JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 12 जम्मू की चित्रकला

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 12 जम्मू की चित्रकला

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 12 जम्मू की चित्रकला (विभागीय)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

पाठ का सार

 ‘जम्मू की चित्रकला’ शीर्षक पाठ में जम्मू प्रदेश की चित्रकला का उल्लेख किया गया है। साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं से हीन मनुष्य साक्षात बिना पूंछ वाले पशु के समान होता है। कला जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी होता है। चित्रकला एक श्रेष्ठ एवं अनूठी कला है। जम्मू उत्तर भारत में चित्रकला का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। इसकी ‘जम्मू-कलम’ अथवा जम्मू- पहाड़ी कला के नाम से जानी जाती है। इसका भारतीय कला में विशेष स्थान है। सत्रहवीं शताब्दी में बसोहली का राजा कृपाल पाल कला प्रेमी एवं कला का संरक्षक था । देवदास उसके प्रसिद्ध दरबारी चित्रकार थे जो अनुपम चित्र बनाते थे। उन्होंने रस मंजरी नामक विश्वविख्यात चित्रावली राजा कृपाल पाल को भेंट की थी। यह चित्रकला का स्वर्णिम काल था ।
अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध ‘जम्मू-कलम’ का स्वर्णिम काल माना जाता है। इस काल में अनेक चित्रकार हुए जिनके प्रेरणा स्रोत जम्मू का राजा रंजीत देव का छोटा भाई बलवंत देव था, जिसने सरूईसर में ही रहकर चित्र बनाए । बलवंत देव का शिकार खेलते हुए चित्र इस काल का प्रसिद्ध चित्र है। इसमें मुगल शैली का प्रभाव था। उनके पिता मुगल दरबार के चित्रकार थे । वे जम्मू-चित्रकला के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चित्रकार थे। उन्होंने राजा बलवंत देव के संरक्षण में रहकर अपनी कला का सृजन किया ।
चित्रकला का वास्तविक विकास महाराजा रंजीत देव का समय सन् 1735 ई० से 1781 ई० तक था। उनके पश्चात् ब्रजराज उनका पुत्र गद्दी पर बैठा था। नैन सुख के रामसहाय, गुरुसहाय, कामा और निक्का चारों पुत्र महत्त्वपूर्ण चित्रकार थे । महाराज गुलाब सिंह के समय में जम्मू में शांति स्थापित होने पर चित्रकला का विकास होने लगा। सुप्रसिद्ध चित्रकार नंद लाल कांगड़ा से जम्मू आए और यही बस गए। इनके चाननू और रुलदू दोनों पुत्र महाराज रंजीत सिंह के दरबारी चि थे। जगतराम छुनिया महाराजा प्रताप सिंह के दरबार का महत्त्वपूर्ण चित्रकार था । इनके शिष्य पंडित संसार चंद प्रतिभा संपन्न चित्रकार थे जिन्होंने जम्मू-कलम को जीवित रखा। इनकी चित्रकारी विश्व में प्रसिद्ध हुई। इनकी कला परंपरा में इनके तीन शिष्य ओ०पी० शर्मा ‘सारथी’, देवदास तथा गिरधारी लाल निरंतर कार्यरत हैं। पहाड़ी चित्रकला की अनेक विशेषताएं हैं जिनमें सौ वर्षों पश्चात् भी इनके रंगों का सुंदर होना है। ये रंग मिट्टी से बनाए गए थे कुछ वनस्पति और पुष्पों से निर्मित थे । रेखा और नखशिख चित्रण भी इनकी विशेषता है। ये चित्र भावना और कला के सुंदर नमूने हैं।

शब्दार्थ

कला विहीन = कला से हीन । साक्षात – पशु = पशु रूप । पुच्छ = पूँछ। विषाण = सींग । विविध = अनेक । विशिष्ट = विशेष । संरक्षक = संरक्षण करने वाला । विश्वविख्यात = विश्व में प्रसिद्ध । उपरांत = बाद में । सृजन = निर्माण । ब्रजराज = ब्रज के राजा | सिद्धहस्त = निपुण । मिश्रण = मिलाजुला । नखशिख = पांव के नाखून से लेकर सिर तक।

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. साहित्य संगीत कला विहीन :
साक्षात पशु-पुच्छ-विषाण हीन :
अर्थात् वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को नहीं जानता वह बिना सींगों तथा पूँछ के पशु हैं। इससे स्पष्ट है कि कला जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। चित्रकला एक श्रेष्ठ कला है। उसको देखकर परखा जा सकता है, जबकि कुछ कलाओं को सुनने या महसूस करने से ही समझा जा सकता है। चित्र देखने में सरल होता है और सामान्यता हर व्यक्ति देखकर किसी सीमा तक समझ सकता है।
प्रसंग—यह गद्यावतरण ‘नवभारती’ पाठ्य-पुस्तक में ‘जम्मू की चित्रकला’ शीर्षक पाठ से अवतरित किया गया है। इसमें महामुनि कपिल मानवीय जीवन में कला के महत्त्व को बताते हैं ।
व्याख्या – महामुनि कपिल जीवन में कला के महत्त्व का वर्णन करते हुए कहते हैं कि साहित्य, संगीत नृत्य अर्थात् कलाकारों से हीन मनुष्य बिना पूँछ और सींग वाले पशु के समान है अर्थात् जो मनुष्य साहित्य, संगीत, नृत्य आदि कलाओं के बारे में नहीं जानता उसका जीवन एक पशु की भाँति है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जीवन में कला को जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। चित्रकला एक श्रेष्ठ कला है। चित्रकला को देखकर परखा जा सकता है। जबकि कुछ कलाओं को तो सुनने अथवा महसूस करने मात्र ही समझा जा सकता है। चित्र देखने में सरल होता है और सामान्यतः प्रत्येक आदमी इसे देखकर किसी सीमा तक समझ सकता है। इसका ज्ञान प्राप्त कर सकता है ।
विशेष – (1) मानवीय जीवन में साहित्य, संगीत और कला का अनुपम योगदान है।
(2) भाषा सरल – सरस तथा शैली भावपूर्ण है।
2. अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस काल में बहुत से चित्रकार और उनके सृजन का स्तर भी ऊँचा रहा । उनका प्रेरणा स्त्रोत जम्मू के सुप्रसिद्ध राजा रंजीत देव हुए का छोटा भाई बलवंत देव था । बलवंत देव ने सरूईंसर में ही रहकर चित्र बनाए । उस काल के चित्रों में एक प्रसिद्ध चित्र है, जिसमें बलवंत देव को शिकार खेलते हुए दर्शाया गया है। चित्र में पानी में मुरगबियाँ तैरती हुई दिखाई गई हैं। इन चित्रों से प्रमाणित होता है कि जम्मू चित्रकला अथवा जम्मू-कलम का वास्तविक विकास इसी युग में हुआ। इन चित्रों में मुग़ल-शैली का प्रभाव दिखाई देता है ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नवभारती में संकलित ‘जम्मू की चित्रकला’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जम्मू कला का स्वर्णिम काल माना जाता है। उसका चित्रण किया है।
व्याख्या — अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस काल में अनेक प्रसिद्ध चित्रकार हुए और उनके सृजन का स्तर भी ऊंचा और श्रेष्ठ रहा है। उनका प्रेरणा स्रोत जम्मू-प्रदेश के सुप्रसिद्ध राजा रंजीत देव का छोटा भाई बलवंत देव था । बलवंत देव ने सरूईंसर में ही रहकर चित्र बनाए । उस काल के चित्रों में बलवंत देव को शिकार खेलते हुए दर्शाया गया है यह प्रसिद्ध चित्र है। इस चित्र में पानी में मुरगाबियां तैरती हुई दिखाई गई हैं। इन चित्रों को देखकर यह प्रभावित होता है कि जम्मू चित्रकला अथवा जम्मू-कलम का वास्तविक विकास इसी युग में हुआ । इन चित्रों में मुग़ल शैली का प्रभाव दिखाई देता है। उल्लेख है।
विशेष – (1) जम्मू कलम के स्वर्णिम काल का
(2) भाषा में तत्सम शब्दावली की प्रचुरता है ।
3. पहाड़ी चित्रकला (कलम) की कई विशेषताएँ हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इनके रंग ऐसे ताजा हैं कि जान पड़ता है कि अभी लगाए गए हैं। इनमें प्रयुक्त रंग बहुधा मिट्टी से बनाए जाते थे। कुछ एक वनस्पति और पुष्पों से भी निर्मित करते थे।  कुछ चित्रों के हाशियों और आभूषणों में स्वर्ण रंग भी प्रयुक्त किया गया है जोकि विशुद्ध स्वर्ण ही में तैयार किया जाता था। दूसरी विशेषता रेखा और नखशिख चित्रण की है। रेखाएँ पूर्ण रूप से सधी हुई हैं और नखशिख बहुत ही सूक्ष्म और बारीक रेखाओं से बनाए गए हैं। किसी चित्र को सामान्यतः देखने से लगता है कि सिर में केवल रंग पोत दिया गया है, परंतु ध्यानपूर्वक देखने पर एक-एक बाल खिंचा हुआ दिखाई दे जाता है।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्य खंड नवभारती पाठ्य पुस्तक में संकलित जम्मू की चित्रकला शीर्षक पाठ से संग्रहीत है। इसमें लेखक ने पहाड़ी चित्रकला पर विशेषताओं का उल्लेख किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि पहाड़ी चित्रकला की अनेक विशेषताएं हैं। इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि डेढ़ सौ साल व्यतीत हो जाने पर भी इनके रंग ऐसे ताजा हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो ये रंग अभी लगाए गए हैं। इनमें जिन रंगों का प्रयोग किया गया है वे ज्यादातर मिट्टी से बनाए जाते थे। इनमें से कुछ रंग वनस्पति तथा फूलों से भी बनाए जाते थे। कुछ चित्रों के हाशियों तथा आभूषणों में सोने के रंग भी प्रयोग में लाए गए हैं जोकि खरे सोने से ही तैयार किए जाते थे। दूसरी विशेषता नाखून से लेकर पैर तक का चित्रण है। इनमें रेखाएं पूरी तरह से सधी हुई हैं और नखशिख बहुत ही सूक्ष्म और बारीक रेखाओं से बनाए गए हैं। इनमें से किसी चित्र को देखकर यह सामान्य रूप से प्रतीत होता है कि सिर में केवल रंग पोत दिया गया है। परंतु जब इसे ध्यान से देखें तो एक-एक बाल खिंचा हुआ दिखाई देता है ।
विशेष – (1) पहाड़ी चित्रकला की विशेषताओं का चित्रांकन किया है।
(2) भाषा सरल – सरस है।
4. सारे चित्र भावना और कला के अच्छे नमूने हैं। इनमें वनस्पति, फूल, पत्ते और वृक्षों का चित्रण बहुत बारीकी और कलात्मकता से किया गया है । वस्त्रों का चित्रण पारदर्शी तथा मोहक है। महलों, मुँडेरों, मेहराबों तथा द्वारों पर बेल-बूटों का बारीक कार्य देखते ही बनता है। इन्हीं गुणों के कारण इन चित्रों ने देश-विदेश में ख्याति अर्जित की और भार का नाम संसार भर में उजागर किया। अब इस शैली के चित्रों का निर्माण लगभग समाप्त हो चुका है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश जम्मू की चित्रकला शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने जम्मू चित्रकला के महत्त्व पर प्रकाश डाला है ।
व्याख्या — लेखक का कथन है कि पहाड़ी चित्रकला की अनेक महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं। इसके संपूर्ण चित्र भावना और कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इनमें वनस्पति, फूल, पत्ते और वृक्षों का चित्रण अत्यंत बारीकी और कलात्मकता से किया गया है। इनमें चित्रों का चित्रण पारदर्शी तथा अत्यंत मनमोहक है। महलों, मुंडेरों, मेहराबों तथा दरवाजों पर बेल बूटों का अत्यंत बारीक कार्य बहुत अनूठा है। इन्हीं सब गुणों के कारण इन चित्रों ने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त की है तथा भारतवर्ष का नाम संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध है। आजकल इस शैली के चित्रों का निर्माण लगभग समाप्त हो चुका है।
विशेष – (1) पहाड़ी चित्रकला के महत्त्व एवं विश्वविख्यात होने का चित्रांकन किया है।
(2) भाषा में तत्सम तद्भव शब्दावली की प्रचुरता है।

J&K class 10th Hindi जम्मू की चित्रकला Textbook Questions and Answers

बोध और सराहना

प्रश्न 1. ललित कलाएं कितने प्रकार की हैं ? उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर – ललित कलाएं पांच प्रकार की हैं। उनके नाम हैं-
(1) साहित्य कला, (2) संगीत कला, (3) चित्रकला, (4) मूर्ति कला, (5) नृत्य कला ।
प्रश्न 2. मानव की प्राचीनतम लिपि कौन-सी है ?
उत्तर – मानव की प्राचीनतम लिपि चित्र लिपि है ।
प्रश्न 3. चित्रकला को विश्वव्यापी कला क्यों कहते हैं ?
उत्तर – चित्रकला एक श्रेष्ठ कला है। इसे देखकर ही परखा एवं समझा जा सकता है। जबकि कुछ कलाओं को सुनने या महसूस करने से ही समझा जा सकता है। चित्र देखने में बिल्कुल सरल होता है। सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य इसे देखकर किसी सीमा तक समझ एवं अनुभव कर सकता है। चित्र भावना एवं कला के अच्छे नमूने होते हैं इसलिए यह भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में फैली हुई है। इसी कारण चित्रकला को विश्वव्यापी कला कहते हैं।
प्रश्न 4. जम्मू की चित्रकला का जन्म किस शताब्दी में हुआ ? 
उत्तर – जम्मू की चित्रकला का जन्म अठारहवीं शताब्दी में हुआ।
प्रश्न 5. कृपाल पाल का दरबारी चित्रकार कौन था तथा उसने कौन-सी विश्वविख्यात चित्रकला चित्रित की ?
उत्तर – कृपाल पाल का दरबारी चित्रकार देवदास था । उसने रसमंजरी विश्वविख्यात चित्रकला चित्रित की थी।
प्रश्न 6. अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध ‘जम्मू-कलम’ का स्वर्णिम काल क्यों कहते हैं ? 
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध ‘जम्मू-कलम’ का स्वर्णिम काल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस काल में अनेक श्रेष्ठ चित्रकार हुए। बलवंत देव का शिकार करते हुए बनाया चित्र एक सुप्रसिद्ध चित्र है जिसमें पानी में मुरगाबियाँ तैरती दिखाई देती हैं। जम्मू चित्रकला अथवा जम्मू कलम का वास्तविक विकास इसी युग में हुआ ।
प्रश्न 7. पंडित संसार चंद ने जम्मू कलम को जीवित रखने में क्या योगदान दिया ?
उत्तर – पंडित संसार चंद जम्मू कला के प्रतिभा संपन्न चित्रकार थे । उन्होंने पुरानी और नई शैली के मिश्रण के चित्र बनाए हैं। इस शैली की बहुत प्रशंसा हुई। देश-विदेश में उनके चित्र प्रसिद्ध हुए। उन्हें खरीदा एवं सराहा गया। ये प्रकृति चित्रण में निपुण थे। ये डोगरा आर्ट गैलरी के निर्माताओं में से थे तथा गैलरी के प्रथम संग्रहालय भी रहे। उनकी शिष्य परंपरा में ओ०पी० शर्मा ‘सारथी’, देवदास तथा गिरधारी लाल अभी भी अपनी कला का सृजन कर रहे हैं। इस तरह कह सकते हैं कि पंडित संसार चंद ने जम्मू कला को जीवित रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 8. ‘जम्मू कलम’ के प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम लिखें। 
उत्तर – जम्मू कलम के प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम इस प्रकार हैंशर्मा ‘सारथी’
(1) ओ०पी०
(2) देवदास
(3) गिरधारी लाल।
प्रश्न 9. पहाड़ी चित्रकला की विशेषताओं के बारे में तीन वाक्य लिखें।
उत्तर – (1) डेढ़ सौ वर्षों के बाद भी पहाड़ी चित्रकला के रंग आज तक ताजा हैं ।
(2) पहाड़ी चित्रकला के रंग मिट्टी, वनस्पति तथा फूलों से बनाए गए थे।
(3) पहाड़ी चित्रकला में रेखा और नखशिख चित्रण है।
(4) सभी चित्र भावना और कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

भाषा-अध्ययन

जब शब्द में दो व्यंजन–वर्णों के बीच स्वर-ध्वनि या स्वरवर्ण (स्वर-मात्रा) न आए, उसे व्यंजन युग्म कहते हैं। व्यंजन-युग्म एक ध्वनि को प्रकट करता है। जैसे ‘मनुष्य’ में (ष्य) ‘नृत्य’ में ‘त्य’ (त्य) ‘जम्मू’ में म्म- (म्म) । प्रस्तुत पाठ में आए कोई पाँच व्यंजन-युग्म शब्द छाँटें तथा उनके वाक्य बनाएँ ।
उत्तर – 1. साहित्य – साहित्य समाज का दर्पण है।
2. व्यक्त – मनुष्य को अपनी भावनाएं व्यक्त करनी चाहिएं।
3. शताब्दी – गत शताब्दी विकास का स्वर्णिम गुण है।
4. विश्वविख्यात – जम्मू कला विश्वविख्यात है।
5. मिट्टी – भारत की मिट्टी की खुशबू अनूठी है।

योग्यता – विस्तार

अपने अध्यापक तथा सहपाठियों के साथ कभी ‘जम्मू आर्ट गैलरी’ का भ्रमण करें तथा वहाँ चित्रकला का आनंद लें तथा अपने विचार लिखकर प्रकट करें।
उत्तर – अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से देखें एवं स्वयं विचार प्रकट करें।

J&K class 10th Hindi जम्मू की चित्रकला Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ललित कलाएं कितनी हैं ?
उत्तर – ललित कलाएं पांच हैं ।
प्रश्न 2. कैसा मनुष्य साक्षात पशु है ?
उत्तर – साहित्य-संगीत कला से हीन मनुष्य साक्षात पशु हैं।
प्रश्न 3. जम्मू की कला अन्य किस नाम से जानी जाती है ?
उत्तर – जम्मू-कलम अथवा जम्मू पहाड़ी कला के नाम से ।
प्रश्न 4. सत्रहवीं शताब्दी में बसाहेली पर किसका राज्य था ?
उत्तर – राजा कृपाल पाल का ।
प्रश्न 5. राजा ध्रुव का शासन काल क्या था ?
उत्तर – सन् 1702 ई० से सन् 1730 ई० तक ।
प्रश्न 6. जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल कौन-सी शती थी ?
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध ।
प्रश्न 7. महाराजा रंजीत देव ने कब से कब तक शासन किया ?
उत्तर – सन् 1735 ई० से सन् 1781 ई० तक ।
प्रश्न 8. जम्मू चित्रकला का प्रारंभ किस शताब्दी में हुआ ?
उत्तर – अठारहवीं शती में ।
प्रश्न 9. महाराजा रंजीत सिंह के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर – ब्रजराज ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. पहाड़ी चित्रकला एक कला है –
(क) प्रसिद्ध
(ख) सुप्रसिद्ध
(ग) विश्वविख्यात
(घ) जानी-मानी ।
उत्तर – (ग) विश्वविख्यात ।
2. प्रकृति-चित्रण में निपुण थे-
(क) संसार चंद
(ख) संसार चंद्र
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं ।
उत्तर – (क) संसार चंद ।
3. डोगरा आर्ट गैलरी के प्रथम संग्रहालय थे –
(क) अमित डोगरा
(ख) संसार डोगरा
(ग) संसार चंद
(घ) उपर्युक्त सभी ।
उत्तर – (ग) संसार चंद।
4. संसार की कला परंपरा को आगे बढ़ाया-
(क) ओ०पी० शर्मा सारथी ने
(ख) देवदास ने
(ग) गिरधारी लाल ने
(घ) उपर्युक्त सभी ने।
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी ने ।
5. मानव की प्राचीनतम लिपि है-
(क) चित्र लिपि
(ख) ब्राहमी लिपि
(ग) देवनागरी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (क) चित्र लिपि ।
6. राजा कृपाल पाल एक था-
(क) कला प्रेमी
(ख) कला का संरक्षण
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) कोई नहीं ।
उत्तर – (ग) उपर्युक्त दोनों ।
7. ‘रसमंजरी’ एक विश्वविख्यात है-
(क) ग्रंथ
(ख) काव्य ग्रंथ
(ग) लक्षण ग्रंथ
(घ) चित्रावली ।
उत्तर – (घ) चित्रावली ।
8. ‘रसमंजरी’ के रचनाकार का नाम है
(क) देवराज
(ख) देवभास
(ग) देवरूप
(घ) देवदास ।
उत्तर – (घ) देवदास ।
9. जम्मू कलम का वास्तविक विकास हुआ—
(क) 18वीं शताब्दी में
( ख ) 18वीं शताब्दी के पूर्व
(ग) 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में
(घ) 19वीं शताब्दी में ।
उत्तर – (ग) 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ।
10. पहाड़ी चित्रकला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है-
(क) प्रकृति चित्रण
(ख) रंगों का ताजा होना
(ग) रंगों का फीका पड़ जाना
(घ) रंगों का गायब हो जाना।
उत्तर – (ख) रंगों का ताज़ा होना। –

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