JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 सपनों के-से दिन

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 सपनों के-से दिन

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 9 सपनों के-से दिन (गुरदयाल सिंह)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

  पाठ का सार

‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक ‘गुरदयाल सिंह’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने अपने स्कूल के दिनों का वर्णन किया है। बच्चों को स्कूल की पढ़ाई से अधिक अच्छा अपने साथियों के साथ खेलना लगता है। स्कूल उन्हें जेल समान प्रतीत होता था। लेखक बचपन में जिन बच्चों के साथ खेलता था उन सभी की पारिवारिक स्थिति लगभग एक जैसी थी। प्रायः सभी बच्चे मैली कच्छी और टूटे बटनों वाला कुरता पहने हुए होते थे। खेलते हुए प्रायः घुटने, पैर और पिंडलियों पर चोट लग जाती थी। चोट लगने पर घर में किसी को तरस नहीं आता था। चोट देखकर माँ, बहन या पिता के हाथ से ज़ोरदार पिटाई होती थी। पिटाई होने के बावजूद बच्चे फिर अगले दिन खेलने के लिए तैयार हो जाते थे। लेखक और उसके साथियों में से अधिकतर बच्चों को स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। उन दिनों यदि बच्चों को स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था तो माँ-बाप भी उनके साथ ज़बरदस्ती नहीं करते थे। वे भी बच्चों को अपने साथ काम में लगा लेते थे। थोड़ा-सा बड़े होने पर बच्चों को बही-खाते का हिसाब-किताब सिखा देना आवश्यक समझते थे। बचपन में बच्चों को सब कुछ अच्छा लगता है केवल उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था । लेखक को अपने स्कूल जाने का रास्ता याद था जिसके दोनों ओर कांटेदार झाड़ियाँ थीं। उनके पत्तों की महक नीम जैसी थी जिसे लेखक आज भी अपनी सांसों में अनुभव करता है। स्कूल की क्यारियों में कई तरह के फूल लगे हुए थे जिन्हें वे लोग चपड़ासी की नज़र बचाकर तोड़ लेते थे। उन फूलों की खुशबू आज भी याद है।
नई कक्षा में जाना अच्छा लगता था परंतु साथ में डर भी लगता था कि मास्टरों से पहले से अधिक मार पड़ेगी। उन दिनों स्कूल में डेढ़ महीना पढ़ाई होने के बाद डेढ़-दो महीने की छुट्टियाँ होती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह खेलने में बीत जाते थे। वे लोग अपनी माँ के साथ नाना के घर जाकर छुट्टियों का भरपूर आनंद लेते थे। यदि किसी कारण नाना के घर नहीं जाते थे तो घर के पास बने तालाब में सारा दिन खेलते थे। तालाब में नहाते और गीले बदन ही पास में पड़ी रेत में खेलते थे और फिर से तालाब में कूद जाते थे। ऐसा वे लोग एक बार नहीं दिन में न जाने कितनी बार ऐसे करते थे। उन लोगों में कोई भी अच्छा तैराक नहीं था । यदि कोई बच्चा गहरे पानी में चला जाता था तो दूसरे बच्चे उसे भैंस के सींग या पूंछ पकड़कर बाहर आने की सलाह देते थे। इसी तरह छुट्टियों का एक महीना बीत जाता था। एक महीना शेष रहने पर स्कूल से मिले काम की याद आने लगती थी। हिसाब के अध्यापक दो सौ सवाल करके लाने के लिए कहते थे। बच्चे अपने मन में यह हिसाब लगाते थे कि यदि दस सवाल भी प्रतिदिन किए जाएं तो बीस दिन में काम समाप्त हो जाएगा। इसलिए दस दिन ओर खेला जा सकता है। दस की अपेक्षा पंद्रह दिन खेल में निकल जाते थे। पंद्रह सवाल प्रतिदिन करने की सोचकर एक-दो दिन और खेल में निकल जाते थे। ऐसे ही हिसाब लगातेलगाते छुट्टियां कम होती जाती थीं और स्कूल जाने का भय सताने लगता था। कुछ सहपाठियों का छुट्टियों में काम करने की अपेक्षा स्कूल में मास्टर के हाथ से मार खाना अधिक सस्ता सौदा लगता था। लेखक जो पिटाई से डरते थे वे भी उनकी संगत में रहकर उनकी तरह सोचने लगते थे। उन लोगों का नेता ‘ओमा’ था। ‘ओमा’ की सभी बातें अलग ढंग की थीं । उसका लड़ाई में कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता था।
लेखक का स्कूल बहुत छोटा था। उसमें केवल नौ कमरे थे। दाईं ओर से पहला कमरा मुख्याध्यापक श्री मदन मोहन शर्मा का था। पीटी मास्टर प्रीतम चंद की पिटाई के डर से सभी बच्चे प्रार्थना में सीधे कतारों में खड़े रहते थे। यदि कोई बच्चा जरा भी हिलता हुआ दिखाई दे जाता, उसे पीटी मास्टर बुरी तरह पीटते थे। मास्टर प्रीतम चंद से विपरीत स्वभाव वाले हेडमास्टर शर्मा थे। वे कभी भी किसी बच्चे को नहीं मारते थे। वे पाँचवीं कक्षा से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाते थे। लेखक को अपना स्कूल कभी भी पसंद नहीं आया था। पहली कक्षा से लेकर चौथी कक्षा तक अधिकतर बच्चे स्कूल रोते हुए जाते थे। उन्हें स्कूल स्काउटिंग का अभ्यास करते समय अच्छा लगता था। पीटी मास्टर अभ्यास करवाते समय नीली-पीली झंडियाँ बच्चों के हाथों में दे देते थे। अभ्यास के समय वे लोग खाकी वर्दी के साथ गले में दो रंगा रूमाल पहनते थे। जब कभी अभ्यास करते हुए पीटी मास्टर के मुँह से ‘शाबाश’ का शब्द सुनने को मिल जाता तो उस समय ऐसा लगता जैसे फ़ौज में मिलने वाले सभी तमगे उन्हें मिल गए हों। लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए हेडमास्टर शर्मा एक अमीर परिवार के लड़के की किताबें लाकर उसे दे देते थे। अपने के हेडमास्टर के कारण ही लेखक अपनी शुरू की पढ़ाई पूरी कर सके। लेखक अपने परिवार का पहला लड़का था जो स्कूल जाने लगा था।
लेखक को कभी भी नई कक्षा में आने पर कोई खुशी अनुभव नहीं होती थी। उन्हें किताबों और कापियों में से अजीब-सी गंध आती थी जिससे उसका मन उदास हो जाता था। इसका कारण उन्हें आज भी समझ में नहीं आता इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते थे जैसे-आगे की पढ़ाई का कठिन होना और नए मास्टरों से मार का भय मन के अंदर गहरी जड़ें जमा चुका था । इसीलिए लेखक को नई कक्षा में जाने का कोई उत्साह नहीं होता था। उन्हें स्कूल उस समय अच्छा लगता था जब मास्टर प्रीतम चंद उन लोगों को परेड करवाते थे। फ़ौजी वर्दी पहनकर वे लोग स्वयं को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझने लगते थे।
दूसरे विश्व युद्ध के समय नाभा रियासत के राजा को अंग्रेज़ों ने सन् 1923 में तमिलनाडू के कोडाएकेनाल में गिरफ्तार कर लिया था। उनका बेटा बाहर पढ़ता था। इसलिए रियासत में अंग्रेज़ी शासन की चलती थी। उस समय अंग्रेज़ी फ़ौज में भर्ती करने के लिए कुछ अफसर अपने साथ नौटंकी वालों को लेकर गाँव-गाँव जाते थे। ग्रामीण लोगों को नौटंकी वालों के माध्यम से फ़ौज में भर्ती होने के लाभ दिखाते थे जिससे लोग लालच में आकर फ़ौज में भर्ती हो जाते थे। लेखक को भी स्काउटिंग की परेड में जब धुली वर्दी और पालिश किए बूट मिलते थे, वे लोग स्वयं को फ़ौजी से कम नहीं समझते थे। मास्टर प्रीतम चंद को कभी बच्चों ने हँसते या मुस्कुराते हुए नहीं देखा था। उनका व्यक्तित्व और फ़ौजी पहरावा बच्चों को भयभीत करने वाला था। बच्चे उनसे डरते ही नहीं थे अपितु नफ़रत भी करते थे। मास्टर प्रीतम चंद चौथी कक्षा के बच्चों को फ़ारसी पढ़ाते थे। एक दिन उन्होंने सभी बच्चों को शब्द-रूप याद करने के लिए कहा। अगले दिन उन्होंने सब बच्चों से शब्द-रूप सुने परंतु किसी भी बच्चे को पूरी तरह शब्द-रूप याद नहीं थे। सभी बच्चों को मास्टर जी ने टाँगों के पीछे से बाँहें निकालकर कान पकड़, पीठ ऊँची करने के लिए कहा। कमजोर बच्चे सहन नहीं कर सके। वे तीन चार मिनट बाद गिरने लगे थे। जब लेखक की बारी आई उसी समय हेडमास्टर शर्मा जी उधर से निकले। उन्होंने पीटी सर को बच्चों से इतना बुरा व्यवहार करते देखा तो उन्हें सहन नहीं हुआ। उन्होंने उन्हें बहुत डांटा और उनकी शिकायत डायरेक्टर को लिखकर भेज दी। जब तक ऊपर से आदेश नहीं आ जाते थे तब तक पीटी सर स्कूल में नहीं आ सकते थे। लेकिन बच्चों के मन में फ़ारसी की घंटी बजते ही दहशत बैठ जाती थी। वह उस समय दूर होती थी जब कक्षा में शर्मा जी या नौहरिया सर फ़ारसी पढ़ाने नहीं आ जाते थे। पीटी मास्टर कई दिनों तक स्कूल नहीं आए थे। वे बाज़ार में एक दुकान के ऊपर बने किराए के चौबारे में रहते थे। उन्होंने दो तोते पाले हुए थे। उन्हें नौकरी से निकाले जाने की कोई चिंता नहीं थी। वे अपने तोतों को बादाम खिलाते और उनसे मीठी-मीठी बातें करने में अपना दिन व्यतीत करते थे। बच्चों को यह एक चमत्कार लगता था कि जो मास्टर स्कूल में बच्चों को बुरी तरह मारता था, वह अपने तोतों के साथ कैसे मीठी बातें कर लेता था।

कठिन शब्दों के अर्थ

लहू = खून। गुस्सैल = गुस्से वाले। ट्रेनिंग = प्रशिक्षण । लंडे = हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी लिपि । बहियाँ = खाता । महसूस = अनुभव । खेडण = खेलने के । सुगंध = खुशबू । बास = महक। फ़र्क = अंतर । चपड़ासी = चपरासी । ननिहाल = नाना का घर। दुम = पूँछ । ढाँढ़स = धीरजा । गंदला = गंदा । कतार = पंक्ति। खाल खींचना = बुरी तरह मारना। चपत = थप्पड़ । तमगा = मैडल । डिसिप्लिन = अनुशासन । सतिगुर= सतगुरु, परमात्मा । धनाढ्य = अमीर । हरफनमौला = पारंगत, विद्वान्, हर शिक्षा में निपुण । लेफ्ट-राइट = बायाँ दायाँ । विह्सल = सीटी । टर्न = मुड़ना । रियासत = राज्य | जंग = लड़ाई। देहांत = स्वर्गवास। जबरन = जबरदस्ती, बलपूर्वक । अठे= यहाँ । उठै = वहाँ। लीतर = टूटे हुए पुराने जूते । बर्बरता = हैवानियत, बहुत बुरा व्यवहार। मुअत्तल = निलंबित । महकमाए तालीम = शिक्षा विभाग । मंजूरी = अनुमति बहाल करना = फिर से नौकरी पर रखना।

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. बचपन में घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है। यह शब्द शायद आधी शती पहले किसी पुस्तक में पढ़े थे, परंतु आज तक याद हैं। याद रहने का कारण यही है कि यह वाक्य बचपन की भावनाओं, सोच-समझ के अनुकूल होगा। परंतु स्कूल के अंदर जाने से रास्ते के दोनों ओर जो अलियार के बड़े ढंग से कटे-छाँटे झाड़ उगे थे (जिन्हें हम डंडियाँ कहा करते ) उनके नीम के पत्तों जैसे पत्तों की महक आज तक भी आँख मूँदकर महसूस कर सकता हूँ। उन दिनों स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल की कई तरह के उघाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफेद कलियाँ भी हुआ करतीं। ये कलियां इतनी सुंदर और खुशबूदार होती थीं कि हम चंदू चपड़ासी से आँख बचाकर कभी-कभार एक-दो तोड़ लिया करते । उनकी बहुत तेज़ सुगंध आज भी महसूस कर पाता हूँ, परंतु यह याद नहीं कि उन्हें तोड़कर, कुछ देर सूँघकर फिर क्या किया करते ।
प्रसंग – यह गद्यावतरण ‘गुरदयाल सिंह’ द्वारा रचित ‘सपनों के-से दिन’ शीर्षक से अवतरित किया गया है। लेखक ने बचपन की स्मृतियों का वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक का ध्यान है कि बचपन में घास बहुत अधिक हरी-भरी तथा फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है। ये शब्द शायद पचास साल पूर्व किसी पुस्तक में पढ़े थे किंतु ये शब्द उसे आज तक भी याद हैं। इन शब्दों के याद रहने का यही कारण है कि यह वाक्य बचपन की भावनाओं तथा सोच-समझ के अनुकूल होगा किंतु स्कूल के अंदर जाने से रास्ते के दोनों ओर जो अलियार के बड़े अच्छी तरह से कटे-छंटे झाड़ उगे हुए थे। जिन्हें हम डंडियाँ कहा करते हैं। उनके नाम के पत्तों जैसे पत्तों की खुशबू आज तक भी आँखें मूंदकर महसूस कर सकता हूँ। उन दिनों स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध के समान सफेद कलियां भी हुआ करती हैं। ये कलियां इतनी सुंदर और खुशबूदार होती थीं कि हम चंदू चपड़ासी से बच कर चोरीछिपे कभी-कभी एक-दो तोड़ लेते थे। उन कलियों की तेज़ सुगंध आज भी महसूस कर पाता हूँ परंतु यह याद नहीं कि उन्हें तोड़कर कुछ देर सूँघकर फिर क्या किया करते ।
विशेष – (1) बाल सुलभ चेष्टाओं का मनोहारी अंकन है।
(2) भाषा सरल, सरस एवं भावपूर्ण है।
2. अजीब बात थी कि मुझे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती कि मन बहुत उदास होने लगता था इसका ठीक-ठीक कारण तो कभी समझ में नहीं आया परंतु जितनी भी मनोविज्ञान की जानकारी है, इस अरुचि का कारण यही समझ में आया कि आगे की श्रेणी की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का भय ही कहीं भीतर जमकर बैठ गया था। सभी तो नए न होते परंतु दो-तीन हर साल ही वह होते जोकि छोटी श्रेणी में नहीं पढ़ाते थे। कुछ ऐसी भी भावना थी कि अधिक अध्यापक एक साल में ऐसी अपेक्षा करने लगते कि जैसे हम ‘हरफनमौला’ हो गए हों। यदि उनकी आशाओं पर पूरे नहीं हो पाते तो कुछ तो जैसे ‘चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते’, इन्हीं कुछ कारणों से केवल किताबों- कापियों की गंध से ही नहीं, बाहर के बड़े गेट से दस-पंद्रह गज दूर स्कूल के कमरों तक रास्ते के दोनों ओर जो अलियार के झाड़ उगे थे उनकी गंध भी मन उदास कर दिया करती ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्य-खंड ‘सपनों के-से दिन’ शीर्षक से लिया गया है। यह गुरदयाल सिंह लेखक द्वारा रचित है। इसमें लेखक ने बचपन में शिक्षा के प्रति अरुचि का वर्णन है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि यह बात बिल्कुल अद्भुत थी कि बचपन में मुझे नई कापियों तथा पुरानी पुस्तकों में से ऐसी सुगंध आने लगती थी कि मन बहुत उदास होने लगता था। इस बात का उचित कारण तो कभी समझ में नहीं आया परंतु जितनी भी मुझे मनोविज्ञान के बारे में जानकारी है। यह मेरी पुस्तकों के प्रति अरुचि थी इसी अरुचि के कारण मुझे केवल यही समझ आया कि आगे की श्रेणी की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मारपीट का डर ही कहीं भीतर जमकर बैठ गया था। सभी तो नए न होते थे परंतु दो-तीन हर वर्ष ही वह होते जोकि छोटी श्रेणी में नहीं पढ़ाते थे। कुछ ऐसी भी भावना थी कि अधिक अध्यापक एक वर्ष में ऐसी अपेक्षा करने लगते कि जैसे चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते थे यही कुछ कारण थे जिनसे केवल किताबों, पुस्तकों, कापियों की सुगंध से ही नहीं बल्कि बाहर के बड़े गेट से दस-पंद्रह गज दूर स्कूल के कमरों तक रास्ते के दोनों तरफ जो अलियार के झाड़ उगे थे उनकी गंध भी मन उिदास कर दिया करती।
विशेष – (1) बाल सुलभ चेष्टाओं का चित्रांकन है।
(2) भाषा सरल, सरस, खड़ी बोली है।
3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुस्कराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला-पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट – सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे भी खुरियाँ लगी रहतीं, जैसे ताँगे के घोड़े के पैरों में लगी रहती हैं। अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते । यदि वह सख्त जगह पर भी चलते तो खुरियों और कीलों के निशान वहाँ भी दिखाई देते।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश लेखक गुरदयाल सिंह द्वारा लिखित ‘सपनों के-से दिन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने बचपन के दिनों तथा बचपन की क्रीड़ाओं को सपनों के दिनों के समान माना है। यहां यही वर्णन किया गया है।
व्याख्या—लेखक बचपन को याद करते हुए कह रहा है कि मास्टर प्रीतम चंद को स्कूल के समय में कमी भी हमने मुस्कराते अथवा हँसते न देखा था। उनका कद छोटा था। उनका शरीर दुबला-पतला परंतु गठीला। उनके चेहरे पर माता के दाग थे। उनकी आंखें बाज के समान तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी पहनते थे। चमड़े के चौड़े-चौड़े पंजों वाले बूट पहनते थे। उनका यह सब कुछ भयभीत करने वाला होता था । इतनी ही नहीं उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे भी खुर्रियां लगी रहती थीं जैसे ताँगे के घोड़े के पैरों में लगी रहती हैं। इसके अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे । यदि वह सख्त जगह पर भी चलते तो खुर्रियों और कीलों के निशान वहां भी दिखाई देते ।
विशेष – (1) लेखक ने बचपन की यादों का भावपूर्ण चित्रण किया है ।
(2) भाषा सरल सरस है । जिस में उर्दू-फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।
4. मास्टर प्रीतमचंद से हमारा डरना तो स्वाभाविक था, परंतु हम उनसे नफ़रत भी करते थे। कारण तो उसका मारपीट था। हम सभी को (जो मेरी उम्र के हैं) वह दिन नहीं भूल पाया जिस दिन वह हमें चौथी श्रेणी में फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। हमें उर्दू का तो तीसरी श्रेणी तक अच्छा अभ्यास हो गया था परंतु फ़ारसी तो अंग्रेजी से भी मुश्किल थी। अभी हमें पढ़ते एक सप्ताह भी न हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने हमें एक शब्द-रूप याद करने को कहा और आदेश दिया कि कल इसी घंटी में ज़बानी सुनेंगे। हम सभी घर लौटकर, रात देर तक उसी शब्दरूप को बार-बार याद करते रहे परंतु केवल दो-तीन ही लड़के थे जिन्हें आधी या कुछ अधिक शब्द-रूप याद हो पाया। 
प्रसंग – यह गद्य-खंड ‘नवभारती’ में संकलित ‘सपनों के-से दिन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक अपने बचपन की स्कूली शिक्षा की स्मृतियों का वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक अपने बचपन के सपनों के-से दिनों का स्मरण करते हुए कहता है कि मास्टर प्रीतमचंद से हमारा डरना तो स्वाभाविक था, किंतु हम उनसे नफ़रत और घृणा किया करते थे। क्योंकि वे हमारी मारपीट किया करते थे। हम सभी को अर्थात् मैं तथा मेरी उम्र के सभी साथी वह दिन नहीं भूल पाए जिस दिन वह हमें चौथी श्रेणी में फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। इस समय हमें उर्दू का तो तीसरी श्रेणी तक अच्छा अभ्यास हो गया था परंतु फ़ारसी तो अंग्रेजी से भी मुश्किल थी। अभी तक हमें पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि मास्टर प्रीतमचंद ने हमें एक शब्द रूप याद करने को दिया इसके साथ-साथ यह आदेश दिया कि कल इसी घंटी में जुबानी सुनेंगे। हम सभी देर रात तक उसी शब्द रूप को बार-बार याद करते रहे किंतु केवल दो-तीन लड़के थे जिन्हें आधा या कुछ अधिक शब्द-रूप याद हो पाया।
विशेष – (1) बचपन के सपनों के समान स्मृतियों का मनोहारी अंकन किया है।
(2) खड़ी बोली सरल एवं सरस है।
5. हमें तब अंग्रेजी नहीं आती थी, क्योंकि उस समय पाँचवीं श्रेणी से अंग्रेजी पढ़ानी शुरू की जाती थी। परंतु हमारे स्कूल के सातवीं-आठवीं श्रेणी के लड़कों ने बताया था कि शर्माजी ने कहा था— क्या करते हैं ? 
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरदयाल सिंह द्वारा रचित पाठ ‘सपनों के-से दिन’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने अपने बचपन के दिनों का वर्णन किया है ।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन कर रहा है जब पी० टी० सर की बच्चों पर की गई बर्बरता को सहन न कर हेडमास्टर शर्मा जी ने अंग्रेज़ी में उन्हें डाँटा था। उस समय लेखक तथा उसके साथियों को अँग्रेज़ी नहीं आती थी क्योंकि उन दिनों पाँचवीं कक्षा से अंग्रेज़ी पढ़ाई जाती थी। उन्हें उनके स्कूल के सातवीं-आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने यह बताया था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पी० टी० सर को यह कहा था कि वे क्या करते हैं।
विशेष – (1) हेडमास्टर शर्मा जी को पी० टी० सर का बर्बरता पूर्ण व्यवहार उचित नहीं लगा था।
(2) भाषा सरल तथा स्पष्ट है ।
6. परंतु तब भी स्कूल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहाँ खुशी से भागे जाएँ। पहली कच्ची श्रेणी तक, केवल पाँच-सात लड़कों को छोड़ हम सभी रोते-चिल्लाते ही स्कूल जाया करते । 
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरदयाल सिंह द्वारा रचित पाठ ‘सपनों के-से दिन’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने अपने बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत किया है ।
व्याख्या – लेखक का कथन है कि उन दिनों स्कूल उनके लिए ऐसा स्थान नहीं था जहाँ वे खुशी-खुशी भागते हुए जाते। उनके पहली कच्ची कक्षा के साथियों में से सिर्फ़ पाँच-सात लड़कों के अलावा शेष सभी बच्चे रोते-चिल्लाते हुए ही स्कूल जाते थे।
विशेष – (1) गाँव के बच्चों की दशा का यथार्थ चित्रण किया है जो प्रारंभिक कक्षाओं में स्कूल जाते हुए घबराते थे।
(2) भाषा सहज, सरल बोलचाल की है।
7. फिर जब (प्रतीम ) प्रीतम चंद कई दिन स्कूल नहीं आए तो यह बात सभी मास्टरों की जुबान पर थी कि हेडमास्टर शर्माजी ने उन्हें मुअत्तल करके अपनी ओर से आदेश लिखकर, मंजूरी के लिए हमारी रियासत की राजधानी, नाभा भेज दिया है। 
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरदयाल सिंह द्वारा रचित पाठ ‘सपनों के-से दिन’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने अपने बचपन के दिनों का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक बताता है कि बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करने के कारण मास्टर प्रीतम चंद को कैसे स्कूल से निकाल दिया गया था। जब कई दिनों तक मास्टर प्रीतम चंद स्कूल नहीं आए तो सभी मास्टरों से उन्हें पता चल गया कि हेडमास्टर शर्मा जी ने उन्हें नौकरी से निकाल कर अपनी ओर से आदेश-पत्र लिखकर स्वीकार करने के लिए उनकी रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया था।
विशेष—(1) स्कूल के बच्चों से बुरा व्यवहार करने के कारण हेड मास्टर जी के द्वारा प्रीतम चंद के मुअत्तल होने का वर्णन है।
(2) भाषा सरल और बोलचाल की है
8. “हम सभी उसके बारे में सोचते कि हमारे में उस जैसा कौन था। कभी भी उस जैसा दूसरा लड़का नहीं ढूँढ़ पाते थे। उसकी बातें, गालियाँ, मार-पिटाई का ढंग तो अलग था ही, उसकी शक्ल-सूरत भी सबसे अलग थी।’
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरदयाल सिंह द्वारा रचित पाठ ‘सपनों के-से दिन’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने अपने
बचपन के दिनों की स्मृतियों का वर्णन किया है।
व्याख्या — इन पंक्तियों में लेखक अपने साथी ओमा के संबंध में लिखता है कि वह उन सबका नेता था। वे सभी यह सोचते थे कि उनमें ओमा जैसा कौन था ? परंतु उन्हें उनमें से कोई भी ओमा जैसा नहीं लगता था। ओमा की बातें, गालियाँ, मारने-पीटने का तरीका सब कुछ सबसे अलग तरह का था साथ ही उसकी शक्ल सूरत भी सबसे अलग थी।
विशेष – (1) ओमा के व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है।
(2) भाषा सहज, सरल तथा शैली आत्मकथात्मक है।

J&K class 10th Hindi सपनों के-से दिन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार बच्चों या बड़ों में कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डाल सकती है। लेखक बचपन में जहाँ रहा करता था, वहाँ पर अधिकतर घर राजस्थान या हरियाणा से आकर बसे हुए लोगों के थे। वहाँ पर उन लोगों के व्यापार तथा दुकानदारी थी । उन लोगों की भाषा और रहन-सहन स्थानीय लोगों से भिन्न था। उनकी बोली बहुत कम समझ में आती थी। कुछ शब्द तो ऐसे थे जिन्हें सुनकर हँसी आती थी। परंतु खेल के समय उन लोगों की भाषा में कोई अंतर नहीं आता था । वे सब एक-दूसरे की भाषा को अच्छी तरह समझ लेते थे। इसीलिए भाषा आपसी व्यवहार में कोई बाधा नहीं बनती है।
प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज़ के तमगों सी- क्यों लगती थी ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – पीटी साहब मास्टर प्रीतम चंद बहुत सख्त स्वभाव और अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे । वे छोटी-सेछोटी गलती पर बच्चों को बुरी तरह मारते थे। बच्चों ने उन्हें कभी भी हँसते या मुस्कुराते हुए नहीं देखा था। बच्चे उनसे बहुत डरते थे पता नहीं कब ‘खाल खींचने’ वाला मुहावरा प्रत्यक्ष हो जाए। पीटी साहब जब बच्चों को स्काउटिंग की परेड का अभ्यास करवाते समय यदि कोई गलती नहीं होती थी तो वे बच्चों को शाबाश कहते थे। बच्चों के लिए वह शाबाश फौज़ के तमगों जैसी लगती थी। बच्चों को लगता उन्होंने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य अच्छे ढंग से संपन्न किया है जिस कारण पीटी साहब से शाबाश रूपी तमगा मिला था ।
प्रश्न 3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था ?
उत्तर – लेखक को नयी श्रेणी में जाने का कोई उत्साह नहीं होता था। उसे नयी कापियों और पुरानी किताबों में से एक अजीब-सी गंध आती थी। वह उस गंध को कभी नहीं समझ सका था। वह गंध उसे उदास कर देती थी। इसके पीछे यह कारण हो सकता है कि नई श्रेणी की पढ़ाई का कठिन होना और मास्टरों से पड़ने वाली मार का भय मन में गहरी जड़ें जमा चुका था। इसीलिए नई कक्षा में जाने पर खुशी नहीं होती थी। पहले से अधिक कठिन पढ़ाई करनी पड़ेगी। पाठ को अच्छी तरह समझ न आने पर मास्टरों से चमड़ी उधेड़ने वाले मुहावरों को प्रत्यक्ष होते हुए देखना ही उसे अंदर तक उदास कर देता था।
प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान क्यों समझने लगता था ?
उत्तर –– लेखक को अपने स्कूल में यदि कुछ अच्छा लगता था तो वह था स्काउट परेड। स्काउट परेड करते समय धोबी से धुली खाकी वर्दी और पालिश किए जूते पहनने को मिलते थे। परेड करते समय मास्टर प्रीतम चंद विह्सल बजाते हुए लेफ्ट-राइट, राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाऊट टर्न कहते थे। उस समय वे छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँबाएँ या एकदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक-ठक से आगे बढ़ते जाना उन्हें अच्छा लगता था। उस समय वे स्वयं को विद्यार्थी नहीं फ़ौजी जवान समझते थे।
प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया ?
उत्तर – पीटी साहब मास्टर प्रीतम चंद चौथी कक्षा को फ़ारसी भाषा पढ़ाते थे। बच्चों के लिए फ़ारसी भाषा अंग्रेज़ी भाषा से भी कठिन थी। फ़ारसी पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह हुआ था। उन्होंने चौथी कक्षा के छात्रों को एक शब्द-रूप याद करके लाने और अगले दिन सुनाने का आदेश दिया । शब्द-रूप बहुत कठिन था। बच्चे मार के डर से सारा दिन शब्द-रूप याद करते रहे थे परंतु शब्द-रूप उन बच्चों को याद नहीं हुआ। अगले दिन पीटी साहब ने शब्द-रूप सुना। किसी भी बच्चे ने शब्द-रूप नहीं सुनाया। पीटी साहब ने अपने सख्त स्वभाव के अनुरूप बच्चों को झुककर टाँगों में से बाँहें निकालकर कान पकड़ने की सजा सुनाई थी। कमज़ोर बच्चे तीन-चार मिनट में ही थकने लगे। हेडमास्टर शर्मा जी ने जब यह दृश्य देखा तो उन्हें सहन नहीं हुआ। उन्होंने पीटी साहब को बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करने पर मुअत्तल कर दिया।
प्रश्न 6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?
उत्तर – लेखक को स्कूल कभी भी ऐसी जगह नहीं लगता था जहाँ खुशी से जाया जाए। स्कूल जाना उसके लिए एक सज़ा के समान था। परंतु एक – दो अवसर ऐसे होते थे जब उसे स्कूल जाना अच्छा लगता था । पीटी मास्टर जब स्कूल में स्काउटिंग की परेड का अभ्यास करवाते थे उस समय पीटी मास्टर बच्चों के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे। मास्टर जी के वन, टू, थ्री कहने पर बच्चे झंडियों को ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ करते थे उस समय हवा में लहराती हुई झंडियाँ बच्चों को अच्छी लगती थीं उन लोगों को पहनने के लिए खाकी वर्दी और पालिश किए जूते मिलते थे। गले में दो रंगा रूमाल पहनने को मिलता था। उस समय स्कूल के सभी बच्चे खुशी-खुशी स्कूल जाते थे।
प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएं बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसी भांति बहादुर बनने की कल्पना का करता था ?
उत्तर – लेखक के छात्र जीवन में अप्रैल से स्कूल आरंभ होते थे। डेढ़ महीना स्कूल लगने के बाद उन्हें डेढ़दो महीने की छुट्टियाँ होती थीं। पहला एक महीना वे लोग खेल-कूद में व्यतीत करते थे या फिर अपनी माँ के ननिहाल जाते थे। वहाँ तालाब पर खूब खेलते और नहाते थे । यदि ननिहाल नहीं जाते तो घर के पास तालाब में नहाते और पास के टीले की रेत से खेलते थे । रेत से खेलना और तालाब में नहाने का क्रम कितनी बार चलता था। यह लेखक को याद नहीं था। जब छुट्टियों का एक महीना शेष बचता था तो स्कूल से मिले काम की याद आने लगती थी। हिसाब वाले मास्टर दो सौ से कम सवाल नहीं देते थे। वे लोग दस सवाल हर रोज़ करने की योजना बनाते इस प्रकार दो सौ सवाल बीस दिन में पूरे हो जाएंगे। ऐसा सोचकर फिर खेल में लग जाते थे। इस प्रकार पंद्रह दिन निकल जाते थे। फिर वे लोग पंद्रह सवाल प्रतिदिन करने की सोचते थे। लेखक के साथियों को छुट्टियों में स्कूल का काम करने की अपेक्षा मास्टर के हाथों से मार खाना सस्ता सौदा लगता था। लेखक के साथियों में एक साथी ओमा था जो बहुत बहादुर था। लेखक भी उनके साथ रहते हुए काम करने की अपेक्षा ‘ओमा’ की तरह बहादुर बनकर मार खाने के लिए तैयार हो जाता था।
प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर – पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं
  1. व्यक्तित्व – मास्टर प्रीतम चंद देखने में दुबले-पतले लगते थे परंतु उनका शरीर गठीला था। उनका कद छोटा था। चेहरे पर माता के दाग थे। उनका आँखें बाज जैसी तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी पहनते थे। फौजियों वाले भारी-भरकम बूट पहनते थे। बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे खुरियाँ लगी रहती थीं। पंजों के नीचे मोटे सिरों वाले कील लगे हुए थे। उनका पूरा व्यक्तित्व बच्चों को भयभीत करने वाला था।
  2. अनुशासन पसंद – मास्टर प्रीतम चंत अनुशासन में रहना पसंद करते थे। उन्हें अनुशासनहीनता पसंद नहीं थी। स्कूल में प्रार्थना के समय सभी लड़कें कतारों में कद के अनुसार सीधे खड़े होते थे । यदि कोई लड़का हिलता हुआ दिखाई दे जाता था तो मास्टर प्रीतम चंद उस लड़के को वहीं बुरी तरह मारने लगते थे ।
  3. कठोर स्वभाव – मास्टर प्रीतम चंद का स्वभाव बहुत कठोर था । बच्चे उनसे बहुत डरते थे। बच्चों ने उन्हें कभी हँसते या मुस्कुराते हुए नहीं देखा था। स्काउटिंग की परेड का अभ्यास करवाते समय यदि कोई गलती नहीं होती तो वे बच्चों को ‘शाबाश’ कहते थे। बच्चों के लिए वह ‘शाबास’ किसी फौज़ी तमगे से कम नहीं होती थी। पीटी साहब के मुँह से निकली ‘शाबाश’ सारा साल कापियों पर मास्टरों से मिलने वाली ‘गुडों’ से ऊपर होती थी।
  4. भावना रहित – मास्टर प्रीतम चंद में मानवीय भावनाएं बिल्कुल नहीं थीं। वे छोटे-छोटे बच्चों को छोटी-सेछोटी गलती पर बड़ी से बड़ी सज़ा देने में झिझकते नहीं थे। एक बार मास्टर प्रीतम चंद ने चौथी कक्षा के बच्चों को शब्दरूप याद न करके आने पर उन्हें झुककर टाँगों के पीछे से बाँहें निकालकर कान पकड़ने की सज़ा दी। कमज़ोर और छोटे बच्चे तीन चार मिनट में ही जलन और थकान के कारण गिर पड़ते थे परंतु मास्टर जी पर इसका कोई प्रभाव नहीं था। अपने इसी अमानवीय व्यवहार के कारण उन्हें हेडमास्टर शर्मा जी ने नौकरी से निकाल दिया था।
  5. पक्षी प्रेम – मास्टर प्रीतम चंद को छोटे-छोटे बच्चों के साथ कोई दया या प्रेम नहीं था । परंतु उन्हें पक्षियों से प्रेम था। उन्होंने दो तोते पाल रखे थे। उन तोतों को बादाम की गिरियाँ खिलाते और उनसे मीठी-मीठी बातें करते थे। बच्चों के लिए पीटी साहब को पक्षियों से मीठी-मीठी बातें करना एक चमत्कार लगता था। जो अध्यापक स्कूल में बच्चों को निर्दयता से मारे और घर में पक्षियों के साथ अच्छा व्यवहार करे वह कोई चमत्कार से कम नहीं था ।
    पीटी साहब को अपने कठोर और अमानवीय स्वभाव के कारण ही स्कूल से मुअत्तल किया गया था। उन्हें अपनी गलती पर कोई पछतावा नहीं था ।
प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए ।
उत्तर – लेखक के अनुसार उनके साथ विद्यार्थी जीवन में बहुत कठोर और अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उन लोगों के मन में अध्यापकों की मार का इतना डर बैठ गया था कि उन लोगों को नई कक्षा में जाने की कोई खुशी नहीं होती थी। उन्हें स्कूल एक जेल के समान लगती थी जहाँ वे कैद की सज़ा काटने के लिए जाते थे। अधिकतर बच्चे स्कूल जाने की अपेक्षा माँ-बाप के साथ उनके काम में हाथ बटाना अधिक उचित मानते थे।
वर्तमान समय में स्कूल में अध्यापक बच्चों को कठोर शारीरिक दंड नहीं दे सकते। यदि कोई अध्यापक ऐसा करता है तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। वर्तमान में अध्यापकों को बच्चों के मनोविज्ञान को समझने का प्रशिक्षण दिया जाता है। पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए उन्हें प्रशिक्षण के समय सिखाया जाता है। यदि कोई उद्दंड बच्चा हो जो प्यार से समझाने से नहीं समझता फिर उस माँ – बाप के कहने पर ही सख्ती की जाती है या उसे बाल मनोचिकित्सक से परामर्श करने का सुझाव दिया जाता है। वर्तमान में बच्चों को ही आने वाले कल का निर्माता समझा जाता है । इसलिए उनके मन में स्कूल के प्रति बसे भय को निकालने के लिए स्कूल का वातावरण खुशहाल बनाया जाता है जिससे बच्चों का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास हो सके।
प्रश्न 10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।
उत्तर – बचपन की यादें कभी किसी को नहीं भूलतीं। उन दिनों में प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। घर से स्कूल के रास्ते में एक बड़ी-सी कोठी थी। उसमें बाहरी दीवार के पास फलों के अनेक पेड़ ढगे थे। मैं अपने मित्रों के साथ बाहर से पत्थर फेंककर फलों को प्रायः तोड़ने की कोशिश किया करता था। कभी-कभी कोई फल टूटकर बाहर भी आ गिरता था और हम उस कच्चे-पक्के फल को पाकर इतने प्रसन्न हुआ करते थे जैसे हमें कोई खजाना मिल गया हो ।
हमारे घर के पास एक जोहड़ था । हम हर रोज़ उसके किनारे बैठ कर उसमें तैरते-उछलते मेढ़कों को घंटों देखा करते थे। वे कभी पानी में डुबकी लगा जाते थे तो कभी किनारे पर आ जाते थे। जब वे गले की झिल्ली फुलाकर टर्रटर्र किया करते थे तो हमें बड़ा मज़ा आया करता था ।
मेरा एक मित्र था। वह बहुत मोटा था । हम सब मित्र उसे आलू कहा करते थे। जब कभी खेलते हुए वह गिर जाता था तो हम सब तालियाँ बजा बजा कर नाचा करते थे—’आलू लुड़क गया, आलू लुड़क गया।’
प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए-
(क) खेल आपके लिए क्यों ज़रूरी हैं ?
(ख ) आप कौन-से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?
उत्तर – (क) मनुष्य के जीवन में खेल का बहुत महत्त्व है। खेल अच्छे स्वास्थ्य के लिए परम आवश्यक है। स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति ही संसार के सभी सुखों को प्राप्त करता है । खेल-कूद शरीर ही स्वस्थ नहीं रहता अपितु उसका बौद्धिक विकास भी होता है। मानसिक थकावट नहीं होती शरीर में स्फूर्ति आती हैं, शिथिलता और आलस्य दूर भागता है। खेलने से बच्चों में एकता की भावना का विकास होता है। उनमें मिल-जुलकर रहने की आदत का विकास होता है। दूसरे बच्चों के साथ खेलने से बच्चे अकेलेपन का शिकार नहीं होते। खेल से ही बच्चों में नेतृत्व, अनुशासन, धैर्य, सहनशीलता, मेल-जोल, सहयोग आदि के गुण स्वतः ही विकसित हो जाते हैं इसलिए बच्चों के लिए खेल ज़रूरी है।
(ख) खेल से बच्चों का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास होता है। परंतु अधिक खेलना बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक है। बच्चों के लिए यदि कुछ नियम बनाए जाएं जिससे उनके खेलने और पढ़ाई में संतुलन बना रहे। बच्चों को खेलने का समय निर्धारित करना चाहिए। खेलने से पहले अपना स्कूल का कार्य समाप्त कर लेना चाहिए। स्कूल का कार्य पूरा होने पर अभिभावकों को भी उनके खेलने से परेशानी नहीं होगी। खेलने के बाद कुछ शारीरिक थकावट अवश्य होती है परंतु कुछ देर आराम करने के पश्चात् शरीर और दिमाग ताज़गी से भरे होते हैं। उस समय स्कूल से मिले अन्य कार्य पूरे किए जा सकते हैं तथा माता-पिता के कार्य में उनकी सहायता की जा सकती है। बच्चों को खेल ऐसे खेलना चाहिए जिसमें अधिक चोट लगने का डर न हो। सड़क के मध्य नहीं खेलना चाहिए। खेल ऐसे न हों जिससे उन्हें या दूसरों को कोई नुकसान पहुंचे। खेलने के लिए खुले स्थान का चुनाव करना चाहिए जो घर से अधिक दूर न हो । यदि बच्चे अपने बनाए नियमों का पालन उचित ढंग से करें तो अभिभावक भी उनको खेलने से मना नहीं करेंगे। अभिभावकों को भी पता होता है कि खेलने से ही बच्चों में शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक गुणों का विकास होता है ।

J&K class 10th Hindi सपनों के-से दिन Important Questions and Answers

प्रश्न 1. लेखक के साथ खेलने वाले बच्चों की हालत कैसी होती थी ?
उत्तर – लेखक के साथ खेलने वाले सभी बच्चों का हाल एक जैसा होता था। बच्चों के पैर नंगे होते थे। उन्होंने फटी- मैली कच्छी पहनी होती थी। उनके कुर्ते बिना बटनों के होते थे। कई बच्चों के कुर्ते फटे हुए भी होते थे। अधिकतर बच्चों को खेलते समय चोट लग जाती थी। चोट लगने पर घर पहुंचकर, माँ, बहन या पिता जी से बहुत मार पड़ती थी। किसी को भी चोट से बहते खून को देखकर तरस नहीं आता था।
प्रश्न 2. लेखक के समय में अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने में दिलचस्पी क्यों नहीं लेते थे ?
उत्तर – लेखक के समय में बच्चों या अभिभावकों को स्कूल में कोई खास दिलचस्पी नहीं होती थी। जिन बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं होती थी वे अपना बस्ता किसी तालाब में फेंक आते और फिर कभी भी स्कूल नहीं जाते थे। अभिभावक भी बच्चों को अपने साथ अपने काम में लगा लेते थे। उनके अनुसार पढ़-लिख कर उन्होंने कौन-सा तहसीलदार बनना था। उनकी यही सोच बच्चों को स्कूल से दूर रखती थी ।
प्रश्न 3. “बचपन में घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है,” लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर – बचपन में बच्चों को घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है। बचपन में बच्चे हर प्रकार के भेदभाव, समस्याओं तथा छलकपट से दूर होते हैं। उनकी अपनी अलग दुनिया होती है जिसमें वे लोग मस्त होते हैं। वे इस बात से बेखबर होते हैं कि उनके आस-पास के संसार में क्या हो रहा है। वे अपने दुःख में दुखी और अपनी खुशी में खुश होते हैं। इसलिए उनके लिए अपने आस-पास का वातावरण अधिक खुशगवार और सुहावना होता है। उन्हें पतझड़ में भी बहार दिखाई देती है। बचपन में बच्चे अल्हड़ और अलमस्त होते हैं इसलिए उन्हें घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है।
प्रश्न 4. लेखक को बचपन में स्कूल जाते समय किन-किन चीज़ों की महक आज भी याद है ? 
उत्तर – लेखक को अपने बचपन के दिन और स्कूल आज भी अच्छी तरह याद हैं। कुछ चीज़ों की महक उसे आज भी अच्छी तरह याद है। उनके स्कूल के अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बड़े ढंग से काटे-छांटे झाड़ उगे हुए थे। उनमें से नीम के पत्तों जैसे पत्तों की महक आज भी लेखक आँख बंद करके अनुभव कर सकता है। स्कूल की क्यारियों में कई तरह के रंग-बिरंगे फूल लगे होते थे। उन फूलों को चपरासी और माली की नज़र बचाकर वे लोग तोड़ लेते थे। उन फूलों की तेज़ गंध को भी लेखक आँख बंद करके अब तक अनुभव कर सकता है।
प्रश्न 5. लेखक बचपन में अपनी छुट्टियों को किस प्रकार व्यतीत करता था ?
अथवा
तालाब में तैरने का आनंद लेखक कैसे लेता था ?
उत्तर – लेखक अपनी छुट्टियां खेलने-कूदने में व्यतीत करता था । छुट्टियां होते ही वह अपनी माँ के साथ नाना के घर चला जाता था। वहां का तालाब भी उनके घर के पास वाले तालाब जितना ही बड़ा था। दोपहर तक तालाब पर नहाते थे फिर घर आकर नानी से कुछ भी मांगकर खा सकते थे। जिस साल लेखक नाना के घर नहीं जाता था। उस साल अपने घर के पास बने तालाब में अपने मित्रों के साथ नहाते थे । तालाब में नहाकर पास के टीले की रेत में खेलते। उस टीले की गरम रेत को अपने शरीर पर लगाते थे। फिर रेत को धोने के लिए तालाब में छलांग लगाते थे। ऐसा दिन में कितनी बार करते थे। यह उन्हें याद नहीं था। ऐसे ही उनकी छुट्टियां खेल-कूद में बीत जाती थीं।
प्रश्न 6. पाठ में वर्णित ‘ओमा’ का व्यक्तित्व कैसा था ?
अथवा
ओमा का लड़ाई करने का क्या ढंग था ?
उत्तर – लेखक के साथियों में ‘ओमा’ उनका नेता था । ओमा बहुत बहादुर था । वह किसी से नहीं डरता था। उस जैसा लड़का उनके समूह में कोई भी नहीं था। ‘ओमा’ की सूरत सबसे भिन्न थी । उसका सिर बहुत बड़ा था ऐसा लगता था जैसे बड़ा मटका हो। उसका कद छोटा था। इसलिए छोटे कद पर बड़ा सिर अजीब लगता था। उसका सिर जितना बड़ा था चेहरा उतना ही छोटा था। उसकी बातें, गालियां और मारपीट का ढंग अलग ही था। वह अपने हाथ-पैरों से नहीं लड़ता था। वह अपने सिर से लड़ने वाले की छाती पर वार करता था। उससे दुगुने शरीर वाले लड़के भी उसके वार को सहन नहीं कर सकते थे। उसके सिर की चोट पड़ते ही लड़के दर्द से चिल्लाने लगते थे। उसके सिर की टक्कर को लड़के ‘रेल- बम्बा’ कह कर बुलाते थे।
प्रश्न 7. हेडमास्टर शर्मा जी का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – हेडमास्टर शर्मा जी का स्वभाव सरल था। वह कभी भी किसी की पिटाई नहीं करते थे। वह पांचवीं कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाते थे । वह समय के मास्टरों से भिन्न थे । वे बच्चों की चमड़ी उधेड़ने में विश्वास नहीं करते थे । यदि उन्हें किसी बच्चे पर क्रोध आ भी जाता तो वे जल्दी आँखें झपकाने लगते थे। अपने हाथ से इस प्रकार थप्पड़ लगाते थे जैसे हाथ में नमकीन पापड़ी पकड़ ली हो। बच्चों को उनके पीरियड में पढ़ना सबसे अधिक अच्छा लगता था ।
प्रश्न 8. लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर, उसकी पढ़ाई पूरी किस प्रकार संभव हुई थी ?
उत्तर – लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर थी । उस समय एक-दो रुपए में सारी किताबें आ जाया करती थीं परंतु एक-दो रुपए भी उस समय में बड़ी रकम समझा जाता था जिससे घर का गुज़ारा अच्छी तरह हो सकता था। इसीलिए उन दिनों अमीर परिवारों के बच्चे स्कूल जाया करते थे। लेखक अपने दो परिवारों में पहला लड़का था अमीर बच्चे की किताबें उसको जो स्कूल जाने लगा था। उसके परिवार की स्थिति देखते हुए हेडमास्टर शर्मा जी एक अ लाकर दे देते थे। कापियों पेंसिलों, होल्डर या स्याही दवात पर साल भर में मुश्किल से एक या दो रुपए खर्च होता था। यदि हेड-मास्टर शर्मा जी उसकी मदद नहीं करते तो उसकी तीसरी-चौथी कक्षा में ही पढ़ाई छूट जाती।
प्रश्न 9. आज का बचपन लेखक के बचपन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर – आज का बचपन लेखक के बचपन से बहुत भिन्न है। आजकल के बच्चों के पास पहले के बच्चों की तरह खेलने का न समय है और न ही खुला स्थान है। बच्चों में बचपन से ही बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर या और कुछ बनने के लिए उकसाया जाता है जिससे बच्चे महत्त्वाकांक्षी बन जाते हैं। वे भी अपने भविष्य बनाने के लिए खेल-कूद को बेकार समझने लगते हैं। आज के बच्चे लेखक के बचपन की तरह मस्त, अल्हड़ या बेपरवाह नहीं होते हैं। इसीलिए आज के बच्चों में सहनशीलता, सहयोग तथा मेल-जोल की भावना समाप्त होती जा रही है। बच्चों के सार्वभौमिक विकास के लिए उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खेलने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए जिससे वे बड़े होकर एक अच्छा नागरिक बन देश और समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।
प्रश्न 10. ननिहाल जाने पर लेखक को क्या सुख मिलता था ?
उत्तर – छुट्टियों में लेखक अपनी मां के साथ ननिहाल चला जाता था। वहां उसे नानी खूब दूध-दही, मक्खन खिलाती थी। वह उसे बहुत प्यार करती थी । वहां वह तालाब में खूब नहाता और बाद में नानी से जो जी में आता मांग कर खाता था ।
प्रश्न 11. फ़ौज में भर्ती करने के लिए अफसरों के साथ नौटंकी वाले क्यों आते थे ?
उत्तर – लेखक जहां रहता था, वहां के लोगों को अंग्रेज़ ‘जबरन’ फ़ौज में भर्ती नहीं कर पा रहे थे। इसलिए लोगों को फ़ौज में भर्ती होने का लालच देने के लिए वे गांव में रात को खुले मैदान में शामियाने लगा कर नौटंकी वालों से फ़ौज के सुख-आराम, बहादुरी आदि के दृश्यों का मंचन करवाते थे। इसके साथ ही कुछ मसखरे गाने भी गाते थे जिनसे आकर्षित होकर कुछ नौजवान फ़ौज में भर्ती होने के लिए तैयार हो जाते थे।
प्रश्न 12. स्कूल की पिटाई का डर भुलाने के लिए लेखक क्या सोचा करता था ? 
उत्तर – स्कूल की पिटाई का डर भुलाने के लिए लेखक उन बहादुर लड़कों के समान यह सोचा करता था कि छुट्टियों का काम करने की बजाय मास्टरों की पिटाई अधिक सस्ता सौदा है। ऐसे में उसे ओमा याद आ जाता था जो उन जैसे सब लड़कों का नेता था।
प्रश्न 13. हेडमास्टर साहब का विद्यार्थियों के साथ कैसा व्यवहार था ? 
उत्तर – हेडमास्टर शर्मा जी का अपने विद्यार्थियों के साथ व्यवहार अत्यंत मृदुल था। वे पांचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेजी पढ़ाते थे। वे कभी भी किसी विद्यार्थियों को डांटते नहीं थे। जब कभी उन्हें गुस्सा आता तो वे बहुत जल्दीजल्दी अपनी आंखें झपकाते हुए उल्टी उंगलियों से एक हल्की-सी चपत लगा देते थे, जो विद्यार्थियों को भाई भीखे की नमकीन पापड़ी जैसी मजेदार लगती थी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘सपनों के-से दिन’ के लेखक का क्या नाम है ?
उत्तर – गुरदयाल सिंह ।
प्रश्न 2. लेखक ने स्कूल अध्यापक की ट्रेनिंग पर कौन-सा विषय पढ़ा ?
उत्तर – बाल मनोविज्ञान का ।
प्रश्न 3. लेखक तथा उसके साथियों की आदतें कैसी थीं ?
उत्तर – मिलती-जुलती।
प्रश्न 4. लेखक के अधिकांश साथी कहां से संबंध रखते थे ?
उत्तर – हरियाणा या राजस्थान से ।
प्रश्न 5. लेखक को दही-मक्खन कौन खिलाता था ?
उत्तर – नानी ।
प्रश्न 6. स्कूल में स्काऊट परेड कौन करवाते थे ?
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद |
प्रश्न 7. नाभा रियासत का राजा किन्होंने गिरफ्तार कर लिया था ?
उत्तर – अंग्रेज़ों ने।
प्रश्न 8. गुरुदयाल जी की प्रमुख कृतियां कौन-सी हैं ?
उत्तर – मढ़ी का दीवा, अथ-चांदनी पत, पाँचवाँ पहर, सब देश पराया, सांझ-सवेरे, क्या जानूँ मैं कौन ?

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. नाभा रियासत का राजा अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार किया गया ?
(क) सन् 1921 में
(ख) सन् 1922 में
(ग) सन् 1923 में
(घ) सन् 1924 में।
उत्तर – (ग) सन् 1923 में ।
2. राजा का बेट्टा पढ़ रहा था ?
(क) पंजाब में
(ख) जम्मू में
(ग) कश्मीर में
(घ) विलायत में ।
उत्तर – (घ) विलायत में ।
3. लेखक तथा उनके साथियों का मास्टर प्रीतमचंद से डरना था-
(क) स्वाभाविक
(ख) अस्वाभाविक
(ग) प्राय: स्वाभाविक
(घ) प्रायः अस्वाभाविक ।
उत्तर – (क) स्वाभाविक ।
4. लेखक के समय में स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ानी शुरू की जाती थी-
(क) पाँचवीं कक्षा से
(ख) छठी कक्षा से
(ग) सातवीं कक्षा से
(घ) आठवीं कक्षा से ।
उत्तर – (क) पाँचवीं कक्षा से ।
5. लेखक के जमाने में एक रुपए में घी आता था-
(क) आधा पाव
(ख) आधा किलो सेर
(ग) एक सेर
(घ) आधा सेर ।
उत्तर – (ग) एक सेर ।
6. बचपन में फूलों की सुगंध लगती है-
(क) मनमोहक
(ख) अच्छी
(ग) लुभावनी
(घ) सुंदर।
उत्तर – (क) मनमोहक ।
7. बचपन में घास लगती है –
(क) हरी
(ख) अधिक हरी
(ग) हरी-भरी
(घ) हरी-हरी ।
उत्तर – (ख) अधिक हरी । –
8. लेखक के साथ खेलने वाले बच्चों का हाल था-
(क) अच्छा
(ख) बुरा
(ग) सुंदर
(घ) कोमल ।
उत्तर – (ख) बुरा ।
9. लेखक स्कूल में अलियार नामक झाड़ को कहा करते थे ?
(क) इंडियों
(ख) हंडियाँ
(ग) डंडियाँ
(घ) कुछ अन्य ।
उत्तर – (ग) डंडियाँ ।
10. स्कूल की क्यारियों में फूल खिलते थे ?
(क) गेंदे के
(ख) गुलाब के
(ग) मोतिया के
(घ) उपर्युक्त तीनों ।
उत्तर – (घ) उपर्युक्त तीनों ।

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