JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 16 हरिहर काका

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 16 हरिहर काका

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 16 हरिहर काका (मिथिलेश्वर)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

पाठ का सार

‘हरिहर काका’ कहानी के कथाकार ‘मिथिलेश्वर’ हैं । इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने ग्रामीण पारिवारिक जीवन तथा हमारी आस्था के प्रतीक धर्मस्थलों में अपने पाँव फैला रही स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। ‘हरिहर काका’ को इसी स्वार्थलिप्सा के कारण पारिवारिक संबंधों से बेदखल किया गया है।
लेखक का हरिहर काका से परिचय बचपन का था। हरिहर काका उसके पड़ोस में रहते थे। उन्होंने उसे अपने बच्चे की तरह प्यार और दुलार दिया था। वे उससे अपनी कोई भी बात नहीं छिपाते थे। सभी बातें उसे विस्तार से बताते थे परंतु पिछले कुछ दिनों की घटी घटनाओं के कारण हरिहर काका ने चुप्पी साध ली थी । वे किसी से भी कुछ बात नहीं करते थे। वे हर समय चुपचाप बैठे हुए कुछ न कुछ सोचते रहते थे। ऐसा लगता था कि उनकी यह चुप्पी उनके साथ ही खत्म होगी । लेखक का गांव आरा शहर से चालीस किलोमीटर की दूरी पर था। गांव में तीन स्थान प्रमुख हैंएक तालाब, दूसरा पुराना बरगद का वृक्ष और तीसरा ठाकुर जी का विशाल मंदिर, जिसे लोग ठाकुरबारी भी कहते हैं। ठाकुरबारी की स्थापना कब हुई— इसका किसी को विशेष ज्ञान नहीं था। इस संबंध में यह प्रचलित थी कि जब गांव बसा था तो उस समय एक संत इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने लगे थे। उस संत ने इस स्थान पर ठाकुर जी की पूजा आरंभ कर दी और लोगों ने धर्म और सेवा भावना से प्रेरित होकर चंदा इकट्ठा करके ठाकुर जी का मंदिर बनवा दिया। ग्रामीण लोगों के विश्वास ने ठाकुर जी के मंदिर और संपत्ति में विशेष योगदान दिया। वहां के लोग अपने प्रत्येक कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे और अपनी जमीन का एक छोटा टुकड़ा ठाकुर जी के नाम लिख देते थे। लोगों के इस विश्वास के कारण ठाकुर जी के नाम बीस बीघे ज़मीन हो गई थी ।
ठाकुरबारी की देखभाल महंत और एक पुजारी करते थे। इनकी नियुक्ति तीन साल के लिए धार्मिक लोगों की समिति द्वारा की जाती थी। ठाकुरबारी का काम लोगों में धर्म – भावना और सेवा – भावना उत्पन्न करना था । वहाँ के लोगों के सभी काम ठाकुरबारी से शुरू होते थे। लोग अपना कृषि से बचा समय ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। लेखक कभीकभी ठाकुरबारी में जाता था। उसे वहां बैठे साधु-संत अच्छे नहीं लगते थे । लेखक को लगता था कि यह साधु-संत खाली बातें बनाकर हलवा-पूड़ी खाने का कार्य करते हैं । हरिहर काका चार भाई थे। सबकी शादियां हो गई थीं और सभी के पास बच्चे थे। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं परंतु उन्हें बच्चे नहीं हुए थे। उनकी दोनों पत्नियां भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। हरिहर काका ने तीसरी शादी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण नहीं की थी । वह अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। उनके परिवार के पास साठ बीघे ज़मीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह-पंद्रह बीधे ज़मीन आई थी। तीनों भाइयों ने अपनी पलियों से कह रखा था कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें। उन्हें किसी तरह का कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। कुछ समय तक सब कुछ ठीक प्रकार से चलता रहा। थोड़े दिनों बाद सब अपनेअपने परिवार और बच्चों में मग्न हो गए। हरिहर काका का ध्यान रखने वाला कोई नहीं रहा। कभी-कभी उन्हें बचा खुचा खाना दिया जाता था। बीमार पड़ने पर उन्हें पानी देने वाला कोई नहीं था। उनका अपने भाइयों के परिवार से मोहभंग हो गया। एक दिन उनके भतीजे का मित्र शहर से आया हुआ था। उसके लिए तरह-तरह के व्यंजन बने थे। हरिहर काका को विश्वास था कि आज उन्हें अच्छा खाना मिलेगा परंतु उन्हें किसी ने कुछ नहीं दिया था। खाना मांगने पर उन्हें वही रूखा-सूखा भोजन थाली में रख कर दे दिया गया। हरिहर काका को गुस्सा आ गया। उन्होंने वह थाली आंगन में फेंक दी और कहने लगे कि उनके हिस्से के धन पर सभी घर के लोग मज़े कर रहे हैं। जिस समय हरिहर काका बोल रहे थे उस समय ठाकुरबारी का पुजारी उनके घर के दालान में बैठा हुआ था। उसने ठाकुरबारी के महंत जी को सारी बात कह सुनाई। महंत जी ने इस घटना का लाभ उठाते हुए हरिहर काका को अपने जाल में फंसा लिया। महंत जी हरिहर काका को एकांत में ले जाकर लोक-परलोक की बातें समझाने लगे कि यदि वह अपने हिस्से की ज़मीन ठाकुरबारी को दान कर दे तो चारों ओर उनका गुणगान होगा। ईश्वर की भी उसके ऊपर कृपा बनी रहेगी। हरिहर काका ने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा जिस कारण उसे पत्नी और संतान सुख नहीं मिला अब यदि वह अपना तन, मन, धन सभी कुछ ईश्वर के नाम कर देगा तो उसे अगले जन्म में पूर्ण सुख की प्राप्ति होगी।
हरिहर काका देर तक महंत जी की बातें सोचते रहे। महंत जी ने उन्हें खूब अच्छा खाने को दिया और सोने के लिए एक आरामदायक कमरा दे दिया। हरिहर काका के भाइयों को जब घर में घटी घटना का पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नियों को बहुत फटकारा। वे तीनों काका को लेने ठाकुरबारी पहुँच गए। महंत जी ने हरिहर काका को एक रात के लिए अपने यहाँ रोक लिया। इससे भाइयों को हरिहर काका की पंद्रह बीघे ज़मीन हाथ से निकलती दिखाई देने लगी। सुबह होते ही तीनों फिर से ठाकुरबारी पहुँच गए। हरिहर काका के पैर पकड़ कर रोने लगे। हरिहर काका का दिल पसीज गया। वह उनके साथ घर आ गए। घर में सभी लोगों ने उन्हें हाथों पर लिया। उनकी बहुत आवभगत हुई। अब उनकी सभी इच्छाओं का ध्यान रखा जाने लगा। हरिहर काका इस परिवर्तन का श्रेय महंत जी को दे रहे थे। गाँव के लोगों को किसी ने कुछ नहीं बताया था। परंतु फिर भी उन लोगों को सच्चाई का पता चल गया था । हरिहर काका को लेकर गाँव में दो गुट बन गए। एक गुट के अनुसार हरिहर काका को अपना अगला जन्म सुधारने के लिए ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए और दूसरे गुट के लोगों के अनुसार भाइयों के साथ खून का रिश्ता है, इसलिए ज़मीन उनको देनी चाहिए। हरिहर काका को लेकर गाँव का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था सभी लोग अपनी बात को ठीक बताने में लगे थे।
हरिहर काका के भाइयों को भी यही आशंका होने लगी थी कि कहीं लोगों और महंत जी के दबाव के कारण वे अपनी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम न लिख दें। हरिहर काका अपने जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन का स्वामी नहीं बनाना चाहते थे। उन्हें अपने गाँव के कई बुजुर्ग याद थे जिन्होंने अपने जीवित रहते अपनी ज़मीन दूसरों के नाम लिख दी और फिर उनका जीवन एक कुत्ते के जीवन के समान हो गया। हरिहर काका ने न तो महंत जी को इन्कार किया और न ही अपने भाइयों को । वह भी इस बदलाव का असली कारण समझ गए थे ।
हरिहर काका को लेकर महंत जी चिंता में पड़ गए थे। उन्हें लगता था कि कहीं हाथ आई चिड़िया उड़ न जाए इसलिए उन्होंने हरिहर काका का अपहरण करवाने की सोची। बाहर से कुछ साधु बुलाकर हरिहर काका को आधी रात के समय घर से उठवा लिया। उनके भाई उन्हें ढूँढ़ने लगे। उन्हें लग रहा था कि यह काम महंत जी का है। वे लोग ठाकुरबारी गए वहाँ शांति और खामोशी थी फिर उन्हें लगा कि कहीं रुपये-पैसे के लालच में डाकू न उठा कर ले गए हों। वह यह सब सोच ही रहे थे कि उन्हें ठाकुरबारी में से बातचीत करने की आवाजें आने लगी थीं। उन्होंने ठाकुरबारी के दरवाज़े को पीटना आरंभ कर दिया। ठाकुरबारी की छत से पथराव और फायरिंग होने लगी। हरिहर काका के भाइयों ने पुलिस सहायता लेकर ठाकुरबारी से काका को बाहर निकाला। काका की हालत बिगड़ी हुई थी। उनके अनुसार महंत जी उनसे जबरदस्ती ज़मीन के कागज़ों पर अंगूठा लगवाना चाहते थे। हरिहर काका के मन में महंत जी, पुजारी और ठाकुरबारी के प्रति नफ़रत भर गई थी। हरिहर काका के भाई काका की रक्षा इस प्रकार करते थे जैसे कोई अनमोल वस्तु हो। काका को यह अनुभव हो गया था कि भाइयों द्वारा स्नेह और आदर उनकी जायदाद के कारण है। ठाकुरबारी की घटना के पश्चात् भाइयों का दबाव बढ़ने लगा था कि जायदाद उनके नाम कर दें, परंतु काका अपनी बात पर अड़े हुए थे। काका की टालने वाली बातें सुनकर तीनों भाइयों ने महंत जी वाला रास्ता अपनाया । हरिहर काका से मारपीट आरंभ कर दी। मार पड़ने पर हरिहर काका ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे। जिस कारण उनकी आवाजें घर से बाहर निकल गई । लोगों ने हरिहर काका के साथ हो रही जोर-जबरदस्ती की बात महंत जी को बताई। महंत जी ने पुलिस कार्यवाही करने में तत्परता दिखाई। पुलिस ने हरिहर को भाइयों के कब्जे से बड़ी बुरी हालत में बरामद किया। हरिहर काका का धर्म से तो पहले ही मोहभंग हो गया था लेकिन भाइयों के व्यवहार को देखकर उनका खून के रिश्ते से भी मन उचट गया था।
हरिहर काका को लेकर महंत जी और तीनों भाइयों में खींच तान आरंभ हो गई थी। दोनों गुटों को एक-दूसरे से डर लगा रहता था कि हरिहर काका को कोई भी गुट अपने पक्ष में न कर ले। इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस का पहरा लगा दिया गया था। महंत जी और तीनों भाई हरिहर काका का विश्वास फिर से जीतने में लगे हुए थे। गाँव के एक नेताजी का भी ध्यान हरिहर काका और उनकी जायदाद पर जाता है। वे हरिहर काका से ज़मीन स्कूल बनाने के बहाने से हथियाना चाहते थे लेकिन हरिहर काका अब किसी की भी बातों में नहीं आते थे। नेता जी को खाली हाथ लौटना पड़ा। गाँव वालों के पास अब उठते-बैठते एक ही चर्चा थी कि हरिहर काका अपनी ज़मीन किसके नाम लिखेंगे। गांव में खबरों का बाज़ार गर्म था कि हरिहर काका के मरने के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी दोनों गुटों में झगड़ा होगा क्योंकि दोनों के पास हरिहर काका के अंगूठा लगे कागज़ थे। हरिहर काका ने तो सबकी बातें सुननी बंद कर दी थीं। वह किसी की भी कोई बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। हरिहर काका ने अपने कामों के लिए एक नौकर रख लिया था। उन्हें तो धर्म के अधर्म स्वरूप ने और खून के रिश्तों की स्वार्थता ने गूंगा बना दिया था।

कठिन शब्दों के अर्थ

यंत्रणाओं = यातनाओं। मनःस्थिति = मानसिक दशा । आसक्ति = लगाव । सयाना = बड़ा होना। मझदार = बीच में विलीन = लुप्त होना । विकल्प = दूसरा उपाय । मन्नौती = मन्नत | ठाकुरबारी = देवस्थान। संचालन = चलाना। अखरना = बुरा लगना। नियुक्ति = लगाया गया। दवनी = अन्न निकालने की प्रक्रिया । अगउम = देवता के लिए निकाला गया अंश । घनिष्ठ = गहरा । हाज़िर = उपस्थित । प्रवचन = उपदेश । मशगूल = व्यस्त | चटोर = खाने-पीने वाले। हुमाध = हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री । तत्क्षण = उसी पल । अकारथ = बेकार। विलंब = देर । मुस्तैद = तैयार। निष्कर्ष = परिणाम। जून = समय । बय = उम्र । अप्रत्याशित = आकस्मिक। महटिया = टाल जाना। छल, बल, कल = वंचना, शक्ति, बुद्धि । आच्छादित = ढका हुआ।

गढ्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. हरिहर काका की जिंदगी से मैं बहुत गहरे में जुड़ा हूँ। अपने गाँव में जिन चंद लोगों को मैं सम्मान देता हूँ, उनमें हरिहर काका भी एक हैं। हरिहर काका के प्रति मेरी आसक्ति के अनेक व्यावहारिक और वैचारिक कारण हैं। उनमें प्रमुख कारण दो हैं। एक तो यह कि हरिहर काका मेरे पड़ोस में रहते हैं और दूसरा कारण यह कि मेरी माँ बताती है, हरिहर काका बचपन में मुझे बहुत दुलार करते थे। अपने कंधे पर बैठाकर घुमाया करते थे। एक पिता अपने बच्चे को जितना प्यार करता है, उससे कहीं ज्यादा प्यार हरिहर काका मुझे करते थे।
प्रसंग – यह गद्यावतरण लेखक ‘मिथिलेश्वर’ द्वारा रचित ‘हरिहर काका’ शीर्षक पाठ से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने अपने तथा हरिहर काका के आपसी रिश्ते का उल्लेख किया है।
व्याख्या- लेखक का कथन है कि हरिहर काका की जिंदगी से मैं बहुत गहनता से जुड़ा हुआ हूँ अर्थात् हरिहर काका तथा मेरा परस्पर अटूट संबंध है। अपने गाँव में कुछ ही लोग हैं जिनको मैं सम्मानित दृष्टि से देखता हूँ तथा उन्हें आदर देता हूँ उनमें हरिहर काका भी एक हैं। हरिहर के प्रति मेरे लगाव होने के अनेक व्यावहारिक एवं वैचारिक कारण हैं। इन कारणों में दो कारण बहुत प्रमुख हैं, जिनसे मेरी उनके प्रति आसक्ति मजबूत बनी। एक यह कि हरिहर काका बचपन में मुझे बहुत प्यार करते थे। वे मुझे अपने कंधे पर बैठाकर घुमाया- फिराया करते थे। समाज में एक पिता अपने बच्चे को जितना प्यार करता है उससे कहीं ज्यादा प्यार हरिहर काका मुझे करते थे।
विशेष – (1) लेखक तथा हरिहर काका के परस्पर संबंधों का उल्लेख है।
(2) भाषा सरल सरस है।
2. ठाकुरबारी का काम लोगों के अंदर ठाकुरजी के प्रति भक्ति-भावना पैदा करना तथा धर्म से विमुख हो रहे लोगों को रास्ते पर लाना है। ठाकुरजी में भजन-कीर्तन की आवाज़ बराबर गूंजती रहती है। गाँव जब भी बाढ़ या सूखे की चपेट में आता है, ठाकुरबारी के अहाते में तंबू लग जाता है। लोग और ठाकुरबारी के साधु-संत अखंड हरिकीर्तन शुरू कर देते हैं। इसके अतिरिक्त गाँव में किसी भी पर्व-त्योहार की शुरुआत ठाकुरवारी से ही होती है। होली में सबसे पहले गुलाल ठाकुरजी को ही चढ़ाया जाता है। दीवाली का पहला दीप ठाकुरबारी में ही जलता है।
प्रसंग – यह गद्य खंड ‘नवभारती’ में संकलित ‘हरिहर काका’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने अपने गाँव की ठाकुरबारी का उद्घाटन किया है।
व्याख्या—लेखक कहता है कि गाँव में ठाकुरबारी का कार्य लोगों के अंदर ठाकुर जी के प्रति भक्ति-भावना पैदा करना था। इसके साथ ही जो लोग धर्म से विमुख होकर भटक जाते थे उन्हें सही रास्ते पर लाना था। ठाकुरबारी में निरंतर भजन-कीर्तन होता रहता है इसीलिए वहां भजन-कीर्तन की आवाज बराबर गूंजती रहती थी। गाँव में जब भी बाढ़ अथवा सूखा पड़ा तब-तब लोगों की सहायता हेतु ठाकुरबारी की चारदीवारी में तंबू लगा दिए जाते। तभी वहां लोग तथा ठाकुरबारी के साधु-संत अखंड प्रभु का कीर्तन शुरू कर देते थे। इतना ही नहीं गांव में किसी भी पर्व-त्यौहार का प्रारंभ ठाकुरबारी से ही होता है। होली में सबसे पहले गुलाल भी ठाकुर जी को ही चढ़ाया जाता है। दीपावली का पहला दीपक भी ठाकुरबारी में ही जलता है ।
विशेष – (1) ठाकुरबारी के इतिहास का अंकन हुआ है।
(2) भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है ।
3. ठाकुरबारी के साथ अधिकांश लोगों का संबंध बहुत ही घनिष्ठ है- मन और तन दोनों स्तर पर । कृषिकार्य से अपना बचा हुआ समय वे ठाकुरबारी में ही बिताते हैं। ठाकुरबारी में साधु-संतों का प्रवचन सुन और ठाकुरजी का दर्शन कर वे अपना यह जीवन सार्थक मानने लगते हैं। उन्हें यह महसूस होता है कि ठाकुरबारी में प्रवेश करते ही वे पवित्र हो जाते हैं। पिछले सारे पाप अपने आप खत्म हो जाते हैं ।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘नवभारती’ पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘हरिहर काका’ नामक कहानी से लिया गया है। इसमें लेखक ने ठाकुरबारी से लोगों के संबंधों का चित्रण किया है।
व्याख्या – ठाकुरबारी के साथ अधिकांश लोगों का संबंध बहुत ही घनिष्ठ है। उनका यह संबंध मन और तन दोनों स्तरों पर अटूट है। यहां के लोगों का कृषि का कार्य करने के बाद जो समय बचता है, उसे ये सब ठाकुरबारी में व्यतीत करते हैं। वे यहां आकर साधु-संतों के मुख से प्रवचन सुनते हैं। ठाकुर जी का दर्शन करते हैं और इस तरह वे अपना जीवन सार्थक मानने लगते हैं। इस तरह कार्य करके उन्हें यह महसूस होता है कि ठाकुरबारी में प्रवेश करते ही वे पवित्र बन जाते हैं। उनके पिछले सभी पाप अपने आप ही खत्म हो जाते हैं।
विशेष – (1) ठाकुरबारी और लोगों के अटूट संबंधों का उल्लेख है।
(2) भाषा सरल तथा भावपूर्ण है।
4. अगर कभी हरिहर काका की तबीयत खराब हो जाती तो वह मुसीबत में पड़ जाते। इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी कोई उन्हें पानी देने वाला तक नहीं। सभी अपने कामों में मशगूल | बच्चे या तो पढ़-लिख रहे होते या धमाचौकड़ी मचाते। मर्द खेतों पर गए रहते। औरतें हाल पूछने भी नहीं आतीं। दालान के कमरे में अकेले पड़े हरिहर काका को स्वयं उठकर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करनी पड़ती। ऐसे वक्त मोहभंग की शुरुआत इन्हीं क्षणों में हुई थी। और फिर, एक दिन तो विस्फोट ही हो गया। उस दिन हरिहर काका की सहन शक्ति जवाब दे गई।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्य खंड ‘नवभारती’ में संकलित ‘हरिहर काका’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यहां लेखक ने हरिहर काका की तबीयत खराब होने पर उनके परिवार वालों की उपेक्षा का वर्णन किया है ।
व्याख्या – लेखक कहता है कि यदि कभी हरिहर काका का स्वास्थ्य खराब हो जाता तो वे भारी मुसीबत में अ जाते। उनका परिवार बहुत बड़ा था किंतु इस बड़े परिवार के रहते हुए भी उन्हें पानी पूछने वाला कोई नहीं था। घा का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहता था। घर के बच्चे या तो अपनी पढ़ाई-लिखाई करते अथवा अपने शरारतों में ही व्यस्त बने रहते । परिवार के जितने भी मर्द थे वे सभी खेतों में कार्य करने चले जाते। औरतें घर में होती थीं किंतु कोई भी काका का हाल-चाल पूछने वाला नहीं आता था। हरिहर काका दालान के कमरे में अकेले पड़े रहते थे। उन्हें स्वयं ही उठकर अपनी ज़रूरतें पूरी करनी पड़तीं। ऐसे वक्त परिवार के सदस्यों का काका के प्रति मोह भंग बढ़ गया। इसकी शुरुआत इन्हीं क्षणों में हुई। अचानक एक दिन तो स्थिति और भी भयंकर हो गई। उस दिन तो काका की सहनशक्ति भी बिल्कुल जवाब – सा दे गई।
विशेष – (1) हरिहर काका के प्रति परिवार के सदस्यों के मोहभंग का करुणामयी चित्र अंकित हुआ है।
(2) भाषा में तत्सम, तद्भव एवं उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग है।
(3) मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है।
5. हरिहर काका गरजते हुए हवेली से दालान की ओर चल पड़े – “समझ रही हो कि मुफ्त में खिलाती हो, तो अपने मन से यह बात निकाल देना । मेरे हिस्से के खेत की पैदावार इसी घर में आती है। उसमें तो मैं दो-चार नौकर रख लूँ, आराम से खाऊँ, तब भी कमी नहीं होगी । मैं अनाथ और बेसहारा नहीं हूँ। मेरे धन पर तो तुम सब मौज कर रही हो। लेकिन अब मैं तुम सबों को बताऊँगा…..आदि।” 
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यावतरण ‘नवभारती’ पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘हरिहर काका’ नामक कहानी से लिया गया है। हरिहर अपने चार भाइयों और उनके परिवारों के साथ मिलजुल कर रहते थे । हरिहर की संयुक्त परिवार में मान-सम्मान नहीं था। जबकि उसकी सारी संपत्ति का लाभ परिवार के लोग ही उठाते थे। ठीक ढंग से खाना न मिलने पर एक दिन से गुस्से से भर उठे। वह क्रोध से भरे शब्दों में अपने हृदय के उद्गारों को व्यक्त करते हेतु विवश हो गए।
व्याख्या — हरिहर काका गुस्से में भरकर गरजते हुए हवेली से दालान की ओर चल पड़े। वे ऊँचे स्वर में अपने भाइयों की पत्नियों को फटकारते हुए बोले कि वे अपने आपको समझती क्या हैं । वे समझती हैं कि वे उसे मुफ्त में खाना देती हैं। उसके भी खेतों में बराबर का हिस्सा था। उसकी उपज का हिस्सा उसी घर में आता था। उसके खेतों में इतनी कमाई अवश्य होती थी कि यदि वह दो-चार नौकर रख कर अपना जीवन चाहे तो बड़े आराम से वह ऐसा कर सकता था, वह आराम से अपना जीवन चला सकता था। वह बेसहारा नहीं था, वह अनाथ नहीं था। उसके पास खेतों से इतना मिल जाता था कि वह आराम से रह सके; खा सके और पेट भर सके। यदि परिवार की औरतें यह समझती हैं कि वे उसे रोटी दे रही थी तो वे भूल कर रही थी । अब वह उन्हें बताएगा कि उससे व्यवहार कैसे किया जाता है? वह उन्हें उनकी करनी का पाठ पढ़ेगा ।
विशेष – (1) हरिहर काका ने अपने प्रति किए जाने वाले व्यवहार का विरोध डट कर किया था और स्वयं – सशक्त माना था।
(2) भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है।
(3) कथन में आक्रोश के भाव को अच्छे और स्वाभाविक ढंग से व्यक्त किया गया है।
6. “हरिहर ! यहाँ कोई किसी का नहीं है। सब माया का बंधन है। तू तो धार्मिक प्रवृत्ति का आदमी है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम इस बंधन में कैसे फँस गए ? ईश्वर में भक्ति लगाओ। उसके सिवाय कोई तुम्हारा अपना नहीं। पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब स्वार्थ के साथी हैं। जिस दिन उन्हें लगेगा कि तुमसे उनका स्वार्थ सधने वाला नहीं, उस दिन वे तुम्हें पूछेंगे तक नहीं। इसीलिए ज्ञानी, संत, महात्मा ईश्वर के सिवाय किसी और में प्रेम नहीं लगाते। … तुम्हारे हिस्से में पंद्रह बीघे खेत हैं। उसी के चलते तुम्हारे भाई के परिवार तुम्हें पकड़े हुए हैं। तुम एक दिन कहकर तो देखो कि अपना खेत उन्हें न देकर दूसरे को लिख दोगे, वह तुमसे बोलना बंद कर देंगे। खून का रिश्ता खत्म हो जाएगा। तुम्हारे भले के लिए मैं बहुत दिनों से सोच रहा था लेकिन संकोचवश नहीं कह रहा था, आज का देता हूँ।
प्रसंग — यह गद्यावतरण श्री मिथिलेश्वर द्वारा लिखित तथा नवभारती में संकलित ‘हरिहर काका’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। ठाकुरबारी के महंत हरिहर काका को ठाकुरबारी ले आए और उन्हें अपने कमरे में बिठाकर प्यार से समझाने लगे।
व्याख्या- महंत जी हरिहर काका को समझाते हुए कहने लगे हे हरिहर! यह संसार तो क्षणभंगुर है यहां कोई किसी का नहीं है अर्थात् इस संसार में सब कुछ नश्वर एवं नाशवान है। यहां सब कुछ माया के अधीन है। सब माया से ही बंधा है। तुम तो धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हो किंतु धार्मिक प्रवृत्ति के होने के बावजूद भी आप इस माया के बंधन में कैसे फंस गए। इस बात को समझ नहीं पा रहा है। तुम यह मोह माया के बंधन को त्यागकर ईश्वर भक्ति में लीन रहो । उस प्रभु के अलावा तुम्हारा अपना कोई नहीं है। परिवार में पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सबके सब स्वार्थ के साथी हैं जिस दिन इन्हें तुमसे अपने स्वार्थ की पूर्ति नहीं होगी या जब इनका स्वार्थ साधने वाले नहीं रहे उस दिन वे तुम्हें पूछेंगे तक नहीं। इसीलिए संत, ज्ञानी, महात्मा सब रमात्मा के अलावा किसी और में प्रेम नहीं लगाते। कहने का भाव है कि यह संपूर्ण संसार स्वार्थ भावना पर टिका है। यहां हर कोई स्वार्थी है।
विशेष – (1) संसार की क्षणभंगुरता एवं नश्वरता पर प्रकाश डाला गया है।
(2) भाषा सरल एवं सरस है।
7. तुम अपने हिस्से का खेत ठाकुरजी के नाम पर लिख दो। सीधे बैकुंठ को प्राप्त करोगे। तीनों लोक में तुम्हारी कीर्ति जगमगा उठेगी | जब तक चाँद-सूरज रहेंगे, तब तक लोग तुम्हें याद करेंगे। ठाकुरजी के नाम पर जमीन लिख देना, तुम्हारे जीवन का महादान होगा। साधु-संत तुम्हारे पाँव पखारेंगे। सभी तुम्हारा यशोगान करेंगे। तुम्हारा यह जीवन सार्थक हो जाएगा। अपनी शेष जिंदगी तुम इसी ठाकुरबारी में गुज़ारना, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी। एक माँगोगे तो चार हाज़िर की जाएँगी। हम तुम्हें सिर-आँखों पर उठाकर रखेंगे। ठाकुरजी के साथ-साथ तुम्हारी आरती भी लगाएँगे। भाई का परिवार तुम्हारे लिए कुछ नहीं करेगा। पता नहीं पूर्वजन्म में तुमने कौन-सा पाप किया था कि तुम्हारी दोनों पत्नियाँ अकालमृत्यु को प्राप्त हुई। तुमने औलाद का मुँह तक नहीं देखा। अपना यह जन्म तुम अकारथ न जाने दो। ईश्वर को एक भर दोगे तो दस भर पाओगे। मैं अपने लिए तो तुमसे माँग नहीं रहा हूँ। तुम्हारा यह लोक और परलोक दोनों बन जाएँ, इसकी राह मैं तुम्हें बता रहा हूँ..।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘नवभारती’ में संकलित ‘हरिहर काका’ शीर्षक कहानी से अवतरित किया गया है। यह मिथिलेश्वकर द्वारा लिखित है। इसमें से ठाकुरबारी के महंत जी हरिहर काका को दुनियादारी समझाते हुए कह रहे हैं
व्याख्या – महंत हरिहर काका को समझाते हुए कहते हैं कि हे हरिहर ! यह संसार स्वार्थभावना पर आधारित है। यहां हर कोई स्वार्थी है। इसलिए तुम अपने हिस्से का खेत ठाकुर जी के नाम लिख दो इस पुण्य से तुम्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि आकाश-पाताल तीनों लोकों में तुम्हारा यश जगमगा उठेगा। इस सृष्टि में जब तक चाँद और सूर्य चमकते रहेंगे। तब तक लोग तुम्हें याद करेंगे। तुम अपनी ज़मीन ठाकुर जी के नाम पर लिख देना । यहीं तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा दान होगा। तब साधु और संत सभी तुम्हारे पाँव धोएंगे। संसार का प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारा गुणगान करेगा। तुम्हारा यह जीवन बिल्कुल सार्थक हो जाएगा। तुम अपनी शेष जिंदगी इसी ठाकुरबारी में व्यतीत करना। यहां तुम किसी वस्तु की कोई कमी नहीं होगी। तुम यहां एक वस्तु चाहोगे तो तुम्हें चार वस्तुएं दी जाएंगी। हम तुम्हें बहुत प्यार और आदर देंगे। ठाकुर जी के साथ-साथ तुम्हारी भी आरती उतारेंगे। तुम यह समझ लो कि भाई का परिवार तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं करेगा। पता नहीं पूर्वजन्म में तुमने कौन सा पाप किया था कि तुम्हारी दोनों पत्नियां असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गईं। तुमने औलाद का मुंह तक भी नहीं देखा। अब तुम अपने इस जीवन को व्यर्थ मत गंवाओ। यदि ईश्वर को तुम एक भर दोगे तो तुम्हें इसके बदले दस भर मिलेंगे अर्थात् तुम्हें दस गुणा प्राप्त होगा। तुम जानते हो कि मैं अपने स्वार्थ हेतु तुमसे कुछ भी नहीं मांग रहा हूँ। तुम्हारा यह लोक और परलोक दोनों अच्छे बन जाएं। मैं तो केवल इसका रास्ता तुम्हें बता रहा हूँ।
विशेष – (1) संसार की स्वार्थपरता का उद्घाटन किया गया है।
(2) भाषा सरल सरस तथा उपदेशात्मक शैली है।
(3) सिर आंखों पर रखना, एक मांगोगे चार मिलेगी मुहावरों का सटीक एवं सार्थक प्रयोग है।
8. रहस्यमय और भयवनी खबरों से गाँव का आकाश आच्छादित हो गया है। दिन-प्रतिदिन आतंक का माहौल गहराता जा रहा है। सबके मन में यह बात है कि हरिहर कोईक अमृत पीकर तो आए हैं नहीं। एक न एक दिन उन्हें मरना ही है। फिर एक भयंकर तूफान की चपेट में यह गाँव आ जाएगा। उस वक्त क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कोई छोटी लड़ाई नहीं, एक बड़ी लड़ाई है। जाने-अनजाने पूरा गाँव इसकी चपेट में आएगा ही….। इसीलिए लोगों के अंदर भय भी है और प्रतीक्षा भी एक ऐसी प्रतीक्षा जिसे झुठलाकर भी उसके आगमन को टाला नहीं जा सकता।
प्रसंग–यह गद्यावतरण श्री मिथिलेश्वर द्वारा रचित है। यह ‘हरिहर काका’ शीर्षक कहानी से अवतरित किया गया है। हरिहर काका को एक बार में चौथी खबर उनकी मृत्यु के संबंध में आती है। ऐसा काका के परिवार वाले अपने में संजो रहे हैं। इसी का चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक का कथन है कि हरिहर काका की मृत्यु के बारे में रहस्यमयी एवं भयावनी खबरों से गांव का आकाश ढक गया अर्थात् रहस्यात्मक एवं भयावनी खबरें सारे गांव में फैल गईं। दिन प्रतिदिन भय का वातावरण बढ़ने लगा। सबके मन में यह बात है कि हरिहर काका कोई अमृत तत्व थोड़े ही पीकर आए हैं जो मरेंगे नहीं। वे भी एक न एक दिन अवश्य मरेंगे ही। तब यह संपूर्ण गाँव एक भयंकर तूफान की चपेट में आ जाएगा। उस समय क्या होगा। इस बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता। यह कोई छोटी मोटी लड़ाई नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी लड़ाई है। यह पूरा गाँव जाने अनजाने पूरा गाँव इसकी चपेट में आ जाएगा। इसलिए लोगों के मन में यह भी है एक इसकी एक प्रतीक्षा भी है। यहां एक ऐसी प्रतीक्षा है जिसे सुनकर भी उसके आने को टाला नहीं जा सकता अर्थात् उसको अनदेखा नहीं कहा जा सकता।
विशेष –(1) हरिहर काका के परिवार वालों की स्वार्थभावना पर व्यंग्य किया गया है।
(2) हरिहर काका की मृत्यु के पश्चात् गहराते संकट की ओर संकेत है।
(3) तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
9. “गाँव में एक नेता जी हैं, वह न तो कोई नौकरी करते हैं और न खेती-गृहस्थी, फिर भी बारहों महीने मौजू उड़ाते रहते हैं। राजनीति की जादुई छड़ी उनके पास है।”
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ मिथिलेश्वर द्वारा रचित कहानी ‘हरिहर काका’ से ली गई हैं, जिसमें लेखक ने हरिहर काका के जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया है।
व्याख्या—इन पंक्तियों में लेखक हरिहर काका के गाँव के एक नेता जी का वर्णन करता है जिसकी नज़र भी हरिहर काका की ज़मीन पर है। ये नेताजी न कोई नौकरी, व्यवसाय अथवा खेती करते हैं फिर भी सदा मौज उड़ाते रहते हैं। उनके पास राजनीति की जादुई छड़ी है जिसके बल पर वे लोगों को बेवकूफ बनाकर मौज उड़ाते हैं।
विशेष – (1) नेताओं की राजनीति पर व्यंग्य किया गया है जो बिना कुछ करे- धरे भी सदा मौज उड़ाते हैं।
(2) भाषा सरल, सहज, तथा भावपूर्ण है।
10. “जितने मुँह, उतनी बातें। ऐसा ज़बरदस्त मामला पहले कभी नहीं मिला था, इसीलिए लोग मौन होना नहीं चाहते थे। अपने-अपने तरीके से समाधान ढूँढ़ रहे थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि कुछ घटित हो। हालाँकि इसी क्रम में बातें गर्माहट भरी भी होने लगी थीं। 
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ मिथिलेश्वर द्वारा रचित कहानी ‘हरिहर काका’ से ली गई हैं, जिसमें हरिहर काका की ज़मीन को लेकर महंत तथा परिवार जनों के मध्य चल रही खींचतान का वर्णन किया गया है।
व्याख्या—इन पंक्तियों में उस समय की जनचर्चा की ओर संकेत किया गया है जब हरिहर काका के भाई उन्हें महंत की कुटिया से अपने घर ले आते हैं, और उनकी खूब सेवा करते हैं। गाँववालों में इस संबंध में खूब बातें हो रही थीं। हर कोई अपनी-अपनी बात कर रहा था। गाँववालों को इससे पहले ऐसी कोई समस्या नहीं मिली थी कि जिस पर चर्चा की जा सकती। इसलिए कोई भी चुप नहीं बैठना चाहता था। सभी अपने-अपने ढंग से इस समस्या का हल तलाश रहे थे। उन्हें इस बात का भी इंतजार था कि देखें अब आगे क्या होता है ? इसी सिलसिले में बातों ही बातों में गर्माहट भी आने लगी थी।
विशेष – (1) हरिहर काका को ठाकुरबारी में रखने तथा बाद में उनके भाइयों द्वारा उन्हें लाने को लेकर लोगों में विभिन्न प्रकार की बातें हो रही थीं।
(2) भाषा सहज, सरल, तथा शैली वर्णनात्मक है।
11. बीमारी से उठे हरिहर काका का मन स्वादिष्ट भोजन के लिए बेचैन था। मन ही मन उन्होंने अपने भतीजे के दोस्त की सराहना की, जिसके बहाने उन्हें अच्छी चीजें खाने को मिलने वाली थीं। लेकिन बातें बिल्कुल विपरीत हुई, सबों ने खाना खा लिया, उनको कोई पूछने तक नहीं आया।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश श्री मिथिलेश्वर द्वारा रचित तथा नवभारती में संकलित ‘हरिहरकाका’ नामक कहानी से अवतरित है। यहाँ लेखक ने हरिहर काका की दयनीय दशा का चित्रण किया है।
व्याख्या-लेखक का कथन है कि हरिहर काका बीमारी से उभरने के बाद अच्छे और स्वादिष्ट भोजन के लिए अत्यधिक बेचैन थे। इसी बेचैनी के कारण उन्होंने मन ही मन अपने भतीजे के दोस्त की खूब सराहना की। यह सराहना अच्छे पकवान खाने हेतु थी। किंतु स्थिति इसके बिल्कुल उलट थी। खाने की व्यवस्था की गई। सभी ने भोजन किया। किंतु हरिहर काका को भोजन के लिए न तो कोई पूछने आया और न ही कहने आया। वे एकदम अलग-थलग पड़ गए थे ।
विशेष – (1) अपनों की स्वार्थपरता का उद्घाटन किया गया है।
(2) भाषा’ सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

J&K class 10th Hindi हरिहर काका Textbook Questions and Answers

1. कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं ?
अथवा
हरिहर काका के प्रति लेखक की आसक्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर – कथावाचक और हरिहर काका के मध्य प्यार का संबंध है। हरिहर काका के प्रति प्यार के कई वैचारिक और व्यावहारिक कारण हैं। उनमें से दो कारण प्रमुख हैं। पहला कारण यह था कि हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे। दूसरा कारण यह था कि हरिहर काका ने कथावाचक को बहुत प्यार-दुलार दिया था। हरिहर काका उसे बचपन में अपने कंधे पर बैठा कर गाँव भर में घुमाया करते थे। हरिहर काका निःसंतान थे इसलिए वे कथावाचक की एक पिता की तरह देख-भाल करते थे। जब वह बड़ा हुआ तो उसकी पहली मित्रता हरिहर काका के साथ हुई थी। हरिहर काका ने उसकी मित्रता स्वीकार करते हुए, उससे अपने मन की सारी बात की थी। वह उससे कुछ नहीं छिपाते थे। यही कारण था कि हरिहर काका और कथावाचक में उम्र का फ़ासला होते हुए भी बहुत गहरा संबंध था।
प्रश्न 2. हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगते हैं?
उत्तर – हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगते हैं क्योंकि दोनों में ही स्वार्थ और हिंसावृत्ति की भावना विद्यमान थी। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे खेत थे। उनके कोई संतान नहीं थी। इसलिए महंत और हरिहर काका के भाई उनके खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। हरिहर काका अपने जीवित रहते ऐसा नहीं करना चाहते थे इसलिए महंत और उनके भाई अपने-अपने ढंग से खेत हथियाने के लिए उन पर अत्याचार करने लगे थे। महंत जो दूसरों को मोह माया से दूर रहने तथा अपना अगला जन्म सुधारने का उपदेश देते हैं वही हरिहर काका के खेतों को अपने नाम करवाने के लिए उन्हें मारने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरी ओर खून के रिश्ते अर्थात् उनके सगे भाई भी खेतों को लेकर उनके खून के प्यासे हो जाते हैं। यही कारण था कि हरिहर काका को दोनों गुट एक ही श्रेणी के दिखाई देते हैं।
प्रश्न 3. ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो कारण हैं उनसे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है ?
उत्तर – कथावाचक के गाँव में तीन स्थान प्रमुख थे। तालाब, पुराना बरगद का वृक्ष और ठाकुरबारी। ठाकुरबारी में सुबह शाम ठाकुर जी की पूजा होती थी। गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे लोग अपने हर कार्य की छोटी-बड़ी सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे। जिसको जैसी सफलता मिलती थी वह वैसा ही चढ़ावा ठाकुर जी को चढ़ाता था। यह चढ़ावा रुपए, जेवर और अनाज के रूप में होता था। यदि किसी को अपने कार्य में बहुत अधिक खुशी मिलती थी तो वह अपनी जमीन का छोटा-सा भाग ठाकुर जी के नाम लिख देता था। इस प्रकार लोगों का ठाकुर जी के प्रति अंध-विश्वास का पता चलता था। लोगों के इस विश्वास के कारण ही ठाकुर जी का विकास, गाँव के विकास की अपेक्षा हजार गुणा हो गया था।
प्रश्न 4. अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ कैसे रखते हैं ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हरिहर काका कथावाचक के पड़ोस में रहते थे। हरिहर काका समझदार व्यक्ति थे। उनके परिवार में उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का अपना परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं लेकिन दोनों पत्नियों से उनके एक भी संतान नहीं थी। दोनों पत्नियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। लोगों ने उन्हें तीसरी शादी के लिए कहा, उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण इन्कार कर दिया था। इस प्रकार उनके हिस्से के खेतों पर अधिकार तीनों भाइयों का था। आरंभ में हरिहर काका की घर में उचित देखभाल हुई। भाइयों ने भी काका की देखभाल की ज़िम्मेदारी अपनी पत्नियों पर डाल दी थी। उनकी पत्नियों ने बाद में हरिहर काका की देखभाल में अनदेखी आरंभ कर दी। हरिहर काका को बहुत दुःख हुआ। उनके दुःखी और कोमल हृदय का लाभ ठाकुरबारी के महंत जी ने उठाना आरंभ कर दिया। उन्होंने काका को अपना अलग जन्म सुधारने के लिए अपने खेत ठाकुरबारी के नाम लिखने के लिए कहने लगे। उधर भाइयों को जब इस बात की भनक लगी तो उन्होंने भी काका पर दबाव डालना आरंभ कर दिया। हरिहर काका स्वभाव से सीधे व्यक्ति थे परंतु उन्हें दुनिया का बहुत ज्ञान था। वे अपने जीवित रहते हुए अपने खेत किसी के भी नाम नहीं करना चाहते थे। उन्होंने ऐसे बहुत से लोगों को देखा था जिन्होंने अपना सब कुछ जीवित रहते अपने उत्तराधिकारियों के नाम लिख दिया और बाद में पछताना पड़ा। अंत में उन लोगों को कोई नहीं पूछता इसलिए वे जीवित रहते अपने खेत किसी के भी नाम नहीं लिखना चाहते थे। इससे लगता है कि अनपढ़ होते हुए भी उन्हें दुनिया का बेहतर ज्ञान था।
प्रश्न 5. हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले कौन थे ? उन्होंने उनके साथ कैसा बर्ताव किया ?
उत्तर – हरिहर को जबरदस्ती उठाकर ले जाने वाले ठाकुरबारी के महंत जी के आदमी थे। महंत जी हरिहर काका के खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। जब उन्होंने देखा कि हरिहर काका सीधे ढंग से खेत उनके नाम नहीं लिखना चाहते, उस समय महंत जी ने हरिहर काका को घर से उठवा लिया। महंत जी ने हरिहर काका को ठाकुरबारी के एक कमरे में बंद कर दिया था। बंद कमरे में हरिहर काका को मारा-पीटा गया। उनसे कोरे काग़ज़ों पर जबरदस्ती अंगूठे का निशान लगवा लिए गए। बाद में उनके हाथ-पैरों को कपड़े से बांध दिया और मुँह में कपड़ा ठूंस कर कमरे में बंद कर दिया।
प्रश्न 6. हरिहर काका के मामले में गाँव वालों की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे ?
उत्तर – हरिहर काका को लेकर गाँव वाले दो गुटों में बंट गए थे। एक गुट महंत जी के पक्ष में था और दूसरा गुट उनके भाइयों के पक्ष में था। महंत जी के पक्ष के लोग धार्मिक संस्कारों के लोग थे। उनकी राय थी कि हरिहर काका को अपनी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनकी कीर्ति अचल बनी रहेगी। यह वे लोग थे जिनका पेट ठाकुर जी को लगाए भोग अर्थात् हलवा-पूड़ी से भरता था उन्हें सारा दिन कुछ करने की जरूरत नहीं थी। दूसरे गुट में गाँव के प्रगतिशील विचारों वाले लोग अर्थात् किसान थे। ऐसे लोगों की स्थिति हरिहर काका जैसी थी। वे खून के रिश्तों में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति का गुजारा अपने परिवार से ही होता है। इस प्रकार हरिहर काका के मामले को लेकर गाँव वाले अपनी-अपनी राय दे रहे थे।
प्रश्न 7. कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, “अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।”
उत्तर – हरिहर काका के चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियां कीं लेकिन उनके संतान नहीं हुई। दोनों पत्नियों के मरने के बाद हरिहर काका ने अपना सारा समय भजन-कीर्तन और भाइयों के परिवार में बिताना आरंभ कर दिया। शुरू-शुरू में उनका अपने भाइयों के परिवार में बहुत आदर सत्कार होता था। लेकिन बाद में उनको रूखा-सूखा खाने को देते थे या फिर वह भी देना भूल जाते थे। जिस दिन हरिहर काका ने अपने खेतों पर अपना अधिकार जमाया उसी दिन से फिर से तीनों भाई और महंत जी उनका भरपूर ख्याल रखने लगे थे। हरिहर काका अनपढ़ होते हुए भी समझ गए थे कि यह सारा आदर सत्कार उनके खेतों के कारण है। इसलिए उन्होंने अपने जीवित रहते अपने खेत किसी एक के नाम करने से मना कर दिया। उसी दिन से भाई और महंत जी उनके दुश्मन हो गए थे। हरिहर काका उन लोगों से भय मुक्त हो गए थे क्योंकि वह अपनी कीमत जान चुके थे। इसलिए वह अपने उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाना चाहते थे। जब तक खेत उनके पास हैं तब तक सभी उनके इर्द-गिर्द घूम खेतों का रहे हैं, बाद में उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है। इस सत्य को उन्होंने जान लिया था। इसलिए वह अपने भाइयों द्वारा अर्थात् उन्होंने जीवित रहते मृत्यु पर विजय प्राप्त कर मारने की धमकी देने से भी नहीं डरे ली थी।
प्रश्न 8. समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है ? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – आज का समाज भौतिकवाद की ओर अग्रसर हो रहा है। इस समाज में मानवीय रिश्तों का महत्त्व कम होता जा रहा है। सभी रिश्तों में स्वार्थ दिखाई देता है। आजकल घरों में बड़े आदमी का महत्त्व कम होता जा रहा है। वे घर में सजावटी वस्तु बनकर रह गए हैं। सभी लोग आज की भागती-दौड़ती जिंदगी के साथ कदम मिलाने के लिए भाग रहे हैं जिससे घरों में किसी के पास भी एक-दूसरे का सुख-दुःख जानने का समय नहीं रह गया गया है। भौतिकवादी और दिखावापसंद जीवन ने घर के बुजुर्गों और बच्चों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है। इससे आज की पीढ़ी मानवीय रिश्तों को समझने में नाकाम हो गई है। समाज में रिश्तों की अहमियत में कमी आने से मनुष्य ने अपना स्वाभाविक स्वरूप खो दिया है।
प्रश्न 9. हरिहर काका को किन यातनाओं का सामना करना पड़ रहा था ?
उत्तर – हरिहर काका ने जिस दिन से अपने अधिकार के लिए घर में आवाज़ उठाई थी उसी दिन उनके लिए यातनाओं का दौर शुरू हो गया था। उनके खेत उनकी जान के दुश्मन बन गए थे । हरिहर काका के पंद्रह बीघे खेत के लिए ठाकुरबारी के महंत और उनके भाइयों ने उनके साथ मार-पीट की। दोनों ने खेतों पर अपना-अपना अधिकार जमाने के लिए कोरे काग़ज़ों पर हरिहर काका के अंगूठे के निशान ले लिए थे। हरिहर काका ने जायदाद के लिए ठाकुरबारी के महंत और अपने घर में अपने भाइयों का जो रूप देखा था उससे उनका धर्म और खून के रिश्तों से विश्वास उठ ७ गया था। वे घर और बाहर अर्थात् सब लोगों से कट गए थे। उनके पास सब कुछ था परंतु मन की शांति खो चुकी थी। उन्होंने कभी न समाप्त होने वाली चुप्पी साध ली थी । वह अकेले में बैठे खुली आँखों आकाश की ओर देखते रहते थे। ऐसा लगता था जैसे कि भगवान् से अपनी समस्या का हल पूछ रहे हों। वह शारीरिक से अधिक मानसिक यातना से गुज़र रहे थे।
प्रश्न 10. हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – हरिहर काका का जिस प्रकार से धर्म और घर अर्थात् खून के रिश्तों से विश्वास उठ चुका था, उससे वे मानसिक रूप से बीमार हो गये थे। वे बिल्कुल चुप रहते थे। किसी की भी कोई बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। यदि हरिहर काका के गाँव में मीडिया की पहुँच होती तो उनकी स्थिति भिन्न होती। मीडिया उनकी स्थिति तथा उनके साथ हुए दुर्व्यवहार की बात को दुनिया के सामने लाती। लोगों के सामने धर्म के नाम पर संपत्ति इकट्ठा करने वाले महंतों का असली चेहरा आता। खून के रिश्ते किस प्रकार निजी स्वार्थ के कारण अपने घर के लोगों की जान के प्यासे हो जाते हैं। इन बातों को दुनिया से अवगत कराती । हरिहर काका को मीडिया ठीक प्रकार से न्याय दिलवाती । उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने की व्यवस्था उपलब्ध करवाने में मदद करती। अब जिस प्रकार के दबाव में वे जी रहे हैं वैसी स्थिति मीडिया की सहायता मिलने के बाद नहीं होती।

J&K class 10th Hindi हरिहर काका Important Questions and Answers

प्रश्न 1. ‘हरिहर काका’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
अथवा
‘हरिहर काका’ कहानी का मुख्य संदेश क्या है ? 
उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी के कथाकार मिथिलेश्वर हैं। हरिहर काका कथाकार के पड़ोस में रहते थे। कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से हमारे पारिवारिक जीवन में ही नहीं अपितु हमारे आस्था के प्रतीक धर्मस्थानों पर व्याप्त होती जा रही स्वार्थ लिप्सा को उजागर किया है। हरिहर काका एक संयुक्त परिवार में रहते थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। उनके कोई संतान नहीं थी। इसलिए उनकी जायदाद के हकदार उनके परिवार के सदस्य थे परंतु घर में कुछ इस प्रकार की घटनाएँ घटती है जिसका लाभ ठाकुरबारी के महंत जी उठाना चाहते हैं। महंत हरिहर काका को लोक-परलोक दोनों सुधारने के लिए अपनी जमीन ठाकुर जी के नाम लिखने के लिए कहते हैं। य बात भाइयों को पता चलती है। वे भी हरिहर काका से खून के रिश्तों का दिखावा दिखाकर जायदाद उनके नाम करने को कहते हैं। इस खींचतान में हरिहर काका के सामने धर्म और परिवार दोनों का असली चेहरा आता है। उन्हें धर्म नाम लेकर लोगों को फंसाने वाले महंत और अपने परिवार से घृणा हो जाती है। यह नफ़रत उन्हें कभी न खत्म होने वाली चुप्पी साध लेने को मजबूर कर देती है।
इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने घर और धर्म का असली चेहरा लोगों के सामने रखा है। घर एक ऐसा स्थान होता है जहां लोग अपने सुख-दुःख, खुशी-गम आपस में बाँटते हैं। धर्मस्थल वह स्थान होते हैं जो घर की नींव मजबूत करने में घर के सदस्य का साथ देते हैं, लोगों में अपनेपन और सहृदयता के संस्कार देते हैं। परंतु स्वार्थलिप्सा और हिंसावृत्ति के चलते घर और धर्मस्थल दोनों ही अराजकता, अनाचार और अन्याय पथ पर अग्रसर हैं। इसी उद्देश्य को कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से स्पष्ट किया है।
प्रश्न 2. ‘हरिहर काका’ का चरित्र चित्रण कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी के लेखक मिथिलेश्वर हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र हरिहर काका है। हरिहर काका का चित्रांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-
  1. परिचय – ‘हरिहर काका’ लेखक के पड़ोस में रहते थे। वे एक संयुक्त परिवार के सदस्य थे। उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का भरा-पूरा परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं परंतु उनके एक भी संतान नहीं हुई। उनके परिवार के पास साठ बीघे खेत थे ।
  2. धार्मिक विचारों वाले – हरिहर काका धार्मिक विचारों वाले थे। वह अपना कृषि से बचा हुआ समय गाँव की ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। वह वहाँ भजन-कीर्तन में अपना ध्यान लगाते थे।
  3. संस्कारशील – हरिहर काका संस्कारों को मानने वाले व्यक्ति थे। दोनों पत्नियों के मरने के बाद लोगों ने उन्हें तीसरी शादी करने के लिए कहा परंतु उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र तथा धार्मिक संस्कारों के कारण शादी से इन्कार कर दिया।
  4. सहनशील – हरिहर काका सहनशील व्यक्ति थे । उनको अपने परिवार में उचित सम्मान नहीं मिलता था। अपने परिवार की बेरुखी अपना समझकर सहन करते हैं।
  5. ममतालु – हरिहर काका का स्वभाव दूसरों पर प्यार लुटाने वाला था। उन्होंने लेखक को बचपन में एक पिता की तरह दुलार दिया था। वह अपने भाइयों और उनके परिवार से भी बहुत प्यार करते थे इसलिए उन सब की बेरुखी चुपचाप सहन कर लेते थे।
  6. जागरूक विचारों वाले – हरिहर काका अनपढ़ व्यक्ति थे परंतु अपने अधिकारों के प्रति सचेत थे। जब उन्हें घर में उचित सम्मान मिलना बंद हो गया था तब उन्होंने अपने खेतों पर अपना अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। ये अपने जीवित रहते अपना उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाना चाहते थे। उन्होंने बहुत दुनिया देखी थी। उनके अनुसार यदि जीवित रहते अपनी जायदाद दूसरों के नाम लिख दो तो बाद में उन्हें कोई नहीं पूछता। इससे पता चलता है कि हरिहर काका अपने अधिकारों के प्रति सचेत थे।
    हरिहर काका अनपढ़ थे परंतु उन्हें दुनियाधारी का पूरा ज्ञान था। वे सहनशील, ममतालु और धार्मिक विचारों व्यक्ति थे ।
प्रश्न 3. ठाकुरबारी का गाँव में मुख्य काम क्या था ?
उत्तर – ठाकुरबारी का मुख्य काम गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति भक्ति भावना पैदा करना था। जो लोग धर्म – के मार्ग से विमुख हो गए थे, उन्हें सही मार्ग पर जाना भी ठाकुरबारी का प्रमुख कार्य था। गाँव में जब भी बाढ़ या सूखा पड़ता था, उस समय ठाकुरबारी के आँगन में तंबू लगाकर सुबह-शाम भजन कीर्तन जोर-जोर से शुरू हो जाता था। घरों में सभी शुभ कार्य ठाकुरबारी के महंत द्वारा आरंभ किए जाते थे।
प्रश्न 4. ठाकुरबारी के महंत और पुजारी की नियुक्ति कौन करता था ?
उत्तर – ठाकुरबारी के स्वरूप का विकास होने पर धार्मिक लोगों ने मिल कर समिति बना ली थी। यह समिति हर तीन साल बाद महंत और पुजारी की नियुक्ति करती थी।
प्रश्न 5. हरिहर काका के परिवार में कौन-कौन थे ? उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी ? 
उत्तर – हरिहर काका का परिवार संयुक्त परिवार था । वे चार भाई थे । हरिहर काका ने दो शादियां कीं परंतु उनके एक संतान नहीं थी। दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। तीनों भाइयों के पास बच्चे थे। दो भाइयों ने अपने लड़कों की शादी भी कर रखी थी। उन लड़कों में एक लड़का शहर में क्लर्की का काम करता था। हरिहर काका के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उनके परिवार के पास साठ बीघे ज़मीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह बीघे खेत थे।
प्रश्न 6. किस घटना ने हरिहर काका को क्रोधित किया ?
उत्तर – हरिहर काका अपनी दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत अपने भाइयों के पास रहने लगे थे। भाइयों ने भी अपने परिवार की औरतों को हरिहर काका की उचित देखभाल करने के लिए कह रखा था। कुछ दिन उनकी उचित देखभाल हुई बाद में घर में उनको अनदेखा किया जाने लगा। खाने में भी रूखा-सूखा भोजन दिया जाता था। बीमार पड़ने पर कोई उन्हें पूछने भी नहीं आता था। एक दिन उनके शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाज़ी में घर में अच्छा खाना बना था। उस दिन हरिहर काका अच्छा खाना खाने की सोच रहे थे। लेकिन उन्हें देर तक कोई पूछने भी नहीं आया । हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना मांगने लगे। उनके खाना मांगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह रूखा-सूखा खाना थाली में रख दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आंगन में फेंक दी।
प्रश्न 7. हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ कौन उठाना चाहता था और उसने हरिहर काका को क्या समझाया ?
उत्तर – हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ महंत जी उठाना चाहते थे। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे ज़मीन थी। उस ज़मीन को महंत ठाकुरबारी की ज़मीन के साथ मिलाना चाहते थे। इसलिए वे हरिहर काका को बहला-फुसला कर ठाकुरबारी में ले गए। उन्होंने हरिहर काका को मोह-माया के बंधन से दूर रहने का उपदेश दिया। वे हरिहर काका को अपने खेत ठाकुर जी के नाम लिखने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से हरिहर काका के लोकपरलोक दोनों सुधर जाएंगे। इस जन्म में उन्हें संतान सुख नहीं मिला परंतु वह अपना खेत ईश्वर के नाम लिख देंगे तो अगले जन्म में उन्हें ईश्वर सभी प्रकार के सुखों से भर देगा। इस प्रकार की बातें करके महंत जी हरिहर काका को अपने जाल में फंसाने में लगे थे।
प्रश्न 8. ‘‘जिनका धन वह रहे उपास, खाने वाले करें विलास।” कथावाचक ने यह शब्द किसके लिए और क्यों कहे हैं ?
उत्तर – कथावाचक ने यह शब्द हरिहर काका तथा उनकी सुरक्षा के लिए आए पुलिस कर्मियों के लिए कहे थे । हरिहर काका के खेतों को लेकर गांव में चर्चाओं का वातावरण गर्म था। महंत जी और उनके तीनों भाई खेतों को अपने नाम करवाना चाहते थे। इसलिए दोनों ही उन पर अत्याचार करने लगे थे। उसे उन लोगों से बचाने के लिए पुलिस वालों ने उसकी सुरक्षा का प्रबंध कर दिया था। हरिहर काका अपने भाइयों और महंत जी का घिनौना रूप देखकर हैरानी और दु:ख में थे। उन्होंने चुप्पी धारण कर ली थी। वे किसी से कुछ नहीं कहते थे। अब वे भाइयों से अलग हो चुके थे। उन्होंने अपने कार्यों के लिए एक नौकर रख लिया था। अब उन्हें खाने की इच्छा नहीं रह ह गई थी। जब वे खाना चाहते थे तब उन्हें खाने के लिए मिलता ही नहीं था। खाने के नाम पर ही सब झगड़ा हुआ था। अब उनके खर्चे पर पुलिस वाले, नौकर आदि खाकर आनंद मना रहे हैं। इसलिए कथाकार ने ये शब्द हरिहर काका के न खा सकने तथा अन्य लोगों के उनके पैसे पर मौज उड़ाने को लेकर कहे हैं।
प्रश्न 9. हरिहर काका के साथ उनके सगे भाइयों का व्यवहार क्यों बदल गया ?
अथवा
समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है ‘हरिहर काका’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।
उत्तर – आज के युग में सब रिश्ते स्वार्थ और लालच के रह गए हैं। हर कोई दूसरों को लूट कर अपने सुख इकट्ठे करेना चाहता है। धन के लालच में सगे भाई-बहन भी एक-दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं। हरिहर काका के परिवार के पास साठ बीघे खेत थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका निस्संतान थे। इसलिए उनके खेतों की देखभाल और लाभ उनके भाइयों को मिलता था। जिसके बदले में उनकी उचित देखभाल होती थी परंतु थोड़े दिनों बाद वे परिवार में फालतू वस्तु बनकर रह गए थे। इस पर उन्होंने अपने हिस्से के खेतों पर अपना अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। उनके तीनों भाइयों का व्यवहार बदल गया। पहले तो प्यार और आदर का दिखावा दिखाकर उन्हें अपने खेत उन लोगों के नाम लिखने के लिए कहा। हरिहर काका ने दुनिया देखी थी वह समझ गए थे कि यदि जीवित रहते खेत उन लोगों के नाम लिख दिये तो वे लोग उन्हें पूछने तक नहीं आएंगे। उनकी इस सोच ने उनके भाइयों के व्यवहार को बदल दिया। वे तीनों उन्हें सताने लगे थे। उनसे मार-पीट करते थे तथा उन्हें जान से मार देने की धमकी देने लगे थे। हरिहर काका का खेतों के लिए भाइयों का बदला व्यवहार देख कर समाज के हर रिश्ते से उनका विश्वास उठ गया था।
प्रश्न 10. हरिहर काका के न रहने पर उनकी जमीन पर किसके अधिकार की संभावना है ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हरिहर काका के खेतों पर अधिकार जमाने के लिए महंत जी और उनके भाइयों ने उनसे मार-पीट करके कोरे काग़ज़ों पर उनके अँगूठे के निशान ले लिए थे। दोनों ही वर्ग उनकी ज़मीन के उत्तराधिकारी बन गए थे। परंतु हरिहर काका के न रहने पर उनकी ज़मीन पर अधिकार करने की संभावना महंत जी की अधिक है क्योंकि उनके साथ धर्म का नाम है और वे जानते हैं कि धर्म के नाम पर कैसे लोगों को उकसाया जाता है। कैसे दंगा-फसाद खड़ा किया जा सकता है ? उनके साथ गाँव के अँधविश्वासी लोग अधिक हैं। वे लोग जो अपने हर छोटे-बड़े कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देकर चढ़ावा चढ़ाते रहते हैं तो उन लोगों को ठाकुर जी का नाम लेकर अपने अधिकार में करना महंत जी के लिए आसान कार्य था । इसमें हरिहर काका के भाई कुछ भी नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 11. यदि आपके आस-पास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसे किस तरह मदद पहुँचाएंगे ?
उत्तर – यदि हमारे घर के आस-पास हरिहर काका जैसी स्थिति वाले बुजुर्ग होंगे तो हम उनकी पूरी मदद करेंगे। पहले, उनके इस फैसले का समर्थन करेंगे कि जीवित रहते अपने खेतों पर अपना अधिकार किसी और के नाम नहीं लिखेंगे। आज के भौतिकवाद की ओर बढ़ते समाज में बुजुर्गों की स्थिति घर में पहले जैसी नहीं रह गई है। इसलिए सरकार और अन्य कई सामाजिक संस्थाओं ने कई ऐसे वृद्धाश्रम खोल दिए हैं, जहां घर में अपेक्षित लोग वहाँ आराम से रह सकें। ऐसे ही वृद्धाश्रम में उनके रहने का उचित प्रबंध करेंगे। जहाँ पर वे अपनी उम्र के दूसरे लोगों के बीच अपने को सुरक्षित अनुभव करेंगे। वहाँ उनके खेतों को हड़पने के लिए कोई नहीं होगा।
प्रश्न 12. ठाकुर जी के नाम ज़मीन वसीयत करने की बात कहने में महंत जी ने हरिहर काका को क्या-क्या लालच दिए ?
उत्तर – ठाकुर जी के नाम ज़मीन वसीयत करने की बात कहते हुए महंत जी ने हरिहर काका को कहा कि ऐसा करने से वे समस्त माया-मोह के बंधनों से मुक्त हो जाएंगे, वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, उन्हें ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। इससे उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होगी तथा तीनों लोकों में उनकी कीर्ति जगमगा उठेगी। लोग उन्हें सदा स्मरण करते रहेंगे। तुम आराम से ठाकुरबारी में अपना शेष जीवन व्यतीत करना, जहां तुम्हें सब कुछ मिलता रहेगा।
प्रश्न 13. भाइयों की किन बातों से हरिहर काका का दिल पसीजा और वे घर लौट आए ?
उत्तर – हरिहर काका ठाकुरबारी से घर नहीं आना चाहते थे क्योंकि वहां उन्हें सब प्रकार का आराम मिल रहा था। जब उनके तीनों भाई बार-बार उन्हें मनाने ठाकुरबारी आने लगे तथा उनके पांव पकड़ कर रोने लगे और अपनी पलियों की ग़लतियों के लिए माफ़ी मांगने लगे तो उनका दिल पसीज गया। उनके भाइयों ने उनकी पत्नियों को दंड देने तथा के रिश्ते की दुहाई भी हरिहर काका को दी तो वे पुनः वापस घर लौट आए।
प्रश्न 14. ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए क्या-क्या व्यवस्था की गई ?
उत्तर – ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए दो सेवकों ने एक साफ़-सुथरे कमरे में पलंग पर बिस्तर लगा कर उन्हें वहां लिटा दिया। उनके लिए विशेष प्रकार के भोजन की व्यवस्था की गई। उन्हें घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू छेने की तरकारी, दही, खीर आदि खाने के लिए दी गई।
प्रश्न 15. ठाकुरबारी की देखभाल की क्या व्यवस्था थी ?
उत्तर – ठाकुरबारी की देखभाल के लिए धार्मिक लोगों की एक समिति है, जो ठाकुरबारी के संचालन के लिए प्रत्येक तीन वर्ष पर एक महंत और एक पुजारी की नियुक्ति करती है। ठाकुरबारी का खर्चा चंदे, दान, चढ़ावा तथा बीस बीघे खेतों की फ़सल की आय से चलता है।
प्रश्न 16. तीसरी शादी करने से हरिहर काका ने क्यों मना कर दिया ?
उत्तर – हरिहर काका ने अपनी ढलती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण तीसरी शादी करने से इनकार कर दिया था । औलाद के लिए उन्होंने दो शादियां की थीं, परंतु जब दोनों ही बिना बच्चा जन्मे स्वर्ग सिधार गई तो वे विरक्त हो गए थे और तीसरी शादी नहीं करना चाहते थे।
प्रश्न 17. हरिहर काका ने खाने की थाली बीच आंगन में क्यों फेंक दी ?
उत्तर – एक दिन हरिहर काका के शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाज़ी में अच्छा खाना बना था । उस दिन हरिहर का अच्छा खाना खाने की सोच रहे थे। लेकिन उन्हें देर तक कोई पूछने भी नहीं आया। हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना मांगने लगे। उनके खाना मांगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह रूखा-सूखा खाना थाली में रख दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आंगन में फेंक दी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक अपने गाँव में कितने लोगों को सम्मान देते हैं ?
उत्तर – चंद लोगों को ।
प्रश्न 2. लेखक की हरिहर काका के प्रति आसक्ति के क्या कारण हैं ?
उत्तर – अनेक व्यावहारिक एवं वैचारिक कारण हैं ।
प्रश्न 3. ‘हरिहर काका’ किसकी रचना है ?
उत्तर – मिथिलेश्वर की ।
प्रश्न 4. लेखक के गाँव की आबादी कितनी है?
उत्तर – ढाई तीन हज़ार
प्रश्न 5. ठाकुरबारी का प्रमुख कार्य क्या था ?
उत्तर – ठाकुर जी के प्रति भक्ति भावना पैदा करना तथा धर्म से विमुख लोगों को रास्ते पर लाना ।
प्रश्न 6. हरिहर काका कितने भाई हैं ?
उत्तर – चार ।
प्रश्न 7. हरिहर काका किस प्रवृत्ति के आदमी हैं ?
उत्तर – धार्मिक प्रवृत्ति ।
प्रश्न 8. महंत जी किस प्रकृति के आदमी हैं ?
उत्तर – लड़ाकू और दबंग ।
प्रश्न 9. कैसी खबरों से गाँव का आकाश आशांकित हो उठा था ?
उत्तर – रहस्यात्मक एवं भयानक खबरों से ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. लेखक का गाँव किसके पास है?
(क) हसनपुर बाजार के बस स्टैंड के पास
(ख) हसनबाजार बस स्टैंड के पास
(ग) हसनगढ़ी के बस स्टैंड के पास
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (ख) हसनबाज़ार बस स्टैंड के पास
2. गांव में प्रमुख स्थानों की संख्या थी –
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर – (ग) तीन ।
3. गांव में तीन प्रमुख स्थान हैं-
(क) बरगद का पेड़, पीपल का पेड़, तालाब
(ख) तालाब, पीपल का पेड़, नदी
(ग) बरगद का वृक्ष तालाब, ठाकुर जी का मंदिर
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (ग) बरगद का वृक्ष, तालाब, ठाकुर जी का मंदिर।
4. गांव में किसकी स्थापना हुई थी ?
(क) ठाकुर राज
(ख) ठाकुरबारी
(ग) ठाकुर दरबार
(घ) ठाकुर प्रसाद ।
उत्तर – (ख) ठाकुरबारी ।
5. ठाकुरवारी के नाम पर कितने बीघे खेत हैं ?
(क) दस
(ख) बीस
(ग) तीस
(घ) चालीस।
उत्तर – (ख) बीस ।
6. दीवाली का पहला दीप कहां जलता है ?
(क) घर में
(ख) आंगन में
(ग) ठाकुरबारी में
(घ) ठाकुर मंदिर में ।
उत्तर – (ग) ठाकुरबारी में ।
7. होली के पावन पर्व पर ठाकुर जी को चढ़ाया जाता था- 
(क) प्रसाद
(ख) अर्घ्य
(ग) गुलाल
(घ) रंग।
उत्तर – (ग) गुलाल ।
8. गाँव में पर्व त्योहार की शुरुआत होती है।
(क) ठाकुरबारी से
(ख) ठाकुर दरबार से
(ग) ठाकुर मंदिर से
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (क) ठाकुरबारी से।
9. हरिहर काका की कितनी शादियां हुई ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर – ( ख ) दो।
10. हरिहर काका की कितनी संतानें थीं?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) कोई नहीं।
उत्तर – (घ) कोई नहीं।

Follow on Facebook page – Click Here

Google News join in – Click Here

Read More Asia News – Click Here

Read More Sports News – Click Here

Read More Crypto News – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *