JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 8 ग्रामश्री —सुमित्रानंदन पंत

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 8 ग्रामश्री —सुमित्रानंदन पंत

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 8 ग्रामश्री —सुमित्रानंदन पंत

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Solutions

Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Solutions

J&K State Board class 9 Hindi Solutions

 कवि – परिचय
जीवन परिचय— छायावादी काव्यधारा में सुमित्रानंदन पंत कोमलभावों और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। बाद में इन्होंने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी पर देश की स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों में इन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर कॉलेज छोड़ दिया था। इनका देहांत 28 दिसंबर, सन् 1977 में हुआ था।
रचनाएँ— पंत जी ने काव्य के अतिरिक्त आलोचना, कहानी, आत्मकथा आदि गद्य विधाओं की रचनाएँ, साहित्य को दी हैं। इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युग वाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन। इन्हें पद्मभूषण की उपाधि सन् 1961 में दी गई थी। इन्हें कला और बूढ़ा चाँद पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा चिदंबरा पर ज्ञान पीठ पुरस्कार दिया गया था । इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
काव्यगत विशेषताएँ— पंत जी की प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति चित्रण को विशेष महत्त्व दिया गया था। इन्होंने प्रकृति को नारी रूप में चित्रित किया था। छायावादी कवि होने पर भी ये प्रगतिवादी कविता से प्रभावित हो कर रूढ़ियों को समाज से मिटा देने के लिए तैयार हो गए थे। इनके प्रारंभिक काव्य में जो कोकिल मीठे गीत गाती थी वही बाद में क्रांति के लिए उकसाने लगी थी—
गा कोकिल बरसा पावक कण
नष्ट भ्रष्ट हों जीर्ण पुरातन ।
महर्षि अरविंद से भेंट करने के पश्चात् ये अध्यात्मवादी हो गए थे। इनकी कविता में चिंतन की प्रधानता हो गई थी। ये सत्य पर विश्वास रखते हुए भौतिक समृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करते थे। लोकायतन लोक संस्कृति का महाकाव्य है । वास्तव में पंत जी एक महान् कवि थे जिन्होंने प्रारंभिक सौंदर्य – भावना के युग से आज की चेतना प्रधान युग तक महान् यात्रा की है। वह भाषा का प्रयोग करने में अति निपुण थे। उन जैसा शब्द चयन की क्षमता से युक्त कवि बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है।
ग्राम श्री 
कविता का सार
सुमित्रानंदन पंत के द्वारा चौथे दशक में लिखी गई यह कविता प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोरम वर्णन करने में सक्षम है। खेतों में दूर फैली लहलहाती फसले फल-फूलों से लदी पेड़-पौधों की डालियाँ और गंगा की रेत कवि को बहुत प्रभावित क हैं। दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल प्रतीत होती है कि पर सूर्य की किरणें चाँदी की जाली के समान बिखरी हुई हैं। हरी-भरी धरती पर नी आकाश का पर्दा-सा फैला हुआ है। गेहूँ की बालियाँ, अरहर और सनई की सोने किंकिणियां शोभा देने वाली हैं। हरी-भरी धरती से नीली तीसी झाँकती हुई अद्भुत प्रती होती है। मटर और छीमियाँ पर रंग-बिरंगी सुंदर तितलियाँ मँडराती फिरती हैं। आम के डालियाँ चाँदी सोने की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पेड़ों से पत्ते झड लगे हैं। कोयल मस्ती में डूब कर कूक रही है। कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली अपना रंग-रूप बिखराने लगे हैं। पीले-पले अमरूदों प लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। पीले-पीले बेर पक गए हैं। पेड़ों पर आँवले झूल रहे हैं पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि सब ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी-अपनी शोभा को लेकर प्रकट हो गए हैं। गंगा नदी के किनारे रेत पर पानी के बहाव से सतरंग साँप से अंकित हो गए हैं। नदी के तट पर तरबूजों की खेती की गई है। किनारों पर बगुले अपने पैरों की अँगुलियों रूपी कंघी से अपने पँख संवारते शोभा देते हैं। जल में तैरत सुरखाब और पुल पर सोई मगरौठी सुंदर लगती है। सर्दियों की धूप फैल गई है। हरियाली अलसाई-सी प्रतीत हो रही है। सारा गाँव पन्ना का खुला डिब्बा-सा प्रतीत होता है जिस पर साफ़-स्वच्छ आकाश रूपी नीलम फैला हुआ है। शीत ऋतु बीत जाने के बाद प्राकृतिक-शोभ सभी के हृदय को अपने बस में कर रही है। सर्वत्र सुंदरता बिखरी हुई है।
सप्रसंग व्याख्या
1. फैली खेतों में दूर तलक 
मखमल की कोमल हरियाली
लिपटी जिससे रवि की किरणें 
चाँदी की सी उजली जाली ।
तिनकों के हरे-हरे तन पर 
हिल हरित रुधिर है रहा झलक, 
श्याम भू तल पर झुका हुआ 
नभ का चिर निर्मल नील फलक ।
शब्दार्थ— तलक = तक । रवि = सूर्य | तन = शरीर । हरित = हरे-भरे। रुधिर रक्त। श्यामल = गहरा हरा कुछ-कुछ श्याम रंग का। भू = धरती । नभ = आकाश चि = लंबे समय से । नील = नीला। फलक = पर्दा, आकाश ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कवित ‘ग्राम श्री’ से अवतरित किया गया है जिस के रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-हरे खेतों और अंपार प्राकृतिक सुंदरता का मनोरम चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि खेतों में दूर तक उगी हरी-भरी फसलों की मखमली शोभा फैली हुई है। सुबह-सवेरे जब सूर्य की किरणें प्रकट होती हैं तो ऐसा लगता है कि उन पर चाँदी जैसी उजली जाली-सी लिपट गई है। फसलों के हरे-भरे तन पर धूप की चमक ऐसी प्रतीत होती है जैसे उनमें विद्यमान उनका हरा रक्त निरंतर प्रवाहित हो रहा हो। फसलें गहरे हरे रंग की हैं जिनके कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा है जिस पर सदा की तरह साफ़-स्वच्छ नीला आकाश झुका हुआ-सा दिखाई दे रहा है। भाव है कि हरी-भरी फसलों से भरे खेतों पर झुका हुआ नीला आकाश अद्भुत दिखाई दे रहा है।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) खेतों में फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है? 
(ख) हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) खेतों में फैली फसलों की हरियाली दूर तक फैली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनका हरा-रक्त रूपी शक्ति झलकती हुई दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) सदा से ही साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरे खेतों पर झुका हुआ है।
(घ) छायावादी काव्यधारा की प्रवृत्ति प्रकृति चित्रण से संबंधित अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति, प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है । स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है ।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा 
आई जौ गेहूँ में बाली, 
अरहर सनई की सोने की 
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली ! 
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध 
फूली सरसों पीली पीली 
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली ! 
शब्दार्थ— वसुधा = धरती । सनई = सन, जिस की छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणियाँ = करघनी । तैलाक्त = तेल से युक्त | तीसी = अलसी नामक तेलहन ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने बसंत ऋतु के आगमन पर गाँव के खेतों में दिखाई देने वाले अद्भुत परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि गेहूँ-जौं की फसलों पर बालियां लग गई हैं। इसलिए सारी धरती रोमांचित-सी प्रतीत होती है। अरहर और सनई पर सुनहरे रंग की बालियाँ गई हैं जो करघनी के समान शोभादायक प्रतीत होती हैं। सारे खेतों में सरसों के तेल. युक्त भीनी-भीनी गंध फैली हुई है। पीली-पीली सरसों सब तरफ फैली हुई है। आश्चर्य में भर कर कहता है कि जरा देखो तो, हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों नीली – नीली कलियां भी झाँकने लगी हैं। भाव है कि हरे-भरे खेतों में नीले-पीले, रंग अलग से ही अपनी सुंदरता दिखाने लगे हैं।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि ने पृथ्वी को रोमांचित होते हुए कब माना है ? 
(ख) सोने जैसी करघनियाँ किन की हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहां दिखाई दी
थी  ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) कवि ने गेहूँ और जौ की बालियों को देख पृथ्वी को रोमांचित होते माना है।
(ख) सोने की करघनियां अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी l
(घ) कवि ने ऋतु परिवर्तन पर वसंत में खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयत और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुकि प्रकाश अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।
3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल 
हँस रही संखिया मटर खड़ी, 
मखमली पेटियों सी लटकी 
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी ! 
फिरती हैं रंग-रंग की तितली 
रंग-रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं 
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर ! 
शदार्थ— रिलमिल = मिल-जुल कर। छीमियाँ = फलियाँ | वृंत = डंठल ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कवि, ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-भरे खेतों में मटर की बेलों पर लटकी फलियों और फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की शोभा क चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि मटर की बेलें तरह-तरह के रंगों के फूलों से मिल-जुल कर हँसती-मुस्काती खड़ी हैं। उनकी हरी-भरी फलियाँ अपने भीतर बीजों की लड़ियों को छिपा कर मखमल की पेटियों की तरह लटकी हुई हैं। बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियां मंडरा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि फूलों पर फूल ही गिर रहे हों। डंठलों पर जैसे डंठल ही उड़ उड़ कर घूम रहे हों।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ? 
(ख) मखमली पेटियों में प्रकृति ने क्या छिपाया है ?
(ग) फूलों पर फूल गिरते हुए किस के लिए प्रकट किया है ? 
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियां मखमली-पेटियों के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मंडरा रही हैं। कवि ने कल्पना की है कि रंग-बिरंगे फूल ही माना रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से 
लद गई आम्र तरु की डाली, 
झर रहे ढाक, पीपल के दल, 
हो उठी कोकिला मतवाली । 
महके कटहल, मुकुलित जामुन, 
जंगल में झर बेरी झूली, 
फूले आड़, नींबू, दाड़िम, 
आलू, गोभी, बैंगन, मूली ।
शब्दार्थ— रजत = चाँदी । स्वर्ण = सोना । मंजरियां = बौर। आम्र= आम | तरु = पेड़। दल = पत्ते । डाली = शाखा । कोकिला = कोयल। मुकुलित अधखिला। दाड़िम = = अनार ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति में आए परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि आम के पेड़ों की शाखाएं सोने-चाँदी के रंगों से युक्त बौर से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पुराने पत्ते पेड़ों से गिर रहे हैं ताकि उनका स्थान नए पत्ते ले सकें। कोयल मस्ती से भर उठी है। कटहल पेड़ों पर चिपके-लटके महकने लगे
हैं। अधखिले जामुन के पेड़ शोभा देने लगे हैं और जंगल में झरबेरी मस्ती में झूमने लगी है। पेड़ों पर आड़, नींबू और अनार झूमने लगे हैं और खेतों में आलू, गोभी, और मूली तैयार हो गई हैं। भाव है कि सारी प्रकृति तरह-तरह के पेड़-पौधों की शोभा भर उठी है।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ? 
(ख) किन-किन पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे थे ? 
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किस ने प्रकट किया था ? 
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) आम के पेड़ सर्दी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गई l कोकिल उन पर मस्ती में भर कर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे हैं ताकि उनकी जगह नए और सुंदर फ ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था ।
(घ) कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्स शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान | बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोदि अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है|| गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है ।
5. पीले मीठे अमरूदों में 
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं, 
पक गए सुनहले मधुर बेर, 
अँवली से तरु की डाल जड़ी ! 
लहलह पालक, महमह धानिया, 
लौकी औ सेम फलीं, फैलीं 
मखमली टमाटर हुए लाल 
मिरचों की बड़ी हरी थैली ! 
शब्दार्थ— चित्तियाँ = धब्बे । सुनहले = सोने के रंग के । अँवली = छोटा आँवल तरु = पेड़।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कवि ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं । कवि ने वसंत ऋतु तरह-तरह के फलों और सब्जियों की विशेषताओं का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि पक कर अमरूद पीले और मीठे हो गए हैं। उन छोटे-छोटे लाल धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे उनकी सुंदरता बढ़ गई है। सुनहरे बेर पक तैयार हो गए हैं और छोटे आँवलों से पेड़ों की शाखाएं जुड़ गई हैं। खेतों में हरीपालक लहलहाने लगी है तो धनिए की सुगंध महकने लगी है। लौकी और सेम की  बेल दूर-दूर तक फैल गई हैं और फल गई हैं। लाल रंग के मखमली टमाटरों से पौधे लद गए हैं। हरी मिर्चों से पौधे भर गए हैं जिस कारण पौधे तो हरी-भरी थैली के समान दिखाई देने लगे हैं।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ? 
(ख) पेड़ों की ऊँचाई पर बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्जियों पर बहार कैसी-कैसी है ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले पेड़ों पर शोभा दे रहे हैं। बेर पक कर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है, धनिया महक रही है, लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने गाँवों में उगने वाली सब्जियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा
शब्द शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित 
गंगा की सतरंगी रेती 
सुंदर लगती सरपत छाई 
तट पर तरबूजों की खेती, 
अँगुली भी कंघी से बगुले 
कलँगी सँवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर 
मगरौठी रहती सोई !
शब्दार्थ— बालू = रेत । सरपत = घास-पात, तिनके । तट = किनारा। सुरखाब = चक्रवाक पक्षी ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने गंगा किनारे की रेत और वहां पर पक्षियों की क्रीड़ाओं का अति स्वाभाविक चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि गंगा के किनारों पर सात रंगों में जगमगाती रेत पर नदी की लहरों के साँपों जैसे सुंदर लहरिया निशान बने हुए हैं। वहाँ फैले घास-पात और तिनके अति सुंदर लगते हैं। रेत में तट पर तरबूजों की खेती की हुई है। सफ़ेद बगुलों में से कई अपने पंजों रूपी अँगुलियों से कलगी सँवार रहे हैं तो चक्रवाक पक्षी जल पर तैर रहे हैं। पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है। भाव है कि गंगा किनारे का दृश्य अति मोहक है। प्रकृति ने अपने सभी रंग वहां बिखेर रखे हैं।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) गंगा किनारे का कवि द्वारा अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए। 
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है जिस पर लहरों के बहाव के साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और न जाने कहाँ-कहाँ से बह कर क इकट्ठे हो गए हैं जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजों रूपी कँघी से कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी पुलिया पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किय है । रेत पर साँप – सी लहरियां, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएं अति सहज रू से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता । अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप 
सुख से अलसाए-से- सोए 
भीगी अँधियाली में निशि की 
तारक स्वप्नों में से खोए—
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम—
जिस पर नीलम नभ आच्छादन—
निरूपम हिमांत में स्निग्ध शांत  
निज शोभा से हरता जन मन ! 
शब्दार्थ— हिम- आतप सर्दी की धूप। अंधियाली = अँधेरे । निशि = रात । तारक | = तारे | स्वप्नों = सपनों । मरकत = पन्ना नामक रत्न । आच्छादन = छाया । निरूपम जिससे किसी की उपमा न दी जा सके। स्निग्ध = कोमल । निज अपनी हरना = । आकर्षित करना ।
प्रसंग— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत के आगमन पर ग्रामीण आँचल में बिखरी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या— कवि कहता है कि प्रसन्नता से भरी हँसमुख हरियाली सर्दी की धूप में सुख से अलसाई सो सी रही है। ओस से भीगी अंधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारे भी मानों स्वप्नों में खोए हुए हैं। सारा गांव हरियाली से इस प्रकार भरा हुआ है जैसे वह पन्ना जैसा हरा-भरा बहुमूल्य रत्न हो जिस पर नीलम जैसा नीला आकाश छाया हुआ हो। शीत ऋतु की समाप्ति पर सारा गाँव अनुपम है। वह कोमल, अति सुंदर और शांत है जो अपनी अपार शोभा से हर मानव के हृदय को आकर्षित करता है। भाव है कि शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन पर गाँव की शोभा अवर्णनीय है; अद्भुत है।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है ? 
(ख) ‘भीगी अंधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) वसंत आगमन पर सर्दियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेजी बढ़ने लगती है। दिन-रात सर्दी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गर्मी पा कर अलसाने लगी थी। इसीलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई-सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सर्दियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अंधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है इसीलिए कवि ने उसे भीगी अंधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उस के कण-कण में सिमटी हुई है इसीलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बा-सा’ माना है।.
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है। कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहजस्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है ।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ क्यों कहा है ? 
उत्तर— गांव हरियाली से भरा हुआ है । वह बहुमूल्य रत्न पन्ना के डिब्बे जैसा है जिस के कण-कण में हरियाली बसी हुई है। वह शांत है, स्निग्ध है और इसलिए कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ कहा है ।
प्रश्न 2. कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?  
उत्तर— कविता में शीत ऋतु के अंत और वसंत के मौसम का वर्णन किया है।’
प्रश्न 3. गांव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा गया है ? 
उत्तर— गाँव के खेत हरी-भरी लहलहाती फसलों से भरे हुए हैं। पेड़-पौधों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है । तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अनाज के पेड़ – पौधे-फसलें अपनी हरी-भरी सुंदरता से सब के हृदय को आकृष्ट करते हैं। गाँव हरियाली की अधिकता के कारण उसे ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ कहा गया है।
प्रश्न 4. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ? 
उत्तर— कवि को अरहर और सनई के खेत सोने की करधनियों के समान शोभाशाली दिखाई देते हैं।
प्रश्न 5. भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) बालू के साँपों से अंकित
(ख) हँसमुख हरियाली हिम आतप सुख से अलसाए से सोए
उत्तर— (क) जब गंगा की लहरें रेत को गीला कर पीछे हट जाती हैं तो उन लहरियों के निशान सूखी रेत पर साँपों के समान दिखाई देते हैं।
(ख) शीत ऋतु के जाने और वसंत के आगमन पर धूप में तेजी आने लगती है। वातावरण में गर्मी बढ़ने लगती है। सर्दी से भयभीत सी वनस्पतियाँ भी सुख का अनुभव करने लगती हैं। ऐसा लगता है जैसे सर्दी की धूप को पाकर हँसमुख हरियाली भी सुस्ताने लगती है, उसे हल्की-हल्की नींद-सी आने लगती है।
प्रश्न 6. निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर— इन पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।
प्रश्न 7. इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है ?
उत्तर— इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के गंगा नदी के किनारे किसी भू-भाग पर स्थित है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 8. भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी ? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर— ‘ग्राम श्री’ भारतीय गाँवों में सर्वत्र फैली प्राकृतिक शोभा की सुंदर झांकी है। वसंत के आगमन पर पेड़-पौधों का हरा-भरा रूप सब के मन को मोह लेता है। लहलहाती फसलें जहाँ पेट भरने का आधार बनती हैं वहाँ मन और आँखों को तृप्ति भी प्रदान करती हैं। यह कविता कल्पना के आधार पर स्थित नहीं है बल्कि यथार्थ का रूप चित्रण करती है। सूर्य की उजली धूप में खेतों की मखमली शोभा और अधिक निखर जाती है। नीले आकाश के नीचे फसलें हवा में हिलती हुई ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे वे यौवन को पा मस्ती में झूमने लगी हों। सरसों के पीले-पीले फूलों की बहार, अरहर और सनई की स्वर्णिम किंकिणियां और अलसी की नीली कलियाँ हरी-भरी धरती पर अनूठी प्रतीत होती हैं। मटर के खेतों में रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ हर पल मंडराती रहती हैं। आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं, कोयलें कूकने लगती हैं, कटहल महक उठते हैं, जामुन फूल उठते हैं, अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियां पड़ जाती है तथा तरह-तरह की सब्ज़ियाँ अपनी शोभा बिखराने लगती हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती लहलहाती है तो जलीय पक्षी अपनी ही मस्ती में क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं। कवि ने प्राकृतिक रंगों को अति स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। खड़ी बोली में रचित कविता में तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। छंद बद्ध कविता में लयात्मकता की सृष्टि हुई है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति के प्रयोग ने कथन को सरलता और स्पष्टता दी है। निश्चित रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्राम श्री श्रेष्ठ कविता है जिसमें चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। यह प्रकृति का चित्रण करने वाला रंग-बिरंगा चित्र है।
प्रश्न 9. आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य का कविता या गद्य में वर्णन कीजिए।
उत्तर— जिस क्षेत्र में मैं रहता हूँ वह भारत का ‘धान का कटोरा’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ धान की श्रेष्ठ किस्में उत्पन्न होती हैं जो भारत में ही नहीं खाई जातीं बल्कि विश्व के अधिकांश विकसित देशों को भी निर्यात की जाती हैं। वर्षा ऋतु का इस फसल के लिए बहुत बड़ा योगदान है। जुलाई-अगस्त महीनों में मानसून अपने पूरे रंग में आ जाती है। कई बार तो आकाश में बादल अचानक उमड़ते हैं और भरपूर वर्षा करते हैं। बच्चों को बारिश में भीगते हुए अपने-अपने स्कूलों में जाने-आने का विशेष आनंद आता है। गाँव के कई स्कूल कच्चे हैं वहां तो छुट्टी कर दी जाती है और बच्चे गलियों में नहाते हैं, भीगते हैं, खेलते हैं। कुछ किसान खेतों की ओर चल देते हैं तो कुछ चौपाल में बैठ गप्पें लगाते हैं। औरतें मिल-जुल कर एक साथ घर के काम निपटाती हैं, लोकगीत गाती हैं। गलियों में पानी भर-भर कर बहता है। कहीं-कहीं तो वह छोटी-सी नहर ही प्रतीत होती है। भैंसों को पानी में भीगना पसंद है पर गउएं सिर छिपाने की जगह ढूँढ़ कर आराम से जुगाली करती हैं।
पाठेत्तर सक्रियता—
• सुमित्रानंदन पंत ने यह कविता चौथे दशक में लिखी थी। उस समय के गाँव में और आज के गाँव में आप को क्या परिवर्तन नज़र आते हैं ? इस पर कक्षा में सामूहिक चर्चा कीजिए।
• अपने अध्यापक के साथ गाँव की यात्रा करें और जिन फसलों और पेड़-पौधों का चित्रण प्रस्तुत कविता में हुआ है, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें। 
उत्तर— अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न-कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए। 
उत्तर— कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था, वहाँ की छवियां उस के मन में रची-बसी हुई थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों और फसलों पर ही बहार नहीं आ जाती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएं हर पल तटों को नहलाती आगे बढ़ती जाती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है, दूर-दूर से बह कर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान रेत भरे तटों पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगियाँ संवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. खेतों में दूर तक किस जैसी कोमल हरियाली फैली है ? 
उत्तर— मक्खन जैसी।
प्रश्न 2. किस के कारण धरती का तल श्यामल लग रहा है ? 
उत्तर— हरे रंग की फ़सल के कारण।
प्रश्न 3. अरहर और सनई पर किस रंग की बालियाँ लग गई हैं ? 
उत्तर— सुनहरे रंग की ।
प्रश्न 4. सरसों के फूल किस रंग के हो गए हैं ?
उत्तर— पीले रंग के ।
प्रश्न 5. किस पौधे की कलियाँ नीली होती हैं ? 
उत्तर— तीसी ।
प्रश्न 6. पेड़ों पर चिपके-चिपके कौन महक रहा है ? 
उत्तर— कटहल ।
प्रश्न 7. आम की डालियों पर कैसी मंजरियाँ आई हैं ? 
उत्तर— सोने-चाँदी जैसी ।
प्रश्न 8. गंगा किनारे कैसे निशान बने हुए हैं ? 
उत्तर— लहरियेदार ।
प्रश्न 9. कवि ने मरकत का डिब्बा-सा किसे कहा है ? 
उत्तर— गाँव को ।
प्रश्न 10. गंगा तट पर किस की खेती हुई है ? 
उत्तर— तरबूज़ों की ।
प्रश्न 11. ‘ग्राम्य’, ‘वीणा’ किसकी रचनाएं हैं ?
                             अथवा
‘ग्रामश्री’ कविता के कवि कौन हैं ? 
उत्तर— सुमित्रानंदन पंत ।

Follow on Facebook page – Click Here

Google News join in – Click Here

Read More Asia News – Click Here

Read More Sports News – Click Here

Read More Crypto News – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *