JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 8 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 8 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

JKBOSE 10th Class Hindi Solutions chapter – 8 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (महादेवी वर्मा)

Jammu & Kashmir State Board JKBOSE 10th Class Hindi Solutions

कवि-परिचय

श्रीमती महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात हैं। इसका कारण यह है कि मीरा की तरह महादेवी जी ने अपनी विरह-चेतना को कला के रंग में रंग दिया है। महादेवी जी का जन्म सन् 1907 ई० की होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक नगर में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। माता के प्रभाव ने इनके हृदय में भक्ति भावना के अंकुर को जन्म दिया। सन् 1933 में इन्होंने प्रयाग में संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला विद्यापीठ के आचार्य पद के उत्तरदायित्व को निभाते हुए भी वर्मा जी साहित्य साधना में लीन रहीं। सन् 1956 ई० में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया तथा इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन्हें चित्रकला में भी रुचि थी। 11 सितंबर, सन् 1987 में इनका निधन हो गया।
रचनाएँ – महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की। उनकी कृतियों का उल्लेख इस प्रकार है-
काव्य – नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, प्रथम आयाम, अग्नि रेखा, यामा तथा दीप शिखा । गद्य रचनाएँ – शृंखला की कड़ियां, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, क्षणदा, मेरा परिवार और चिंतन के क्षण।
काव्यगत विशेषताएँ – महादेवी जी आधुनिक युग की सफल कवयित्री हैं। उनके काव्य में भाव पक्ष एवं कला पक्ष दोनों का सुंदर निखार है। उनके काव्य में निम्नलिखित तत्वों की प्रधानता है
1. वेदना – महादेवी जी वेदना और करुणा की सबसे बड़ी कवयित्री हैं। अपने जीवन में व्याप्त पीड़ा एवं दुःखवाद के विषय में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है, “बचपन से ही भगवान् बुद्ध के प्रति एक भक्तिमय अनुराग होने के कारण उनके संसार को दुःखात्मक समझने वाले दर्शन से मेरा असमय ही परिचय हो गया था ।” यही कारण है कि महादेवी जी पीड़ा को अपनी सबसे बड़ी थाती समझती हैं। इसका परित्याग करके तो वे प्रियतम का उपहार ‘अमरों का लोक’ भी ठुकरा देना चाहती हैं-
क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव ! अरे,
यह मेरा मिटने का अधिकार ।
2. रहस्यवाद – महादेवी जी उस ‘चिर सुंदर’ की उपासिका हैं। उन्होंने अपने गीतों में रहस्यवाद की सभी स्थितियों का चित्रण किया है। वे निरंतर साधनामय  जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखती हैं।
3. प्रकृति – चित्रण – छायावादी युग की कवयित्री होने के कारण वर्मा जी ने प्रकृति के भिन्न रूपों का भी चित्रण किया है। कभी वे प्रकृति उपकरणों में अपने प्राणों का स्पंदन खोजती हैं तो कभी यह प्रकृति उस विराट की छाया मात्र बन जाती है। प्रकृति का प्रत्येक रहस्यमय व्यापार उस अनंत की साधना करता प्रतीत होता है।
4. छायावाद – महादेवी जी के काव्य में छायावाद, प्रकृति-चित्रण तथा रहस्यवाद घुल-मिल कर प्रस्तुत हुए हैं। इसका कारण यह है कि प्रकृति के माध्यम से ही महादेवी जी उस चिर सुंदरता के दर्शन करती हैं। उनके काव्य में छायावाद की भाव-पक्ष एवं कला – पक्ष संबंधी सभी विशेषताएं उपलब्ध हो जाती हैं।
5. गीति तत्व – महादेवी जी प्रमुख रूप से गीतिकार हैं। उनके गीतों में एकरूपता, वैयक्तिक्ता, संगीतात्मकता, ध्वन्यात्मकता, प्रवाहपूर्णता एवं भावातिरेक आदि सभी विशेषताएं पाई जाती हैं। गीत लिखने में जो सफलता महादेवी जी को मिली है वह आधुनिक युग के किसी भी कवि को प्राप्त नहीं हुई।
भाषा-शैली – महादेवी जी को संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। अतः उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ बन गई है। भाषा में संगीतात्मकता, कोमलता और सरसता है। इनके गीतों में अलंकारों की भी सुंदर छटा है। ‘मानव’ के शब्दों में-“महादेवी जी की कला का जन्म अक्षय सौंदर्य के मूल से, दिव्य प्रेम के भीतर से, अलौकिक प्रकाश की गुहा और पावन आँसुओं के अंतर से हुआ है । “

कविता का सार

महादेवी वर्मा कृत ‘नीरजा’ से संकलित ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में कवयित्री की अनुभूति और चिंतन का सुंदर समन्वय है। क्वयित्री ने ‘दीपक’ को परोपकार, वेदना और त्याग की भावनाओं का प्रतीक मान कर यह प्रकट करना चाहा है कि वह अपने जीवन के कण-कण को दीपक की लौ की तरह जला कर प्रियतम के पथ को प्रकाशमान रखना चाहती है, सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए कवयित्री ने प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया है। वह जीवन रूपी दीपक को संबोधित करती हुई कहती है कि हे मेरे मधुर दीपक ! तू सदा जलता रह जिससे मेरे प्रियतम का पथ सदा प्रकाशित रहे, उन के पथ का अंधकार मिट जाए और मेरे पास आने में किसी प्रकार की असुविधा न हो! हे दीपक! तू धूप बन कर संसार में सुगंधि को फैला दे। तू स्वयं को जला कर सारे संसार को दिव्य प्रकाश प्रदान कर संसार में जितने भी शीतल, कोमल और नवीन पदार्थ हैं वे सभी तेरी जलन में जलना चाहते हैं। संसार रूपी पतंगा पछता कर कहता है कि वह तुझ में मिलकर क्यों नहीं जल पाया। अरे दीपक ! तू हँस-हँस कर जल। तुम्हें जलने में किसी प्रकाश की पीड़ा अनुभव न हो क्योंकि संसार के अन्य सभी पदार्थ भी तो लगातार जलते रहते हैं। आकाश में असंख्य तारे बिना तेल के ही जल रहे हैं। सागर पानी से भरा होने पर भी बड़वाग्नि (समुद्री आग) से अपने हृदय को जलाता रहता है। बादल, बिजली से निरंतर स्वयं को जलाता रहता है । कवयित्री दीपक से पुनः कहती है कि उसे जलने में पीड़ा का अनुभव नहीं करना चाहिए। पीड़ा में ही आनंद की प्राप्ति होती है। अतः उसे चुपचाप निरंतर जलते रहना चाहिए।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
शब्दार्थ – प्रतिदिन = प्रत्येक दिन । प्रतिक्षण = प्रत्येक क्षण । प्रियतम = प्रिय । पथ = रास्ता । आलोकित =  प्रकाशित।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने दीपक को परोपकार, वेदना और त्याग की भावनाओं का प्रतीक मानकर वेदना से ही प्रियतम को प्राप्त करने की बात कही है।
व्याख्या—कवयित्री कहती है कि हे मेरे भावना रूपी दीपक ! तू जलता रहे। तू इसी प्रकार युगों-युगों तक, प्रति दिन प्रति पल अपना प्रकाश बिखेरता रहे और मेरे प्रियतम के पथ को प्रकाशित करता रहे । तेरे इस प्रकार प्रकाश फैलाने से उनके रास्ते का अंधकार मिट जाएगा और उन्हें मुझ तक पहुँचने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। भाव यह है कि वह स्वयं कष्ट झेल कर भी अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित करना चाहती है क्योंकि वेदना को सहन करने से ही परम प्रियतम की प्राप्ति संभव हो सकती है।
विशेष – (1) कवयित्री को जीवन रूपी दीपक को प्रज्वलित रहने की इच्छा प्रकट हुई है।
(2) प्रतीकात्मक शैली तथा तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
(3) वीप्सा, रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का प्रयोग है।
2. सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
शब्दार्थ- सौरभ = सुगंधि । विपुल = बहुत अधिक। मृदुल = कोमल । मृदु तन = कोमल शरीर । सिंधु = सागर । अपरिमित = अपार । पुलक = पुलकित होकर, प्रसन्न होकर।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को ‘दीपक’ के समान जलाकर दूसरों को सुख प्रदान करने की भावना को प्रकट किया है। कवयित्री का मानना है कि दूसरों को सुख प्रदान करने के लिए स्वयं को दुःख देना ही पड़ता
व्याख्या— कवयित्री कहती है कि हे मेरे दीपक ! तू प्रसन्नता में भर कर जल । तू धूप बन कर सारे संसार में सुगंधि फैला दे तथा उसे प्रकाश से भर देने के लिए अपने सुंदर शरीर को कोमल मोम की तरह घोल दे। तेरे जीवन का कणकण गल कर संसार को अपरंपार प्रकाश का सागर प्रदान करे अर्थात् तू स्वयं को मिटा कर संसार को उज्ज्वलता प्रदान कर। भाव यह है कि कवयित्री स्वयं दुःख उठा कर दूसरों को सुख प्रदान करना चाहती है। उसे अपने सुखों के प्रति मोह नहीं है। वह तो सारे समाज को सुख-संपन्न करना चाहती है।
विशेष – (1) दूसरों को सुख देने के लिए अपने को दुःख देना ही पड़ता है। इस भावना का उल्लेख हुआ है।
(2) तत्सम शब्दावली की प्रधानता तथा प्रतीकात्मकता का समावेश है।
(3) उपमा रूपक, वीप्सा एवं अनुप्रास अलंकार है ।
3. सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला – कण
विश्व- शलभ सिर धुन कहता ‘मैं
हाय न जल पाया तुझ में मिल’!
सिहर सिहर मेरे दीपक जल!
शब्दार्थ – शीतल = ठंडा । नूतन = नया, नवीन । ज्वाला-कण = आग के टुकड़े । विश्व – शलभ = संसार रूपी पतंगा। सिर धुनना = पछताना ।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने मानव को स्वार्थपूर्ण विचारधारा को छोड़कर सभी की हितकारी विचारधारा को अपनाने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – हे मेरे प्रिय दीपक! तू सिहर-सिहर कर निरंतर जलता रह। संसार के जितने भी शीतल, कोमल और नवीन पदार्थ हैं वे सभी तुझ से आग के टुकड़े मांग रहे हैं। भाव यह है कि सभी तेरी जलन को ग्रहण करके स्वयं जलना चाहते हैं। संसार रूपी पतंगा पछता कर कहता है कि वह तुझ में मिल कर स्वयं को मिटा क्यों नहीं पाया अर्थात् उसे अत्यंत दुःख है कि वह भी कल्याणकारी भावना को लेकर नष्ट क्यों नहीं हुआ। संसार में त्याग और परोपकार की भावनाओं की अत्यंत कमी है। मनुष्य अपने स्वार्थमयी स्वभाव के कारण इन्हें अपना भी नहीं रहा है जब कि उसे इन्हें अपनाना चाहिए।
विशेष – (1) जीवन रूपी दीपक के जलने की इच्छा व्यक्त की है।
(2) तत्सम प्रधान खड़ी बोली तथा प्रतीकात्मकता शैली है।
(3) वीप्सा, अनुप्रास और रूपक अलंकारों का प्रयोग है।
4. जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत् ले घिरता है बादल !
विहँस विहँस मेरे दीपक जल !
शब्दार्थ – नभ = आकाश । असंख्यक = अनगिनत, अपार । स्नेहहीन = नीरस, शुष्क, प्रेम से रहित, तेल से रहित। जलमय = जल से परिपूर्ण | उर= हृदय । विद्युत् = बिजली । विहँस = हँस कर ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने दीपक से कहा है कि संसार का प्रत्येक पदार्थ ज्वलनशील है। अतः उसे भी निरंतर जलते रहना चाहिए।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि हे मेरे दीपक ! तू हँस-हँस कर जल और निरंतर जलने में किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव न कर क्योंकि संसार में पता नहीं कितने और पदार्थ भी तो लगातार जल रहे हैं। ज़रा देख तो, आकाश में असंख्य तारे तेल रहित होकर भी जल रहे हैं। यद्यपि सागर पानी से भरा हुआ है फिर भी बड़वाग्नि (समुद्री आग) इसे भीतर ही भीतर जलाती रहती है। उसका दिल जलता ही रहता है। चाहे बादल पानी से भरा हुआ है, पानी बरसाता है फिर भी यह बिजली को लेकर घिरता है अर्थात् कौंधने वाली बिजली से स्वयं को जलाता रहता है। भाव यह है कि प्रकृति में यदि सभी किसी-न-किसी कारण जल रहे हैं तो दीपक को भी निरंतर जलते ही रहना चाहिए।
विशेष – (1) मानव कल्याण हेतु जीवन रूपी दीपक को जलने की प्रेरणा दी है। प्रतीकात्मकता शैली है ।
(2) तत्सम शब्दावली की प्रधानता तथा
(3) वीप्सा अनुप्रास, श्लेष अलंकारों का प्रयोग है।

J&K class 10th Hindi मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर – प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ कवयित्री की कोमल भावनाओं से परिपूर्ण हृदय का प्रतीक है। ‘प्रियतम’ का प्रयोग कवयित्री ने अपने प्रिय ईश्वर के लिए किया है ।
प्रश्न 2. दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?
उत्तर – दीपक से निरंतर जलते रहने का आग्रह किया जा रहा है। दीपक स्वयं जलता है किंतु दूसरों के मार्ग को आलोकित कर देता है। वह त्याग और परोपकार का संदेश देता है। कवयित्री दीपक से जलने का आग्रह करते हुए कहती है कि जलने में पीड़ा नहीं है। जलने में तो आनंद की अनुभूति भी होती है। संसार की समस्त वस्तुएं अपने भीतर अग्नि समेटे हुए है। यदि जलने में आनंद न होता तो ऐसा कभी न होता । अतः उसे निरंतर जलते रहना चाहिए।
प्रश्न 3. ‘विश्व – शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है ? 
उत्तर – ‘विश्व – शलभ’ अपनी परोपकारी वृत्ति के कारण दीपक के साथ जल-जाना चाहता है। उसकी इच्छा है कि जिस प्रकार दीपक के जलने से सबको प्रकाश प्राप्त होता है। उसी प्रकार उसके जलने से भी कोई प्रकाश प्राप्त करे। वह भी किसी की भलाई का कारण बने ।
प्रश्न 4. आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है ?
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर ।
उत्तर – सफल बिंब अंकन पर ।
प्रश्न 5. कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही है ? 
उत्तर – कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है। उसकी इच्छा है कि वह स्वयं दीपक के समान जल कर प्रकाश फैला दे और अपने प्रियतम के मार्ग के अंधकार को दूर कर दे। वह अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित कर देना चाहती है ताकि वह उसके पास सरलता से पहुँच सके।
प्रश्न 6. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं? 
उत्तर – स्नेहहीन शब्द से तात्पर्य प्रेम रहित, नीरस और तेल से रहित है। आकाश के तारे मध्यम रोशनी में टिमटिमा रहे हैं। उनकी रोशनी अत्यधिक कम है। वे कभी जलते और कभी बुझते से प्रतीत होते हैं। कवयित्री कहती है कि ऐसा लगता है मानो इन दीपकों का तेल समाप्त हो रहा है और ये तेल रहित होने के कारण टिमटिमा रहे हैं। इसी कारण उसे आकाश के तारे स्नेहहीन से प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 7. पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है ?
उत्तर – पतंगा अपने आपको दीपक के समान जला देना चाहता है। उसकी इच्छा है कि वह भी किसी के कुछ काम आ सके। जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है उसी प्रकार वह भी दूसरों के मार्ग को प्रकाशित करना चाहता है। इस बात को उसके मन में बहुत क्षोभ है। वह कहता है कि काश ! वह भी दीपक की लौ में जलकर किसी के मार्ग को प्रकाशित करने के कारण बन पाता। ऐसा न कर पाने का उसे बहुत पछतावा है।
प्रश्न 8. मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर सिहर और विहँस-विहँस, कवयित्री ने दीपक को हर अलगअलग तरह से जलने को क्यों कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवयित्री ने इन शब्दों से अलग-अलग बिंब योजनाएं की हैं। जलते हुए दीपक की क्षण-क्षण हिलती और जगमगाती लौ की उज्ज्वलता और सुंदरता को प्रकट करने के लिए उस ने दीपक को हर तरह से जलने के लिए कहा है।
प्रश्न 9. नीचे दी गई काव्य- पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जलते नभ में देख अल्पसंख्यक
स्नेहहीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता
विद्युत् ले घिरता है बादल
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है ?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है ?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है ?
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस-विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर – (क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से तात्पर्य आकाश के असंख्य तारों से है। आकाश के तारे इस प्रकार टिमटिमाते हैं मानो उनमें तेल ही समाप्त हो गया हो।
(ख) सागर में जल भरा होता है। उसमें सर्वत्र जल ही जल दिखाई देता है। कवयित्री का मानना है कि प्रत्येक वस्तु में अग्नि विद्यमान है। यद्यपि जल और अग्नि एक साथ नहीं रह सकते फिर भी सागर में भी अग्नि का निवास होता है। सागर की इस अग्नि को बड़वानल कहते हैं। इसी अग्नि से ही सागर का हृदय जलता हुआ प्रतीत होता है।
(ग) बादलों की विशेषता उसमें छिपी बिजली को बताया गया है। बादल पानी से लबालब भरा होता है। वह बहुत जल बरसाता है किंतु उसके भीतर भी बिजली के रूप में अग्नि का निवास होता है। बादल से जब भी घनघोर वर्षा होती है तो बिजली अवश्य कौंधती है।
(घ) विहँस का अर्थ है – हँसकर | कवयित्री दीपक से कहती है कि उसे निरंतर जलने में पीड़ा का अनुभव नहीं होना चाहिए। संसार की सभी वस्तुएं जल रही हैं। सभी में अग्नि विद्यमान है। आकाश के तारे, समुद्र, बादल सभी किसी-न-किसी अग्नि में जल रहे हैं। अतः कवयित्री ने दीपक को जलने में पीड़ा का अनुभव न करके हँसने के लिए कहा है।
प्रश्न 10. क्या मीरा बाई और आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें तुम्हें कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – मीरा बाई और महादेवी वर्मा ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए अलग-अलग युक्तियां अपनाई थीं। मीरा बाई ने स्पष्ट रूप से श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम माना था और उन्हें रीझाने के लिए हर संभव कार्य किया था। वह उन के लिए नाचती थी, गाती थी और जहर का प्याला तक पी जाती थी। महादेवी के प्रियतम रहस्यवाद के घेरे से घिरे हैं। वह उन्हें अनुभूति से प्राप्त करना चाहती थी । वह उन्हें प्रकृति के कण-कण से ढूंढ़ना चाहती थी। वह उन का साकार रूप नहीं पाना चाहती थी । वह उन्हें मानसिक रूप से प्राप्त करना चाहती थी ।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

1. दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
2. युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
3. मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन !
उत्तर – (1) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने लोकमंगल की भावना को अत्यंत सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति दी है। कवयित्री कहती है कि जैसे दीपक स्वयं को मिटा कर संसार को प्रकाश प्रदान करता है वैसे ही मनुष्य को भी आत्म बलिदान द्वारा संसार का कल्याण करना चाहिए। कवयित्री की भाषा तत्सम प्रधान है। प्रवाहमयता, चित्रात्मकता तथा लयात्मकता द्रष्टव्य है। मानवीकरण एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुंदर प्रयोग है। भाषा सरल, सरस और प्रभावशाली है। बिंबात्मकता का सुंदर प्रयोग है।
(2) यहाँ कवयित्री ने सूफी कवियों के समान प्रेम की पीड़ा को सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। जिस प्रकार दीपक निरंतर जल-जल कर संसार में आलोक बिखेरता है वैसे ही मनुष्य को भी स्वयं को मिटा कर संसार का कल्याण करना चाहिए। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है। प्रसादात्मकता और लयात्मकता ने काव्य-सौष्ठव में अभिवृद्धि की है। भाषा में तत्सम् शब्दावली का प्रयोग है। भाषा की सरसता, भावानुकूलता तथा प्रवाहमयता द्रष्टव्य है । पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री का कथन है कि जैसे दीपक धीरे-धीरे मोम की तरह गल कर प्रकाश फैलाता है वैसे ही मनुष्य को भी स्वयं को बलिदान कर संसार का कल्याण करना चाहिए। कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया है। भाषा में तत्सम् शब्दावली की प्रधानता है। सरसता एवं लयात्मकता द्रष्टव्य है। अनुप्रास एवं उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

योग्यता- विस्तार

प्रश्न 1. इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें; जैसे—
(क) मैं नीर भरी दुःख की बदली। 
(ख) जो तुम आ जाते एक बार।
ये सभी कविताएँ ‘संधिनी’ में संकलित हैं।
प्रश्न 2. इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुत करें।
प्रश्न 3. महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

J&K class 10th Hindi मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Important Questions and Answers

प्रश्न 1. कवयित्री ने दीपक को किस लिए जलने के लिए कहा है ? 
उत्तर – कवयित्री अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित करना चाहती है। इसी कारण वह दीपक को युगों-युगों तक, प्रतिदिन, प्रतिपल अपना प्रकाश बिखेरने के लिए कहती है। वह चाहती है कि दीपक के प्रकाश से उसके प्रियतम के मार्ग का समस्त अंधकार दूर हो जाए और उसके प्रियतम को उस तक पहुँचने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो।
प्रश्न 2. कवयित्री ने ‘मृदु तन’ किसको कहा है और उसे क्या करने के लिए कहा है ?
उत्तर – कवयित्री ने ‘मृदु तन’ दीपक को कहा है। वह दीपक से कहती है कि वह अपने कोमल और सुंदर शरीर को कोमल मोम की तरह पिघला दे। इससे संसार को प्रकाश प्राप्त होगा। उसे अपने व्यक्तिगत सुख की अपेक्षा अपने आपको संसार के लिए नष्ट कर देना चाहिए।
प्रश्न 3. विश्व के नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से क्या माँगते हैं और क्यों ?
उत्तर – विश्व के नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से ज्वाला के कण माँगते हैं। कवयित्री का मानना है कि विश्व की समस्त वस्तुओं में पीड़ा का भाव छिपा हुआ है। पीड़ा के बिना किसी भी चीज़ का महत्त्व नहीं है। जब मन में वेदना हो तो दुनिया का दर्द समझ में आता है। जब मनुष्य दुःख और पीड़ा का अनुभव नहीं करेगा, वह समर्पण मनुष्य तक HIST का आनंद ही नहीं जान सकेगा। इसी कारण विश्व के सभी नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से ज्वाला के कण माँगते हैं।
प्रश्न 4. महादेवी वर्मा के काव्य की मूल-संवेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – महादेवी वर्मा के काव्य का मूल विषय प्रेम है। इनके काव्य में व्यक्त प्रेम अशरीरी तथा आध्यात्मिक रहस्यवाद है। संवेदनशील नारी हृदय होने के कारण इनकी प्रेमानुभूति में तीव्रता, व्यापकता और गहराई है। महादेवी वर्मा की प्रेम-साधना अलौकिक है परंतु उसमें कहीं-कहीं लौकिक प्रेम की झलक भी दिखाई देती है। उनके काव्य में रहस्यवाद की विभिन्न स्थितियाँ अर्थात् अपने प्रिय (ईश्वर) के स्वरूप के प्रति जिज्ञासा, विरह तथा मिलन का भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। इन्होंने मिलन के स्थान पर विरह को अधिक महत्त्व दिया है। वे पीड़ा को जीवन का अनिवार्य अंग मानती हैं। महादेवी जी के काव्य में प्रकृति के भी अद्भुत एवं मनोरम चित्र मिलते हैं। उनके काव्य को प्रकृति के अद्भुत चित्रों की चित्रशाला भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. महादेवी वर्मा का जन्म कब और कहां हुआ ?
उत्तर – महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ।
प्रश्न 2. महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर – 11 सितंबर, सन् 1987.
प्रश्न 3. महादेवी वर्मा को पद्मभूषण सम्मान किस वर्ष में मिला ? 
उत्तर – सन् 1950 ई० में ।
प्रश्न 4. कवयित्री ने आठ वर्ष की उम्र में कौन-सी रचना लिखी ? 
उत्तर – बारहमासा ।
प्रश्न 5. कवयित्री ने प्रस्तुत कविता में किसे जलने को कहा है ? 
उत्तर – जीवन रूपी दीपक को।
प्रश्न 6. कवयित्री ने दीपक को किस का पथ आलोकित करने को कहा है ?
उत्तर – प्रियतम को।
प्रश्न 7. कवयित्री दीपक को कैसे जलने को कह रही है। ?
उत्तर – हँसते हुए।
प्रश्न 8. आकाश में क्या जल रहे हैं ?
उत्तर – असंख्य दीपक।
प्रश्न 9. महादेवी वर्मा के काव्य में किस भाव की अभिव्यक्ति प्रमुख रही है ?
उत्तर – वेदना और करुणा । विकल
प्रश्न 10. आधुनिक युग की मीरा किसे कहा जाता है ?
उत्तर – महादेवी वर्मा को

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर प्रश्नोत्तर

1. यहाँ ‘दीपक’ किस का प्रतीक है ?
(क) मिट्टी
(ख) तेल
(ग) बत्ती
(घ) परोपकार
उत्तर – (घ) परोपकार ।
2. प्रियतम का पथ कौन-सा है ?
(क) परमात्मा की ओर जाने का मार्ग
(ख) राजपथ
(ग) जनपथ
(घ) जीवन संघर्ष का मार्ग।
उत्तर – (क) परमात्मा की ओर जाने का मार्ग ।
3. ‘युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल’ में अलंकार है
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) अनुप्रास
(घ) अतिशयोक्ति ।
उत्तर – (ग) अनुप्रास
4. ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल !’ के अनुसार दीपक कैसे जलना चाहिए ?
(क) तीव्र गति से
(ख) सहज रूप से
(ग) रुक-रुक कर
(घ) भड़क कर ।
उत्तर – (ख) सहज रूप से।
5. इन पंक्तियों में निहित संदेश है
(क) आत्मसमर्पण
(ख) अहंकारी की विजय
(ग) संघर्ष करो
(घ) जल जाओ।
उत्तर – (क) आत्मसमर्पण।
6. दीपक धूप बन कर क्या फैलाएगा ?
(क) उजाला
(ख) सुगंध
(ग) स्नेह
(घ) तेल ।
उत्तर – (ख) सुगंध |
7. कवयित्री सर्वत्र कैसा प्रकाश फैलाना चाहती है ?
(क) स्वार्थ का
(ख) अहंकार का
(ग) प्रभु भक्ति का
(घ) सूर्य का ।
उत्तर – (ग) प्रभु भक्ति का ।
8. कवयित्री दीपक को किसके समान घुलने के लिए कह रही है ?
(क) मानव तन
(ख) साबुन
(ग) रंग
(घ) मोम।
उत्तर – (घ) मोम |
9. इन पंक्तियों में दीपक को कैसे जलने के लिए कहा गया है ?
(क) संतप्त होकर
(ख) प्रसन्नतापूर्वक
(ग) धीरे-धीरे
(घ) तेजी से ।
उत्तर – (ख) प्रसन्नतापूर्वक ।
10. संसार के समस्त शीतल पदार्थ दीपक से क्या माँग रहे हैं ?
(क) प्रकाश की किरण
(ख) ज्वाला के कण
(ग) अपना अधिकार
(घ) खोया हुआ अंधकार ।
उत्तर – (ख) ज्वाला के कण ।

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