JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े भाई साहब

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े भाई साहब

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 15 बड़े भाई साहब (प्रेमचंद)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

लेखक-परिचय

जीवन – प्रेमचंद जी हिंदी साहित्य के प्रथम कलाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। उन्हें उपन्यास सम्राट् कहते हैं। स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी के अतिरिक्त इन्होंने ‘हंस माधुरी’ पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। वे जीवन भर आर्थिक अभावों से जूझते रहे ।
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई० को वाराणसी के लमही नामक गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरंभ में वे उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखते थे । ‘सोज़ेवतन’ उर्दू में प्रकाशित उनका पहला कहानी संग्रह था, जिसे अंग्रेज़ सरकार ने ज़ब्त कर लिया था | युग के प्रभाव ने उनको हिंदी की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने सदा वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा । वे मुंबई में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक भी इसलिए कार्य नहीं कर पाए क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें तो स्वतंत्र लिखना ही अच्छा लगता था। निरंतर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, सन् 1936 ई० को उनका स्वर्गवास हो गया।
रचनाएं—प्रेमचंद जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन की मुँह बोलती तस्वीर है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया परंतु निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी । उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उनकी । प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास – वरदान, सेवा – सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगल सूत्र (अपूर्ण) ।
कहानी संग्रह – प्रेमचंद जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की । उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ ‘मानसरोवर’ कहानी संग्रह के आठ भागों में संकलित हैं।
नाटक – कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी ।
निबंध संग्रह — कुछ विचार ।
भाषा-शैली- ‘बड़े भाई साहब’ कहानी भाषा-शैली की दृष्टि से प्रेमचंद की अन्य रचनाओं की भांति उच्च कोटि की रचना है। उनकी भाषा बहुत सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है। भाषा पूर्ण रूप से पात्रानुकूल है । इस कहानी में तत्सम्, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का सुंदर मिश्रण है। कथासंगठन, चरित्र चित्रण एवं कथोपकथन की दृष्टि से भाषा बेजोड़ है। भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों के प्रयोग से सजीवता आ गई है। इस कहानी में उन्होंने आड़े हाथों लेना, घाव पर नमक छिड़कना, नामों निशान मिटा देना, ऐरा-ग़ैरा नत्थू खैरा, सिर फिरना, अंधे के हाथ बटेर लगना, दाँतों पसीना आना, लोहे के चने चबाना, पापड़ बेलना, आटेदाल का भाव मालूम होना, गाँठ-बाँधना जैसे अनेक मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। देशज शब्दों के प्रयोग से उन्होंने भाषा को प्रसंगानुकूल बनाकर प्रवाहमयी बना दिया है।
‘बड़े भाई साहब’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है जिसमें कथानायक स्वयं कहानी सुना रहा है। कहींकहीं संवादात्मक शैली का प्रयोग है जिससे कहानी में नाटकीयता आ गई है। शैली में सरसता और रोचकता सर्वत्र विद्यमान है।

कहानी का सार

‘बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में उन्होंने बड़े भाई साहब के माध्यम से घर में बड़े भाई की आदर्शवादिता के कारण उसके बचपन के तिरोहित होने की बात कही है। बड़ा भाई सदा छोटे भाई के सामने अपना आदर्श रूप दिखाने के कारण कई बार अपने ही बचपन को खो देता है।
बड़े भाई साहब और उनके छोटे भाई में पाँच वर्ष का अंतर है किंतु वे अपने छोटे भाई से केवल तीन कक्षाएं ही आगे हैं। बड़े भाई साहब सदा पढ़ाई में डूबे रहते हैं, लेकिन उनका छोटा भाई खेलकूद में अधिक मन लगाता है। दोनों भाई होस्टल में रहते हैं। बड़े भाई साहब प्रायः छोटे भाई को उसकी खेलकूद में अधिक रुचि के कारण डाँटते रहते हैं। वे उसे उनसे सीख लेने की बात कहते हैं। उनका कहना है कि वे बहुत मेहनत करते हैं। वे खेलकूद और खेलतमाशों से दूर रहते हैं। अतः उसे उनसे सबक लेना चाहिए। वे छोटे भाई से कहते हैं कि यदि वह मेहनत नहीं कर सकता तो उसे घर वापिस लौट जाना चाहिए। उनकी ऐसी बातें सुनकर छोटा भाई निराश हो जाता है। कुछ देर बाद वह जी लगाकर पढ़ने का निश्चय करता है और एक टाइम टेबिल बना लेता है । वह अपने इस टाइम-टेबिल में खेलकूद को कोई स्थान नहीं देता लेकिन शीघ्र ही उसका टाइम-टेबिल खेलकूद की भेंट चढ़ जाता है और छोटा भाई खेलकूद में फिर से मस्त हो जाता है और बड़े भाई साहब की डाँट और तिरस्कार में भी वह अपने खेलकूद को नहीं छोड़ पाता है।
कुछ समय बाद वार्षिक परीक्षाएं हुईं। बड़े भाई साहब तो कठिन परिश्रम करके फेल हो गए किंतु छोटा भाई प्रथम श्रेणी में पास हो गया। धीरे-धीरे छोटा भाई खेलकूद में अधिक मन लगाने लगा। बड़े भाई साहब से यह देखा नहीं गया। वे उसे रावण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि घमंड नहीं करना चाहिए । घमंड करने से रावण जैसे चक्रवर्ती राजा का अस्तित्व मिट गया था । शैतान और शाहेख़ान भी अभिमान के कारण ही नष्ट हो गए थे। छोटा भाई उनके इन उपदेशों को चुपचाप सुनता रहा। वे कहते हैं कि उनकी नौंवीं कक्षा की पढ़ाई बहुत कठिन है । अंग्रेज़ी, इतिहास, गणित तथा हिंदी आदि विषयों में पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने अपनी कक्षा की पढ़ाई का ऐसा भयंकर चित्र खींचा कि छोटा भाई बुरी तरह से डर गया । ।
दोबारा वार्षिक परीक्षाएँ हुईं । इस बार भी बड़े भाई साहब फेल हो गए और छोटा भाई पास हो गया। बड़े भाई साहब बहुत दुःखी हुए। छोटे भाई की अपने बारे में यह धारणा बन गयी कि वह तो चाहे पढ़े या न पढ़े, वह तो पास हो ही जाएगा। अतः उसने पढ़ाई करना बंद करके खेलकूद में ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। बड़े भाई साहब भी अब उसे कम डाँटते थे। धीरे-धीरे छोटे भाई की स्वच्छंदता बढ़ती गई । उसे पतंगबाज़ी का नया शौक लग गया। अब वह सारा समय पतंगबाज़ी में नष्ट करने लगा किंतु वह अपने इस शौक को बड़े भाई साहब से छिपकर पूरा करता था ।
एक दिन वह एक पतंग लूटने के लिए पतंग के पीछे-पीछे दौड़ रहा था कि अचानक बाज़ार से लौट रहे बड़े भाई साहब से टकरा गया। उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे डाँटते हुए कहा कि अब वह आठवीं कक्षा में है। अतः उसे अपनी पोजीशन का ख्याल करना चाहिए। पहले ज़माने में तो आठवीं पास नायब तहसीलदार तक बन जाया करते थे। बड़े भाई साहब उसे समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में किताबी ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का अनुभव होता है और उन्हें उससे कहीं ज्यादा अनुभव है। वे अपने माँ- दादा और अपने स्कूल के हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण देकर बताते हैं कि जिंदगी में केवल किताबी ज्ञान से ही काम नहीं चलता अपितु जिंदगी की समझ भी से आती है। ज़रूरी होती है जो केवल बल अनुभव
बड़े भाई साहब के ऐसा समझाने पर छोटा भाई उनके आगे नतमस्तक होकर कहा कि वे जो कुछ कह रहे हैं, वह बिल्कुल सच है। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को गले लगा लेते हैं। वे कहते हैं कि उनका भी मन खेलने-कूदने का करता है लेकिन यदि वे ही खेलने-कूदने लगेंगे तो उसे क्या शिक्षा दे पाएँगे ? तभी उनके ऊपर से एक कटी हुई पतंग गुज़रती है जिसकी डोर नीचे लटक रही थी। बड़े भाई साहब ने लंबे होने के कारण उसकी डोर पकड़ ली और तेज़ी से होस्टल की ओर दौड़ पड़े। उनका छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

कठिन शब्दों के अर्थ

दरजा = श्रेणी। तालीम = शिक्षा । बुनियाद = नींव पुख्ता = मज़बूत । तंबीह= डाँट-डपट । हुक्म = आदेश। सामंजस्य = तालमेल । मसलन = उदाहरणतः । इबारत = लेख । चेष्टा = कोशिश । जमात = कक्षा । होस्टल = छात्रावास । हर्फ़ = अक्षर। मिहनत (मेहनत) = परिश्रम। सबक = सीख । बर्बाद = नष्ट। लताड़ = डाँट-डपट । निपुण = कुशल। सूक्ति-बाण = व्यंग्यात्मक कथन, तीखी बातें। चटपट = उसी क्षण। टाइम-टेबिल = समय-सारणी । स्कीम = योजना । अमल करना = पालन करना । अवहेलना = तिरस्कार । नसीहत = सलाह। फ़जीहत = अपमान । तिरस्कार = उपेक्षा । विपत्ति = मुसीबत । सालाना इम्तिहान = वार्षिक परीक्षा । हमदर्दी = सहानुभूति । लज्जास्पद = शर्मनाक । शरीक = शामिल । जाहिर = स्पष्ट । आतंक = भय। अव्वल = प्रथम । असल = वास्तविक । आधिपत्य = साम्राज्य । स्वाधीन = स्वतंत्र । महीप = राजा । कुकर्म = बुरा काम । अभिमान = घमंड । निर्दयी = क्रूर। मुमतहीन = परीक्षक । परवाह = चिंता। फ़ायदा = लाभ । प्रयोजन = उद्देश्य । खुराफ़त = व्यर्थ की बातें । हिमाकत = बेवकूफ़ी । किफ़ायत = बचत (से) । दुरुपयोग = अनुचित उपयोग । निःस्वाद = बिना स्वाद का । ताज्जुब = आश्चर्य, हैरानी । टास्क = कार्य । जलील = अपमानित। प्राणांतक = प्राण लेने वाला, प्राणों का अंत करने वाला। कांतिहीन = चेहरे पर चमक न होना। अप्रिय = बुरा । असर = प्रभाव । स्वच्छंदता = आज़ादी। सहिष्णुता = सहनशीलता । कनकौआ = पतंग । अदब = इज़्ज़त। पथिक = यात्री । सहसा = अचानक । मिडलची = आठवीं पास। ज़हीन = प्रतिभावान । महज़ = केवल । समकक्ष = बराबर | तुज़ुर्बा = अनुभव | मरज़ = बीमारी । बदहवास = बेहाल । मुहताज ( मोहताज ) = आसरे, दूसरे पर आश्रित होना । कुटुंब = परिवार | इंतज़ाम = प्रबंध | बेराह = बुरा रास्ता । लघुता = छोटापन । जी = मन ।

गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या

1. मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू में किया था, जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्त्व के मामले में वह जल्दबाज़ी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन की बुनियाद खूब मज़बूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके । एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे । बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने ।
प्रसंग—यह गद्यावतरण सुप्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली में बड़े भाई साहब की शिक्षा एवं उनकी सोच का चित्रांकन किया है।
व्याख्या—लेखक कहता है कि मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पांच साल उम्र में बड़े थे । किंतु वे पढ़ाई में केवल मुझसे तीन कक्षा ही आगे थे। उन्होंने मेरी उम्र में ही पढ़ाई प्रारंभ की थी। किंतु शिक्षा जिसे अति महत्त्व का विषय माना जाता है। ऐसे मामले में वे शीघ्रता से काम लेना पसंद नहीं करते थे। वे अपने विद्यार्थी जीवन की नींव को अच्छी तरह से मज़बूत एवं शक्तिशाली बनाना चाहते थे। ऐसी नींव जिस पर एक आलीशान महल बनाया जा सके अर्थात् जिस पर मानवीय जीवन श्रेष्ठता से भरा हो । शायद इसीलिए वे एक साल का कार्य दो साल में किया करते थे। कभी-कभी तो तीन साल भी लग जाते थे। उनका मन्तव्य था कि यदि नींव ही मज़बूत न हो तो फिर उस पर मकान कैसे मज़बूत बन सकता है। कहने का भाव है कि मज़बूत नींव पर ही अच्छा मकान बन सकता है ।
विशेष – (1) लेखक ने बड़े भाई साहब के शैक्षणिक जीवन के प्रति चिंतन एवं विचारधारा का अंकन किया है।
(2) भाषा में तद्भव एवं उर्दू-फ़ारसी शब्दों का प्रयोग है तथा शैली आत्मकथात्मक है।
2. अपराध तो मैंने किया, लताड़ कौन सहे ? भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति-बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती । इस तरह जान तोड़कर मेहनत करने की शक्ति मैं अपने में न पाता था और उस निराशा में ज़रा देर के लिए मैं सोचने लगता – क्यों न घर चला जाऊँ। जो काम मेरे बूते के बाहर है, उसमें हाथ डालकर क्यों  अपनी जिंदगी खराब करूँ। मुझे अपना मूर्ख रहना मंजूर था, लेकिन उतनी मेहनत से मुझे तो चक्कर आ जाता थालेकिन घंटे दो घंटे के बाद निराशा के बादल फट जाते और मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़गा । 
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश उपन्यास सम्राट् मुशी प्रेमचंद द्वारा विरचित ‘बड़े भाई साहब’ नामक कहानी से अवतरित किया गया है। इस गद्यांश में लेखक ने बड़े भाई साहब की उपदेश कला का चित्रांकन किया है।
व्याख्या – लेखक का कहना है जब अपराध उसने किया तो डांट भी उसे ही सहनी होगी कि भाई साहब उपदेश देने की कला में बहुत निपुण थे अर्थात् वे उनके जीवन के हर मोड़ पर उपदेश देने को देखकर यही प्रतीत होता है कि वे महान् उपदेशक थे। उन्हें यह कार्य अच्छे ढंग से आता था। वे समय एवं परिस्थिति के अनुकूल बातें कहा करते थे। ऐसे अनूठे सूक्ति रूपी बाण चलाते थे कि उन्हें सुनकर मेरे हृदय में कठिन पीड़ा होती। इससे मेरी सारी हिम्मत टूट जाती थी। इससे मेरी संपूर्ण शक्ति क्षीण-सी हो जाती और मैं अपनी शक्ति खोकर आगे मेहनत करने की शक्ति अपने अंदर नहीं पाता था। इससे मैं निराश हो जाता और निराशा से भरकर कुछ समय सोचने विचारने लगता कि मैं अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर घर चला जाऊँ । जो कार्य मैं करने में सक्षम नहीं हूँ उसको करने के पीछे में अपनी जिंदगी खराब क्यों करूँ। ऐसी परिस्थितियों में मुझे अपने आप को मूर्ख बना रहना मंजूर था किंतु पढ़ाई के लिए इतनी कठिन मेहनत करना मेरे बस से बाहर था। मैं इतनी मेहनत नहीं कर पाता था क्योंकि मुझे इतना में चक्कर आ जाया करता था। किंतु एक दो घंटे में ही मेरी निराशा खत्म हो जाती थी और मैं इस निराशा को त्याग कर अपने मन में पुनः संकल्प कर लेता कि अब आगे में पूर्व शक्ति एवं मेहनत से पढूंगा।
विशेष – (1) लेखक ने भाई साहब की उपदेशात्मक एवं स्वयं की निराशा का चित्रण किया है।
(2) भाषा में तत्सम, तद्भव एवं उर्दू-फ़ारसी शब्दावली है ।
(3) ‘टुकड़े-टुकड़े हो जाना’ मुहावरे का सार्थक एवं सटीक प्रयोग हुआ है।
3. रावण भूमंडल का स्वामी था। ऐसे राजाओं को चक्रवर्ती कहते हैं। आजकल अंग्रेज़ों के राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा हुआ है, पर इन्हें चक्रवर्ती नहीं कह सकते संसार में अनेक राष्ट्र अंग्रेज़ों का आधिपत्य स्वीकार नहीं करते, बिल्कुल स्वाधीन हैं। रावण चक्रवर्ती राजा था, संसार के सभी महीप उसे कर देते थे। बड़े-बड़े देवता उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे, मगर उसका अंत क्या हुआ ? घमंड ने उसका नाम-निशान तक मिटा दिया, कोई उसे एक चुल्लू पानी देने वाला भी न बचा। आदमी और जो कुकर्म चाहे करे, पर अभिमान न करे, इतराये नहीं। अभिमान किया और दीन-दुनिया दोनों से गया ।
प्रसंग – यह गद्यखंड प्रेमचंद द्वारा लिखित है। यह उनकी सुप्रसिद्ध कहानी ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक से लिया गया है। इसमें लेखक ने द्वापर युग के सम्राट् रावण की शक्ति एवं आधिपत्य का उल्लेख किया है तथा समकालीन अंग्रेज़ी राज्य से उनकी तुलना की है।
व्याख्या — लेखक कहता है कि रावण संपूर्ण पृथ्वी का स्वामी था। उसका राज्य पूरे भूमंडल पर छाया हुआ था। जिनका राज्य पूरी पृथ्वी पर हो ऐसे राजमार्ग को चक्रवर्ती सम्राट् की संज्ञा दी जाती है। आजकल भारत में अंग्रेज़ों के राज्य का भी बहुत विस्तार है परंतु इन्हें रावण की तरह चक्रवर्ती नहीं कहा जा सकता क्योंकि संसार में अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिन पर अंग्रेज़ों का अधिकार नहीं है न ही वे अंग्रेज़ों का अधिकार स्वीकार करते हैं। वे बिल्कुल स्वाधीन हैं। परंतु इनके विपरीत रावण एक चक्रवर्ती सम्राट् था दुनिया के सभी राज्य उसे कर दिया करते थे। पृथ्वी के राजा ही उसके अधीन नहीं थे बल्कि स्वर्ग के बड़े-बड़े देवता भी उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवगण भी उसके यहां दास बने हुए थे परंतु ऐसे चक्रवर्ती सम्राट् का अंत भी बहुत दर्दनाक हुआ। वह एक घमंडी एवं अहंकारी राजा था। इसी अहंकार ने उसका सर्वनाश कर दिया। उसे उसके परिवार का कोई एक बूंद पानी पिलाने वाला नहीं मिला। लेखक उपदेश देते हुआ कहता है कि जीवन में आदमी चाहे जो भी बुरा कर्म कर ले परंतु अपने पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि अहंकार करने से मनुष्य अपने दीन तथा दुनिया दोनों से अलग हो जाता है।
विशेष – (1) रावण तथा अंग्रेज़ी साम्राज्य का तुलनात्मक अध्ययन किया है।
(2) भाषा सरल सरस तथा उपदेशात्मक शैली है।
 4. स्कूल का समय निकट था, नहीं ईश्वर जाने यह उपदेश-माला कब समाप्त होती। भोजन आज मुझे बेस्वाद-सा लग रहा था। जब पास होने पर यह तिरस्कार हो रहा है, तो फेल हो जाने पर तो शायद प्राण ही ले लिए जाएँ। भाई साहब ने अपने दर्जे की पढ़ाई का जो भयंकर चित्र खींचा था, उसने मुझे भयभीत कर दिया। स्कूल छोड़कर घर नहीं भागा, यही ताज्जुब है, लेकिन इतने तिरस्कार पर भी पुस्तकों में मेरी अरुचि ज्यों-की-त्यों बनी रही। 
प्रसंग – यह गद्यावतरण प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक खंड से उद्धृत है। जब लेखक पास हुआ तो उसके बड़े भाई उपदेश देने लगते हैं तो लेखक मन ही मन सोचता है कि स्कूल का समय भी निकट है न जाने कब उपदेश खत्म होगा। यहां इसी भावना का उल्लेख हुआ है।
व्याख्या—लेखक सोच रहा था कि स्कूल जाने का समय भी नज़दीक है लेकिन बड़े भाई साहब उसे जो उपदेश दे रहे हैं। न जाने यह उपदेश कब खत्म होगा। आज भोजन भी मुझे बेस्वाद-सा प्रतीत हो रहा था। मैं उनके उपदेश को सुन कर सोच रहा था कि जब उसे पास होने पर यह तिरस्कार झेलना पड़ रहा है तो यदि वह फेल हो जाता तो शायद उसके प्राण ही ले लिए जाएंगे। उस समय भाई साहब ने अपने दर्जे की पढ़ाई का जो भयंकर चित्र प्रस्तुत किया था उसको देखकर मैं डर गया। मुझे इस बात पर संशय हो रहा था कि मैं उस समय स्कूल का त्याग कर अपने घर नहीं भागा लेकिन इतने अपमान होने पर भी पुस्तकों में मेरी अरुचि वैसे की वैसी ही बनी रही। उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया।
विशेष – (1) लेखक की पढ़ाई के प्रति अरुचि की ओर संकेत है।
(2) भाषा सरल एवं सहज है।
5. अब भाई साहब बहुत कुछ नरम पड़ गए थे। कई बार मुझे डाँटने का अवसर पाकर भी उन्होंने धीरज से काम लिया । शायद अब वह खुद समझने लगे थे कि मुझे डाँटने का अधिकार उन्हें नहीं रहा या रहा भी, तो बहुत कम | मेरी स्वच्छंदता भी बढ़ी। मैं उनकी सहिष्णुता का अनुचित लाभ उठाने लगा। मुझे कुछ ऐसी धारणा हुई कि मैं पास ही हो जाऊँगा, पहूँ या न पढूँ, मेरी तकदीर बलवान् है, इसलिए भाई साहब के डर से जो थोड़ाबहुत पढ़ लिया करता था, वह भी बंद हुआ। मुझे कनकौए उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया था और अब सारा समय पतंगबाजी की ही भेंट होता था, फिर भी मैं भाई साहब का अदब करता था और उनकी नज़र बचाकर कनकौए उड़ाता था । 
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्य पुस्तक नवभारती में संकलित ‘बड़े भाई साहब’ कहानी से लिया गया है । इसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं। जब लेखक बड़े भाई के बार-बार फेल होने पर उनसे केवल एक कक्षा पीछे रह गए थे तो बड़े भाई साहब का डांटने का रवैया बदल गया था । यहाँ इसी का वर्णन हुआ है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि उसके बड़े भाई का एक कक्षा पीछे रहने के बावजूद अब भाई साहब का व्यवहार कुछ परिवर्तित हो गया। वे बहुत कुछ नरम पड़ गए । अब कई बार मुझे डांटने की परिस्थिति आई किंतु उन्होंने फिर भी कुछ धैर्य से काम लिया। शायद अब वे स्वयं इस बात को समझने लगे थे कि मुझे डांटने का अधिकार उन्हें नहीं रहा अथवा रहा है भी तो वह बहुत कम मात्रा में | इसके कारण अब मेरी स्वतंत्रता भी बढ़ गई । अब मैं बड़े भाई साहब की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा। मेरी कुछ ऐसी धारणा उठाने बन गई कि अब तो मैं पास ही हो जाऊँगा फिर चाहे मैं पढ़ें या न पढूँ। मेरी तकदीर तो बहुत श्रेष्ठ है। इसलिए भाई साहब के डर से जो थोड़ा बहुत पढ़ लिया करता वह पढ़ना भी बंद हो गया। अब तो मुझे पतंग उड़ाने का एक नया शौक पैदा हो गया था । मेरा समय अब पतंगबाज़ी में ही लगने लगा। किंतु मैं भाई साहब का सम्मान करता था कि उनसे छिपकर ही पतंग उड़ाता था ?
विशेष – (1) बालकों की पढ़ाई के प्रति अरुचि एवं बाल सुलभ चेष्टा का चित्रांकन हुआ है।
(2) भाषा सरल सरस भावपूर्ण तथा आत्मकथात्मक शैली है।
6. समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, दुनिया देखने से आती है। हमारी अम्माँ ने कोई दरजा नहीं पास किया और दादा भी शायद पाँचवीं-छठी जमात से आगे नहीं गए, लेकिन हम दोनों चाहे सारी दुनिया की विद्या पढ़ लें, अम्माँ और दादा को हमें समझाने और सुधारने का अधिकार हमेशा रहेगा। केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं, बल्कि इसलिए कि उन्हें दुनिया का हमसे ज्यादा तजुर्बा है और रहेगा। अमेरिका में जिस तरह की राज-व्यवस्था है, और आठवें हेनरी ने कितने ब्याह किए और आकाश में कितने नक्षत्र हैं, यह उन्हें चाहे उन्हें न मालूम हों, लेकिन हजारों ऐसी बातें हैं, जिनका ज्ञान उन्हें हमसे और तुमसे ज्यादा है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्य-खंड ‘नवभारती’ पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक कहानी से अवतरित किया गया है। यह हिंदी साहित्य के विशिष्ट कहानीकार प्रेमचंद द्वारा रचित हैं। जब छोटा भाई अपने बड़े भाई को यह कहता है कि अब वह केवल उससे एक कक्षा नीचे हैं। इसलिए अब उसे कुछ कहने का हक नहीं है तो बड़े भाई साहब उसे अपने बड़े होने तथा किताबी ज्ञान की अपेक्षा सामाजिक ज्ञान के बारे में कहते हैं।
व्याख्या – बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हुए कहने लगे कि आदमी को समझदारी बड़ी-बड़ी पुस्तकें, ग्रंथ आदि पढ़ने से नहीं आती बल्कि यह तो केवल दुनिया देखने से ही आती है अर्थात् दुनिया के साथ व्यवहार से ही समझ का बोध होता है। वे अपनी माँ का उदाहरण देकर बताने लगे कि हमारी माँ बिल्कुल अनपढ़ थी उन्होंने कोई कक्षा पास नहीं की और दादा भी शायद पाँचवीं-छठी कक्षा से ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे किंतु हम दोनों चाहे संपूर्ण संसार की विद्या ग्रहण कर लें अम्मां और दादा जी का हमें समझाने, बुझाने, सुधारने और डांटने का अधिकार सदा ही रहेगा। यह अधिकार केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं। उन्होंने हमारा पालन पोषण किया बल्कि इसलिए कि उन्हें दुनिया का हमारे से अधिक अनुभव है और यह अनुभव उन्हें सदैव रहेगा। अमेरिका में जिस प्रकार की राज व्यवस्था है और आठवें हेनरी ने कितनी शादियाँ कीं। आकाश में कितने नक्षत्र हैं। ये सब बातें भले ही उन्हें पता न हों लेकिन हज़ारों बातें ऐसी हैं जिनका ज्ञान हमारे से बहुत अधिक है।
विशेष – (1) व्यावहारिक ज्ञान शैक्षणिक ज्ञान से श्रेष्ठ होता है इसी बात का उल्लेख किया है।
(2) अपने बुजुर्गों के प्रति आदर सम्मान की भावना का उपदेश दिया गया है।
(3) भाषा में तद्भव एवं उर्दू-फ़ारसी की प्रचुरता है।
7. शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। उसे यह अभिमान हुआ था कि ईश्वर का उससे बढ़कर सच्चा भक्त कोई है ही नहीं। अन्त में यह हुआ कि स्वर्ग से नरक में धकेल दिया गया ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने बड़े भाई और छोटे भाई के अंतद्वंद्व तथा बड़े भाई के छोटे भाई के प्रति उत्तरदायित्व का वर्णन किया है।
व्याख्या – कक्षा में प्रथम आने पर छोटा भाई पढ़ाई के प्रति लापरवाही दिखाने लगता है तो बड़ा भाई उसे समझाता है कि उसे अपनी सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि उसने उस शैतान की दशा का वर्णन तो पढ़ा ही होगा जो इस घमंड में चूर था कि उससे बढ़कर ईश्वर का भक्त दूसरा कोई नहीं हो सकता परंतु घमंड के कारण उसे स्वर्ग से नरक में ढकेल दिया गया था ।
विशेष – (1) ‘घमंडी का सिर नीचा’ कथन के अनुसार अभिमान नहीं करने का संदेश दिया गया है।
(2) भाषा सहज, सरल तथा शैली उपदेशात्मक है।
8. मैं छोटा था, वह बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वह चौदह साल के थे। उन्हें मेरी तम्बीह और निगरानी का पूरा और जन्मसिद्ध अधिकार था और मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझें ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने छोटे भाई के प्रति सम्मान के भाव का वर्णन किया है।
व्याख्या—इन पंक्तियों में छोटा भाई अपने तथा बड़े भाई की तुलना करते हुए बताता है कि वह छोटा था और उसके भाई बड़े थे। उसकी उम्र नौ साल तथा बड़े भाई चौदह साल के थे। उन्हें छोटे भाई को डाँटने-डपटने और उसकी देखभाल करने का पूरा तथा जन्मसिद्ध अधिकार था क्योंकि वे बड़े थे इसलिए उसकी समझदारी इसी में थी कि वह बड़े भाई की आज्ञा को कानून समझ कर उसका पालन करें।
विशेष – (1) लेखक ने छोटे भाई की मानसिक दशा का यथार्थ चित्रण किया है ।
(2) भाषा सहज, सरल तथा शैली आत्मकथात्मक है।
9. “मेरा जी पढ़ने में बिल्कुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था। मौका पाते ही होस्टल से निकलकर मैदान में आ जाता और कभी कंकरियाँ उछालता, कभी कागज़ की तितलियाँ उड़ाता।’
 प्रसंग—प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने बड़े भाई के उत्तरदायित्व तथा छोटे भाई की लापरवाही का वर्णन किया है। ।
व्याख्या — बड़ा भाई कथानायक को निरंतर पढ़ने के लिए कहता है परंतु उसे पढ़ाई में अधिक रुचि नहीं है। वह जब पढ़ने के लिए कोई पुस्तक लेकर बैठता तो उसे पढ़ते हुए एक घंटा भी व्यतीत करना बहुत कठिन लगता था। अवसर मिलते ही वह होस्टल से बाहर निकल कर मैदान में आ जाता था तथा वहाँ कभी कंकरियाँ उछालता था तो कभी कागज़ की तितलियाँ बना कर उड़ाता रहता था।
विशेष – (1) छोटे भाई की पढ़ाई के प्रति अरुचि का वर्णन है।
(2) भाषा सहज, सरल तथा शैली आत्मकथात्मक है।
10. “वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे । हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभीकभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते।” 
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताओं का चित्रण किया है ।
व्याख्या — बड़े भाई साहब की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लेखक लिखता है कि बड़े भाई साहब स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक पढ़ने वाले थे । वे हर समय पुस्तक खोल कर बैठे रहते थे जैसे खूब पढ़ रहे हों। बीचबीच में वे शायद अपने दिमाग़ को आराम देने के लिए किसी कापी पर किताब के किनारे पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाते रहते थे। इसके अतिरिक्त कभी-कभी तो एक ही नाम, शब्द या वाक्य दस-बीस बार ऐसे ही लिख डालते थे।
विशेष – (1) बड़े भाई साहब का मन पढ़ाई में नहीं लगता था परंतु वे अध्ययनशील होने का नाटक करते थे ।
(2) भाषा सहज, सरल तथा शैली आत्मकथात्मक है।
11. मेरे और उनके बीच में केवल दो साल का अंतर रह गया । जी में आया, भाई साहब को आड़े हाथों लूँ“आपकी वह घोर तपस्या कहाँ गई ? मुझे देखिए, मज़े से खेलता भी रहा और दरजे में अव्वल भी हूँ।” लेकिन वह इतने दुःखी और उदास थे कि मुझे उनसे दिली हमदर्दी हुई और उनके घाव पर नमक छिड़कने का विचार ही लज्जास्पद जान पड़ा ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक कहानी से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली में बड़े भाई साहब और छोटे भाई के संवादों को रूप दिया है। यहाँ छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति आदर भाव उभर कर सामने आया है।
व्याख्या — लेखक कहता है कि उसके भाई और उसमें केवल दो साल का अंतर शेष रह गया था । वैसे तो बड़े भाई कभी उपदेश दिया करते थे लेकिन इस बार लेखक ने सोचा कि वह अपने बड़े भाई से अच्छी तरह सवाल-जवाब करेगा कि उनकी खूब पढ़ाई कहाँ गई। घोर तपस्या का क्या हुआ। अपने को छोड़ो मेरी ओर देखा मैं खेलता भी रहा और कक्षा में प्रथम स्थान पर भी आया हूँ। किंतु तभी लेखक को अहसास हुआ कि उसके बड़े भाई का मन पहले ही उदास तथा गमगीन है ऐसे में उनके दुःख को बढ़ाना ठीक नहीं। उन्हें मरहम की जरूरत है न कि इस समय उपदेश की ।
विशेष – ( 1 ) छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति आदरभाव उभर कर सामने आया है।
(2) वाक्य विन्यास सटीक है ।
12. भाई साहब ने मुझे गले से लगा लिया और बोले – मैं कनकौए उड़ाने को मना नहीं करता । मेरा भी जी ललचाता है; लेकिन करूँ क्या, खुद बेराह चलूँ; तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ ? यह कर्त्तव्य भी तो मेरे सिर है ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यावतरण ‘नव भारती’ पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘बड़े भाई साहब’ शीर्षक कहानी से लिया गया हैं। इसके रचयिता मुंशी प्रेमचंद हैं। बड़े भाई साहब कोशिश करने के बाद भी बार-बार असफल हो जाते थे लेकिन छोटा भाई खेल-कूद में डूबा रहने के बाद भी हर वर्ष परीक्षाओं को पार करता गया। उस पर बड़े भाई के उपदेश प्रभाव ही नहीं डाल रहे थे। पतंगबाजी का वह शौकीन था। एक दिन जब वह फटी हुई पतंग के पीछे दौड़ रहा था तब बड़े भाई ने अपनी लंबाई के कारण पतंग को पकड़ लिया और छोटे भाई के साथ सड़क पर दौड़ पड़े।
व्याख्या – बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को गले लगाया और उसे समझाते हुए बोले कि वे उसे पतंग उड़ाने से मना नहीं करते थे। वे चाहे स्वयं पतंग नहीं उड़ाते थे लेकिन इसका यह अर्थ नहीं था कि उन्हें पतंग उड़ाना अच्छा नहीं लगता था। उनका मन भी पतंग उड़ाना चाहता था लेकिन यदि वे भी पतंग उड़ाते, खेल-कूद में डूबते और विपरीत रास्ते पर चलना आरंभ कर देते तो छोटे भाई की रक्षा कैसे करते – वह नहीं चाहता था कि छोटा भाई ग़लत राह पर चल पड़े। उसे सही राह पर बनाए रखना उसी की ज़िम्मेदारी थी । वह उसे कभी भी बुरी राह पर नहीं देख सकता था।
विशेष – (1) बड़े भाई के मन में अपने से छोटे भाई के ज़िम्मेदारी के भाव को व्यक्त किया गया है।
(2) उपदेशात्मकता का स्वर विद्यमान है।
(3) देशज और उर्दू शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
13. एक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानों कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्य अवतरण मुंशी प्रेमचंद के द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से अवतरित किया गया है। लेखक का छोटा भाई कहता है कि एक दिन वह स्कूल के होस्टल से काफी दूर पतंग लूटने के लिए सड़क पर दौड़ रहा था। उसे आकाश में उड़ती पतंग नीचे गिरती हुई देख कर ऐसे लग रही थी जैसे कोई आत्मा स्वर्ग से निकल विरक्त भाव से नए संस्कार को ग्रहण करने जा रही है।
व्याख्या—छोटा भाई कहता है कि एक दिन वह संध्या के समय अपने होस्टल से दूर कटी हुई एक पतंग को लूटने के लिए तेज़ी से भागा जा रहा था। उसकी आँखें आसमान की ओर लगी हुई थीं। उसका मन पूरी तरह से कटी हुई पतंग में लगा हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे आत्मा स्वर्ग से निकलकर बिल्कुल विरक्त मन से इधर-उधर डोलती हुई नए संस्कार को प्राप्त करने के लिए जा रही थी । भाव है कि बिना किसी दूसरी तरफ ध्यान दिए हुए वह एक टक पतंग की तरफ ध्यान लगाए हुए भागता चला जा रहा था। उसका ध्यान कहीं भी दाएं-बाएं नहीं था। पूरी एकाग्रता से वह कटी हुई पतंग की ओर अपने मन को लगा कर भागा जा रहा था।
विशेष – (1) इस लेखक ने अत्यधिक सहज स्वाभाविक ढंग से पतंग लूटने वाले बच्चों की मनोदशा और स्वभाव का अंकन किया है।
(2) तत्सम तद्भव और विदेशी शब्दावली का प्रयोग किया है।
(3) लाक्षणिकता का प्रयोग सराहनीय है।
14. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था। 
प्रस्तुत – प्रस्तुत गद्यावतरण मुंशी प्रेमचंद के द्वारा रचित कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से अवतरित किया गया है। लेखक ने छोटे भाई के हृदय में खेल-कूद के लिए प्रेम और बड़े भाई के प्रति सम्मान के भावों को व्यक्त किया है। वह बड़े भाई की डांट-उपट के बाद भी खेल-कूद से अपने आपको दूर नहीं रख पाता था।
व्याख्या—छोटे भाई के हृदय में खेल-कूद का बहुत बड़ा स्थान था । वह चाह कर उनसे दूर नहीं हो पाता था। जिस प्रकार मौत और मुसीबतों के बीच फंसा हुआ इन्सान मोह-माया के बंधनों में जकड़ा ही रहता है उसी प्रकार बड़े भाई की डांट-फटकार और घुड़कियों को खाकर भी उसके प्रेम भरे बंधन से जकड़ा ही रहता था – वह किसी भी स्थिति में उसका विरोध नहीं करता था। उसे पलट कर बुरा भला नहीं कहता था । वह डांट झेल कर भी खेल-कूद का तिरस्कार नहीं कर पाता था—वह हर स्थिति में खेल-कूद में स्वयं को डुबो कर रखता था। उसे हर स्थिति में अपनी खेल प्यारी थी और वह उससे परे हो ही नहीं सकता था।
विशेष – (1) लेखक ने व्यंग्यपूर्ण शैली में छोटे भाई के खेल-प्रेम और बड़े भाई के प्रति स्नेह के भावों को सहजस्वाभाविक ढंग से व्यक्त किया है।
(2) भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है जिसमें तत्सम तद्भव शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है।

J&K class 10th Hindi बड़े भाई साहब Textbook Questions and Answers

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1. कथानायक की रुचि किन कार्यों में थी ?
उत्तर – कथानायक की रुचि खेलने-कूदने और मौज-मस्ती के कार्यों में थी। उसे कंकरियाँ उछालना, कागज़ की तितलियाँ उड़ाना अच्छा लगता है। कभी-कभी वह इधर-उधर घूमता रहता और कभी तरह-तरह के खेल खेलता था। उसकी पढ़ने में बिल्कुल भी रुचि न थी ।
प्रश्न 2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे ?
उत्तर – बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यही पूछते थे कि अब तक तुम कहाँ थे ? उसके बाद वे लंबा-चौड़ा भाषण दिया करते थे ।
प्रश्न 3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया ? 
उत्तर – दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई अपने बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा । वह पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया । वह अपना अधिक समय खेल-कूद में ही लगाने लगा।
प्रश्न 4. बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे ? 
उत्तर – बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे। वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे।
प्रश्न 5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे ?
उत्तर – बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कॉपी और किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों और बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे । कभी-कभी एक ही नाम, शब्द या वाक्य को कई बार लिखते थे और कभी ऐसी शब्द-रचना कर देते थे जिसका कोई अर्थ और सामंजस्य नहीं होता था ।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) लिखिए-

प्रश्न 1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया ? 
उत्तर – बड़े भाई द्वारा बुरी तरह लताड़े जाने पर छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बना डाला। उसने टाइम-टेबिल बनाते समय सोचा कि अब वह खूब जी लगाकर पढ़ेगा और खेल-कूद की ओर ध्यान नहीं लगाएगा। उसने टाइम-टेबिल में खेलकूद का समय भी निर्धारित नहीं किया । जैसे ही उसने टाइम-टेबिल का पालन करना चाहा तो उसे खेलकूद की याद सताने लगी। उसे मैदान की सुखद हरियाली, हवा के हल्के-हल्के झोंके तथा कबड्डी और वॉलीबाल आदि खेलों का आनंद अपनी ओर खींचने लगा। इस कारण छोटा भाई टाइम-टेबिल बनाकर भी उसका पालन नहीं कर पाया।
प्रश्न 2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर – एक दिन जब छोटा भाई गुल्ली-डंडा खेलने के बाद भोजन के समय लौटा तो बड़े भाई साहब उस पर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने उसे डाँटते-फटकारते हुए कई तरह से समझाने का प्रयास किया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि उसे अपने पास होने का घमंड नहीं करना चाहिए। उन्होंने अनेक घमंडी लोगों और राजाओं के उदाहरण देकर उसे बताया की घमंड करने से बड़े-से-बड़े व्यक्ति का भी नाश हो जाता है। उन्होंने उसके परीक्षा में पास होने को भी केवल एक संयोग बताया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को खेलों से दूर रहने की नसीहत दी।
प्रश्न 3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं ?
उत्तर – बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़े थे। बड़ा होने के नाते वे हर समय यही कोशिश करते कि वे जो कुछ भी करें वह उनके छोटे भाई के लिए एक उदाहरण बन जाए। वे सदा अपने आपको एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने में लगे रहते थे। उन्हें लगता था कि वे जैसा आचरण करेंगे, उनका छोटा भाई भी वैसा ही आचरण करेगा। अतः अपने छोटे भाई को अच्छी शिक्षा देने की चाह के कारण बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं ।
प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ? 
उत्तर – बड़े भाई साहब छोटे भाई को पढ़ने-लिखने की सलाह देते थे। उनकी इच्छा थी कि जिस प्रकार वे हर समय पढ़ते रहते हैं, उसी प्रकार उनका छोटा भाई भी अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाए। उन्हें अपने छोटे भाई का खेलना और इधर-उधर घूमना अच्छा नहीं लगता था । बड़े भाई साहब चाहते थे कि उनका छोटा भाई पढ़-लिखकर विद्वान् बने। इसी कारण वे उसे खेलकूद छोड़कर पढ़ने की सलाह दिया करते थे ।
प्रश्न 5. लेखक ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया ? 
उत्तर – लेखक के दूसरी बार पास होने और बड़े भाई साहब के फेल होने पर बड़े साहब का व्यवहार नरम पड़ गया । वे अब लेखक को कम डाँटते थे । लेखक उनके नरम व्यवहार के कारण पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। उसने पढ़ने-लिखने के स्थान पर मौज- मस्ती करना शुरू कर दिया। वह अपना सारा समय पतंगबाज़ी और अन्य खेलों में लगाने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. बड़े भाई की डाँट फटकार अगर न मिलती तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता ? अपने विचार प्रकट कीजिए । 
उत्तर – बड़े भाई साहब के साथ उनका छोटा भाई भी हॉस्टल में रहता था। बड़े भाई साहब हर समय पढ़ते रहते थे। वे चाहते थे कि उनका छोटा भाई भी खूब पढ़े किंतु छोटे भाई का ध्यान पढ़ाई की बजाय खेलों में अधिक लगता था। वे उसे निरंतर डाँटते-फटकारते रहते। उनकी डाँट-फटकार का प्रभाव यह हुआ कि छोटा भाई कक्षा में अव्वल आया। यदि बड़े भाई साहब उसे न डाँटते तो उसका अव्वल आना संभव नहीं था। बड़े भाई साहब ने स्वयं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हुए सभी प्रकार के खेलों से दूर रखा। उन्होंने एक पिता के समान छोटे भाई पर पूरा नियंत्रण रखा और उसे पढ़ने-लिखने की ओर प्रेरित किया । यदि बड़े- भाई साहब छोटे भाई को न डाँटते तो वह पढ़ने-लिखने में अपना ध्यान बिल्कुल न लगाता और अव्वल आना तो दूर वह पास भी न हो पाता । निश्चित रूप से छोटे भाई के अव्वल आने में बड़े भाई साहब की डाँट-फटकार का पूरा योगदान था ।
प्रश्न 2. बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है ? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं ?
उत्तर – बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने शिक्षा के विभिन्न तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है। लेखक के अनुसार आजकल विद्यार्थियों को जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है, उससे उनके वास्तविक जीवन का कोई लेना-देना नहीं है। इसे पढ़कर उन्हें जीवन में कोई विशेष लाभ भी नहीं होता किंतु परीक्षा पास करने के लिए विद्यार्थियों को यह सब रटना पड़ता है। लेखक कहता है कि इतिहास में अंग्रेज़ों का इतिहास पढ़ाया जाता है। इस इतिहास का वर्तमान से कोई संबंध नहीं है और इसे पढ़कर विद्यार्थी कोई बहुत बड़ा नाम भी नहीं कमा सकते। इसी प्रकार जमेट्री में भी अनेक प्रकार के उलटे सीधे सवाल पूछे जाते हैं जो विद्यार्थियों के जीवन में कभी काम नहीं आते हैं। लेखक की यह बात बिल्कुल सही है कि विद्यार्थियों को आजकल जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, वह उचित नहीं है । यह पढ़ाई-लिखाई उनके जीवन में कोई बदलाव लाने वाली नहीं है। यह पढ़ाई उन्हें किसी प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने में भी सक्षम नहीं है। अतः हम लेखक के विचारों से पूर्णतः सहमत हैं।
प्रश्न 3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है ? 
उत्तर – बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव से आती है। उनका मत है कि किताबें पढ़ने से मनुष्य विद्या तो ग्रहण कर सकता है किंतु जीवन जीने की समझ जिंदगी के अनुभव से आती है। अधिक पढ़ा-लिखा होने से व्यक्ति विद्वान् तो बन सकता है लेकिन जीवन को जीने के लिए जीवन की समझ की भी जरूरत होती है जो केवल जीवन के अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अनुभवी हो सकता है। उसने चाहे किताबें न पढ़ी हों किंतु उसे भी अपने अनुभव से जिंदगी की बहुत समझ होती है। यह समझ उसे उसके जीवन में घटने वाली घटनाओं के अनुभव से प्राप्त होती है। बड़े भाई साहब जीवन के इसी अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्त्व देते हैं।
प्रश्न 4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई ? 
उत्तर – परीक्षा में दूसरी बार भी छोटे भाई के पास होने पर छोटा भाई पढ़ाई-लिखाई से दूर हो गया। एक दिन जब वह एक पतंग के पीछे दौड़ रहा था तो बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे बुरी तरह फटकारा। उनके द्वारा दिए गए तर्क और उदाहरण इतने सटीक थे कि छोटा भाई हैरान रह गया। बड़े भाई साहब ने उसे बताया कि केवल किताबी ज्ञान पा लेने से कोई महान् नहीं बन जाता बल्कि जीवन की समझ तो अनुभव से आती है। बड़े भाई साहब छोटे भाई को बड़े ही सुंदर ढंग से समझाते हैं कि पढ़ लिखकर पास होना और जीवन की समझ होना दोनों अलगअलग बातें हैं। चाहे परीक्षा में पास न हुए हों किंतु उनके पास जीवन का अनुभव अधिक है। परीक्षा में केवल पास होना ही बड़ी बात नहीं है अपितु जीवन में अच्छे-बुरे समय में अपने आपको उसके अनुसार ढाल लेना बड़ी बात है। बड़े भाई साहब उसे अपने माता-पिता और हेडमास्टर साहब का उदाहरण देकर समझाते हैं कि जीवन में अनुभव की अधिक आवश्यकता है और उनके पास उससे कहीं ज्यादा अनुभव है। बड़े भाई साहब की ऐसी विद्वतापूर्ण बातों को सुनकर छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी ।
प्रश्न 5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  • छोटे भाई का हितैषी – बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई का भला चाहने वाले हैं। वे निरंतर उसे अच्छाई की ओर प्रेरित करते हैं। वे स्वयं को उसके सामने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे चाहते हैं कि उनका छोटा भाई किसी तरह से पढ़-लिख जाए । इसी कारण वे उस पर क्रोधित भी होते रहते हैं और पूरा नियंत्रण भी रखते हैं।
  • गंभीर – बड़े भाई साहब गंभीर प्रवृत्ति के हैं। वे हर समय किताबों में खोए रहते हैं। वे अपने छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं इसलिए वे सदा अध्ययनशील रहते हैं। उनका गंभीर स्वभाव ही उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है ।
  • वाक् कला में निपुण – बड़े भाई साहब वाक् कला में निपुण हैं । वे अपने छोटे भाई को ऐसे-ऐसे उदाहरण देकर बात कहते हैं कि वह उनके आगे नतमस्तक हो जाता है। उन्हें शब्दों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना आता है। यही कारण है कि वे अपने छोटे भाई पर अपना पूरा दबदबा बनाए रखते हैं।
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली का विरोधी – बड़े भाई साहब वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विरोधी हैं। उनके अनुसार यह शिक्षा प्रणाली किसी प्रकार से भी लाभदायक नहीं है। यह विद्यार्थियों को कोरा किताबी ज्ञान देती है जिसका वास्तविक जीवन में कोई लाभ नहीं होता । विद्यार्थी को ऐसी-ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं, जिनका उसके भावी जीवन से कोई संबंध नहीं होता । वे ऐसी शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए इसे दूर करने की बात कहते हैं ।
प्रश्न 6. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है ?
उत्तर – बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को महत्त्वपूर्ण कहा है। उनके अनुसार किताबी ज्ञान से जीवन जीने की समझ नहीं आती है। इससे जीवन की वास्तविकताओं का सामना भी नहीं किया जा सकता । किताबी ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति परिपक्व नहीं हो पाता है। उनका मत है कि व्यक्ति अपनी जिंदगी के अनुभव से ही सब कुछ सीखता है। बहुत से कम पढ़े-लिखे लोग भी जिन्हें जिंदगी का अनुभव होता है, पढ़े-लिखे लोगों से अधिक समझदार होते हैं। जिंदगी का अनुभव हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सहज बनाता है। व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर ही बड़े से बड़े कार्य को भी सरलता से कर लेता है। जिंदगी का अनुभव हमें इतना परिपक्व बना देता है कि हम अपनी मुसीबतों को भी सरलता से झेल लेते हैं जबकि किताबी ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति मुसीबतों में अपना धैर्य खो देता है। इसी कारण बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव को किताबी ज्ञान से महत्त्वपूर्ण कहा है।
प्रश्न 7. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि-
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब लेखक का भला चाहते हैं।
उत्तर –
(क) छोटा भाई अपने बड़े भाई की डाँट-डपट को चुपचाप सहन करता है। दूसरी बार भी बड़े भाई साहब के फेल होने पर जब छोटा भाई परीक्षा में पास हो जाता है तो वह खेलकूद में अधिक ध्यान लगाने लगता है। तब भी वह बड़े भाई साहब से छिपकर पतंगबाजी आदि करता है। इससे पता चलता है कि छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब अपने छोटे भाई को भिन्न-भिन्न तरह से अनेक उदाहरण देकर घमंड न करने और जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। जब वे छोटे भाई को अपने माता-पिता और अपने हेडमास्टर साहब के विषय में बताते हैं तो उनके द्वारा कही गई तर्क- पूर्ण एवं सटीक बातों से पता चलता है कि उन्हें जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) पाठ के अंत में जब भाई साहब भी एक पतंग की डोर को उछलकर पकड़ लेते हैं और होस्टल की ओर दौड़ते हैं तो उनके इस व्यवहार से पता चलता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चे का मन है ।
(घ) भाई साहब लेखक को समय-समय पर पढ़ने-लिखने की ओर ध्यान लगाने की बात कहते रहते हैं। जब वे उसे समझाते हुए कहते हैं कि वे उसे किसी भी सूरत में गलत राह पर चलने नहीं देंगे। भाई साहब स्वयं एक आदर्श बनकर लेखक को जीवन में परिश्रम करने की शिक्षा देते हैं। उनकी बार-बार की जाने वाली डाँट-फटकार के पीछे भी उनका उद्देश्य लेखक का भला चाहना ही है । अतः स्पष्ट है कि बड़े भाई साहब लेखक का भला चाहते हैं।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

  1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं है, असल चीज़ है बुद्धि का विकास |
  2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
  3. बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने ?
  4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से मिलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो ।
उत्तर –
  1. प्रस्तुत पंक्ति बड़े भाई साहब का कथन है। वे अपने छोटे भाई को समझाते हैं कि परीक्षा में पास होना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात को बुद्धि का विकास करना है। यदि कोई व्यक्ति अनेक परीक्षाएं पास कर ले किंतु उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना न आए तो उसकी पढ़ाई व्यर्थ है। पुस्तकों को पढ़कर उसके ज्ञान से अपनी बुद्धि का विकास करना ही असली विद्या है ।
  2. प्रस्तुत कथन छोटे भाई का है । वह अपने बड़े भाई से छिपकर खेलने जाया करता था। उसे पता था कि यदि उसके भाई साहब को पता चल जाएगा तो वे उसे बुरी तरह फटकारेंगे किंतु छोटे भाई को खेल-कूद से इतना अधिक मोह था कि वह चाहकर भी खेलकूद को नहीं छोड़ सकता था । लेखक कहता है कि जिस प्रकार मौत और विपत्ति से घिरा हुआ मनुष्य भी मोह-माया के बंधनों से नहीं निकल पाता, उसी प्रकार बड़े भाई साहब की फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी छोटा भाई अपने खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था । वह अपनी खेलकूद के कारण अनेक प्रकार की डाँट-फटकार सहन करता था लेकिन खेलकूद का मोह छोड़ पाना उसके लिए संभव नहीं था ।
  3. इस पंक्ति से लेखक का आशय यह है कि किसी भी मज़बूत मकान के लिए एक मज़बूत नींव का होना आवश्यक होता है। यदि नींव कमज़ोर होगी तो उस पर बना मकान भी कमज़ोर ही होगा। नींव जितनी मज़बूत होगी, उस पर बना मकान भी उतना ही मज़बूत होगा। किसी भी मज़बूत मकान के बनने में उसकी नींव का बहुत बड़ा योगदान होता है। अतः नींव को मज़बूत बनाना चाहिए।
  4. लेखक कहता है कि एक दिन वह एक कटी हुई पतंग को लूटने के लिए उसके पीछे दौड़ रहा था। उस समय उसकी आँखें आसमान की ओर थीं और उसका मन उस कटी हुई पतंग की ओर लगा हुआ था। वह कटी हुई पतंग धीरेधीरे हवा में लहराती हुई नीचे की ओर गिरने को थी। उस समय वह पतंग ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे कोई पवित्र आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से धरती पर नया जन्म लेने के लिए उतर रही हो। वह पतंग स्वर्ग से निकली आत्मा के समान बिल्कुल शांत और पवित्र लग रही थी जो शीघ्र ही नए संस्कार प्राप्त करने के लिए धरती पर वापस आ रही थी।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1. उत्तरनिम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
नसीहत, रोष, आजादी, राजा, ताज्जुब
उत्तर – नसीहत- सदुपदेश, उपदेश शिक्षा।
रोष – क्रोध, गुस्सा |
आज़ादी – स्वतंत्रता, स्वाधीनता ।
राजा – नरेश, नृप।
ताज्जुब – हैरानी, विस्मय |
प्रश्न 2. प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणत: इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-
  • मेरा जी पढ़ने में बिल्कुल न लगता था । एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
  • भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती ।
  • वह जानलेवा टाइम टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता ।
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं पढ़ें और समझें ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिएसिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा ।
उत्तर – सिर पर नंगी तलवार लटकना – युद्ध क्षेत्र में सैनिकों के सिर पर सदा नंगी तलवार लटकती रहती है । आड़े हाथों लेना – जब रमेश द्वारा मोहन पर लगाए आरोप झूठे निकले तो मोहन ने उसे आड़े हाथों लिया । अंधे के हाथों बटेर लगना – सोहन पढ़ा-लिखा तो कम है किंतु उसे सरकारी नौकरी मिल गई है। सच है अंधे के हाथों बटेर लग गया है।
लोहे के चने चबाना – जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं।
दाँतों पसीना आना- आई० ए० एस० की परीक्षा पास करने में दांतों पसीना आ जाता है।
ऐरा- गैरा नत्थू खैरा – ऐवरेस्ट पर चढ़ना ऐरे-गैरे नत्थू खैरे का काम नहीं है ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।
तत्सम तद्भव देशज आगत ( अंग्रेजी एवं उर्दू / अरबी-फ़ारसी)
जन्मसिद्ध आँख दाल-भात पोजीशन, फ़जीहत
तालीम, जल्दबाजी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन स्पेशल, फटकार, प्रातः काल, विद्वान्, निपुण, भाईसाहब, अवहेलना, टाइम टेबिल |
उत्तर –
तत्सम तद्भव देशज आगत (अंग्रेज़ी एवं उर्दू / अरबी-फ़ारसी)
चेष्टा आँखफोड़ जानलेवा तालीम
सूक्तिबाण पन्ना घुड़कियाँ जल्दबाज़ी
आधिपत्य मेला-तमाशा फटकार पुख्ता
विद्वान् भाई साहब हाशिया
निपुण जमात
अवहेलना हर्फ़
प्रातः काल मसलन
स्पेशल
स्कीम
टाइम टेबिल
प्रश्न 5. क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं सकर्मक और अकर्मक ।
सकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है ।
अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है – सकर्मक या अकर्मक ? लिखिए-
(क) उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया ।
(ख) फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा।
(ग) शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा ।
(घ) मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
(ङ) समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
(च) मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था ।
उत्तर –
(क) सकर्मक क्रिया ।
(ख) सकर्मक क्रिया ।
(ग) अकर्मक क्रिया ।
(घ) सकर्मक क्रिया ।
(ङ) सकर्मक क्रिया ।
(घ) अकर्मक क्रिया ।
प्रश्न 6. ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए –
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर –
विचार + इक = वैचारिक ।
इतिहास + इक = ऐतिहासिक ।
संसार + इक = सांसारिक ।
दिन + इक = दैनिक ।
नीति + इक = नैतिक ।
प्रयोग + इक = प्रयोगिक ।
अधिकार + इक = अधिकारिक ।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
2. शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
3. क्या पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं, कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए ।
4. क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है ? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें ।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने मातापिता, बड़े भाई-बहनों या अन्य बुजुर्ग / बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया- समझदारी / पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई ?
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2. आपकी छोटी बहन / छोटा भाई छात्रावास में रहती रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए |
15- सी, कर्ण विहार,
जम्मू।
4 जनवरी, 20……
प्रिय दुष्यंत,
शुभाशीष
मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम वहाँ खूब मन लगाकर पढ़ रहे हो । अब तुम दसवीं कक्षा में आ गए हो । अब तुम्हें पढ़ाई-लिखाई की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। छात्रावास में रहने वाले अपने साथियों के साथ बैठकर खूब पढ़ा करो। अब यदि तुम मेहनत कर लोगे तो तुम्हें जीवन-भर इसका लाभ मिलेगा। दसवीं की पढ़ाई थोड़ी कठिन है। ऐसे में तुम्हें अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके खूब पढ़ाई करनी होगी। मैं आशा करता हूँ कि तुम अच्छे लड़कों की संगति में बैठकर पढ़ाई में ध्यान लगाते ही होओगे। छात्रावास में तुम पर घर वालों का कोई अधिक नियंत्रण नहीं है। ऐसे में तुम्हें स्वयं ही अपनी ज़िम्मेवारी समझकर खूब पढ़ना-लिखना होगा । मुझे विश्वास है कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी तुम अच्छे अंकों से पास हो जाओगे। पढ़ाई में पूरा मन लगाना ।
तुम्हारा बड़ा भाई
गौतम ।

J&K class 10th Hindi बड़े भाई साहब Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था ?
उत्तर – धनपत राय ।
प्रश्न 2. प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ ?
उत्तर – 31 जुलाई, सन् 1880 ई० को बनारस के समीप लमही नामक गांव में हुआ।
प्रश्न 3. लेखक उर्दू में किस नाम से लिखा करते थे ?
उत्तर – गुलाब राय ।
प्रश्न 4. लेखक की कौन-सी रचना अंग्रेज़ी सरकार ने जब्त कर ली थी ?
उत्तर – ‘सोज़े वतन’ ।
प्रश्न 5. प्रेमचंद की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर – 8 अक्तूबर, सन् 1936 ई० को।
प्रश्न 6. बड़े भाई साहब का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – अध्ययनशील
प्रश्न 7. लेखक के बड़े भाई उनसे कितने वर्ष बड़े थे ?
उत्तर – पाँच वर्ष ।
प्रश्न 8. लेखक को किसका शौक था ?
उत्तर – पतंगबाजी का ।
प्रश्न 9. पुराने जमाने में कौन नायब तहसीलदार बन जाया करते थे ?
उत्तर – आठवीं पास ।
प्रश्न 10. गोदान उपन्यास की रचना किस ने की थी ?
उत्तर – प्रेमचंद ने ।
प्रश्न 11. ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर – प्रेमचंद ।
प्रश्न 12. उर्दू में प्रकाशित प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह का नाम बताइए ? 
उत्तर – सोजें वतन ।
प्रश्न 13. उपन्यास सम्राट् किसे कहा जाता है ?
उत्तर – प्रेमचंद को ।
प्रश्न 14. प्रेमचंद के एक उपन्यास का नाम लिखें।
उत्तर – निर्मला ।
प्रश्न 15. प्रेमचंद जी के बचपन का क्या नाम था ?
उत्तर – धनपतराय ।
प्रश्न 16. प्रेमचंद के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास का नाम लिखिए।
उत्तर – गोदान ।
प्रश्न 17. निर्मला उपन्यास किसने लिखा ?
उत्तर – मुंशी प्रेमचंद |
प्रश्न 18. ‘कर्मभूमि’ किस लेखक का उपन्यास है ?
उत्तर – मुंशी प्रेमचंद का।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. लेखक के भाई साहब उनसे कितने साल बड़े थे ?
(क) दो साल
(ख) तीन साल
(ग) चार साल
(घ) पाँच साल।
उत्तर – (घ) पाँच साल ।
2. भाई साहब लेखक से कितनी कक्षा आगे थे ?
(क) दो कक्षा
(ख) तीन कक्षा
(ग) चार कक्षा
(घ) पाँच कक्षा |
उत्तर – (ख) तीन कक्षा ।
3. भाई साहब किस मामले में जल्दबाज़ी करना पसंद नहीं करते थे ?
(क) खेल-कूद के मामले में
(ख) राजनीति के मामले में
(ग) शिक्षा के मामले में
(घ) लड़ाई-झगड़े के मामले में ।
उत्तर – (ग) शिक्षा के मामले में ।
 4. वे हर काम को दो या तीन साल में करते थे ?
(क) क्योंकि वे बुनियाद को बहुत मज़बूत बनाना चाहते थे।
(ख) क्योंकि वे आलसी थे।
(ग) क्योंकि उनका मन खेल-कूद में अधिक लगता था।
(घ) घर में बड़े होने के कारण उन पर जिम्मेदारी अधिक थी।
उत्तर – (क) क्योंकि वे बुनियाद को बहुत मजबूत बनाना चाहते थे।
5. लेखक का मन किस काम में नहीं लगता था ?
(क) घर के काम में
(ख) खेलने में
(ग) पढ़ाई में
(घ) धर्म के काम में।
उत्तर – (ग) पढ़ाई में ।
6. अवसर मिलते ही लेखक कौन-कौन से कार्य करता था ?
(क) कंकरियां उछालता था
(ख) कागज़ की तितलियां उड़ाता था
(ग) चार दीवारी पर चढ़कर नीचे उतरता था
(घ) तीनों काम करता था।
उत्तर – (घ) तीनों काम करता था।
7. लेखक किससे डरता था ?
(क) भाई साहब से
(ख) पिता से
(ग) माता से
(घ) अध्यापक से ।
उत्तर – (क) भाई साहब से।
8. लेखक को अधिक डाँट क्यों पड़ती थी ?
(क) क्योंकि वे आलसी थे
(ख) क्योंकि वे कामचोर थे
(ग) क्योंकि वे अधिक खेलते थे
(घ) क्योंकि वे किताबी कीड़ा थे।
उत्तर – (ग) क्योंकि वे अधिक खेलते थे ।
9. भाई साहब किस कला में निपुण थे ?
(क) पढ़ाने की कला में
(ख) खेलने की कला में
(ग) उपदेश देने की कला में
(घ) पतंग उड़ाने की कला में
उत्तर – (ग) उपदेश देने की कला में ।
10. किस बात से लेखक के दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते थे ?
(क) खेल में हार जाने के कारण
(ख) भाई साहब की उपदेशात्मक बातें सुनकर
(ग) पतंग कट जाने पर
(घ) कक्षा में फेल हो जाने पर ।
उत्तर – (ख) भाई साहब की उपदेशात्मक बातें सुनकर । –

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