JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 11 क्रिया विशेषण

JKBOSE 9th Class Hindi Grammar Chapter 11 क्रिया विशेषण

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Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 9th Class Hindi Grammar

Jammu & Kashmir State Board class 9th Hindi Grammar

J&K State Board class 9 Hindi Grammar

परिभाषा— अव्यय अथवा अविकारी शब्द उन शब्दों को कहते हैं जिनका रूप सदैव एक-सा रहता है। लिंग, वचन, कारक, काल आदि के कारण जिन शब्दों में विकार अथवा परिवर्तन उत्पन्न नहीं होता, उन्हें अविकारी अथवा अव्यय शब्द कहते हैं।
जैसे— अरे, अभी, नहीं, और, पीछे, आज पूर्ण आदि ।
अव्यय शब्दों के भेद – अव्यय शब्दों के चार भेद हैं—
(क) क्रिया विशेषण    (ख) समुच्चय बोधक
(ग) सम्बन्ध विशेषण   (घ) विस्मयादि बोधक
(क) क्रिया विशेषण
परिभाषा— जो अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे—वह तेज दौड़ता है। यहां तेज अव्यय दौड़ना क्रिया की विशेषता बता रहा है। अतः यह क्रिया विशेषण है।
क्रिया विशेषण के भेद क्रिया विशेषण के पांच भेद हैं—  
1. कालवाचक
2. स्थानवाचक
3. परिमाणवाचक
4. रीतिवाचक
5. प्रश्नवाचक
1. कालवाचक— जो क्रिया के काल का बोध कराएं, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे— अब, तब, आज, कल, परसों, फिर कभी, अभी, दिनभर, प्रतिदिन, सदैव, आदि।
2. स्थानवाचक— जो अव्यय क्रिया के होने के स्थान का बोध कराएं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे— अन्यत्र, कहां, यहां, इधर, उधर, ऊपर, बाहर, समीप, वहां, आगे, पीछे, किधर आदि।
3. परिमाणवाचक— जिन शब्दों से क्रिया के परिमाण का बोध होता है, उन्हें परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे— बहुत, थोड़ा, खूब, सर्वथा, कुछ, लगभग, अधिक, कम, इतना, उतना, कितन जितना, केवल एक बार आदि ।
4. रीतिवाचक— रीतिवाचक क्रिया विशेषण से क्रिया के होने की रीति अथवा प्रक अनिश्चय,का बोध होता है।
रीतिवाचक क्रिया विशेषण के अन्तर्गत कारक, निषेध, निश्चय, तथा अवधारणा आदि के भाव को प्रकट करने वाले सभी क्रिया विशेषण आ जाते हैं।
(i) निश्चय— नि:संदेह, अवश्य, वास्तव में आदि।
(ii) अनिश्चय— शायद, यथासंभव, कदाचित् आदि।
(iii) प्रकार— ऐसे, वैसे, जैसे तैसे, अनायास, अचानक, यथा तथा, झटपट आदि।
(iv) स्वीकार— हां, सच, जी, जी हां, ठीक आदि ।
(v) निषेध— नहीं, मत ।
(vi) अवधारणा— तो, ही, बस आदि ।
(vii) कारक— इसलिए अतः, आदि ।
5. प्रश्नवाचक—  जिन क्रिया विशेषणों से प्रश्न कर बोध होता है, उन्हें प्रश्नवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे— कब, कहां, क्यों, कैसे आदि ।
(ख) समुच्चय बोधक 
जो अव्यय दो शब्दों अथवा दो वाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— राम और मोहन जा रहे हैं।
समुच्चय बोधक अव्यय शब्दों के निम्नलिखित सात भेद हैं—
1. संयोजक 2 विभाजक 3. विरोध दर्शक 4. परिणाम-दर्शक 5. कारण-वाचक 6. संकेतवाचक 7 स्वरूप बोधक।
1. संयोजक— जो अव्यय शब्द दो शब्दों अथवा उप-वाक्यों को मिलाते हैं, उन्हें संयोजक समुच्य बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— (i) मोहन और सोहन जा रहे हैं।
(ii) मनुष्य तथा पशु में बड़ा अंतर है।
2. विभाजक— जो अव्यय एक बात का दूसरी से भेद बताते हैं, उन्हें वियोजक अथवा विभाजक समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— (i) तुलसीदास अथवा सूरदास का साहित्यिक परिचय लिखें।
(ii) स्लेट या कॉपी पर लिखो।
3. विरोध दर्शक— जो अव्यय दो वाक्यों में प्रथम का निषेध करते हैं, उन्हें विरोधदर्शक समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— (i) वह वाचाल है किन्तु मन का बुरा नहीं।
इसी प्रकार परन्तु, मगर, वरन्, बल्कि, लेकिन आदि विरोध दर्शक अव्यय हैं।
4. परिणाम-दर्शक— जहां वाक्यों में प्रयुक्त अव्यय से इस बात का पता चले कि दूसरी बात पहली बात का परिणाम या फल है वहां परिणाम बोधक अव्यय होता है।
जैसे— (i) यह उदार है, इसलिए इसका मान है।
इसी प्रकार अतः, अतएव, क्योंकि, जोकि, ताकि, इससे, इस कारण आदि अव्यय परिणाम बोधक हैं।
5. कारण वाचक— जो अव्यय पहले उपवाक्य को प्रधानता देते हुए दूसरे उपवाक्य में उसका औचित्य सिद्ध करते हैं, उन्हें कारण वाचक समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— वह नदी में नहीं कूदता, क्योंकि उसे तैरना नहीं आता।
यहां क्योंकि पहले वाक्य को प्रधानता देता है। अतः यहां कारण वाचक समुच्चय बोधक अव्यय है। इसी प्रकार जिसमें, इसलिए, जो कि आदि कारण वाचक समुच्चय बोधक अव्यय हैं।
6. संकेत वाचक— जिन अव्ययों से किसी बात की ओर संकेत प्रकट हो, उन्हें संकेत बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे— यदि, चाहे, यद्यपि, तथापि आदि संकेत वाचक अव्यय हैं।
7. स्वरूप बोधक— दो वाक्यों में जब अव्यय के द्वारा पहली बात का अधिक स्पष्टीकरण होता है तो वहां पर स्वरूप बोधक अव्यय होता है।
जैसे— ताजमहल के सामने के प्रांगण में घास इतनी सुन्दर लगी हुई है मानो किसी ने हरी मखमल बिछा दी हो ।
यहां मानो शब्द स्वरूप बोधक है।
(ग) संबंध बोधक अव्यय 
जो अव्यय वाक्य के पदों का एक-दूसरे से संबंध सूचित नहीं करते हैं, वे संबंध बोधक अव्यय कहलाते हैं।
जैसे— (i) गणेश के अलावा इस काम को कोई नहीं कर सकता।
(ii) उसकी बुद्धि के आगे सब नतमस्तक हैं।
यहां अलावा तथा आगे संबंध सूचक अव्यय हैं।
इस प्रकार अनुसार, अनन्तर, अंदर, आस-पास, उपरान्त, इर्द-गिर्द ऊपर, नजदीक, नीचे, पास, पीछे, सिवा, सम्मुख, संग आदि शब्द भी संबंध सूचक अव्यय हैं।
(घ) विस्मयादि बोधक अव्यय
जो अव्यय हर्ष, शोक, आश्चर्य, संबोधन तथा तिरस्कार आदि मन के भावों को प्रकट करते हैं, उन्हें विस्यमादि बोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे—
अहा ! कितना मनोरम दृश्य है। (हर्ष)
आह ! कितना कारुणिक दृश्य है। (शोक)
हाय ! उसकी दशा कितनी बुरी है। (करुणा )
इसी प्रकार भला, छिः, अजी, हां, धन्य धन्य आदि अव्यय विस्यमादि बोधक अव्यय हैं।

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