JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 7 पर्वत प्रदेश में पावस

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 7 पर्वत प्रदेश में पावस

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 7 पर्वत प्रदेश में पावस (सुमित्रानंदन पंत)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

कवि-परिचय

श्री सुमित्रानंदन पंत छायावादी काव्य-धारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनका जन्म 20 मई, सन् 1900 ई० में प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पंत तथा माता का नाम सरस्वती था। पंत जी जन्म के कुछ घंटे के पश्चात् ही अपनी माँ की स्नेह-छाया से वंचित हो गए थे। उन्होंने अपने बचपन का नाम गुसाईं दत्त से बदल कर सुमित्रानंदन पंत रख लिया । स्वभाव की कोमलता एवं प्रकृति की सुकुमारता ने मिलकर कवि को कोमल भावों का गायक बना दिया। पंत जी के ऊपर युग-चेतना का प्रभाव भी रहा है। गांधी जी के आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने कॉलेज का अध्ययन छोड़ दिया था। इन पर गाँधी जी के अतिरिक्त मार्क्स तथा अरविंद दर्शन का भी प्रभाव रहा है। इन्होंने ‘लोकायतन’ सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की थी तथा ‘रूपाभ’ पत्रिका का संपादन भी किया था। इन्हें भारत सरकार ने सन् 1961 ई० में पद्मभूषण से अलंकृत किया था। ये हिंदी के पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता थे जो इन्हें सन् 1969 में ‘चिंदबरा’ पर मिला था। सन् 1960 ई० में इन्हें ‘कला’ और ‘बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। संस्कृत, हिंदी, बंगला एवं अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के अध्ययन द्वारा पंत जी ने अपनी प्रतिभा को समृद्ध बनाया। उनके ऊपर अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध कवि कीट्स तथा शैली और कवि रवींद्रनाथ टैगोर का भी प्रभाव रहा था । 28 दिसंबर, सन् 1977 ई० को पंत जी का निधन हो गया था ।
रचनाएँ — पंत जी ने अपने युग की मांग के अनुसार अनेक रचनाएँ लिखी थीं। इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं-
काव्य – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुँजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, सत्यकाम। लोकायतन महाकाव्य पर पंत जी को एक लाख रुपए का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
नाटक – रजत – रश्मि, ज्योत्स्ना, शिल्पी ।
उपन्यास – हार।
कहानियां एवं संस्मरण – पाँच कहानियां, साठ हर्ष, एक रेखांकन ।
साहित्यिक विशेषताएं – पंत जी का काव्य अपने युग का दर्पण कहा जा सकता है। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
सुमित्रानंदन पंत का काव्य धीरे-धीरे विकसित हुआ। उच्छ्वास से गुँजन तक कवि प्रणय और प्रकृति का गायक रहा और उसे शुद्ध सौंदर्यवादी कवि स्वीकार किया जा सकता है। ‘युगांत’ उनकी काव्य चेतना के एक युग का अंत है और ‘युगांत’ से ‘ग्राम्या’ तक उनकी भौतिकवादी दृष्टि अधिक सजग रही और वे मार्क्सवाद से प्रभावित रहे । ‘स्वर्ण धूलि’ से ‘उत्तरा’ तक वे अध्यात्मवाद की ओर झुके प्रतीत होते हैं तथा अरविंद दर्शन का उन पर गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है। ‘लोकायतन’ में गांधीवादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव लक्षित होता है।
पंत जी के काव्य में कल्पना, अनुभूति, संवेदना और विचारशीलता एक साथ है। ‘पल्लव’ काल की रचनाओं में कल्पना अधिक है। ‘बादल’ नामक कविता में कल्पना के विविध रूप दिखाई पड़ते हैं। पंत, प्रकृति के कवि थे और शायद पहले हिंदी कवि भी, जिन्होंने स्पष्ट रूप से सांसारिक मांसलता के स्थान पर प्रकृति के सूक्ष्म सौंदर्य को स्वीकार किया और लिखा-
“छोड़ द्रुमों का मृदु छाया, तोड़ प्रकृति की भी माया ।
बाले! तेरे बाल जाल में, कैसे उलझा दूँ लोचन ।”
आजीवन अविवाहित रहने वाले पंत जी निश्चय ही प्रकृति में अपनी माँ, अपनी प्रेयसी तथा अपना सर्वस्व खोजते रहे। पंत जी की कविता प्रकृति के मनोरम चित्रों की अद्भुत चित्रशाला है। ग्रीष्म ऋतु में सूखी हुई गंगा का चाँदनी रात में चित्रण कितना मार्मिक है-
“सैकत शैय्या पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल,
लेटी है भ्रांत, क्लांत, निश्चल!”
पंत जी की काव्य रचना का छायावादी दौर समाप्त होने पर प्रगतिवादी दौर आरंभ होता है। ‘ताज’, ‘दो लड़के’ तथा ‘वह बुड्ढा’ शीर्षक कविताएं कवि की प्रगतिशील चेतना की सूचक हैं। ‘ताज’ को शोषण का प्रतीक और रूढ़िवादी, पतनशील विचारधारा का स्तूप बताते हुए कवि ने लिखा-
“हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन !
जब विषण्ण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन ।”
पंत के काव्य का कलापक्ष अत्यंत सुंदर है। पंत जी प्रधान रूप से कलाकार ही हैं। उनके काव्य में सर्वप्रथम कला का, फिर विचारों का और अंत में भावों का स्थान है। अपनी कृति में सौंदर्य का प्रतिफलन करने के लिए कलाकार जिन साधनों का उपयोग करता है, वे सभी कला के प्रसाधन हैं। पंत जी शब्द – चित्रों के अद्भुत कलाकार हैं। सचित्र विशेषणों का चयन पंत जी की दूसरी विशेषता है। वे एक ही शब्द अथवा पंक्ति में व्यापक कल्पना को समेट सिकोड़कर बंद कर देते हैं। इस प्रकार के शब्द-चित्र उनके काव्य में सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं। ‘बापू के प्रति’ कविता में ‘अस्थिशेष’, ‘माँसहीन’, ‘नग्न’ आदि विशेषणों को पंत जी ने चित्रमय बना दिया है। पंत जी के काव्य में रंगों का चमत्कार भी है, परंतु ये रंग इतनी कोमलता लिए हैं कि तितली के पंखों की तरह छूने मात्र से ही इनका रंग उतर जाता है।
पंत जी की भाषा में संस्कृत की व्यंजनापूर्ण तत्सम शब्दावली का प्राचुर्य है। ब्रजभाषा, अवधी तथा कहीं-कहीं उर्दूफ़ारसी के शब्दों का भी प्रयोग उन्होंने किया है। कविवर पंत ने खड़ी बोली को कोमलता एवं सरसता प्रदान की है। उनके कलात्मक संकेत पर भाषा नाचती दिखाई पड़ती है। सचमुच सुमित्रानंदन पंत प्रणय, प्रकृति और मानव प्रेम के महान् कवि हैं।

कविता का सार/प्रतिपाद्य

‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में प्राकृतिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों का आकर्षक रूप से चित्रण किया है। बादलों और धूप की आँखमिचौनी के कारण प्रकृति प्रतिपल अपना रूप बदल रही है। श्रृंखला बद्ध ऊँचे पर्वत अपने ऊपर खिले हुए पुष्परूपी नेत्रों से अपनी तलहटी के सरोवर रूपी दर्पण में मानों अपनी शोभा देख रहे हैं। बहते हुए झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। पर्वत शिखरों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर देख रहे हैं। अचानक बादलों के घिर आने से कुछ भी दिखाई नहीं देता। ऐसा लगता है मानो बादल रूपी पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। केवल झरनों का शोर सुनाई देता है। ऐसा लगता है जैसे धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। मूसलाधार वर्षा के कारण भयभीत होकर शाल के वृक्ष जैसे धरती में समा गए हों तथा कुहरा इतना अधिक बढ़ गया है मानो तालाब में आग लग गयी हो और वहीं से धुआँ उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों रूपी यान पर बैठकर इंद्र विभिन्न प्रकार के जादू के खेल खेल रहा है।

पढ्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश ।
 मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
शब्दार्थ – पावस = वर्षा, बरसात। ऋतु = मौसम। पल-पल = प्रतिक्षण, हर समय। परिवर्तित = बदलता हुआ। प्रकृति = वेश, प्रकृति का स्वरूप। मेखलाकार = शृंखलाकार, मंडलाकार, एक में एक जुड़े हुए। अपार = बहुत अधिक, जिसका पार न हो, असीम। सहस्त्र = हज़ार। दृग = आँखें। सुमन = पुष्प, फूल। अवलोक = देखना। निज = अपना। महाकार = विशाल आकार । ताल = सरोवर | दर्पण = शीशा ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन किया है।
व्याख्या—इन पंक्तियों में कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु थी। पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिक्षण अपना रूप बदल रही थी। शृंखला बद्ध ऊँचे उठे हुए बहुत बड़े पर्वत पर अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे और उस पर्वत श्रृंखला की तलहटी में दर्पण के समान फैला हुआ विशाल सरोवर था। ऐसा लगता था मानो यह शृंखला बद्ध अपार पर्वत अपने सहस्रों पुष्प रूपी नेत्रों से अपनी शोभा इस सरोवर रूपी दर्पण में देख रहा है।
विशेष – (1) प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
(2) शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
(3) अनुप्रास, रूपक, उपमा एवं पुनरुक्ति प्रकाश है।
2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
शब्दार्थ – गिरि = पर्वत । गौरव = यश, सम्मान, महत्त्व | मद = मस्ती, आनंद । निर्झर = झरना। उर = हृदय । उच्चाकांक्षा = ऊँचा उठने की कामना । तरुवर = बड़े वृक्ष । नीरव = चुपचाप | नभ = आकाश । अनिमेष = एकटक, टकटकी बांध कर। अटल = स्थिर, बिना हिले-डुले ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश का आकर्षक वर्णन किया है।
व्याख्या— कवि लिखता है कि पर्वतों से निकलने वाले झरने मानो पर्वत का यशोगान गाते हुए कल-कल स्वर करते हुए बहते हैं और प्रत्येक अंग में मादकता भर रहे हैं । झाग से भरे हुए झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर लगते हैं। पर्वत की चोटियों पर खड़े हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शून्य आकाश की ओर एकटक देखते हुए ऐसे लग रहे हैं मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से चिंता मुक्त कोई व्यक्ति बिना किसी अन्य की ओर आँख उठाये सदा स्थिर भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगा रहता है।
विशेष – (1) प्रकृति का मानवीकरण हुआ है।
(2) तत्सम युक्त खड़ी बोली तथा मुक्तक छंद है।
(3) अनुप्रास, पदमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का प्रयोग है।
3. उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव- शेष रह गए हैं निर्झर !
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल 
शब्दार्थ – भूधर = पर्वत । अपार = बड़े-बड़े, असीम । वारिद = बादल। पर = पंख। रव = आवाज़, शोर। शेष = बाकी । भू = धरती। अंबर = आकाश। सभय = डर कर, भयभीत होकर । शाल = शाल का वृक्ष । ताल = सरोवर। जलदयान = बादल रूपी यान। विचर- विचर= घूम-घूम कर। इंद्रजाल = जादू के खेल।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में प्रतिपल बदलते हुए पर्वतीय प्रदेश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया है।
व्याख्या — कवि लिखता है कि वर्षा ऋतु में घनघोर बादलों के छा जाने से ऐसा लगता है मानो अचानक बादल रूपी बड़े-बड़े पंखों को फड़फड़ा कर पर्वत कहीं उड़ गया हो। बादलों के कारण पर्वत दिखाई नहीं देता है। केवल झरनों के बहने की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसी मूसलाधार वर्षा हो रही है मानो धरती पर आकाश टूट कर गिर गया हो। साल के बड़े-बड़े वृक्ष भयभीत होकर धरती में धंस से गए प्रतीत होते हैं । कोहरा इतना फैल गया है कि मानो सरोवर जल गया हो और उस में से धुँआं उठ रहा हो। इस प्रकार से बादलों रूपी यान में बैठ कर इंद्र वहाँ अपने जादू के खेल दिखा रहा था।
विशेष – (1) प्रकृति के आलंबन रूप का चित्रण है।
(2) भाषा तत्सम प्रधान, मुक्त छंद तथा मानवीकरण अलंकार है ।

J&K class 10th Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Textbook Questions and Answers

( क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर — पावस ऋतु में प्रकृति में लगातार परिवर्तन होता रहता है। कभी धूप निकल आती है तो कभी घने काले बादल छा जाते हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। घने बादलों के आ जाने पर सब कुछ बादलों की ओट में छिप जाता है। चारों ओर घना अंधकार छा जाता है। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष धुले हुए से प्रतीत होते हैं। पर्वतों से निकलने वाले झरने मधुर ध्वनि करते हुए बहने लगते हैं। आकाश में तेज़ी से इधर-उधर घूमते हुए बादल अत्यंत आकर्षक लगते हैं।
प्रश्न 2. ‘मेखलाकार शब्द का क्या अर्थ है ? कवि ने यह प्रयोग क्यों किया है ? 
उत्तर — मेखलाकार का शाब्दिक अर्थ है- शृंखलाकार, मंडलाकार, एक से एक जुड़े हुए। कवि ने पर्वत की सुंदरता प्रकट करने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है। पर्वतों की शृंखलाएं एक-दूसरे से जुड़ कर दूर तक फैली हुई हैं और उसकी सुंदरता व्यापकता से प्रकट हो रही है।
प्रश्न 3. ‘सहस्त्र दृग सुमन’ से क्या तात्पर्य है ? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा ?
उत्तर — ‘सहस्त्र दृग सुमन’ से तात्पर्य हज़ारों पुष्प रूपी आँखें हैं। कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वत के लिए किया है। पर्वत पर फूल खिले हुए थे और पर्वत के नीचे विशाल सरोवर था। कवि ने कल्पना की है कि ऐसा लगता है मानो पर्वत सहस्त्रों फूलों रूपी नेत्रों से अपनी शोभा को तालाब रूपी दर्पण में निहार रहा हो।
प्रश्न 4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों ?
उत्तर — कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। कवि ने ऐसी समानता इसलिए की है क्योंकि तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ और निर्मल था। जिस प्रकार दर्पण में प्रतिबिंब को साफ-साफ देखा जा सकता है, उसी प्रकार तालाब के जल में भी पर्वत और उस पर लगे फूलों का प्रतिबिंब साफ दिखाई दे रहा था। कवि द्वारा तालाब की समानता दर्पण से करना अत्यंत उपयुक्त एवं सटीक है।
प्रश्न 5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं ?
उत्तर — पर्वत की चोटियों पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे। वे पेड़ आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए आकाश की ओर झाँकते प्रतीत हो रहे थे। ऐसा लगता था मानो वे और अधिक ऊँचा उठना चाहते थे। वे पेड़ एक ऐसे व्यक्ति को प्रतिबिंबित कर रहे थे जो ऊँचा उठने की आकांक्षा से ओत-प्रोत हो और चिंता मुक्त होकर स्थिर भाव से अपने लक्ष्य को पाने की चाह में निरंतर बढ़ रहा हो ।
प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए ?
उत्तर — कवि ने शाल के वृक्षों से भयभीत होकर धरती में धँसने की कल्पना की है। वर्षा इतनी तेज़ और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश टूट कर धरती पर गिर गया हो । कोहरे के फैलने से उठता हुआ धुआँ ऐसा प्रतीत होता था मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआँ उठ रहा हो । वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर ही शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते थे ।
प्रश्न 7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं ? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर — झरने अपनी कल-कल की ध्वनि से पर्वत के गौरव का गान करते प्रतीत हो रहे थे । बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ियों से की गई है। बहते हुए झरने में झाग के मोटे-मोटे बुलबुले बन रहे थे जो मोतियों के समान लग रहे थे। इसी कारण कवि ने बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ी से की है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर 
2. – यों जलद – यान में विचर- विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल
3. गिरिवर के उर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर — (1) प्रस्तुत पंक्ति से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत- प्रदेश में होने वाली वर्षा अत्यंत भयंकर थी । वर्षा मूसलाधार रूप से पर्वतों पर पड़ रही थी । बादलों से बड़ी तेजी से और मोटे रूप में जल की वर्षा हो रही थी । ऐसी भयंकर वर्षा को देखकर ऐसा लगता था मानो आकाश ही टूटकर धरती पर आ गिरा हो जिसके परिणामस्वरूप ऐसी वर्षा हो रही है।
(2) प्रस्तुत पंक्ति से कवि का भाव यह है कि उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो वर्षा का देवता इंद्र बादलों के यान में बैठा हुआ जादू का कोई खेल खेल रहा हो। आकाश में इधर-उधर उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर ऐसा लगता था जैसे बड़े-बड़े पहाड़ अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। कहीं गहरे कोहरे के कारण चारों ओर धुआँ ही धुआँ था तो कहीं मूसलाधार वर्षा से आकाश ही धरती पर टूटकर गिरने जैसा प्रतीत हो रहा था। पहाड़ों का उड़ना, चारों ओर धुआँ होना और मूसलाधार वर्षा का होना, ये सब जादू के खेल के समान दिखाई दे रहे थे।
(3) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत की चोटियों पर पेड़ उगे हुए थे। वे सब पेड़ पर्वत के हृदय के समान थे। पर्वत की चोटियों पर उगे ऊँचे-ऊँचे वे पेड़ आकाश में झाँकते हुए ऐसे प्रतीत होते थे मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से कोई व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो कर निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा हो।

कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर — काव्य में जड़ अथवा चेतन तत्वों पर मानवीय, भावों, संबंधों और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाना ही मानवीकरण अलंकार होता है। प्रस्तुत कविता में तो सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। पर्वत को अपने फूल रूपी क्षेत्रों से अपना प्रतिबिंब देखते चित्रित किया गया है। पर्वतों पर लगे हुए पेड़ों को चिंतामुक्त हुए लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर मनुष्य के समान दर्शाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थान पर पर्वत को बादलों के पंख लगाकर उड़ते हुए तथा शाल के पेड़ों को भयभीत होकर धँसते हुए चित्रित करके कवि ने इन सब का सुंदर मानवीकरण किया है।
प्रश्न 2. आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है ?
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर ।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर |
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।
उत्तर — (ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर ।
प्रश्न 3. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर —
(i) – मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग- सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
(ii) गिरिवर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर ।
(iii) धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ हरा धुआँ, जल गया ताल!

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात की गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में लिखिए।
उत्तर — वर्षा ऋतु में प्रकृति अत्यंत मोहक रूप धारण कर लेती है। चारों ओर लहलहाते खेत और पेड़ हृदय को आनंद प्रदान करते हैं। नदियाँ, सरोवर और नदी-नाले सब जल से भर जाते हैं। मोर नाच उठते हैं। औषधियां और वनस्पतियाँ लहलहा उठती हैं। पेड़ों पर पड़ने वाली वर्षा की बूंदों से पेड़ नहाकर चमकदार हो जाते हैं। पशु-पक्षी आनंद मग्न हो उठते हैं। चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है। बागों और बगीचों में फिर से बहार आ जाती है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1 वर्षा ऋतु पर लिखी गई अन्य कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।
2. बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली, फूल, फल आदि या कोई भी प्रकृति विषयक शब्दों का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर — विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

J&K class 10th Hindi पर्वत प्रदेश में पावस Important Questions and Answers

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार
जिसके चरणों में पला ताल 
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) पर्वत अपना प्रतिबिंब कहाँ देख रहा है ?
(iii) किस पंक्ति से ज्ञात होता है कि पर्वत अपना रूपाकार देखकर चकित है ?
(iv) काव्यांश से पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और उपमा का एक-एक उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर —
(i) कवि – सुमित्रानंदन पंत, कविता – पर्वत प्रदेश में पावस
(ii) पर्वत अपना प्रतिबिंब अपनी तलहटी के सरोवर में देख रहा है।
(iii) अपने सहस्र दृग सुमन फाड़
(iv) पुनरुक्ति प्रकाश – अवलोक रहा है बार-बार ।
अनुप्रास, मानवीकरण – अपने सहस्र दृग सुमन फाड़ |
प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य बताइए-
(क) मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर
(ख) गिरिवर के उर से उठ उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ भर ।
(ग) धँस गए धरा में सभय शाल !
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल ! 
उत्तर — (क) कवि ने पहाड़ों की ऊँचाइयों से नीचे गिरते झरनों की सुंदरता का चित्रण किया है और कहा है कि वे धाराएं मोती की लड़ियों के समान सुंदर प्रतीत होती हैं। खड़ी बोली के प्रयोग में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहजसमन्वित प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण विद्यमान है। लाक्षणिकता ने कवि के कथन को गहनता प्रदान की है। प्रतीकात्मकता के कारण कथन को सुंदरता मिली है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है।
(ख) पंत जी ने पहाड़ों पर उगे ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की शोभा को प्रकट करते हुए माना है कि वे उच्च आकांक्षाओं की तरह आकाश में झांकते से प्रतीत होते हैं। तत्सम शब्दावली की अधिकता है। प्रसाद गुण तथा लक्षणा शब्दशक्ति ने कवि के कथन को गंभीरता प्रदान की है। पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है।
(ग) पंत जी ने पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली मूसलाधार वर्षा का वर्णन करते हुए प्रकट किया है कि बादल इतने गहरे हैं कि उन्होंने सब कुछ छिपा दिया है। ऐसा लगता है कि शाल के पेड़ भयभीत हो कर धरती में छिप गए हैं। कोहरे की समानता के कारण सरोवर जलता-सा प्रतीत होता है। खड़ी बोली के प्रयोग में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। प्रसाद गुण विद्यमान है।
प्रश्न 3. वर्षा काल में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल अपना रूप क्यों बदल रही है ?
उत्तर — वर्षा काल में पर्वतीय प्रदेश में कभी धूप और कभी बादल छा जाते हैं। बादल और धूप की इस आँख-मिचौनी के कारण पर्वतीय प्रदेश के प्राकृतिक परिवेश में प्रतिपल परिवर्तन हो रहा है। धूप निकलने पर आस-पास के पर्वतों का सौंदर्य स्पष्ट दिखाई देता है, परंतु बादलों के आने से पर्वत छिप जाते हैं तथा सर्वत्र अंधकार छा जाता है।
प्रश्न 4. ‘फड़का अपार बादल के पर’ से क्या आशय है ? 
उत्तर — वर्षा ऋतु में पर्वतीय क्षेत्र में बादलों के घिर आने पर पर्वत, वृक्ष, पुष्प, झरने आदि दिखाई नहीं देते। वे सभी बादलों से ढक जाते हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से यह कल्पना की है कि पर्वत बादल रूपी पंखों को फड़फड़ा कर वहाँ से कहीं उड़ गया है। जैसे पक्षी के उड़ने पर उस के पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देती रहती है वैसे ही बादलों की गर्जना सुनाई दे रही है।
प्रश्न 5. वर्षा के समय आपके घर के आसपास कैसा दृश्य होता है ? उसका वर्णन एक अनुच्छेद में कीजिए।
उत्तर — वर्षा के समय हमारे घर के आसपास जल ही जल हो जाता है। हमारी गली में नदी-सी बहने लगती है। आस-पास के छोटे बच्चे उस नदी में छलाँगें लगाते हुए जल-क्रीड़ा करने लगते हैं। कुछ बच्चे कागज़ की नावें बना कर उसे पानी में तैराते हैं। पेड़ों पर पड़ने वाली वर्षा की बूँदों से पेड़ नहा कर चमकने लगते हैं। मकानों की दीवारें धुली हुई लगती हैं। गली का कचरा बह जाता है और गली भी साफ-सुथरी लगने लगती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सुमित्रानंदन पंत का जन्म किस गाँव में हुआ ?
उत्तर — उत्तराखंड के कौसानी अल्मोड़ा में।
प्रश्न 2. सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ ?
उत्तर — 20 मई, सन् 1900 में।
प्रश्न 3. कवि को सन् 1961 ई० में कौन-से सम्मान से अलंकृत किया गया ?
उत्तर — पद्मभूषण से।
प्रश्न 4. हिंदी का पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार किसको मिला ?
उत्तर — सुमित्रानंदन पंत को।
प्रश्न 5. चिदन्बरा काव्य रचना पर पंत जी को कौन-सा पुरस्कार मिला ?
उत्तर — ज्ञानपीठ पुरस्कार।
प्रश्न 6. कवि को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस कृति पर मिला ?
उत्तर — कला और बूढ़ा चाँद ।
प्रश्न 7. कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है ?
उत्तर — पावस (वर्षा) ऋतु का |
प्रश्न 8. अपार पर्वत कैसा था ?
उत्तर — मेखलाकार ।
प्रश्न 9. ताल किसके समान फैला था ?
उत्तर — दर्पण के समान ।
प्रश्न 10. शाल के वृक्ष कहाँ धँस गए ?
उत्तर — धरा में ।
प्रश्न 11. इंद्र किसमें विचरण कर रहा था ?
उत्तर — जल स्थान में बैठकर विचरण कर रहा था ।
प्रश्न 12. लोकायतन के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर — सुमित्रानंदन पंत ।
प्रश्न 13. पंत को ज्ञानपीठ किस रचना पर मिला ?
उत्तर — चिदंबरा |
प्रश्न 14. सुमित्रानंदन पंत किस काव्यधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं ?
उत्तर — छायावाद ।
प्रश्न 15. प्रकृति-सम्राट् किस कवि को कहा गया है ?
उत्तर — सुमित्रानंदन पंत को ।
प्रश्न 16. ‘रूपाभ’ पत्रिका का संपादन किस कवि ने किया ?
उत्तर — सुमित्रानंदन पंत ने ।
प्रश्न 17. पंत जी की कौन-सी कविता हमारे पाठ्यक्रम में है ?
उत्तर — पर्वत प्रदेश में पावस ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. पर्वत का यशगान कौन गा रहे हैं ?
(क) पक्षी
(ख) वृक्ष
(ग) झरने
(घ) पत्थर ।
उत्तर — (ग) झरने ।
2. कवि ने मोतियों की लड़ी किसे कहा है ?
(क) वृक्ष पर खिले हुए फूलों को
(ख) झाग से भरे झरने के जल को
(ग) आकाश में चमकते तारों को
(घ) आकाश में उड़ते पक्षियों को ।
उत्तर — (ख) झाग से भरे झरने के जल को ।
3. शून्य आकाश की ओर टकटकी लगाए कौन देख रहा है ?
(क) पर्वत की चोटियाँ
(ख) पर्वत पर आए पर्यटक
(ग) पर्वत पर उगे वृक्ष
(घ) पर्वत से निकले झरने ।
उत्तर — (ग) पर्वत पर उगे वृक्ष ।
4. ‘उच्चाकांक्षा’ क्या है ?
(क) ऊँचा उठने की कामना
(ख) ऊँचा पर्वत
(ग) ऊँचाई पर भवन
(घ) ऊँचे लोगों से संबंध बनाना ।
उत्तर — (क) ऊँचा उठने की कामना ।
5. इन पंक्तियों में प्रमुख अलंकार है-
(क) मानवीकरण
(ख) अतिशयोक्ति
(ग) यमक
(घ) श्लेष |
उत्तर — (क) मानवीकरण ।
6. कवि ने किसे उड़ता हुआ बताया है ?
(क) चील
(ख) बादल
(ग) कबूतर
(घ) पर्वत ।
उत्तर — (घ) पर्वत ।
7. पर्वत किस के पंख लगाकर उड़ गया ?
(क) मोर
(ख) बादल
(ग) हवा
(घ) तूफ़ान ।
उत्तर — (ख) बादल ।
8. कवि के अनुसार शाल के पेड़ कहाँ चले गए ?
(क) धरती में
(ख) पर्वत में
(ग) सरोवर में
(घ) कंदराओं में ।
उत्तर — (क) धरती में ।
9. कवि ने जादूगर किसे बताया है ?
(क) बादल को
(ख) वायु को
(ग) इंद्र को
(घ) आकाश को ।
उत्तर — (ग) इंद्र को ।
10. धुआँ कहाँ से उठ रहा था ?
(क) तालाब से
(ख) पर्वत से
(ग) आकाश से
(घ) धरती से ।
उत्तर — (क) तालाब से।

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