सब दोस्त और एक दूर-दराज के वे दोस्त जो संयोग से अपने दुश्मन के दुश्मन हैं, एक जिगरी दोस्त, जिनसे अपने जिगर की बात कही जा सके, एक वे जिनसे आप कतराएं, पर वे हैं कि दोस्ती का दम भरा करें।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ अक्षय कुमार जैन द्वारा रचित निबन्ध ‘अखबार के शौकीन’ से ली गई हैं। यहां लेखक मित्रों के विभिन्न प्रकारों की चर्चा कर रहा है।
व्याख्या— लेखक के अनुसार संसार में अनेक प्रकार के मित्र होते हैं। एक तो साधारण मित्र वे लोग हैं जिनसे किसी प्रकार का राग-द्वेष नहीं होता। दूसरे संयोगवश बने मित्र जिनमें प्रमुख हैं हमारे शत्रु के शत्रु । तीसरे प्रकार के मित्र पक्के और जिगरी दोस्त होते हैं। इनसे हम अपने हृदय की बात खुलकर कर लेते हैं और कह देते हैं। चौथे मित्र वे हैं जो हमसे मित्रता का दम तो भरते हैं मगर हम उनसे कतराते हैं। वे मित्रता का आवरण ओढ़कर कपटाचरण करते हैं ।
विशेष— लेखक ने मित्रों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया है। भाषा उर्दू शब्दों से युक्त सहज तथा शैली वर्णनात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) एक मामूली दोस्त कौन होता है ? 
(ख) जिगरी दोस्त किसे कहते हैं ?
(ग) किन से कतराया जाता हैं ?
उत्तर— (क) एक मामूली दोस्त वे सब व्यक्ति होते हैं, जिनसे हमारी किसी प्रकार की कोई शत्रुता नहीं होती है।
(ख) जिगरी दोस्त वह होता है जो हमारे बहुत नजदीक होता है और जिसे हम अपने दिल की बातें भी खुलकर बता देते हैं।
(ग) जो लोग जबरदस्ती हमारे दोस्त बनना चाहते हैं, परन्तु हम उनसे दोस्ती नहीं रखना चाहते, उनसे कतराया जाता है।
2. ” यह तीर अचूक होगा। आप आजमाकर देख लीजिए।” हमने कहा कि वे पढ़ेलिखों में शायद ऐसा हो जाता है। वे बोले – “नहीं जनाब ! इसका असर उन लोगों पर होता है जो अखबार के शौकीन होने का दावा तो करते हैं, लेकिन पढ़ते नहीं, और ऐसे आपको हजारों ही मिल जाएंगे।’
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां श्री अक्षय कुमार जैन के लेख ‘अखबार के शौकीन’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में एक ऐसे नेता टाइप सज्जन के बारे में बताता है जो भाषण करते सम अखबार दिखाकर जनता पर रौब जमाता है।
व्याख्या— नेता टाइप सज्जन अखबार दिखाकर जनता पर झूठी शान जमाता था। द लेखक को बताया कि यदि भाषण करते समय अखबार दिखाकर यह कहा जाय कि इसमें कल की स्पीच छपी है तो जनता पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। लेखक को संदेह हुआ कि शायद इसका प्रभाव बिन पढ़े-लिखे लोगों पर पड़ता होगा तो वे सज्जन बोले कि इसका प्रभाव पढ़े-लिखों पर ज्यादा पड़ता है क्योंकि आज हर व्यक्ति अखबार खरीदता है, ख का शौकीन है मगर उसे पढ़ने की फुर्सत नहीं मिलती इसलिए वह ऐसी दलीलों पर आसानी से विश्वास कर लेता है।
विशेष— लेखक ने नेताओं की मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है। भाषा उर्दू शब्दों से मिश्रित तथा शैली संवादात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न – (क) कौन-सा तीर अचूक होता है ?
(ख) जनता पर किस बात का प्रभाव पड़ता है ?
(ग) किन लोगों पर अखबार दिखाने का प्रभाव अधिक पड़ता है ? 
उत्तर— (क) अखबार दिखा कर भाषण देने का प्रभाव जनता पर बहुत पड़ता है।
(ख) भाषण देते समय यदि नेता अखबार दिखा कर रहे कि इस में उसका कल का भाषण छपा है तो उसका प्रभाव जनता पर बहुत पड़ता है।
(ग) पढ़े-लिखे लोगों पर अखबार दिखाने का प्रभाव अधिक पड़ता है क्योंकि वे अखबार खरीदते तो हैं परन्तु उसे पूरी तरह पढ़ते नहीं हैं।
3. कहना पड़ेगा कि तभी दोस्तों का नाम शुरू हुआ। पर यह बात तो अगर-मगर की है। जो भी हो, दोस्ती का नाता बड़ा पुराना है, पर है यह नाता ज़िन्दगी के बिल्कुल ज़रूरी।
शब्दार्थ— नाता = सम्बन्ध अगर-मगर की = सन्देह की, टालमटोल की।
प्रसंग— प्रस्तुत गद्यांश अक्षय कुमार जैन द्वारा लिखित निबन्ध ‘ अखबार के शौकीन’ से उद्धृत है। इस लेख में विभिन्न प्रकार के ‘ अखबार के शौकीनों’ का वर्णन किया गया है। लेख के आरम्भ में अक्षय कुमार लिखते हैं कि संसार में दोस्ती का नाता कब से प्रारम्भ हुआ, यह कहना तो कठिन है परन्तु हां, यह नाता बड़ा पुराना है। आदमी पहले जंगलों में रहता था, उस समय किसी परेशानी में फंस कर उसने दूसरे मनुष्य से मित्रता का नाता जोड़ा होगा।
व्याख्या— लेखक का कथन है कि मनुष्य ने दोस्ती का नाता किसी परेशानी में फंसकर ही प्रारम्भ किया परन्तु यह बात है अगर-मगर की, इस सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। पर एक बात निश्चित है कि मित्रता का सम्बन्ध बड़ा पुराना है। अक्षय कुमार जी मैत्री सम्बन्ध के बारे में अपना विचार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि यह सम्बन्ध जीवन के लिए नितान्त आवश्यक है। अभिप्राय यह है कि जीवन में मित्रों का होना बड़ा उपयोगी है। मित्रों का जीवन में होना इसलिए आवश्यक है ताकि सुख-दुःख में वे हमारे साझीदार बन सकें।
विशेष— लेखक मित्रता की आवश्यकता पर बल देता है। भाषा सहज तथा उर्दू शब्दों से युक्त है। शैली भावात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) दोस्ती का नाता कब से प्रारम्भ हुआ होगा और क्यों ? 
(ख) जिन्दगी के लिए क्या बहुत जरूरी है ? 
(ग) ‘अगर-मगर’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— (क) दोस्ती का नाता बहुत प्राचीन काल से चल रहा है। जब मनुष्य किसी कठिनाई में फंस गया होगा, तो उसे अपनी सहायता के लिए किसी दोस्त की आवश्यकता अनुभव हुई होगी।
(ख) जिन्दगी के लिए एक अच्छे दोस्त की दोस्ती बहुत जरूरी होती है।
(ग) किसी बात के सम्बन्ध में जब निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जाता तो वहां अगरमगर की स्थिति होती है।
4. आज की दुनिया पहले की दुनिया से कुछ बहुत अनूठी तो हो नहीं गई, पर अखबारों में सामान्य बातें नहीं छपतीं। छपें भी तो कैसे, उन्हें पढ़ने में पाठक रस ही नहीं लेते।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियां अक्षय कुमार जैन द्वारा लिखित निबन्ध ‘अखबार के शौकीन’ से अवतरित हैं। इस निबन्ध में अनेक प्रकार के ‘अखबार के शौकीनों’ का वर्णन है। लेख के प्रारम्भ में लेखक अपना विचार प्रकट करते हुए कहता है कि दोस्ती का नाता सम्भवतः मनुष्य ने किसी परेशानी में फंस कर प्रारम्भ किया। इसके पश्चात् लेखक बतलाता है कि भिन्न-भिन्न
प्रकार के मित्र होते हैं। यहां लेखक अखबार की विशिष्टता पर प्रकाश डाल रहा है।
व्याख्या— लेखक का कथन है कि आज का संसार पहले के संसार से कोई भिन्न नहीं हो गया है, उसमें कोई विचित्रता नहीं आ गई है, पर अखबारों में सामान्य बातें नहीं छपतीं। अभिप्राय यह है कि अखबारों में आज वे समाचार ही छपते हैं, अथवा उन बातों को ही स्थान मिलता है जो असामान्य हैं तथा जिनको पढ़कर पाठक आश्चर्य में पड़ जाता है। सामान्य बातें अखबारों में छपें तो पाठक उन्हें पढ़ने में रस नहीं लेता।
विशेष— चमत्कारपूर्ण खबरें ही पाठकों को अपनी ओर खींच सकती है। भाषा सहज, सरल तथा शैली विचारात्मक है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (क) आज की दुनिया कैसी है ? 
(ख) अखबारों में क्या छपता है ? 
(ग) अखबारों में पाठ क्या पढ़ना चाहता है ? 
उत्तर— (क) आज की दुनियाँ भी पहले जैसी ही है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
(ख) अखबारों में वह सब कुछ छपता है जो सामान्य नहीं है।
(ग) पाठक अखबार में वह सब कुछ पढ़ना चाहता है जिसे पढ़कर वह आश्चर्यचकित हो जाए।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
बोध
प्रश्न 1. अखबार के जिन शौकीनों की ओर लेखक ने संकेत किया है, क्या वे सच्चे शौकीन कहे जा सकते हैं?
उत्तर— लेखक ने अपने लेख में अखबार के जिन शौकीनों का वर्णन किया है, उन सभी को हम सच्चा शौकीन नहीं कह सकते। केवल रिटायर्ड तहसीलदार को ही हम अखबार का सच्चा शौकीन कह सकते हैं। वे अखबार खरीदकर इसे आदि से अंत तक पढ़ते थे। अन्य सभी तो मांगकर पढ़ने वाले शौकीन थे।
प्रश्न 2. समाचार पत्रों को पढ़ने में सबसे अधिक समय कौन लगा सकता है ? सही उत्तर पर निशान लगाएँ—
(अ) एक व्यस्त व्यक्ति।
(आ) अवकाश प्राप्त व्यक्ति ।
(इ) एक नेता ।
(ई) एक सुशिक्षित व्यक्ति।
उत्तर— (आ) अवकाश प्राप्त व्यक्ति ।
प्रश्न 3. “अखबार हमारे मित्र हैं ?”- प्रस्तुत पाठ के आधार पर इस कथन के समर्थन में पाँच पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर— लेखक के कथन में सच्चाई है। अखबार हमारे मित्र हैं। इनसे हमें कई प्रकार की जानकारी मिलती है। जो बातें हमें अपने मित्रों से भी ज्ञात नहीं होतीं, वे समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हो जाती हैं। अखबार यात्रा में, घर में और सब जगह साथ देते हैं। इनसे हमें कई प्रकार की शिक्षा और प्रेरणा मिलती है। इनसे मनोरंजन भी होता है और देशविदेश में घटित होने वाली घटनाओं का भी पता चलता है।
प्रश्न 4. अपनी यात्राओं के समय लेखक को समाचार पत्र से यथेष्ठ लाभ उठाने में किस प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ा ?
उत्तर— उत्तर के लिए पाठ का सार पढ़ें।
भाषा-अध्ययन—
1. प्रस्तुत रचना में उर्दू शब्दों का स्थान-स्थान पर प्रयोग हुआ है। जैसे- अख़बार, शौकीन, मौका आदि। पाठ में प्रयुक्त दस उर्दू-शब्दों को छाँटकर उनके हिन्दी पर्याय बताएँ तथा उन्हें अपने वाक्यों में प्रयुक्त करें।
1. ख्याल – विचार – आपका विचार अच्छा है।
2. दिमाग – मस्तिष्क- उसका मस्तिष्क खराब है।
3. मुश्किल – कठिन- यह प्रश्न बहुत कठिन है।
4. परेशानी – चिन्ता – आपकी परेशानी का कारण क्या है ?
5. इंसानियत – मानवता-गाँधी मानवता के पुजारी थे। 6. ज्यादा – अधिक- अधिक बोलना अच्छा नहीं।
7. दुश्मन- शत्रु – शत्रु से बचो।
8. गुजरी- बीती- उसकी रात चिन्ता में बीती
9. इनायत – कृपा- आपकी कृपा है।
10. मजेदार – रोचक – उसने एक रोचक कहानी सुनाई।
2. (अ) विग्रह करके समास का नाम बताएँ—
पत्र-पत्रिका, अखबार प्रेमी, खाना-पीना, खून-पसीना, दाल-रोटी।
(आ) संधि-विच्छेद कीजिए—
सज्जन, उल्लेख, उद्योगपति, निराशा ।
उत्तर— (अ) पत्र और पत्रिका – द्वन्द्व
अखबार के प्रेमी – तत्पुरुष ।
खाना और पीना – द्वन्द्व ।
खून और पसीना – द्वन्द्व
दाल और रोटी – द्वन्द्व ।
(आ) सत् + जन, उत् + लेख, उत् + योग + पति, निर् + आशा अथवा निः + आशा।
3. ‘अख़बार – प्रेमी’ दो शब्दों के मेल से बना है- अख़बार और प्रेमी। ‘अख़बार’ फ़ारसी – शब्द हैं तथा ‘प्रेमी’ संस्कृत का शब्द है। जब दो विभिन्न भाषाओं के शब्द-रूप मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, उसे शब्द-संकर कहते हैं। उदाहरण—
‘अजायबघर’ = अजायब (अरबी) + घर (हिंदी), रेलयात्रा = रेल (अंग्रेज़ी) + यात्रा
(संस्कृत) । शब्द-संकर के पाँच उदाहरण लिखकर उनका वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर— (i) जाँचकर्ता – जाँच (हिन्दी), कर्ता (संस्कृत)
(ii) सज़ाप्राप्त – सजा (फ़ारसी) प्राप्त (संस्कृत)
(iii) अगनबोट- अगन (हिन्दी) बोट (अंग्रेज़ी)
(iv) आप्रेशनकक्ष – आप्रेशन (अंग्रेज़ी) कक्ष (संस्कृत)
(v) टिकटघर-टिकट (अंग्रेजी) घर (हिन्दी)
वाक्य— (i) जाँचकर्ता ने सारा हिसाब ठीक बना दिया।
(ii) सज़ाप्राप्त डाकू जेल से भाग गया।
(iii) उसने अगनबोट की सैर की।
(iv) मरीज़ आप्रेशन कक्ष में है।
(v) टिकटघर के आगे भीड़ है।
योग्यता विस्तार—
हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर के अनेक दैनिक समाचार-पत्र छपते हैं, जैसे-जनसत्ता, दैनिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, दि टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया आदि। इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर प्रदेश में भी कई छोटे-बड़े समाचार पत्र छपते हैं। उनकी एक सूची बनाएं।
उत्तर— विद्यार्थी स्वयं करें।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
1. ‘उनके जैसा अखबार का शौकीन हमारे देखने में नहीं आया।’– लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर— अधिकांश पाठक अखबार को सरसरी निगाह से पढ़ते हैं। कुछ थोड़ा समय लगाकर उसे ध्यान से पढ़ते हैं। लेकिन लेखक के एक मित्र, जो अवकाश प्राप्त तहसीलदार थे, वे अखबार का रजिस्टर्ड नम्बर से लेकर मुद्रक का नाम तक पढ़ते थे । वे लेखक से अखबार सम्बन्धी प्रश्न पूछते तो लेखक निरुत्तर हो जाता। इसलिए लेखक ने उक्त कथन का प्रयोग किया है।
2. एक पेट की खुराक है तो दूसरी दिमाग की, फर्क क्या हुआ, हैं तो दोनों खुराक ही । ।” अखबार के शौकीन’ निबन्ध की इन पंक्तियों में पेट की खुराक और दिमाग की खुराक से लेखक का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— पेट की भूख मिटाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है और दिमाग की भूख मिटाने के लिए अध्ययन की ज़रूरत होती है। एक बार यात्रा करते समय एक यात्री ने खरबूजे खरीदे तथा दूसरे ने अखबार । खरबूजा खरीदने वाले ने जब दूसरे यात्री से अखबार मांगा तो उसने कहा कि आपने खरबूजे खाये और हमें पूछा तक नहीं। हमारा अखबार मांगने का आपको क्या अधिकार है ? वस्तुतः ये दोनों ही खुराक हैं। खरबूजा पेट की आग शान्त करता है तो अखबार दिमाग की भूख मिटाता है।
3. तहसीलदार साहब के पास बैठे नेता टाइप सज्जन ने लेखक को अखबार का क्या उपयोग बताया ? 
उत्तर— लेखक के मित्र रिटायर्ड तहसीलदार के पास एक नेता टाइप सज्जन बैठे थे । वे सज्जन कहीं भाषण देने जा रहे थे। वे अपने साथ अखबार ले जाना जरूरी समझते थे। वे जनता पर इस बात का झूठा प्रभाव डालना चाहते थे कि उस अखबार में उनकी स्पीच प्रकाशित हुई है। उन सज्जन ने लेखक को बताया कि इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है और लोग भाषण बड़ी लगन से सुनते हैं। पोल इसलिए नहीं खुलती क्योंकि वास्तविकता की छानबीन करने के लिए लोगों के पास समय ही कहां होता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कौन-सा नाता जिंदगी के लिए बिल्कुल जरूरी है ? 
उत्तर— दोस्ती का ।
प्रश्न 2. जिस व्यक्ति से हम दिल खोल कर अपनी बातें कह सकें वह कैसा दोस्त होता है ?
उत्तर— जिगरी दोस्त।
प्रश्न 3. अखबारों में कैसी खबरें छपती हैं ? 
उत्तर— असामान्य ।
प्रश्न 4. दिल्ली से अलीगढ़ जाते हुए लेखक ने कितने अखबार लिए थे ? 
उत्तर— दो ।
प्रश्न 5. लेखक की अखबार के एक सफे पर पढ़े-लिखे साहब की पत्नी अपने छोटे बच्चे को क्या करा रही थी ? 
उत्तर— सी-सी करा रही थी ।
प्रश्न 6. अखबार मांग कर पढ़ने वाले ने क्या खरीदे थे ? 
उत्तर— खरबूजे ।
प्रश्न 7. अखबार का रजिस्टर नम्बर, वर्ष और अंक कौन पढ़ता था ? 
उत्तर— रिटायर्ड तहसीलदार ।
प्रश्न 8. अखबार में ‘जूनागढ़’ को क्या छाप दिया गया था ?
उत्तर— जूतागढ़।
प्रश्न 9. नेता जी भाषण देने के लिए साथ क्या ले जाते थे ?
उत्तर— अखबार ।
प्रश्न 10. अखबार पढ़ने में सब से अधिक समय कौन लगाता है ? 
उत्तर— अवकाश प्राप्त व्यक्ति ।
प्रश्न 11. लेखक ने कितने प्रकार के दोस्तों का वर्णन किया है ? 
उत्तर— चार प्रकार के।
प्रश्न 12. सफ़र काटना किस के बिना मुश्किल है ? 
उत्तर— अखबार के बिना।
प्रश्न 13. ‘यह तीर अचूक होगा’ कथन किस का है ? 
उत्तर— लेखक का ।
प्रश्न 14. पेट की खुराक कौन-सी होती है ? 
उत्तर— भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थ ।
प्रश्न 15. दिमाग की खुराक क्या है ? 
उत्तर— अखबार तथा अन्य पाठ्य सामग्री।

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