KBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 9 मेघ आए —सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 9 मेघ आए —सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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 कवि-परिचय
जीवन परिचय— आधुनिक हिंदी कविता में श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की अपनी अलग ही पहचान है। इन्होंने कवि होने के साथसाथ पत्रकारिता को अपना कर्म क्षेत्र बनाया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 को हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने जीवन यापन के लिए अनेक कष्ट उठाए थे। यह कुछ देर तक आकाशवाणी से भी संबद्ध रहे थे। संपादक के रूप में भी उनकी प्रतिभा ‘दिनमान’ और बाल पत्रिका ‘पराग’ में उभरी थी। सन् 1983 ई० में इन का निधन हो गया था।
रचनाएँ— सक्सेना जी ने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी गति दिखाई है। उनकी प्रसिद्ध काव्य-कृतियां काठ की घंटियां, एक सूनी नाव, बांस का पुल, गर्म हवाएं, जंगल का दर्द, कुआनो नदी, खूंटियों पर टंगे लोग हैं। इन्हें ‘दिनमान’ में चरचे और चरखे के लिए प्रसिद्धि मिली थी । इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
काव्यगत विशेषताएँ— सक्सेना जी की कविता में जीवनाभूति के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं। उन्होंने ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त सुख-दुःख का बड़ा सफल उद्घाटन किया है। मानव-मन की गुत्थियों के उलझाव को व्यक्त करने में भी इनकी कविता सफल रही है। आशा और विजय का संदेश इनकी कविताओं की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। उनके काव्य की विविधता यह प्रमाणित करती है कि उनमें लोकोन्मुखता है। इसलिए वे लोक जीवन को अपने लोक गीतों में प्रस्तुत करते रहे। गाँव में व्याप्त दरिद्रता का भी उन्होंने यथार्थ और मार्मिक चित्र अंकित किया है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने बच्चों से लेकर प्रबुद्ध जनों तक के लिए साहित्य की रचना की। उन्होंने काव्य में सत्य की गहरी चोट को पकड़ा है। उनकी कविताएं भीतर तक कुरेदती हैं। उनकी कविता में अंधेरा और अकेलापन भी रोशनी की तरफ चलने का हमेशा संकेत देता है—
अंधेरा को सूंघकर मैंने देखा है उसमें सूरज की गंध आती है।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता में क्रांति का स्वर भी है। वे शोषित-दलित वर्ग के लिए ‘धूल’ के माध्यम से चेतावनी देते हैं जिससे उसे अपनी शक्ति का एहसास हो । कवि ने लीक पर चलने वाले अर्थात् परंपरावादियों का विरोध किया है। कवि ने अपना रास्ता अपनी ही कुदाली से बनाने की प्रेरणा दी है। बनी बनाई लकीर पर चलना कमजोरी का प्रतीक है। संघर्ष द्वारा बनाया गया रास्ता ही जीवनोपयोगी होता है। नये पथ पर नये जीवन मूल्यों का निर्माण करने के लिए प्रकृति की स्वच्छंदता, अल्हड़ता, जीवन धर्म तथा रचनात्मक शक्ति का सहारा लेना चाहिए। वे कहते है—
लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं। 
इनकी भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने अलंकृत अथवा असाधारण भाषा का प्रयोग नहीं किया है। वे अपनी बात सीधी-सादी भाषा में कह देते हैं। इन्होंने मुख्य रूप से मुक्तक रचनाएं लिखी हैं। नये अप्रस्तुतों और बिंबों की रचना करना उनके काव्य की विशेषता है। चित्रात्मकता इनके काव्य की अन्य विशेषता है। विषयवस्तु की दृष्टि से इनके काव्य में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही कवि ने समसामयिक जीवन की विसंगतियों का भी यथार्थ अंकन किया है। इस कारण ये शिल्प-विधान की अपेक्षा विषय-वस्तु को अधिक महत्त्व देते हैं।
मेघ आए 
कविता का सार 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त कविता है। इसमें कवि ने मेघों की तुलना गाँव में सज-संवरकर आने वाले दामाद के साथ की है। जिस प्रकार दामाद के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती पर भी प्राकृतिक उपादान उमंग में झूम उठते हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उमंग, उत्साह तथा उपालंभ आदि भावों को बड़े सजीव ढंग से चित्रमयता के साथ कविता में वर्णित किया है। मेघ रूपी बादलों के आगे-आगे हवा नाचते-गाते हुए बढ़ती है।
गली-मुहल्ले की खिड़कियां एक-एक कर खुलने लगती हैं ताकि बने-ठने मेघों को देख सकें। पेड़ झुक झुक कर गरदन उचकाकर उसे देखने लगे तो धूल घाघरा उठा कर आंधी के साथ भाग चली । बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। गांव का तालाब पानी भरी परात लेकर प्रसन्नता से भर उठा । जब मेघ बरसने लगे तो धरती और बादलों का आपसी मिलन हो गया ।
सप्रसंग व्याख्या
1. मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। 
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली, 
दरवाजे – खिड़कियां खुलने लगीं गली-गली, 
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के । 
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। 
शब्दार्थ— बन ठन के = सज-संवर कर । बयार = हवा । पाहुन = मेहमान । मेघ = – बादल।

प्रसंग— प्रस्तुत पद्यांश ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित ‘मेघ आए’ कविता से अवतरित है। इसके रचयिता ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। इस कविता में कवि ने मेघ के आने की तुलना गाँव में आने वाले शहरी मेहमान से की है। जिस प्रकार मेहमान के आने पर गांव में प्रसन्नता का वातावरण होता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती की प्रसन्नता का वर्णन है।

व्याख्या— कवि वर्णन करता है कि आज बादल बड़े बन संवर कर आ गए हैं। आकाश में चारों ओर बादल छा गए हैं। बादल आज गाँव में आने वाले शहरी मेहमान की भांति सज संवर कर आए हैं। वर्षा के आगमन की प्रसन्नता में हवा चलने लगी है। मेहमान के आने की खबर सारे गाँव में फैल गई है। लोग बादलों को देखने के लिए उसी प्रकार अपने दरवाजे-खिड़कियां खोल रहे हैं जिस प्रकार गाँव के लोग शहर के मेहमान की झलक देखने के लिए उतावले होते हैं। कवि ने यहां मेघों और शहरी मेहमान की तुलना करके बड़ा सुंदर दृश्य उपस्थित किया है।
काव्यांश पर आधारित अर्थग्रहण और सराहना संबंधी प्रश्न—
(क) गाँव में कौन आया था ?
(ख) मेघ किस प्रकार से आते हैं ?
(ग) गाँव में बादलों का कैसा स्वागत होता है ? 
(घ) हवा बादलों का स्वागत कैसे करती है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— (क) गाँव में मेघ रूपी दामाद आया था।
(ख) बादल बहुत बन संवर कर आते हैं। वे आकाश में चारों ओर छा गए हैं। आकाश पूरी तरह से बादलों से ढक गया है।
(ग) गाँव में बादलों का स्वागत एक मेहमान की तरह होता है। उनके आने की खबर सारे गांव में फैल जाती है। लोग बादलों को देखने के लिए अपने खिड़की-दरवाजे खोलकर उन्हें देखने लग जाते हैं ।
(घ) हवा बादलों को उड़ाकर आगे-आगे ले जाती है। यह ऐसा लगता है जैसे हवा बादलों के आगे-आगे खुशी से नाचती हुई चल रही है ।
(ङ) कवि ने मेघों के आने का सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा अलंकार की सुंदर घटा बिखरी है। मेघों का पाहुन की भांति बन संवर कर आना मानवीकरण अलंकार की सृष्टि करता है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। प्रकृति के आलंबन रूप का तथा मानवीकरण रूप का वर्णन है। भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहमयी है।
2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके । 
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। 
शब्दार्थ— उचकाए = उठाकर बाँकी चितवन = तिरछी दृष्टि ठिठकी = ठहर कर । मेघ = बादल।
प्रसंग— प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ के द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ में से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनमोहक रूप का वर्णन करता है। कवि ने मेघों को गाँव में आने वाले पाहुन के रूप में माना है तथा प्राकृतिक उपादानों के सौंदर्य को चित्रित किया है।
व्याख्या— कवि मेघों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि मेघ गाँव में आने वाले पाहुन की भांति बन संवर कर आ गए हैं। मेघों के रूप सौंदर्य को देखने के लिए पेड़ गर्दन उचका कर झांकने लगे हैं। कवि प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण करते हुए कह रहा है कि मेघों के आने पर आंधी चलने लगी है। धूल शरमा कर अपना घाघरा उठाकर भाग खड़ी हुई है, नदी अपने प्रवाह को रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई है। नदी ने अपने मुख पर घूंघट सरका लिया है और वह तिरछी नज़र से सजे संवरे मेघों को देख रही है। मेघ आज अतिथि की तरह सज संवर कर धरती पर प्रेम बरसाने के लिए आ गए हैं। यहां कवि ने वर्णन किया है कि जब गाँव में कोई शहरी मेहमान आता है तो गाँव के वातावरण में जो परिवर्तन होते हैं ठीक वैसे ही परिवर्तन प्रकृति में दिखाई दे रहे हैं। शहरी व्यक्ति के आने पर गाँव के लोग गर्दन उठा उठा कर उसे देखते हैं। गाँव की स्त्रियां शरमा कर भाग जाती हैं। वे मुख पर घूंघट सरका कर तिरछी नज़र से उसे देखती हैं। उसी प्रकार प्राकृतिक वातावरण में भी धूल शरमा जाती है। नदी घूंघट निकाल कर मेघ रूपी पाहुन को देखती है।
काव्यांश पर आधारित अर्थग्रहण और सराहना संबंधी प्रश्न—
(क) पेड़ों ने अपने रूप में क्या परिवर्तन किया ?
(ख) पेड़ झुककर क्या देखने लगे ? 
(ग) नदी को कवि ने कैसे चित्रित किया है ?
(घ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— (क) पेड़ गरदन उचकाए, शाखाएं दाएं-बाएं हिलाकर मेघों को देखने लगे  थे।
(ख) तेज़ हवा के चलने से पेड़ झुक रहे हैं जो कवि को ऐसा लगता है मानो पेड़ बादलों का रूप-सौंदर्य देखने के लिए झुक रहे हैं । वे बादलों का स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं।
(ग) नदी को कवि ने एक ऐसी नायिका के रूप में चित्रित किया है जो मेहमान को देखने आई है और घूंघट खिसका कर, नारी सुलभ लज्जा तथा जिज्ञासा के कारण तिरछी दृष्टि से बादल रूपी मेहमान को देख रही है।
(घ) मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार की अनुपम छटा बिखरी है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएं करवाकर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द – योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता तथा सरसता से परिपूर्ण है।
3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं—
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की, 
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के 
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।
शब्दार्थ— जुहार = आदर के साथ झुककर किया गया नमस्कार। बरस = वर्ष सुधि = याद । लीन्ही = ली । अकुलाई = व्याकुल। ओट = आड़। किवार = किवाड़, दरवाजा। हरसाया = हर्ष से भरा । ताल = तालाब । मेघ = बादल ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ के द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उभरे प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। कवि ने मेघों को पाहुन मान कर धरती के प्राकृतिक उपादानों को उनका स्वागत करते हुए चित्रित किया है।
व्याख्या— कवि ने वर्णित किया है कि जिस प्रकार मेहमान के घर आने पर गाँव में बड़े जोर-शोर से उसका स्वागत किया जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती पर भी उनका भव्य स्वागत हो रहा है। मेघ पाहुन की भांति बन संवरकर आ गए हैं। बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघ को झुककर नमस्कार किया। विरह के कारण व्याकुल लता ने किवाड़ की आड़ में छिप कर मेघ रूपी पाहुन को उलाहना दिया कि एक बरस के बाद तुम्हें हमारी याद आई, एक वर्ष की प्रतीक्षा के बाद तुम आए हो। हर्ष से भरा हुआ तालाब भी मेघ के स्वागत के लिए पानी रूपी परात को भरकर ले आया है। धरती पर मेघों का स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार गांव में पाहुन का स्वागत होता है। गाँव के लोग उसे नमस्कार करते हैं। नायिका उसे देर से आने का उपालंभ देती है। परिवार का कोई सदस्य उसके चरण धोने के लिए परात में पानी लाता है। ठीक उसी प्रकार की क्रियाएं मेघों के आने पर हुई हैं।
काव्यांश पर आधारित अर्थग्रहण और सराहना संबंधी प्रश्न—
(क) बूढ़े पीपल ने ही सबसे पहले जुहार क्यों की ?
(ख) बूढ़े पीपल ने बादलों का स्वागत कैसे किया ?
(ग) लता ने बादलों को क्या कहा ?
(घ) बादलों के आने पर ताल की क्या स्थिति है ? 
(ङ) क्राव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— (क) गाँव में प्रवेश करने से पहले मेघों को सबसे पहले पीपल का पेड़ ही मिला था। युगों से गाँव के बाहर पीपल के पेड़ लगाने की परंपरा भारत में सदा से रही है।
(ख) जिस प्रकार किसी मेहमान का स्वागत होता है उसी प्रकार गांव में बादलों का स्वागत हो रहा है। बूढ़ा पीपल बादलों को झुककर नमस्कार करता है।
(ग) बादलों के विरह में व्याकुल लता के किवाड़ की आड़ में छिपकर उन्हें उलाहना देते हुए कहा कि एक वर्ष के बाद तुम्हें हमारी याद आई है।
(घ) बादलों के आने की प्रसन्नता में तालाब उनका स्वागत करते हुए पानी रूपी परात को भर कर ले आता है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में उत्पन्न परिवर्तनों का बड़ा सजीव अंकन किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार का सुंदर वर्णन है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। लता द्वारा किवाड़ की आड़ से मेघ से बात करने में उपालंभ का भाव प्रकट हुआ है। शब्द – योजना सटीक एवं सजीव है। भाषा सरल, सरस तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है।
4. क्षितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी, 
‘क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की’, 
बांध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके। 
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।
शब्दार्थ— क्षितिज = जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं वह स्थान । गहराई = बादल छा गए । दामिनी = बिजली। दमकी = चमकी भरम = भ्रम, भुलावा। अश्रु = आँसू । ढरके = गिरे। = गिरे।
प्रसंग— प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ के द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ में से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनोरम चित्रण किया है।
व्याख्या— कवि वर्णन करता है कि अब मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुंच गए हैं, जिस प्रकार अतिथि अटारी पर पहुँच जाता है उसी प्रकार अब मेघ क्षितिज तक फैल गए हैं। मेघों के आ जाने पर बिजली चमक उठी है अर्थात् मेहमान को देखकर नायिका का तन-मन आभा से भर उठा है। धरती मानो मेघों से कह रही है कि क्षमा कर दो। अभी तक हम समझ रहे थे कि मेघ नहीं बरसेंगे पर अब यह भ्रम टूट गया है। दूसरे रूप में नायिका अतिथि से कह रही है कि क्षमा कर दो। तुम्हारे कभी न आने का जो भ्रम अभी तक बना हुआ था अब वह दूर हो गया है। मेघों और धरती के बीच की रुकावट समाप्त हो गई। मेघ झर-झर कर बरसने लगे। धरती और मेघों का मिलन हो गया है। इसी प्रकार अतिथि और नायिका का भी मिलन हो गया है। उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आज मेघ भी अतिथि की भांति बन संवर कर आकाश में छा गए हैं।
काव्यांश पर आधारित अर्थग्रहण और सराहना संबंधी प्रश्न—
(क) बादल कहां तक फैल गए थे ? 
(ख) बादलों के आने पर क्षितिज के सौंदर्य का वर्णन कीजिए। 
(ग) क्या भ्रम था जो अब दूर हो गया है ? 
(घ) ‘मिलन के अश्रु ढलके’ से क्या तात्पर्य है ? 
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— (क) बादल क्षितिज तक फैल गए थे ।
(ख) बादल क्षितिज तक फैल गए हैं और उनमें से बिजली चमक रही है जो ऐसा लगता है मानो बादल रूपी मेहमान के क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।
(ग) धरती को यह भ्रम था कि बादल नहीं बरसेंगे, किंतु अब उनके बरसने से धरती का यह भ्रम दूर हो गया है।
(घ) मेघों और धरती के बीच की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं तो मेघ झर-झर कर बरसने लग जाते हैं। धरती और मेघों के मिलन के यह प्रेमाश्रु हैं।
(ङ) कवि ने मेघों और धरती के मिलन का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक तथा मानवीकरण का सहज सुंदर प्रयोग सराहनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। चित्रात्मकता ने सुंदर अभिव्यक्ति में सहायता दी है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर— बादलों के आने पर प्रकृति प्रसन्नता से भर कर जिस प्रकार नाच उठती है उससे अनेक गतिशील क्रियाएं प्रकट होती हैं। हवा नाचती- गाती आगे-आगे चली। पेड़ झुक कर गरदन उचकाए झाँकने लगे। आंधी धूल रूपी घाघरा उठाकर भाग चली। नदी बांकी चितवन उठा कर ठिठकी और उसका घूंघट सरका। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की । लता किवाड़ की ओर से अकुलाई और बोली। तालाब हर्षाया और परात भर कर पानी लाया। क्षितिज अटारी गहराई और बिजली कौंधी ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्द किसके प्रतीक हैं ? 
धूल, पेड़, नदी, लता, ताल ।
उत्तर— 1. धूल — गाँव की घाघरा उठाकर भागने वाली छोटी लड़कियों का।
2. पेड़ — गाँव के जाने-अनजाने आदमियों का ।
3. नदी — गाँव की युवतियों का।
4. लता – विरहिनी प्रियतमा का ।
5. ताल – घर का कोई सदस्य या पुराना वफादार नौकर ।
प्रश्न 3. लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ? 
उत्तर— लता ने विरहिनी, प्रियतमा, नायिका या पत्नी के रूप में बादल रूपी प्रियतम की ओर लाज-भरी आँखों से देखा था जिसमें उलाहना भरा हुआ था कि वे बहुत देर बाद आए थे। गाँव में प्रियतमा का अपने प्रियतम से सबके सामने खुले रूप में मिलने का रिवाज प्राय: नहीं होता।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की।
(ख) बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके ।
उत्तर— (क) धरती मानो बादलों से कह रही थी कि क्षमा करो। अभी तक यह समझ रहे थे कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर आए बादल बरसेंगे नहीं पर अब भ्रम टूट गया है। इससे यह ध्वनि भी उत्पन्न होती है कि तुम्हारे कभी ने आने का जो भ्रम बना हुआ था वह अब टूट गया है।
(ख) नदी अपने प्रवाह को थोड़ा रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई। नदी रूपी नदी रूपी युवती ने अपने मुँह पर घूंघट सरका लिया और तिरछी नजर से सजे-संवरे बादलों की ओर देखने लगी।
प्रश्न 5. मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर— मेघ रूपी मेहमान के आने से सारे वातावरण में तरह-तरह के परिवर्तन हुए। मेघ के आगमन पर बयार नाचने-गाने लगी, हवा चलनी आरंभ हो गई। पेड़ मेघों को देखने के लिए गरदन ऊपर उठा कर झांकने लगे। नदी भी एक पल के लिए रुककर मुख पर घूंघट डाल कर तिरछी नज़रों से मेघों को देखने की चेष्टा करने लगी। लता तो किवाड़ की आड़ में छिप कर मेघों को देर से आने का उपालंभ देने लगती है। ताल खुशी से भर कर मेघों के स्वागत में अपना जल अर्पित करने को तैयार है।
प्रश्न 6. मेघों के लिए ‘बन ठन के, संवर के’ आने की बात क्यों कही गई है ? 
उत्तर— दामाद की तरह मेघ गाँव में लंबे समय के बाद लौटा था। वह सज-संवर कर, बन ठन कर लौटा था क्योंकि वह गाँव के सभी अपनों-परायों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालना चाहता था।
प्रश्न 7. कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोज कर लिखिए।
उत्तर— (क) जिन अंशों में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित है—
● मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के
● आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
● पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन उचकाए
● धूल भागी घाघरा उठाए
● बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी
● बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
● ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’—
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
● हरसाया ताल लाया पानी परात भर के ।
(ख) जिन अंशों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं—
● गाती बयार
● बाँकी चितवन
● बूढ़े पीपल
● अकुलाई लता
● क्षितिज अटारी
प्रश्न 8. कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए ।
उत्तर— नगर में रहने वाला विशिष्ट अतिथि (दामाद) जब गाँव पहुंचा तो उसका सबने मिलजुल कर स्वागत किया। गाँव से बाहर लगे बूढ़े बरगद रूपी पेड़ ने आगे बढ़कर उसका अभिनंदन किया, उससे प्रेम भरी बातचीत की। उसके पांव धोने के लिए परात में पानी लाया गया। प्रियतमा एकदम उसके सामने नहीं आई बल्कि किवाड़ के पीछे छिपी रही और उसने मंद स्वर में देर से आने का उलाहना दिया।
प्रश्न 9. कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर— कवि ने आकाश में बादल और गाँव में दामाद आने का जो रूपक प्रकट किया है वह अति स्वाभाविक और प्रभावशाली है। नगर में रहने वाला कोई युवक जब दामाद के रूप में गाँव में जाता है तो वह सज संवर कर, बन ठन कर जाता है। बादल भी वैसे ही बड़े बन ठन कर गाँव पहुँचे। बादलों के आगे-आगे तेज़ गति से बहती हवा चलती है और घरों की खिड़कियां- दरवाजे स्वयं खुलने लगते हैं। दामाद के गाँव में पहुंचते ही छोटेछोटे बच्चे उन्हें पहचान कर नाचते-कूदते उनसे आगे-आगे भागते हुए उनके आगमन की पूर्व सूचना देने लगते हैं। गली-मोहल्ले के लोग खिड़कियों – दरवाजों से उत्सुकतापूर्वक उसकी झलक पाने की चेष्टा करने लगते हैं। बादल आने पर पेड़ तेज़ हवा में झूमने लगते हैं, झुकने लगते हैं। आंधी चलने लगती है। दामाद के आने से गाँव के लोग झुककर गर्दन उचका कर उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। छोटी-छोटी लड़कियां प्रसन्नता की अधिकता के कारण अपने कपड़े समेट घर की ओर दौड़ पड़ती हैं। युवा नारियां बांकी चितवन से घूंघट सरका कर उधर देखने लगती हैं। जैसे ही बादल गाँव में पहुंचता है वैसे ही पीपल का बूढ़ा पेड़ उसे आशीर्वाद देते और स्वागत करते हुए उससे कहता है कि पूरे एक वर्ष बाद गाँव में आए हो। दामाद से भी घर के बड़े-बूढ़े देर से आने की प्रेम भरी शिकायत करते हैं और उसका स्वागत करते हैं। बादल आने पर आंगन में लगी बेल ओट में सरक जाती है तो दामाद के आने से लाज भरी प्रियतमा अकुला कर दरवाज़े की ओट में हो जाती है। घर का कोई सदस्य दामाद के पैर धोने के लिए परात में पानी भर लाता है। आकाश में छाए बादल बरस कर अपने आगमन का उद्देश्य पूरा कर देते हैं तो मिलन की घड़ी में दामाद और प्रियतमा की आँखें भी रिम-झिम बरसने लगती हैं।
प्रश्न 10. काव्य सौंदर्य लिखिए— 
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के
उत्तर— नगर की ओर से बादल बहुत बन ठन कर दामाद की तरह गाँव में पधारे और उनके पधारने से सब प्रसन्नता से भर उठे । कवि ने सांग रूपक के प्रयोग से अति सुंदर चित्र – योजना की है। अनुप्रास, मानवीकरण और उत्प्रेक्षा का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से प्रकट हुआ है। तद्भव और देशज शब्दावली के प्रयोग ने कथन को सहजता प्रदान की है। प्रसाद गुण विद्यमान है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 11. वर्षा के आने पर अपने आस-पास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को . ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर— आकाश में छाए बादलों को देख लोग प्रसन्नता से खिल उठते हैं। सूखी-प्यासी धरती की तपन मिटाने की चाह में भरे लोग आशा भरी आंखों से ऊपर आकाश पर आंखें टिका लेते हैं। ठंडी हवा बहने के कारण वातावरण की गर्मी कम हो जाती है। छोटे बच्चे वर्षा के स्वागत में गाने लगते हैं। घरों की छतों पर औरतें धूप में सूखने के लिए डाले कपड़े इकट्ठा करने लगती हैं। जैसे ही बूंदें गिरती हैं मिट्टी की सौंधी-सौंधी गंध वातावरण में फैल जाती है। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहाने के लिए आंगन में आ जाते हैं। वर्षा तेज़ होते ही गलियां पानी से भरने लगती हैं और कुछ ही मिनटों बाद वे बरसाती नालों की तरह भरभर कर बहने लगती हैं। उस बहते पानी में कई घरों से वह सामान भी बह कर गली में तैरने लगता है। जो समयाभाव के कारण संभलने से रह गया था। वर्षा की बौछारों से सारे पेड़-पौधे नहा जाते हैं। महीनों से उन पर जमी धूल-मिट्टी बह जाती है और वे हरे-भरे रूप को पा साफ़-स्वच्छ हो जाते हैं। सारे खेत अपनी हरियाली से मोहक लगने लगते हैं। गर्मी से झुलसे पशुओं पर भी संतोष के भाव दिखाई देते हैं।
प्रश्न 12. कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है ? पता लगाइए । 
उत्तर— पीपल के पेड़ प्रायः गाँव की सीमा पर ही फल-फूल कर दूर से आने वालों को अपनी छाया से सुख प्रदान करते हैं। सघन छाया और फैलाव के कारण वे पशु-पक्षियों तथा यात्रियों को ही सुख-आराम नहीं देते बल्कि अपनी लंबी आयु और उपयोगिता के कारण लोगों के हृदय में पवित्रता और सम्मान के प्रतीक भी माने जाते हैं। लोग उसके सामने श्रद्धा से झुकते हैं, उसकी पूजा करते हैं। कवि ने पीपल को इसीलिए बड़ा बुजुर्ग कहा है।
प्रश्न 13. कविता में मेघ को पाहुन के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहां अतिथि (दामाद) को विशेष महत्त्व प्राप्त है लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
उत्तर— दामाद को आज भी भारतीय परिवारों में वैसा ही विशेष सम्मान प्राप्त है जैसा पहले था पर अब सम्मान का स्वरूप बदल गया है। लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया है। अब दामाद मेहमान – सा प्रतीत नहीं होता बल्कि वह परिवार का बेटा ही लगता है जिसके आगमन पर किसी आडम्बर की आवश्यकता अनुभव नहीं होती। अपनेअपने काम में अतिव्यस्तता भी इस परंपरा में परिवर्तन का कुछ कारण हो सकता है।
भाषा अध्ययन— 
प्रश्न 14. कविता में आए मुहावरों को छांटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए। 
उत्तर— 1. बन ठन के = सज संवर कर – अरे, सुबह-सवेरे बन ठन कर कहां की तैयारी है ? क्या तुम्हें स्कूल नहीं जाना ?
2. झुक-झांक करना = ताक-झांक करना- पड़ोसियों के घर इस तरह झुक-झांक करना तुम्हें शोभा नहीं देता।
3. सुध लेना = याद करना – अरे मोहन, कभी गाँव में बूढ़े माँ-बाप की सुध लेने चले जाया करो।
4. गांठ खुलना = भेद खुलना – रिश्वत तो गुप्ता जी वर्षों से ले रहे थे पर गांठ अब खुली है।
5. बांध टूटना = हौंसला चूक जाना- वर्षों से बेचारी अपने एकमात्र पुत्र की गंभीर बीमारी को किसी प्रकार झेल रही थी पर उसकी मौत ने तो बांध तोड़ दिया और वह फूट-फूट कर रो पड़ी।
प्रश्न 15. कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बनाइए। 
उत्तर— ‘ बन ठन के संवर के’, ‘पान’, ‘घाघरा’, ‘बांकी चितवन’, ‘ठिठकी’, ‘घूंघट सरके’, ‘जुहार’, ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’, ‘हरसाया’, ‘अटारी’, ‘ढरके’।
प्रश्न 16. मेघ आए कविता की भाषा सरल और सहज है- उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— कवि ने आंचलिक भाषा में सजी-संवरी कविता को मुख्य रूप से खड़ी बोली में रचा है जिसमें ग्रामीण परिवेश अति सुंदर ढंग से प्रकट हुआ है। भाषा अति सरल, सरस और सहज है। गतिशील बिंब योजना तो मन को मोह लेने वाली है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आँखों के सामने मेघ रूपी दामाद गाँव में पधार गया हो जिस कारण हर प्राणी क्रियाशील हो उठा है। प्रतीकात्मकता का सहज स्वाभाविक रूप अति सार्थक और सटीक है। बूढ़ा पीपल, धूल, अकुलाई लता, नदी, ताल आदि में प्रतीकात्मकता है। चित्रात्मकता का रूप तो अद्भुत है—
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, 
बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके। 
कवि ने संवादात्मकता का प्रयोग करते हुए नाटकीयता की सृष्टि करने में सफलता प्राप्त की है—
(क) बरस बाद सुधि लीन्हीं
(ख) क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की ।
कवि की भाषा में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है जिसने कथन को गतिशीलता प्रदान की है, जैसे—
(क) मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के
(ख) पेड़ झुक झांकने लगे गरदन उचकाए
(ग) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
(घ) क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की
(ङ) बांध टूटा झर-झर मिलन
कवि ने ब्रज भाषा के शब्दों का प्रयोग कर भावों को स्वाभाविकता प्रदान की है। तद्भव तथा देशज शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का प्रयोग सहजता से हुआ है, जैसेक्षितिज, दामिनी, क्षमा, अश्रु मेघ आदि ।
पाठेत्तर सक्रियता— 
● वसंत ऋतु के आगमन का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
● प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए— 
धिन धिन – धा धमक-धमक
मेघ बजे
दामिनी यह गई दमक
मेघ बजे
दादुर का कंठ खुला मेघ बजे
धरती का हृदय धुला मेघ बजे
पंक बना हरिचंदन
मेघ बजे
हलका है अभिनंदन
मेघ बजे
धिन धिन-धा………….                          (नागार्जुन)
(क) ‘हलका है अभिनंदन’ में किसके अभिनंदन की बात हो रही है और क्यों ? 
(ख) प्रस्तुत कविता के आधार पर बताइए कि मेघों के आने पर प्रकृति में क्याक्या परिवर्तन हुए ?
(ग) ‘पंक बना हरिचंदन’ से क्या आशय है ? 
(घ) पहली पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ? 
(ङ) ‘मेघ आए’ और ‘मेघ बजे’ किस इंद्रिय बोध की ओर संकेत हैं ? 
उत्तर— अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वय कीजिए ।
अपने शिक्षक और पुस्तकालय की सहायता से केदारनाथ सिंह की ‘बादल ओ’, सुमित्रानंदन पंत की ‘बादल’ और निराला की ‘बादल राग’ कविताओं को खोज कर पढ़िए।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कविता में मेघ के आगमन का चित्रण किस रूप में हुआ है ? 
उत्तर— कविता में मेघ के आगमन का चित्रण सज संवर कर आए अतिथि के रूप में हुआ है।
प्रश्न 2. गली-गली में दरवाजे और खिड़कियां क्यों खुलने लगीं ?
उत्तर— गली-गली में दरवाज़े और खिड़कियां शहर से आए पाहुन को देखने के लिए खुलने लगीं।
प्रश्न 3. ‘बरस बाद सुध लीन्हीं’ में प्रिया के किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है—
(क) प्रेम भाव की
(ख) उपालंभ की
(ग) उदारता की
(घ) कृतज्ञता की।
उत्तर— उपालंभ की।
प्रश्न 4. शहरी पाहुन के आगमन पर गांव में उमंग, उल्लास के रूप को अपने शब्दों में लिखिए l
उत्तर— जब शहरी पाहुन सज-संवर कर गांव में आता है तो चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। उसके आगमन की खबर तेज़ी से फैल जाती है, गली-गली में दरवाजे और खिड़कियां उसे उत्सुकतावश देखने के लिए खुल जाते हैं। लोग गरदन उठाकर उसे देखने लगते हैं और गांव की नारियां शरमा कर घूंघट सरका कर तिरछी दृष्टि से उसे देखती हैं। प्रिया भी अपने पाहुन को घर आया देख प्रसन्न हो जाती है, परंतु दरवाज़े की ओट में छिपकर वह पाहुन को उपालंभ भी देती है। उसके हृदय के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं। अतिथि और प्रियतमा का मिलन हो जाता है और उनके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू छलक पड़ते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मेघ गाँव में बन ठन कर किस के समान आए ? 
उत्तर— पाहुन के समान ।
प्रश्न 2. पेड़ कैसे गरदन उचका कर झाँकने लगे ?
उत्तर— झुक कर ।
प्रश्न 3. क्या चली और क्या भागी ?
उत्तर— आँधी चली, धूल भागी।
प्रश्न 4. मेघ को आदर के साथ किस ने नमस्कार किया ?
उत्तर— बूढ़े पीपल ने ।
प्रश्न 5. ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ किस ने कहा ?
उत्तर— लता ने ।
प्रश्न 6. परात भर के पानी कौन लाया ?
उत्तर— ताल ।
प्रश्न 7. कौन-सा भ्रम टूट गया ? 
उत्तर— बादल के नहीं बरसने का ।
प्रश्न 8. कैसे आँसू छलक उठे ? 
उत्तर— मिलन के ।
प्रश्न 9. ‘नदी’ किस की प्रतीक है ? 
उत्तर— ग्रामीण युवती की ।
प्रश्न 10. ‘मेघ आए’ कविता में किस अलंकार की प्रधानता है ?
उत्तर— मानवीकरण ।

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