JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 10 कश्मीर का लोकनाटक “बाँड पाऽथर”

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 10 कश्मीर का लोकनाटक “बाँड पाऽथर”

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 10 कश्मीर का लोकनाटक “बाँड पाऽथर” (विभागीय)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

पाठ का सार

लोकनाटक भी लोकगीत अथवा लोक कहानी के समान सामान्य लोगों के द्वारा रचा जाता है। यह आम लोगों द्वारा ही खेला जाता है । व्यवसाय रूप में लोकनाटक खेलने वाले नटों को व्यावसायिक लोकनट कहा जाता है। लोकनाटक में आम लोगों के दुःख दर्द हर्ष- शोक, आशा-आकांक्षा आदि भावों का समावेश होता है। लोकनाटक लिखे नहीं जाते बल्कि अभिनेता मिल बैठकर नाटक की विषय-वस्तु वेशभूषा, वार्तालाप मंच सज्जा आदि तय करते हैं। प्रायः इन नाटकों में सामाजिक दोषों एवं बुराइयों तथा शोषक वर्ग पर व्यंग्य किया जाता है। इससे दर्शकों का मनोरंजन भी किया जाता है। कश्मीरी लोक नाटकों की एक श्रृंखला को बाँड पाऽथर कहा जाता है। इसे बाँडों की टोलियां खेलती हैं जो कश्मीर के गाँवों, खुली जगहों, चौराहों, विद्यालयों अथवा कस्बों-शहरों के भवनों में अपने नाटकों से लोगों का मनोरंजन किया करती हैं ।
बाँड पाऽथर शहनाई वादन से प्रारंभ होता है । इसके बाद नाटक का सूत्रधार ‘मागुन’ (महागुणी ) प्रवेश करता है। इसके साथ नाटक के अन्य पात्र भी अपनी-अपनी वेशभूषा में प्रवेश करते हैं। मागुन द्वारा नाटक का परिचय दिया जाता है। तत्पश्चात् नाटक का प्रारंभ हो जाता है। आज तक आठ बाँड पाऽथरों की परंपरा जीवित है। इनके नाम उनके विषय वस्तुओं पर रखे गए हैं। इन बाँड पाऽथरों में “वातल” सबसे पुराना है जिसमें एक ग़रीब व्यक्ति के घर की समस्याओं को प्रकट करता है। इसमें अनमेल विवाह की विषमताओं का हास्यस्पद चित्रण करते हुए सैंकड़ों वर्षों से चली अत्याचार की कथा प्रस्तुत की जाती है । ‘राजु पाऽथर’ में अन्यायी राजा का नाम ‘जय सरकार’ होता है जो प्रजा पर प्रभाव जताने हेतु गलत-सलत फ़ारसी और पंजाबी बोलकर हास्यस्पद बन जाता है। यहां फरियादी अपने-अपने ढंग से राजा के प्रति अपना विरोध जताते हैं ।
‘ग्वासाऽन्य पाऽथर’ में अमरनाथ का एक युवक साधु यात्री पर मोहित होने वाली एक ग्वालिन गुपाली की कथा पेश की जाती है। परंतु साधु उसे टालने के उद्देश्य से उसके सामने कड़ी शर्तें रखते हैं। उसके द्वारा शर्तें मानने पर साधु धर्म संकट में पड़ जाता है। अंततः दुखी गुपाली वाख पढ़ती हुई स्वयं में लीन हो जाती है । “अँगरेज पाऽथर” में एक अंग्रेज़ गाँव में आकर नंबरदार और चौकीदार को पेश होने की आज्ञा देता है। दोनों सरकारी नौकर उसकी गालियां सुनते हैं, गांवों के अनाथ लोग अंग्रेज़ की नकल उतारते हैं। कश्मीर के कुछ गाँवों में बाँड पाऽथर खेलने वाली टोलियाँ पीढ़ियों से इस कला को अपनाए हुए हैं। बाँडों का प्रमुख पेशा ‘पाऽथर खेलना’ होता है। इसके साथ-साथ वे सामाजिक, धार्मिक अथवा व्यक्तिगत उत्सवों का पीर-फ़कीर के उर्स पर बाँड गा- बजाकर, नाचकर या स्वांग रचा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं। जम्मू-कश्मीर के राजा प्रताप सिंह द्वारा पहली बार घोड़ा कर, मवेशी कर, आदि माफ कर दिए तथा बाँडों को अनिवार्य बेगार से छूट दे कर सरकारी अन्न भंडार से अन्न देकर लोगों का मनोरंजन करना उनके लिए अनिवार्य कर दिया । स्वतंत्रता के पश्चात् इस प्रदेश में ज़मींदारी प्रथा समाप्त हो गई जिससे किसान ज़मीन का मालिक बन गया। बाँड पाऽथर की नाटक कला को सुरक्षित तथा विकसित करने हेतु बाँडों को सरकारी प्रोत्साहन दिया जाने लगा। इन्हें नाटकों का प्रदर्शन करने हेतु देश के दूर-दूर क्षेत्रों के अतिरिक्त विदेशों में भी भेजा जाता है जिससे लोक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। आज देश में कश्मीर के ‘बाँड पाऽथर’ का गुजरात के भवई, महाराष्ट्र का तमाशा, बंगाल के ‘जात्रा’ तथा उत्तर प्रदेश के नौटंकी की तरह बहुत महत्त्व है।

शब्दार्थ

बाँड–भाँड (अर्थात् हँसाने वाला व्यक्ति या हंसी वाले नाटक का नट (अभिनेता) ) । पाऽथर – स्वांग या नाटक। व्यावसायिक–व्यवसाय से संबंधित । नट- पात्र | अभ्यस्त – निपुण । पारंपरिक – परंपरा से मुक्त बनावटीपनबनावट से युक्त । वार्तालाप – बातचीत। आकाँक्षा – इच्छा । हास्यपूर्ण- हँसी से भरा हुआ। अनमेल- बिना मेल वाला ।

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. लोक गीत या लोक कहानी की तरह लोक नाटक भी आम लोगों के द्वारा रचा जाता है। आम लोग ही इसे खेल पर प्रस्तुत करते हैं। कई बार खेलने से लोकनाटक खेलने वाले नट अभ्यस्त हो जाते हैं और नाटक खेलने का व्यवसाय अपनाते हैं। उन्हें व्यावसायिक लोकनट कहते हैं। लोकनाटक में आम लोगों के दुःख-दर्द, शोक-शिकायत, आशा-आकांक्षा पर आधारित कोई पारंपरिक कथा पेश की जाती है। नाटक खेलने वाले नटों ( पात्रों ) ने कोई प्रशिक्षण नहीं पाया होता है। उनके अभिनय में बनावटीपन नहीं होता। वे अभ्यास से ही वार्तालाप और दृश्य दोहरा पाते हैं ।
प्रसंग – यह गद्यांश ‘नवभारती’ में संकलित ‘कश्मीर का लोकनाटक’ “बाँड पाऽथर” शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें लोकनाटक के बारे में बताया है । T
व्याख्या – लोक गीत अथवा लोक कहानी की तरह लोक नाटक भी सामान्य लोगों के द्वारा रचा जाता है। इसे सामान्य लोगों द्वारा ही खेलकर प्रस्तुत करते हैं। इसे खेलने वाले अभिनेता जब इसे अनेक बार खेल लेते हैं तो वे नट अभिनेता इस लोक नाटक के अभ्यस्त हो जाते हैं और नाटक खेलने का व्यवसाय अपनाते हैं। उन्हें व्यावसायिक लोकनट कहते हैं। लोकनाटक में आम लोगों के दुःख-दर्द, शोक शिकायत, आशा-आकांक्षा पर आधारित कोई पारंपरिक कथा प्रस्तुत की जाती है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि नाटक खेलने वाले पात्रों को कोई भी प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया जाता। इन पात्रों के अभिनय में कोई दिखावा नहीं होता। वे केवल प्राकृतिक मुद्रा को ही अभिनीत करते हैं। वे अपने अभ्यास से ही वार्तालाप और दृश्य दोहरा पाते हैं।
विशेष – (1) लोकनाटक आम लोगों के द्वारा प्राकृतिक अभिनव द्वारा खेला जाता है। इसका चित्रांकन किया गया है।
(2) भाषा सरल एवं सहज है।
2. बाँड पाऽथरों में ‘वातल पाऽथर’ सबसे पुराना है। इसमें एक गरीब मेहतर ( मोची) के घर की समस्याओं को उजागर किया जाता है। अनमेल विवाह से पैदा होने वाली विषमताओं का हास्यपूर्ण चित्रण किया जाता है। इस वर्ग के सीमित साधनों और असीम आकाँक्षाओं पर व्यंग्य किया जाता है। मेहतर को ऊँचे वर्गों की नफ़रत तथा मार- दुत्कार सहनी पड़ती थी। ज़ालिम लोग उसकी झोंपड़ी तक जला डालते, पर वह उफ़ भी नहीं करता था। सैंकड़ों वर्षों से चले आ रहे अत्याचार की एक कथा पेश की जाती है ‘वातल पाऽथर’ में ।
प्रसंग – यह गद्य-खंड नवभारती पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘कश्मीर का लोकनाटक “बाँड पाऽथर” से अवतरित किया गया है। इस गद्य में लेखक ने ‘बाँड पाऽथर’ के एक मात्र वातल पाऽथर का चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक का कथन है कि वातल पाऽथर’ बाँड पाऽथर का एक अंग है । यह इनमें सबसे पुराना है। इसमें एक गरीब मोची के घर की समस्याओं को उजागर किया जाता है। इसमें समाज में अनमेल विवाह से पैदा होने वाली विषमताओं का हास्यपूर्ण वर्णन किया जाता है। इस वर्ग के सीमित साधनों तथा असीम इच्छाओं पर व्यंग्य किया जाता है। मोची को समाज के उच्च वर्गों की नफ़रत का शिकार होना पड़ता है। उनकी मार दुत्कार सहन करनी पड़ती है। समाज के ज़ालिम लोग उसके घर, उसकी झोंपड़ी तक को जला देते हैं। किंतु वह बेचारा गरीब अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकालता। इस पाऽथर में सैंकड़ों वर्षों से चले आ रहे इसी तरह के अत्याचार की एक कथा को प्रस्तुत किया जाता है।
विशेष – (1) ‘वातल पाऽथर’ के इतिहास का उल्लेख हुआ है।
(2) भाषा सरल, सरस तथा शैली भावपूर्ण है।
3. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जम्मू-कश्मीर प्रदेश में जमीनदारी प्रथा समाप्त कर दी गई और किसान जमीन का मालिक हो गया तो बाँड भी खेतीबाड़ी करने लगे। ‘बाँड पाऽथर’ की नाटक कला को सुरक्षित तथा विकसित करने के लिए बाँडों को बहुत सरकारी प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। नाटकों का प्रदर्शन करने के लिए इन्हें देश के दूर-दूर के क्षेत्रों के अतिरिक्त विदेशों में भी भेजा जाता है। इससे हमारी लोक संस्कृति की रक्षा करने में बड़ी मदद मिलती है। आज देश में कश्मीर के ‘बाँड पाऽथर’ का वही महत्त्व है जो गुजरात के ‘भवई’, महाराष्ट्र के ‘तमाशा’, बंगाल के ‘जात्रा’, उत्तरप्रदेश के ‘नौटंकी’ आदि का है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘कश्मीर का लोकनाटक’ “बाँड पाऽथर” नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ्य-पुस्तक ‘नव भारती’ में संकलित है। इसमें स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ‘बाँड पाऽथर’ की नाटक कला के विकास की गाथा का वर्णन हुआ है।
व्याख्या – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जब जम्मू-कश्मीर प्रदेश में ज़मींदारी प्रथा खत्म कर दी गई। इस प्रथा के समाप्त होने पर किसान जमीन का असली मालिक बन गया तो बाँड भी खेतीबाड़ी करने लगे। बाँड पाऽथर की नाटक कला को सुरक्षित तथा विकसित करने के लिए बाँडों को बहुत सरकारी प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। नाटकों का प्रदर्शन करने के लिए इन्हें देश के दूर-दूर के क्षेत्रों के अतिरिक्त विदेशों में भी भेजा जाता है। इससे हमारी लोक संस्कृति की रक्षा करने में बहुत मदद मिलती है। आज हमारे देश में कश्मीर के बाँड पाऽथर का वही महत्त्व है जो गुजरात के ‘भवई’ महाराष्ट्र के तमाशा, बंगाल के ‘जात्रा’ तथा उत्तर प्रदेश के नौटंकी आदि का महत्त्व है।
विशेष – (1) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् बाँड पाऽथर की विकास गाथा एवं महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है।
(2) भाषा सरल, सहज तथा शैली भावपूर्ण हैं ।
4. “समय गुजरने के साथ भाषा में परिवर्तन होते रहते हैं। शब्दों के रूप और अर्थ बदलते रहते हैं। संस्कृत का भाँड शब्द बदलकर कश्मीरी में ‘बाँड’ हो गया है । ‘भाँड’ हास्य नाटक के चरित्र को कहते थे।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश विभागीय लेख ‘कश्मीर का लोकनाटक: बाँड पाऽथर’ से लिया गया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि कैसे संस्कृत का भाँड शब्द कश्मीरी में बाँड हो गया ।
व्याख्या. – भाषा की परिवर्तनशीलता के संबंध में कहा जाता है कि भाषा सदा समय के साथ-साथ बदलती रहती | है। यहाँ तक कि शब्दों के स्वरूप तथा उनके अर्थों में भी परिवर्तन हो जाता है। एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा तक आते-आते अपना रूप बदल लेता है। इसी प्रकार से संस्कृत भाषा का ‘भाँड’ शब्द कश्मीरी भाषा में ‘बाँड’ हो गया है, जिसका कारण कश्मीरी भाषा में ‘भ’ को ‘ब’ के समान उच्चरित करना भी हो सकता है। भाँड हास्य नाटक का पात्र होता है तथा बाँड भी हँसाने वाला चरित्र होता है ।
विशेष – (1) भाषा की निरंतर परिवर्तनशीलता की ओर संकेत किया गया है ।
(2) भाषा तत्सम प्रधान, सरल तथा शैली वर्णनात्मक है।

J&K class 10th Hindi कश्मीर का लोकनाटक “बाँड पाऽथर” Important Questions and Answers

बोध और विचार

(क) “बाँड पाऽथर” किसे कहते हैं ?
उत्तर – कश्मीर प्रदेश में विशेष ढंग के लोकनाटकों की श्रृंखला को ‘बाँड पाऽथर’ कहते हैं ।
(ख) लोकनाटक कौन रचता है ?
उत्तर – लोकनाटक आम लोगों के द्वारा रचा जाता है।
(ग) लोक नाटकों में क्या बताया या पेश किया जाता है ?
उत्तर – लोक नाटकों में आम लोगों के दुःख-दर्द, शोक-शिकायत, आशा-आकांक्षा पर आधारित कथा पेश की जाती है। समाज के शोषक वर्ग के लोगों की हरकतों की नकल की जाती है। सामाजिक दोषों तथा बुराइयों पर व्यंग्य किया जाता है।
(घ) ‘बाँड तथा पाऽथर’ इन दो कश्मीरी शब्दों के अर्थ बताइए।
उत्तर – बाँड का अर्थ है-हँसाने वाले व्यक्ति या हँसी वाले नाटक का नट या अभिनेता । पाऽथर का अर्थ है – स्वांग या नाटक।
(ङ) कुल कितने बाँड पाऽथरों की परंपरा आज तक चल रही है ?
उत्तर – कुल आठ बाँड पाऽथरों की परंपरा आज तक चल रही है जो निम्नलिखित है-
  1. वातल (मेहतर का) पाऽथर
  2. बुहुर्य् (पंसारी का ) पाऽथर
  3. राजु (राजा का) पाऽथर
  4. दरजु (दरद जाति की स्त्री का) पाऽथर
  5. ग्वसाऽन्य (गोसाईं साधु का) पाऽथर
  6. बकरवाल (बकर वाल का) पाऽथर
  7. अंगरेज़ (अंग्रेज़ का) पाऽथर
  8. शिकारगाह (शिकारी तथा वन्यपशुओं का) पाऽथर ।
(च) ‘ग्वसाऽन्य पाऽथर’ की विषय-वस्तु लिखिए।
उत्तर – इस लोकनाटक में अमरनाथ के एक युवक साधु यात्री पर मोहित होने वाली एक ग्वालिन ‘गुपाली’ की कथा प्रस्तुत की जाती है। साधु उस ग्वालिन को टाल देने की इच्छा से उसके सामने संसार का त्याग, शरीर पर भस्म लगाना, जेवरों का मोह छोड़ना आदि कठिन शर्तें रखता है। किंतु जब वह सब शर्तें मान जाती है तो साधु धर्म संकट में पड़ जाता है अंत में वह उसे ललेश्वरी ( ललयद) के ‘वाख’ गाकर मन को शांत करने का आदेश देता है और अंतर्ध्यान हो जाता है। अन्य साधु गुपाली से पूछते हैं कि तूने हमारे गोसाईं को कहीं देखा है। हमें उसका कोई अवशेष दो; कोई चिह्न बताओ। दुःखी गुपाली यह सुनकर और दुःखी होती है और वाख पढ़ती हुई स्वयं में पूरी तरह से लीन हो जाती है।
(छ) ‘अँगरेज पाऽथर’ की विषय-वस्तु लिखिए।
उत्तर – ‘अँगरेज़ पाऽथर’ में एक अंग्रेज़ एक गाँव में आकार अपना रोब झाड़ता फिरता है । वह नंबरदार और चौकीदार को पेश होने की आज्ञा देता है। दोनों सरकारी नौकर भीगी-बिल्ली बनकर अफसर की “डैम – फैट-लैट” वाली गालियाँ सुनते हैं। वह बेसिर पैर की अंग्रेज़ी और उर्दू ही बोलता है यद्यपि कश्मीरी समझता है। दूसरे गाँव के लोग अंग्रेज़ की अटपटी बोली और विदेशी आदतों की नकल उतारकर उसका मजाक उड़ाते हैं। कुर्सी के बदले हाँडी पेश करते हैं जो उसके बैठते ही टूट जाती है। सबसे अधिक काम बेगार का आदी व्यक्ति करता है जबकि अन्य लोग काम से मन चुराते हैं ।
(ज) “बाँडो पाऽथर’ खेलने वाली टोलियां किन अवसरों पर माध्य खेलकर गुजारा करती है ?
उत्तर – बाँड पाऽथर खेलने वाली टोलियां सामाजिक, धार्मिक अथवा व्यक्तिगत उत्सवों जैसे शादी-विवाह, ईद, शिवरात्रि, यज्ञोपवीत अथवा किसी पीर फ़कीर के उसे पर आयी अवसरों पर नाटक खेलकर गुज़ारा करती हैं।
(झ) “बाँडों” पर किस राजा ने कर माफ़ किया था ? 
उत्तर – बाँड़ों पर महाराजा प्रताप सिंह ने कर माफ़ कर दिया था।

भाषा अध्ययन

यह वाक्य पढ़ें और लिखें-
“कश्मीरी लोकनाटकों की एक श्रृंखला है जो ‘बाँड पाऽथर’ कलहाती है।” यह दो उपवाक्यों से मिलकर बना एक संयुक्त वाक्य है । इन उपवाक्यों को ‘जो’ शब्द जोड़ता है। इसे संबंध बोधक कहते हैं। नीचे दिए वाक्यों में संबंध बोधक बताइए –
(क) दर्शकों को हँसाकर नट उनसे धान प्राप्त करते हैं और इसी से उनका गुजारा होता है।
(ख) ‘पात्र’ नाटक के अभिनेता को कहते हैं परंतु कश्मीरी में ‘पाऽथर’ का अर्थ स्वांग या नाटक होता है।
(ग) वह बेसिर पैर की अंग्रेजी ही बोलता है यद्यपि उर्दू समझता है।
उत्तर – (क) और (ख) परंतु (ग) यद्यपि ।
दिए गए तीनों, संयुक्त वाक्यों को ध्यान से देखें। हर वाक्य का पहला भाग स्वतंत्र है परंतु दूसरा पहले के बिना अपूर्ण लगता है। पहला उपवाक्य मुख्य तथा दूसरा आधीन कहलाता है। उदाहरणतया – बाँड गाँव-गाँव घूमते हैं और नाटक पेश करते हैं।
मुख्य उपवाक्य—बाँड गाँव-गाँव घूमते हैं ।
अधीन उपवाक्य – नाटक पेश करते हैं। (अर्थात् बाँड नाटक पेश करते हैं । )
संबंध बोधक शब्द – और ।
इसी प्रकार इन वाक्यों में मुख्य तथा अधीन उपवाक्य बता कर संबंध बोधक शब्द बताइए-
(क) लोकनाटक आम लोग रचते हैं परंतु इन्हें पेशेवर नट खेलते हैं ।
(ख) मेहतर विरोध नहीं करता था क्योंकि वह निर्धन होता था ।
(ग) दर्शक उस पर हँसते हैं जबकि राजा को मालूम ही नहीं होता।
उत्तर –
(क) मुख्य उपवाक्य – लोक नाटक आम लोग रचते हैं।
अधीन उपवाक्य – इन्हें पेशेवर नट खेलते हैं ।
संबंधबोधक शब्द – परंतु |
(ख) मुख्य उपवाक्य – मेहतर विरोध नहीं करता था ।
अधीन उपवाक्य – वह निर्धन होता था।
संबंधबोधक शब्द – क्योंकि ।
(ग) मुख्य उपवाक्य – दर्शक उस पर हँसते हैं।
अधीन उपवाक्य – राजा को मालूम ही नहीं होता ।
संबंधबोधक शब्द – जबकि ।
दुःख दर्द- दुःख और दर्द। यह एक शब्द-युग्म है । इसी प्रकार के पाँच शब्द युग्म पाठ में से चुनकर बताइए और उनके अर्थ लिखकर वाक्यों में उनका प्रयोग करिए।
(1) शोक-शिकायत = शोक और शिकायत-
वाक्य – लोकनाटक में आम लोगों की शोक-शिकायत पेश की जाती है।
(2) आशा-आकांक्षा = आशा और आकांक्षा
वाक्य – मनुष्य की आशा और आकांक्षा मेहनत से ही पूरी हो सकती है।
(3) धन-धान्य = धन और धान्य
वाक्य – मेहनती लोग सदैव धन-धान्य प्राप्त करते हैं।
(4) जम्मू-कश्मीर = जम्मू और कश्मीर
वाक्य- जम्मू-कश्मीर भारत के उत्तर में स्थित है।
(5) पीर-फ़कीर = पीर और फ़कीर
वाक्य – भारतीय संस्कृति में पीर-फ़कीर सदा से ही श्रेष्ठ समझे जाते रहे हैं।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. इस पाठ में आए कश्मीरी शब्दों की एक सूची बनाएँ तथा उनके अर्थ भी लिखें।
उत्तर –
शब्द                    अर्थ
(1) बाँड           – भाँड या हँसाने वाला
(2) पाऽथर       – पात्र
(3) सुरनय       – शहनाई
(4) मागुन        – महागुणी
(5) वातल        – मेहतर
(6) बुहुर्य्         – पंसारी
(7) राजु           – राजा
(8) दरर्जु         – दरज जाति की स्त्री
(9) अंगरेज़      – अंग्रेज़
प्रश्न 2. अध्यापक से पूछ कर नाटक संबंधी इन शब्दों का अर्थ विस्तार से समझें-
नट, सूत्रधार, विषयवस्तु, कथावस्तु, वार्तालाप, अभिनय, वेषभूषा, मंचसज्जा।
उत्तर –
नट – पात्र या अभिनेता – जो नाटक का मंचन करता है।
सूत्रधार – मुख्य पात्र नाटक का परिचय देने वाला ।
विषयवस्तु – विषय की वस्तु-कथावस्तु ।
कथावस्तु – नाटक का कथानक (कहानी) ।
वार्तालाप – मंच पर पात्रों के द्वारा की गई परस्पर बातचीत |
अभिनय – जो कार्य और व्यवहार पात्रों द्वारा स्टेज पर किया जाता है।
वेशभूषा – जो वस्त्र पात्र अभिनय के लिए धारण करते हैं ।
मंचसज्जा – मंच की सजावट ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लोकनाटक किसकी तरह की विधा है ?
उत्तर – लोकगीत या लोककहानी ।
प्रश्न 2. व्यावसायिक लोकनट किन्हें कहते हैं ?
उत्तर – जो नट नाटक खेलने का व्यवसाय अपनाते हैं उन्हें व्यावसायिक लोकनट कहते हैं ।
प्रश्न 3. लोकनाटक में क्या प्रस्तुत किया जाता है ?
उत्तर – आम लोगों के दुःख-दर्द, शोक- शिकायत, आशा-आकांक्षा ।
प्रश्न 4. लोकनाटक किन की टोलियाँ हैं ?
उत्तर – बाँडों की।
प्रश्न 5. समय के साथ भाषा में क्या होता है ?
उत्तर – परिवर्तन ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. ‘बाँड पाऽथरों’ के नाम रखे जाते हैं ?
(क) पात्रों पर
(ख) विषय पर
(ग) वस्तुओं पर
(घ) विषय-वस्तुओं पर ।
उत्तर – (घ) विषय-वस्तुओं पर ।
2. आज तक पाऽथरों की कितनी परम्परा जीवित है?
(क) छह
(ख) सात
(ग) आठ
(घ) दस।
उत्तर – (ग) आठ
3. ‘पाऽथर’ किस भाषा का शब्द है ?
(क) कश्मीरी
(ख) कौरवी
(ग) कोंकणी
(घ) अन्य ।
उत्तर – (क) कश्मीरी।
4. पाऽथर को संस्कृत में कहते हैं
(क) पात्र
(ख) पत्थर
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (क) पात्र ।
5. नाटक का परिचय देता है.
(क) फागुन
(ख) मागुन
(ग) जागुन
(घ) शागुन ।
उत्तर – (ख) मागुन ।
6. राजु ‘पाऽथर’ में अन्यायी राजा का नाम था-
(क) सरकार
(ख) जय
(ग) जय सरकार
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (ग) जय सरकार।
7. बाँड-पाऽथरों में सबसे पुराना लोक नाटक है
(क) वातल पाऽथर
(ख) राजु पाऽथर
(ग) दरगुँ पाऽथर
(घ) उपर्युक्त सभी ।
उत्तर – (क) वातल पाऽथर ।
8. ग्वसाऽन्य् पाऽथर की विषय-वस्तु में नहीं है-
(क) साध्वी
(ख) गुपाली
(ग) गोपाली
(घ) ग्वाली।
उत्तर – (ख) गुपाली।
9. अंग्रेज़ किस पर रोब झाड़ता है –
(क) नौकर पर
(ख) नौकरानी पर
(ग) नंबरदार और चौकीदार पर
(घ) सभी पर ।
उत्तर – (ग) नंबरदार और चौकीदार पर।
10. किसने “बाँड पाऽथरों” पर लगा हुआ कर समाप्त किया था ?
(क) राजा रणजीत सिंह
(ख) राज मोहित ने
(ग) महाराजा प्रताप चौहान ने
(घ) महाराजा प्रताप सिंह
उत्तर – (घ) महाराजा प्रताप सिंह ने।

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