JKBOSE 9th Class Hindi Solutions chapter – 7 सवैये —रसखान
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कवि – परिचय
रसखान कृष्ण भक्ति काव्य के सुप्रसिद्ध कवि हैं जिन का जन्म सन् 1548 ई० में राजवंश से संबंधित एक समृद्ध पठान परिवार में दिल्ली में हुआ था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था । श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण भक्तजन इन्हें ‘रसखान’ कहने लगे थे। इनकी भक्तिभावना के कारण गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था और तब ये ब्रजभूमि में जा बसे थे। ये जीवन भर वहीं रहे थे और सन् 1628 ई० के लगभग इन का देहावसान हो गया था। रसखान रीतिकालीन कवि थे। ये प्रेमी स्वभाव के थे। वैष्णवों के सत्संग और उपदेशों के कारण इन का प्रेम लौकिक से अलौकिक हो गया था। ये श्रीकृष्ण और उन की लीलाभूमि ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता पर मुग्ध थे।
रसखान के द्वारा रचित दो रचनाएँ प्राप्त हुई हैं—’सुजान रसखान’ और ‘प्रेम वाटिका’। ‘रसखान रचनावली’ के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है ।
रसखान की कविता में भक्ति की प्रधानता है। इन्हें श्रीकृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु प्रिय थी। उनका रूप-सौंदर्य, वेशभूषा, बांसुरी और बाल क्रीड़ाएं इनकी कविता का आधार हैं। ये ब्रजक्षेत्र, यमुना तट, वन- बाग, पशु-पक्षी, नदी-पर्वत आदि के प्रति गहरे प्रेम का भाव रखते थे। इन्हें श्रीकृष्ण के बिना संसार में कुछ भी प्रिय नहीं था। इन के प्रेम में गहनता और तन्मयता की अधिकता है जिस कारण वे प्रत्येक पाठक को गहरा प्रभावित करते हैं। इन की भक्ति में प्रेम, शृंगार और सुंदरता का सहज समन्वित रूप दिखाई देता है। इनके प्रेम में निश्छल प्रेम और करुण हृदय के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप के सुंदर-सहज सवैये लिखे हैं।
रसखान की भाषा उनके भावों के समान ही अति कोमल है जिसमें ज़रा सा भी बनावटीपन नहीं है। ये अपनी मधुर, सरस और प्रवाहमयी भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके काव्य में शब्द इतने सरल और मोहक रूप में प्रयुक्त किए गए हैं कि वे झरने के प्रवाह के समान निरंतर पाठक को रस में डुबोते हुए आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने अलंकारों का अनावश्यक बोझ अपनी कविता पर नहीं डाला । मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग विशेष सुंदरता प्रदान करने में समर्थ सिद्ध हुआ है। इन्होंने कविता की रचना के लिए परंपरागत पद शैलियों का अनुसरण नहीं किया। मुक्तक छंद शैली का प्रयोग इन्हें प्रिय है। कोमलकांत ब्रज भाषा में रचित रसखान की कविता स्वाभाविकता के गुण से परिपूर्ण है। इन्हें दोहा, कवित्त और सवैया छंदों पर पूरा अधिकार है।
निस्संदेह भाव और भाषा के मणिकांचन प्रयोग ने रसखान को रस की खान के रूप में स्थापित कर दिया है। उन के कृष्ण भक्ति-प्रेम और श्रेष्ठ काव्य पर मुग्ध हो कर ठीक ही कहा गया है-इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिक हिंदू वारिए ।
सवैये
सवैयों का सार
कृष्ण-भक्त रसखान श्रीकृष्ण और कृष्ण भूमि के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि मैं मनुष्य रूप में जन्म लूं तो मैं ब्रजक्षेत्र के गोकुल गांव में ग्वालों के बीच जन्म लूं। यदि मैं पशु रूप में पैदा होऊँ तो मैं नंद बाबा की गठओं के झुंड में चरने वाली गाय बनूं | यदि मैं पत्थर बनूं तो गोवर्धन पर्वत पर जगह पाऊं जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए उठाया था । यदि मैं पक्षी का जीवन प्राप्त करूं तो यमुना किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूं।
श्रीकृष्ण के काले कंबल और गउओं को चराने के लिए प्रयुक्त लाठी के बदले मैं तीनों लोकों का राज्य त्याग दूं। आठों सिद्धियां और नौ निधियां, नंद बाबा की गउओं को चराने में भुला दूं। मैं अपनी आंखों से ब्रज के वन और बाग निहारता रहूं और करोड़ों महलों को ब्रज की कांटेदार झाड़ियों पर न्योछावर कर दूं।
श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में गोपियां स्वयं उन की वेशभूषा में रहने की इच्छा करती हैं । सिर पर मोरपंख, गले में गुंज माल और पीले वस्त्र पहन वे ग्वालों के साथ घूमने की इच्छा करती हैं। वे वही सब कुछ करना चाहती हैं जो श्रीकृष्ण को प्रिय है पर वे बांसुरी को अपने होंठों पर रखना पसंद नहीं करतीं।
गोपियां श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन और उन की मुस्कान के अचूक प्रभाव से स्वयं को विवश मानती हैं और स्वयं को संभाल नहीं पातीं ।
सप्रसंग व्याख्या
1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन ।
जौं खग हौं तो बसेरो करौं कालिंदी कूल कदंब की डारन ॥
शब्दार्थ— मानुष = मनुष्य । ह्रौं = मैं। बसौं = रहना, बसना । ग्वारन = ग्वाले। कहा बस = बस में न होना । नित = सदा । धेनु = गाय | मँझारन = बीच में । पाहन = पत्थर, चट्टान । गिरि = पर्वत । पुरंदर इंद्र खग पक्षी । कालिंदी = यमुना नदी । कूल = किनारा। डारन = डालियां ।
प्रसंग— प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित पाठ – P सवैये से लिया गया है जिसके रचयिता श्री कृष्ण भक्त रसखान हैं। कवि कामना करता है कि अगले जन्म में वह चाहे किसी रूप में धरती पर जन्म ले पर वह ब्रज क्षेत्र में ही स्थान प्राप्त करे।
व्यांख्या— रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य का जीवन प्राप्त क तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रज क्षेत्र के गोकुल गांव में ग्वालों के बीच रहूं। यदि मैं पशु व और मेरी इच्छा पूर्ण हो तो मैं नंद बाबा की गउओं में गाय बन कर सदा चरूं । यदि मैं पत्थर बनूं तो उसी गोवर्धन पर्वत पर स्थान प्राप्त करूं जिसे श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए छत्र के समान धारण कर लिया था। यदि मैं पक्षी बनूं तो यमुना के किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूं। भाव है कि कवि किसी भी अवस्था में ब्रज क्षेत्र को त्यागना नहीं चाहता, वह वहीं रहना चाहता है।
सवैया पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि मनुष्य रूप में कहाँ और क्यों जीवन पाना चाहता है ?
(ख) निर्जीव रूप में भी कवि जगह क्यों पाना चाहता है ?
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बन कर क्यों रहना चाहता है ?
(घ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) कवि अगले जन्म में मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गांव में ग्वालों के बीच रहना चाहता है क्योंकि श्रीकृष्ण उन के साथ रहे थे और ग्वालों को उन की निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था ।
(ख) कवि निर्जीव रूप में पत्थर बन कर गोवर्धन पर्वत पर जगह पाना चाहता है जिससे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी अंगुली पर उठा लिया था।
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बन कर रहना चाहता है ताकि वह उन स्थलों को देख सके जहां श्री कृष्ण विहार करते थे ।
(घ) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण की लीला स्थली पर ही रहना चाहता है ताकि उस के प्रति अपनी अनन्यता प्रकट कर सके। कवि ने ब्रज भाषा की कोमलकांत शब्दावली का सहज प्रयोग किया है। सवैया छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है । तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द शक्ति और शांत रस विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है।
2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूं पुर को तजि डारौँ ।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ-चराइ बिसारौं,
रसखान कब इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौँ ।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
शब्दार्थ— या = इस लकुटी = लकड़ी, लाठी कामरिया = कंबल । तिहुं = तीनों। तजि = छोड़; त्याग । आठहुँ सिद्धि = अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व और वाशित्व नामक आठ अलौकिक शक्तियाँ। नवौ निधि = पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व नामक कुबेर की नौ निधियां । गाइ = गाय । बिसारौं = भुला दूं। तड़ाग = तालाब। निहारौ = देखूं । कोटिक = करोड़ों। कलधौत महल । करील = कंटीली झाड़ियां। वारौ = न्योछावर करूं ।
प्रसंग— प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित पाठ ‘सवैये’ से लिया गया है जिस के रचयिता रसखान हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रजक्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।
व्याख्या— रसखान कहते हैं कि मैं ब्रजक्षेत्र में श्रीकृष्ण के ग्वालों की गठओं को चराने के लिए प्रयुक्त इस लाठी और उन के द्वारा ओढ़े जाने वाले काले कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दूं। मैं नंद बाबा की गठओं को चराने के बदले आठों सिद्धियां और नौ निधियों के सुख भी भुला दूं। मैं ब्रज क्षेत्र के वनों, बागों और तालाबों को अपनी आंखों से कब निहार पाऊंगा? मैं ब्रज क्षेत्र में ठगी करील की कंटीली झाड़ियों पर करोड़ों महल को न्योछावर कर दूं। भाव है कि रसखान ब्रज क्षेत्र के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते हैं। उन के लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है।
सवैया पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) कवि तीनों लोकों का राज्य किस के बदले त्याग देने को तैयार है ?
(ख) कवि अपनी आंखों से क्या निहारना चाहता है ?
(ग) ब्रज की कंटीली झाड़ियों पर कवि क्या न्योछावर कर देना चाहता है ?
(घ) प्रस्तुत सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और काले कंबल के बदले त्याग देने को तैयार है जो ब्रज के ग्वाले गठओं को चराते समय धारण किया करते थे।
(ख) कवि अपनी आंखों से ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है।
(ग) ब्रज क्षेत्र की कंटीली झाड़ियां भी कवि के लिए इतनी मूल्यवान हैं कि वह उन के बदले करोड़ों महलों को उन पर न्योछावर कर देना चाहता है।
(घ) रसखान ने सवैया में श्रीकृष्ण और ब्रज क्षेत्र के प्रति अपने मन के प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए अपना सब प्रकार का सुख त्याग देने और उस आनंद को पाने की इच्छा प्रकट की है। ब्रज भाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।
3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहाँ गुंज की माल गरें पहिरौँगी ।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौँगी ॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहें सब स्वाँग कराँगी। ॥
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धराँगी ॥
शब्दार्थ— मोरपखा = मोरपंख। गुंच = घुंघची गरें = गले। पहिरौंगी = पहनूंगी। पितंबर = पीत वस्त्र । लकुटी = लाठी। ग्वारनि = ग्वालिन। स्वाँग = रूप धरना, नकल करना। अधरा = होंठ।
प्रसंग— प्रस्तुत सवैया भक्तिकाल के कवि रसखान द्वारा रचित है। इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निःस्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियां श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।
व्याख्या— गोपियां श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वांग भरने को तैयार हो जाती हैं। रसखान जी वर्णन करते हैं कि गोपिका कहती है मैं श्रीकृष्ण के सि पर रखा हुआ मोरपंख अपने सिर पर धारण कर लूंगी। श्रीकृष्ण के गले में शोभा पाने वाली गुंजों की माला को अपने गले में पहन लूंगी। पीत वस्त्र ओढ़ कर तथा श्रीकृष्ण की लाठी हाथ में लेकर, गायों के पीछे ग्वालों के साथ-साथ घूमा करूंगी। रसखान जी कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वे श्रीकृष्ण मेरे मन को प्रिय हैं तुम्हारी कसम मैं उनके लिए सब प्रकार के रूप धर लूंगी। परंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहने वाली इस मुरली को मैं अपने होंठों पर कभी भी नहीं रखूंगी। यहां गोपी की सौतिया डाह चित्रि हुई है जो श्रीकृष्ण के लिए सब कुछ कर सकती है पर मुरली को अपना दुश्मन मानते हुए उसे अपने होंठों पर नहीं लगा सकती।
सवैया पर आधारित अर्थग्रहण और सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
(ख) गोपी कैसा स्वांग धारण करना चाहती है ?
(ग) गोपी मुरली को अपने होंठों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
(घ) इस पद का भाव तथा काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— (क) गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से शृंगार करना चाहती है। वह अपने सिर पर उनका मोरपंख का मुकुट धारण करना चाहती है तथा गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह पीले वस्त्र पहन कर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।
(ख) वह श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उनके कहे अनुसार सब प्रकार का स्वांग धारण करने के लिए तैयार है।
(ग) श्रीकृष्ण के होंठों से लगे रहने वाली मुरली को गोपी अपने होंठों से इसलिए नहीं लगाना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है जो सदा श्रीकृष्ण के होंठों से लगी रहती है। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपनी शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती।
(घ) गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। गोपियों का श्रीकृष्ण का स्वांग भरना पर मुरली को होंठों से न लगाना उनकी सौतिया डाह को चित्रित करता है। अनुप्रास और यमक अलंकार की छटा दर्शनीय है। ब्रज भाषा है। सवैया छंद है। माधुर्य गुण है। संगीतात्मकता विद्यमान है। शृंगार रस है। भक्ति रस का सुंदर परिपाक है। भाषा सरस तथा प्रवाहमयी है।
4. काननि दै अँगुरी रहि बो जब हीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा-चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझे है ।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
शब्दार्थ— काननि = कानों में मुरली = बांसुरी। मंद = धीमी। अटा = अटारी, अट्टालिका, कोठा। टेरि = आवाज लगाना, पुकारना। सिगरे= सारे वा = उस |
प्रसंग— प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ भाग-1 में संकलित पाठ ‘सवैये’ से अवतरित किया गया है जिस के रचयिता कृष्ण भक्त कवि रसखान हैं। श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन और उनकी मुस्कान का प्रभाव अचूक है। गोपियां स्वयं को इन के सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को संभाल नहीं पातीं।
व्याख्या— रसखान कहते हैं कि कोई गोपी श्री कृष्ण की बाँसुरी की मोहक तान के जादुई प्रभाव को प्रकट करते हुए कहती है कि हे सखी। जब श्री कृष्ण बाँसुरी की मधुर धुन को धीमे-धीमे स्वर में बजाएँगे तब मैं अपने कानों को अँगुली से बंद कर लूँगी ताकि बाँसुरी की मधुर तान मुझ पर अपना जादुई प्रभाव न डाल सके। फिर चाहे वह रस की खान कृष्ण अट्टालिका पर ऊपर चढ़ कर भी मोहनी तान बजाता रहे तो भी कोई बात नहीं, वह चाहे गोधन नामक लोक गीत गाता रहे पर मुझ पर उस का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पर यदि उसकी बाँसुरी की धुन मेरे कानों में पड़ गई तो ब्रज के सभी लोगों मैं पुकार-पुकार कर कह रही हूँ कि तब कोई हमें कितना भी समझाए पर मैं समझ नहीं पाऊँगी, मैं अपने आप को संभाल नहीं पाऊँगी। हे री मां, उनके मुख की मुस्कान हम से नहीं संभाली जाती; नहीं संभाली जाती; नहीं संभाली जाती । भाव है कि गोपियां तो मानों श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान पर अपने आप को खो चुकी हैं। उन का हृदय अब उन के बस में नहीं है।
सवैया पर आधारित अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्न—
प्रश्न (क) गोपी श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई बांसुरी की तान को क्यों नहीं सुनना चाहती ?
(ख) गोपी को किन की कोई परवाह नहीं ?
(ग) गोपियां अपने आप को किस कारण विवश अनुभव करती है ?
(घ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर— (क) गोपी श्री कृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से बचने के लिए बाँसुरी की धुन नहीं सुनना चाहती ।
(ख) गोपी को कोई परवाह नहीं है कि कोई इस के बारे में क्या कहेगा।
(ग) श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान और उनकी बांसुरी की तान के कारण गोपियां अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पातीं और वे स्वयं को विवश अनुभव करती हैं।
(घ) श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई जाने वाली बांसुरी की मोहक तान और उनके मुख पर आई मुस्कान ने गोपियों को विवश कर दिया है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उन का हृदय अब उन के बस में नहीं है। ब्रज भाषा की कोमल-कांत शब्दावली ने कवि के कथन को सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने सरलता से भावों को प्रकट कराया है। चाक्षुक बिंब योजना की गई है। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। सवैया छंद है।
अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर— ब्रजभूमि के प्रति कवि का अगाध प्रेम है। वह हर जन्म में ब्रज क्षेत्र में ही रहना चाहता है। वह इस जन्म में तो ब्रज भूमि से जुड़ा ही हुआ है और चाहता है कि उसे अग जन्मों में चाहे कोई भी जीवन मिले वह बार-बार ब्रज में ही आए। यदि वह मनुष्य के जीवन प्राप्त करे तो वह ब्रजक्षेत्र के गोकुल गांव के ग्वालों में रहे। यदि वह पशु की योग प्राप्त करते तो नंद बाबा की गउओं के साथ मिल कर चरने वाली गाय बने । यदि के निर्जीव पत्थर भी बने हों उस गोवर्धन पर्वत पर ही स्थान पाएं जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र अभिमान को भंग करने के लिए उठा लिया था। यदि वह पक्षी के रूप में जन्म ले तो क यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर ही बसेरा करे।
प्रश्न 2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारा है ?
उत्तर— कवि ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है ताकि वह श्रीकृष्ण की प्रिय भूमि और लीला स्थली के प्रति अपने हृदय की अनन्यता को प्रकट कर सके। उ ब्रज के कण-कण में श्रीकृष्ण समाए हुए प्रतीत होते हैं ।
प्रश्न 3. एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्य तैयार है ?
उत्तर— लकड़ी के एक डंडे को हाथ में धारण कर और शरीर पर काला कंबल ओर कर ग्वाले श्रीकृष्ण के साथ गौवें चराने जाया करते थे। कवि के हृदय में उस ‘लकुटी’ और ‘कामरिया’ के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न 4. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर— सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण जैसी वेशभूषा और रूप धारण करने का आग्रह किय है। सिर पर मोर पंख, गले में गुंज माला, तन पर पीतांबर और हाथ में लाठी ले कर ग्वालों के साथ घूमने के लिए कहा है। ऐसा कर के वे श्रीकृष्ण की स्मृतियों को ताज़ा बनाए रखन चाहती हैं।
प्रश्न 5. आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर— रसखान के हृदय में श्रीकृष्ण और ब्रज भूमि के प्रति अगाध प्रेम का भाव व्याप्त । उसे ब्रज क्षेत्र के कण-कण में श्रीकृष्ण की छवि झलकती हुई दिखाई देती है । वह सद उस छवि को अपनी आंखों के सामने ही पाना चाहता है। मानसिक छवियां ऐसा अहसास कराती हैं मानो वास्तविकता ही सामने विद्यमान हो। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।
प्रश्न 6. चौथे सवैये के अनुसार गोपियां अपने आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर— गोपियां श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उन की आकर्षक मुस्कान के अचूक प्रभाव से स्वयं को नियंत्रित रखने में विवश पाती हैं।
प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर— (क) रसखान ब्रज क्षेत्र की कांटों भरी करील की झाड़ियों को सुंदर महलों से श्रेष्ठ मानते हैं और उन्हें ही पाना चाहते हैं ताकि श्रीकृष्ण के क्षेत्र के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को प्रकट कर सकें।
(ख) गोपियां श्रीकृष्ण के मुख की मंद-मंद मुस्कान पर इतनी मुग्ध हो चुकी हैं कि वे अपने मन की अवस्था को नियंत्रण में रख ही नहीं सकतीं। उन्हें प्रतीत होता है कि उन की मुस्कान उन से संभाली नहीं जाएगी।
प्रश्न 8. ‘कालिंदी कुल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर— अनुप्रास अलंकार।
प्रश्न 9. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धराँगी ।
उत्तर— गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण की बांसुरी के प्रति सौत भावना है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीकृष्ण उन की अपेक्षा बांसुरी को अधिक प्रेम करते हैं इसलिए वह सदा उन के होंठों पर टिकी रहती है। गोपियां श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को अपनाना चाहती हैं पर अपनी सौत रूपी बांसुरी को होंठों पर नहीं रखना चाहतीं। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली की सुंदर योजना की गई है। गोपियों का हठ-भाव अति आकर्षक है। प्रसाद गुण तथा अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।
रचना और अभिव्यक्ति—
प्रश्न 10. प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
प्रश्न 11. रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्शवाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर— विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
पाठेत्तर सक्रियता—
● सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
यह भी जानें—
सवैया छंद— यह एक वर्णिक छंद है जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ब्रजभाषा का बहुप्रचलित छंद रहा है।
आठ सिद्धियाँ— अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकास्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ अलौकिक शक्तियाँ आठ सिद्धियाँ कहलाती हैं।
नव ( नौ ) निधियाँ— पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, कुकुंद, कुंद, नील और खर्वये कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रसखान किस के भक्त थे ?
उत्तर— श्रीकृष्ण जी के ।
प्रश्न 2. रसखान की भाषा ब्रज है या अबधी ?
उत्तर— ब्रज भाषा ।
प्रश्न 3. कवि किस पर्वत का पत्थर बनना चाहता है ?
उत्तर— गोवर्धन पर्वत ।
प्रश्न 4. ‘या लकुटी अरू कामरिया’ सवैये में कवि ने किस क्षेत्र की प्रशंसा की है ?
उत्तर— ब्रज क्षेत्र की।
प्रश्न 5. गोपी श्री कृष्ण की बाँसुरी अपने होठों से क्यों नहीं लगाना चाहती ?
उत्तर— सौतिया डाह के कारण।
प्रश्न 6. ‘कालिंदी’ किस का नाम है ?
उत्तर— यमुना नदी का ।
प्रश्न 7. कवि ने कंबल के लिए किस शब्द का प्रयोग किया है ?
उत्तर— कामरिया।
प्रश्न 8. रसखान ने किस से दीक्षा ली थी ?
उत्तर— गोस्वामी बिट्ठलनाथ से
प्रश्न 9. गोपी क्या नहीं संभाल पा रही ?
उत्तर— श्रीकृष्ण के मुख की मुस्कान।
प्रश्न 10. ‘पुरंदर’ कौन था ?
उत्तर— इन्द्र ।
प्रश्न 11. रसखान का मूल नाम क्या था ?
उत्तर— रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था ।
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