JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 10 यमराज की दिशा —चंद्रकांत देवताले

JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 10 यमराज की दिशा —चंद्रकांत देवताले

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कवि – परिचय
 निम्न मध्य वर्ग के जीवन की नस-नस से परिचित कवि श्री चंद्रकांत देवताले प्रयोगवादी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा जिला बैतूल, मध्यप्रदेश में हुआ था । प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की थी । इन्होंने हिंदी विषय में अपनी पी-एच० डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय, सागर से प्राप्त की थी। इन्होंने उच्च शिक्षा के अध्यापनकार्य को जीवकोपार्जन के लिए चुना था | साठोत्तरी हिंदी कविता के क्षेत्र को इन्होंने विशिष्ट योगदान दिया।
श्री देवताले के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ हैं— हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। इनके द्वारा रचित कविताएं अति मार्मिक और सामयिक हैं जिन का सीधा संबंध आम आदमी और युग से है इसलिए इनका अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में और अनेक विदेशी भाषाओं में हुए हैं। कवि को अपने लेखन कार्य के लिए ‘माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश का शासन का शिखर सम्मान’ आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
श्री देवताले की कविता का सीधा संबंध गाँवों, कस्बों और निम्न मध्य वर्ग के जीवन से है। उस में मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि को व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के प्रति गहरा आक्रोश है। मानवीय संवेदनाओं से भी कवि का हृदय भरा हुआ है। वह असहाय और निर्धन वर्ग के प्रति विशेष प्रेम के भावों को अपने हृदय में संजोए हुए है। उस की वाणी में लुकाव-छिपाव नहीं है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है ।
कवि की भाषा खड़ी बोली है। सरल-सरस और भावपूर्ण भाषा में उसने अपनी बात को कहने का गुण प्राप्त किया है। उसकी भाषा में पारदर्शिता है। तत्सम और तद्भव शब्दावली को समन्वित प्रयोग के साथ-साथ उर्दू शब्दावली का प्रयोग भी सहज रूप से करने की क्षमता कवि ने दिखाई है।
कविता का सार
कवि ने अपनी कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि इस युग में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है । इसका जीवन चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है। जन-विरोधी ताकतें निरंतर फैलती है जा रही हैं। कवि अपनी माँ को याद करते हुए कहता है कि वह ईश्वरीय भक्ति-भाव और आस्था के सहारे जीवन शक्ति प्राप्त कर लेती थी। उस में दुःखों को सहन करने की अपार शक्ति थी। वह मानती थी कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता की है। इसलिए उस तरफ पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। यमराज को नाराज़ करना बुद्धिमत्ता नहीं है। कवि इसके बाद कभी भी दक्षिण दिशा में पाँव कर के नहीं सोया पर कवि मानता है कि अब तो सभी दिशाओं में यमराज है। आलीशान महल है और वे हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। अब तो हर दिशा में हिंसा, विध्वंस, नाश और मौत के चिह्न फैले हुए हैं।
सप्रसंग व्याख्या
1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं 
कहना मुश्किल है 
पर वह जताती थी जैसे 
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है 
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार 
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के 
रास्ते खोज लेती है
शब्दार्थ— ईश्वर = भगवान् । जताती = प्रकट करती । बरदाश्त = सहन ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से अवतरित लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सहनशक्ति और समझ के साथ-साथ उसकी आस्तिकता के भाव को प्रकट किया है। वह जीवन की प्रत्येक विपरीत स्थिति को आसानी से अपने अनुकूल बना लेती थी ।
व्याख्या— कवि कहता है कि यह कहना तो कठिन है कि उसकी माँ की कभी ईश्वर से भेंट हुई थी या नहीं पर वह सदा ऐसा प्रकट करती थी जैसे वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उस से बातचीत होती रहती थी। माँ के जीवन में जो-जो कष्ट आते थे वह ईश्वर को बताती थी, उस की सलाह लेती थी और सलाहों के अनुसार ही कार्य करती थी । वह जिंदगी जीने और दुःख सहने के रास्ते ढूंढ लेती थी । ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेती थी।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) माँ क्या जताया करती थी ? 
(ख) माँ ईश्वर से क्या प्राप्त किया करती थी ? 
(ग) माँ दुःख सहन करने के रास्ते किस प्रकार खोज लेती थी ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) माँ जताया करती थी कि वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उस से प्राय: बातचीत होती रहती थी।
(ख) माँ ईश्वर से सलाह प्राप्त किया करती थी कि किस प्रकार वह जीवन में आए कष्टों का निवारण कर सके और अपने परिवार को सुख-भरा जीवन दे सके।
(ग) माँ ईश्वर की सलाह पर जीवन में आए तरह-तरह के दुःख सहने के रास्ते खो लेती थी ।
(घ) कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को प्रकट करते माना है कि वह परिवार के सुखों के लिए सदा प्रयत्न करती है और उस में कष्टों को स की अपार क्षमता थी । सामान्य बोल-चाल के शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। अभि शब्द शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। ‘मुलाकात’ ‘सलाह’, ‘बरदाशत’, ‘खोज’ जैसे सामान्य उर्दू शब्दों का प्रयोग कथन को स्वाभाविकत प्रधान करता है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। स्मरण अलंकार विद्यमान है।
2. माँ ने एक बार मुझे कहा था—
दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है । 
और यमराज को क्रुद्ध करना 
बुद्धिमानी की बात नहीं 
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था—
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में
शब्दार्थ— क्रुद्ध = गुस्सा |
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ के विचारों और भावों को प्रकट किया और माना है कि वह यमराज को कभी क्रोधित नहीं करना चाहती थी ।
व्याख्या— कवि पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए कहता है कि एक बार उसकी माँ ने उस से कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ पैर कर के कभी मत सोना क्योंकि दक्षिण दिशा मौत के देवता यमराज की है। मौत के देवता को क्रोधित करना अकलमंदी नहीं है। तब कवि आयु में छोटा था। उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था तो उसने कहा था कि वह जहाँ भी है उसके दक्षिण में ही यमराज रहता है ।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि की माँ ने कवि को क्या कभी न करने को कहा था ? 
(ख) माँ ने किसे बुद्धिमानी की बात नहीं माना था ?
(ग) कवि ने अपनी माँ से क्या जानने की इच्छा की थी ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। 
उत्तर— (क) कवि की माँ ने उसे कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर कर के न सोने की बात कही थी।
(ख) माँ ने मौत के देवता यमराज को नाराज़ करना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी थी।
(ग) कवि ने अपनी माँ से जानना चाहा था कि मौत के देवता यमराज का घर कहाँ है ।
(घ) कवि की माँ ने समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उस तरफ कभी भी पैर कर के नहीं सोना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दावली के सहज-समन्वित प्रयोग द्वारा कवि ने अपनी बात सरलता-सरसता से प्रकट की है। अभिधा शब्द शक्ति और प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। कथोपकथन शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया और इससे इतना फ़ायदा जरूर हुआ 
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर 
शब्दार्थ— समझाइश = समझाने। फ़ायदा = लाभ । छोर = किनारा ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सीख को जीवन भर माना था और कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर कर के नहीं सोया था।
व्याख्या— कवि कहता है कि माँ के द्वारा समझा देने के बाद वह कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर कर के कभी नहीं सोया था। इस से और कोई लाभ हुआ हो या नहीं पर इतना अवश्य है कि उसे कभी भी दक्षिण दिशा को पहचानने में कष्ट नहीं हुआ। उसे इस कार्य में कभी कठिनाई नहीं हुई। कवि कहता है कि वह दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक घूमा है और उसे दक्षिण दिशा में लाँघ लेना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह उस छोर पर पहुँच कर यमराज का घर देख लेने में सफल हो जाता। पर ऐसा हो नहीं सका।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) माँ के समझाने के बाद कवि ने क्या काम कभी नहीं किया ? 
(ख) कवि को कभी किस बात को करने में कभी कठिनाई नहीं हुई ? 
(ग) कवि यमराज का घर देखने में सफल क्यों नहीं हुआ ? 
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) माँ के समझाने के बाद कवि कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर के के कभी नहीं सोया ।
(ख) कवि को कभी भी दक्षिण दिशा को ढूंढ़ने में कभी कठिनाई नहीं हुई थी।
(ग) कवि कभी यमराज का घर देखने में सफल नहीं हुआ क्योंकि वह दक्षिण दि के पार कभी पहुँच ही नहीं पाया।
(घ) कवि ने माँ के समझाने के बाद कभी भी दक्षिण में पैर कर के सोने का साहर तो नहीं किया पर यमराज के घर के विषय में जानने की जिज्ञासा अवश्य की पर उसे कभी ढूंढ़ नहीं पाया । पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गय है। तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू के सरल शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। अतुकांत छंद है।
4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ 
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं 
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं 
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही 
जो माँ जानती थी।
शब्दार्थ— जिधर = जिस तरफ।
प्रसंग— प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि का मानना है कि चाहे यमराज की दिशा दक्षिण है पर उसका साम्राज्य तो सारी दिशाओं में है। आज सभी दिशाओं में विध्वंस, हिंसा और मौत का तांडव हो रहा है। मौत तो सर्वत्र अपना राज्य जमा चुकी है।
व्याख्या— कवि कहता है कि आज तो जिधर भी पैर करके सोओ हर दिशा दक्षिण हो जाती है। हर दिशा में मौत बसती है। हर दिशा में यमराज का आलीशान महल है और अपने हर महल से हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। कवि की मं अब जीवित नहीं है। वह यमराज की जिस दिशा के बारे में जानती थी वह भी अब यमराज की नहीं रही। यमराज की दिशाएँ तो सभी हैं। वह तो सारे विश्व में हर तरफ है, वह सर्वव्यापक है।
अवतरण पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि के लिए हर दिशा दक्षिण क्यों हो जाती है ? 
(ख) यमराज की दिशा अब कौन-सी है ? 
(ग) कवि की माँ कहाँ गई ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसादों के कारण सारे संसार में मौत का तांडव हो रहा है। मनुष्य मनुष्य को मार रहा है। इसलिए कवि के लिए केवल दक्षिण दिशा ही यमराज की दिशा नहीं रही बल्कि हर दिशा ही दक्षिण दिशा हो गई है।
(ख) कवि के अनुसार सभी दिशाएँ ही अब यमराज की दिशाएं हैं।
(ग) कवि की माँ यमराज के घर जा चुकी है।
(घ) कवि का मानना है कि अब यमराज केवल दक्षिण दिशा में रहता है। इस संसार में व्याप्त हिंसा ने उस के आलीशान महल की सभी दिशाओं में बनवा दिए हैं। जिन में यमराज अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं। कवि की भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है जिस ने कथन को गहनता- गंभीरता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अतुकांत छंद का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ? 
उत्तर— कवि की माँ ने उस समझाया था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर कर. के सोना नहीं चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की है। यमराज को क्रोधित करना उचित नहीं । दक्षिण दिशा के प्रति वह सदा सचेत रहा और वह कभी भी उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया। इसलिए उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।
प्रश्न 2. कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ? 
उत्तर— दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था क्यों वह उस छोर को नहीं पा सकता था। दक्षिण दिशा यम की मानी जाती है जिसे कभी कोई न देख पाया है और न जीत पाया है। उसे देखना, पाना और लांघना संभव नहीं था ।
प्रश्न 3. कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ? 
उत्तर— कभी समय था जब लोग मानते थे कि मौत के देवता यमराज की दिशा दक्षिण है पर अब तो हर दिशा ही मौत की दिशा है। मौत तो सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, नाश, हिंसा, मृत्यु के चिह्नों को साफ-स्पष्ट देखा जा सकता था। यमराज के आलीशान महल सभी दिशाओं में हैं और सभी महलों में यमराज विद्यमान है। इसलिए आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए—
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर— धरती पर प्रत्येक दिशा मौत के चिह्नों से युक्त है। कोई भी तो ऐसा स्थान नहीं बचा जहाँ मानव मानव आपस में उलझते न हों, लड़ते-झगड़ते न हों। हर तरफ घृणा और हिंसा का राज्य फैला है। मौत का देवता यमराज अपने आलीशान महलों में हर दिशा में दहकती आँखों सहित एक साथ विराजमान है। सर्वत्र मौत का ही राज है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 5. कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग निर्देश देती है। आप की माँ भी समय-समय पर आप को सीख देती होगी— 
(क) वह आपको क्या सीख देती है ?
(ख) क्या उसकी हर सीख आप को उचित जान पड़ती है ? यदि हाँ तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर— कवि की माँ ही ईश्वर से प्रेरणा प्राप्त कर उसे मार्ग निर्देश नहीं देती थी बल्डि सभी की माँ ऐसा ही करती है। हर माँ अपने बच्चों की सलामती चाहती है, उनके स्वस्थ जीवन की कामना करती है। वह कदापि नहीं चाहती कि उसके बच्चों पर किसी प्रकार का कभी कोई कष्ट आए। वह उन कष्टों को अपने ऊपर ले लेना चाहती है। उसने जो संस्कार अपने पूर्वजों से पाया था उसे अपने बच्चों को देती है ।
(क) मेरी माँ भी मुझे सदा तरह-तरह की सीख देती है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा विश्वास करना, अपने से बड़ों का कहना मानना, उनका आदर करना, समय का पालन करना, साफ-स्वच्छ रहना, अच्छा खाना, पढ़ाई करना, दूसरों की सहायता करना, खेलना-कूदना, देश – भक्ति, मीठा बोलना, लड़ाई-झगड़े से बचना, बुराइयों से दूर रहना आदि न जाने कितनी बातों के बारे में वह सीख देती रहती है।
(ख) मुझे अपनी माँ की हर सीख उचित जान पड़ती है। उसके पास जीवन का अनुभव है । वह उसी अनुभव की सीख ही तो मुझे देती है। माँ से बढ़ कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है ? मुझे उसने जन्म दिया है, मेरा पालन-पोषण किया है। वह मेरी सहारा है। वह मेरे जीवन को संवारना चाहती है।
प्रश्न 6. कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इस के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर— ईश्वर सर्वव्यापक है पर फिर भी दिखाई नहीं देता। उसे अपने भावों- विचारों से समझा जा सकता है। कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मन को दृढ़ता प्राप्त होती है, दिशा निर्देश मिलता है और हम मानसिक सहारा प्राप्त करते हैं। मानव का मन चंचल है उस पर नियंत्रण पाने का रास्ता मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य स्वयं करना होता है। पर मन की शक्ति कोई सहारा तो अवश्य पाना चाहती है। वह सहारा ही ईश्वर है जिसे दिशा देने के लिए ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है
पाठेत्तर सक्रियता—
• कवि का मानना है कि आज शोषणकारी ताकतें अधिक हावी हो रही हैं। आज की शोषणकारी शक्तियाँ’ विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए। 
(आप शिक्षकों, सहपाठियों, पड़ोसियों, पुस्तकालय आदि से मदद ले सकते हैं)
उत्तर— अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. माँ किससे बातचीत होना जताती थी ?
उत्तर— ईश्वर से।
प्रश्न 2. माँ किसकी सलाह से दुःख सहन करने का मार्ग खोज लेती थी ? 
उत्तर— ईश्वर की ।
प्रश्न 3. माँ ने किस दिशा में पैर नहीं रख कर सोने के लिए कहा था ? 
उत्तर— दक्षिण ।
प्रश्न 4. दक्षिण दिशा किसकी है ?
उत्तर— मृत्यु के देवता अथवा यमराज की ।
प्रश्न 5. कवि के लिए किसे लाँघ लेना सम्भव नहीं था ?
उत्तर— दक्षिण को।
प्रश्न 6. सभी दिशाओं में किस के आलीशान महल हैं ?
उत्तर— यमराज के।
प्रश्न 7. यमराज की आँखें कैसी हैं ?
उत्तर— दहकती हुई।
प्रश्न 8. आज जिधर भी पाँव कर के सोओ उधर कौन-सी दिशा है ? 
उत्तर— दक्षिण ।
प्रश्न 9. माँ अपने कष्ट किसे बताती थी ?
उत्तर— ईश्वर को ।
प्रश्न 10. संसार में चारों ओर क्या व्याप्त है ?
उत्तर— हिंसा व्याप्त है।

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