JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 6 कैकेयी का अनुताप

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 6 कैकेयी का अनुताप

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 6 कैकेयी का अनुताप (मैथिलीशरण गुप्त)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

कवि-परिचय

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीयता के अमर गायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव जिला झांसी में हुआ था। उनके पिता श्री रामचरण भगवती राम के परम भक्त थे । माता दयालु स्वभाव की थीं। इन दोनों गुणों का प्रभाव उन पर भी पड़ना स्वाभाविक था। वे राम के अनन्य उपासक बन गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में उन्होंने संस्कृत, हिंदी और बंगला के साहित्य का अध्ययन किया । गुप्त जी पर गाँधी जी के व्यक्तित्व का भी प्रभाव था। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे । आगरा विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि से तथा भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार से सम्मानित किया । इन्हें ‘राष्ट्र कवि’ कह कर सम्मानित किया जाता है। सन् 1964 ई० में गुप्त जी का देहावसान हुआ ।
रचनाएँ – गुप्त जी ने अपनी साधना से हिंदी साहित्य को निम्नलिखित ग्रंथ रत्न प्रदान किएसाकेत, यशोधरा, द्वापर, जयद्रथ वध, जय भारत, सिद्धराज, पंचवटी आदि प्रबंध रचनाएँ हैं। ‘झंकार’ उनके गीतों का संग्रह है। ‘साकेत’ नामक महाकाव्य पर गुप्त जी को हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था ।
काव्यगत विशेषताएँ – मानवतावादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीयता की भावना, प्राकृति के विविध रूपों का चित्रण, भारतीय नारी की त्याग-भावना, संस्कृति प्रेम तथा नवीनता के प्रति आस्था आदि गुप्त जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। प्रारंभिक रचना ‘भारत भारती’ में उन्होंने राष्ट्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर अपने विचार प्रकट किए हैं –
हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी
आओ, विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी ।
गुप्त जी एक आशावादी कवि रहे हैं। उन्होंने मानव को सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है
जिस युग में हम हुए वहीं तो अपने लिए बड़ा है,
अहा ! हमारे आगे कितना कर्म क्षेत्र पड़ा है।
गुप्त जी के काव्य में विविधता का स्वर है। इसलिए उनके काव्य में प्रायः सभी रसों का सफल चित्रण मिलता है।
भाषा शैली – गुप्त जी ने अपने काव्य में खड़ी बोली का परिपक्व रूप प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा पर ब्रज और संस्कृत का प्रभाव भी दिखाई देता है। उन्होंने प्रबंध काव्य, गीति काव्य और मुक्तक काव्य आदि सभी काव्य-रूपों की रचना की है। अलंकारों के प्रयोग ने भाषा को प्रभावशाली बना दिया है।

कविता का सार/प्रतिपाढ्य

‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक कविता श्री मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘साकेत’ का एक अंश है। इस काव्यांश के माध्यम से कवि ने कैकेयी को पश्चात्ताप में डूबा दिखाकर उसके प्रति पाठक की सहानुभूति को जगाया है। कैकेयी ने अपने पुत्र भरत के लिए राज्य और राम के लिए वनवास मांगा था । भरत इसे स्वीकार नहीं करते। वे चित्रकूट जा कर राम को लौट कर अयोध्या चलने के लिए कहते हैं। तब कैकेयी भरत की भावना को पहचान कर राम को घर लौट चलने का आग्रह करती है। कैकेयी स्वयं को कोसती है और कसम खा कर कहती है कि उसे भरत को राज दिलाने के लिए भरत ने नहीं कहा था। वह मंथरा को भी दोष नहीं देती। वह अपने मन को ही दोष देती है जिसमें ईर्ष्या और द्वेष भरा था, जिस कारण उसने राम को वनवास और भरत को राज देने के लिए राजी से वरदान मांगे थे। वह स्वयं को कुमाता तथा भरत को सुपुत्र कह कर स्वयं को भाग्यहीन तथा कठोर नारी कहती है। वह स्वयं को धिक्कारती है और सभा में उपस्थित लोगों को भी उसे धिक्कारने के लिए कहती है। उसके इस पश्चात्ताप पर राम और सारी सभा उसे सौ बार धन्य कहती है।

पढ्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. ‘यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को’
चौंके सब सुनकर अटल केकयी-स्वर को ।
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य-तुषारावृत्ता यथा विधु-लेखा ।
बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा,
वन सिंही अब थी हहा ! गोमुखी गंगा’
हाँ’, जनकर भी मैंने नहीं भरत को जाना,
सब सुन लें, तुमने स्वयं अभी यह माना ।
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात तुम्हारी मैया | 
शब्दार्थ – वैधव्य = विधवापन । तुषारावृत्ता = कुहरे से ढकी । विधु-लेखा = चाँदनी । अचल = स्थिर । असंख्यतरंगा = असंख्य लहरें (यहां असंख्य भाव) । सिंही = शेरनी। गौमुखी गंगा = गोमुख से निकलने वाली निर्मल गंगा, हिमालय का वह स्थान जहां से गंगा निकलती है, गाय के मुख जैसा है। जनकर = जन्म देकर | तात = पुत्र ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘कैकेयी का अनुताप’ से ली गई हैं। यह अंश कवि के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘साकेत’ के आठवें सर्ग से संकलित किया गया है। श्री राम के वन चले जाने के बाद भरत उन्हें वापस लाने के लिए गुरु वशिष्ट और राजा जनक आदि के साथ चित्रकूट नामक पर्वत पर जाते हैं। उनके साथ कैकेयी भी जाती है। वहां सभा होती है। श्री राम भरत का आग्रह सुन कर उनके गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि भरत तो इतना महान् है कि उसे जन्म देने वाली माँ भी नहीं पहचान सकी। इन शब्दों को सुनकर कैकेयी का हृदय पश्चात्ताप से व्याकुल हो गया और उसे अपना उद्गार व्यक्त करने का अवसर मिल गया। यहां कैकेयी ने श्री राम से अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया है।
व्याख्या – कैकेयी ने कहा कि हे बेटा राम। तुमने यह कहा है कि भरत को जन्म देने वाली माँ भी उसको नहीं समझ सकी। यदि यह सच है तो तुम घर लौट चलो । कैकेयी के इस अटल स्वर को सुनकर सभा में बैठे सब लोग आश्चर्य से चौंक उठे। उन्होंने अचानक रानी की ओर देखा। उस समय विधवापन के दुःख से पीड़ित रानी ऐसी जान पड़ रही थी मानो कोहरे से ढकी चाँदनी हो। कैकेयी देखने में तो बिलकुल निश्चित बैठी थी लेकिन उसके मन में हजारों भाव लहरियां उठ तथा मिट रही थीं। वह सिंहनी अब गोमुखी गंगा के समान अर्थात् शांत तथा पवित्र दिखाई दे रही थी।
कैकेयी ने फिर कहा- हां, यह सत्य है कि भरत को जन्म देकर भी उसे समझ पाने में मैं असमर्थ रही हूं। सब यह बात सुन लें, स्वयं तुमने अभी यह स्वीकार किया है। यदि यह सत्य है तो भैया घर लौट चलो। हे बेटा ! मैं तुम्हारी माँ ही तुम्हारी अपराधिन हूं।
विशेष – ( 1 ) यहां कैकेयी के मानसिक पश्चात्ताप का सहज स्वाभाविक चित्रण है।
(2) तत्सम प्रधान शब्दावली ।
(3) उपमा तथा रूपक अलंकार है।
2. दुर्बलता का ही चिह्न, विशेष शपथ है,
पर, अबलाजन के लिए कौन-सा पथ है ?
यदि मैं उकसाई गई भरत से होऊं,
तो पति समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊं 
ठहरो, मत रोको मुझे, कहूं सो सुन लो,
पाओ यदि उसमें सार उसे सब चुन लो ।
करके पहाड़-सा पाप मौन रह जाऊं ?
राई भर भी अनुपात न करने पाऊं ?
शब्दार्थ – शपथ – सौगंध, कसम । अबलाजन = कमज़ोर स्त्री | पथ = रास्ता । राई = थोड़ा-सा । अनुपात = पश्चात्ताप ।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण गुप्त जी की कविता ‘कैकेयी का अनुताप’ से अवतरित किया गया है। ‘साकेत’ नामक महाकाव्य से अवतरित इस अंश में कैकेयी के राम को वनवास देने पर पश्चात्ताप का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – कैकेयी पश्चात्ताप एवं आत्मग्लानि की भावना से पीड़ित होकर कहती है कि- सौगंध खाना व्यक्ति की दुर्बलता का ही परिचायक है। लेकिन अबला नारियों अर्थात् बलहीन नारियों के लिए सौगंध खा कर अपनी सच्चाई को प्रकट करने का अन्य कोई उपाय ही नहीं। अतः मैं कसम खा कर कहती हूं कि यदि मुझे वरदान मांगने के लिए भरत ने उकसाया हो तो मुझे पति राजा दशरथ की भांति अपने पुत्र से भी हाथ धोना पड़े। ठहरो, मुझे रोको नहीं। इस समय मैं जो कुछ भी कहूं उसे शांतिपूर्वक सुन लो । यदि मेरे कथन में कुछ सार तत्व हो अर्थात् वह ग्रहण करने योग्य दिखाई दे उसे ग्रहण कर लो। क्या आप यह चाहते हैं कि मैं पहाड़ जैसा पाप करके भी मौन बनी रहूं ? इतने बड़े पाप के लिए राई भर भी अर्थात् तनिक-सा भी पश्चात्ताप न करूं ?
भावार्थ – (1) कैकेयी पश्चात्ताप की भावना से पीड़ित है । वह कसम खा कर भरत के उज्ज्वल चरित्र के गौरव की रक्षा करना चाहती है। इसके साथ ही उसे अपने पहाड़ जैसे भारी पाप का भी एहसास है।
(2) तत्सम प्रधान शब्दावली है ।
(3) उपमा, पदमैत्री तथा प्रश्न अलंकार हैं ।
3. थी सनक्षत्र शशि – निशा ओस टपकाती,
रोती थी नीरव सभा हृदय थपकाती ।
उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी,
सबमें भय, विस्मय और खेद भरती थी ।
क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी ।
जल पंजर- गात अब अरे अधीर, अभागे,
वे ज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे ।
पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में ?
क्या शेष बचा था कुछ न और इस जन में ?
कुछ मूल्य वहीं वात्सल्य मात्र, क्या तेरा ?
पर आज अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा । 
शब्दार्थ – सनक्षत्र = तारों सहित । शशि निशा = चाँदनी से भरी रात। उल्का = टूटे हुए तारे की तरह चमकना । दीप्त = चमकना । विस्मय = आश्चर्य । खेद = दुःख | पंजर-गात = पिंजरे में बंद, शरीर रूपी पिंजरा। अधीर = चंचल । ज्वलित भाव = ईर्ष्या से पूर्ण विचार । वात्सल्य = संतान का स्नेह । वत्स = बेटा।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘कैकेयी का अनुताप’ से उद्धृत की गई हैं। राम को लौटा लाने के लिए अन्य लोगों के साथ कैकेयी भी चित्रकूट पर्वत पर उपस्थित है। उसे अपने किए पर पश्चात्ताप का अनुभव हो रहा है। यहां कवि ने बाह्य वातावरण के साथ सभी की मनोदशा का मेल दिखाकर भावों की गति को और तीव्र कर दिया है।
व्याख्या – रात्रि खामोश थी। उस खामोश रात्रि में चाँद तथा सितारे ओस टपका रहे थे अर्थात् रो रहे थे। नीचे धरती पर मौन सभा हृदय थपका कर रो रही थी। टूटे हुए तारे की तरह उस सभा में कैकेयी प्रकाश-सा बिखेर रही थी। इस तरह वह उन लोगों में भय, आश्चर्य तथा खेद का संचार कर रही थी।
कैकेयी ने पुनः कहा कि वह मरी अर्थात् तुच्छ मंथरा दासी भला क्या कर सकती थी अर्थात् मुझे क्या भड़का सकती थी । मेरा ही मन अपना विश्वास न कर सका अर्थात् मैं ही भ्रांत हो गई थी। उसी मन को संबोधित करके वह कहती है कि उस समय वे जलते हुए अर्थात् ईर्ष्या से जला देने वाले भाव तुम में ही तो उत्पन्न हुए थे। अतः हड्डियों के पिंजरे में बंद हृदय, अरे अभागे तथा अब बेचैन होने वाले हृदय, तू जल जा। पर क्या उस समय मेरे हृदय में केवल जलाने वाला भाव ही था ? अभिप्राय यह है कि क्या उस समय मेरे भीतर के अच्छे भाव पूरी तरह समाप्त हो गए थे। एकमात्र वात्सल्य क्या तेरा कुछ भी मूल्य नहीं ? आज तो मेरा अपना बेटा भी पराया-सा हो गया है ।
विशेष – (1) कैकेयी को अपने किए पर पश्चात्ताप हो रहा है। वह अपने को पूर्ण दोषी मानती है। मंथरा को भी निर्दोष मानती है। यदि उसका मन अपने वश में रहता तो मंथरा उसका कुछ भी न बिगाड़ सकती थी। उस समय उसके मन में केवल ईर्ष्या और द्वेष का भाव ही रह गया था ।
(2) अनुप्रास, उपमा, प्रश्न तथा रूपक अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।
(3) संबोधनात्मक शैली है।
4. थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके ?
छीने न मातृ पद किंतु भरत का मुझसे,
हे राम, दुहाई करूं और क्या तुझसे ?
कहते आते थे यहीं अभी नर देही,
‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही ।
अब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता,
है पुत्र सुपुत्र ही, रहे कुमाता माता ।’
शब्दार्थ – त्रैलोक्य = तीनों लोक । मातृ पद = माता का पद, माता का गौरव । नर देही = मनुष्य ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘कैकेयी का अनुताप’ से अवतरित की गई हैं। इस कविता में कैकेयी के पश्चात्ताप का वर्णन है।
व्याख्या – कैकेयी आत्मग्लानि तथा पश्चात्ताप की भावना से पीड़ित होकर कहती है कि भले तीनों लोकों के वासी मुझ पर थूकें अर्थात् मेरा अपमान करें। जो कोई जो कुछ भी कहना चाहता है, कह सकता है, अवश्य कहे। उसे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन मुझ से भरत का मातृ पद न छीने अर्थात् मुझे भरत की माता बने रहने का अधिकार प्राप्त रहे। हे राम ! इसके अतिरिक्त मैं और तुम से क्या दुहाई करूं अर्थात् विनय करूं। अब तक तो मनुष्य यही कहा करते थे कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती। अब लोग भाग्य अर्थात् परम्परा के विरुद्ध यही कहा करेंगे कि माता भले ही कुमाता, बुरी माता बन जाए पर पुत्र पुत्र ही रहता है अर्थात् वह सुपुत्र बना रहता है।
विशेष – (1) इन पंक्तियों में कैकेयी की पश्चात्ताप भावना का बड़ा मार्मिक अंकन हुआ है।
(2) भाषा तत्सम प्रधान है।
(3) अनुप्रास, प्रश्न और स्वाभावोक्ति अलंकार है।
5. बस मैंने इसका बाह्य मात्र ही देखा
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात ही देखा।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा।
युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी
‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी ।’
निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा
“धिक्कार ! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा।”,
“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई, “
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई । ”
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई-
“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई । “
शब्दार्थ – बाह्य = बाहरी । मृदुल गात = कोमल शरीर । परमार्थ = परोपकार । जननी = माता। जना = पैदा किया। लाल = बेटा |
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण गुप्त जी की कविता ‘कैकेयी का अनुताप’ से अवतरित किया गया। इस कविता में कैकेयी की पश्चात्ताप भावना का बड़ा मार्मिक अंकन किया गया है।
व्याख्या— कैकेयी पश्चात्ताप की भावना से पीड़ित होकर कहती है कि मैंने भरत का बाह्य रूप मात्र ही देखा अर्थात् उसके भीतर छिपे हुए भ्रातृ प्रेम तथा उच्च मानवीय गुणों को नहीं पहचाना। मैंने इसका कोमल शरीर तो देखा पर उसमें विद्यमान दृढ़ हृदय को नहीं देखा। मैंने पूर्णतः अपना स्वार्थ सिद्ध करने का ही प्रयत्न किया। दूसरों के हित और स्वार्थ का ध्यान नहीं रखा । हाय ! इसीलिए तो आज यह बाधा सामने आई है। युग-युग तक यह कठोर कहानी कही और सुनी जाती रहेगी कि रघु वंश में भी यह भाग्यहीन नारी थी । अपने प्रत्येक जन्म में मेरा जीव अर्थात् आत्मा सुने कि उस रानी को धिक्कार है, जिसे स्वार्थ ने पूरी तरह घेर लिया था ।
राम ने कहा कि ‘जिस माता ने भरत जैसे भाई को जन्म दिया है, वह एक लाल की माँ धिक्कारने योग्य न होकर सौ बार धन्य है। पागलों की तरह भरी हुई सभा ने भी चिल्लाकर श्री राम के शब्द दोहराते हुए कहा – ‘वह एक पुत्र की माता सौ बार धन्य है । ‘
विशेष—(1 ) कैकेयी के द्वारा पश्चात्ताप की भावना दिखा कर पाठक के हृदय में उसके प्रति सहानुभूति जगाई गई है। ‘धिक्कार उसे था महास्वार्थ ने घेरा ।’ कैकेयी के मुख से यह शब्द कहला कर कवि ने युग-युग से कैकेयी के माथे पर लगा कलंक धोने का सफल प्रयत्न किया है।
(2) उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(3) संवादात्मक भाषा-शैली है ।

J&K class 10th Hindi कैकेयी का अनुताप Textbook Questions and Answers

भाव-सौंदर्य

1. ऐसी कोई दो पंक्तियां ढूंढ़ कर लिखें, जिनमें कैकेयी का पछतावा प्रकट हुआ हो।
उत्तर – निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा –
धिक्कार उसे था महास्वार्थ ने घेरा।
2. कैकेयी के लिए प्रयुक्त “सिंही” और “गो-मुखी गंगा” विशेषण उसके जीवन के किन पक्षों को संकेतित करते हैं ?
उत्तर – सिंही- यह विशेषण उसके उग्र तथा तेजस्वी स्वभाव को प्रकट करता है ।
गो-मुखी गंगा – यह विशेषण इसकी नम्रता, शांत स्वभाव तथा शालीनता को प्रकट करता है।
3. “दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है” कहते हुए भी कैकेयी शपथपूर्वक अपना पक्ष प्रस्तुत करती है,
उत्तर – कैकेयी शपथ के द्वारा अपनी बात पर विश्वास दिलाना चाहती है। शपथ ही विश्वास दिलाने का साधन है। शपथ व्यक्ति की दुर्बलता का भी सूचक है। कैकेयी अपने एकमात्र पुत्र भरत की शपथ खाती है ताकि संपूर्ण सभा को उस पर विश्वास हो सके।
4. इस कविता की किन पंक्तियों से व्यंजित होता है कि-
(क) कैकेयी बाहर से स्थिर बैठी थी, पर उसके मन में बड़ी हलचल थी।
(ख) कैकेयी की सबसे बड़ी वेदना यह है कि उसका पुत्र उसके लिए अन्य हो गया।
(ग) कुपुत्र को जन्म देने पर भी माता कुमाता नहीं कहलाती।
उत्तर –
(क) बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंग।
(ख) पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा ।
(ग) माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले हो ।
5. “निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा
धिक्कार ! उसे था, महास्वार्थ ने घेरा।” 
उक्त पंक्तियों में कैकेयी के मन की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है।
उत्तर – इन पंक्तियों में कैकेयी के मन में व्याप्त ग्लानि तथा पछतावे की भावना प्रकट हुई है।

शिल्प-सौंदर्य 

इस कविता को तीन भागों में बांट कर देख सकते हैं-
1. कैकेयी के कथन : दोहरे उद्धरण चिह्नों में है। जैसे “यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को ।”
2. लोगों के कथन : इकहरे उद्धरण चिह्नों में है। जैसे ‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही ‘
3. कवि का वर्णन जब :  बिना किसी चिह्न के हैं जैसे चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को
लोगों के कथन कैकेयी के कथन के मध्य में होने के कारण इकहरे चिह्नों में रखे गए हैं। भी किसी के वार्तालाप के बीच किसी अन्य का कथन उद्धृत करना हो तो मूल वार्तालाप दोहरे चिह्नों में तथा उद्धृत कथन इकहरे चिह्नों में रखा जाता है।

योग्यता – विस्तार

“पश्चात्ताप से आत्मा शुद्ध होती है।” इस कथन पर विचार व्यक्त कीजिए।
“क्या कर सकती थी मेरी मंथरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी ।”
उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में बताइए कि आपके विचार में राम को वनवास देने का दोष कैकेयी का है या मंथरा का ?
उत्तर – कैकेयी का क्योंकि वह मंथरा की बातों में आ गई थी ।

J&K class 10th Hindi कैकेयी का अनुताप Important Questions and Answers

1. कैकेयी के पछतावे का क्या कारण है ?
उत्तर – कैकेयी ने अपने पति राजा दशरथ से दो वर मांगे थे। एक के अनुसार राज्य भरत को मिले तथा दूसरे के अनुसार, राम चौदह वर्ष वन में रहे। उसका यह निर्णय संपूर्ण परिवार तथा प्रजा के लिये हानिकारक सिद्ध हुआ। उसके इस कार्य की निंदा हुई । भरत ने उसके प्रस्ताव की कठोर निंदा की। बाद में कैकेयी को भी अपनी इस, भारी भूल का आभास हुआ। अतः वह पश्चात्ताप में डूब गई।
2. कैकेयी के किस प्रकार के पहनावे के कारण कवि ने उसे “वैधव्यतुषारावृत्ता” यथा विधु-लेखा कहा है ?
उत्तर – कैकेयी ने सफ़ेद वस्त्र धारण किए हुए थे। इसीलिए कवि ने उसे कोहरे से घिरी हुई चंद्र- किरण के समान कहा है।
3. राम को वनवास भेजने में मंथरा दोषी है या कैकेयी ?
उत्तर – राम को वनवास भेजने में कैकेयी ही दोषी है क्योंकि उसने विवेक से काम नहीं लिया। परिणाम को जाने बिना ही वर मांग लेना उसकी अदूरदर्शिता का परिचायक है। उसने भी स्वयं स्वीकार किया है-
क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी ।
4. “कैकेयी का अनुताप” कविता के आधार पर कैकेयी के चरित्र की तीन प्रमुख विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर – (क) पश्चात्ताप से पीड़ित ।
(ख) ममतामयी माँ।
(ग) विवेक से रहित ।
5. दुर्बलता ही चिह्न… पुत्र भी खोऊं ।
-उक्त पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – दुर्बल व्यक्ति ही शपथ का सहारा लेता है। उसे अपनी सच्चाई प्रमाणित करने के लिए शपथ खानी पड़ती है। इसके विपरीत समर्थ व्यक्ति दोषी होते हुए भी निर्भीक बना रहता है और उसे शपथ का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। तुलसी ने ठीक ही कहा है समरथ को नहिं दोष गोसाईं। कैकेयी भी शपथपूर्वक अपनी बात कहती है। इससे उसकी दुर्बलता प्रकट होती है ।
6. “हां जन कर भी मैंने न भरत को जाना” – कैकेयी का यह कथन भरत के चरित्र की किस विशेषता को बताता है ?
उत्तर – इस कथन के माध्यम से भरत के हृदय की उदारता, निच्छलता तथा महानता प्रकट होती है। कैकेयी उसको जन्म देकर भी उसके उदात्त व्यक्तित्व को न समझ सकी । यदि उसे भरत के भीतरी गुणों का पता होता तो वह कभी भी उसके लिए वर न मांगती ।
7. “कैकेयी का अनुताप” कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर – ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक कविता श्री मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘साकेत’ का एक अंश है। इस काव्यांश के माध्यम से कवि ने कैकेयी को पश्चात्ताप में डूबा दिखाकर उसके प्रति पाठक की सहानुभूति को जगाया है। कैकेयी ने अपने पुत्र भरत के हित के लिए राज्य की कामना की थी लेकिन जब उसे भरत के भ्रातृ स्नेह का परिचय मिला तो वह आत्मग्लानि से पीड़ित हो गई। उसका पश्चात्ताप इतना तीव्र है कि वह उसके कलंक को धो डालता है। राम भी कैकेयी की स्तुति में कह उठते हैं ।
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना है भरत-सा भाई ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मैथिलीशरण गुप्त की दो काव्य-रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर – साकेत, जयद्रथ वध |
प्रश्न 2. राम भक्ति शाखा के आधुनिक कवि का नाम लिखिए। 
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त ।
प्रश्न 3. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – (क) राष्ट्रीयता (ख) विश्वबंधुत्व की भावना ।
प्रश्न 4. मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध महाकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर – साकेत ।
प्रश्न 5. ‘राई भर भी अनुताप न करने पाऊँ’ यह कथन किसका है ?
उत्तर – कैकेयी का ।
प्रश्न 6. गुप्त जी किस काल के कवि हैं ?
उत्तर – द्विवेदी युग
प्रश्न 7. भारत सरकार ने मैथिलीशरण गुप्त जी को किस अलंकार से सम्मानित किया ?
उत्तर – पद्मभूषण ।
प्रश्न 8. मैथिलीशरण गुप्त को कौन-सा पारितोषिक मिला ?
उत्तर – प्रयाग का मंगला प्रसाद पारितोषिक ।
प्रश्न 9. ‘कैकेयी का अनुताप’ किस कवि की रचना है ?
उत्तर – मैथिली शरण गुप्त ।
प्रश्न 10. किस कवि को ‘राष्ट्रकवि’ सम्मान से सम्मानित किया गया है ? 
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त को ।
प्रश्न 11. ‘कैकेयी का अनुताप’ कविता किस भाषा में रचित है ?
उत्तर – खड़ी बोली में ।
प्रश्न 12. कैकेयी को किस दासी ने उकसाया था ?
उत्तर – मंथरा ने ।
प्रश्न 13. कैकेयी अपने लिए भरत से किस पद को न छीनने का आग्रह करती है ?
उत्तर – मातृ पद ।
प्रश्न 14. ‘यशोधरा’ किस कवि की रचना है ?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त की।
प्रश्न 15. ‘कैकेयी का अनुताप’ कविता के कवि का नाम लिखिए। 
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त |

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. ‘यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को’ – यह पंक्ति किस ने कही थी ?
(क) राम
(ख) भरत
(ग) कैकेयी
(घ) सीता ।
उत्तर – (ख) भरत ।
2. कैकेयी कैसी दिखाई दे रही थी ?
(क) सिंही
(ख) गोमुखी गंगा
(ग) साक्षात अग्नि
(घ) कोमल पुष्प ।
उत्तर – (ख) गोमुखी गंगा ।
3. कैकेयी ने किसे न समझ पाने की बात स्वीकार की है ?
(क) राम
(ख) लक्ष्मण
(ग) दशरथ
(घ) भरत ।
उत्तर – (घ) भरत ।
4. रानी दिशाओं को कैसे दीप्त कर रही थी ?
(क) आग-सी
(ख) उल्का-सी
(ग) दीये-सी
(घ) प्रचंड तेज-सी ।
उत्तर – (ख) उल्का-सी ।

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