JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 हमारा प्यारा भारतवर्ष

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 हमारा प्यारा भारतवर्ष

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 4 हमारा प्यारा भारतवर्ष (जयशंकर प्रसाद)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

कवि-परिचय

श्री जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य धारा के एक महान् कलाकार माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1889 ई० में काशी के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इन्होंने अपने शिक्षा काल में भारत की कई भाषाओं का अध्ययन किया था। इसलिए इनके काव्य में भाषा संबंधी सभी गुण पाए जाते हैं। इन्होंने प्राचीनता तथा नवीनता के समन्वय के आधार पर ही अपने साहित्य की रचना की । यद्यपि हिंदी जगत् में इनकी कहानियां तथा उपन्यास भी बहुत लोकप्रिय रहे हैं फिर भी इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार इन का काव्य है। सन् 1937 ई० में इनका देहांत हो गया था।
रचनाएं–कामायनी इनका एक सफल आधुनिक हिंदी महाकाव्य है। इसके अतिरिक्त इन्होंने आंसू, लहर, झरना, प्रेम पथिक आदि कई कविता संग्रह लिखे हैं। चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी इनके प्रसिद्ध नाटक हैं। नाटकों के अतिरिक्त इन्होंने कंकाल, तितली तथा इरावती (अधूरा) उपन्यासों की रचना भी की है। इन्द्रजाल और आकाशदीप इनके कहानी संग्रह हैं । प्रसाद जी प्रमुख रूप से छायावाद के कवि हैं। छायावाद में प्रकृति को चेतन मान कर उसका अनेक रूपों में चित्रण किया जाता है। ‘इनकी सभी काव्य रचनाओं में प्रकृति के मुग्धकारी चित्र मिलते हैं। इनके नाटकों में देश-प्रेम की गूंज है। प्रसाद जी की भारतीय संस्कृति में अटूट श्रद्धा थी। ‘कामायनी’ महाकाव्य की रचना पर इन्हें ‘मंगलाप्रसाद’ पुरस्कार प्रदान किया गया था। इनकी प्रारंभिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं परंतु बाद में उन्होंने खड़ी बोली में रचनाएँ कीं।

कविता का सार/प्रतिपाढ्य

हमारा प्यारा भारतवर्ष शीर्षक कविता प्रसाद जी के ‘स्कंदगुप्त’ नामक नाटक से संकलित है। इस कविता में कवि ने भारत की प्राचीन संस्कृति एवं गौरवशाली इतिहास का गुण-गान किया है। इसमें भारतीयों की ज्ञानशीलता, निर्भीकता, साहसिकता तथा त्याग प्रवृत्ति पर गर्व प्रकट किया गया है। उन्हीं की संतान होने के कारण वर्तमान पीढ़ी को अपने प्यारे देश पर सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा दी है।
भारतवासियों ने समस्त विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। उन्होंने संसार में अज्ञानता के अंधकार को नष्ट किया है। ललित-कलाओं का विकास भी यहीं हुआ। हमारी सभ्यता त्याग एवं बलिदान पर टिकी है। हमारा देश सदैव अहिंसा और शांति का पुजारी रहा है। हमने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। भारत सदा से ही आर्यों की जन्म भूमि रहा है, वे कहीं बाहर से नहीं आए। हम कभी किसी को विपन्न दशा में नहीं देख सके। हमारा चित्रण अत्यंत गौरवशाली था। हम उन्हीं दिव्य आर्यों की संतान हैं। हम अपने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने का संकल्प रखते हैं।

पढ्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार,
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार ।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक,
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
शब्दार्थ- उपहार = भेंट । अभिनंदन = स्वागत। हीरक हार = हीरों की माला । आलोक = प्रकाश । व्योम-तमपुंज = आकाश तक छाया अंधकार अखिल = संपूर्ण । संसृति = संसार । अशोक = शोक रहित।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश प्रसाद जी द्वारा रचित कविता ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ से अवतरित किया गया है। इस कविता में कवि भारत की प्राकृतिक सुंदरता एवं संस्कृति के उद्भव पर प्रकाश डाल रहा है।
व्याख्या – कवि के अनुसार सूर्य सबसे पहले अपनी किरणों की भेंट हिमालय के आँगन को देता है, ऊषा हँसकर भारत का अभिनंदन करती है और उसे हीरों का हार पहनाती है। सबसे पहले हम भारतवासी ही जागे अर्थात् सबसे पहले ज्ञान का उदय भारत देश में हुआ। इसके बाद विश्व को जगाने लगे अर्थात् हमने इस ज्ञान का प्रसार किया। इस प्रकार सारे संसार में ज्ञान का प्रकाश फैल गया। आकाश तक छाया हुआ अज्ञान का अंधकार नष्ट हो गया। सारी सृष्टि शोक रहित हो गई।
भाव- संसार में सर्वप्रथम भारत में ही ज्ञान का सूर्य चमका था। यहीं से दूसरे देशों में ज्ञान की रश्मियां पहुँचीं थी। भारतीय संस्कृति सब से प्राचीन है और इसे विश्व की संस्कृति की जननी कहा जाता है। भारत में वेदों का ज्ञान अवतरित हुआ था!
विशेष – (1) कविता में छायावाद की झलक है। यहाँ प्रकृति का मानवीकरण है।
(2) तत्सम प्रधान भाषा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
2. विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम,
भिक्षु होकर रहते सम्राट् दया दिखलाते घर-घर घूम ।
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि,
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न शील की सिंहल को भी सृष्टि ।
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति कां रहा पालना यहीं,
हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आये थे नहीं।
प्रसंग – जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ शीर्षक कविता से अवतरित इन पंक्तियों में प्रसाद जी ने अतीतकालीन भारत की विशेषताओं का उल्लेख किया है।
व्याख्या – कवि का कथन है कि हम भारतवासियों ने ही विश्व को यह बताया था कि इस पृथ्वी पर सच्ची विजय शस्त्रास्त्रों की विजय नहीं होती, अपितु धर्म-विजय ही सच्ची विजय कहलाती है। अशोक आदि सम्राटों ने अपने आचरण द्वारा सिद्ध कर दिया कि केवल शस्त्रों द्वारा नहीं बल्कि धर्म के द्वारा भी विजय प्राप्त की जा सकती है। भारत भूमि पर इस धर्म-विजय की धूम रही है। हमारे यहां से सम्राट् अशोक आदि अपने संपूर्ण वैभव-विलास का परित्याग कर भिक्षु बनकर रहते थे। वे घर-घर घूमकर प्राणी मात्र के प्रति दया दिखाते थे। सम्राट् चंद्रगुप्त ने यूनान देश के आक्रमणकारी सैल्यूकस को दया कर छोड़ दिया था। इस प्रकार एक यवन ने हम से दया का दान प्राप्त किया। चीन देश ने हम से ही धर्म की दीक्षा ली। अनेक बौद्ध विद्वान् चीन देश में जाकर वहां प्रचार करते रहे और वहां के भी अनेक जिज्ञासु समय-समय पर भारत आ कर अपनी ज्ञान पिपासा शांत करते रहे।
स्वर्णभूमि (जावा – सुमात्रा) में जाकर वहां के निवासियों को हमने भारतीय संस्कृति एवं धर्म का अनुपम रत्न प्रदान किया। बौद्ध तथा जैन धर्म के दर्शन, ज्ञान तथा चरित्र रूपी रत्नों से परिचित हमने ही कराया। सिंहल (श्रीलंका) के निवासियों ने भी भारत से ही धर्म की दीक्षा ग्रहण की। हमने कभी किसी से कुछ छीना नहीं अर्थात् हम सभी को कुछ-न-कुछ देते ही रहते हैं। यह भारत भूमि ही प्रकृति पालना रही है। यह भारतवर्ष ही हमारी जन्मभूमि है। हम (आर्य जाति) यहां कहीं बाहर से नहीं आए। यहां कवि ने उन इतिहासकारों के मत का खंडन किया है जो यह मानते हैं कि आर्य जाति कहीं बाहर से आई थी।
विशेष – ( 1 ) यहां भारतीय संस्कृति की आधारभूत विशेषताओं अहिंसा तथा सत्य की ओर संकेत किया गया है।
(2) भाषा तत्सम प्रधान है।
(3) अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. जातियों का उत्थान-पतन, आंधियां, झड़ी, प्रचंड समीर,
खड़े देखा, झेला हंसते, प्रलय में पले हुए हम वीर।
चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न,
हृदय के गौरव में था गर्व किसी को देख न सके विपन्न ।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण प्रसाद द्वारा रचित ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता में कवि ने भारतीय संस्कृति का गुणगान किया है।
व्याख्या – यहाँ कवि प्राचीन भारत का गौरव गान करता हुआ कहता है कि हमने यहाँ अनेक जातियों की उन्नतिअवनति देखी है। हमें विचलित करने के लिए आंधियां और प्रचंड वायु भी चली है। भाव यह है कि हमें अनेक प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ा है। हमने इन संघर्षों को स्थिर होकर देखा और हँसते हुए इन कठिनाइयों को सहन भी किया है। हम ऐसे योद्धा हैं जो विनाश की घड़ियों में पले हैं अर्थात् अनेक संघर्षों का सामना करने में समर्थ होने के कारण हमें कोई पराजित नहीं कर सकता। हमारा चरित्र पवित्र था, भुजाओं में शक्ति रही है तथा नम्रता में सदैव संपन्न हैं। हम अपने हृदय के गौरव पर ही गर्व करते थे। भाव यह है कि स्वाभिमानी अहंकारी नहीं। हम किसी को भी यहाँ तक कि शत्रु को भी दुःखी नहीं देख सकते ।
विशेष—(1) यहां कवि ने यह स्पष्ट किया है कि हमारे पूर्वज शक्तिशाली, आचरण से शुद्ध, स्वाभिमानी, नम्र एवं परोपकारी थे। भारत की अजरता – अमरता की ओर संकेत है।
(2) भाषा संस्कृतनिष्ठ, भावपूर्ण तथा अलंकृत है।
(3) अनुप्रास अलंकार है ।
4. हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव,
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेक ।
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान,
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान ।
जिएँ तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष,
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण जयशंकर प्रसाद के गीत ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष से अवतरित किया गया है। इस कविता में कवि ने भारतीय संस्कृति तथा अपने पूर्वजों के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या – कवि का कथन है कि भारतवासी धन संग्रह अवश्य करते थे, पर अपने लिए नहीं बल्कि दान देने के लिए। हम अतिथियों को देवता के समान मानते थे अथवा हमारे शुभ कार्यों से प्रसन्न होकर देवगण हमारा आतिथ्य स्वीकार करके, हमें कृतार्थ करते थे। हमारे वचन सत्य होते थे। हम अपनी प्रतिज्ञा का पालन दृढ़ता से करते थे। आज भी हमारे शरीर से उन्हीं पूर्वजों का रक्त संचार कर रहा है अर्थात् अपने पूर्वजों के ही पद-चिह्नों पर चल रहे हैं। हमारा देश भी वही है और हममें साहस भी वही है। आज भी हम उसी प्रकार से ज्ञान-संपन्न हैं। हममें वैसा ही बल और वैसी ही शांति है। हम उसी आर्य जाति की दिव्य-संतान हैं। हम सदा अपने प्यारे भारतवर्ष के लिए जीवित रहें। हमारा अपने देश पर अभिमान और इसे देखकर जो हर्ष प्राप्त होता है, वह सदा बना रहे। हम अपने इस प्यारे भारतवर्ष के ऊपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दें।
विशेष—(1) कवि ने प्रस्तुत राष्ट्रीय गीत में इस बात का गौरव अनुभव किया है कि हमें सभी मानवोचित उदार गुण अपने पूर्वज से प्राप्त हुए हैं। ये गुण आज भी हममें बने हुए हैं। इस देश की शान को बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।
(2) ‘वही’ शब्द की आवृत्ति ने कथन को भावपूर्ण तथा प्रभावशाली बना दिया है। भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा भावपूर्ण है।

J&K class 10th Hindi हमारा प्यारा भारतवर्ष Textbook Questions and Answers

भाव सौंदर्य

1. कवि ने भारत को हिमालय का आंगन क्यों कहा है?
उत्तर – सूर्योदय की प्रथम किरणें हिमालय से हो कर भारत भूमि पर पड़ती हैं। ये किरणें सूर्य के प्रकाश के साथसाथ ज्ञान का भी प्रतीक हैं। इस तरह कवि का अभिप्राय भारत को विश्व-संस्कृति के उद्घोषक के रूप में चित्रित करना है।
2. भारत का कौन-सा सम्राट् (बौद्ध) भिक्षु बन गया था ?
उत्तर – सम्राट् अशोक बौद्ध भिक्षु बन गए थे। कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर उनके हृदय में युद्ध के प्रति विरक्ति हो गई। उन्होंने राज्य का परित्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया। उन्होंने सारा जीवन एक बौद्ध भिक्षु के रूप में व्यतीत कर दिया।
3. किस यवन यूनानी राजा को भारत ने दया का दान दिया था ।
उत्तर – सिकंदर की मृत्यु के बाद सिल्यूकस ने भारत पर आक्रमण किया। चंद्रगुप्त ने उसे पराजित किया और क्षमा कर दिया। इतना ही नहीं उसकी बेटी कार्नेलिया के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर यूनान के साथ दृढ़ मित्रता स्थापित की।
4. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ज्ञान का प्रकाश सबसे पहले भारत में फैला ।
(ख) भारत हमारा मूल स्थान है, हम बाहर से नहीं आए।
(ग) शक्तिशाली होकर भी हमने विनम्रता नहीं छोड़ी।
(घ) हमारे देश में अतिथि का सत्कार देवता के समान होता है।
(ङ) हम भारतवर्ष के लिए सब कुछ भेंट कर दें।
उत्तर –
(क) जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक ।
(ख) हमारी जन्मभूमि भी यही, कहीं से हम आए थे नहीं।
(ग) भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न |
(घ) हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव ।
(ङ) निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।

शिल्प-सौंदर्य

1. (क) वही है रक्त वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान,
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान ।
उपर्युक्त पंक्तियों में “वही” शब्द पर ध्यान दीजिए। यह वास्तव में वह ही का परिवर्तित रूप है। “ही” अव्यय से ‘‘वह” के अर्थ में बल आ जाता है। इस प्रकार के अव्ययों को निपात कहते हैं। अन्य निपात हैं- भी, तो, तब, मात्र, भर।
प्रस्तुत कविता में निपात वाले शब्दों के उदाहरण ढूँढ़ निकालें ।
उत्तर – (i) व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट
(ii) मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्नशील की सिंहल को भी सृष्टि
(iii) जियें तो सदा उसी के लिए
(ख) प्रस्तुत पाठ में कवि ने तत्सम शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है।
उदाहरण- प्रथम, उपहार, उषा, अभिनंदन, विश्व आदि ।
पाठ में आए ऐसे ही दस तत्सम शब्दों को लिखें तथा अर्थ बताते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर – तत्सम शब्द – उपहार, विश्व, भिक्षु, प्रचंड, विपन्न, हृदय, हर्ष, सर्वस्व, शक्ति, अतिथि।
उपहार – तोहफ़ा – प्रतियोगिता में प्रथम आने पर उसे उपहार मिला।
विश्व – संसार – भारत विश्व गुरु माना जाता है।
भिक्षु – भिखारी – भिखारी का जीवन दयनीय होता है।
प्रचंड – भयंकर- बिहार में प्रचंड तूफान आया।
विपन्न – दुःखी – संपन्न को विपन्न की सहायता करनी चाहिए।
हृदय – दिल — उसका हृदय पवित्र है ।
हर्ष – प्रसन्नता – मेरी सफलता पर उसे हर्ष हुआ।
सर्वस्व – सब कुछ– राणा प्रताप ने देश के लिए सर्वस्व अर्पित कर दिया।
शक्ति – ताकत – संसार शक्ति का लोहा मानता है।
अतिथि – मेहमान – भारतवासी अतिथि का आदर करते हैं ।

योग्यता- विस्तार

(क) “हमारा प्यारा भारतवर्ष” राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण रचना है।
कवि ने प्रस्तुत कविता में देश की महानता का गुणगान किया. है।
प्रस्तुत रचना को कक्षा में वृंद-गान (कोरस) के रूप में गाएँ।
उत्तर – विद्यार्थी निर्देशानुसार करें।
(ख) “विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम “
उपर्युक्त कथन की पुष्टि में भारत के प्राचीन और वर्तमान इतिहास से एक- एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर – बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के पश्चात् सम्राट् अशोक का हृदय परिवर्तित हो गया था। उ उसने धर्म के बल पर लोगों के हृदयों पर विजय प्राप्त की थी। उसका कथन था ‘धर्म विजय ही सच्ची विजय है’।
आधुनिक इतिहास से गाँधी जी का नाम लिया जा सकता है। उन्होंने सत्य एवं अहिंसा के बल पर शक्तिशाली अंग्रेज सरकार से टक्कर ली और इस तरह धर्म की राह पर चलकर विजय प्राप्त की थी ।

J&K class 10th Hindi हमारा प्यारा भारतवर्ष Important Questions and Answers

1. ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ कविता का प्रतिपाद्य लिखें।
उत्तर – ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ गीत के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस गीत में उन्होंने भारत के स्वर्णिम अतीत के गौरवमय इतिहास की झलक प्रस्तुत की है। कवि ने स्पष्ट किया है कि ज्ञान विज्ञान में सबसे पूर्व भारत ने ही प्रगति की थी। अन्य देशों ने ज्ञान का प्रकाश इसी देश से ग्रहण किया है। वेदों की रचना भी इसी देश में हुई थी। यहाँ के विद्वान् ऋषि-मुनि विदेशों ने जाकर भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दुंदुभी बजाते रहे हैं। भगवान् राम, महात्मा बुद्ध, सम्राट् अशोक, चंद्रगुप्त आदि विभूतियों ने देश को आध्यात्मिक एवं भौतिक बल से संपन्न बनाया था। हमारे पूर्वज दानी, त्यागी, तेजस्वी, अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करने वाले और पराक्रमी थे।
2. निम्नलिखित पंक्ति में “वही है” की आवृत्ति कौन-सी विशेषता प्रकट करती है
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस, वैसा ज्ञान।
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान।
उत्तर – ‘वही है’ की आवृत्ति द्वारा कवि ने अतीत कालीन भारत की गरिमा को उजागर करने का प्रयत्न किया है। वर्तमान में भी हमारे भीतर उन्हीं पूर्वजों का रक्त प्रवाहित है। आज भी हमारे भीतर उन्हीं पूर्वजों का रक्त प्रवाहित हो रहा है। आज भी हमारे भीतर पूर्वजों का साहस, ज्ञान तथा धैर्य विद्यमान है। हम उन्हीं के समान शांतिप्रिय तथा शक्तिशाली हैं। इसे दिव्य आर्य जाति की संतान होने का गौरव प्राप्त है। ‘वही है’ शब्द प्रयोग ने कवि के कथन में प्रभाव तथा चमत्कार उत्पन्न कर दिया है।
3. “विजय केवल लोहे की नहीं” इस पंक्ति में “लोहे की विजय” से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – लोहे की विजय से कवि का तात्पर्य शारीरिक शक्ति, सैन्य बल तथा हिंसा के द्वारा विजय प्राप्त करने से है। भारत प्राचीनकाल से शांतिप्रिय देश रहा है। अहिंसा इसका परम धर्म रहा है ।
4. “हमारा प्यारा भारतवर्ष” कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ? 
उत्तर – हमें अपने प्राचीन गौरव का ध्यान रखना चाहिए। यह ज्ञान और शक्ति का स्रोत रहा है। हमारी नसों में उन्हीं पूर्वजों का रक्त बह रहा है। हम उन्हीं के समान साहस, श , शक्ति और धैर्य का परिचय दें। आशावादी बनकर अपने अतीत पर गर्व करें तथा मातृ भूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने के लिए तत्पर रहें ।
प्रश्न 5. ‘हमारा प्यारा भारत वर्ष’ कविता में वर्णित किसी ऐतिहासिक पुरुष का नाम और काम लिखिए।
उत्तर – ‘हमारा प्यारा भारत वर्ष’ कविता में वर्णित ऐतिहासिक पुरुष सम्राट् अशोक थे जिन्होंने कलिंग के युद्ध में हुए रक्तपात को देख कर युद्ध को सदा के लिए त्याग दिया था और बौद्ध धर्म को स्वीकार कर बौद्ध भिक्षु बन गए थे ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ ? 
उत्तर – जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई० में काशी में हुआ।
प्रश्न 2. जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के किस परिवार में हुआ ? 
उत्तर – वैश्य परिवार में ।
प्रश्न 3. ‘कामायनी’ महाकाव्य की रचना किस कवि ने की थी ?
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ने ।
प्रश्न 4. जयशंकर प्रसाद के दो नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर – (क) चंद्रगुप्त ( ख ) स्कंदगुप्त ।
प्रश्न 5. ‘तितली’ और ‘कंकाल’ उपन्यास के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ।
प्रश्न 6. ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ कविता में वर्णित किसी ऐतिहासिक पुरुष का नाम लिखिए।
उत्तर – सम्राट् अशोक ।
प्रश्न 7. जयशंकर प्रसाद का जन्म कहां हुआ ?
उत्तर – काशी में ।
प्रश्न 8. हिमालय का आंगन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – भारतवर्ष से है।
प्रश्न 9. कौन-से सम्राट् भिक्षुक बनकर दयावान बन गए थे ?
उत्तर – अशोक ।
प्रश्न 10. भारतवासी किन की संतान हैं ?
उत्तर – दिव्य आर्यों की।
प्रश्न 11. दुनिया में सर्वप्रथम किसे ज्ञान प्राप्त हुआ ?
उत्तर – भारतवासियों को ।
प्रश्न 12. प्रसाद किस युग के कवि हैं ?
उत्तर – छायावाद के।
प्रश्न 13 लहर के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ।
प्रश्न 14. ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ नामक कविता किस कवि ने लिखी है ?
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ने ।
प्रश्न 15. ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ किस भावना से परिपूर्ण रचना है ?
उत्तर – देश प्रेम की भावना ।
प्रश्न 16. जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध महाकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर – कामायनी ।
प्रश्न 17. कौन-से सम्राट् भिक्षुक बनकर दयावान हो गए थे ?
उत्तर – सम्राट् अशोक ।
प्रश्न 18. ‘कामायनी’ किस कवि की रचना है ?
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ।
प्रश्न 19. ‘कामायनी’ खण्डकाव्य है या महाकाव्य ?
उत्तर – महाकाव्य ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

01. ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ किस के प्रति प्रेम से संबंधित कविता है ?
(क) धर्म
(ख) जाति
(ग) देश
(घ) परिवार ।
उत्तर – (ग) देश
2. ‘भिक्षु होकर रहते सम्राट्’- इस पंक्ति में ‘भिक्षु’ कौन है ?
(क) अकबर
(ख) अशोक
(ग) चंद्रगुप्त
(घ) हर्ष।
उत्तर – (ख) अशोक ।
3. ‘यवन को दिया दया का दान’- इस पंक्ति में ‘यवन’ से किस ओर संकेत किया गया है ?
(क) फिलिप्स
(ख) कार्नेलिया
(ग) सिल्यूक्स
(घ) सिकंदर ।
उत्तर – (घ) सिकंदर।
4. हम भारतीय किन की संतान हैं ?
(क) यवन
(ख) आर्य
(ग) मुग़ल
(घ) यहूदी ।
उत्तर – (ख) आर्य ।
5. सदा से अतिथि हमारे लिये क्या रहे हैं ?
(क) भिखारी
(ख) बोझ
(ग) देव
(घ) कष्ट ।
उत्तर – (ग) देव ।
6. हमें अपना सर्वस्व किस पर न्योछावर कर देना चाहिए ?
(क) धन
(ख) धर्म
(ग) जाति
(घ) देश ।
उत्तर – (घ) देश ।
7. ‘स्वर्ण भूमि’ किस देश का पुराना नाम है ?
(क) श्रीलंका
(ख) भारत
(ग) बर्मा (म्यांमार)
(घ) पाकिस्तान ।
उत्तर – (ग) बर्मा (म्यांमार) ।
8. हमारे पूर्वजों के संचय में क्या रहता था ?
(क) धन
(ख) दान
(ग) अनाज
(घ) भक्ति ।
उत्तर – (ख) दान ।
9. हम भारतीय किन की दिव्य संतान हैं ?
(क) आर्य
(ख) अनार्य
(ग) मंगोल
(घ) ब्राह्मण
उत्तर – (क) आर्य ।
10. चीन को भारत ने किस दृष्टि को प्रदान किया था ?
(क) हिंदू
(ख) सिख
(ग) जैन
(घ) बौद्ध ।
उत्तर – (घ) बौद्ध ।

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